माँ
माँ
रचयिता : विजयसिंह चौहान
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जीवन की इस
आपाधापी में ,
"मैं ".कहां खो गया
माँ,
मैं क्यों बड़ा हो गया
काश !
मैं फिर से बच्चा बन जाऊं तेरी गोद में
सिर रखकर सो जाऊं
भूखा रहता हूं' मैं
दिन भर
दो निवाले,
फिर खिला दो ना
मां
अपनी गोद में फिर
सुला लो ना,
मां
नहीं चाहिए
ये दुनिया, चमक भरी
मुझे फिर से अपने
"आंचल" में,
छुपा लो ना,
मां
मन का दर्द
कह भी नहीं सकता,
आंख भर
रो भी नहीं सकता,
अपनी पनाह में
ले लो ना
मां
तेरी भोली सी
मुस्कान से, मैं
दुनिया के सारे दर्द
भूल जाता हूं
एक बार छू कर
निहाल कर दो, ना
मां।
लेखक परिचय : विजयसिंह चौहान की जन्मतिथि ५ दिसम्बर १९७० जन्मस्थान इन्दौर (मध्यप्रदेश) है, इसी शहर से आपने वाणिज्य में स्नातकोत्तर के साथ विधि और पत्रकारिता विषय की पढ़ाई की, आप सामाजिक क्षेत्र म...