बिटियाएँ ओझल
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रचयिता : संजय वर्मा "दॄष्टि"
एक तारा टुटा
आँसमा से
धरती पर आते ही
हो गया ओझल
ये वेसा ही लगा
जैसे गर्भ से
संसार में आने के पहले
हो जाती है
बिटियाँ ओझल ।
तारा स्वत:टूटता
इसमे किसी का दोष नहीं
मगर गर्भ में
कन्या भ्रूण तोड़ने पर
इन्सान होता ही है दोषी ।
चाँद -तारों का कहना है कि
भ्रूण हत्या होगी जब बंद
तो बिटियाएँ भी धरती पर से
हमें निहार पायेगी
चाँद -तारों सा नाम पाकर
संग जग को भी रोशन कर पायेगी ।
आकाश से टुटाता आया तारा
लाया था एक संदेशा -
भ्रूण हत्या रोकने का
उससे नहीं देखी गई
ऊपर से ये क्रूरता ।
वो अपने साथी तारों को भी
ये कह कर आया-
तुम भी टूट कर एक -एक करके
मेरी तरह
भ्रूण हत्या रोकने का
संदेशा लेते आओ ।
कब तक नहीं रोकेगें
क्रूर इन्सान भ्रूण हत्याए
संदेशा पहुँचे या न पहुँचे
पर रोकने हेतु ये हमारा
आत्मदाह है
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