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पद्य

लो पूरा जीवन बीत गया
कविता

लो पूरा जीवन बीत गया

हंसराज गुप्ता जयपुर (राजस्थान) ******************** लो पूरा जीवन बीत गया समर्थ समय था, व्यर्थ गया, होता जीवन का अर्थ नया, अनमोल समय, हर घड़ी घड़ी, लिख जाते हम संगीत नया, लो पूरा जीवन बीत गया, लो जीवन पूरा बीत गया। १। लिया ना राम का नाम कभी, और करने हैं शुभ काम सभी, कल थी जवानी, परसों बचपन आज बुढ़ापा मीत नया, लो पूरा जीवन बीत गया, लो जीवन पूरा बीत गया।२। श्याम-श्वेत कभी छद्म-वेष, और प्यार प्रेम कभी कलह क्लेश, आने-जाने उठने-सोने, खाने-पीने हंसने-रोने, ये दौड़ भाग आपाधापी, और उठा पटक दूरी नापी, मन की गुन-गुन, सबकी सुन-सुन, परिवेश वही फिर जीत गया, लो पूरा जीवन बीत गया, लो जीवन पूरा बीत गया।३। रिश्ते जनम करम के गहरे, पलकों में रहते जो चेहरे, सपनों की तन्द्रा से अपना, पल में ही नाता टूट गया, हर साथी पीछे छूट गया। सोने से जडा, माटी का घडा, था सुघड सलौना, फूट ...
संपूर्ण दर्शन हो तुम
स्तुति

संपूर्ण दर्शन हो तुम

डॉ. किरन अवस्थी मिनियापोलिसम (अमेरिका) ******************** तुम पूर्ण दर्शन हो कन्हैया दर्शन के दर्शन करवाते हो तुममें डूब सकें हम तो जीवन नौका पार कराते हो। जो न समझा तुमको हमने काया नगरी न सुधरेगी ऊबड़-खाबड़ पगडंडी सी प्राणों की लकीर उभरेगी। शिशु काल में रिपु पहचाना बाल्यकाल में प्रेम दिखाया संपूर्ण स्नेह के संपूर्ण विरह को तुमने हमको सब समझाया। किशोरकाल के पहले पग पर समरनाद कर युद्ध किया अगणित कंसों को मारा मथुरा को नव जन्म दिया। समयानुसार आन पड़ी तो रण छोड़ गए, द्वारिका बसाई कर्म-क्षेत्र में जो बाधा बन आया यह तन छोड़ा, परमगति पाई। कब क्या करना है, मानव को तुमने हर पल सिखलाया सीमा‌ पार करें यदि कोई तुरत सुदर्शन चक्र चलाया। सखा बने तो तुमसा कोई मित्र सुदामा के जीवनदाई सारथि बनकर पार्थ संभाला यज्ञ राजसूय में पात उठाई। गुरु बन तुमने गीता गाई जीवन पक्...
बिगड़े न बातों में बात
कविता

बिगड़े न बातों में बात

ललित शर्मा खलिहामारी, डिब्रूगढ़ (असम) ******************** कभी-कभी समझ में नहीं आती बात समझ के फेर में उलझ जाती बात कभी-कभी बिगड़ी बात तिल का ताड बनकर लाइलाज बन जाती जीवन जीने की बात बिगड़े काज सुधार भी जाती कुछ अच्छी बात जीवनभर जुबान पर कायम रहती अच्छी बात सबसे भारी पड़ जाती जीवन में कई कड़वी बात बिना बुलावे अक्सर कई कारणों में कई बार जुबान पर चली आती है कुछ चुभती बात बीमारी सी हालात कर देती है बात ही बात कभी कभी मन को बेचैन कर जाती जीवन जीने की बात फिर भी शांति सगुन भरने की समझ से परे रहती जीवन जीने की बात नहीं समझ आती जीवन जीने की बात कोई राह नहीं नजर आती बात ही बात में बिगड़ती जाती बात में बात तिल से ताड में उलझ जाती जीवन जीने की तमाम बात कभी कभी खुशियां लाती बात कभी मातम ले आती बात आती चली जाती आती चली जाती कभी कभी दुश्मनी की दीवार खड़ी क...
नैना रतनारे
कुण्डलियाँ

नैना रतनारे

तेज कुमार सिंह परिहार सरिया जिला सतना म.प्र. ******************** कुण्डलिया नैना रतनारे सुघर, कंचन काया देहिं। कच घुँघराले कुच शिखर मन बस में करि लेहिं।। मन बस में करि लेहिं, अधर टेसू सी लाली। यौवन है मदमस्त, भरी मदिरा की प्याली।। लखि टी के अस रूप, न मुहुं से निकले बैना। चैन ले गये छीन, नशीले उनके नैना।। परिचय :- तेज कुमार सिंह परिहार पिता : स्व. श्री चंद्रपाल सिंह निवासी : सरिया जिला सतना म.प्र. शिक्षा : एम ए हिंदी जन्म तिथि : ०२ जनवरी १९६९ जन्मस्थान : पटकापुर जिला उन्नाव उ.प्र. आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिं...
वहम होता है
कविता

वहम होता है

शिवदत्त डोंगरे पुनासा जिला खंडवा (मध्य प्रदेश) ******************* वहम होता है, सितारे कभी टूटा नहीं करते, उड़ा के शिगूफे ख़ुद ही, लूटा नहीं करते, कसैले होते हैं, अक्सर शिकवों के वार, कड़वी बातों से कभी मुंह जूठा नहीं करते, लौट के फिर आ मिलता है, अपना ही कर्मदण्ड, आसमां की तरफ मुँह करके, कभी थूका नहीं करते, उमर भर का लेखा जोखा होता है, यूँ तिनको को संभालना, बना के अपना ही आशियाना, ख़ुद ही फूंका नहीं करते, वज़ह लापरवाही है या और ही कुछ शायद, यूँ हमसफर तो कभी, रस्तों पे छूटा नहीं करते, माना के शिकवे गिलों का बोझ नहीं सँभलता, जान बूझ कर तो, अपनी छाती कूटा नहीं करते, बादलो जी भर के तर कर दो, ज़मीं का जिस्म, बिना नमीं के तो ज़मीं में, अंकुर फूटा नहीं करते। परिचय :- शिवदत्त डोंगरे (भूतपूर्व सैनिक) पिता : देवदत ...
बचपन
कविता

बचपन

डॉ. प्रताप मोहन "भारतीय" ओमेक्स पार्क- वुड-बद्दी ******************** उम्र हो गई है अब मेरी पचपन। नहीं भूल पाया हूं अब तक बचपन। न किसी की चिंता थी न कोई फिक्र थी। दुनियां में कुछ भी होता रहे हमारी जिंदगी बेखबर थी। हमेशा अपनी मस्ती में मस्त रहते थे। मां को छोड़कर अन्य किसी से नहीं डरते थे। "माल्या"नही थे फिर भी जहाज चलाते थे। बरसात के पानी में कागज़ की नांव चलाते थे। सारा दिन खेलना कूदना सारा दिन मस्ती करना रोना और हंसना कभी चुप नही रहना। व्यापार का खेल खेलकर लाखों रुपये कमाए। तब शायद आज हम सच्चे व्यापारी बन पाए। चिंता और तनाव शब्द हमारे शब्द कोश में नहीं था। जिंदगी में एक अलग प्रकार ही का मजा ही था। बीत गया बचपन बस उसकी यादें अब शेष है। मेरे जीवन में बचपन का महत्व विशेष है। परिचय : डॉ. प्रताप मोहन "भारतीय" निवासी : चिनार-२ ओमेक्स पार्क-...
छटपटाती स्त्री
कविता

छटपटाती स्त्री

डॉ. अर्चना मिश्रा दिल्ली ******************** स्त्री बन सोचा क्या-क्या ना करूँगी उन सभी दक़ियानूसी सोच को दरकिनार करूँगी। बंद अन्धेरें कमरों में आहें मैं ना भरूँगी । लूटी हुई अस्मत का बोझ यूँ अकेले ना सहूँगी। रोज़ अपने स्वाभिमान को तिलांजलि दें, तुम्हें खुश मैं ना करूँगी। हर जगह त्याग की मूर्ति मैं ना बनूँगी। अश्लील बातें और बेवजह के तानों को कानो में ना पड़ने दूँगी। कहीं झुरमुट के किनारे फटें गले चीथड़ों में मैं ना मिलूँगी। विभत्स नंगा नाच जो हो रहा समाज में, मैं इसका हिस्सा ना बनूँगी। बचपन से यही सोचती आई पर हक़ीक़त कुछ और ही नज़र आयी। यूहीं ज़बरदस्ती धकेला गया मुझे भी इस मूक बधिर समाज में। जैसे मेरे अंदर प्राण ना होकर कोई सामान हो । कुत्सित विचारों और कुत्सित सोच का ही परिणाम हूँ। हाँ इसीलिए मैं परेशान हूँ मेरे अंदर भी जलता हुआ एक श्मशान है, रोज़ ह...
जिंदगी कब बेमानी हो जाये
कविता

जिंदगी कब बेमानी हो जाये

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** उम्मीद पाल हर कोई चलता है कि जिंदगी सुहानी हो जाये, कब किसे क्या पता जिंदगी कब बेमानी हो जाये। मत कर उम्मीद कि नफ़रत पालने वाले दिल से गले लगाये, क्या पता जिंदगी कब बेमानी हो जाये। उलझा हुआ है कौन कब कितनी झंझावतों में, कहां पिस रह जाये किस किस की अदावतों में, संबल की आस वाले जब लूटने लगे भरम, सितम भगाने वाले खुद बन जाये सितम, मौत ही पक्का जब निशानी हो जाये, क्या पता जिंदगी कब बेमानी हो जाये। फरेब संग रहकर जब जटिल जाल बुने, दिल का हरा आंगन लगने लगे जब सुने, अनुराग और प्रेम जब लगाने लगे चुने, अहसास नहीं होता अपने अपनों को भुने, अपनों से अपनेपन का विश्वास जब खो जाये, क्या पता जिंदगी कब बेमानी हो जाये। परिचय :-  राजेन्द्र लाहिरी निवासी : पामगढ़ (छत्तीसगढ़) घोष...
संघर्ष का गीत
गीत

संघर्ष का गीत

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** हर मुश्किल से जूझ तू, रहकर के गतिशील। विपदाओं में ठोक दे, तू इक पैनी कील।। गहन तिमिर डसने लगा, भाग रहा आलोक। पर तू रख यदि हौसला, तो हारेगा शोक।। संघर्षों को जीतकर, रचना है इतिहास। धूमिल हो पाये नहीं, तेरी पलती आस।। जीवन कांटों से भरा, रखना होगा ध्यान। अनगिनत तो जंजाल हैं, लाते जो अवसान।। बच तूू नित्य अनर्थ से, रीति,नीति ले मान। जग तुझको देगा तभी, जीवन में सम्मान।। जो करता है पाप को, उसका घटता ताप। इस संसारी खेल मे, हर क्षण है अभिशाप।। हिंसा यहाँ अनर्थ है, और छोड़ना धर्म। मानवता के नाम पर, कर तू अच्छे कर्म।। बच अनर्थ से नित्य ही, खुश होंगे भगवान। तू पाएगा शान तब, कदम-कदम सम्मान।। है अनर्थ संताप सम, हर लेता जो जोश। मानव जाता नित्य तब, रोगों के आगोश।। रह अनर्थ से दूर तू, तो पाएगा हर्ष। ह...
अनाथ बच्चा
कविता

अनाथ बच्चा

देवप्रसाद पात्रे मुंगेली (छत्तीसगढ़) ******************** अनाथ बच्चा बेसहारा हूँ। जीवन के सफर में हारा हूँ।। जब भूख लगे न मिले भोजन भूख की अग्नि में जले तनमन बिगड़ी हालात का मारा हूँ। जीवन के सफर में हारा हूँ... मह-मह करती होटल में बनती रोटियाँ झाँकता हूँ। इस पापी पेट की आग बुझाने हरदम मौके ताकता हूँ।। कहते हो लोफर आवारा हूँ जीवन के सफर में हारा हूँ... दे दो न दीदी भैया कहकर हर दिन हाथ फैलाता हूँ। मिले भोजन कभी मिले नहीं पानी से प्यास बुझाता हूँ।। असहनीय दुखों का पिटारा हूँ। जीवन के सफर में हारा हूँ... पढ़ना चाहूँ मैं भी लेकिन हाथ में कलम न किताब है। ढूंढ रहा सुकून का जीवन बस भूख का हिसाब है। कूड़े करकट सा किनारा हूँ। जीवन के सफर में हारा हूँ।। रोटी की खातिर घूमता रहता। हरदम मैं मारा जाता हूँ। होटल-गलियों स्टेशनों चौराहों में दुत्कारा जाता हूँ। कड़वा पानी ...
तेरा-मेरा साथ सुहाना
कविता

तेरा-मेरा साथ सुहाना

बृजेश आनन्द राय जौनपुर (उत्तर प्रदेश) ******************** तेरा-मेरा साथ सुहाना। ऐ 'चन्दा'! तुम ॲगना आना।। बचपन से ही साथ रहें तुम किस्सों की 'बहु-बात' रहे तुम संग तुम्हारे तारे देखे 'विस्तृत-क्षितिज-किनारे' देखे जब-जब पहलू में तुम आए मीठे-मीठे सपने लाए 'सपनों में फिर याद समाना'। ऐ चन्दा! तुम ॲगना आना।। सॉझ रहे तुम मेले में जब लौट न सका अकेले में तब साथ तुम्हारे यादें आईं यादों में हॅस, रातें-आईं साथ मेरे तुम छत पे आए नभ से आ ऑखों में छाए फिर ऊपर-नीचे तक छाना। ऐ चन्दा! तुम ॲगना आना।। जलधारा में विम्ब तुम्हारे मन्दिर-मन्दिर दीप तुम्हारे कदली-वट-ॲवला-पीपल-तरु- 'तुलसी-चौरा', 'रीत-तुम्हारे' तुमने श्रद्धा के ऑचल में कितने दीपक-राग सजाए अर्चन बन गया 'गान-पुराना'। ऐ चन्दा! तुम ॲगना आना।। परिचय :-  बृजेश आनन्द राय निवासी : जौनपुर (उत्तर प्रदेश) सम्म...
गरीबी
कविता

गरीबी

किरण पोरवाल सांवेर रोड उज्जैन (मध्य प्रदेश) ******************** जीवन में क्या क्या ना कराती गरीबी, झूठन के बर्तन, झाडू और पोछा, ऊपर से चार ताने सुनाती हे ये गरीबी। हथोडा और पावडा, गेती और तगारी, ठंडी हो या हो बारिश, गर्मी मै पसीना बहाती गरीबी। सेठो के बोल सहना थैलो का बोझ सहना, हर वक्त ठेला ढोना, सीखाती हे ये गरीबी। रूखी और सुखी खाना, जीवन को हे चलाना, बच्चों को एक भिखारी बनाती हे ये गरीबी। कोई तो भीख मांगे कोई जेब हाथ मारे, कोई चोरी और डाका डाले, हाथो मै हथकड़ी डलवाती है ये गरीबी। तुम गरीबो को दो सहारा, जीवन को दो किनारा, तुम बाँह उनकी थामो, रोजगार से लगा दो, बन जाये उनका जीवन, धन व्यर्थ ना गँवावो, गरीबी के दिन हे भारी, अमीर की रात न्यारी, जरा सोचकर तो देखो, तुम सूट पेन्ट वालो परिचय : किरण पोरवाल पति : विजय पोरवाल निवासी : सांव...
नव वर्ष
कविता

नव वर्ष

मालती खलतकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** फिर उडे नव वर्ष के पांखी खुले आकाश में छोड़ आये नीड़ कितने, ओर कितनों से जुड़ेंगे कौन जाने कब, कहां फिर रास्ते कोरे मुड़ेंगे फिर सुरभि के कलश ले, सांसें गगन वातास में बहुत से संदर्भ ऐसे भी रहें हैं जो नहीं हारे आंधियों के सफ़र में क्या हुआ, कुछ किरकिरे अनुभव रहें हों भीड़ के छोड़ देगा समय उनको, हाशियों फिर कैसे विश्वास से बढ़ो आगे नये वर्ष में। परिचय :- इंदौर निवासी मालती खलतकर आयु ६८ वर्ष है आपने हिंदी समाजशास्श्र में एम ए एल एलबी किया है आप हिंदी में कविता कहानी लेख गजल आदि लिखती हैं व आपकी रचनाएँ विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं मैं प्रकाशित होते हैं आप सन १९६८ से इंदौर के लेखक संघ रचना संघ से जुड़ी आप शासकीय सेवा से निमृत हैं पीछेले ३० वर्षों से धार के कवियों के साथ शिरकत करती रही आकाशवाणी इंदौर से भी रचनाएं ...
खर्चे बहुत बढ़े
कविता

खर्चे बहुत बढ़े

तेज कुमार सिंह परिहार सरिया जिला सतना म.प्र. ******************** पूर्णिका प्यार के अख्तियार के चर्चे बहुत बढ़े। इतिहास के पन्ने घटे पर्चे बहुत बढ़े।। अब शीरी न फरहाद न लैला नही मजनूँ, नवयुग की अप्सराओं के खर्चे बहुत बढ़े। दिल लगाने में बढ़ा है आजकल जोखिम, इश्क में है तीक्ष्णता मर्चे बहुत बढ़े। तारिकायें मोहती है किन्तु उलझन है, नीलाम होता हुश्न अगरचे बहुत बढ़े। कब्र में हैं पैर फिर भी आजमाते है, दिया सी उम्मीद के किर्चे बहुत बढ़े। प्रेम है पूजा कहा जाता रहा जिसे, बदनाम करने के लिए लुच्चे बहुत बढ़े। परिचय :- तेज कुमार सिंह परिहार पिता : स्व. श्री चंद्रपाल सिंह निवासी : सरिया जिला सतना म.प्र. शिक्षा : एम ए हिंदी जन्म तिथि : ०२ जनवरी १९६९ जन्मस्थान : पटकापुर जिला उन्नाव उ.प्र. आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, ले...
ये पल ये दिन तुम याद रखना यारो
कविता

ये पल ये दिन तुम याद रखना यारो

मनमोहन पालीवाल कांकरोली, (राजस्थान) ******************** ये पल ये दिन तुम याद रखना यारो हम रहे ना रहे खयाल रखना यारो एक पल का भरोसा हमारा नहीं सपना मेरा तुम संभाल रखना यारो कोई कब तुमसे अलविदा कह जाए ख़ुदा के लिये तुम तैयार रखना यारो गीत खुशियों के गाकर तुम अपने दिल मे सपना संभाल रखना यारो दुखी न हो कोई मुफ़लिसी में कोई गीरे न ऑसू तुम रूमाल रखना यारो विश्व हमारे चरण छूए यूगो यूगो तक हाथो मे ऐसा तुम चराग रखना यारो स्नेह हो अपनत्व हो जीवन तत्व हो सब के प्रती हृदय दयाल रखना यारो गम की आग मे जल न पाए कोई भी अपनी राहो मे ऐसी चाल रखना यारो कत्ल न हो पाएं अपनी नज़र से यारो ऑखो मे ऐसी जलाल रखना यारो सर्वेभवन्तूसूखीन की भावना लिये हो सदा साथ ऐसी मिशाल रखना यारो आज मिलकर इक संकल्प ले 'मोहन' संकोच का,तुम न सवाल रखना यारो परिचय :- मन...
नव्य वर्ष
दोहा

नव्य वर्ष

विजय गुप्ता "मुन्ना" दुर्ग (छत्तीसगढ़) ******************** ग्यारह महिने दौड़ती, सबकी अपनी रेल। नवल माह पूरा करे, अंतिम वाला खेल।। सुंदर शोभा पलक पर, रखना सदा जरूर। बूंद पत्ते अवसान से, निज स्थल होते दूर।। सबक पड़ोसी माह से, मिल जाता हर बार। दिसंबर को पछाड़ता, नवल साल संसार।। दुर्गम पथ नदिया चले, अनुपम दे उपहार। वक्त घड़ी चलती सरल, अनुभव मिले अपार।। खो देने का भय रहे, याद बिदा का मोल। बूढ़ा वक्त दरक रहा, नूतन परतें खोल।। चूके समय बहाव में, परिणिति भी अनजान। अहम आहुति बता रहा, भूल गए अनुमान।। खुशियाँ पल संयोग से, जब भी खोले द्वार। भुलवाए संताप का, भारी भरकम भार।। स्नेहयुक्त संसार में, पल पल जीवन खास। चाहत रंगत ही सदा, हरदम रखना पास।। संकट मोड़ खड़ा मिले, अनर्थ भी तैयार। पकड़ नहीं तकदीर पे, कहता दिल आगार।। आवागमन युक्ति चले, नूतन समझो ...
वैदिक ज्ञान भरें अंतस में
कविता

वैदिक ज्ञान भरें अंतस में

अंजनी कुमार चतुर्वेदी निवाड़ी (मध्य प्रदेश) ******************** सारे जग में सर्वश्रेष्ठ हैं, वैदिक परंपरायें। हम ऋषि-मुनियों की संताने, मिलकर सब अपनायें। वैदिक धर्म सकल दुनिया में, परम पुरातन भाई। पावनता लख इसकी महिमा, वेदों ने भी गाई। भारत,आर्यावर्त इसी का, वैदिक नाम पुराना। वैदिक धर्म, सनातन को भी, सारे जग ने माना। कालखंड,भारतीय संस्कृति का, ही वैदिक कहलाता। वैदिक ज्ञान,सभ्यता वैदिक, सकल जगत अपनाता। भारतीय वैदिक संस्कृति को, दुनिया ने अपनाया। इसे मानने वालों ने ही, सुख मय जीवन पाया। वैदिक रीति-रिवाज, हमारे, सकल जगत ने जाने। है नैतिक दायित्व हमारा, हम भी इनको माने। वैदिक ज्ञान सदा जीवन को, उन्नति पथ ले जाता। जिसमें वैदिक ज्ञान भरा वो, मान जगत में पाता। वैदिक परंपरायें हमको, उत्तम राह दिखातीं। स्वाभिमान से जियें जिंदगी, सबको यही सिखातीं। ...
नये साल के नये हिसाब
कविता

नये साल के नये हिसाब

प्रीति शर्मा "असीम" सोलन हिमाचल प्रदेश ******************** आओ... नए साल पर कुछ हिसाब-किताब कर ले। जिंदगी ने लम्हा-लम्हा कितना घटाव दिया। उस सब का जोड़ कर ले। जो दर्द कई गुना बढ़ते ही गए। आओ... चंद उम्मीदों से उन्हें भाग कर ले।। आओ नए साल पर कुछ हिसा -किताब कर ले। जिंदगी बड़ी तेजी से निकल जाती है। जबकि लगता है यह गुजराती ही नहीं है। इसी बात पर फिर से वहीं बात कर ले। घूम-घाम कर, फिर से उसी घेरे में घूमती है जिंदगी। हम खड़े किसी त्रिकोण में जिंदगी को, फिर से नई उम्मीद से वर्गाकार कर ले। आओ नए साल पर कुछ हिसाब-किताब कर ले। जो लोग....कहते है। यह करेंगे... वह करेंगे रेजोल्यूशन तो एक भुलावा है। जबकि हम भी जानते हैं। पिछले बीते हुए तमाम सालों में कौन-सा खंबा उखाड़ डाला है। आओ फिर भी ...फिर से एक नई उम्मीद कर ले। आओ नए साल पर कुछ हिसाब-किताब कर ले। ...
अयोध्या नगरी
कविता

अयोध्या नगरी

गोपाल मोहन मिश्र लहेरियासराय, दरभंगा (बिहार) ******************** २२ जनवरी २०२४ सिर्फ एक तारीख नहीं है पन्नों पर इतिहास लिखा एक जायेगा भारत भूमि की संस्कृति पर अयोध्या नगरी को सजाया जाएगाI हिन्दू हो तो गर्व करो तुम अपने हिन्दू होने पर लहरा दो भगवा जाकर तुम भारत के कोने-कोने पर लिख दो एक गाथा ऐसी तुम कि, देश गौरवशाली कहलायेगा भारत भूमि की संस्कृति पर अयोध्या नगरी को सजाया जाएगाI कितने लालों ने जान गवाई सीने पर गोली खाकर के चढ़ गए कोठारी बंधू जो बाबरी के गुम्बद पर जाकर के जो हँसकर जान गवां बैठे, न दूजा गवां कोई पायेगा भारत भूमि की संस्कृति पर अयोध्या नगरी को सजाया जाएगा। पाँच सौ वर्षों तक प्रभु श्रीराम ने कितने कष्ट सहे सूर्यवंशी मर्यादा पुरूषोत्तम एक टेंट के अंदर बैठे रहे स्वर्ण सिंहासन पर प्रभु श्रीराम को अब बैठाया जायेगा भारत भूमि की संस्कृति पर अयोध्या ...
लक्ष्य की ओर
कविता

लक्ष्य की ओर

अशोक कुमार यादव मुंगेली (छत्तीसगढ़) ******************** चलो नया साल में कुछ नया करेंगे। हार को फिर भव्य जीत में बदलेंगे।। अतीत की बीती बातें याद आयेंगी। कभी रुलायेंगी तो कभी हँसायेंगी।। क्या खोया है और क्या पाया हमने? खुद उन्नति की गणित लगाया हमने।। समय लाता परिवर्तन और स्थिरता। मानव मानसिक शक्ति में गंभीरता।। सब कुछ भूल कर नव शुरुआत होगी। एक बार फिर संघर्ष से मुलाकात होगी।। प्रयासों का बीज धरती पर बोते चलेंगे। तभी हमको कर्म का मीठा फल मिलेंगे।। उम्मीद की कलम से तकदीर लिखेंगे। जीवन की पुस्तिका में सात रंग भरेंगे।। बढ़ेंगे आगे सभी भर कर मन में जुनून। लक्ष्य को पाकर हमको मिलेगा सुकून।। परिचय : अशोक कुमार यादव निवासी : मुंगेली, (छत्तीसगढ़) संप्राप्ति : शिक्षक एल. बी., जिलाध्यक्ष राष्ट्रीय कवि संगम इकाई। प्रकाशित पुस्तक : युगानुयुग सम्मान : मुख्यमंत्री शिक...
पुरानी पेंशन
कविता

पुरानी पेंशन

सीमा रंगा "इन्द्रा" जींद (हरियाणा) ******************** रोक ली क्यों पुरानी पेंशन, अब तो कर दो लागू। आस लगाए बैठे कब से, बन बैठे क्या साधू। यहां जवानी अपनी खो दी, कैसे कटे बुढ़ापा। नहीं सुनी जो बातें हमारी, हम खो देंगे आपा।। हक हमारा देते नहीं है, वंचित करते हमको । सता के हम सबको यूं, मिलता क्या है तुमको। मात- पिता से रहते हरदम, दूर बहुत सपनों से। घर बार दिया है छोड़ हमने, दूर रहें अपनों से।। शपथ सभी ने मिलकर ली थी, नाम देश हो कतरा। आंधी आए तूफान आए, नहीं हमें है खतरा दो -दो पेंशन है नेता की, हमें एक न मिलती। कब तक रहेगा दोगलापन, घर पर खुशी ने खिलती।। करो बहाल पुरानी पेंशन, खुशी दिला दो हमको। दुख से मिल जाएं छुटकारा, अपना कहेंगे तुमको । जीवन को खुशहाल बना दो, करते हो क्यों देरी। सब कुछ है हाथ में तुम्हारे, बात सुनो जी मेरी।। परिचय :-  ...
तेरा मेरा इतना नाता
कविता

तेरा मेरा इतना नाता

शिवदत्त डोंगरे पुनासा जिला खंडवा (मध्य प्रदेश) ******************* मैं परिपक्व एक बुढ़ापा तू मुस्काता बचपन सा मैं ढलती एक रात हूँ तू उगता सूरज प्यारा मैं प्यासी बंजर धरती तू बरसता सावन सा आया तेरा मेरा इतना नाता मैं माटी का दीपक तू उजली बाती सा मैं कलकल बहती नदिया सी तुझमे जोर समुंदर का सारा तेरा मेरा इतना नाता मैं एक सूखा फूल हूँ तू नन्हा कोपल का जाया मैं हूँ कड़वी नीम निम्बोली तू मीठा शहद सा भाया तेरा मेरा इतना नाता मैं पल पल बीता लम्हा हूँ तू नए साल सा इठलाता मैं हूँ एक खत्म कहानी तू ख्वाब सा सबको भाता तेरा मेरा इतना नाता परिचय :- शिवदत्त डोंगरे (भूतपूर्व सैनिक) पिता : देवदत डोंगरे जन्म : २० फरवरी निवासी : पुनासा जिला खंडवा (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : प्रमाणित किया जाता है कि रचना पूर्णतः मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं...
नववर्ष के दोहे
दोहा

नववर्ष के दोहे

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** नया हौसला धारकर, कर लें नया धमाल। अभिनंदित करना हमें, सचमुच में नव काल।। नवल चेतना संग ले, करें अग्र प्रस्थान। होगा आने वाला वर्ष तब, सचमुच में आसान।। वंदन करने आ रहा, एक नया दिनमान। कर्म नया,संकल्प नव, गढ़ लें नया विधान।। बीती बातें भूलकर, आगे बढ़ लें मीत। तभी हमारी ज़िन्दगी, पाएगी नव जीत।। कटुताएँ सब भूलकर, गायें मधुरिम गीत। तब सब कुछ मंगलमयी, होगा सुखद प्रतीत।। देती हमको अब हवा, एक नया पैग़ाम। पाना हमको आज तो, कुछ चोखे आयाम।। कितना उजला हो गया, देखो तो दिन आज। है मौसम भी तो नया, बजता है नव साज़।। पायें मंज़िल आज तो, कर हर दूर विषाद। नहीं करें हम वक़्त से, बिरथा में फरियाद।। साहस से हम लें खिला, काँटों में भी फूल। दुख पहले सुख बाद में, यही सत्य का मूल।। अभिनंदित हो वर्ष नव, बिखरायें ...
प्रीतम पावस बन कर आए
गीत

प्रीतम पावस बन कर आए

मीना भट्ट "सिद्धार्थ" जबलपुर (मध्य प्रदेश) ******************** प्रीतम पावस बन कर आए, बरसे मन की अँगनाई में। खनक उठे कँगना भी मेरे, बीते दिन की तरुणाई में।। नव किसलय आये बागों में मधुकर उपवन-उपवन डोले मधु से भरी हुई कलियों का, हौले-हौले घूँघट खोले।। जीवन में माधव आया है, खोया मन अब शहनाई में प्रीतम पावस बनकर आए, बरसे मन की अँगनाई में।। साँस-साँस पर नाम लिखा है, सपनों की नित गूथूँ माला। तुम मेरे कान्हा मैं राधा, जादू कैसा प्रियतम डाला।। गीत प्रणय के गातीं झूमूँ, मैं कोयल सी अमराई में। प्रियतम पावस बनकर आए, बरसे मन की अँगनाई में।। प्रेमपाश में बँधी पिया मैं, नशा प्रीति का जैसे छाया। गाल लाल पिय हुए छुअन से, निखरी कंचन सी है काया।। तुम्हें खोजनी उतरी चितवन, दृग -झीलों की गहराई में। प्रीतम पावस बनकर आए, बरसे मन की अँगनाई में।। पर...
आज चिट्ठी आई है
कविता

आज चिट्ठी आई है

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ******************** प्रेम की पाती लेकर आता था डाकिया पुकारता जब नाम मेरा हिरणी सी चपलता लिए कर जाती थी चौखट को पार लगा लेती दिल से प्रेम की पाती । आज चिठ्ठी आई है चिट्ठी को छुपकर पढ़ती ढाई अक्षर प्रेम को जोड़ लेती ख्वाबो से रिश्ते होसला ,ज़माने से डर नहीं का भर लेती मन में । वो सामने आते तो होंठ थरथराने लगते मानों शब्द को कर्फ्यू लगा हो बस आँखे ही कर जाती थी प्रेम का इजहार । सुबह नींद खुली तो लगा जैसे एक ख्वाब देखा था प्रेम का अब डाकिया भी नहीं लाता प्रेम की चिट्ठी मैने भी चिट्ठी लिखी ही नहीं क्योंकि हो जाती है मोबाइल पर प्रेम की बातें । परिचय :- संजय वर्मा "दॄष्टि" पिता :- श्री शांतीलालजी वर्मा जन्म तिथि :- २ मई १९६२ (उज्जैन) शिक्षा :- आय टी आय व्यवसाय :- ड़ी एम (जल संसाधन विभाग) प्रकाशन :- देश-विदेश की विभिन्न पत...