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पद्य

होती नहीं इज्जत
ग़ज़ल

होती नहीं इज्जत

********** शाहरुख मोईन अररिया बिहार होती नहीं इज्जत जिनसे मां-बाप की, खुद की औलाद से तो उम्मीदें वफ़ा न रख। जन्नत तो खो दी तूने मां को रुला के, रूठ गए जो जमी के ख़ुदा, तो ख़ुदा से वास्ता न रख। मुमकिन नहीं कीमत उनके आंसू की अदा हो, जर्रा है तू दुनियां में कोई रुतबा न रख। माना तु अमीरे शहर है कुछ नहीं मगर है, गैरत मर गई तेरी, दिखावे का कोई ओहदा न रख। मुफलिसी में भी खुश हुं अपने मां बाप के साथ, जो लोग हैं बेकद्र, ऐसे लोगों से तू वास्ता न रख। जमी पे क्यों न हो सैलाब, कहकशाली का आलम अब, सरेआम कर दे जलील बेकद्रो को, जरा भी हया न रख। दुनियां में मयस्सर है, मुझको तमाम खुशियां मगर, शाहरुख़ बैठ के मस्ज़िदों में झूठा सज्जदा न रख। . लेखिक परिचय :- नाम - शाहरुख मोईन अररिया बिहार आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित कर...
जंगल
कविता

जंगल

********** रीतु देवी "प्रज्ञा" (दरभंगा बिहार) माँ भवानी आकर अस्मत बचाओ मेरी, दुनिया के जंगल है हैवानियतों से भरी। थरथर कांपे तन हमेशा, नींद उड़ी नयनों से हर राह लगता विरान सा जिया न लागे तेरी इस लोक में माँ रूद्राण गले लगा लो सुता की फुहार बरसा दो अपने ममता की जीवन की नैया पतवार है तेरे हाथों, रक्षा करों माँ दानवों माथों। माँ जगदम्बा कर जोरि करती हूँ पुकार, दिव्य ज्योत फैला जंगल बीच करो हुंकार। माँ भवानी आकर अस्मत बचाओ मेरी, दुनिया के जंगल है हैवानियत से भरी।   लेखीका परिचय :-  रीतु देवी (शिक्षिका) मध्य विद्यालय करजापट्टी, केवटी दरभंगा, बिहार आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hin...
रिश्तों की मृत्यु
कविता

रिश्तों की मृत्यु

********* विवेक सावरीकर मृदुल (कानपुर) रिश्तों की मृत्यु अचानक नहीं होती वो तिल तिल कर होती रहती है मगर हमें इसका पता हमेशा देर से चलता है सुदूर जा पहुंचे दोस्त मिलते हैं कभी फेसबुक पर सुख,दुख,पैसा-लत्ता, नौकरी-बिजनैस, बच्चे-बहू और यहां तक कि माँ-बाप भी आते जाते हैं बातों में रस बढ़ाते, प्यार जताते, नाज उठाते कितने ही क्षण और फिर पसरने लगती है ऊब भरी सांझ अपनेपन का अनमना होना देखते हैं हम पर समझ नहीं पाते कि  मुरझा चुकी है रिश्ते की बेल कभी कहीं फिर टकराने पर "तुम तो आते ही नहीं... भूल गये क्या ऐं ऐं" कहकर रिश्ते के मृतसम शरीर पर फूंका करते हैं थोड़ी-मोड़ी प्राणवायु और समय निकाल लेते हैं मन को तक नहीं जानने देते कि रिश्ता मर चुका है बहुत पहले ही यह तो केवल उसकी याद की देह है . लेखक परिचय :-  विवेक सावरीकर मृदुल जन्म :१९६५ (कानपुर) शिक्षा : एम.कॉम, एम.सी.जे.रूसी भाषा में एडवा...
धरोहर
कविता

धरोहर

********** कंचन प्रभा दरभंगा, बिहार किसी के लिए घर धरोहर किसी के लिए जेवर मेरे लिये मेरे पूजनीय माँ पिता और गुरु धरोहर किसी के लिए व्यवसाय धरोहर किसी के लिए गाड़ी मोटर मेरे लिए तो पिता के द्वारा दिये हुए संस्कार धरोहर देश के लिए महल धरोहर कोई गुम्बद या ताजमहल मेरे लिए तो मेरी माँ के दिये थोड़े से लाड़ धरोहर किसी के लिए खेत धरोहर किसी के लिए भौतिक वस्तु मेरे लिए तो अनमोल है मेरे गुरु का ज्ञान धरोहर . लेखिका का परिचय :- कंचन प्रभा निवासी - लहेरियासराय, दरभंगा, बिहार आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.com पर अणु डाक (मेल) कीजिये, अणु डाक करने के बाद हमे...
नाम जब भा गया
ग़ज़ल

नाम जब भा गया

********** नवीन माथुर पंचोली अमझेरा धार म.प्र.   नाम जब भा गया दोस्ती का। मिल गया रास्ता बन्दगी का। सामने आप आकर जो बैठे, आ गया तब मज़ा मयकशी का। खिड़कियाँ जब हवाओं ने खोली, तब पता पा लिया रोशनी का। कश्तियों के सफ़र की तरह फिर, चल पड़ा सिलसिला जिंदगी का। है हमारी रवायत नहीं ये, क़ायदा है यही हर किसी का। लेखक परिचय :- नाम ...नवीन माथुर पंचोली निवास.. अमझेरा धार म.प्र. सम्प्रति... शिक्षक प्रकाशन... देश की विभिन्न पत्रिकाओं में गजलों का नियमित प्रकाशन, तीन ग़ज़ल सन्ग्रह प्रकाशित। सम्मान... साहित्य गुंजन, शब्द प्रवाह। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.comपर अणु डाक...
हमें तो हमारा हिन्दुस्तान ही अच्छा है
कविता

हमें तो हमारा हिन्दुस्तान ही अच्छा है

*********** जीतेन्द्र कानपुरी हमें तो हमारा हिन्दुस्तान ही अच्छा है यहॉ सब साथ देने वाले है सभी का स्वभाव सच्चा है। हमारी गली हमारा घर हमारा मोहल्ला भी अच्छा है।। इसलिये हम नहीं जाते खुद की जमीं छोड़कर कहीं। जाओ जिसे जाना हो जहॉ हमें तो हमारा हिन्दुस्तान ही अच्छा है।। लेखक परिचय :- राष्ट्रीय कवि जीतेन्द्र कानपुरी का जन्म ३०-०९-१९८७ मे हुआ। बचपन से कवि बनने का कोई सपना नही था मगर अचानक जब ये सन् २००३ कक्षा ११ मे थे इनको अर्धरात्रि मे एक कविता ने जगाया और जबर्जस्ती मन मे प्रवेश होकर सरस्वती मॉ ने एक कविता लिखवाई। आर्थिक स्थित खराब होने की बजह से प्रथम कविता को छोड़कर बॉकी की २०० कविताऐ परिस्थितियों पर ही लिखीं, इन्हे सबसे पहले इनकी प्रथम कविता को नौएडा प्रेस क्लब द्वारा २००६ मे सम्मानित किया गया।इसके बाद बिवॉर हीरानन्द इण्टर कॉलेज द्वारा हमीरपुर मे, कानपुर कवि सम्मेलन द्वारा, अरम...
यादों का सिलसिला
कविता

यादों का सिलसिला

********** मित्रा शर्मा महू - इंदौर यादों का सिलसिला ऐसा हो विशवास की लौ जलती रहे दर्द ऐसा हो कभी खत्म न हो जिंदा होने की अहसास बना रहे। जरा सब्र कर ए बुलन्दी वाले आसमान पे पैर रखने की जगह नही होती कायनात पे कोई ऐसा मुकम्मल मीले यह जरूरी नही होता। बेरुखी की आलम इस कदर हावी न हो तुम अपने को संभालते रहो, अपनी परछाई भी आखिर में साथ नही देती यह जान लो। . परिचय :- मित्रा शर्मा - महू (मूल निवासी नेपाल) आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.com पर अणु डाक (मेल) कीजिये, अणु डाक करने के बाद हमे हमारे नंबर ९८२७३ ६०३६० पर सूचित अवश्य करें … और अपनी कविताएं, लेख पढ़ें अपने ...
पुत्रो की परिभाषा
कविता

पुत्रो की परिभाषा

********** संजय जैन मुंबई पुत्र क्या होते है, में तुम समझता हूं। पुत्रो का इतिहास में, दुनियां को बतलाता हूँ।। पुत्र था श्रवणकुमार जो माता पिता को, सर्वत्र मान्यता था। पुत्र था औरंजेब, जिसने बाप को, जेल में डाला था। पुत्र एक ऐसा भी था। जो बाप के वचन की खातिर, खुद बनवास को जाता है। और आधा जीवन अपना, वन में स्वंय बिताता है।। पुत्र मोह क्या होता है, में बाप का बतलाता हूँ। अंधा होते हुए भी, खुद राजा बन जाता है। फिर पुत्र मोह में वो महाभारत करवाता है। और अपने कुल का विनाश, कुल वालो से ही करवाता है।। कलयुग के पुत्रों का भी, में किस्सा सबको सुनता हूँ। एक बाप चार पुत्रो को, आसानी से पालपोश कर काबिल इंसान बना देता है। पर चार पुत्र होकर भी, बाप को नही संभाल पाते है। पर फिर भी वो पुत्र कहलाते है। अपनी आजादी की खातिर, बृद्धाश्रम में छोड़ आते है। और बड़ी शान से पुत्र होने का दावा करते है। और अ...
मुझे इतनी दूर
कविता

मुझे इतनी दूर

********** शिवम यादव ''आशा'' (कानपुर) चले जाओ तुम छोड़कर      मुझे इतनी दूर तुम्हें छूने वाली हवा भी          न लगे मुझे मैं रह लूँगी,मैं सह लूँगी ये बद्तर तन्हाई के दिन   तू छोड़ दे बीच राह में       मुझे इतनी दूर मुझे होने लगे तुमसे नफ़रत      ऐसा वाकया कुछ मेरे साथ कर जाओ तुम   मैं रह नहीं सकती बिन तेरे ऐसा प्यार क्यों    जन्मा मेरे दिल में भूल जाऊँ मैं प्यार को इस प्यार से कर दो तुम   मुझे इतनी दूर . लेखक परिचय :-  नाम :- शिवम यादव रामप्रसाद सिहं ''आशा'' है इनका जन्म ७ जुलाई सन् १९९८ को उत्तर प्रदेश के कानपुर देहात ग्राम अन्तापुर में हुआ था पढ़ाई के शुरूआत से ही लेखन प्रिय है, आप कवि, लेखक, ग़ज़लकार व गीतकार हैं, अपनी लेखनी में दमखम रखता हूँ !! अपनी व माँ सरस्वती को नमन करता हूँ !! काव्य संग्रह :- ''राहों हवाओं में मन" आप भी अपनी कविताए...
भ्रूण हत्या रोकें
कविता

भ्रूण हत्या रोकें

********** संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) होता था बिटियाँ से घर आँगन उजियारा मौत पंख लगा के आई कर गई सब जग अंधियारा मन ही मन बातें करते मन ढाँढस बंधाता ढूंढे कहाँ यादें उसकी कोई नही याद दिलाता लोग लिंग अनुपात बिगाड़ने मे लगे लड़की ढूंढने में वो दुनिया के चक्कर लगाने लगे क्रूर इंसान भ्रूण हत्या करने जब लगा रोकने हेतु कानून भी अब कुछ सोचने लगा बेटियों के न होने की बातें क्यों नही समझ पाते इसलिए तो भाइयो को हम हर घर में उदास पाते हक बेटी का भी होता क्यों करते भ्रूण हत्याए रोकेंगे मिलकर जब इसे तभी रोशन होगी रिश्तों की बगियाएं . परिचय :- नाम :- संजय वर्मा "दॄष्टि" पिता :- श्री शांतीलालजी वर्मा जन्म तिथि :- २ - मई -१९६२ (उज्जैन ) शिक्षा :- आय टी आय व्यवसाय :- ड़ी एम (जल संसाधन विभाग ) प्रकाशन :- देश - विदेश की विभिन्न पत्र - पत्रिकाओं में रचनाएँ व समाचार पत्रों में निरंतर पत्र और रचना...
हे पिता तुमको नमन
कविता

हे पिता तुमको नमन

********** विनोद सिंह गुर्जर महू (इंदौर) इस धरा पर मेरा अस्तित्व ही, बड़ा सबसे प्रमाण। हे पिता तुमको नमन, सादर नमन, सादर नमन।। नेह श्रृण कैसे उतारूं, असमय किया तुमने प्रयाण । हे पिता तुमको नमन, सादर नमन, सादर नमन।। उंगली पकड़ कांधे बिठाना और गोदी में लिटाना। स्लेट खड़िया द्वारा अक्षर कुछ बताना फिर मिटाना।। इस धरा के सारे सुख वैभव तुम्हारे बिन अधूरे। हे सृजक तुम ही नहीं जब, क्या सृजन के स्वप्न पूरे।। मुझसे असीमित लालसायें और इच्छाएं नमन। सादर नमन सादर नमन ... हे पिता तुमको नमन, सादर नमन... सादर नमन...।। . परिचय :-   विनोद सिंह गुर्जर आर्मी महू में सेवारत होकर साहित्य सेवा में भी क्रिया शील हैं। आप अभा साहित्य परिषद मालवा प्रांत कार्यकारिणी सदस्य हैं एवं पत्र-पत्रिकाओं के अलावा इंदौर आकाशवाणी केन्द्र से कई बार प्रसारण, कवि सम्मेलन में भी सहभागिता रही है। आप भी अपनी कव...
तू जब शहर में होता है
कविता

तू जब शहर में होता है

********* दीपक्रांति पांडेय (रीवा मध्य प्रदेश) तू जब शहर में होता है, यह शहर भी अच्छा लगता है। झूठे तेरे वादे झूठे, फिर भी तू सच्चा लगता है। करूंँ ठिठोली संग तेरे मैं, यह मन बच्चा लगता है। तू जब शहर में होता है, यह शहर भी अच्छा लगता है जब दूर तू मुझसे होता है, यह मन बच्चों सा रोता है। तू जब शहर में होता है, यह शहर भी अच्छा लगता है। ख्वाब- ख्वाब सा बचा नहीं, अब ख्वाब भी सच्चा लगता है। तू जब शहर में होता है, यह शहर भी अच्छा लगता है। धूप छाँव का कहर, चारों, प्रहर भी अच्छा लगता है। तू जब शहर में होता है, यह शहर भी अच्छा लगता है। साथ रहे हम, जिस पल, दोनों, वह पल अपना लगता है। दूर हुए जिस पल हम तुमसे वो पल इक सपना लगता है। दूरियों का यह कहर, चारों प्रहर भी अच्छा लगता है। तू जब शहर होता है, यह शहर भी अच्छा लगता है। तुम संग बीता हर पल, एक लंबा सफर सा लगता है। तू नटखट हर पल मुझको, एक...
जिंदगी बख्शी जिसने
कविता

जिंदगी बख्शी जिसने

********** माया मालवेन्द्र बदेका उज्जैन (म.प्र.) जिंदगी बख्शी जिसने, उसका एहसान अता कर। रब देता है छप्पर फाड़, करता नहीं वो जता कर। नसीब तो जो लिखे उसने सबके कर्मो की मानिंद। सजा दे या रिहाई उसका फैसला, तू बात पता कर । मयस्सर न होती किसी को कभी आसमां सी बुलंदी। गम दिये होंगे किसी को तूने, अब न ऐसी खता कर। जन्नत से जहन्नुम तक का सफर बड़ा ही पेचिदा है। दिलजमई की गुंजाइश ही नहीं किसी को सता कर। बड़ी बेरूखी बे-अदबी से रुसवा कर देते हैं दर से। बेहिसाब बनाये है इंसान, रब ने अलग सी कता कर। पाने के लिये सितारों से आगे और भी बहुत है माया। छोड़ दे सारे गुमान लालच, बस साथ अपनी मता कर। लेखिका परिचय :- नाम - माया मालवेन्द्र बदेका पिता - डाॅ श्री लक्षमीनारायण जी पान्डेय माता - श्रीमती चंद्रावली पान्डेय पति - मालवेन्द्र बदेका जन्म - ५ सितम्बर १९५८ (जन्माष्टमी) इंदौर मध्यप्रदेश शिक्षा - एम•...
जीवन-पथ
कविता

जीवन-पथ

*********** भारती कुमारी (बिहार) अनजान पथ की राही हूँ। चलती हूँ, गिरती हूँ, व्यथित-मन, व्याकुल-हृदय, सत्य दर्शन पाने को। ध्यान लगाएं, प्रतिपल जगजीवन में, मधुर मुक्ति बंधन की। उमड़-उमड़ कर उठती, नवजीवन की मृदुल स्वर। इच्छा आत्म-सम्मान की, रह-रह कर हृदय प्रतिपल, खुल-खुल कर जीती। पीती मधुरस क्षण-क्षण।। हो रही मधुमय जगजीवन, करुण-कोर अब स्वर्ण-किरण की, सपनों में हर पल खो रही। बस जीवन को मधु-सा जीती।। अनजान हूँ, फिर भी पहचान, सुप्रभात की निर्माण से होती। . लेखक परिचय :-  भारती कुमारी निवासी - मोतिहारी , बिहार आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gm...
ढाई आखर
कविता

ढाई आखर

********** आशीष तिवारी "निर्मल" रीवा मध्यप्रदेश समझ ना पाया खुद को दर्द सभी मैं सहता हूँ, तुमने चकनाचूर किया अब भी तुम पे मरता हूँ। आराध्य समझ बैठा तुमको उम्र तुम्हारे नाम किया तुमको चाहा तुमको सोचा ना कोई दूजा काम किया। ढाई आखर के पंडित ने कितना नाच नचाया है सूखे मन के मानसरोवर में बरखा ने प्यास बढ़ाया है। जुल्म सितम मुझपे करते फिर भी लगते प्यारे थे दुश्मन से भी बढ़के निकले तुम तो मीत हमारे थे। भूले भटके रह-रह कर के मैं इतना याद आऊंगा भर ना सकेगा कोई जिसे उस जगह छोड़ के जाऊंगा। लेखक परिचय :- कवि आशीष तिवारी निर्मल का जन्म मध्य प्रदेश के रीवा जिले के लालगांव कस्बे में सितंबर १९९० में हुआ। बचपन से ही ठहाके लगवा देने की सरल शैली व हिंदी और लोकभाषा बघेली पर लेखन करने की प्रबल इच्छाशक्ति ने आपको अल्प समय में ही कवि सम्मेलन मंच, आकाशवाणी, पत्र-पत्रिका व दूरदर्शन तक पहुँचा दीया। कई साहित्य...
ईमान में ख़यानत आएगी
ग़ज़ल

ईमान में ख़यानत आएगी

********** शाहरुख मोईन अररिया बिहार जुल्म बढेगा ईमान में ख़यानत आएगी, तभी तो दुनियां में क़यामत आएगी। जुवानों में कड़वाहट लहजो में सख्ती, बेईमानों में बहुत दिखावत आएगी। खुशियों के दीप बुझाने वाले पैदा होंगे, पढ़े-लिखे में भी ज़हालत आएगी। जो रब खफा होगा तो बदलेगी सूरत, ख़ामोश लहजों में भी बगावत आएगी। ज़ुल्म बढेगा ग़रीबों, बेजुबानों,पर इन्सानों के लहजे में अदावत आएगी। सरियत से बेहतर, है नहीं कानून कोई, रस्ते में मेरे हर रोज सियासत आएगी। कांटे भी चुभते है अकसर गुलाबों को, कातिल बना के बीच में अदालत आएगी। शाहरुख़ दागदार है गिरेबा अपना भी, शर्मसार होगी इंसानियत, ऐसी दिखावत आएगी। . लेखिक परिचय :- नाम - शाहरुख मोईन अररिया बिहार आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं,...
माज़रत चाहता हुँ
कविता

माज़रत चाहता हुँ

************ मुनीब मुज़फ्फ़रपुरी माज़रत चाहता हुँ मैं तुझसे अब तेरी कम इधर निगाहें हैं तुझ से वाबसता अब नही हुँ मैं मुख़्तलिफ़ तेरी मेरी राहें हैं वसल का ख़्वाब ख़्वाब ही रखिए क्या तबस्सुम है क्या अदाएँ हैं किस तरह पासबाँ सुकून मिले राह तकती अभी निगाहें हैं इसलिए कोई आ न जाए कहीं हम ने अक्सर दिए जलाएँ हैं क्या ताअस्सूर है यार लहजे में किस तजस्सुस में आप आएँ हैं लेखक परिचय :- नाम: मुनीब मुजफ्फरपुरी उर्दू अंग्रेजी और हिंदी के कवि मिथिला विश्वविद्यालय में अध्ययनरत, (भूगोल के छात्र)। निवासी :- मुजफ्फरपुर कविता में पुरस्कार :- १: राष्ट्रीय साहित्य सम्मान २: सलीम जाफ़री अवार्ड ३: महादेवी वर्मा सम्मान ४: ख़ुसरो सम्मान ५: बाबा नागार्जुना अवार्ड ६: मुनीर नियाज़ी अवार्ड आने वाली किताबें :- १: माँ और मौसी (उर्दू और हिंदी ग़ज़ल) २: रिदम की दुनिया (अंग्रेजी कविता) ३...
जिंदगी खुशी में जब बीते
कविता

जिंदगी खुशी में जब बीते

********** शाहरुख मोईन अररिया बिहार जिंदगी खुशी में जब बीते, कुछ भी मतलब नहीं बिताने में। लूट लो इल्म के खजाने तुम, इल्म से रोशनी है ज़माने में। वक्त की कद्र तुम नहीं करते, लगे रहते हो धन कमाने में। कितनी कीमती जिंदगी है, सोच लो तुम जरा बिताने में। रोज पीता नहीं हूं मैं यारों, जाम भर कर शराबखाने में। छोड़ना पड़ता है जहां सारा, यार उठा तो हो मनाने में। . लेखिक परिचय :- नाम - शाहरुख मोईन अररिया बिहार आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.com पर अणु डाक (मेल) कीजिये, अणु डाक करने के बाद हमे हमारे नंबर ९८२७३ ६०३६० पर सूचित अवश्य करें … और अपनी कविताएं...
अधूरे ख्वाहिश
कविता

अधूरे ख्वाहिश

********** माधुरी शुक्ला कोटा राह आसान नही है इस जिंदगी की, कब क्या हो जाये किसी को नही पता। इतनी मुकम्मल पुर सुकून होती जिंदगी, तो लोग इबादत ही छोड़ देते।। पसन्द का क्या मन का वहम ही तो है, कब किसे कर ले कुछ नही पता।। अधीरता ,बेकरारी किसके लिए, कुछ नही पता बस हो रही है।। अरमान ख्वाहिशे कुछ तो ऐसेहै अधूरे से, नही होते कभी यह, पूरे।। गर होता, इतना आसान, पूरा होना इनका, तो यू ही ना निकलती जिंदगी।। . लेखीका परिचय :-  नाम - माधुरी शुक्ला पति - योगेश शुक्ला शिक्षा - एम .एस .सी.( गणित) बी .एड. कार्य - शिक्षक निवास - कोटा (राजस्थान) आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें h...
भलो-बुरौ अब देखत को है
कविता

भलो-बुरौ अब देखत को है

********** प्रेम प्रकाश चौबे "प्रेम" विदिशा म.प्र. भलो-बुरौ अब देखत को है ? गलत काम खों रोकत को है ? जो कर रये, वो भरने पर है, ऐसी बातें घोकत को है । भोजन-पानी की बर्बादी, हो रई बा खों रोकत को है ? कास्तकार पे नजरें सब की, ऊन भेड़ पे छोड़त को है ? "प्रेम" सबे पइसा प्यारो है, जा दुनिया की सोचत को है ? घोकत=चिंतन करना कास्तकार-किसान . लेखक परिचय :-  नाम - प्रेम प्रकाश चौबे साहित्यिक उपनाम - "प्रेम" पिता का नाम - स्व. श्री बृज भूषण चौबे जन्म -  ४ अक्टूबर १९६४ जन्म स्थान - कुरवाई जिला विदिशा म.प्र. शिक्षा - एम.ए. (संस्कृत) बी.यु., भोपाल प्रकाशित पुस्तकें - १ - "पूछा बिटिया ने" आस्था प्रकाशन, भोपाल  २ - "ढाई आखर प्रेम के" रजनी  प्रकाशन, दिल्ली से अन्य प्रकाशन - अक्षर शिल्पी, झुनझुना, समग्र दृष्टि, बुंदेली बसन्त, अभिनव प्रयास, समाज कल्याण व मकरन्द आदि अनेक  प...
एक बरस बीत गयो
कविता

एक बरस बीत गयो

*********** जीतेन्द्र कानपुरी मौसम गरम गयो, सरद जीत गयो। एक बरस बीत गयो।। कथरिया धोउन लगी अम्मा पयॉर बापू लाये। साल निकारो, सूटर और जूता मोजा लाये।। मफलर की कही ती सो न ल्या पाये। बापू बाजार गये मफलर ही भूल्याये।। सो साफी बॉधयो कछु दिन काट्हों। जा दिन बाजार गयो ऊ दिन लै आ हों।। मौसम गरम गयो, सरद जीत गयो एक बरस बीत गयो।। लेखक परिचय :- राष्ट्रीय कवि जीतेन्द्र कानपुरी का जन्म ३०-०९-१९८७ मे हुआ। बचपन से कवि बनने का कोई सपना नही था मगर अचानक जब ये सन् २००३ कक्षा ११ मे थे इनको अर्धरात्रि मे एक कविता ने जगाया और जबर्जस्ती मन मे प्रवेश होकर सरस्वती मॉ ने एक कविता लिखवाई। आर्थिक स्थित खराब होने की बजह से प्रथम कविता को छोड़कर बॉकी की २०० कविताऐ परिस्थितियों पर ही लिखीं, इन्हे सबसे पहले इनकी प्रथम कविता को नौएडा प्रेस क्लब द्वारा २००६ मे सम्मानित किया गया।इसके बाद बिवॉर हीरानन्द इण्टर कॉलेज द...
मैं गया नहीं
कविता

मैं गया नहीं

********** शिवम यादव ''आशा'' (कानपुर) मैं गया नहीं वो बुलाते रहे मैं गया नहीं वो तड़पते रहे मैं गया नहीं वो तरसते रहे मैं गया नहीं वो लड़ते रहे मैं गया नहीं वो देखते रहे मैं गया नहीं वो रोते रहे मैं गया नहीं वो बिगड़ते रहे मैं गया नहीं वो गरज़ते रहे मैं गया नहीं वो बरसते रहे मैं गया नहीं भीगते रहे मैं गया वो सूखते रहे मैं नहीं वो लरज़ते रहे  मैं गया नहीं इसकी थी    सिर्फ़ वज़ह यही उनको कुछ पता नहीं हम समस्याओं से जूझते रहे . लेखक परिचय :-  नाम :- शिवम यादव रामप्रसाद सिहं ''आशा'' है इनका जन्म ७ जुलाई सन् १९९८ को उत्तर प्रदेश के कानपुर देहात ग्राम अन्तापुर में हुआ था पढ़ाई के शुरूआत से ही लेखन प्रिय है, आप कवि, लेखक, ग़ज़लकार व गीतकार हैं, अपनी लेखनी में दमखम रखता हूँ !! अपनी व माँ सरस्वती को नमन करता हूँ !! काव्य संग्रह :- ''राहों हवाओं में मन" आप ...
खुदा की रहमतो में हम
ग़ज़ल

खुदा की रहमतो में हम

*********** अंजुमन मंसूरी 'आरज़ू' छिंदवाड़ा म. प्र. गुज़ारें फिक्र करके किस लिए दिन वहशतों में हम। सदा महफूज़ रहते हैं ख़ुदा की रहमतों में हम॥ ज़हन में इल्म रोशन है जिगर में हौसला रोशन। ख़ुदा का है करम नाज़िल, नहीं है ज़ुल्मतों में हम॥ नहीं है फासले तुमसे न कोई दूरियां या रब ख़यालों में हो तुम ही तुम तुम्हारी कुर्बतों में हम॥ जहन्नुम ज़ीस्त कर सकती नहीं तल्ख़ी ज़माने की। तसव्वुर गर तुम्हारा हो तो हैं फ़िर जन्नतों में हम॥ यकीं ख़ुद पर भी तुम पर भी तो इक दिन देखना रहबर। करेंगे मंज़िलें हासिल तुम्हारी सोह्बतों में हम॥ न औरों की कमी देखें गिरेबां झांक लें अपना। तो सारी ज़िंदगी अपनी गुज़ारें राहतों में हम॥ ग़ज़ल नज़्में क़त'अ नग़में तुम्हारी ही नवाज़िश है। क़लम पर इस करम से ही तो हैं अब शोह्रतों में हम॥ . लेखिका परिचय :-  नाम - सुश्री अंजुमन मंसूरी आरज़ू माता - श्रीमती आयशा मंसूरी ...
घनश्याम नहीं आते
छंद

घनश्याम नहीं आते

*********** भूपधर द्विवेदी अलबेला रीवा (म.प्र.) काल का कुचक्र कण-कण में है व्याप्त आज। भीष्म, द्रोण पापियों की पीठ सहलाते हैं।। सुंदरी, सुरा के मोहजाल में उलझकर। मछली की आँख पार्थ भेद नहीं पाते हैं।। शकुनी की चाल देख मारते ठहाके भीम। सत्यवादी धर्मराज तालियाँ बजाते हैं।। द्रोपदी जलील नित्य हो रहीं सभा में किंतु। चीर को बढ़ाने घनश्याम नहीं आते हैं।। लेखक परिचय :- नाम - भूपधर द्विवेदी साहित्यिक उपनाम - अलबेला पिता - श्री रमाकांत द्विवेदी माता - श्रीमती श्यामकली द्विवेदी जन्मतिथि - बसंत पंचमी १९९२ शिक्षा - स्नातक (गणित), डीसीए, डी. एलएड. पेशा - शिक्षक पता - जमुई कला तहसील - त्योंथर जिला रीवा (म.प्र.) आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु...
थोड़ा पाप भी कर लेता हूँ…
कविता

थोड़ा पाप भी कर लेता हूँ…

*********** प्रद्युम्न नामदेव बड़ागाँव रीवा म.प्र इष्टो से मिलने मॆ खुशी बहुत होती हैं.. खोयी सी दुनियाँ मॆ प्रतिमा एक होती हैं.. पानी तो हर मौसम मॆ होता हैं नदियों और तालाबों मॆ... पर चातक को प्यास की चाह सदा होती हैं... स्वयं के वास्ते रोना कोई रोना नहीं होता... बहकने के लिये पीना कोई पीना नहीं होता... ज़माना कह रहा हमसे जिओ और जीने दो... खुद के लिये जीना कोई जीना नहीं होता... बादल सौ रूप बदले, पर बादल एक होता हैं... मानव काले गोरे हो, पर खून एक होता हैं... अपने अपने धर्म के चाहे बना लो भगवान... पर भगवान हर जगह एक होता हैं... मै साथ मॆ अलाप भी कर लेता हूँ... और मन्दिर मॆ जाप भी कर लेता हूँ... मानव से देवता न बन जाऊँ... इसलिए थोड़ा पाप भी कर लेता हूँ... लेखक परिचय :- प्रद्युम्न नामदेव पिता - श्री दरोगा लाल नामदेव शिक्षा - बीएससी तृतीय वर्ष न्यू साइन्स कॉलेज रीवा म.प्र. पता - ग्राम प...