किसी को ज़ख्म दूँ
प्रमोद त्यागी (शाफिर मुज़फ़्फ़री)
(मुजफ्फरनगर)
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किसी को ज़ख्म दूँ ऐसा हुनर आता नहीं मुझे
पहले की तरहा अब वो बुलाता नहीं मुझे
दिल खोलकर बातें तमाम करते थे रातभर
अब पुछता हूँ फिर भी बताता नहीं मुझे
इतना चढा हूँ बार बार दारो रसन पर
हादसा कोई भी रूलाता नहीं मुझे
आजमाया है बहुत भरी बरसात का मौसम
अश्कों के जैसा वो भी भिगाता नहीं मुझे
इल्ज़ाम से मैनें यूँ बरी सबको कर दिया
पीता हूँ ख़ुद ही कोई पिलाता नहीं मुझे
कडवा है सच बहुत मुझे होनें लगा यकीन
क्योंकि वो अपनें मुहँ अब लगता नहीं मुझे
मैं जाग जाता हूँ ख़ुद ही "शाफिर" सुबह लेकिन
माँ की तरहा अब कोई जगाता नहीं मुझे
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लेखक परिचय :- प्रमोद त्यागी (शाफिर मुज़फ़्फ़री)
ग्राम- सौंहजनी तगान
जिला- मुजफ्फरनगर
प्रदेश- उत्तरप्रदेश
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