राम
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सुभाष बालकृष्ण सप्रे
भोपाल म.प्र.
“कलियुग मेँ त्राता हैँ राम,
सबके विधाता भी हैँ, राम,
न पाओगे उन्हेँ मंदिर मेँ,
हृदय तल मेँ बसे हैँ राम,
जीवन की आपा धापी मेँ,
एक सुगंधित बयार हैँ,राम,
समझो, सभी, ये सत्य है, कि,
नर भूपाल नहीँ हैँ, राम,
पृथ्वी आकाश पाताल मेँ,
अनादी और अनंत हैँ राम,
पाप की गठरी, को भूलकर,
भवसागर पार कराते हैँ, राम
लेखक परिचय :-
नाम :- सुभाष बालकृष्ण सप्रे
शिक्षा :- एम॰कॉम, सी.ए.आई.आई.बी, पार्ट वन
प्रकाशित कृतियां :- लघु कथायें, कहानियां, मुक्तक, कविता, व्यंग लेख, आदि हिन्दी एवं, मराठी दोनों भाषा की पत्रीकाओं में, तथा, फेस बूक के अन्य हिन्दी ग्रूप्स में प्रकाशित, दोहे, मुक्तक लोक की, तन दोहा, मन मुक्तिका (दोहा-मुक्तक संकलन) में प्रकाशित, ३ गीत॰ मुक्तक लोक व्दारा, प्रकाशित पुस्तक गीत सिंदुरी हुये (गीत सँकलन) मेँ प्रकाशित हुये हैँ.
संप्रति :- भारतीय स्टेट बैं...