दिल आया मझधार में
जीत जांगिड़
सिवाणा (राजस्थान)
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कभी रुखसत जो हुई यादें,
हम हंसकर रो लिए,
तेरे ख्वाबों को बना कर मोती,
ख्यालों में पिरो लिए,
उन रोती हुई आंखों की धार में,
दिल आया मझधार में, तेरे प्यार में।
धूल उड़ी ही नहीं थी फिर भी,
घेर खड़ा हुआ तिमिर,
सांस हार ने को तैयार न फिर भी,
हारने लग गया शरीर,
जीती लड़ाई हारे हम करार में,
दिल आया मझधार में, तेरे प्यार में।
वो रोशन हुई रात अमावस की,
जब चांद से हटा घूंघट,
लब न बोले नज़रे भी झुक गई,
फिर बोला मुझसे लिपट,
मेरा तन रोशन है तेरी बहार से,
दिल आया मझधार में, तेरे प्यार में।
कम तेरा प्यार नहीं था न मेरा था,
शंकाओं की घटा ने घेरा था,
संग संग में सदा रहे हरपल शाम में,
संग में गुजरा हर सवेरा था,
संग छूटा इक गलती की मार से,
दिल आया मझधार में, तेरे प्यार में।
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लेखक परिचय :- जीत जांगिड़ सिवाणा
निवासी - सिवाना, जिला-बाड़मेर (राजस...