लूटा तो में हूँ
संजय जैन
मुंबई
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कभी अपनो ने लूटा
कभी गैरो ने लूटा।
पर में लुटता ही रहा।
इस सभ्य समाज में।।
किससे लगाये हम गुहार,
जो मेरा दर्द समझ सके।
मेरे जख्मो पर,
मलहम लगा सके।
और अपनी इंसानियत,
को दिखा सके।
और मुझे एक,
इंसान समझ सके।।
कभी दोस्ती के नाम पर,
तो कभी रिश्तेदारी के नाम पर।
लोगो मुझे बहुत कुछ दिया है।
जो में लौटा नही सकता।
क्योंकि में उन जैसा,
गिर नही सकता।
और अपने संस्कारो को,
भूल नही सकता।
इसलिए में उन जैसा,
कभी बन नही सकता।।
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लेखक परिचय :- बीना (मध्यप्रदेश) के निवासी संजय जैन वर्तमान में मुम्बई में कार्यरत हैं। करीब २५ वर्ष से बम्बई में पब्लिक लिमिटेड कंपनी में मैनेजर के पद पर कार्यरत श्री जैन शौक से लेखन में सक्रिय हैं और इनकी रचनाएं बहुत सारे अखबारों-पत्रिकाओं में प्रकाशित होते रहती हैं। ये अपनी लेखनी का जौहर कई मंचों पर भी दिखा चुके हैं। इ...