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पद्य

बेवजह तुम हमसे यूं …
कविता

बेवजह तुम हमसे यूं …

वीणा वैष्णव कांकरोली ******************** बेवजह तुम हमसे, यूं ना तकरार किया कीजिए। कसम से मर जाएंगे, एक बार मुस्कुरा दीजिए।। बेवजह दिल पर बोझ रख,ना तुम जिया कीजिए। हम आपके अपने हैं, मन की बात बता दिजिए।। गैर नजर बचा तुम, हमसे मिल लिया कीजिए । नजर लग जाएगी, थोड़ा पर्दा रखा कीजिए।। वजह ना हो तो, बेवजह मिल लिया कीजिए। करते हैं तुमसे प्यार, वजह ना ढूंढा कीजिए।। दिल ए दर्द गजल गा, बेवजह शर्मिंदा ना कीजिए। आ जाएंगे मिलने, बस एक इशारा कर दीजिए।। जीने की हमें, आप कोई एक वजह तो दीजिए। यूं ही सरेआम हमें, बदनाम ना किया कीजिए।। वजह की तलाश में, जिंदगी बर्बाद ना कीजिए। अपनों संग आ, हमें बस कबूल कर लीजिए।। बेवजह वजह मिले, आप जिंदगी रंगीन कीजिए। हासिल जहां की खुशियां, जिंदगी वजह दीजिए।। . परिचय : कांकरोली निवासी वीणा वैष्णव वर्तमान में राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय फरारा में अध्यापिका के पद पर...
चारों ओर है मस्ती छाई
कविता

चारों ओर है मस्ती छाई

भारत भूषण पाठक धौनी (झारखंड) ******************** चारों ओर है मस्ती छाई। आई देखो बाल दिवस आई।। बच्चों के मन को है भाता। हरओर उमंग है छाता।। सूर्यदेव भी हर्षित से नभमण्डल में दिख हैं रहे। बगिया में भी प्रसून असंख्य प्रफुल्लित से हो रहे।। यह पर्व बाल मन को है खूब अधिक भाता। हमसब को भी बालपन की याद है कराता।। वैसै तो सब बच्चे खुश हैं दिखते। पर कुछ बच्चे दिख जाते हैं रोते।। बेचारों के मम्मी पापा जो न होते । आओ इन बच्चों को भी गले लगाएँ। इनके मन को भी हर्षित कर जाएं।। सम्पूर्ण भू-मण्डल के बच्चों को बालदिवस की हार्दिक शुभकामनाएं इस चाचा, भैया, मामा, दादा, नाना, मित्र, अध्यापक की ओर से..... . लेखक परिचय :-  नाम - भारत भूषण पाठक लेखनी नाम - तुच्छ कवि 'भारत ' निवासी - ग्राम पो०-धौनी (शुम्भेश्वर नाथ) जिला दुमका(झारखंड) कार्यक्षेत्र - आई.एस.डी., सरैयाहाट में कार्यरत शिक्षक योग्यता -...
मैं पत्थर हूँ
कविता

मैं पत्थर हूँ

रशीद अहमद शेख 'रशीद' इंदौर म.प्र. ******************** सृजन-सेवाओं में संलग्न हूँ, वर्षों से भू पर हूँ! कोई आंके न कम, मानव-हितैषी हूँ मैं पत्धर हूँ! मैं कंकर हूँ, मैं पाहन हूँ, मैं ही चट्टान भूधर की! शिला हूँ, फर्श हूँ, स्तंभ हूँ, दीवार हूँ घर की! लगा हूँ द्वार पर, दहलीज़ पर, भवनों की चौखट पर! नदी के घाट पर, पुष्कर के तट पर, कूप-पनघट पर! कहीं हूँ नींव में तो मैं कहीं ऊँचे शिखर पर हूँ ! कोई आंके न कम, मानव-हितैषी हूँ मैं पत्थर हूँ! खिलौनों में ढलूं तो मोह लेता हूँ करोड़ों मन! रत्न के रूप में करता हूँ श्रृंगारित मनुज का तन! मेरी हर जाति के पाषाण का आकार है अद्भूत ! विविध गुणधर्म आधारित है जो विस्तार है अद्भुत! वन-उपवन, ग्राम-नगरी, महानगरों की डगर पर हूँ! कोई आंके न कम, मानव-हितैषी हूँ मैं पत्थर हूँ! टूट जाता हूँ जब-जब बिखर जाता है मेरा तन! शिल्पकारों के कर से निखर जाता है मेरा तन! मे...
बचपन
कविता

बचपन

वन्दना पुणतांबेकर (इंदौर) ******************** बचपन वहीं सुहाना था। बचपन तो बस। खुशियॉ का खजाना था। खिल-खिलाती खुशियॉ, हरपल। मौसम बड़ा सुहाना था। कहॉ चाहतो का अफसाना था। बचपन वही.......। साथी, दोस्त वही पुराने थे। बचपन के मीत सुहाने थे। कहॉ अपना-पराया भेद जाना था। कहॉ गमो का फ़साना था। बचपन वही.........। दादी के हाथों का लगता अचार सुहाना था। पास जाकर कहानी सुनने का बहाना था। दादा का मीठा स्वप्न सुहाना था। कहॉ चिंताओं का फ़साना था। बचपन वही..........। छुट्टियों का अलग ही ज़माना था। लड़ना-झगड़ना तकरारो का आना-जाना था। लेकिन मन का निर्मल तराना था। कहॉ राग-देश का फ़साना था। यह भेद अब हमने जाना कि बचपन बड़ा सुहाना था। . लेखिका परिचय :- नाम : वन्दना पुणतांबेकर जन्म तिथि : ५.९.१९७० लेखन विधा : लघुकथा, कहानियां, कविताएं, हायकू कविताएं, लेख, शिक्षा : एम .ए फैशन डिजाइनिंग, आई म्यूज सितार, प्रकाशित रचनाय...
अभी मैं बच्चा हूँ
कविता

अभी मैं बच्चा हूँ

रेशमा त्रिपाठी  प्रतापगढ़ उत्तर प्रदेश ******************** मैं बहुत अच्छा हूँ क्योंकि अभी सच्चा हूँ मुझें क ख ग घ नहीं आता क्योंकि मैं अभी बच्चा हूँ। एक से सौं तक की गिनती मुझको नहीं आती हैं। इंग्लिश की ए, बी, सी, डी मुझको बहुत पकाती है। सुबह– सुबह मम्मी कि डांट हर रोज उठते ही खाता हूँ पांच किलों का बैग उठा हर रोज स्कूल भी जाता हूँ । स्कूल पहूँच पीटी टीचर की हर रोज मार भी खाता हूँ। और क्लास टीचर की तो हर दिन धमकी पाता हूँ । फिर ट्यूशन टीचर से तो हर रोज लाल हो घर आता हूँ घर आते ही मम्मी का ज्ञान और पापा का लेक्चर सुनता हूँ। इतना पढ़कर, खाकर सोता हूँ कि हर दिन सब कुछ भूल जाता हूँ अरें भाई बताया तो मैं बच्चा हूँ इसलिए अभी अच्छा हूँ।। . परिचय :- नाम : रेशमा त्रिपाठी  निवासी : प्रतापगढ़ उत्तर प्रदेश आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोट...
घट गया पौरूख
कविता

घट गया पौरूख

शिवम यादव ''आशा'' (कानपुर) ******************** वो सफ़र था सुहाना जब शरीर में भरपूर चेतना थी हमारे घट गया है पौरुख ये शरीर हुआ अब तुम्हारे हवाले। डर लगता है बुढ़ापे से दबा दबा सा रहता हूँ कहीं बुढ़ापा बिगाड़ न दें ये नए खून के दीवाने। आजकल बुजुर्गों के हाल बद से बदतर हो जा रहे हैं दुतकारते हैं बेटे माँ-बाप को ऐसे परिणामों का डर पल रहा है दिल में हमारे। . लेखक परिचय :-  आपका नाम शिवम यादव रामप्रसाद सिहं ''आशा'' है इनका जन्म ७ जुलाई सन् १९९८ को उत्तर प्रदेश के कानपुर देहात ग्राम अन्तापुर में हुआ था पढ़ाई के शुरूआत से ही लेखन प्रिय है, आप कवि, लेखक, ग़ज़लकार व गीतकार हैं, अपनी लेखनी में दमखम रखता हूँ !! अपनी व माँ सरस्वती को नमन करता हूँ !! काव्य संग्रह :- ''राहों हवाओं में मन" आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच प...
पहली मुहब्बत
कविता

पहली मुहब्बत

रुचिता नीमा इंदौर म.प्र. ******************** वो गजब सी कशिश वो गजब सा एहसास, हा तुम ही तो थे वो तेरा मुस्कुराना जैसे कई कलियों का खिल जाना, कई भवरों का एक साथ गुनगुनाना, जैसे बादलों में इंद्रधनुष का निकल जाना, और सतरंगी सपनों का सच हो जाना, ख्वाब नही था मेरा, हकीकत थी तुम्हारा मिल जाना, जब में, में न रही, बस तुम ही तो थे और सब तुम ही थे और कुछ न था वो गजब सा एहसास वो साँसों की झनकार सब तुम ही थे बस तुम ही थे वो तेरा मिलना जैसे मिल गया कोई अनमोल खजाना वो तेरा होले से छू जाना या जैसे आ गई समंदर में नई तरंग वो पतझड़ में बहारों का आ जाना वो दिल मे खुशी का सैलाब बनकर हा वो तुम ही थे, मेरी जान वो तुम ही थे . लेखिका परिचय :-  रुचिता नीमा जन्म २ जुलाई १९८२ आप एक कुशल ग्रहणी हैं, कविता लेखन व सोशल वर्क में आपकी गहरी रूचि है आपने जूलॉजी में एम.एस.सी., मइक्रोबॉयोलॉजी में बी.एस.सी. व इग्नू ...
अंतर्निहित
कविता

अंतर्निहित

चेतना ठाकुर चंपारण (बिहार) ******************** हमें उनसे अंतर्निहित हुआ प्रेम था। आज उच्छ्वास है। आज भी उनके जाने की वेदना उद्गित स्वर में जैसी रोती चेतना। कहां तिरोहित हो गए ? जब बढी आस्न्ताए चले गए हो कहां? दक्षता थी उनके अंदर। वो है कहां किसी में वे थी वियुक्त इसीलिए लगे उपयुक्त। नीर बहाए कंद्रन आहत जैसी निर्झरिणी बहती अविरल उनकी सुधि हम कैसे भूल जाए ? आज भी आगम की देखती हूं राहे । इतना ही ज्ञान सही  । राहे आज भी देख रही ••••••• . लेखक परिचय :-  नाम - चेतना ठाकुर ग्राम - गंगापीपर जिला -पूर्वी चंपारण (बिहार) आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.comपर अणु ...
क्या कोई जानता है
कविता

क्या कोई जानता है

संजय जैन मुंबई ******************** जन्म से पहले और मृत्यु के बाद, क्या किसीको कोई जानता है? ये प्रश्न दुनियां बनाने वाले ने, हर किसी के मन में उलझाया है। और जीवो को उनकी शैली अनुसार, जीने का तरीका सिखलाया है। और इस भू-मंडल में सभी को, स्वंय की करनी के अनुसार उलझाया है।। जन्म से लेकर बोलने तक, मन ह्रदय पवित्र होता है। फिर मायावी लोगो का, खेल शुरू होता है। किसको क्या बुलवाना है, और ध्यान केंद्रित किस पर कराना है। जो कहा न सके सीधे सीधे, वो बात बच्चो से बुलबाते है। और अपना उल्लू सीधा करवाते है।। वाह री दुनियां और इसे बनाने वाले, क्या तूने दुनियां बनाई है। रिश्तों का अंबार लगाया, फिर अपास में लड़वाया। देख तमाशा इस दुनियां का, फिर कैसे रिश्तों को धूल चटवाया। सारी हदें पार करा दी, जब बेटा-बेटी को माँ बाप से, भाई बहिन को अपास में खूब लड़वाता है।। तभी तो कहते है जन्म से पहले, और मृत्यु...
चाय की दूकान पर
कविता

चाय की दूकान पर

ओम प्रकाश त्रिपाठी गोरखपुर ********************** सुबह उठा मंजन किया धोया मुह और हाथ, थोड़ी दूर घर से चला मिला मित्र का साथ। मिला मित्र का साथ, बात कुछ ऐसी छिड गई, टीम हमारी जा करके दूकान पहुंच गई।। पहले से दूकान पर बैठे थे कुछ लोग, चना जलेबी चाय की लगा रहे थे भोग। लगा रहे थे भोग भाव दिखलाते अपना, कहा गया रे छोटुआ ला गिलास दे अपना।। अंकल थोडा ठहरिए आता हूं मै पास बाल दिवस पर टीवी मे आ रहा है कुछ खास। आ रहा है कुछ खास बच्चे चहक रहे हैं कुछ है बैठे झूले पर कुछ सरक रहे हैं।। तभी जोर से मालिक ने चिल्ला कर बोला कहा है रे छोटुआ साला टीवी क्यों खोला? डरा, सहमा, कापता छोटुआ गिलास ले भागा। हाय धरा पर कैसा है कुछ बचपन आभागा।। सत्तर सालों से हम हैं यह दिवस मनाते। पर इस गंदी सोच को मिल क्यों नहीं मिटाते।। . लेखक परिचय :-  ओम प्रकाश त्रिपाठी आल इंडिया रेडियो गोरखपुर आप भी अपनी कविताएं, कहानियां...
छोटा मुंह बड़ी बात
कविता

छोटा मुंह बड़ी बात

नफे सिंह योगी मालड़ा सराय, महेंद्रगढ़(हरि) ******************** रातभर वह बादलों की गड़गड़ाहट के चलते सो नहीं पाया जैसे ...बकरे को कटने का पता चल गया हो आकाश में चमकती हुई बिजली उसके बदन पर जोर-जोर से कोड़े मार रही थी और वह हाथ जोड़कर मन ही मन बस एक ही वाक्य दोहरा रहा था कि... हे भगवान ! बख्श दे बिटिया की शादी है इसी साल अचानक ओलावृष्टि शुरू होती देख उसकी रूह कांपने लगती है जैसे ... राक्षस के भोजन के लिए आज उसी के बेटे की बारी हो ओलावृष्टि से बुरी तरह ध्वस्त फसल का नजारा आज... महाभारत के कुरुक्षेत्र से कम नहीं था वह खेत में घुटने टिकाकर एक शहीद की माँ की भाँति घायल फसल को सीने से लगा सिसकियाँ भर-भरकर रो रहा था कि... नजदीक खड़ा छोटा पोता उसके कंधे पर हाथ रख कर कंपकंपाते लब्जों में कहता है कि.... बाबा ! ...आप रोओ मत मैं साइकिल नहीं माँगूँगा . परिचय : नाम : नफे सिंह योगी मालड़ा माता : श्...
वो बेटी रूप में जन्म चाहती है..
कविता

वो बेटी रूप में जन्म चाहती है..

विनोद वर्मा "आज़ाद"  देपालपुर ********************** एक बहुत ही सुंदर लड़की पर एक लड़के के एकात्म प्यार ने मना करने पर तेजाब फैंक उसका चेहरा झुलसा दिया। वह उस शख्स से प्रश्न पर प्रश्न करती है..... ....!! ......?? एक बहुत सुंदर सी लड़की पर फेंक दिया तेजाब, सुन्दरता हो गई हवन जिंदगी हो गई बर्बाद। लड़की लिख रही है उस दुष्ट दरिंदे के लिए, क्या वो छोड़ सकता है परिजन इस परिंदे के लिए? व्यंग्य भी है, अतिप्रेम भी है, समर्पण भी है, त्याग-तपस्या भी है। प्रश्न भी है, चाहत भी है, शांति का संदेश भी है, प्यार का घिनौना रूप भी है। क्या वह शख्स उसे अपनाएगा, क्या उसका इंसान अब जाग जाएगा। पागलपन की हद और गुस्से के सैलाब में दब गई आत्मा, अंधे ज़ुनून की हद पार कर हो गया सुन्दरता का खात्मा अब वह चाह रही है दुष्ट से कि बना एक तालाब, मैं प्यार में डूबने को तैयार हूं भरदे उसमें तेजाब। अब वो कर रही प्रश्न प...
ख़यालों में
कविता

ख़यालों में

सिद्धि डोशी  प्रतापगढ़ ******************** ख़यालों में इमरोज (रोज़) है अलग सा ख़ुमार है निगाओ को तेरा इन्तज़ार है धड़कन में बसा तेरा नाम है बेसब्री सी साँसों को तेरा इन्तज़ार है कहा मेने तूसे जो एक बार है वही मेरे दिल का हाल हर बार है हाँ यही तो प्यार है !!!..... . .लेखक परिचय :- १९ वर्षीय सिद्धि डोशी बीबी.ए द्वितीय वर्ष की छात्रा हैं आप प्रतापगढ़ की निवासी होकर अभी इंदौर में अपनी पढ़ाई जारी रखे हुए हैं हिंदी अध्यन मैं आपकी गहन रुचि है अभी तक आपने ४० शायरियां व ५० कविताओं की रचना की है आपकी कविता पढ़ने-लिखने और हिंदी साहित्य में रुचि है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindira...
बाल दिवस
कविता

बाल दिवस

विनोद सिंह गुर्जर महू (इंदौर) ******************** चलो चलें बच्चे हो जायें। लुका-छिपी में फिर खो जायें।। अर्थ, व्यर्थ की उलझन से, दूर कहीं जाके सो जायें।।.. तू मेरे संग खेल सिथोली, मैं फिर तेरी चोटी खींचू। तू मेरी सब्जी ले भागे, मैं फिर तेरी रोटी खींचू।। तेरे आंचल में सिर रखके, थोड़ा हंस, थोड़ा रो जायें।।... चलो चलें बच्चे हो जायें। लुका-छिपी में फिर खो जायें।।... . परिचय :-   विनोद सिंह गुर्जर आर्मी महू में सेवारत होकर साहित्य सेवा में भी क्रिया शील हैं। आप अभा साहित्य परिषद मालवा प्रांत कार्यकारिणी सदस्य हैं एवं पत्र-पत्रिकाओं के अलावा इंदौर आकाशवाणी केन्द्र से कई बार प्रसारण, कवि सम्मेलन में भी सहभागिता रही है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, ल...
गाता रहता है मन
कविता

गाता रहता है मन

विवेक सावरीकर मृदुल (कानपुर) ****************** गाने का रियाज़ छूट जाने पर भी गाता रहता है मन थोड़ी अतिरिक्त मिठास सुरों में थोड़ी अतिरिक्त गमक और पूर्वाभ्यास की संचित चमक से लूटने को आतुर वाहवाही दौड़ता है जब तब मंच की ओर तन गाता रहता है मन।। लंबी आलापचारी में हांफता रहता है बार बार समय से पहले सम पर आ जाते सुरों के निढाल सवार पर तब भी गाने को है उत्सुक यमन, कल्याण, काफी, मल्हार उम्र के ढलान का अटूट जौबन गाता रहता है मन।। गाने का खुमार चढ़ रहा है गाना भीतर को बढ़ रहा है होठों से भर नहीं है गान अंग अंग लेने लगा है उड़ान शरीर को न रहे सुर होने का भान कंठ से न निकले अपेक्षित तान भीतर के सुर करते हैं गुंजन गाता रहता है मन।।   लेखक परिचय :-  विवेक सावरीकर मृदुल जन्म :१९६५ (कानपुर) शिक्षा : एम.कॉम, एम.सी.जे.रूसी भाषा में एडवांस डिप्लोमा हिंदी काव्यसंग्रह : सृजनपथ २०१४ में प्रकाशि...
वो बचपन की याद फिर आयी
कविता

वो बचपन की याद फिर आयी

रूपेश कुमार (चैनपुर बिहार) ******************** वो बचपन की य़ादे फिर याद आयी, ज़हाँ चिड़ियों की की चहचाहात रही चांदनी, खेतो मे खिलखिलाती रही रोशनी, भँवरो मे मुस्कुराहट भरी है, वो बचपन की य़ादे फिर याद आयी! सूर्य की किरणे चमकता ही रहता है, पेड़ो मे फल लदा ही रहता है, चिड़ियों मे गुज गुजता ही रहता है, मन मे सांस चलता ही रहता है, वो बचपन की य़ादे फिर याद आयी! नैनो मे मैना चहकता ही रहता है, मेहनत मे रंग आती ही रहती है, हर जगह हरियाली बढती ही रहती है, वो बचपन की य़ादे फिर याद आयी! ज़हाँ पूरा देश शांति ही शांति है , नेताओं के सर पे खादी की टोपी है, विद्यार्थी का जीवन रोशन होता है, वो बचपन की य़ादे फिर याद आयी! . लेखक परिचय :-  नाम - रूपेश कुमार छात्र एव युवा साहित्यकार शिक्षा - स्नाकोतर भौतिकी, इसाई धर्म (डीपलोमा), ए.डी.सी.ए (कम्युटर), बी.एड (महात्मा ज्योतिबा फुले रोहिलखंड यूनिवर्सिट...
विछोह की पीड़ा
कविता

विछोह की पीड़ा

सौरभ कुमार ठाकुर मुजफ्फरपुर, बिहार ************************ पता नही किस शहर में, किस गली तुम चली गई। मै ढूँढ़ता रह गया, तुम छोड़ गई। पता नही हम किस मोड़ पर फिर कभी मिल पाएँगे। इस अनूठी दुनिया में फिर किस तरह से संभल पाएँगे। पता नही तेरे बिन हम, जी पाएँगे या मर जाएँगे। हम बिछड़ गए उस दिन, जिस दिन तुम मुझसे मिलने वाली थी मै तुमसे मिलने वाला था। इस अंधी दुनिया ने कभी हमको समझा ही नही। काश समझ पाती दुनिया, तो हम कभी बिछड़ते ही नही। प्यार करते थे हम तुमसे, पर कभी कह ही न पाएँ। आज भी सोचता हूँ की, काश वो दिन वापस लौट आए। बहुत समय लगा दिया हमने इजहार में। कब तक भटकेंगे हम तेरे इन्तजार में। हम बिछड़ गए थे उस दिन, जिस दिन, तुम मुझसे मिलने वाली थी, मै तुमसे मिलने मिलने वाला था। . परिचय :- नाम- सौरभ कुमार ठाकुर पिता - राम विनोद ठाकुर माता - कामिनी देवी पता - रतनपुरा, जिला-मुजफ्फरपुर (बि...
दीप
कविता

दीप

शरद सिंह "शरद" लखनऊ ******************** रात्रि के गहन अंधकार में वह स्वयं को जलाता गया, अश्रु बहते रहे तन पिघलता गया, बांट कर रोशनी खुद जलता गया। दूर कहीं जब दिन ढल गया, रात अन्धेरा जब छाता गया, तब वह छोटा सा दीपक जला रात भर, राह सभी को दिखाता गया। समझा न जहाँ उसकी पीडा़ कभी , होकर विकल, रात भर वह रोता गया कहाँ समझी किसी ने अहमियत दीप की, सुबह होते ही उसको नकारा गया। यही तो है चलन यहाँ का सखे, वह तो औरो की खुशियों मे खोता गया। बस औरों की.....................।। . लेखक परिचय :- बरेली के साधारण परिवार मे जन्मी शरद सिंह के पिता पेशे से डाॅक्टर थे आपने व्यक्तिगत रूप से एम.ए.की डिग्री हासिल की आपकी बचपन से साहित्य मे रुचि रही व बाल्यावस्था में ही कलम चलने लगी थी। प्रतिष्ठा फिल्म्स एन्ड मीडिया ने "मेरी स्मृतियां" नामक आपकी एक पुस्तक प्रकाशित की है। आप वर्तमान में लखनऊ में निवास करती है। ...
आपको पा लूँ …
ग़ज़ल

आपको पा लूँ …

प्रमोद त्यागी (शाफिर मुज़फ़्फ़री) (मुजफ्फरनगर) ******************** आपको पा लूँ ना ये हसरत सजायेगें कभी वक्त है अब चल रहे हैं फिर ना आयेगें कभी सर्द है यह लौ भी अब तो हसरतें- दीदार की शम्मा तेरी आरज़ू की फिर जलायेगें कभी जख्म बस हासिल हुए जिस दौर में अब तक मुझे गुज़रे हुए उस दौर से तुमको मिलायेगें कभी बुझ गई हर सम्त अब तो शम्मा ए महफिल यहां बिखरे हुए जज्बात अपने फिर दिखायेगें कभी खुश्क लब हैं चश्मे पुरनम क्यों है दिल नाशाद सा पर्दा दर पर्दा हकीकत का हटायेगें कभी रोते-रोते आज फिर लो हो गई हसरत जवां बरबादियों के जश्न में खुद को लुटायेगें कभी गाफिल रहे गुलशन में "शाफिर" बेखुदी अंदाज़ में नाज़ुक गुलों से इस तरह भी जख्म खायेंगेंं कभी . लेखक परिचय :- प्रमोद त्यागी (शाफिर मुज़फ़्फ़री) ग्राम- सौंहजनी तगान जिला- मुजफ्फरनगर प्रदेश- उत्तरप्रदेश आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी ...
फूल तुम्हें भेजूंगी
कविता

फूल तुम्हें भेजूंगी

सुरेखा सुनील दत्त शर्मा बेगम बाग (मेरठ) ********************** हर सुबह खिलता हुआ, फूल तुम्हें भेजूंगी, अपने इश्क में डूबा हुआ, एहसास तुम्हें भेजूंगी, ये बताने को कि अब, रुकते नहीं अश्क, अश्कों की बूंदों से भीगा हुआ, फूल तुम्हें भेजूंगी, अपनी तन्हाई का एहसास, दिलाने के लिए, रोज एक महका हुआ, गुलाब तुम्हें भेजूंगी, अब हाल क्या है मेरा, तेरी जुदाई में, फिर वही दर्द भरा, अंदाज़ तुम्हें भेजूंगी, आज फिर इस दिल को, रुलाया तुमने... आज एक मसला हुआ फूल, नए अंदाज में तुम्हें भेजूंगी....!! . परिचय :-  सुरेखा "सुनील "दत्त शर्मा जन्मतिथि : ३१ अगस्त जन्म स्थान : मथुरा निवासी : बेगम बाग मेरठ साहित्य लेखन विधाएं : स्वतंत्र लेखन, कहानी, कविता, शायरी, उपन्यास प्रकाशित साहित्य : जिनमें कहानी और रचनाएं प्रकाशित हुई है :- पर्यावरण प्रहरी मेरठ, हिमालिनी नेपाल, हिंदी रक्षक मंच (hindirakshak.com) इंदौर, कवि कुंभ...
फिर से जग जाओ
कविता

फिर से जग जाओ

ओमप्रकाश सिंह चंपारण (बिहार) ******************** फिर से तू जग जाओ स्वाभिमान को लाओ गुरुकुल की भांति ज्ञान ज्योति फैलाओ अखिल विश्व से फिर से दिव्य चेतना लाओ अंतस सेतू धौम्य में बनो असंख्य आरुणि लाओ फिर से तू जग जाओ स्वाभिमान को लाओ ऋचा रचो फिर से नई नई ज्ञान पुष्प बिखराव गुरुतर तेरे कंधों पर श्रवण कुमार बन जाओ उत्पीड़न है अखिल विश्व में योग क्षेम को लाओ फैले चेतना मानवता की तू त्याग मूर्ति बन जाओ बोधिसत्व तू बन कर ज्ञान पुष्प बिखराओ फिर से तू जग जाओ स्वाभिमान को लाओ गुरुकुल की भांति ज्ञान पुष्प बिखराऒ जातिवाद नस्लवाद फासिस्ट वाद मिटाओ फिर तू जग जाओ हरा भरा अखिल विश्व हो शांति का पाठ पढ़ाओ अंतरिक्ष शांति वनस्पति शांति पृथ्वी को शांत बनाओ क्रौंच पक्षी की विरह वेदना अंतस में तु लाओ अभिनव बाल्मीकि तू बनकर महाकाव्य को लाओ फिर से तू जग जाओ स्वाभिमान को लाओ गुरुकुल की भांति ज्ञान ज्योति फैला...
पर्यटन
कविता

पर्यटन

श्याम सुन्दर शास्त्री (अमझेरा वर्तमान खरगोन) ******************** पर्यटन है नही कोई व्यसन खानपान का अनुशासन सहयोग, समत्व, सौहार्द धैर्य, शांति अनुशीलन प्रकृति का सानिध्य आनन्द मय वातावरण वंदन, चिंतन, मनन हो रहा कल्याण मय जीवन सहबन्धूओ का स्नेह, प्रेम जैसे उदित हो रही नव प्रभात किरण भजन, कीर्तन से हो रहा अंतर्मन शोधन इतिहास, संस्कृति मय पर्यावरण समावेश कर रहा नव यौवन चंचल, चपल मन स्थित हो रहा निज भुवन . लेखक परिचय :- श्याम सुन्दर शास्त्री, सेवा निवृत्त शिक्षक (प्र,अ,) मूल निवास:- अमझेरा वर्तमान खरगोन शिक्षा:- बी,एस-सी, गणित रुचि:- अध्यात्म व विज्ञान में पुस्तक व साहित्य वाचन में रुचि ... आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं...
कविता ….
कविता

कविता ….

धैर्यशील येवले इंदौर (म.प्र.) ******************** स्वच्छंद, अल्हड़ मनमौजी, शरारती कविता। कभी उड़ान भर चिर देती है आसमान तो कभी गोता लगाकर सागर की छाती को भेद देती है, कभी सूरज को बुझा देती है तो चांद को जला देती है, अदम्य साहस से भरी अजेय कविता, मन करता इसे बंदी बना लू इसके पंख नोच लू कुछ शब्दों पर कब्जा भी कर लिया कुछ भाव भी जगा दीये अथक प्रयास किये पर कैद न कर सका कविता। घुटने टेक दिए जान गया, अजर है अमर है अनंत है आत्मा है कविता।। . परिचय :- नाम : धैर्यशील येवले जन्म : ३१ अगस्त १९६३ शिक्षा : एम कॉम सेवासदन महाविद्याल बुरहानपुर म. प्र. से सम्प्रति : १९८७ बैच के सीधी भर्ती के पुलिस उप निरीक्षक वर्तमान में पुलिस निरीक्षक के पद पर पीटीसी इंदौर में पदस्थ। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अप...
ओ समाज के गुरु शिक्षक
कविता

ओ समाज के गुरु शिक्षक

ओमप्रकाश सिंह चंपारण (बिहार) ******************** ओ समाज के गुरु शिक्षक तू अपनी ओर देख। तू नव पौधों के वन उपवन का माली है।। ये गुलशन है, गुलजार, चमन उजियाले हैं। बगिया है रोशन, चमक दमक हरियाली है। यह वक्ता प्रोक्ता ये अधिकारी- ये न्यायमूर्ति, ये जिलाधीश, ये मंडलधीश ये लोकपाल, ये राज्यपाल, ये डाकपाल- ये व्ययस्थापक, संपादक- सूचना संयारी- ये जन के नेता, भाग्यविधाता-ये मार्गदर्शक। ये जन उन्नति के तुंग शिखर पर चढ़े हुए उनके अंदर की प्रतिभाएं है विकसित सिक्के है तेरे टकसालों के गड्ढे हुए।। पर आज देख आया है कैसा विकट -काल- छाया है कैसी राक्षसीपन, वहसीपन। पीड़ा से पीड़ित, मानवता आहे भर्ती। है ओर छोर तक नग्न भ्रष्टता का है नर्तन।। मानव का मानो चोर अरे! यह बात गजब है। नरके प्राणों का मोलतोल अब होता है। जाने इस दुनिया में कोई भगवान भी है।। यदि है तो जाने कहां नींद में सोता है? यह और ...
संकोच
कविता

संकोच

मनोरमा जोशी इंदौर म.प्र. ******************** ह्रदय मध्य लघुरूप मे, रहता मन संकोच, किन्तु समय पर विशद हो देता हमे दबोच। रावण को संकोच ने, किया जभी निज ग्रास, जनक सुता को तब मिला वन अशोक में वास। हुयी विभीषण पर कृपा, दिया न उसको मार, हनुमान के साथ भी, किया वहीं व्यवहार। यही सरल संकोच ने, ले ली दशमुख जान, भीतर के इस दोष पर, रक्खो पूरा ध्यान। . लेखिका का परिचय :-  श्रीमती मनोरमा जोशी का निवास मध्यप्रदेश के इंदौर में है। आपका साहित्यिक उपनाम ‘मनु’ है। आपकी जन्मतिथि १९ दिसम्बर १९५३ और जन्मस्थान नरसिंहगढ़ है। शिक्षा - स्नातकोत्तर और संगीत है। कार्यक्षेत्र - सामाजिक क्षेत्र-इन्दौर शहर ही है। लेखन विधा में कविता और लेख लिखती हैं। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में आपकी लेखनी का प्रकाशन होता रहा है। राष्ट्रीय कीर्ति सम्मान सहित साहित्य शिरोमणि सम्मान और सुशीला देवी सम्मान प्रमुख रुप से आपक...