वसन्त जब आये
सोनल सिंह "सोनू"
कोलिहापुरी दुर्ग (छतीसगढ़)
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आम्र वृक्ष पर बौर आए,
पलास खिलकर मुस्कुराए,
कोयल मीठे तराने गाये,
वसन्त आये, वसन्त आये।
अमलताश मन को है भाये,
पतझड़ से क्यों घबराए,
परिवर्तन का उत्सव मनाये,
वसन्त आये, वसन्त आये।
शीत ऋतु लौट के जाये,
खुशनुमा मौसम हो जाये,
झरबेरी के बेर ललचाये,
वसन्त आये, वसन्त आये।
विविधरंगी पुष्प खिले,
पीतवर्णी सरसों फूले,
सुरभित सी पवन बहे,
वसन्त आये ये कहे ।
वसन्त ऋतुराज कहाये,
शोभा इसकी बरनी न जाये,
उर में है आनंद समाये,
वसन्त आये, वसन्त आये।
परिचय - सोनल सिंह "सोनू"
निवासी : कोलिहापुरी दुर्ग (छतीसगढ़)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।
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