Monday, November 25राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर आपका स्वागत है... अभी सम्पर्क करें ९८२७३६०३६०

पद्य

आधुनिकता निगल गई
कविता

आधुनिकता निगल गई

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ******************** इशारों की रंगत खो क्यूँ गई चूड़ियों की खनक और खांसी के इशारे को शायद मोबाईल खा गया घूँघट की ओट से निहारना ठंडी हवाओं से उड़ न जाए कपडा दाँतों में दबाना काजल का आँखियों में लगाना क्यूँ छूटता जा रहा व्यर्थ की भागदौड़ में श्रृंगार में गजरें, वेणी रास्ता भूले बालों का प्रिय का सीधा नाम बोलने की बातें कुछ खाने पीने के लिए बच्चों के हाथ भेजना साड़ी-उपहार छुपाकर देने की आदते ऑन लाइन शॉपिंग निगल गई हमारे पुराने ख्यालात में प्रेम मनुहार छुपा था नए ख्यालातों को दिखावा निगल गया बैठ कर खाने, पार्को में पिकनिक मनाने के समय को शायद इलेक्ट्रानिक बाजार निगल गया इंसान तो है मगर समय बदल गया या तो समय के साथ हम बदल गए सुख चैन अब कौन सी दुकान पर मिलता हमे जरा बताओं तो सही दिखावा और बेवजह की मृगतृष्णा सी दौड़ में हमारी आँखों से आंसू भाप बनकर चेहरे पर मुस्कान...
बस यूं ही …
ग़ज़ल

बस यूं ही …

शरद मिश्र 'सिंधु' लखनऊ उ.प्र. ********************** दग्ध चमन। है अनबन। गजल महज, पैनापन। उर्वर है, यह कन कन। वीणा की गूंज सघन। सूरज तुम, किरन किरन। पायल बस, छनन छनन। नारों में, हल्कापन। नेता का सिर्फ कथन। आंखों में, आग तपन। व्यथित देख, जन गन मन। देखें क्या, सूर नयन। भारत का, तन मन धन। "सिंधु" महज, अब न उफन। . लेखक परिचय :-  नाम - शरद मिश्र 'सिंधु' उपनाम - सत्यानंद शरद सिंधु पिता का नाम - श्री महेंद्र नारायण मिश्र माता का नाम - श्रीमती कांती देवी मिश्रा जन्मतिथि - ३/१०/१९६९ जन्मस्थान - ग्राम - कंजिया, पोस्ट-अटरामपुर, जनपद- प्रयाग राज (इलाहाबाद) निवासी - पारा, लखनऊ, उ. प्र. शिक्षा - बी ए, बी एड, एल एल बी कार्य - वकालत, उच्च न्यायालय खंडपीठ लखनऊ सम्मान - सर्वश्रेष्ठ युवा रचनाकार २००५ (युवा रचनाकार मंच लखनऊ), चेतना श्री २००३, चेतना साहित्य परिषद लखनऊ, भगत सिंह सम्मान २००८, शिव सिंह सरोज ...
जल पर कलम
कविता

जल पर कलम

अलका जैन (इंदौर) ******************** प्यास बुझाने को व्याकुल सावन की बुंदे समंदर में जज्बा कहा प्यास बुझाने का यार रिश्तेदारो बुंदे बुंदे बारिश की बूंदों बूंदों को बदोलत जीवन की सोगात पाई हमने ज़मीं पर जल जीवन लिया यार रिश्तेदारो आस्मां के बुलावे पर जब जब श्वेत वस्त्र धारण कर उपर पहुची दुनिया पूकार उठी बादल बादल याद सताने लगी यार की बुंदों को मशाल जला तब देखा बुंदों ने निचे चोंच खोल पक्षी तलाश रहे बुंदों को पशू भटक रहे बुंदों की खोज में और जब देखा बूंदों ने हाय किसान अपने आश्को से खेत सींचने का असफल प्रयास करते हुए रोते छोड़ साथ आसमान का दोडी भागी धरा पर आ पहुंची बुंदे बुन्दे बुंदे सावन की बुंदे बरसी समंदर बनो ना बनो यार दोस्तों आपकी मर्जी या आपकी किस्मत बुंद बनना मत बिसार देना अपने परायो की प्यास बुझाना यार अंजुली में भर कर जब बुंदे मारी सजनी पर साजन ने अमर प्रेम की तब उपजी बहुतेरी जमा...
अश्रु क्यों बहा रहे हो …
कविता

अश्रु क्यों बहा रहे हो …

विनोद सिंह गुर्जर महू (इंदौर) ******************** होटलों में मस्त खाना खा रहे हो। नाच रहे फूहड़, कुछ भी गा रहे हो ।।... आज कुपोषण से गृसित है बालपन, तुम सुरा में मस्त डूबे जा रहे हो।।... अबोध बच्चों से कराते काम हो, हाय, ऐसा जुल्म क्यों तुम ढा रहे हो।।.. नग्न होकर नाचना, ताली बजाना, कौनसा, कैसा जमाना ला रहे हो।।.. तुम गरीबों के वसन को नोचकर, कुबेर का सारा खजाना पा रहे हो।।... दीन दुखियों के आंसू रूक पोंछ दे, अनंत सुख पाने में क्यों शरमा रहे हो।।.. कृष्ण बनना है तो प्रेम को सीख लो, कंस के नाम अश्रु क्यों बहा रहे हो।।... . परिचय :-   विनोद सिंह गुर्जर आर्मी महू में सेवारत होकर साहित्य सेवा में भी क्रिया शील हैं। आप अभा साहित्य परिषद मालवा प्रांत कार्यकारिणी सदस्य हैं एवं पत्र-पत्रिकाओं के अलावा इंदौर आकाशवाणी केन्द्र से कई बार प्रसारण, कवि सम्मेलन में भी सहभागिता र...
मही हो स्वर्ग सी मेरी
कविता

मही हो स्वर्ग सी मेरी

ओम प्रकाश त्रिपाठी गोरखपुर ********************** मही हो स्वर्ग सी मेरी, यही बस कामना दिल मे महक बिखरे सदा यू ही, यही बस भावना दिल मे। लडी मोती की न टूटे, यही बस है मेरी ख्वाहिश न जीते न कोई हारे, प्यार ही प्यार हो जग मे।। उत्तर में हिमालयसे, समन्दर तक ये बोलेगा सुनो ऐ दुनिया वालों तुम, तेरे आखों को खोलेगा। राज्य हो राम के जैसा, नहीं हो दीन अब कोई धरा का जर्रा जर्रा फिर, वसुधैव कुटुम्बकम बोलेगा।। नहीं हो फिर कोई हिटलर, नहीं मूसोलिनी जैसा जगत के मूल में न हो, कभी रुपया और पैसा। मिले दिल एक दूजे से, न हो कोई गिला शिकवा बनाये आओ मिलकर के, हमारा विश्व एक ऐसा।। . लेखक परिचय :-  ओम प्रकाश त्रिपाठी आल इंडिया रेडियो गोरखपुर आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाश...
नसीब अपना –अपना
कविता

नसीब अपना –अपना

रेशमा त्रिपाठी  प्रतापगढ़ उत्तर प्रदेश ******************** नसीब अपना हो या अपनों का कभी एक सा नहीं होता कभी किसी कि ख्वाइशें पूरी होती हैं तो कभी बस जरूरतें किसी के हसरतों में बच्चों की किलकारियां होती हैं तो किसी के आँखों में बच्चों के लिए अश्रु वह अश्रु दुःख, सुख के नहीं बल्कि बच्चों के दो जून की रोटी के लिए होते हैं किसी के सपनों की हकीकत में मखमली सेज होती हैं तो किसी के समूचे जीवन की हकीकत नीले आसमां की चादर होती हैं कोई आधुनिकता में फटे कपड़े पहनता हैं तो कोई अपनी गरीबी में कोई शानों-शौंकत में हरी घास की चप्पल पहनता हैं तो कोई नियति मान हरें पत्तों से तन को ढकता हैं ये नसीब आया उस दिन जीवन में, जिस दिन पैदा हुए सभी उससे पहले भी एक से थे दिखतें भी एक से थे ख्वाइशें भी एक सी थी मां का गर्भ भी एक सा था पैदा होते ही बदल गए नसीब अपना–अपना लें मरेंगे जिस दिन वह दिन भी एक सा होगा रा...
सपनों का पंछी
कविता

सपनों का पंछी

रीना सिंह गहरवार रीवा (म.प्र.) ******************** ख्वाब करना है वो पूरे, आँखों में अब तक जो थे अधूरे। पलकों की दबिश में, चाहतो ने जोर मारा, उड गई नीदें हमारी, चैन भी खोया हमारा। मंजिलें हमको बुलाती, डालने को है बसेरा। तोड़ दो सब बंधनो को, आगे खडा है नया सवेरा। करो कुछ ऐसे जतन, हो ख्वाब पूरे अपने अधूरे.... ख्वाब करना है वो पूरे, आँखों में अब तक जो थे अधूरे।। . परिचय :- नाम - रीना सिंह गहरवार पिता - अभयराज सिंह माता - निशा सिंह निवासी - नेहरू नगर रीवा शिक्षा - डी सी ए, कम्प्यूटर एप्लिकेशन, बि. ए., एम.ए.हिन्दी साहित्य, पी.एच डी हिन्दी साहित्य अध्ययनरत आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप क...
सपनीली दुनिया
कविता

सपनीली दुनिया

चेतना ठाकुर चंपारण (बिहार) ******************** सपनीली दुनिया, होती है यह पल सपनों में बसर। ख्याली पुलाव, सपनों का तड़का बस इस उम्र में सपना ही सपना होता है। थर्टीन से नाइनटीन सुहाने सुहाने सपने संजोग ने के दिन होते हैं। किसी को तलाश करती यह नजर बस जिंदगी बड़ी प्यारी लगती है फिर लड़कों को नमक तेल लकड़ी (गैस) लड़कियों की चावल दाल सब्जी जिंदगी इसी में सिमट के रह जाती हैं। जीवन का वसंत तो जवानी है। . लेखक परिचय :-  नाम - चेतना ठाकुर ग्राम - गंगापीपर जिला -पूर्वी चंपारण (बिहार) आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.comपर अणु डाक (मेल) कीजिये, अणु डाक करने के बाद...
लब चुप थे
कविता

लब चुप थे

जयंत मेहरा उज्जैन (म.प्र) ******************** लब चुप थे, आँखों ने कहना सिख लिया लौ ने, तेज हवाओं को सहना सिख लिया धड़कने उम्र भर वक़्त के इंतजार में बैठी रही बेशर्म सांसो ने जज्बातों को कहना सिख लिया हर उम्र को गुज़रते देखा है आँगन ने मेरे इन बच्चों ने कहीं और हि बहना सिख लिया दुनिया ने ही दुनिया बिगाड़ रखी है हमने अपने घरों में रहना सिख लिया उसे गरूर है कि यहाँ कि हवाऐं वो चलाता है लोगो ने भी धुंध में रहना सिख लिया . परिचय :- नाम : जयंत मेहरा जन्म : ०६.१२.१९९४ पिता : श्री दिलीप मेहरा माता : श्रीमती रुक्मणी मेहरा निवासी : उज्जैन (म.प्र) सम्प्रति : वर्तमान में कनिष्क कार्यपालक अधिकारी (इंजीनियरिंग - सिविल डिपार्टमेंट) भारतीय विमानपत्तन प्राधिकरण, सेलम हवाईअड्डे पर पदस्थ शिक्षा : बी.ई. (सिविल इंजीनियरिंग) २०१६, एम .टेक - (Geotechnical Engineering ) २०१८ भारतीय विज्ञान संस्थान, बैंगल...
हौसलें बुलंद हो तो…
कविता

हौसलें बुलंद हो तो…

संजय जैन मुंबई ******************** चलते चले जा रहे, कुछ पाने के लिए। मंजिल का पता नहीं, फिर भी चले जा रहे है। सोच कर की कभी तो, हमे मंजिल मिलेगी। और इसी आशा में, जिंदगी जिये जा रहे हैं।। जीवन का लक्ष्य हम, एक दिन जरूर पाएंगे। कहने से पहले, कर के दिखाएंगे। और अपने जीवन को, सार्थक बनाएंगे। और हम अपने, कामों से जाने जायेंगे।। बिना आधार वालो ने भी, दुनियां में नाम कमाया है। जिन्हें मूर्ख समझा था, बाद में वो ही महाकवि, आकालिदास कहलाये है। दिल में चुभ जाती है, जब कोई बात। तो फिर सब बदल जाता है, और फिर जो भी होता है। वो इतिहास के पन्नो में हमें पढ़ने को मिलता है।। . लेखक परिचय :- बीना (मध्यप्रदेश) के निवासी संजय जैन वर्तमान में मुम्बई में कार्यरत हैं। करीब २५ वर्ष से बम्बई में पब्लिक लिमिटेड कंपनी में मैनेजर के पद पर कार्यरत श्री जैन शौक से लेखन में सक्रिय हैं और इनकी रचन...
लालिमा
कविता

लालिमा

ओमप्रकाश सिंह चंपारण (बिहार) ******************** सूर्य की लालिमा पूरब से आई। सुबह में अचानक शबनम मुस्कुराई। आंखों में चमक पैदा करने लालिमा पूरब से आई। पोखर नदी के किनारे पानी की सतह पर। लाल सुर्ख सी साड़ी पहने बन दुल्हन मुस्कुराए शरमाई। ओठ फड़फड़ाए अचानक प्रदायिनी वायु कि थपेड़ों से। सूर्य की लालिमा पूरब से आई चिड़ियों की चहक से गूंज गई आमराई। निंद्रा रानी की गहन निश्चिंता के बाद। सुबह की धड़कन लिए अचानक लालिमा आई। . लेखक परिचय :-  नाम - ओमप्रकाश सिंह (शिक्षक मध्य विद्यालय रूपहारा) ग्राम - गंगापीपर जिला -पूर्वी चंपारण (बिहार) आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gma...
नूतन पुरवाई
कविता

नूतन पुरवाई

धैर्यशील येवले इंदौर (म.प्र.) ******************** पत्थर ने चोंट दी या खाई है उत्तर के लिए बुद्धि भरमाई है पत्थर किसी के पास जाता नही आँखे होते क्यो ठोकर खाई है चल रही देश मे नूतन पुरवाई है। नोंच रहे अपने अपने तरीके से दलों के दलदल ले डूबे देश को चिंतातुर दिखने की होड़ लगी है कौन उबारे अब डूबे देश को सभी ने झूठी कसमें जो खाई है चल रही देश मे नूतन पुरवाई है है अरज तुझे माँ भारती घर अच्छे से क्यो नही बुहारती स्थान नही जाफर जयचंदो का घर अच्छे से क्यो नही संवारती अब बलिदानों पे आँच आई है चल रही देश मे नूतन पुरवाई है लगा देंगे हम प्राणों की बाजी है लिपटा ने हमें तिरंगा राजी माँ तेरा आँचल न होगा तार तार मरेगा गद्दार कितना ही हो गाजी अस्मिता पर अब बन आई है चल रही देश मे नूतन पुरवाई है . परिचय :- नाम : धैर्यशील येवले जन्म : ३१ अगस्त १९६३ शिक्षा : एम कॉम सेवासदन महाविद्याल बुरहानपुर म. प्र. ...
अस्तित्व खोकर
कविता

अस्तित्व खोकर

वीणा वैष्णव कांकरोली ******************** अस्तित्व खोकर सब, गुमनाम जीवन जी रहे हैं। अनमोल मिला जीवन, अब अंधेरे में ढो रहे हैं।। कर गुनाह सब यहाँ, गुमनाम बन जी रहे हैं। जहर घोल जीवन में, अब कर्मों पर रो रहे हैं।। रिश्तो को बिखेर, यहाँ सभी अधूरे लग रहे हैं। एकांकी जीवन जीने, मजबूर अब हो रहे हैं।। बरसों लगे मुकाम पाने में, पल में गिर रहे हैं। पहचान छुपा सबसे, ऐसे वो जीवन जी रहे हैं।। जैसा बोया वैसा ही, अपनों संग काट रहे हैं । गलत कार्य गलत नतीजा, देखो वो पा रहे हैं ।। राह मालूम नहीं, गुमनाम राहों पर जा रहे हैं । फस रहे दलदल, क्यों रोका नहीं कह रहे हैं।। दूध जले छाछ भी, फूंक-फूंक अब पी रहे हैं। शेष जीवन उजाले में, वो इस तरह जी रहे हैं।। . परिचय : कांकरोली निवासी वीणा वैष्णव वर्तमान में राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय फरारा में अध्यापिका के पद पर कार्यरत हैं। कवितायें लिखने में आपकी गहन...
जीवन का यथार्थ
कविता

जीवन का यथार्थ

रागिनी सिंह परिहार रीवा म.प्र. ******************** हम हवाओं को भी पीछे छोड़ कर आगे बढ़ें हैं, तेरी ही देहरीयो में हम अब तो धरना धरे है। कल वो आये थे मिलने को हमसे, हमने कह दिया है, उनसे हम तो रस में है, डूबे हम हवाओं को भी पीछे छोड़ कर आगे बढ़ें हैं। बादलों की ओट से रोशनी खोजा है हमने, मन की मंदिर में बसी है, पंखुडी की एक कली। छोटी सी नन्ही सी हैं वो देखना पडता है उसको। हम हवाओं को भी पीछे छोड़ कर आगे बढ़ें हैं। ताड़े बैठे है, जी भौरा, कब खिलेगी कलियाँ ये, नन्ही सी कलियों को हमनें पल्को में छिपा लिया है। हम हवाओं को भी पीछे छोड़ कर आगे बढ़ें हैं। तेरी ही देहरीयो में हम अब तो धरना धरे हैं।। . परिचय :- रागिनी सिंह परिहार जन्मतिथि : १ जुलाई १९९१ पिता : रमाकंत सिंह माता : ऊषा सिंह पति : सचिन देव सिंह शिक्षा : एम.ए हिन्दी साहित्य, डीएड शिक्षाशात्र, पी.जी.डी.सी.ए. कंप्यूटर, एम फील हिन्दी साहित्य, ...
रात भर वो
ग़ज़ल

रात भर वो

नवीन माथुर पंचोली अमझेरा धार म.प्र. ******************** आसमाँ से नज़ारा लुटाता रहा। रात भर वो सितारा लुभाता रहा। कुछ सलीक़े उसी से चलो सीख लें, वास्ता जो सभी से निभाता रहा। मुस्कुराहट हमें भी वहाँ आ गई, ये ज़माना जहाँ मुस्कुराता रहा। चाँद सूरज की तरहाँ है उसका सफ़र, जो उजालों का दरिया बहाता रहा। जानता है रिवायत, शराफ़त सभी, वो झुकाकर भी नज़रें मिलाता रहा। . लेखक परिचय :- नाम ... नवीन माथुर पंचोली निवास ... अमझेरा धार मप्र सम्प्रति ... शिक्षक प्रकाशन ... देश की विभिन्न पत्रिकाओं में गजलों का नियमित प्रकाशन। तीन ग़ज़ल सन्ग्रह प्रकाशित। सम्मान ... साहित्य गुंजन, शब्द प्रवाह। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी ...
दिवा स्वप्न
कविता

दिवा स्वप्न

शरद सिंह "शरद" लखनऊ ******************** बिना पंख उड़ जाये गगन मे, होड़ लगायें पंछी संग, देखे सपने ऊँचे ऊँचे, अलग हकीकत का है रंग! लगें चाँद तारे मुट्ठी में, चाहें जब भी खेलें संग, उतरे चाँद मेरे आंगन में, कण कण में भर देता रंग! आता है वह सांझ सकारे, हो जाती हूँ मैं गुम सुम! सुबहा बेवफा हो हो जाता है उषा के आँचल मे गुम! . लेखक परिचय :- बरेली के साधारण परिवार मे जन्मी शरद सिंह के पिता पेशे से डाॅक्टर थे आपने व्यक्तिगत रूप से एम.ए.की डिग्री हासिल की आपकी बचपन से साहित्य मे रुचि रही व बाल्यावस्था में ही कलम चलने लगी थी। प्रतिष्ठा फिल्म्स एन्ड मीडिया ने "मेरी स्मृतियां" नामक आपकी एक पुस्तक प्रकाशित की है। आप वर्तमान में लखनऊ में निवास करती है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अ...
प्यार का महल
गीत

प्यार का महल

संजय जैन मुंबई ******************** मिलना बिछड़ना यारों, जिंदगी का एक पहलू है। वहां तुम तड़प रहे हो, यहां हम तड़प रहे है। मदहोश ये निगाहें, तुमको ही खोज रही है। जिसे तुम देख रहे हो, वो तेरे सामने खड़ा है।। किस्सा ये मोहब्बत का, किसने शुरू किया है। दिल बहुत मचलता, जब सामने से वो निकलते। न पाने की है चाहत, और न खोने का डर है। वो मेरे दिल में बसते, हम उनके दिल में रहते।। जब भी होते है अकेले, याद वो ही आते रहते। खाली पना ये दिल का, उनके बिना नही भरता। कैसे कहे हम उनसे, बन जाओ मेरी तुम सांसे। जिंदगी जियेंगे दोनों, हिल मिलकर यहां पर। करके मोहब्बत दोनों, बनायेंगे एक प्यार का महल।। . लेखक परिचय :- बीना (मध्यप्रदेश) के निवासी संजय जैन वर्तमान में मुम्बई में कार्यरत हैं। करीब २५ वर्ष से बम्बई में पब्लिक लिमिटेड कंपनी में मैनेजर के पद पर कार्यरत श्री जैन शौक से लेखन में सक्रिय है...
समय की सहेज
कविता

समय की सहेज

ओमप्रकाश सिंह चंपारण (बिहार) ******************** समय की चलायमान गति में मैं बहता गया, क्योंकि समय की सहेज, एक निश्चित प्रक्रिया है अपने साथ मानव को, मंत्रमुग्ध सा मानव को सहेज लेता है। क्षणभंगुर कामनाओं को, मटिया मेट कर देता है। दिखा देता है अपनी असीम शक्तियों को, मैं कितना सहेज मान हूं। तुम कैसे मेरे गति से उत्पन्न थीरकनो पर, धीरे-धीरे थिरक रहे हो, क्योंकि यह सांसारिक सत्य है मैं कितना सहेजवान हूं। . लेखक परिचय :-  नाम - ओमप्रकाश सिंह (शिक्षक मध्य विद्यालय रूपहारा) ग्राम - गंगापीपर जिला -पूर्वी चंपारण (बिहार) आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.comपर अणु डाक...
अपनी नज़र में
कविता

अपनी नज़र में

विवेक सावरीकर मृदुल (कानपुर) ****************** बड़ा मानने के लिए खुद को अपनी नज़र में नहीं करने पड़ते कोई खास जतन कोई छोटी-सी उपलब्धि हासिल होती है और हो जाते हैं हम बड़े कानो में चारो तरफ से सुनाई देने लगती है विरुदावलियाँ जय घोष, प्रशंसा भरी निगाहे सुख शैया सी लगती है खुद को विनीत खड़े देखते हैं मंच पर कब लोग शुरू करें तारीफों की बौछार कब विनम्रता की शाल ओढ़े करे हम इसका स्वीकार कर्र ... कर्र ... कर्र ... कर्कश घंटी अलार्म की सुबह के स्वप्न की असमय हत्या करती है और एक आह के साथ पूरे दिन की यात्रा शुरू होती है तसल्ली देते हैं मन को बीच में कुछ समय निकाल कर उतनी बड़ी बात नहीं होती लोगों की नज़रों में बड़ा होना जितना अपनी ही नज़र में छोटा रह जाना लेखक परिचय :-  विवेक सावरीकर मृदुल जन्म :१९६५ (कानपुर) शिक्षा : एम.कॉम, एम.सी.जे.रूसी भाषा में एडवांस डिप्लोमा हिंदी काव्यसंग्रह : सृजनपथ २०१४ में...
फूलों से भी नाजुक
कविता

फूलों से भी नाजुक

विनोद सिंह गुर्जर महू (इंदौर) ******************** फूलों से भी नाजुक है। दिलदार मेरा।.. महक रहा है फिजां में, प्यार मेरा।।... तू जो बोले तो कोयल भी शरमाती है। बलखाके चले वो तो कहर ढाती है। पत्ता-पत्ता, बूटा-बूटा, तलबगार तेरा।।... फूलों से भी नाजुक है। दिलदार मेरा।.. महक रहा है फिजां में, प्यार मेरा।।... तेरी हर शोख अदा का हूं, में दीवाना। तेरे आने से हो जाता हूँ में अंजाना।। याद रहता है एक चेहरा, बस यार तेरा।।... फूलों से भी नाजुक है। दिलदार मेरा।.. महक रहा है फिजां में, प्यार मेरा।।... . परिचय :-   विनोद सिंह गुर्जर आर्मी महू में सेवारत होकर साहित्य सेवा में भी क्रिया शील हैं। आप अभा साहित्य परिषद मालवा प्रांत कार्यकारिणी सदस्य हैं एवं पत्र-पत्रिकाओं के अलावा इंदौर आकाशवाणी केन्द्र से कई बार प्रसारण, कवि सम्मेलन में भी सहभागिता रही है। आप भी अपनी कविताएं, कहा...
दोहे
दोहा

दोहे

प्रो. आर.एन. सिंह ‘साहिल’ जौनपुर (उ.प्र.) ******************** कबहुँ भरम मत पालिए भ्रम देता भरमाय। होत सामना सत्य का अक़ल जात चकराय ईश्वर कर ऐसी कृपा शत्रु न कोमा जाय। हरण करे हर क्लेश का हर पल रहे सहाय अहंकार एक रोग है बच के रह इंसान। चक्रव्यूह में गर फँसा बचे न शायद जान मन में ईर्ष्या द्वेष अगर है, है दुनिया से बैर जलेगी तिल तिल ज़िंदगी ख़्वाब रहेगा ख़ैर अतिशय प्रेम या क्रोध में वचन न दीजे कोय अपयश आता भाग्य में कष्ट असीमित होय छल प्रपंच से दूर हमेशा इंसा रहना सीख होत हिक़ारत हर जगह माँगे मिले न भीख हर मज़हब का मानिए मक़सद केवल एक सबका ‘साहिल’ एक है माना मार्ग अनेक . लेखक परिचय :- प्रोफ़ेसर आर.एन. सिंह ‘साहिल’ निवासी : जौनपुर उत्तर प्रदेश सम्प्रति : मनोविज्ञान विभाग काशी हिन्दू विश्वविद्यालय, वाराणसी, उत्तर प्रदेश रुचि : पुस्तक लेखन, सम्पादन, कविता, ग़ज़ल, १०० शोध पत्...
मिट जाना ही अच्छा है
कविता

मिट जाना ही अच्छा है

शरद सिंह "शरद" लखनऊ ******************** धुंधली होती स्याही का, अब धुल जाना ही अच्छा है, दर्द दे रही यादों का, अब मिट जाना ही अच्छा है। भूल न पाते उन लम्हों को, जो टीस बने चुभते अब तक, ह्रदय से ऐसे लम्हों का, अब मिट जाना ही अच्छा है। दर्द दे रही ...... खेले थे बचपन मे जब हम आँख मिचौली सखियों संग, रंग विरंगी खुशियों को हम, नही संजो कर रख पाये, खुशियों के उन रंगो का अब धुल जाना ही अच्छा है। दर्द दे रही ..... सजा लिए अरमान बड़े, दिवा स्वप्न भर नयनो में, धूल धूसरित हुये सभी, नहीं हुये पल्लवित सपनों में ! सपनों में दर्द सिसकता है ! सपनों की इस दुनिया का अब मिट जाना ही अच्छा है ! दर्द दे रही ..... सुन्दर, सुरभित प्यारी बगिया, थे पुष्प खिले प्यारे प्यारे ! मनुहारि ऐसा रूप खिले, किये उपक्रम जी भर के ! निद्रा त्यागी, दिन चैन गया सींचा उनको मन भर कर के, पर निष्ठुर हवा चली ऐसी, सब उड़ा दिये मन क...
नदी सा
कविता

नदी सा

सुभाष बालकृष्ण सप्रे भोपाल म.प्र. ******************** नदी सा बने रहो प्रवाहमान, छुये न तुम्हेँ, कभी अभिमान, शिथिल न हो, तुम्हारी राह, संसार मेँ तभी, बढेगा मान, समस्यायेँ तो ज़ब तब होंगीँ, मुदित मन से होगा समाधान, सहकार्य करना होता है, कठिन, सेवा भाव से ही होगा उत्थान, सहज़ न, गौरव, मिलता कभी, सत्कार्य, बनेगा, तुम्हारी पहचान . लेखक परिचय :-  नाम :- सुभाष बालकृष्ण सप्रे शिक्षा :- एम॰कॉम, सी.ए.आई.आई.बी, पार्ट वन प्रकाशित कृतियां :- लघु कथायें, कहानियां, मुक्तक, कविता, व्यंग लेख, आदि हिन्दी एवं, मराठी दोनों भाषा की पत्रीकाओं में, तथा, फेस बूक के अन्य हिन्दी ग्रूप्स में प्रकाशित, दोहे, मुक्तक लोक की, तन दोहा, मन मुक्तिका (दोहा-मुक्तक संकलन) में प्रकाशित, ३ गीत॰ मुक्तक लोक व्दारा, प्रकाशित पुस्तक गीत सिंदुरी हुये (गीत सँकलन) मेँ प्रकाशित हुये हैँ. संप्रति :- भारतीय स्टेट बैंक, से सेवा निव...
नारी
कविता

नारी

ओमप्रकाश सिंह चंपारण (बिहार) ******************** नारी तुम मेरी भावना हो तुम मेरी प्रेयसी हो। श्रद्धा हो मेरी कामनाओ का मेरी सपना हो जीवन कीन मशिकाओ का। जीवन की समस्याओ का। तुम रहस्या हो अंनता हो। सागर की गभीरता हो तुम मेरी बंदना हो। प्रेयसी हो तुम मेरी पूरक मैं अधूरा हूँ तुम सृष्टि की विस्तारिका हो । तुम श्रृंगारिता हो प्रकृति का तुम अनुपमा हो पुष्पा हो। व्याकुलता हो दो दिलो के तारतम्य का तुम विणा हो अराधिता हो कवियों और कलाकार का तुम अनादि हो अनंत हो बाइबिल, वेद कुरान का तुम मायावी हो। महामाया हो क्षमा हो कुंडलिनी विस्तार का I तुम मीरा हो शबरी हो कृष्ण और राम का .... . लेखक परिचय :-  नाम - ओमप्रकाश सिंह (शिक्षक मध्य विद्यालय रूपहारा) ग्राम - गंगापीपर जिला -पूर्वी चंपारण (बिहार) आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा...
सदा ऐसे ही छला
कविता

सदा ऐसे ही छला

वीणा वैष्णव कांकरोली ******************** सरल व्यक्ति को, सदा ऐसे ही छला जाता है। कर उसका अपमान, शर्मिंदा किया जाता है।। चिकनी चुपड़ी बातों से, वो अच्छा बन जाता है। लेकिन हकीकत को, वह नहीं छुपा पाता है।। गैर नजर नहीं, प्रभु नजर वह गिर जाता है। अपनी बर्बादी द्वार, वो स्वयं खोल जाता है।। शतरंज खिलाड़ी बन, होशियारी दिखाता है। प्रभु नजर से वह, कभी नहीं बच पाता है।। इतिहास गवाह, छलिया सदा ही दुख पाता है। रावण कंस कौरव, याद नहीं कोई रखता है।। अति सर्वत्र वर्जित, उसको ही वह दोहराता है। उपवास पात्र, सबके समक्ष वह ऐसे बनता है।। अपने मुंह मियां मिट्ठू, जो गलती से बनता है। अति होने पर, खुद अपने हाथ मुंह ढकता है।। गुणी बन बकवाद, लंबी तान वो छेड़ता है। अपना मान सम्मान, ऐसे स्वयं खो देता है।। श्रेय उसे ही मिलता है, श्रेष्ठ कार्य जो करता है। सरल व्यक्ति सदा, गुणों से ही पूजा जाता है।। . परिचय...