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पद्य

माटी की पुकार
कविता

माटी की पुकार

मनोरमा जोशी इंदौर म.प्र. ******************** मे मिट्टी का कलाकार, निखार सकता हूँ, तराश सकता हूँ, अभूतपूर्ण सुंदरता दे सकता हूँ। कभी दानी कभी भिखारी, कभी देवता बन सकता हूँ मृत को जीवंतता, अप्रितम सुन्दरता, भ्रामक संजीवता दे सकता हूँ। फ्रिज तो बना नहीं सकता माटी का दिया बना सकता हूँ। विद्धत बल्ब तो बना नहीं सकता। प्राकृतिक शैली को, कुछ न कुछ बदला जा सकता हूँ, पर इसे आधुनिकता की भ्रामिक शैली नहीं दे सकता, बस इसी तरह की उथल पुथल में, मेरा अस्तित्व मिटता जा रहा हैं। कला है मेरे हाथों में, पर मिट्टी तराशने को, अपना जीवन नहीं। . लेखिका का परिचय :-  श्रीमती मनोरमा जोशी का निवास मध्यप्रदेश के इंदौर में है। आपका साहित्यिक उपनाम ‘मनु’ है। आपकी जन्मतिथि १९ दिसम्बर १९५३ और जन्मस्थान नरसिंहगढ़ है। शिक्षा - स्नातकोत्तर और संगीत है। कार्यक्षेत्र - सामाजिक क्षेत्र-इन्दौर शहर ही है। लेखन व...
नारी अस्तित्व
हाइकू

नारी अस्तित्व

वन्दना पुणतांबेकर (इंदौर) ******************** बीती रात। सहसा बदले हालात। घायल जज्बात। सपने बर्बाद। अपनो की याद। कैसे हालात। कलयुगी रावण। हवस का दानव। पड़ा भारी। अबला बेचारी। मुसीबत की मारी। थी वह कुँवारी। अँधेरी रात। बिखरा अस्तित्व। टूटी आस। मन उदास। माँ की आशा। हुई निराशा। बेटियां हमारी। कैसे हो सुरक्षित। चिंता भारी। असंख्य आबादी। दुष्टों की आवारी। संकट भारी। बदला समाज। मानवता का नाश। दानव पिशाच। अकेली बाला। कोई ना सहारा। बिगड़े हालात। कानून बनाओ। उन दुष्टों को नपुंसक बनाओ। बेटीयॉ बचाकर। आने वाला कल। सुरक्षित बनाओ। . लेखिका परिचय :- नाम : वन्दना पुणतांबेकर जन्म तिथि : ५.९.१९७० लेखन विधा : लघुकथा, कहानियां, कविताएं, हायकू कविताएं, लेख, शिक्षा : एम .ए फैशन डिजाइनिंग, आई म्यूज सितार, प्रकाशित रचनाये : कहानियां:- बिमला बुआ, ढलती शाम, प्रायचित्य, साहस की आँधी, देवदूत, किताब, भरोस...
आज न जाने क्यों
कविता

आज न जाने क्यों

रेशमा त्रिपाठी  प्रतापगढ़ उत्तर प्रदेश ******************** आज न जाने क्यों? आज दिल मुस्कुराने को कह रहा हैं किसी ने कोई तोहफा न दिया हैं न पीठ थपथपाई हैं फिर भी न जाने क्यों ? आज दिल मुस्कुराने को कह रहा हैं कोई हसरत न पूरी हुई हैं न कोई अच्छा ख्वाब देखा हैं फिर भी न जाने क्यों ? आसमां में उड़ने का दिल कर रहा हैं गम भी वही हैं तन्हाई भी वही हैं अपनों से मिले तिरस्कार की टीस भी वही हैं समाज के दोगले चेहरों की बात भी वही हैं फिर भी ना जाने क्यों ? आज दिल मुस्कुराने को कह रहा हैं कई बार खुद को रोका मुस्कुराने से फिर भी मुस्कान आ ही गई होठों पर बहुत देर बाद समझ आया यह न्यूज़ चैनल के सुर्खियों से आई न्यूज की थी (हैदराबाद) जो दुःख की घड़ी में भी हर स्त्री के होठों पर मुस्कान की लालिमा बिखेर गई शायद इसलिए आज दिल मुस्कुराने को कह रहा हैं खुले आसमान में उड़ने को कह रहा हैं ....।। . प...
हे नारी
कविता

हे नारी

मनीषा व्यास इंदौर म.प्र. ******************** हे नारी सृष्टि की रचना धार चुप न बैठो। समय सतयुग का नहीं है ख़ामोश न बैठो, विनाशकारी कलयुग कुंडली मारकर बैठा है तुम्हें ही क्रांति की तलवार उठाना है, चुप न बैठो। वर्तमान में समाज बहरा है, इंसानियत गूंगी है, ऐसे में अश्रु व्यर्थ न गंवाओ शस्त्र उठाओ चुप न बैठो इस राक्षसी दरबार में तुम किससे आस लगाओगी चंडी बन बलात्कारियों की मुंड मालाएं तुम ही शिव को चढ़ाओगी। चुप न बैठो   परिचय :-  नाम :- मनीषा व्यास (लेखिका संघ) शिक्षा :- एम. फ़िल. (हिन्दी), एम. ए. (हिंदी), विशारद (कंठ संगीत) रुचि :- कविता, लेख, लघुकथा लेखन, पंजाबी पत्रिका सृजन का अनुवाद, रस-रहस्य, बिम्ब (शोध पत्र), मालवा के लघु कथाकारो पर शोध कार्य, कविता, ऐंकर, लेख, लघुकथा, लेखन आदि का पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशन एवं विधालय पत्रिकाओं की सम्पादकीय और संशोधन कार्य  आप भी अपनी कवित...
खता
कविता

खता

सुरेखा सुनील दत्त शर्मा बेगम बाग (मेरठ) ********************** खता मत गिन ए दोस्त, दोस्ती में, किसने क्या गुनाह किया, कुछ तूने किया कुछ मैंने किया, गुन्हा बराबर दोनों ने किया, दोस्ती जुनून है एक नशा है, जो तूने भी किया और मैंने भी किया, मिले हैं जिस्म और रूह आपस में, तो रस्मो की बंदिशें क्यों है, सुन ऐ दोस्त, ये जिस्म तो सुपुर्द ए खाक हो जाना है एक दिन, फिर ये तेरे और मेरे बीच, रंजिशें क्यों है, हर गम का इलाज नहीं होता मयखाने में, कुछ दर्द यूं ही चले जाते हैं, दोस्तों के साथ, महफिल सजाने में, खता मत गिन ए दोस्त, दोस्ती में ! . परिचय :-  सुरेखा "सुनील "दत्त शर्मा जन्मतिथि : ३१ अगस्त जन्म स्थान : मथुरा निवासी : बेगम बाग मेरठ साहित्य लेखन विधाएं : स्वतंत्र लेखन, कहानी, कविता, शायरी, उपन्यास प्रकाशित साहित्य : जिनमें कहानी और रचनाएं प्रकाशित हुई है :- पर्यावरण प्रहरी मेरठ, हिमालिनी ने...
हिम्मत
कविता, नैतिक शिक्षा, बाल कविताएं

हिम्मत

सौरभ कुमार ठाकुर मुजफ्फरपुर, बिहार ************************ तुम कुछ कर सकते हो तुम आगे बढ़ सकते हो। तुममे है बहुत हिम्मत तुम जग को बदल सकते हो। तुम खुद से हिम्मत नही हारना। कभी खुद का भरोसा मत हारना। तुम झूठ का मार्ग छोड़ सच्चाई के रास्ते पर चलते रहना। मुसीबत बहुत आते हैं जीवन में बस डट कर सामना करना। तुम ही देश के भविष्य हो यह बात हमेशा याद रखना। आत्मविश्वास बनाए रखो तुम हर कार्य पूरा कर पाओगे अपनी प्रयास तुम जारी रखो एक दिन जरुर सफल हो जाओगे। तुम करना कुछ ऐसा की, सारी दुनिया तुम्हारे गुण गाए। तुम बनना ऐसा की महानों की, महानता भी कम पड़ जाए। तुम रखना हिम्मत इतना की, वीर योद्धा की तलवार भी झुक जाए। तुम बनना इतना सच्चा की हरीशचंद्र के बाद तुम्हारा नाम लिया जाए। . परिचय :- नाम- सौरभ कुमार ठाकुर पिता - राम विनोद ठाकुर माता - कामिनी देवी पता - रतनपुरा, जिला-मुजफ्फरपुर (बिहार...
राह कहाँ छोड़ी है
कविता

राह कहाँ छोड़ी है

शिवम यादव ''आशा'' (कानपुर) ******************** आज छोटी उड़ाने गगन चूम लें मिलकरके ऐसा एक संकल्प लें जीत मिलती सदा उन्हीं को यहाँ जो अपने हौंसलों को दृढ़ कर लें लोग कहते हैं कर पाएगा ये क्या अपने जज्बातों को दिखा दो यहाँ भरा है क्या मेरे दिल में जुनूँन सफलता इन्हें भी दिखा दो यहाँ अभी काम व पहचान छोटी है शोहरत की गली थोड़ी छोड़ी है चलते जाएँगे बढ़ने की राह में सफलता की राह कहाँ छोड़ी है . लेखक परिचय :-  आपका नाम शिवम यादव रामप्रसाद सिहं ''आशा'' है इनका जन्म ७ जुलाई सन् १९९८ को उत्तर प्रदेश के कानपुर देहात ग्राम अन्तापुर में हुआ था पढ़ाई के शुरूआत से ही लेखन प्रिय है, आप कवि, लेखक, ग़ज़लकार व गीतकार हैं, अपनी लेखनी में दमखम रखता हूँ !! अपनी व माँ सरस्वती को नमन करता हूँ !! काव्य संग्रह :- ''राहों हवाओं में मन" आप भी अपनी कविताएं, ...
डॉ प्रियंका रेड्डी की पुकार
कविता

डॉ प्रियंका रेड्डी की पुकार

विशाल कुमार महतो राजापुर (गोपालगंज) ******************** बड़े प्यार से पापा ने डॉक्टर मुझे बनाया था मेरे माँ ने मुझे अच्छे संस्कार सिखलाया था। वो चार मैं अकेली थी, चीखी और चिलाई थी, लेकिन उन दरिंदों को जरा रहम ना आई थी। याद है मैं एक डॉक्टर थी, लाखो की जान बचाई थी। पर न जाने बुरे वक्त पे मुझे न कोई बचाया था बड़े प्यार से पापा ने डॉक्टर मुझे बनाया था मेरे माँ ने मुझे अच्छे संस्कार सिखलाया था। देख अब मानव के तन से मानवता ही चली गई, कांप गईं मेरी रूह भी आग में जिंदा जली गई। जब उन दरिंदों ने मेरे जिन्दे शरीर पे आग दिए, हम तो वह तड़प-तड़प कर अपने प्राण त्याग दिए। छोटी सी उम्र में माँ-बाबुल का जग में मान बढ़ाया था बड़े प्यार से पापा ने डॉक्टर मुझे बनाया था मेरे माँ ने मुझे अच्छे संस्कार सिखलाया था। करना जब इंसाफ तुम तब न्याय का पर्दा हटा देना, बिना सोचे समझे उनको फांसी पर लटका देना। तोड़ देना अब त...
मन मेरा डर जाता
कविता

मन मेरा डर जाता

शरद सिंह "शरद" लखनऊ ******************** मै सोई थी, जगा गया वह हौले से, देखो अब मै आ गया बोला कानो में हौले से, क्यों उदास होती है अब तू, मै तेरा तू मेरी है क्यों भरती नयनो मे आँसू, क्यों चौक-चौंक उठ जाती है। मै बोली तेरे बिन कान्हा, नही चैन मुझे आता है, न भाते यह रास रंग, न सोना ही अब भाता है। जब तू छुप जाता है कान्हा, मन मेरा डर जाता है, न जाने किस डर से कान्हा, हिलक हिलक दिल रोता है, तू कहता है तू मेरा है, फिर क्यो तू तड़पाता है, देख के मेरे ब्यथित ह्रदय को, क्या चैन बहुत तू पाता है, एक यही ख्वाहिश है मेरी, मै तेरे संग रहूँ सदा, जब चाहूँ मै तुझे निहारूँ, कभी न हो तू मुझसे जुदा, वादे बहुत किये है मुझसे, अब यह भी वादा कर दे, हाथ पकड़ लेगा तू मेरा, अन्त समय मे आकर के अन्त समय में आकर के।। . लेखक परिचय :- बरेली के साधारण परिवार मे जन्मी शरद सिंह के पिता पेशे से डाॅक्टर थे आपने...
प्रियंका रेड्डी को समर्पित
कविता

प्रियंका रेड्डी को समर्पित

दामोदर विरमाल महू - इंदौर (मध्यप्रदेश) ******************** मोमबत्तियां लेकर चलने से कुछ नही होता है। क्या बताऊँ की आज हर पिता घर बैठा रोता है।। ये वाकया पहला नही जो चुप होकर रह जाऊं मैं। मरहम की उम्मीद नही जो सबकुछ सह जाऊं मैं।। क्यों प्रशासन है मौन अब सुनेगा इनकी कौन? अब हर गली का आवारा बनता जा रहा डॉन।। क्या अब भी हम चुप रहने में विश्वास रखते है। गर चाहे तो हम मिलकर क्या नही कर सकते है।। पहले हुआ करता था रहना जंगल मे दरिंदों का। मगर शहर अब भरा पड़ा कई ऐसे बाशिंदों का।। जाने कितनी मासूमो को वहशियों ने लूटा है। बेटी बचाओ का नारा तो लगता अब झूठा है।। मां बहन की इज्जत करना बेटों को सिखाओ। पढ़ाई के साथ घर मे एक पाठ ये भी पढ़ाओ।। नारी होती है समाज व घर को स्वर्ग बनाने वाली। हर रूप में तो रहती है ये इसकी बात निराली।। वो अहिल्या सी निर्दोष मां सीता सी पावन है। वो रंगोली का रंग तो झू...
पूछती हैं बेटियाँ
कविता

पूछती हैं बेटियाँ

विवेक सावरीकर मृदुल (कानपुर) ****************** कर चुके हैं दर्ज कितने आक्रोश मोमबत्ती जला चीख चीख कर थक चुके चैनल चर्चित एंकर यहां धरने प्रदर्शन कर देश भर उकता गये हैं आम जन प्रश्न जस का तस अनुत्तरित क्या करें अब और हम? और कितनी बार हमारी सभ्यता नीलाम होगी और कितनी बार मानवता यहाँ बदनाम होगी रोष और खौफ के आगे क्या बढ़ पाएंगे सभी इस दरिंदगी से हमेशा को निजात पाएंगे कभी कब आखिर कब नुचेगी इन नरपशुओं की बोटियाँ पूछती है राख में झुलसी हजारों बेटियाँ . लेखक परिचय :-  विवेक सावरीकर मृदुल जन्म :१९६५ (कानपुर) शिक्षा : एम.कॉम, एम.सी.जे.रूसी भाषा में एडवांस डिप्लोमा हिंदी काव्यसंग्रह : सृजनपथ २०१४ में प्रकाशित, मराठी काव्य संग्रह लयवलये, उपलब्धियां : वरिष्ठ मराठी कवि के रूप में दुबई में आयोजित मराठी साहित्य सम्मेलन में मध्यप्रदेश का प्रतिनिधित्व, वरिष्ठ कला समीक्षक, रंगकर्मी, टीवी प्रस्तोता,...
प्राइवेट नौकरी
कविता

प्राइवेट नौकरी

रीना सिंह गहरवार रीवा (म.प्र.) ******************** नौकरी है ये साहब नौकरी, प्राइवेट नौकरी जरूरतों ने गुलाम बनाया साहब का, जरूरतों ने नवाब बनाया साहब को। नौकरी है ये साहब नौकरी, प्राइवेट नौकरी। हम भी थे कभी बंदे नवाब, पर..... जरूरतों ने गुलाम बनाया साहब का। यहां टैक्स पड़ता है देना गुफ्तगू का भी, न दिखने वाला पट्टा बांधा साहब ने गले में, नौकरी है ये साहब नौकरी, प्राइवेट नौकरी। पूछो न, की कितनी मशक्कत बनने को गुलाम, गुजारी सारी उमर स्कूलों और कालेजों में, बनने को गुलाम। की हासिल डिग्रीयां तमाम, बनने को गुलाम। सोचा था कर हासिल डिग्रियां तमाम, हम भी बनेंगे कभी बंदे नवाब, पर जरूरतों ने बनाया गुलाम साहब का। नौकरी है ये साहब नौकरी, प्राइवेट नौकरी..... . परिचय :- नाम - रीना सिंह गहरवार पिता - अभयराज सिंह माता - निशा सिंह निवासी - नेहरू नगर रीवा शिक्षा - डी सी ए, कम्प्यूटर एप्लिकेशन, बि....
हद हो गई
कविता

हद हो गई

मिर्जा आबिद बेग मन्दसौर मध्यप्रदेश ******************** हद हो गई इस दुनिया में पाप की, आज अगर हैं यहां जरूरत कल न होगी आपकी, कितना ही तुम दूध पिलाओं, बिन बजाके राग सुनाओ, फिर भी तुम्हें वह डंस लेगा, ये आदत है साँप की, शहर छोड जंगल वह सिंधारा, फिरता रहा वह मारा मारा, याद आ गई मुझे कहानी, महाराणा प्रताप की, किसी गरीब को तुम पास बिठालो दुख दर्द उसका तुम बांटलो, फिर जरूरत नहीं है भजन और जाप की, क्यों करते हो तेरा मेरा, यह दुनिया है एक रैन बसेरा, यह धरती है उस मालिक की, नही किसी के बाँप की, अब मै अपना ताअरूफ तुम्हे कराता हूँ, नाम है मेरा आबिद मिर्जा, हाईट हैं मेरी पाँच फिट ढाई ईन्च, अब जरूरत नही है नाप की, . लेखक परिचय :- नाम : मिर्जा आबिद बेग कवि : लेखक पत्रकार निवासी : जिला मन्दसौर मध्यप्रदेश आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने पर...
रात
कविता

रात

गोरधन भटनागर खारडा जिला-पाली (राजस्थान) ******************** रात तुम हर रोज काली हो जाती है! पूरी बस्ती मानो खाली हो जाती है। तू भी सोया कर दिन में, हर रोज अंधेरा कर देती हो। तुम रोज काली हो जाती हो।। कुछ हद तक अच्छी भी हो तुम। चैन से सब को सुलाती हो।। मगर कुछ को रुलाती हो, कुछ के सपनो में डाल देती हो जान। किसी की बन जाती हो शान।। तुम रोज काली..... तूम काली ही सही, भोली हो मगर, सब का तनाव मिटाती हो। दिन को हरा कर रात हो जाती हो।। लकिन तुमे नही पता-सो जायंगे वे लोग जिनके होते है आशियने। मगर कहा भटकेंगे तेरे अंधेरे, वह लोग जिनके नसीब घर ही नही।। तुम रोज काली..... खेर! तुजे क्या दोष दू में, मेरा साथ निभाती हो सब को शांत कराती हो। और मुझे रात भर जगाती हो साथ बैठ पढ़ाती हो। तू काली ही सही मगर मुझे लायक बना दिया ।। फिर भी तुम रोज काली..... . लेखक परिचय :- नाम : गोरधन भटनागर न...
कसीदे पढ़ के
कविता

कसीदे पढ़ के

शाहरुख मोईन अररिया बिहार ******************** मंचो पर कसीदे पढ़ के इतना बेकार नहीं बनना, झूठी खबरों का रद्दी झूठा अख़बार नहीं बनना। जब तक सांसे होगी इंकलाबी बातें होगी, अमीरों की तारीफ करूं ऐसा मक्कार नहीं बनना। हमारी आवाज से पिघलते है फौलाद जुल्म के, लंगड़ी गूंगी सियासत के गले का हार नहीं बनना। छीनने से हक मिलेगा ये तुम जान लो, मुल्क में नफरत फैलाऊ ऐसा सरदार नहीं बनना। भूखें, नंगें, गरीबों,वेघर लोगों का साथी बनना है, चंद पैसों के खातिर हमको जालिम का हथियार नहीं बनना। अपनी फकीरी में खुश हूं, ईमान के साथ, कड़वी बातें होगी हमको बेईमानों का राजदार नहीं बनना। नफरत बोलने वालों के घर में बीज बहुत है, अमन फैलाना है शाहरुख हमको सरकार नहीं बनना। . लेखक परिचय :- शाहरुख मोईन अररिया बिहार आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित ...
प्रसंग
कविता

प्रसंग

केशी गुप्ता (दिल्ली) ********************** अंबे गौरी के देश में बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ का गूंज रहा नारा है काली दुर्गा की धरती पर हो रहा चीरहरण मीरा सीता के आंचल पर करते हर पल शक गंगा जमुना की धारा में धो कर अपने दुष्कर्म मर्यादा की आड़ में करते हैं पाखंड मंदिर मस्जिद के नाम पर लड़ते हैं हरदम संस्कृति के नाम पर कहते देश महान कब जागेंगे कब सोचेंगे जीवन का प्रसंग . लेखक परिचय :- केशी गुप्ता लेखिका, समाज सेविका निवास - द्बारका, दिल्ली आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.com पर अणु डाक (मेल) कीजिये, अणु डाक करने के बाद हमे हमारे नंबर ९८२७३ ६०३६० पर सूचित अवश्य करें … औ...
शिक्षण-संस्थान
कविता

शिक्षण-संस्थान

ओमप्रकाश सिंह चंपारण (बिहार) ******************** शारीरिक श्रम से मांसपेशियो को। फैलाता हूं, सिकुड़ाता हूँ मरोड़रता हूँ नस नस को दिलोजान से पसीने से नहलाता हूँ। शरीर की गंदगी को रोम-रोम की छिद्र से बाहर निकालने में सक्षम बनाने की कोशिश करता हूँ मानसिक श्रम से ही सही व्यक्तित्व का विकास नहीं होता श्रम की दो चक्रों पर जिंदगी की गाड़ी को धकेलता हूं। लक्ष्य की ओर निगाहें दौड़ाकर कर्म पथ की चौराहों पर यें, गीत गुनगुनाता हूं शिक्षण संस्थान में, योग, श्रम की सही पहलुओं को समझाता हूं अपनाता हूं चबाता हूं श्रम की पत्तों को किमती कीड़ा बन, रेशम उठ जाता हूं पसीने की हर-बूंद पर एक -एक, कविता, बनाता हूं। . लेखक परिचय :-  नाम - ओमप्रकाश सिंह (शिक्षक मध्य विद्यालय रूपहारा) ग्राम - गंगापीपर जिला -पूर्वी चंपारण (बिहार) आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं ...
तेरे हवाले
कविता

तेरे हवाले

संजय जैन मुंबई ******************** प्यार को प्यार से जाने तो, कोई बात होती है। दिल को दिल से जानो तो, कोई बात होती है। मैं कैसे समझूँ की तू, मुझको चाहती है। कुछ तो दे दो इशारा तुम, अपनी आँखों से।। जब भी देखता हूँ तुझे दिल में एक हलचल होती। अंधेरे दिल में एक, रोशनी की किरण दिखती। तेरा क्या हाल है मुझे, कुछ भी नहीं है पता। हाल ए दिल मैं अपना तुझको व्या करता।। तेरे दिल में यदि, कुछ हो तो बता दो मुझे। आँखों से न सही तो खत लिखकर बता दो मुझे। मेरा तेरे संदेश का कब से इंतजार कर रहा। तेरी चाहात में अभी तक मैं जीये जा रहा हूँ।। प्यार से प्यार को समझो, तो कोई बात बने। दिल को दिल से जानो तो, कोई बात बने। हम तो तेरे कसम से, कब से दीवाने हैं। अब मेरी जिंदगी ये, तेरे ही हवाले है।। . लेखक परिचय :- बीना (मध्यप्रदेश) के निवासी संजय जैन वर्तमान में मुम्बई में कार्यरत हैं। करीब २५ वर्ष...
मुश्किल में मुस्काना सीखो
कविता

मुश्किल में मुस्काना सीखो

नफे सिंह योगी मालड़ा सराय, महेंद्रगढ़ (हरि) ******************** युद्ध में जख्मी जवान यूँ ही नहीं कहता रेडियो सैट पर अपने कमांडर को जोशीले लब्ज़ों में जोर से कि...ठीक हूँ सर क्योंकि ...उसे पता है कि ... अगर तू अपनी परेशानी उन्हें बताएगा तो... फतेह में रुकावट आ सकती है मुद्दा जीतना है न कि ...दर्द बयाँ करना ठीक इसी प्रकार जब एक बेटी ससुराल से मायके आती है तो... माँ के पूछने पर भी वह मुस्कुराकर कहती है कि... माँ ! मैं बिल्कुल ठीक हूँ आप मेरी फिक्र मत करना क्योंकि... उसे पता है कि... अगर वह कहेगी कि... माँ मेरा मन नहीं लग रहा तो... माँ भी बहुत परेशान होगी ऐसे बहुत सारे उदाहरण हैं जो ... ये बयां करते हैं कि.... जीवन दुख-सुख का नाम है हमें मुस्कुराकर जीवन जीना चाहिए खुद खुश रहकर सबको खुश रखना चाहिए जो ...दुख में भी मुस्कुराता है वास्तव में वही जीवन जीता है ..... . परिचय : नाम : नफे सिंह ...
जागो बेटी
कविता

जागो बेटी

रीतु देवी "प्रज्ञा" (दरभंगा बिहार) ******************** जागो बेटी, उठाओ हथियार, दरिदों का करो संहार। याद करो रानी लक्ष्मीबाई की कहानी, चुप्पी तोड़ो, व्यक्त करो व्यथा जुबानी लड़ना तुम्हारा अधिकार है अस्मत खातिर, भटक रहे हैं अनेकानेक देह क्रेता-विक्रेता शातिर। डस लो जिस्मफरोशी को नागिन रूप धर, मृत्यु लोक पहुँचा फाँसी झूला झूलाकर, माँ अम्बे का हाथ है सदा तेरे शिश पर, रण चंडी की अवतार लेकर राक्षसों नाश कर।   लेखीका परिचय :-  रीतु देवी (शिक्षिका) मध्य विद्यालय करजापट्टी, केवटी दरभंगा, बिहार आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.com पर अणु डाक (मेल) कीजिये, अणु डाक करने...
नारी
दोहा

नारी

केदार प्रसाद चौहान (के.पी. चौहान) गुरान (सांवेर) इंदौर ****************** नारी को जो समझे बेचारी। वह नर हे बड़ा अत्याचारी।। नारी को भी अब निडर होना चाहिए। अपनी रक्षा के लिए स्वयं लीडर होना चाहिए।। छोड़कर मान मर्यादा अब माता सीता वाली। बन जाओ रणचंडी नवदुर्गा और काली।। देखकर माथे का सिंदूर। समझे ना कोई मजबूर।। नारी तेरे हाथों से अब कमाल होना चाहिए। एक खंजर के वार से दरिंदों का चेहरा लाल होना चाहिए।। कैसे समझाएंगे इनको यह आदमखोर दरिंदे हैं। डूब मरो कानून के रखवालों जब तक जुल्मी जिंदे हैं।। नजर उठा कर देख ना सके इनकी आंखें फोड़ देना चाहिए। काट कर दोनों हाथ पैर तोड़ देना चाहिए।। बीच चौराहे सूली पर टांग कर सजा देना चाहिए। केरोसिन डालकर इन दरिंदो को भी आग लगा देना चाहिए।। . लेखक परिचय :-  "आशु कवि" केदार प्रसाद चौहान के.पी. चौहान "समीर सागर"  निवासी - गुरान (सांवेर) इंदौर ...
रिश्ते ऐसे
कविता

रिश्ते ऐसे

वीणा वैष्णव कांकरोली ******************** जहां को दिखाने, रिश्ते ऐसे निभा रहे हैं। नहीं रहा अपनापन, दिखावा कर रहे हैं ।। झूठी मुस्कुराहट, चेहरे पे रख जी रहे हैं। अपनों बीच, देखो वो बेगाने हो रहे हैं।। रिश्ते खून के, औपचारिकता निभा रहे हैं। स्वार्थ रख मन में, वो करीब आ रहे हैं ।। जीवन में कैसा, परिवर्तन दौर आ रहा है। भीड़ में भी, अब तन्हा जीवन जी रहे हैं ।। रिश्ते दिल से नहीं, दिमाग निभा रहे हैं। अपनों को आहत, मन मन खुश हो रहे हैं।। वक्त भी देखो, अब वो करवट ले रहा है। दिल से निभाए रिश्ते, वह खास हो रहे हैं ।। दर्द में रिश्तो का, जब अहसास हो रहा है। नहीं की कद्र, तन्हा खून आंसू रो रहे है।। रिश्तो का महत्व, वो महसूस कर रहे है । अपनेपन अनमोल निधि, सहेज रहे है।। गैरों में पागल बने, अब अपनों को ढूंढ रहे हैं। कांख छोरा गाँव ढिंढोरा, कहावत दोहरा रहे हैं।। रिश्ते अहमियत, जिंदगी जन्नत बना...
घर की बिटिया …
कविता

घर की बिटिया …

दीपक्रांति पांडेय (रीवा मध्य प्रदेश) ****************** घर की बिटिया, रही सिसकती, हैं मंत्री, नेता मस्त यहां। नोच रहे हैं जिस्म भेड़िए, सब के सब हैं व्यस्त यहां।। आन बचा ना सके, जो घर की, लंबे भाषण झोंक रहें। बनकर दर्शक, तुम, ना मर्दों ! सुनकर ताली ठोक रहे।। क्या बची ना ताकत संविधान में, घर की लाज बचाने को। निपटारा हो तुरंत यहां, क्यो देरी है, फास्ट कोर्ट लगाने को।। क्यों हैं हबसी,बेखौफ यहां इतने,खुलकर इज्जत लूट रहे। बनकर कुत्ते और भेड़िए, हर लड़की पर टूट रहे।। काट रहे, बेख़ौफ लड़कियां, मर्यादा सारी तोड़ रहे। देख अकेला जिस्म मान बस, हवस मिटाने दौड़ रहे।। कौन है जिम्मेदार यहां अब? किसको दोषी ठहराए? शर्मसार है, मां वसुंधरा, झंडा कैसे फहराएँ।। बेझिझक यू लुटती देख आबरू, बूत बनी हर मात खड़ी। कलतक थी जो, सुंदर चंचल, अधजलीबनी वह लाश पड़ी।। जाने किसने, नित नई, यह बेदर्दी की रीत गढ़ी। हब्शी ...
शिखंडी
कविता

शिखंडी

धैर्यशील येवले इंदौर (म.प्र.) ******************** उन बेटियों को समर्पित, जो दरिदों की दरिंदगी का शिकार हो असमय कालकवलित हुई। धिक्कार है मुझ पर धिक्कार है मेरे होने पर शर्मसार हूँ मैं, पुरुष होने पर। वहशी, दरिंदा, नरपिशाच दो क्षण में हो जाता हूँ, भाई, बेटा, पिता नही हो पाता तुझे विपत्ति में होने पर। तेरे आंखों में भय पढ़ नही पाता तेरा क्रंदन मैं सुन नही पाता, ज्ञानी, बलवान होने का मात्र दंभ भरता हूँ, और चलता हूँ मुझे क्या पड़ी है कि तर्ज़ पर। तुझे आत्मा कांप जाए ऐसा दर्द दिया जाता है, विभत्स तरीके से मार कर जला दिया जाता है, मैं, हाथ मे मोमबत्ती थामे नज़रे टिका देता हूँ, धृतराष्ट्र सा, टिमटिमाती रोशनी पर। मुझे तेरी चिता की आग न दिखाई देती है, न उसकी आंच महसूस होती है, मैं निर्रथक पुंसत्व ओढ़े हुए हूँ पुरुष के वेश में शिखंडी हूँ, और जीवित हूँ तो सिर्फ तेरी क्षमा पर। तेरी चिता की राख क्य...
आखिर कब… ?
कविता

आखिर कब… ?

आशा जाकड़ इंदौर म.प्र. ******************** यह दुराचार कब खत्म होगा? कब तक बेटियाँ असुरक्षित रहेंगी? मासूम बेटियाँ कब तक इन दरिन्दों का शिकार होती रहेंगी। लगता है हर जगह हैवान घूम रहे हैं। जो बालाओं का अपहरण कर रहे हैं, दुष्कर्म कर रहे हैं, नोच नोच कर खा रहे हैं, बोटी-बोटी काट रहे हैं। क्या बेटियां घर से बाहर न जाए? स्कूल पढ़ने न जाए, खेलने न जाए? आखिर कब तक? कब तक वे पीड़ा सहती रहेंगी? कब तक वे अत्याचार का शिकार होंगी? उनके हिस्से की पीड़ा कोई मिटा तो नहीं सकता। जो भोगा है उन्होंने उसे मस्तिष्क से हटा तो नहीं सकता वे बेचारी कब तक शर्म से मुंह छुपाती रहेंगी कब तक दर्द से कराहती रहेंगी ? इन दरिंदों को फांसी क्यों नहीं देती ? सरकार उनके हाथ पैर क्यों नहीं काटती सरकार कहती है पर करती क्यों नहीं? सरकार की कथनी करनी कब एक होगी आखिर इन दरिंदों को फांसी कब होगी आखिर ...