अजनबी – अपने
चेतना ठाकुर
चंपारण (बिहार)
********************
अजनबी के
मोहब्बत से डर गई।
अपनों के
नफरत से डर गई।
किसी के
इजहार से डर गई।
अपनों के
इनकार से डर गई।
इसी डर से
न अजनबी की हुई,
ना अपनों की।
दूसरों पर
विश्वास ना किया
और अपनों की
बेवफाई से डर गई ।
मैं ढूंढती रही
सारी रात ,सुबह को
और अंधेरे के
गहराई से डर गई।
.
परिचय :- नाम - चेतना ठाकुर
ग्राम - गंगापीपर
जिला -पूर्वी चंपारण (बिहार)
आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.comपर अणु डाक (मेल) कीजिये, अणु डाक करने के बाद हमे हमारे नंबर ९८२७३ ६०३६० पर सूचित अवश्य करें … और अपनी कविताएं, लेख पढ़ें अपने चलभाष पर या गूगल प...