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पद्य

एक और एक ग्यारह
कविता

एक और एक ग्यारह

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ******************** एक और एक ग्यारह होते ये है गणित का मामला दो और दो चार होते ये है प्यार का मामला नौ और दो ग्यारह होते ये है भागने का मामला एक और दो बारह होते ये हे बजने का मामला एक और एक ग्यारह होते ये है एक पर एक का मामला तीन और पांच आठ होते ये है बड़बोलेपन का मामला दो और पांच साथ होते ये है साथ फेरों का मामला प्यार करने वाले साथ होते ये है दिलों का मामला ऊपर वाला के संग होते ये है भक्ति भाव का मामला सांसों के साथ जब होते ये है जिन्दा रहने का मामला . परिचय :- संजय वर्मा "दॄष्टि" पिता :- श्री शांतीलालजी वर्मा जन्म तिथि :- २ - मई -१९६२ (उज्जैन) शिक्षा :- आय टी आय व्यवसाय :- ड़ी एम (जल संसाधन विभाग ) प्रकाशन :- देश - विदेश की विभिन्न पत्र - पत्रिकाओं में रचनाएँ व समाचार पत्रों में निरंतर पत्र और रचनाओं का प्रकाशन, प्रकाशित काव्य कृति "दरवाजे पर दस्त...
नीर
कविता

नीर

भारत भूषण पाठक धौनी (झारखंड) ******************** नयनों में नीर तो प्रायश्चित जलाशयों में नीर तो पिपासा तृप्त नीर अम्बर में तो है वर्षण प्रसूनों पर नीर तो ओस है नीर शक्कर में तो चाश्नी है नीर सहसा आए तो आत्मशुद्धि है नीर बिनु जीवन तो निष्प्राण है . परिचय :- भारत भूषण पाठक लेखनी नाम - तुच्छ कवि 'भारत ' निवासी - ग्राम पो०-धौनी (शुम्भेश्वर नाथ) जिला दुमका (झारखंड) कार्यक्षेत्र - आई.एस.डी., सरैयाहाट में कार्यरत शिक्षक योग्यता - बीकाॅम (प्रतिष्ठा) साथ ही डी.एल.एड.सम्पूर्ण होने वाला है। काव्यक्षेत्र में तुच्छ प्रयास - साहित्यपीडिया पर मेरी एक रचना माँ तू ममता की विशाल व्योम को स्थान मिल चुकी है काव्य प्रतियोगिता में। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, ...
एक और एक ग्यारह
कविता

एक और एक ग्यारह

कंचन प्रभा दरभंगा (बिहार) ******************** मेरे देश के सेनाओं में एक और एक ग्यारह का दम एक देश है प्यारा अपना रंग रुप और जाति धरम प्रांत जैसे अलग-अलग है तिरंगा अपना एक है त्योहार भिन्न-भिन्न होते यहाँ और भारत अपना एक है नष्ट कर देंगे भारतीय सेना दुश्मन के फेंके बम मेरे देश के सेनाओं में एक और एक ग्यारह का दम भाषा बोली अलग-अलग है राष्ट्रगान अपना एक है पकवान भिन्न-भिन्न मिलतें यहाँ और भारत अपना एक है यही कहती है सेना हिन्दुस्तानी हँसते हुये हम सब करें करम मेरे देश के सेनाओं में एक और एक ग्यारह का दम . परिचय :- कंचन प्रभा निवासी - लहेरियासराय, दरभंगा, बिहार सम्मान - हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा हिन्दी रक्षक २०२० सम्मान से सम्मानित  आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, ...
चंद्रशेखर आज़ाद
कविता

चंद्रशेखर आज़ाद

प्रीति शर्मा "असीम" सोलन हिमाचल प्रदेश ******************** अपना नाम ....... आजाद। पिता का नाम ........ स्वतंत्रता बतलाता था। जेल को, अपना घर कहता था। भारत मां की, जय -जयकार लगाता था। भाबरा की, माटी को अमर कर। उस दिन भारत का, सीना गर्व से फूला था। चंद्रशेखर आज़ाद के साथ, वंदे मातरम्............ भारत मां की जय....... देश का बच्चा-बच्चा बोला था। जलियांवाले बाग की कहानी, फिर ना दोहराई जाएगी। फिरंगी को, देने को गोली.....आज़ाद ने, कसम देश की खाई थी। भारत मां का, जयकारा .......उस समय, जो कोई भी लगाता था। फिरंगी से वो.....तब, बेंत की सजा पाता था। कहकर .......आजाद खुद को भारत मां का सपूत, भारत मां की, जय-जयकार बुलाता था। कोड़ों से छलनी सपूत वो आजादी का सपना, नहीं भूलाता था। अंतिम समय में, झुकने ना दिया सिर, बड़ी शान से, मूछों को ताव लगाता था। हंस कर मौत को गले लगाया था। आज़ाद.... आज़ा...
मेरे ज़रूरी काम
कविता

मेरे ज़रूरी काम

डॉ. चंद्रेश कुमार छतलानी उदयपुर (राजस्थान) ****************** जिस रास्ते जाना नहीं हर राही से उस रास्ते के बारे में पूछता जाता हूँ। मैं अपनी अहमियत ऐसे ही बढ़ाता हूँ। जिस घर का स्थापत्य पसंद नहीं उस घर के दरवाज़े की घंटी बजाता हूँ। मैं अपनी अहमियत ऐसे ही बढ़ाता हूँ। कभी जो मैं करता हूं वह बेहतरीन है वही कोई और करे-मूर्ख है-कह देता हूँ। मैं अपनी अहमियत ऐसे ही बढ़ाता हूँ। मुझे गर्व है अपने पर और अपने ही साथियों पर कोई और हो उसे तो नीचा ही दिखाता हूँ। मैं अपनी अहमियत ऐसे ही बढ़ाता हूँ। मेरे कदमों के निशां पे है जो चलता उसे अपने हाथ पकड कर चलाता हूँ। मैं अपनी अहमियत ऐसे ही बढ़ाता हूँ। और मेरे कदमों के निशां पे जो ना चलता उसकी मंज़िलों कभी खामोश, कभी चिल्लाता हूँ। मैं अपनी अहमियत ऐसे ही बढ़ाता हूँ। मैं कौन हूँ? मैं मैं ही हूँ। लेकिन मैं-मैं न करो ऐसा दुनिया को बताता हूँ। मैं अपनी अहमियत ...
लगाई तुमसे प्रीत तो
गीत

लगाई तुमसे प्रीत तो

दामोदर विरमाल महू - इंदौर (मध्यप्रदेश) ******************** लगाई तुमसे प्रीत तो बदनाम हो गया। माना जो तुमको राधा तो मैं श्याम हो गया। हुई सुबह शुरू तो आफताब हो गया। जैसे ही दिखे तुम ये दिल गुलाब हो गया। २ करने लगा हूँ अबतो मैं बातें अजीब सी, लगता मेरा ये दिल तेरा गुलाम हो गया। लगाई तुमसे प्रीत तो... सुबह से शाम तेरा इंतज़ार हो गया। तुझको ही चाहूँ तेरा तलबगार हो गया। मेरा महक गया चमन आ जाने से तेरे, फूलों की तरह खिलके मैं गुलफाम हो गया। लगाई तुमसे प्रीत तो... आने लगा हूँ आजकल लोगो की नज़र में। मैं आधा हुआ जा रहा हूँ तेरी फिकर में। तूने तो कैद कर लिया मुझको तेरे दिल में, मेरे दिल मे यार तेरा भी मकाम हो गया। लगाई तुमसे प्रीत तो... चारो तरफ है चर्चा तेरे मेरे नाम का। था पहले अब नही रहा मैं कोई काम का। पहले जो मिला करते थे चुपके तो ठीक था, मगर ये किस्सा अबतो सरेआम हो गया। लगाई तुमस...
कोहरे की धुँध
कविता

कोहरे की धुँध

रंजना फतेपुरकर इंदौर (म.प्र.) ******************** कोहरे की धुँध में तुम्हारे अहसास नज़र आते हैं बदलते मौसम के खूबसूरत अंदाज़ नज़र आते हैं जरूरी नहीं हर बात होंठों से कही जाए झुकी पलकों में भी तो जज़बात नज़र आते हैं सांझ के सुनहरे रंग गुलाबों पर बिखरे नज़र आते हैं किनारे लहरों को ढूंढते नज़र आते हैं ज़रूरी नहीं रोज़ रोज़ आकर हमसे मिलो हम तो खुश हो लेते हैं जब आप हमारे ख्वाबों में नज़र आते हैं . परिचय :- नाम : रंजना फतेपुरकर शिक्षा : एम ए हिंदी साहित्य जन्म : २९ दिसंबर निवास : इंदौर (म.प्र.) प्रकाशित पुस्तकें ११ हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा हिन्दी रक्षक २०२० सम्मान सहित ४७ सम्मान पुरस्कार ३५ दूरदर्शन, आकाशवाणी इंदौर, चायना रेडियो, बीजिंग से रचनाएं प्रसारित देश की प्रतिष्ठित पत्र पत्रिकाओं में निरंतर रचनाएं प्रकाशित अध्यक्ष रंजन कलश, इंदौर  पूर्व उपाध्यक्ष वामा साहित्य...
कैसी ये होली
कविता

कैसी ये होली

चेतना ठाकुर चंपारण (बिहार) ******************** अब कहां मिलते कोकिल स्वर है। कौओ की हमजोली अब कहां राग कहा फाग कैसी ये होली ऐसा लगा जैसे आसमान से प्रीत की बूंद-बूंद बरसी हो तेरे छूने के संग। और मैं भीगी की धरती सी रंग गई तेरे रंग। जहां-जहां तू छुए ना जाए तेरा रंग ना सुगंध। आज मैंने भी भांग पी रखी है तेरे दो नैनो के प्यालो से। आज तेरा नशा सर चढ बोल रहा है। आज सारी दुनिया डोल रहा है। अपने जी का पोल खोल रहा है आज मैं झगड़ना चाहूं जी खोल के तुमसे भी बुलवाना चाहू तुम्हारे एहसास अपना बोल के तुम्हारे नजरों के नटखट से आजाद होने आई हूं। तुम्हें छूने की इजाजत आज मैं घर से लेकर आई हूं कहीं हो ना जाऊ बदनाम भी फिकराना छोड़ कर आई हूं। आज तेरे संग मे तेरे रंग में रंगनेआई हूँ । . परिचय :-  नाम - चेतना ठाकुर ग्राम - गंगापीपर जिला -पूर्वी चंपारण (बिहार) आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आद...
शिव आराधना
कविता

शिव आराधना

प्रवीण त्रिपाठी नोएडा ******************** शिव शंकर के श्री चरणों में, अपनी जगह बनाता चल। भाँग धतूरा बिल्वपत्र सँग, दधि घृत शहद चढ़ाता चल। पंचाक्षर को नित्य जाप ले, सुधरे यह जीवन सबका। नित्य आरती महादेव की, नित उनके गुण गाता चल। भक्ति भाव से नित शंकर का, सुबह शाम गुणगान करो। भजन हृदय से खुद भी भज कर, जग को संग सुनाता चल। भक्तों का कल्याण सदा शिव, दुष्टों का संहार करें। श्रद्धानत होकर मन ही मन में, धूनी नित्य रमाता चल। कैलाशी का ध्यान धरो नित, त्याग मोह-माया सारी। सांसारिक सुख डिगा न पायें, दिल से शपथ उठाता चल। दानी भोले शंकर जैसा, सकल सृष्टि में मिले नहीं। निर्मल छवि को हृदय बसा कर, शिव की अलख जगाता चल। आशुतोष सच्चे भक्तों को, देते हैं वरदान सदा। उपकारी बन सदा भक्ति से, सही राह अपनाता चल। . परिचय :- प्रवीण त्रिपाठी नोएडा आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर ...
सब छोड़ दिया
कविता

सब छोड़ दिया

अमरीश कुमार उपाध्याय रीवा म.प्र. ******************** एक नाम से नाता तोड़ लिया जो खास था उसको छोड़ दिया मै रहा अब अपने अपने में वो हमको कब का छोड़ दिया कुछ रात सुबह गुजरी ऐसे फिर एक सुबह सब छोड़ दिया अब जोश जुनून नया कुछ था चल नाम नया करते फिर से वो समझ रहा है सब मुझसे एक राह भी ना निकले जिससे है दर्द बहुत इस सागर में लहरों से मचलना छोड़ दिया जाना था सागर की गहराई में नदियों में भी जाना छोड़ दिया चिल्लाकर मै भी कहता था आवाज़ न अब निकली मुझसे . परिचय :- अमरीश कुमार उपाध्याय निवासी - रीवा म.प्र. पिता - श्री सुरेन्द्र प्रसाद उपाध्याय माता - श्रीमती चंद्रशीला उपाध्याय शिक्षा - एम. ए. हिंदी साहित्य, डी. सी. ए. कम्प्यूटर, पी.एच. डी. अध्ययनरत आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर ...
बिरह की पीड़ा
कविता

बिरह की पीड़ा

सरिता कटियार लखनऊ उत्तर प्रदेश ******************** किसी की नफरत ने शायर बना दिया किसी की चाहत ने शायर बना दिया किसी के शब्दों ने शायर बना दिया किसी के लफ़्ज़ों ने शायर बना दिया किसी की नज़रों ने शायर बना दिया किसी के अधरों ने शायर बना दिया किसी के मिलन ने शायर बना दिया सिसक और बिछुड़न ने शायर बना दिल की धड़कन में जिसको बसा लिया उसी की तड़प ने शायर बना दिया दिल जीतने की लगन ने शायर बना दिया दिल में बसने की ज़िद ने शायर बना दिया फेर के नज़रों से जो जख़्म बढ़ा दिया उसके इंतज़ार ने सरिता को शायर बना दिया . परिचय :-  सरिता कटियार  लखनऊ उत्तर प्रदेश आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाई...
संगीत व सरगम
मुक्तक

संगीत व सरगम

रशीद अहमद शेख 'रशीद' इंदौर म.प्र. ******************** हर दिशा मेंं राग है संगीत का। सृष्टि में अनुराग है संगीत का। हैं सभी क्रम-कार्यक्रम सरगम सहित, असंभव परित्याग है संगीत का। सुनें यदि ध्यान से हर ओर सुर की प्रीत गुंजित है! कहीं है पाठ कविता का, कहीं पर गीत गुंजित है! सकल संसार ही सरगम की सत्ता का समर्थक है अवनि से गगन तक संगीत ही संगीत गुंजित है! अज़ां हो, शंख हो, कोई इबादत या भजन-पूजन! निनादित घंटियाँ हों धर्मस्थल की कोई पावन! मुझे हर शब्द से संगीत की सौग़ात मिलती है, ॠचाओं का पठन हो या कहीं क़ुरआन का वाचन! जब सजनी को याद सताती है प्रिय की! उर पर वह तस्वीर सजाती है प्रिय की।! सरगम के हर स्वर में होता है 'प्रिय-प्रिय', बुलबुल भी गीतिका सुनाती हैं प्रिय की! वर पाया जब मनमोहन यदुवंशी से। हुए प्रसारित स्वर सुन्दर तब वंशी से। खड़ा रह गया साश्चर्य कानन में बांस, प्रकट हुई जब सरगम उसके...
तुम से सपूत के होने से
कविता

तुम से सपूत के होने से

अर्चना अनुपम जबलपुर मध्यप्रदेश ******************** समर्पित - क्रांतिवीर श्री चंद्रशेखर आज़ाद जी के बलिदान दिवस पर विनम्र अश्रुपूर्ण श्रद्धांजली। रस - वीर, करुण, भाव - देश भक्ति इस माटी की खुशबु का दीवाना था एक शोला था। शत्रु भी था चकित, सिंह वो कर गर्जन जब बोला था ।। मैं पैदा आज़ाद हुआ आज़ाद धरा से जाऊंगा। तुझमें है ताकत जितनी कर ज़ुल्म मैं ना घबराउंगा।। हूँ स्वतंत्रा का राही इस वसुंधरा का लाल हूँ। तेरे जैसे निसाचारों का साक्षात् ही काल हूँ।। बांध कफ़न आया सर पर हूँ। मौत का डर तू ना दिखला।। है जननी अवनि मेरी यह। इसका आँचल जो कुचला।। इसकी ही रक्षा की ख़ातिर। शीश कटाने आया हूँ।। तुझको तेरे हर कर्मों का। दंड दिलाने आया हूँ।। शान से बोला जय भारत। यूँ फिरंगियों को डरा दिया। मिटा गया निज हिन्द पे यौवन । कर्ज धरा का अदा किया।। है अफ़सोस मुझे इतना। वो कैसा भाग्य का फेरा था? अल्फ्रेड पार्क में ...
होली
कविता

होली

सुरेखा सुनील दत्त शर्मा बेगम बाग (मेरठ) ********************** होली है मस्त होली सब ने जो मिलकर खेली यारों की मस्त टोली खेली जो सबने होली। चढ़ा दो रंग तन पर सब झूम रहे संग में खाए जो भांग पकोड़े कहीं उड़ाई जा रही ठंडाई। होली मिलन है आया बढ़ गया भाईचारा मिटा कर द्वेष सारा खुमार चढ़ गया निराला। अबीर गुलाल लगाकर सब ने जो खेली होली यारों की मस्त टोली खेली जो सब ने होली।। . परिचय :-  सुरेखा "सुनील "दत्त शर्मा जन्मतिथि : ३१ अगस्त जन्म स्थान : मथुरा निवासी : बेगम बाग मेरठ साहित्य लेखन विधाएं : स्वतंत्र लेखन, कहानी, कविता, शायरी, उपन्यास प्रकाशित साहित्य : जिनमें कहानी और रचनाएं प्रकाशित हुई है :- पर्यावरण प्रहरी मेरठ, हिमालिनी नेपाल,हिंदी रक्षक मंच (hindirakshak.com) इंदौर, कवि कुंभ देहरादून, सौरभ मेरठ, काव्य तरंगिणी मुंबई, दैनिक जागरण अखबार, अमर उजाला अखबार, सौराष्ट्र भारत न्यूज़ पेप...
लेखनी हाथों में लेकर
कविता

लेखनी हाथों में लेकर

विनोद सिंह गुर्जर महू (इंदौर) ******************** लेखनी हाथों में लेकर, यूँ डगर में मत रुको। वरदान कवि का है मिला मत डरो मत तुम झुको।। भावनाओँ के भंवर में डूब शब्दों को चुनो। कवि हो तो कुछ शर्म से, कुछ धर्म से कुछ तो लिखो।। गद्य में या पद्य में, गीत में संगीत में तुम अंधेरे में रहो, और उजालों से कहो।। तम हटा ..प्रकाश भर, रवि जरा आकाश पर।। रश्मियाँ फिर झूमकर। लेखनी को चूमकर। स्वागत करें। तुझसे कहें। कवि मत दिखो। पर कुछ लिखो।। मावस गहन कालिख रहे, निशा कराहे और सहे। कवि उठाना कलम अपनी, चीरना अंधकार को, विभा पारावार को।। चांदनी बिखेर देना, लाना चंद्रक हार को। पूर्णिमा खिल उठे, नीर सागर हिल उठे।। पुरबा बहे। हंसकर कहे। कवि मत दिखो। पर कुछ लिखो।। . परिचय :-   विनोद सिंह गुर्जर आर्मी महू में सेवारत होकर साहित्य...
माँ की महिमा
मुक्तक

माँ की महिमा

रशीद अहमद शेख 'रशीद' इंदौर म.प्र. ******************** जगतजननि कहलाती माता! सबसे बढ़कर उसका नाता! कौन नहीं उसका ॠणदाता, कौन नहीं उसके गुण गाता! बन गया है माँ का आँचल सर पे साया धूप में! सुरक्षित शरणार्थी है सुत की काया धूप में! शीश लज्जावश झुकाया भास्कर ने शून्य में , देखता वह रह गया ममता की माया धूप में! कहीं भी देखिए माँ का दुलार है अनमोल! ममत्व क़ीमती है उसका प्यार है अनमोल! दुआएं उसकी हों कोई या हो कोई आशीष, हर एक भाव है शुभ हर विचार है अनमोल! दुखों की धूप में शीतल बयार मेरी माँ! विपत्तियों की उमसती में फुहार मेरी माँ! मैं जब कभी हताश या निराश होता हूँ, प्रदान करती है आशा अपार मेरी माँ! सुत न ममता से दूर होता है! माँ के नयनों का नूर होता है! सांवरा पुत्र भी जननी के लिए , क़ीमती कोहेनूर होता है! . परिचय -  रशीद अहमद शेख 'रशीद' साहित्यिक उपनाम ~ ‘रशीद’ ...
पत्नी से बेतकल्लुफ दोस्ती
कविता, व्यंग्य

पत्नी से बेतकल्लुफ दोस्ती

डाॅ. हीरा इन्दौरी इंदौर म.प्र. ******************** ।।हजल।। करी पत्नी से भी यूँ बेतकल्लुफ दोस्ती मैंने। कहा उसने गधा मुझको कहा उसको गधी मैंने।। बहुत बेले हैं पापङ तेरी खातिर जिंदगी मैंने। कभी लेने गया तेल और कभी बेचा है घी मैने।। सरे बाजार चप्पल लात जूते से हुआ स्वागत। समझकर हिजँङा महिला की सारी खेंच ली मैंने।। तेरे गम में बढाकर मूँछ दाढी कुछ ही दिन पहले। बना रक्खा था अपने आपको सरदारजी मैने।। कभी खाना पकाता हूँ कभी बच्चे खिलाता हूँ। क्लर्की उसने पाई घर में कर ली नौकरी मैने।। मेरा पैसा तुम्हारा रूप अक्सर काम आया है। रकीबों को जलाया है कभी तुमने कभी मैंने।। रफीकों की तरह पेश आता है अपने रकीबों से। नहीं देखा कहीं "हीरा" के जैसा आदमी मैने।। . परिचय :-  डाॅ. राधेश्याम गोयल, प्रचलित नाम डाॅ. "हीरा" इन्दौरी  जन्म दिनांक : २९ - ८ - १९४८ शिक्षा : आयुर्वेद...
मेरा भारत
कविता

मेरा भारत

मित्रा शर्मा महू - इंदौर ******************** यह कैसी रीत चली है खून बहाना, भाईचारा भूलकर दुश्मनी निभाना। चहुं ओर अंधियारा फरेब की राह पर देश की गरिमा को रखकर ताक पर। जिस राधा का लहंगा सलमा ने सिला था चांद तारे भरे गोट चुनरी में जड़ा थी। बेरंग हो गया हलकी धूप की आंच पर प्रेम भावना सदाचार लगी सब दांव पर। त्रासदी और भयावह अमानवीय काम से राजनैतिक वैमनस्यता धर्म के नाम से। . परिचय :- मित्रा शर्मा - महू (मूल निवासी नेपाल) आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमेंhindirakshak17@gmail.comपर अणु डाक (मेल) कीजिये, अणु डाक करने के बाद हमे हमारे नंबर ९८२७३...
याज्ञसेनी १
कविता

याज्ञसेनी १

मिथिलेश कुमार मिश्र 'दर्द' मुज्जफरपुर ******************** बोलो, आखिर कब तक सहते? थक गये थे कहते-कहते। विश्व बिरादरी मान रही थी। तुमने किया है, जान रही थी। किसके बल तुम तने हुए थे? क्यों यों भोले बने हुए थे? रोना है, तुझको रोना है। तेरे किए न कुछ होना है। प्रतिशोध की ज्वाला में हम कबतक दहते रहते- बोलो, आखिर कबतक सहते? सोचो, अब तुम कहाँ खड़े हो? चारो खाने चित्त पड़े हो। करनी का फल भोग रहे हो। दो-दो युद्ध की हार सहे हो। रे मूर्ख, मूर्खता छोड़ो अब तो। रे दुष्ट, दुष्टता छोड़ो अब तो। वीरों की है हुई शहादत, मौन भला हम कबतक रहते- बोलो, आखिर कबतक सहते? . परिचय :- मिथिलेश कुमार मिश्र 'दर्द' पिता - रामनन्दन मिश्र जन्म - ०२ जनवरी १९६० छतियाना जहानाबाद (बिहार) निवास - मुज्जफरपुर शिक्षा - एम.एस.सी. (गणित), बी.एड., एल.एल.बी. उपलब्धियां - कवि एवं कथा सम्मेलन में भागीदारी पत्र-पत्रिकाओं में रचनाओं का प...
आरक्षी
कविता

आरक्षी

धैर्यशील येवले इंदौर (म.प्र.) ******************** आरक्षी प्रखण्ड में कार्य करती है सिर्फ देह। प्राणवायु का संचालन जिसमे पूर्णतः बन्द हो चुका है ऐसी देह। भावना, विचारों, इच्छाओं से शून्य देह। जो जैसा चाहे वैसा व्यवहार कर सकता है उसके साथ कोई प्रतिक्रिया नही देती ये देह। सबलता के भ्रामक आवरण से ढकी निर्बल देह। ग्रीष्म में सूखती बारिश में भीगती शरद में ठिठुरती चौराहे चौराहे दिन रात खड़ी देह। देश भक्ति जन सेवा खल दलन योग क्षेम जैसे नियमित कर्मो को निष्काम भाव से सम्पन्न करती देह। पर सुखों में प्रसन्न होती अपने दुःखो को छुपाती देह। लाख त्रुटियां जन जन की परिलक्षित परिभाषित नही, कर्तव्य की बलिवेदी पर शीश अपना चढ़ाती देह। . परिचय :- नाम : धैर्यशील येवले जन्म : ३१ अगस्त १९६३ शिक्षा : एम कॉम सेवासदन महाविद्याल बुरहानपुर म....
मन की पीर
कविता

मन की पीर

मनोरमा जोशी इंदौर म.प्र. ******************** आज मे किसको सुनाऊँ, व्यथित मन की पीर। नयन अपलक जागते हैं, बहुरि भरते नीर। वेदना के शूल चुभते, मन पटल पर भाव भरते, कोन जो आकुल हर्दय को, आ बँधावे धीर ,बहुरि भरते नीर। याद मुझको हैं सताती, विरह की ज्वाला जलाती, कब मिलन कैसे मिलन हो, श्वास श्वास अधीर, दूर बसते प्रिय हमारे, मन पखेरु जारे जारे, सरस प्रिय के बिना, अब एक पल गंभीर, बहुरि भरते नीर। . . परिचय :-  श्रीमती मनोरमा जोशी का निवास मध्यप्रदेश के इंदौर में है। आपका साहित्यिक उपनाम ‘मनु’ है। आपकी जन्मतिथि १९ दिसम्बर १९५३ और जन्मस्थान नरसिंहगढ़ है। शिक्षा - स्नातकोत्तर और संगीत है। कार्यक्षेत्र - सामाजिक क्षेत्र-इन्दौर शहर ही है। लेखन विधा में कविता और लेख लिखती हैं। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में आपकी लेखनी का प्रकाशन होता रहा है। राष्ट्रीय कीर...
तुम्हे गर भूलना चाहूं
ग़ज़ल

तुम्हे गर भूलना चाहूं

दामोदर विरमाल महू - इंदौर (मध्यप्रदेश) ******************** तुम्हे गर भूलना चाहे तो अक्सर याद आते हो। हमे गर चोट लगती है तो क्यों आंसू बहाते हो। तुम्ही ने की है गर ये हंसी ज़िन्दगी मेरी बर्बाद, फिर क्यों मुझपे ये बदनुमा इल्ज़ाम लगाते हो। हम तो किया करते थे कोशिशें तुम्हे हंसाने की, तुम हो ज़ालिम जो मुझे हर एक पल रुलाते हो। तुमसे बिछड़े हुए कितने बरस बीत गए देखो, फिर क्यों तुम मुझे अपने ही पास... बुलाते हो। जब बचा ही नही कुछ तेरे और मेरे दरमियान, तो क्यों गैरो से अक्सर मेरी खैरियत मंगाते हो। बहुत देर की अपने आपको साबित करने की, अब फ़िज़ूल में क्यों इतना झूठा प्यार जताते हो। बुरे तुम नही थे बुरा तो दिल है तुम्हारा शायद, क्यों अपने अंदर तुम ये सब देख नही पाते हो। हम अंजान नही है तुम्हारी ज़िंदगी से समझे, पता है तुम अब भी औरों से दिल लगाते हो। . प...
हृदय प्रफुल्लित
कविता

हृदय प्रफुल्लित

शरद सिंह "शरद" लखनऊ ******************** मदहोशी का आलम ऐसा खिल गये पुष्प अन्तस्तल में, नृत्य करे यह मन मयूर कोयल की कून्क मरुस्थल में। पुष्पित हो महका हर कोना, झूम उठा मेरा तन मन, आज प्रफुल्लित रोम रोम होगा प्रियवर से मधुर मिलन। अब नहीं कलुष मन में कोई, हर पल मुस्कायें होंठ मगन, झूम झूम नाचें इत उत, बाजे पायल रुनझुन-रुनझुन। . परिचय :- बरेली के साधारण परिवार मे जन्मी शरद सिंह के पिता पेशे से डाॅक्टर थे आपने व्यक्तिगत रूप से एम.ए.की डिग्री हासिल की आपकी बचपन से साहित्य मे रुचि रही व बाल्यावस्था में ही कलम चलने लगी थी। प्रतिष्ठा फिल्म्स एन्ड मीडिया ने "मेरी स्मृतियां" नामक आपकी एक पुस्तक प्रकाशित की है। आप वर्तमान में लखनऊ में निवास करती है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प...
माँ कंकाली स्तुती
कविता

माँ कंकाली स्तुती

ओमप्रकाश सिंह चंपारण (बिहार) ******************** तापा सेमरौन गढ़ में विराजत तू माँ महामाया कंकाली- ध्यावत तुमको निश दिन नेपाल-भारत के वासी सदियो से माँ पूजित-सिद्धयोगी बाबा मंशा राम की हरछन जलती धुनी। जय माँ कंकाली जय माँ कंकाली दुखियो की दुख हारती माँ तू सुख शांति की दाती। जय माँ काली कंकाली। ऋषि मुनि से तू पूजित धन वैभव की दाती। तापा सेमरौन गढ़ में विराजत तू सुख शांति की दाती। सत्रु मर्दन करती छन में सेवक को हो हर्षाती। पुत्र हीन को तू पुत्र देती हो हरदम तू मदमाती उच्च सिघासन पर विराजत हरछन घंटा नद घहराती जय माँ काली कंकाली भक्त जन जब तुम को देखे सारा संकट टर जाती जय माँ काली कंकाली बड़े बड़े साधक का माँ तू सिद्ध साधन कर जाती अनुभव स्वयं साधक को होती जब तेरी किरिपा ही जाती जय माँ काली कंकाली। सदियो से तू माँ विराजत औघड़ सिद्घ बाबा मंशा राम थे वा...
अब जाने दो मुझको
कविता

अब जाने दो मुझको

आशीष तिवारी "निर्मल" रीवा मध्यप्रदेश ******************** तुम पर जो शेष है वही उधार हो गया हूँ मैं चुकाकर तेरा मोल कर्जदार हो गया हूँ मैं। नही समझी तू मुझे किसी लायक भले ही एक तेरा ही तो दारोमदार हो गया हूँ मैं। मर चुके हैं दिल में पनपे सारे ही जज्बात ना तो गुल और ना ही खार हो गया हूँ मैं। आता नही था मुझे कभी यूँ शायरी का फ़न तू देख बड़े शायरों में शुमार हो गया हूँ मैं। केवल सच के बुनियाद पर टिका हुआ हूँ मैं तू मानती है झूठ का करोबार हो गया हूँ मैं। जाने दे मुझे,तू अब खुद से दूर रोकना मत किसी का सच्चा वाला प्यार हो गया हूँ मैं।   परिचय :- कवि आशीष तिवारी निर्मल का जन्म मध्य प्रदेश के रीवा जिले के लालगांव कस्बे में सितंबर १९९० में हुआ। बचपन से ही ठहाके लगवा देने की सरल शैली व हिंदी और लोकभाषा बघेली पर लेखन करने की प्रबल इच्छाशक्ति ने आपको अल्प सम...