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पद्य

गजब मिठाते अऊ गजब सुहाते
आंचलिक बोली, लघुकथा

गजब मिठाते अऊ गजब सुहाते

खुमान सिंह भाट रमतरा, बालोद, (छत्तीसगढ़) ******************** एक दिन के बात आय समारू घर म कोनो नई राहय घर के जम्मो लईका सियान हर अपन ममा घर घुमे बर चल देते। फेर क घर ह पुरा सुन्ना होगे समारु जईसे तईसे दिन भर बिताए के बाद म संझा के बेरा होगे, तब समारू हर नंग्गत के अघाए भुखाय घलो रथे कबार कि बहिनिया कुन बोरे बासी भर ल खाय रथे। समारु लकर धकर हाडी कुरिया म जईसे मुच्चा ल उठआईस त पाते कि कुरवी म एको कन अन्न के दाना नई राहय। ये सब ल देख समारु भुख पियास म तरमिर-तरमिर करे लागिस फेर क करय गघरा म पानी भराय राहय समारू गघरा ले लोटा भर पानी निकाल सांस भर के पीये लागिस, अईसे-तईसे करके समारू कुछ समय बिता डरिस। फेर वोहर रोज अन्न के दाना खाय बिना वोला नींद घलो नई आवय समारू हाडी कुरिया म जेवन बनाय बर भीड़ जथे जइसे आगी सपचाय बर छेना लकड़ी ल देखते त सबे हर सिरा गे रईथे। ये सब ल देखत समारू के मति फेर छरिया ज...
जल जीवन का आधार
कविता

जल जीवन का आधार

गोविन्द सरावत मीणा "गोविमी" बमोरी, गुना (मध्यप्रदेश) ******************** करें सुरक्षित बूंद-बूंद जल, है जीवन का एक आधार।। धधक उठेगी पावक चहुंदिश, धरणी जाएगी हो वीरान। नही करेंगे खग-मृग विचरण नही होंगे सौम्य-सुरभित मैदान। नही होंगे जन-जंगल-जीवन, क्षिति-क्षितिज व घर-द्वार। करें सुरक्षित बूंद-बून्द जल, है जीवन का एक आधार।। थम जाएंगी लहरें सिंधु की, जायेंगे तट नदियों के सूख। डावर-खाई ज्वाला उगलेंगे निर्झरी कंठ जाएंगे हो मूक। छम-छम पावसी-पायल की, मिट जाएगी सरस् झंकार। करें सुरक्षित बून्द-बून्द जल, है जीवन का एक आधार।। नही खिलेंगे गुल गुलशन में मधुवन नीरस हो जायेगा। कहो! कृष्ण किस कदम, बैठ मुरली सुमधुर फिर बजायेगा। मिट जाएगी सभ्यता-संस्कृति, बच न पायेंगे सु-संस्कार। करें सुरक्षित बून्द-बून्द जल, है जीवन का एक आधार।। स्वर्ण-रजत से हिंम बिन्दु नई प्रातः...
चौसर की यह चाल नहीं
गीत

चौसर की यह चाल नहीं

मीना भट्ट "सिद्धार्थ" जबलपुर (मध्य प्रदेश) ******************** चौसर की यह चाल नहीं है, नहीं रकम के दाँव। अपनापन है घर-आँगन में, लगे मनोहर गाँव।। खेलें बच्चे गिल्ली डंडे, चलती रहे गुलेल। भेदभाव का नहीं प्रदूषण, चले मेल की रेल।। मित्र सुदामा जैसे मिलते, हो यदि उत्तम ठाँव। जीवित हैं संस्कार अभी तक, रिश्तों का है मान। वृद्धाश्रम का नाम नहीं है यही निराली शान।। मानवता से हृदय भरा है, नहीं लोभ की काँव। घर-घर बिजली पानी देखो, हरिक दिवस त्योहार। कूके कोयल अमराई में, बजता प्रेम सितार।। कर्मों की गीता हैं पढ़ते, गहे सत्य की छाँव। परिचय :- मीना भट्ट "सिद्धार्थ" निवासी : जबलपुर (मध्य प्रदेश) पति : पुरुषोत्तम भट्ट माता : स्व. सुमित्रा पाठक पिता : स्व. हरि मोहन पाठक पुत्र : सौरभ भट्ट पुत्र वधू : डॉ. प्रीति भट्ट पौत्री : निहिरा, नैनिका सम्प्रत...
गौरैया की वाणी
कविता

गौरैया की वाणी

श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी लखनऊ (उत्तर प्रदेश) ******************** सोचती हूँ स्वयं के अस्तित्वहीन होने के पहले अपना परिचय याद दिला दूँ इसी बहाने मानव की संवेदनहीनता का परिचय दे दूँ इस स्मृति दिवस पर सबकी यादों को ताजा कर सकूं सबको बता सकूं, कभी हर घर के मुंडेर और झुरमुट में होता था घोंसला हम नन्ही परियो का फुदकते-चहचहाहते कभी इत आंगन कभी उत आँगन छोटा सा अपना जीवन गुहार लगाती, कराहती नष्ट होती जा रही हैं हम गौरैया ज्ञान विज्ञान ने ऐसा हाहाकार मचाया सुख रहे नदी गाँव और ताल बसेरा होता था हरी-भरी वृक्षों की डालियाँ, छज्जा बनती थी टहनियां, कभी किसी रोशनदान, कभी किसी आँगन में झूमा करती थी हम सब अनवरत विकास ने उजाड़ दिए वो हरियाली वो घर आंगन, कहां जाए दाना चुगने, संग अपने सखी सहेलियों के फुदकने, हम सब तो हैं पर्यावरण की सहेलियाँ घरों की शुभ ल...
नदियों की परिभाषा
कविता

नदियों की परिभाषा

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ******************** नदियों का अमृत घुला नीर कर देता मन को अमर नदियों की परिभाषा आती है समझ डुबकी लगाने आचमन करने से। देव, साधु संतों श्रद्धालुओं से बन जाती नदी स्वर्ग हो जाते शीश नतमस्तक और दुर्लभ दर्शन हो जाते सरल नदियाँ पूजनीय जिसमें स्नान से हो जाते लोग अमर। परिचय : संजय वर्मा "दॄष्टि" पिता : श्री शांतीलालजी वर्मा जन्म तिथि : २ मई १९६२ (उज्जैन) शिक्षा : आय टी आय निवासी : मनावर, धार (मध्य प्रदेश) व्यवसाय : ड़ी एम (जल संसाधन विभाग) प्रकाशन : देश-विदेश की विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएँ व समाचार पत्रों में निरंतर पत्र और रचनाओं का प्रकाशन, प्रकाशित काव्य कृति "दरवाजे पर दस्तक", खट्टे मीठे रिश्ते उपन्यास कनाडा-अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर विश्व के ६५ रचनाकारों में लेखनीयता में सहभागिता सम्मान : हिंदी रक्षक राष्ट्रीय सम्मा...
घबराहट क्यों …?
कविता

घबराहट क्यों …?

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** माना कि हम दुनिया में जीने आए हैं, जिंदगी का हर रस पीने आए हैं, पर हम भूल क्यों जाते हैं, कि हर परीक्षा, हर तकलीफ, हमें मजबूत करने आते हैं, बिना संघर्ष का जीवन हम कैसे सम्पूर्ण मान लें, खुशियों को ही जीवन का हिस्सा क्यों जान लें, संघर्षों से लड़ना, पल पल भिड़ना, और फतह हासिल कर एक कदम आगे बढ़ना, यही तो हमारे जीवटता का प्रतीक है, मौत की ओर बढ़ते जीवन का हर कदम होता ही सटीक है, फिर जीवन के विभिन्न पायदानों से हम रह रह घबराएं क्यों, इसे अपनी मंजिल की सीढ़ी कैसे और किस कारण न बनाएं क्यों, पानी में उतर कर यदि वे घबराते, फिर कैसे वो गोताखोर कहलाते, अदम्य साहस और शक्ति ही हमें सफल बनाते हैं, तभी तो ये जज्बा हमें काफी आगे तक लेके जाते हैं, घबराहट सिर्फ ठिठकाता है, पर इरादे खत्म नह...
मैं एक सिपाही हूं
कविता

मैं एक सिपाही हूं

शिवदत्त डोंगरे पुनासा जिला खंडवा (मध्य प्रदेश) ******************* मैं एक सिपाही हूं सिपाही जो जीता है देश के लिए, सिपाही जो मरता है देश के लिए, सिपाही फिर भी गुमनाम हैं। मैं एक सिपाही हूं सिपाही जो एक शिक्षा हैं, सिपाही जो एक प्रेरणा हैं, देश पर न्यौछावर होने के लिए, फिर भी उसे स्थान नहीं मिलता दिलों में, इतिहास के पन्नों में भी सिपाही का नाम नहीं, रंगीन हो जीवन में ऐसी कोई शाम नहीं। मैं एक सिपाही हूं मेरा नाम मिलेगा सरहद पर दूर कहीं रेगिस्तानों में, पहाड़ों में, बर्फीले तूफानों में, अनजानी सी बारुद गोली में, और मिलेगा नाम देश के सुनहरे भविष्य की नींव में, फिर भी सिपाही गुमनाम हैं ... मैं एक सिपाही हूं जिसकी कल तक जय-जयकार थी, तब देश को मेरी जरूरत थी, आज मुझे भुला दिया है, जब मुझे देश की जरूरत है, कल तक कंधों पर मेरे देश की सुरक्षा का भार...
मेरा भारत महान
गीत

मेरा भारत महान

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** चंद्रयान पहुँचा चंदा पर, तीन रंग फहराये। शान बढ़ी, सम्मान बढ़ गया, हम सारे हर्षाये।। ज़ीरो को खोजा था हमने, आर्यभट्ट पहुँचाया। छोड़ मिसाइल शक्ति बने हम, सबका मन लहराया।। सबने मिल जयनाद गुँजाया, जन-गण-मन सब गाये। शान बढ़ी, सम्मान बढ़ गया, हम सारे हर्षाये।। मैं महान हूँ, कह सकते हम, हमने यश को पाया। एक महागौरव हाथों में, आज हमारे आया।। जिनको नहीं सुहाते थे हम, उनको हम हैं भाये। शान बढ़ी, सम्मान बढ़ गया, हम सारे हर्षाये।। जो कहते थे वे महान हैं, उनको धता बताया। भारत गुरु है दुनिया भर का, यह हमने जतलाया।। शान तिरंगा-आन तिरंगा, गीत लबों पर आये। शान बढ़ी, सम्मान बढ़ गया, हम सारे हर्षाये।। अंधकार में किया उजाला, ताक़त को बतलाया। जो समझे थे हमको दुर्बल, उन पर भय है आया।। जोश लिये हर जन उल्लासित, हम हर दिल...
गीत प्यार के गाने वाले
कविता

गीत प्यार के गाने वाले

रमाकान्त चौधरी लखीमपुर खीरी (उत्तर प्रदेश) ******************** गीत प्यार के गाने वाले प्यार पे जान लुटाने वाले जाकर क्यों न आते हैं। रह जाती हैं बातें उनकी रह जाती हैं यादें उनकी साथ बिताए मीठे पल और आँखों में खारा जल। कुछ सपने अंजाने से कुछ जाने पहचाने से आँखों को स्वप्न दिखाने वाले सपने सच कर जाने वाले जाकर क्यों न आते हैं। हाथ से निकले जैसे पल यादें भी हो जाती ओझल हृदय प्रश्नों के घेरे में मिलता नही कोई भी हल। उलझ के बस रह जाता मन लगता सब नीरस यौवन प्रश्नों को सुलझाने वाले सच्ची राह दिखाने वाले जाकर क्यों न आते हैं। लगता कोई खता हो जैसे जीना एक सजा हो जैसे एकाकीपन साथ में होना रब की कोई रजा हो जैसे अधरों पर मुस्कान नही है खुद की भी पहचान नही है रोते दिल को हँसाने वाले गम को दूर भगाने वाले जाकर क्यों न आते हैं। पेड़ों के सूखे पत्ते स...
जीवन अनंत संघर्ष हुआ
कविता

जीवन अनंत संघर्ष हुआ

लक्ष्मीनारायण धिरहे हसौद, जिला सक्ति, (छत्तीसगढ़) ******************** कभी चंचल ये तन हुआ, कभी विचलित ये मन हुआ ... कभी निराशा सा गट्ठर लिए, कभी हर्ष का संगम लिए.. ये जीवन अनंत संघर्ष हुआ ... कभी आंखों में अश्रु सा छलका, कभी दुख में कभी सुख में झलका, आंखों में ये असार लिए, ये जीवन अनंत संघर्ष हुआ ... कभी पहाड़ों सा चलना हुआ, कभी ढलानों सा उतरना हुआ ... चल रही ज़िंदगी, यही कश्मकश लिए, ये जीवन अनंत संघर्ष हुआ ... कभी बढ़ना हुआ, कभी रुकना हुआ, गिर कर उठना, उठ कर चलना हुआ.. न रुकने, न झुकने का आव्हान लिए , ये जीवन अनंत संघर्ष हुआ ... कभी इनकार हुआ, कभी स्वीकार हुआ कभी बना काम का, कभी बेकार हुआ.. साहस, धैर्य का प्रमाण लिए, फिर मन में ये नित प्राण लिए, ये जीवन अनंत संघर्ष हुआ ... परिचय :- लक्ष्मीनारायण धिरहे छात्र : दिल्ली विश्वविद्यालय निवासी : हसौद,...
आपका उड़ेला जहर
कविता

आपका उड़ेला जहर

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** हां भरा है जहर मेरे मन मस्तिष्क में, पर इसे उड़ेलने वाला, भरने वाला कौन है? वो आप हैं, आपकी मत्वाकांक्षाएँ है, आपके सत्ता प्राप्ति की ललक है, खुद आप दिखला चुके झलक हैं, आपकी बातों में आकर मेरा हितैषी पड़ोसी मुझे खटकता है, मेरा जमीर, मेरी इंसानियत पता नहीं कहां कहां भटकता है, कल तक थे हम भाई-भाई, तूने ही हमारी खुशियों में आग लगायी, आपके भड़काने से आपको लाभ हुआ जबरदस्त, पर मैं बुरी तरह हारा हुआ महसूस कर हो गया हूं पस्त, आज जान पाया कि एकमात्र सत्ता की है आपको भूख, मगर समता,बंधुत्व और मानवता वाली आपकी सारी तंत्रिकाएं गयी है सूख, प्रकृति आपको हुनर बांटे, कहीं आपका उड़ेला जहर आप ही को न काटे। परिचय :-  राजेन्द्र लाहिरी निवासी : पामगढ़ (छत्तीसगढ़) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणि...
बिखरे ना परिवार हमारा
कविता

बिखरे ना परिवार हमारा

अंकुर सिंह चंदवक, जौनपुर, (उत्तर प्रदेश) ******************** भैया न्याय की बातें कर लो, सार्थक पहल इक रख लो। एक मां की हम दो औलादें, निज अनुज पे रहम कर दो।। हो रहा परिवार की किरकिरी, गली, नुक्कड़ और बाजारों में। न्यायपूर्ण आपसी संवाद छोड़, अर्जी दिए कोर्ट कचरी थानों में।। लिप्सा रहित हो सभा हमारी, निष्पक्ष पूर्ण हो संवाद हमारा। मैं कहूं तुम सुनों तुम कहो मैं, ताकि खत्म हो विवाद हमारा ।। कर किनारा धन दौलत को, भाई बन कुछ पल बात करों। मां जैसे देती रोटी दो भागों में, मिलकर उस पल को याद करों।। बिन मां बाप का अनुज तुम्हारा, मां बाप बनके आज न्याय करों।। हर लबों पे अपनी खानाफूसी, बैरी कर रहे अपनी जासूसी। भैया, गर्भ एक लहू एक हमारा, कंधों पे झूलने वाला मैं दुलारा। आओ मिलकर रोक दे दूरियां, ताकि बिखरे ना परिवार हमारा।। ताकि बिखरे ना.......... ।। परिचय : अंकुर...
होली के संतरंगी रंग
कविता

होली के संतरंगी रंग

किरण पोरवाल सांवेर रोड उज्जैन (मध्य प्रदेश) ******************** होली में हो ली, कौन किसके साथ हो ली, सास ससुर के साथ हो ली, जेठानी जेठ के साथ हो ली, नंदन नंदोई के साथ हो ली, भाभी-भैया के साथ हो ली देवर देवरानी के साथ हो ली, और बाकी जिसका मन पड़ा वह उसके साथ हो ली, बचे हम दोनों हम महाकाल की गैर देखने इनके साथ हो ली मिल गए सब महाकाल की गैर में, खुली पोल सबकी, कौन किसके साथ होली में हो ली, कोई ठंडाई कोई भांग कोई रगड़ा कोई गोली , होली में गोली और गोली में हो ली, आया नशा होली के रंगों में महाकाल की टोली। परिचय : किरण पोरवाल पति : विजय पोरवाल निवासी : सांवेर रोड उज्जैन (मध्य प्रदेश) शिक्षा : बी.कॉम इन कॉमर्स व्यवसाय : बिजनेस वूमेन विशिष्ट उपलब्धियां : १. अंतर्राष्ट्रीय साहित्य मित्र मंडल जबलपुर से सम्मानित २. अंतर्राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना उज्...
प्रकृति ने खेली होली
कविता

प्रकृति ने खेली होली

मालती खलतकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** मां धरा से होली खेलने की प्रकृति ने ठानी मौन-मौन में सब पुष्पों ने दी अपनी हामी भुवन भास्कर ने चिश्रित रंगीन पुष्पों को रचा थरा पर इन पुष्पों ने मां धरा से होली खेलने की ठानी। फूलों का राजा गुलाब कहे मैं पिचकारी बन जाऊं केली, कामिनी, केतकी तुम रचो शुभ्र रंग। चम्पा तुम अपने चारों रंगों से बनों गहरे पीला केवड़ा, शेवन्ती, गेन्दा की सुगन्ध प्यारी-प्यारी पुष्प चांदनी, चांदनी बिखेरें, हो पूर्णिमा न्यारी। बोले बीच में अमलतास, टेसू पुष्प बिछाकर, मां थरा का आंगन सजाऊं पीली-पीली सरसों बोली में क्यों पीछे रह जाऊं पांखी बोली पुष्प रस से मैं मां को नहलाऊं रानी मक्षिका कहे मैं शहद से माँ का अभिषेक करु। मोगरा, चमेली, जुही बोली, हार बन माँ का स्वागत करु गेहूं की बाली बोलीं सुनहरा रंग में लाई आमृ मोहर की उठ...
हे राम मेरे
स्तुति

हे राम मेरे

प्रतिभा दुबे "आशी" ग्वालियर (मध्य प्रदेश) ******************** हे राम मेरे तुम्हें धन्य कहूं, या तेरी भक्ति की प्रशंसा कहूं।। मैं नर हूं तुम नारायण हो, में दास हूं तुम हो प्रभु मेरे हे नाथ सकल संपदा सभी, हे भगवान तुम्हारे चरणों में।। जब जब नाम लेती हूं मैं प्रभु स्मरण तब करती हूं भक्ति में तेरे हैं सच्चा धन राम नाम का मनका जपती हूं।। है कठिन समय यदि जीवन में, तो सरल राम का नाम भी है क्यों तड़प उठाइए मानव मन हां जब जाना राम के धाम ही है।। परिचय :-  श्रीमती प्रतिभा दुबे "आशी" (स्वतंत्र लेखिका) निवासी : ग्वालियर (मध्य प्रदेश) उद्घोषणा : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छा...
नीम की महक
कविता

नीम की महक

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ******************** फूलों से लदे हरे-भरे नीम की महक दे जाती है मन को सुकून भले ही नीम कड़वा हो। पेड़ पर आई जवानी चिलचिलाती धूप से कभी ढलती नहीं बल्कि खिल जाती है लगता, जेसे नीम ने बांध रखा हो सेहरा। पक्षी कलरव करते पेड़ पर ठंडी छाँव तले राहगीर लेते एक पल के लिए ठहराव लगता जेसे प्रतीक्षालय हो नीम। निरोगी काया के लिए इन्सान क्यों नहीं जाता नीम की शरण बेखबर नीम तो प्रतीक्षा कर रहा निबोलियों के आने की उसे तो देना है पक्षियों को कच्ची-कडवी, पक्की मीठी निबोलियों का उपहार। परिचय : संजय वर्मा "दॄष्टि" पिता : श्री शांतीलालजी वर्मा जन्म तिथि : २ मई १९६२ (उज्जैन) शिक्षा : आय टी आय निवासी : मनावर, धार (मध्य प्रदेश) व्यवसाय : ड़ी एम (जल संसाधन विभाग) प्रकाशन : देश-विदेश की विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएँ व समाचार पत्रों...
तेरा अहसास …
कविता

तेरा अहसास …

डॉ. प्रताप मोहन "भारतीय" ओमेक्स पार्क- वुड-बद्दी ******************** दूर होकर भी जो तुम्हारे पास होने का कराता है आभास वही कहलाता हैं अहसास। ******* जब भी मुझे तुम्हारे पास होने का एहसास होता है वह पल मेरे लिए बहुत खास होता है। ******* अहसास से हमें मानसिक बल मिलता है। उसी के आशा से सुनहरा कल मिलता है । ******* अहसास खत्म होने से रिश्ता खत्म हो जाता है क्योंकि बंधन रिश्तों का नहीं बल्कि अहसास का होता है। ******* दूर रहकर भी तेरा अहसास होता है। तू सामने नही पर हर ख्वाब में साथ होता है। ******* अहसास आशा उम्मीद जगाये रखता है। दूर होकर भी प्रियतम को पास बनाए रखता है। ******* जीने के लिये जैसे जरूरी है सांस। वैसे ही जरूरी है हर वक्त तेरा अहसास। परिचय : डॉ. प्रताप मोहन "भारतीय" निवासी : चिनार-२ ओमेक्स पार्क- वुड-बद्दी घोषणा : मैं यह शपथ पूर्वक घोषणा क...
दादा-दादी की गौरैया
कविता

दादा-दादी की गौरैया

मनस्वी कमलेशभाई पटेल श्यामनगर, अरवल्ली (गुजरात) ******************** सूबह को पूरी चाँच से पकड़ी चिड़िया चीं चीं गाएँ, पेड़-पेड़ पर सूरज बैठे चम्-चम् चम्-चम् होय, चिड़िया चीं चीं चीं चीं गाएँ चिड़िया चक्-चक् करती जाएँ। सूबह को पूरी … फर्-फर् करती आकर बैठी दादाजी के झूले पर, प्यारी बनकर पापा को पूछे यहाँ बनाऊँ अपना घर? हसती-खेलती जाएँ, चिड़िया चीं चीं करती जाएँ। सूबह को पूरी … फर्-फर् करती आकर बैठी दादी माँ के आँगन में, नाचती-झूमती कहेगी चको चढ़ा है घोड़े पर, कूदती-कूदकती जाएँ चिड़िया चीं चीं करती जाएँ। सूबह को पूरी … परिचय :- मनस्वी कमलेशभाई पटेल निवासी : श्यामनगर, तहसील- धनसुरा, जिला- अरवल्ली (गुजरात) छात्रा : श्री एस.के. शाह एवं श्री कृष्ण ओ.एम. आर्ट्स कॉलेज घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। ...
होली … होली … होली …
छंद

होली … होली … होली …

लक्ष्मीकांत "कमलनयन" सुल्तानपुर (उत्तर प्रदेश) ******************** होली होली होली आज हो ली प्रसन्न मन, अगले बरस फिर प्यार बरसायेगी। जीवन में रंग भर मन में उमंग नव, नित ही तरंग ले बहार बन जायेगी।। गायेगी मल्हार फिर जन गण मन हित, रंग भंग संग बंधु गुझिया खिलायेगी। "कमलनयन" आश,छाये नित मधुमास, छंद बंद कवियों से गीत लिखवायेगी।। परिचय :-  लक्ष्मीकांत "कमलनयन" निवासी : सुल्तानपुर (उत्तर प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, ले...
ख़ामोशियां
कविता

ख़ामोशियां

आनन्द कुमार "आनन्दम्" कुशहर, शिवहर, (बिहार) ******************** ख़ामोशियां बहुत कुछ कहती हैं धीरे-से, हौले-से, चुपके-से ख़ामोशियां बहुत कुछ कहती हैं। मन की बाट जोहती हैं बेसुध-बेज़ान-बेबसी की साये में ख़ामोशियां बहुत कुछ कहती हैं। बेमन-बेमेल-बेवजह रिश्तों को बुनती हैं टूटी हुईं धागों से मन को सिलती हैं ख़ामोशियां बहुत कुछ कहती हैं। बिन कहे सब कुछ समझती हैं बेशुमार दर्द के आलम में जीती हैं ख़ामोशियां बहुत कुछ कहती हैं। परिचय :- आनन्द कुमार "आनन्दम्" निवासी : कुशहर, शिवहर, (बिहार) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन...
अबके वर्ष होली में
गीत

अबके वर्ष होली में

गोविन्द सरावत मीणा "गोविमी" बमोरी, गुना (मध्यप्रदेश) ******************** गायें गीत मधुर मिलन के अबके वर्ष हम होली में। मलदें विश्वासी प्रेम रंग देश-धर्म की चोली में।। बांटलें खुशियां मिलके सारी हस -हस बांटलें सारे गम। बिसराऐं मन से सारे विकार मिटाएं मन से मन के भृम। क्रोध-क्रूरता त्याग,पुनीत भाव भरें निज बोली में।। गायें गीत..... रहें न नफ़रत के निशां शेष हर डगर खिले सोहार्द-चमन। हर ह्रदय बहे रसधार प्रेम की रुके भेदभाव का कुटिल सृजन। एकता-और-अमन मुस्काये अखंडता की अनुपम रोली में।। गायें गीत... जात-पात आतंक-अधर्म से काम नही अब चलने बाला। हत्या-औ -हिंसा से मनुजों मैल नही अब धुलने बाला। आओ सींचे बंधुता की बगिया भरकर अश्रुजल झोली में।। गायें गीत मधुर मिलन के अबके वर्ष हम होली में।। मलदें विश्वासी प्रेम रंग देश-धर्म की चोली में।। परिचय :- गोविन्द...
वसंत की छटा होली संग
कविता

वसंत की छटा होली संग

डॉ. किरन अवस्थी मिनियापोलिसम (अमेरिका) ******************** जब भी माधव मन में आएं ॠतु बहार,बसंत की छाए राधावल्लभ के दर्शन हों मन की कलियां खिल जाएं। पीताम्बर छवि मन में समाई फूल खिले, सरसों बिखराई हर ओर है छाई ॠतरानी पुष्पांजलि अर्पित धानी धानी। बसंत में डूबी होली आई दौड़े-दौड़े आए कन्हाई हर‌ओर समा वृंदावन का रंग राधा का, बरसाने का। प्रकृति डुबी रास रंग में आस जगी सबके मन में दिनकर की किरणों संग ईश्वर का वरदान बसंत। परिचय :- डॉ. किरन अवस्थी सम्प्रति : सेवा निवृत्त लेक्चरर निवासी : सिलिकॉन सिटी इंदौर (मध्य प्रदेश) वर्तमान निवासी : मिनियापोलिस, (अमेरिका) शिक्षा : एम.ए. अंग्रेजी, एम.ए. भाषाविज्ञान, पी.एच.डी. भाषाविज्ञान सर्टिफिकेट कोर्स : फ़्रेंच व गुजराती। पुनः मैं अपने देश को बहुत प्यार करती हूं तथा प्रायः देश भक्ति की कविताएं लिखती हूं जो कि समय...
रंगों की होली
कविता

रंगों की होली

अशोक कुमार यादव मुंगेली (छत्तीसगढ़) ******************** (छत्तीसगढ़ी रचना) रंग धरके आहूँ ओ, मैंय ह तोर दुवारी। कपाट खोले रहिबे न, मारहूँ पिचकारी।। तोला बलाए बर, मैंय फाग गीत गाहूँ। झूम-झूम के नाचबो, नगाड़ा बजाहूँ।। तैंय पहिन के आबे ओ, लाली के साड़ी। रंग धरके आहूँ ओ, मैंय ह तोर दुवारी।। लगाहूँ तोर गाल म, मयारू खूब गुलाल। हिल-मिल के मनाबो, फागुन के तिहार।। मन ल मोर भा गे हच, बन जा सुवारी। रंग धरके आहूँ ओ, मैंय ह तोर दुवारी।। मोर मया के रंग, कभू छुटय नहीं गोरी। कतको धोले पानी म, खेल के होली।। गुलाबी देंह दिखे, परसा फूल चिन्हारी। रंग धरके आहूँ ओ, मैंय ह तोर दुवारी।। परिचय : अशोक कुमार यादव निवासी : मुंगेली, (छत्तीसगढ़) संप्राप्ति : शिक्षक एल. बी., जिलाध्यक्ष राष्ट्रीय कवि संगम इकाई। प्रकाशित पुस्तक : युगानुयुग सम्मान : मुख्यमंत्री शिक्षा गौरव अलंकरण 'शिक्षादूत' पुरस्...
अबीर, गुलाल, रंग
कविता

अबीर, गुलाल, रंग

सोनल मंजू श्री ओमर राजकोट (गुजरात) ******************** अबीर, गुलाल, रंग है, होली का हुड़दंग है। रंगों के नशे में, सबके मन मलंग हैं।। अबीर, गुलाल, रंग है... सबके मन को हर्षायी, फागुन की बहार आई। जन-जन गाएं फगुआ, दिलों में उमंग है।। अबीर, गुलाल, रंग है... खेतों में सरसों खिले, पीले-पीले फूल हिलें। हरी-भरी धरा पर, उड़ते विहंग हैं।। अबीर, गुलाल, रंग है... भर-भर लाए पिचकारी, रंग दी चुनर सारी। साजन रंगे सजनी को, अजब ये तरंग है।। अबीर, गुलाल, रंग है... नीला, पीला, लाल, गुलाबी, बचे न कोई जरा भी। प्रेम के रंग में भिगोकर, रंगों अंग-अंग हैं।। अबीर, गुलाल, रंग है... चिप्स खाओ, पापड़ खाओ, मीठी-मीठी गुझिया खाओ। तरह-तरह के मिष्ठानों से, मुँह में घुला रसरंग है।। अबीर, गुलाल, रंग है... होली का त्योहार है, रंगों की बौछार है। झूम-झूम के नाचों गाओ, घुटी आज भंग है।। अबीर, गुलाल...
कुआँ हुआ करता था
कविता

कुआँ हुआ करता था

शुभांगी चौहान लातूर (महाराष्ट्र) ******************** कुआँ हुआ करता था बाड़े में दादी भरा करतीं थी रोज उसका मीठा पानी कभी भोर में सुबह में तो कभी दुपहरी देता हर समय ठंडक उस कुएँ का पानी कभी राहगीर बटोही की प्यास बुझाता तो कभी प्यार से दो बूंद पँछी को पिलाता याद आता हैं बहुत कुआँ वह मीठे पानी का शाम होते ही आती गांव की औरतें सभी भरने के लिए उसी कुएं का पानी चहेरे के संग-संग चमक जाते भरे-भरे पानी से भरे घड़े तांबे और पीतल के खुश हो होकर भरती वह घड़ों में पानी पानी जैसे हो अमृत जीवनदान काम बनता नही था एक भी बगैर कुएं के पानी के भूसे की रोटी बनाती दादी उसी कुएं के पानी से कपड़े और बरतन धोती और आँगन को गोबर से चमकाती दादी उसी कुएं के पानी से स्वर्ग बन जाता घर-द्वार आँगन गाँव उसी पानी से अब न जाने कहाँ खो गये वह बाऊडी कुएं नजर में नही आते हैं आज...