बढ़ती उम्र में दोस्त
मंजुला भूतड़ा
इंदौर म.प्र.
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थोड़ी थोड़ी मस्तियां,
थोड़ा मान-गुमान।
आओ मिलकर रखें,
सब ही सबका ध्यान।
बढ़ती उम्र कहती है,
थोड़ा सीरियस हुआ जाए।
किन्तु वक्त का किसे मालूम,
कुछ हास-परिहास किया जाए।
जब दो हस्ती मिलती है,
तो दोस्ती होती है।
समुन्दर न हो तो,
कश्ती किस काम की।
मज़ाक न करें तो,
दोस्ती किस काम की।
दोस्त ही न हों तो
ज़िन्दगी किस काम की।
मर्ज तो सताते हैं,
बढ़ती उम्र में।
हर मर्ज का इलाज,
नहीं है अस्पताल में।
कुछ दर्द तो यूं ही चले जाते हैं,
दोस्तों के साथ मुस्कुराने में।
किसका साथ कहां तक होगा,
कौन भला कह सकता है।
मिलने के नित नए बहाने,
रचते बुनते रहा करो।
फ़ुरसत की सबको कमी है,
आंखों में अजीब सी नमी है।
शान से कहते हैं, वक्त नहीं है,
यह भी सोचो, वक्त की डोर,
किसी के हाथ में नहीं है।
कब थम जाए, पता नहीं है।
हौसले नहीं होंगे पस्त,
साथ हों जब, बढ़ती उम्र में द...