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पद्य

तकदीर
ग़ज़ल

तकदीर

मधु टाक इंदौर मध्य प्रदेश ******************** नज़रे इनायत हो तो तकदीर संवर जायेगी आँखों के आईने में ये सूरत निखर जायेगी इक दफा जो दूर से तू पुकार ले मुझको जिस्म से फना होती रूह भी ठहर जायेगी इस तरह से न देख शोख नजरों से मुझको मेरी सांसो की चलती रफ्तार सुधर जायेगी कभी तो पेश आ गुलों की तरह मेरे हमनवा संग तेरे खारों की चुभन भी ईश्क़ कर जायेगी जब भी रिश्तों का ताना बाना खुल जायेगा घर के आँगन में फिर उदासी भर जायेगी इन्तजार में तेरे खुद को काँधे पे लिये बैठी हूँ इश्क के इस अंजाम से मौत भी डर जायेगी दिल पर लगी हुई चोट भी यकीनन गहरी है तसव्वुर से तेरे "मधु" लम्हा लम्हा भर जायेगी . परिचय :-  मधु टाक निवासी : इंदौर मध्य प्रदेश आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानिया...
ये वक़्त गुजर जाएगा
कविता

ये वक़्त गुजर जाएगा

विशाल कुमार महतो राजापुर (गोपालगंज) ******************** उदास ना हो ये मुसाफिर के धीरे-धीरे सब सवंर जाएगा। चिंता ना कर इस बुरे वक़्त की ये भी कल गुजर जाएगा। सुख-दुःख तो मेहमान है, आते और जाते रहेंगे। हँसते रहना तुम सदा, रुलाने वाले रुलाते रहेंगे। कर मेहनत हासिल हो मंजिल चेहरे का रंग निखर जाएगा। चिंता ना कर इस बुरे वक़्त की ये भी कल गुजर जाएगा। खुश रहना तू हर घड़ी, दुःख से बहुत ही दूर है तू कर परख पहचान अपनी, हीरे से बढ़ कोहिनूर हैं तू भूल जा इन गुजरे पल को, आने वाला कल बेहतर जाएगा। चिंता ना कर इस बुरे वक़्त की ये भी कल गुजर जाएगा। करके मेहनत इस जग में, ऊँचा नाम कामना तूम चेहरे पे खुशियां हो और मेहनत की रोटी खाना तुम अच्छे कर्म करोगे तब चेहरे का रंग निखर जाएगा। चिंता ना कर इस बुरे वक़्त की ये भी कल गुजर जाएगा।   परिचय :- विशाल कुमार महतो, राजापुर (गोपालगंज) आप भी अपनी क...
भारत की ललकार
कविता

भारत की ललकार

डॉ. बी.के. दीक्षित इंदौर (म.प्र.) ******************** खून खौलता रणवीरों का, आँख दिखाना बंद करो। सबा करोड़ भारतीय हैं हम, जयचंदों तुम डरा करो। बाँसठ वाला देश नहीं है, बच्चा बच्चा राणा है। अवसर पाते मिट जायेंगे, प्रण हम सबने पाला है। खुद में तू महामारी है, चौतरफ़ा है घिरा हुआ। श्वान सरीखे भौंकों मत, मन से तू है मरा हुआ। पिल्ला भी तो भौंक रहा है, भूख उसे अधमरा किये है। दुनिया भर के चाट कटोरे, मुँह वो अपना सड़ा किये है। सिय के पीहर वालो तुम, भूल गए उपकारों को। रामचंद्र की शक्ति को, और धनुष बाण प्रहारों को। शिव की कृपा नमो की ताक़त भूल नहीं तुम पाओगे। जब भी संकट तुम पर आये, हर जगह हमीं को पाओगे। बिजू की ललकार यही है, नव भारत से डरा करो। बदल चुका है देश हमारा, नहीं बखेड़ा खड़ा करो।   परिचय :- डॉ. बी.के. दीक्षित (बिजू) आपका मूल निवास फ़र्रुख़ाबाद उ.प्र. है आपकी शिक्षा कानपुर में ग्रहण की ...
मोहे देखन दे
गीत

मोहे देखन दे

खुमान सिंह भाट रमतरा, बालोद, (छत्तीसगढ़) ******************** मोहे देखन दे असीघाट को गए छोड़ गोस्वामी जी, जाने गए वो किधर ढूंढे सबकी नजर, मोहे देखन दे, गुरु महिमा देखन दे पहली बार श्री कबीर दास जी ने काशी (लहर तालाब) में लिया अवतार हो... ऐकश्र्वरवादी विश्व में फैले ऐसा किया विचार हो... ईश्वर एक है दूजा न कोए जाना सब संसार ऐसा हुआ उदगार मोहे देखन दे, गुरु महिमा देखन दे... दुसरी बार श्री तुलसीदास जी ने जग में अवतार हो... सपना जो स्वामी जी का था उसको किया साकार हो... रामचरितमानस सबके सनमुख आये जाना सब संसार ऐसा हुआ उदगार मोहे देखन दे, गुरु महिमा देखन दे... तीसरी बार श्री घासीदास जी ने जग में लिया अवतार हो... सर्वधर्म - समभाव विश्व में फैला ऐसा किया प्रचार हो जाना सब संसार मोहे देखन दे गुरु महिमा देखन दे...   परिचय :-  खुमान सिंह भाट निवासी : रमतरा, बालोद, छत्तीसगढ़ आप भी अपनी ...
सूखती घास
कविता

सूखती घास

वचन मेघ चरली, जालोर (राजस्थान) ******************** अरे! ओ घमंड़ी बादल। तू हो तो न गया पागल। सब लगाएं तेरी आस। देखो ये सूखती घास।। तू सबसे निराला है तेरा वर्ण काला है जीवन का रत्न खास। देखो ये सूखती घास।। मेघ जलद घन तेरे नाम बिन तेरे बने न कोई काम तेरी अनुपस्थिति सबको अहसास। देखो ये सूखती घास।। बहुत बरसे तो अतिवृष्टि कम बरसे तो अनावृष्टि दोनों से होता विनाश। ये देखो सूखती घास।। जोर जोर से गरजता है फिर भी नहीं बरसता है लोगों का टूटता विश्वास। देखो ये सूखती घास।। महीना जब आता है सावन का लगता बहुत मनभावन का साजन नही सजनी के पास। देखो ये सूखती घास।। सबको तू तरसाता है बहुत कम जल बरसाता है मिटती नही इससे प्यास। देखो ये सूखती घास।। जब सावन ही जाए सूखा कैसे रहें कोई प्यासा और भूखा करने लगे लोग प्रवास। देखो ये सूखती घास।। जिस जिस ने बीज बोएं बाद में पछताएं और रोएं फसलो का होता हृास। देखो ये ...
वह यादें
कविता

वह यादें

दीपाली शुक्ला कसारडीह दुर्ग (छत्तीसगढ़) ******************** वह यादें....... ठहरी हुई है रफ़्तार आज सामने वाली सड़क में, पर वह तो मुझे उन गहराइयों से मिलने बुलाती है, वह यादें समंदर से बनी है या समन्दर यादों से पता नहीं, उथल पुथल तो इसलिए मची है कि वह जरिया किसे बनाती है कभी तहरीर की नाव मुझे मंज़िलों तक पहुंचाती है, तो कभी तस्वीरों की उड़ान सीधे वहां छोड़ जाती है, कभी पतंगों के धागे के साथ चढ़ जाती हूँ, तो कभी आंसुओं की धार में ही दूर बह जाती हूँ, कभी धुल भरी साईकल स्कूल छोड़ने जाती है, कभी मिटटी की खुश्बू कागज के नाव बनाती है, कभी वो गुड़िया उन गर्मियों में ले जाती है, तो कभी गर्मियाँ उन खिलौनों की बात बताती है, कभी पुरानी किताब के अन्दर से दुनिया पाती हूँ, कभी उसके भीतर सालों बिताकर घंटों में लौट आती हूँ, कभी उन यादों को मुझ जैसा पाती हूँ, तो कभी उसका जादुई ताज पहन कायनात से खो जाती हूँ...
मैं ही मैं हूं
कविता

मैं ही मैं हूं

जितेंद्र शिवहरे महू, इंदौर ******************** मैं महान हूं मुझे समझना होगा तुम्हें अपने अभिमान को परे रख मेरी हर बात सुनो तुम तुम क्या हो? मेरे आगे तुम्हारी कोई अस्तित्व नहीं मेरे आगे मेरी धन-वैभव-संपदा को देखो तुम्हारे पास भी होगा सबकुछ किन्तु मेरे जितना नहीं इन प्रसाधन की गुणवत्ता और मात्रा तुमसे कहीं अधिक है मेरे संसाधन आलौकिक है इन्हें साष्टांग प्रणाम करो मेरा घर, घर नहीं एक महल है तुम्हारे पास भी होगा किन्तु मेरे जितना भव्य नहीं तुम्हारी राय का कोई मुल्य नहीं तुम्हारी में कभी नहीं सुनूंगा मेरा ज्ञान सर्वज्ञ है तुम जानते ही कितना हो? तुम्हारा ज्ञान शुन्य है मेरे आगे मेरी महत्ता सार्वभौमिक है तुम नगण्य हो तुम शून्य हो और मैं अनंत मेरी संतान ही संसार का कल्याण करेगी क्योंकी वो मेरा अंश है इसलिए वो भी महान है उसका किसी से कोई मुकाबला नहीं वो सर्वशक्तिमान है मेरी तरह वह भी प्रार्थनीय...
जिंदगी की जद्दोजहद
ग़ज़ल

जिंदगी की जद्दोजहद

मनीषा व्यास इंदौर म.प्र. ******************** अभी तो जिंदगी की सुबह हुई ही है। फिर क्यों मै बहुत दूर नजर आया। अभी तो मुश्किलों से पीछा छूटा ही था। फिर सामने कोरोना नजर आया। वतन से मुहब्बत की थी या पलायन का अफसोस। मुझे हर मजदूर घर लौटता नज़र आया। दुनिया इमारतों की तरफ देखती रही। मुझे उसके पांव का छाला नज़र आया। जिदंगी डर है, मायूसी है, संघर्ष है, वीरानी है। पहली बार हर इंसान बेबस नज़र आया। माफ़ कर सकता है तो कर दे मुझ। मै खुदगर्ज हूं ये अब नज़र आया। तू ना लौटा तो क्या होगा मेरा ? मै इस बोझ से दबता नज़र आया। मै तेरी सुरक्षा की हर कोशिश करूंगा। बहुत देर से सही पर अब नज़र आया। भारत को आत्मनिर्भर बनाना है। यही सोचकर वो शहर वापस आया।   परिचय :-  मनीषा व्यास (लेखिका संघ) शिक्षा :- एम. फ़िल. (हिन्दी), एम. ए. (हिंदी), विशारद (कंठ संगीत) रुचि :- कविता, लेख, लघुकथा लेखन, पंजाबी पत्रिका ...
गुरु वंदना
गीत

गुरु वंदना

ओमप्रकाश सिंह चंपारण (बिहार) ******************** गुरु तो ईश्वर का साकार रूप होता है अंधाररुपी जीवन में प्रकाश पुंज होता है! गुरु की वाणी में रहती छिपी प्रखर ज्ञान, प्रज्ञा ज्ञान की चिंगारी! गुरु की कृपा मात्र से यह नश्वर जीवन अमर शाश्वत बन जाता! इस अलौकिक जीवन की यात्रा- अति-सरल सुगम बन जाता! गुरु अंदर की-दिव्यता को- जगा कर इस जीवन पथ को आलोकित कर जाता! निज पशुता को भगाकर दिव्य चेतना लाता मनुज मात्र के लिए उज्जवल प्रकाश पुंज फैलाता! सदियों से है गुरु कृपा की अनेकों दिव्य कहानी! महामूर्ख कालीदास सदृश एक दिन 'महाकवि' बन जाता! महान योद्धा अशोक सम्राट बौद्ध भिक्षुक बन जाता! 'आर्यभट्ट' ब्रह्मांड के ज्ञाता कोई 'कणाद' सदृश्य अनु ज्ञाता बन जाता! कोई चाणक्य कृपा को पाकर महान सम्राट बन जाता! मैं मूरख भी निश-दिन गुरु वंदना गाता! . परिचय :- ओमप्रकाश सिंह (शिक्षक मध्य विद्यालय रूपहारा) ग्राम...
फिर आगोश में तुमको मिलेगी
कविता

फिर आगोश में तुमको मिलेगी

विवेक रंजन 'विवेक' रीवा (म.प्र.) ******************** धुआँ-धुआँ हर तरफ धुआँ, किस ग़म ने यूँ तुम्हें छुआ। अंधियारे में सिमट गये तुम, नशे की सोहबत बना धुआँ। मत डूबो स्याह समंदर में, बस टूट गया दिल इसी बहाने। प्रखर रश्मियाँ आ बैठी हैं, शिविर तिमिर का दूर हटाने। इस धुयें की गर्त को अब तो नकारो, धूप फिर आगोश में तुमको मिलेगी। भले ना पथ अनुकूल मिले, पर आशा के तो फूल खिलें। धूल धूसरित स्वेद लपेटे, अब कितने भी शूल मिलें। ये सफ़र ऐसा कि जिसमें, खुद का चलना बड़ा जरूरी। अपने पास ही तो जाना है, खुद से ही कम करना दूरी। तुम भी थोड़ा इसी पंथ की बाट निहारो, धूप फिर आगोश में तुमको मिलेगी। यह अनुभूति बड़ी अनूठी, यूँ ही पास नहीं आयेगी। पहले ये तुम्हें छकायेगी, कदम-कदम अजमायेगी। वीतराग करने को प्रेरित अंतर्मन अनल जलायेगी। फिर देगी वह अपनी प्रतीति, और तुमको गले लगायेगी। तुम मन से तो उसका नाम पुकारो, धूप फ...
अपने हुए पराये
कविता

अपने हुए पराये

डॉ. प्रतिमा विश्वकर्मा 'मौली' आमानाका कोटा रायपुर (छत्तीसगढ) ********************** जी भर के देख भी ना पाये प्यार की इन्तहा क्या सुनाये रहे मझधार साहिल ना पाये नाखुदा ने खूब याराने निभाये तूफ़ान दिल में इतने दबाये जलजले बने अपने हमसाये चले साथ कभी मिल न पाये तासीर दो किनारों सी लाये सितम गैरों के क्या बताये जब अपने हुए हैं सब पराये .... . परिचय :-  डाँ. प्रतिमा विश्वकर्मा 'मौली' जन्म : २० अप्रैल माता : श्रीमिती रामदुलारी विश्वकर्मा पिता : श्री रामकिशोर विश्वकर्मा निवासी : आमानाका कोटा रायपुर (छत्तीसगढ) शिक्षा : ऑनर्स डिप्लोमा इन कंप्यूटर एप्लीकेशन (एक वर्षीय कंप्यूटर डिप्लोमा) बी. एड., एम. ए.(भूगोल), एम. फिल. (नगरीय भूगोल), पी-एच. डी.(कृषि भूगोल)। प्रकाशन : राष्ट्रीय एवं अंतरास्ट्रीय शोध-पत्रिकाओं एवं पुस्तको में शोध-पत्रों का प्रकाशन, जनसंदेश समाचार पत्र मध्यप्रदेश, दैनिक भास्कर , ...
चल मेरे साथी
कविता

चल मेरे साथी

संजय कुमार साहू जिला बालोद (छत्तीसगढ़) ******************** चल मेरे साथी, दुनिया की सैर करते है, मोहब्बत की इस दुनिया में मिटाते सारे बैर चलते हैं, नवजीवन के एहसासों में, विश्वबन्धुत्व को पसारने अपने पैर देते हैं ।। चल मेरे साथी दुनिया की सैर करते है....... शाहजहां ने जैसा ताजमहल बनाया, अपनी मोहब्बत दीवारों पर लिखवाया , कुछ ऐसा ही हम करने चलते है , जीवन के महल में संगमरमर रूपी भाईचारा साथ लेकर चलते हैं।। चल मेरे साथी दुनिया की सैर करते हैं... चलो देखे सुंदरवन , पशु पक्षी के निरव रुदन, इंसान नहीं तो जानवर से ही कुछ सीख लेने चलते है मधुर मिठास हो इस जीवन में, बीज ऐसा अंकुरित करते चलते है।। चल मेरे साथी दुनिया की सैर करते हैं.... देखते है विशाल हिमालय को, अपने गर्भ में कईयों जीवन पालता है, काले, भयंकर मेघ के आगे छाती ताने खड़ा रहता है, दुनिया को कहता सीख मुझसे सभी परिस्थितियों में खड़...
अपनी जड़ें खोदते हैं
कविता

अपनी जड़ें खोदते हैं

अर्चना अनुपम जबलपुर मध्यप्रदेश ******************** समर्पित- अंधी पश्चात्य संस्कृति के अश्व पर आरूढ़ भारतीय परिवेश को। है वर्तमान की यही वेदना मानव से मानवता दूर हुई। अनुभव में दृष्टिभूत यही की आज सभ्यता ढेर हुई।। कल संम्पत्ति थे मात पिता उनकी सेवा ही प्यारी। और आज दे रहा बेटा है अपने ही पता की सुपारी।। पतियों से ज्यादा बाॅयफ्रेण्ड अब पत्नी जी को भाते हैं। पत्नी की साड़ी से अच्छी गर्लफेण्ड के वस्त्र लुभाते हैं।। बस कुछ पैसों का आ जाना घर में कुत्ते पल जाना है। कुछ बुरा तो नहीं पर इसपर काहेका उतराना है? इस फोरव्हिलर की दुनिया में साइकल का कहां ठिकाना है? भूले भक्ति अरु दान पुण्य तीरथ में खूब उड़ाना है।। रोगों से छुब्ध देह किंतु मौजों में समय बिताना है। असमय मृत्यु की ओर बढ़े पर चुभता पूर्व जमाना है।। पैदल चलने वाला तो अपनी किस्मत को गरियाता है! क्योंकि मित्रों और सखियों से वह व्यंग्य बाण ह...
मैं और हम
कविता

मैं और हम

उषा शर्मा "मन" बाड़ा पदमपुरा (जयपुर) ******************** मैं और हम में बस इतना फर्क है, मैं अहम् को अपनाता है और हम अहम् को धिक्कारता है। मैं और हम में बस इतना फर्क है, मैं अपनेपन में जीवन चाहता है और हम अपनापन में जीवन देखता है। मैं और हम में बस इतना फर्क है, मैं संकीर्णता में सोचता है और हम व्यापकता की ओर बढ़ता है। मैं और हम में बस इतना फर्क है, मैं स्वयं के लिए जीना चाहता है और हम अपनों के लिए जीवन मांगता है। मैं और हम में बस इतना फर्क है, मैं को जानने वाला कोई नहीं रहता और हम में पूरा जगत् समा सकता है। मैं और हम में बस इतना फर्क है, मैं स्वयं से बंधे रहना चाहता है और हम सबके संग बसना चाहता है। . परिचय :- उषा शर्मा "मन" शिक्षा : एम.ए. व बी.एड़. निवासी : बाड़ा पदमपुरा, तह.चाकसू (जयपुर) आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्र...
वक़्त
कविता

वक़्त

आकाश प्रजापति मोडासा, अरवल्ली (गुजरात) ******************** जीवन में सच्चाइयों दिखलाता है वक़्त। दुःखों में भी सुखों का और सुखों में भी दु:खों का अर्थ समझाता है वक़्त।। वक़्त की कोई सीमा नहीं होती। कोई आये या जाये उसे किसी की परवाह नहीं होती।। वो तो अपने आप में ही एक पहेली हैं। जान जाओ तो ठीक है वरना सबकी सहेली हैं।। वक़्त इंसान को यह सिखलाता हैं। अपना काम वक़्त पर कर लो, बाद में तू क्यों पछताता हैं।। वक़्त और कुदरत का तो पुराना नाता हैं। दोनों कब आये, कब गये कौन जान पाया हैं।। वक़्त पर अभी तक कोई पाबंदी नहीं लगा पाया हैं। जीसने भी यह कोशिश की है उसने अपनी मुश्किलों को बुलाया हैं।। परिचय :- आकाश कल्याण सिंह प्रजापति निवासी : मोडासा, जिला अरवल्ली, (गुजरात) आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशि...
जिंदगी
कविता

जिंदगी

सौरभ पांडे सुल्तानपुर (उत्तर प्रदेश) ******************** सोच कर बैठ जाती है आंखें देख उसे, बातों बातों खुश हो जाता दिल सोच कर उसे। वक्त नहीं खराब किस्मत मेरी है खराब, शायद दिल बद्दुआ ना दे इसलिए पी लेता हूं शराब। पत्थर से टकरा जाता है सिर मेरा, दोष किसी और को क्यों दूं जो नहीं है अपना। क्या चाहती हो जिंदगी मुझे तुम बता दे, समय नहीं मेरे पास समय से पहले समझा दे। दुख के आंसू पी जाएंगे, मौत आने से पहले, मुझे कोई दर्द नहीं होगा तेरे जाने के बाद। . परिचय :- सौरभ पांडे शिक्षा : बी टेक एग्रीकल्चर के साथ योगा में डिप्लोमा निवासी : सुल्तानपुर उत्तर प्रदेश सम्प्रति : सिंचाई विभाग प्रकाशन : बालहंस सुमन सौरभ जोश जागरण नंदन आदि पत्रिकाओं में अपने लेख के साथ-साथ समाज सेवा के साथ विभिन्न अवार्ड एवं सम्मान प्राप्त शपथ : मेरे द्वारा लिखी गजल पूर्णता अप्रकाशित है एवं सभी जानकारी पूर्णता सत्य है अ...
आंसू
कविता

आंसू

अर्पणा तिवारी इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** नयनों का श्रंगार हुए हैं जब, खुशियों का संदेश सुनाते हैं। दृग कोरो का भार हुए हैं जब, व्यथा हृदय की बतलाते हैं। झरते है मोती बन कर नैनो से, जाने कितने शोक मिटाते हैं। मन की सीपी के मोती है जो, यदा कदा अखियों में लहराते है। पीड़ा की अभिव्यक्ति है आंसू, बहकर मन निर्मल कर जाते है। खुशियों का उपहार भी आंसू, अधरों की मुस्कानों संग आते हैं। पावनता का पर्याय बने है आंसू, इसीलिए गंगाजल कहलाते हैं। . परिचय :- अर्पणा तिवारी निवासी : इंदौर मध्यप्रदेश शपथ : मेरी कविताएँ और गजल पूर्णतः मौलिक, स्वरचित और अप्रकाशित हैं आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में ट...
इश्क़ की पाकीज़गी
ग़ज़ल

इश्क़ की पाकीज़गी

मधु टाक इंदौर मध्य प्रदेश ******************** बिछड़ कर वो मुझे अभी भूले नही होंगे खतों को भी मेरे यूँ हीं जलाये नहीं होंगे इश्क़ की पाकीज़गी को न समझा कोई हीर रांझा के फिर अब किस्से नहीं होंगे ताउम्र गुजार दी है सितारों को गिनकर रात भर वो मेरी तरह जागते नहीं होंगे तस्सवुर से तेरे मुक्कदर की चादर बुनी गर्दिश में मेरे कभी यूँ सितारे नहीं होंगे दुआ रब से तुझे अब मंजिल मिल जाये तेरे कदमों के तले कभी छाले नहीं होंगे मिटा दे दिलों में जो रंजिशे मजहब की फिर कोई भी जमाने में पराये नहीं होंगे भंवरों सा तेरा हर फूल पर मचलना कैसा मोहब्बत के कभी सलीके सीखे नहीं होंगे शक के दायरे में इश्क़ पनप नही सकता बोई है नागफनी गुल वहाँ महके नहीं होंगे मुस्कुराहट वो जादू है जो दिलों को है जोड़ती सूखे दरख़्तों पे तो परिन्दे भी टिकते नहीं होंगे नदिया के सीने पर जो लहरों की है खामोशी अपने ही हिस्से के ...
दिवास्वप्न
कविता

दिवास्वप्न

सरिता देराश्री पिपलोदा, रतलाम, मध्य प्रदेश ******************** जीवन एक दिवास्वप्न सा है, खुली आंखों से देख कर भी, सब कुछ अनदेखा सा है। जीवन एक दिवास्वप्न सा है।। मचलती आशाएं, बहती भावनाएं, पल-पल निश्चल झरने सा है। जीवन एक दिवास्वप्न सा है।। दर्द है, तड़प है, वीरह है, फिर भी अल्हड़ बचपन सा है। जीवन एक दिवास्वप्न सा है। सुख-दुख, सम्मान और अरमान, कुछअधूरी कुछ पूरी उम्मीद सा है। जीवन एक दिवास्वप्न सा है।। कभी उतार-चढ़ाव कभी मोड़ है, कभी उलझन कभी सुलझा सा है। जीवन एक दिवास्वप्न सा है।। ऊंचे पहाड़, गहरी घाटी, मैदान, सागर सा गहरा कभी चंचल सरिता सा है। जीवन एक दिवास्वप्न सा है।।   परिचय :-  सरिता देराश्री पति : मंगलेश देराश्री जन्म : ३/५/७९ शिक्षा : बी. एस . सी , एम . ए निवासी : पिपलोदा, रतलाम, मध्य प्रदेश आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फ...
कर्ज प्यार का
कविता

कर्ज प्यार का

ममता रथ निवासी : रायपुर ******************** सूरज की किरणें आई तो फूलों की पंखुड़ियों को खोला धरती का रस पी फूलों ने ये बोला कर्ज तुम्हारे स्नेह का वापिस किस्तों में देंगे हम खुशबु से अपने इस गुलशन को महकाते रहेंगे हम धीरे से मुस्कुरा कर धरती बोली बेटे बहुत बड़ी बात कही तेरी इसी सोच ने कर्ज प्यार का चुका दिया सभी तेरे ही कारण तो मुझे मिलता है रंग बिरंगे लिबास सभी   परिचय :-  ममता रथ पिता : विद्या भूषण मिश्रा पति : प्रकाश रथ निवासी : रायपुर जन्म तिथि : १२-०६-१९७५ शिक्षा : एम ए हिंदी साहित्य सम्मान व पुरस्कार : लायंस क्लब बिलासपुर मे सम्मानित, श्री रामचन्द्र साहित्य समिति ककाली पारा रायपुर २००३ में सांत्वना पुरस्कार, लोक राग मे प्रकाशित, रचनाकार में प्रकाशित आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्...
मुझे शर्म आती है
कविता

मुझे शर्म आती है

कंचन प्रभा दरभंगा (बिहार) ******************** कितने कितने फरेब देखे इस दुनिया के इस दुनिया के हालात पे मुझे शर्म आती है बादशाहत से जीने वाले वो बुजदिल ही होंगें उन बेदर्द बुजदिल-ए-हयात पे मुझे शर्म आती है कपड़ों से नहीं वो चमरी से चिथड़े पहने थे आलिशान महलों के सजाने पे मुझे शर्म आती है लाखों लाख बेघर जब भूखे बिलख रहे थे झूठी आस्था के उन खजाने पे मुझे शर्म आती है मंदिरों के नाले में बहा दी गई दुध की नदियाँ बेबस माँ के बिलखते लाल पे मुझे शर्म आती है सड़क पर भागती वो कार जब रोके न रुकी थी उस बेबस लड़की की बलात्कार पे मुझे शर्म आती है . परिचय :- कंचन प्रभा निवासी - लहेरियासराय, दरभंगा, बिहार सम्मान - हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा हिन्दी रक्षक २०२० राष्ट्रीय सम्मान से सम्मानित  आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय ए...
अभी तो सवेरा हुआ है
कविता

अभी तो सवेरा हुआ है

दर्शन लाड बुरहानपुर (मध्य प्रदेश) ******************** हर क़दम, हर पल, मत भाग हर जगह, हर राह को मत समझ अपना, निश्चित कर, संकल्प कर, अनुमान लगा, फिर देख खुशियों की बारिश, हर क़दम, हर पल, हर जगह, अभी तो सवेरा हुआ है थोड़ा ठहर... मत भाग हर राह पर एक साथ, हो जाएगी नफरत हर राह से एक साथ, मत बन अपनी नफरत का कारण, रुक जा...... अभी तो सवेरा हुआ है थोड़ा ठहर... मत भाग इतना कि ज़िन्दगी थम जाए, मत सोच इतना कि समय निकल जाए, क्यों कि....... जीतता वो नही जो तेज चलता है, जीतता वो है जो लंबे समय तक चलता है, अभी तो सवेरा हुआ है थोड़ा ठहर... हर मोड़ पर नई उम्मीद आयेगी, हर कदम पर नई राह आयेगी, हर अंधेरे में फिर एक प्रकाश होगा, हर हवा में खुशियों का पैगाम होगा, बस.... थोड़ा ठहर अभी तो सवेरा हुआ है थोड़ा ठहर.... अभी तो सवेरा हुआ है.... . परिचय :- दर्शन लाड निवासी : बुरहानपुर (म.प्र.) शिक्ष...
कि वक्त ठहरा सा है
कविता

कि वक्त ठहरा सा है

अभिषेक खरे भोपाल (म.प्र.) ******************** कि वक्त ठहरा सा है जिंदगी फिर से मुस्कुराएगी धीरे-धीरे ही सही गाड़ी फिर पटरी पर आईगी मेहनत रंग दिखा रही है जिंदगी फिर से सबकी संभल जाएगी अभी अंधेरा बहुत घना है लेकिन सूरज को भी तो निकलना है। भरोसा रख अपने आप पर के जिंदगी फिर से दौड़ जाएगी। कि वक्त ठहरा सा है जिंदगी फिर से मुस्कुराएगी। . परिचय :- अभिषेक खरे सचिव - आरंभ शिक्षा एवं जनकल्याण समिति, भोपाल (म. प्र.) कोषाध्यक्ष - ओजस फाउंडेशन, भोपाल (म.प्र.) निवास - भोपाल (म.प्र.) शिक्षा - एम कॉम बी.यू. भोपाल पीजीडीसीए, एमसीयू भोपाल आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindiraksh...
अधिकार, मुक्ति, सुरक्षा
मुक्तक

अधिकार, मुक्ति, सुरक्षा

प्रवीण त्रिपाठी नोएडा ******************** अधिकार बनाम कर्तव्य.. माँगते अधिकार निज कर्तव्य भूले हम सभी। एक कर से क्या बजी संसार में ताली कभी? देश में उन्नति तभी जब काम सब मिल कर करें। जब समाज न जागता हर दृष्टि से पिछड़े तभी।।1 मुक्ति... मुक्ति शब्द विचित्र है पर अर्थ इसके हैं कई। भाव के अनुरूप इसकी नित्य व्याख्या हो नई। मुक्ति तन को, मुक्ति मन को, सँग विचारों को मिले। सत्य जब जाना उसी पल नींद जैसे खुल गई।।2 सुरक्षा... नित सुरक्षा चक्र का पालन सभी मिल के करें। दूरियाँ हों देह में विस्मृत नहीं मन से करें। सावधानी रख हमेशा युद्ध हम यह जीत लें। *संगठित हो कर कॅरोना दूर इस ग्रह से करें।। . परिचय :- प्रवीण त्रिपाठी नोएडा आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रका...
लेखक की कलम
कविता

लेखक की कलम

डॉ. रश्मि शुक्ला प्रयागराज उत्तर प्रदेश ******************** बहुत खुशियाँ और गम बाटा कलम ने बहुत मित्रऔर दुशमन बनाएँ कलम ने जीना और मरना सीखाया कलम ने शिक्षा का पाठ पढाया कलम ने व्यक्तित्व बनाया कलम ने मान सम्मान दिलाया कलम ने कवि कविता से मिलया कलम ने रिश्ते बनाये और चलाये कलम ने आजादी दिलाई कलम ने रोना और हँसना सीखाया कलम ने वतन पर मिटना सीखाया कलम ने रस में रंगना सीखाया कलम ने पर्व मनाना सीखाया कलम ने छल कपट धोखा से बचाया कलम ने मीलों का सफ़र तय किया कलम ने जीवन सफर पर साथ दिया कलम ने मातृ को नमन करनासीखाया कलमने देश विदेश को मिलाया कलम ने अनपढ़ से पढ़ा लिखा बनाया कलमने संवेदना को सजोना सीखाया कलम ने शक्ति भक्ति को सीखाया कलम ने सभी कवी सम्मेलन किया कलम ने रश्मि को जीवन दिया कलम ने . परिचय :- डॉ. रश्मि शुक्ला निवासी - प्रयागराज उत्तर प्रदेश आप भी अपनी कविताएं, कहानिय...