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पद्य

मैं भी तो माँ हूँ
कविता

मैं भी तो माँ हूँ

श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी लखनऊ (उ.प्र.) ******************** कभी कभी पूजी जाती हूँ, पर्व त्यौहारों में सजाई जाती हूँ। इधर उधर बेमन से घुमाई जाती हूँ, लोग मनोरंजन का साधन समझते है, शांत चित्त मैं सब कुछ करती जाती हूँ। मेरे भी अहसास हैं, सुख के, दुख दर्द के मेरा भी परिवार बसता है। इन सुन्दर कल कल करती नदियों के किनारे हरियाली से भरा मेरा घर जो बहुत सुन्दर था, अब वो उजड़ने लगा है । मेरा तो किसी से बैर नहीं फिर भी हम ना जाने क्यों सताये जाते हैं? आज मैं तड़प रही हूँ, मेरा परिवार भी दुखी है। कभी भूख , कभी बेइंतहा दर्द की मार से कभी मानव के राक्षसी अत्याचार से। इन सबकी अनदेखी से ही मेरे वंशजों की मौत हो रही है। मेरे बच्चे को 'मेरी कोख में ही' मार दिया। दर्द से छटपटाती,कराहती, चीत्कारती भटक रही हूँ इधर उधर मैं। कहाँ हैं वो लोग जो मेरी पूजा करते थे? कहाँ हैं...
करके तन्हा मुझे
कविता

करके तन्हा मुझे

दामोदर विरमाल महू - इंदौर (मध्यप्रदेश) ******************** करके तन्हा मुझे इक रोज़ चले जाओगे। मुड़के देखोगे जो पीछे तो मुझे पाओगे। क्या मेरा साथ तुझे नापसन्द आया था। तू तो कहती थी कि मैं तेरा ही साया था। २ क्या तुम्हें गैर की बातों ने मुझसे दूर किया, कसूर इसमें भी तुम मेरा ही बताओगे... करके तन्हा मुझे इक रोज़ चले जाओगे। तुम्हारे अपने ही मुझे तुमसे दूर करते थे। हमतो इस बात को भी कहने से डरते थे। मैं तुम्हे कहीं खो ना दूं ये फिकर सताती थी। तुम्हारा हाल तुम्हारी ही सहेलियां बताती थी। २ हुए बदनाम हम कई बार तुझको बचाने में, नाम इसमें भी तुम मेरा ही लगाओगे... करके तन्हा मुझे इक रोज़ चले जाओगे। बिगड़ता कुछ नही बस तुम मुझे समझ जाती। जाने से पहले एक बार कुछ तो बता जाती। वजह क्या थी मुझे इस तरह छोड़ जाने की। क्या तुम्हें चाह थी... कुछ और पाने की। २ जानता हूँ तुम नही छोड़ोगे ज़िद अपनी, भला मुझे नह...
मिजाज मौसम का बदल रहा है
कविता

मिजाज मौसम का बदल रहा है

खुमान सिंह भाट रमतरा, बालोद, (छत्तीसगढ़) ******************** देख यह कैसा है छाया, विलक्षण परिवर्तन लिए मौसम है आया। बर्फबारी हो रही है भुकंप आ रहा है, समुचे भू- पटल पर विनाश का काला बादल छा रहा है। दृश्य देख यह ख्याल आ रहा है, मिजाज मौसम का बदल रहा है। वध्वंस होकर प्रकृति, अपनी स्वरुप दिखलाया। कड़ाके की गर्मी में, शीत के कहर है छाया। वृक्ष के उपकार को, अंधा मानव समझ न पाया। देव तुल्य पीपल का भी, कुल्हाड़ी से काट गिराया। दिखावा के दौर में, मनी प्लांट के पौधे घर में लगाए। देख तेरी मुर्खता, तुलसी माता लज्जा से सिर अपनी झुकाए। निशा काल में शीतल वायु न दे पाए, वह ये ! मानव तुने कैसा पथ अपनाया? प्रकृति का श्रृंगार मिटाकर, नव निर्मित उद्योग कल कारखाना है लगाए। देख तेरे इन हरकतों से, मिजाज मौसम का बदल रहा है। मानव तुम कितनी प्रगति कर भी, सक्षम हो जाओ फिर भी, प्रकृति के समक्ष खुद पेश...
रोको मत आगे बढ़ने दो
कविता

रोको मत आगे बढ़ने दो

विशाल कुमार महतो राजापुर (गोपालगंज) ******************** कुछ पाना है कुछ करना है, बस उसी राह पर चलना है। चलते चलते जब गिरना है, तो उठकर खुद संभलना है। मंजिल की सीढ़ी चढ़ता हूँ, तूम चढ़ने दो, अब चढ़ने दो, रोको मत आगे बढ़ने दो, रोको मत आगे बढ़ने दो। अब ऐसी राह पर जाऊंगा ना बुजदिल मैं कहलाऊंगा। रख हौसला बढूंगा आगे, मंजिल खुद पा जाऊंगा। मैं अपने भविष्य को पढ़ रहा हूँ, अब पढ़ने दो, तुम पढ़ने दो, रोको मत आगे बढ़ने दो, रोको मत आगे बढ़ने दो। ना कहना है, ना सहना है नाही कोई और बहाना है। ना रुकना है ना झुकना है, जो ठानी है, वो पानी है । कुछ लोग भी हमसे जलते हैं, अब जलने दो, तुम जलने दो, रोको मत आगे बढ़ने दो, रोको मत आगे बढ़ने दो   परिचय :- विशाल कुमार महतो, राजापुर (गोपालगंज) आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिं...
क्षमा नही करने वाली
कविता

क्षमा नही करने वाली

मंगलेश सोनी मनावर जिला धार (मध्यप्रदेश) ********************** केरल में देखो ऐसा अवसर भी आया है, शिव के पुत्र गजराज ने भी स्वयं को निर्बल पाया है। माँ की ममता,भूख की ज्वाला सबकुछ उसके अंदर थी, मानव से भोजन की आशा, उसके अंतर मन थी। देख कर कुछ युवक भोजन के साथ आये है, क्या पता था उस गज गामिनी को मौत साथ लाये है। स्वादिष्ट फल समझकर उसने जैसे ही मुंह मे दबाया होगा, आभार ईश्वर का करने सूंड को थोड़ा हिलाया होगा। फट पड़ा मुंह में स्वाद अंदर भी ना ले पायी थी। जबड़े टूट गए 3 दिन कुछ नही खा पाई थी। निष्तेज होकर उसने नदी में मुहं चलाया था, जलन, रक्त, घाव धोकर मन को समझाया था। नही था पता भूख का ऐसा दान मिलेगा, थोड़े भोजन के लालच में मौत का सामान मिलेगा। स्वयं तो हंसकर मर जाती, अपने आँचल पर रोइ थी। क्योंकि एक छोटी सी जिंदगी, उसके पेट में सोई थी।। अंतिम स्वास तक भी प्रभु से, यही आशीष लिया होगा। चाह...
सन्देश
कविता

सन्देश

राजेन्‍द्र कुमार श्रीवास्‍तव सीहोर, (म.प्र.) ******************** (हिन्दी रक्षक मंच द्वारा आयोजित अखिल भारतीय कविता लेखन प्रतियोगिता में प्रेषित कविता) ठहरो ऐ बहती हवाओं, हदय ऑंगन में बिखरी, कलियॉं चुन लूँ, मदिरा मयी खुशबू, लेते जाना-प्रतिक्षित प्रिय पर प्रदान करना। ठहरो ऐ उड़ते बादल, मन मस्तिष्क में उभरी, शीतलता। को भर लॅूं; आगोश में, वर्षा देना-प्रेम, प्यार-प्रणय की फुहार, ठहरो ऐ चमकते चॉंद-तारे, मुख-मंडल व अन्त: में, उदित दीप्ति की छटा भर लूँ, लेते जाना- प्रदीप्त कर देना अर्न्तरमन....... परिचय :- राजेन्‍द्र कुमार श्रीवास्‍तव जन्‍म :- ०४ नवम्‍बर १९५७ शिक्षा :- बी.ए. निवासी :- भोपाल रोड, जिला-सीहोर, (म.प्र.) प्रकाशन :- कहानियॉं, कविताएँ, स्‍थानीय, एवं अखिल भारतीय प्रतिष्ठित पत्र पत्रिकाओं में समय-समय पर यदा-कदा छपती रही हैं। सम्‍प्रति :- म.प्र.पुलिस (नवम्‍बर २०१७) से सेवानिवृत के...
नयनो की मस्ती
कविता

नयनो की मस्ती

तेज कुमार सिंह परिहार सरिया जिला सतना म.प्र ******************** नयनो की मस्ती चाहता हूँ हैं जन्नत की दरकार नही है याद अभी पहली चितवन चिर गयी दिल किया वार नही नयनो की ,,,,, घुट घुट कर याद में घुटता हु पग पग पैर मचलता हैं महज स्नेह आकांक्षी हु आरति कुछ और दिलदार नही नयनो की मस्ती चाहता हु है जन्नत की दरकार नही चांदनी कुछ कह जाती हैं समीर सन्देशा लाती हैं पिकी पंचम स्वर के गाती है पर उसमे तुम जैसे प्यार नही नयनो की मस्ती चाहता हु है जन्नत की दरकार नही सरिता सागर में मिल जाती हैं कोकिला गीत मधुर गाती है पपीहे की विरह लिए मैं प्रिय श सकता ऐसा वॉर नही नयनो की मस्ती चाहता हु हैं जन्नत की दरकार नही है रूखे शब्द प्रसूनो की माला बह सकी इसमे रस धार नही टी के हृदय की तड़पन ये है कोरी शब्द गुहार नही नयनो की मस्ती चाहता हु हैं जन्नत की दरकार नही परिचय :- तेज कुमार सिंह परिहार पिता : स्व...
क्रूर नियति
कविता

क्रूर नियति

शरद सिंह "शरद" लखनऊ ******************** विहंस उठी नव किसलय अन्तर्मन के मरुस्थल में, रोम रोम पुलकित हो झूमा स्वप्न सजे अन्तस्तल में चमक उठी चन्द्र चांदनी, वरण कर रही प्रियतम का, झीगुर की झंकार से सहसा, मिटा ताप ज्यूं अन्स्तल का। रुनझुन रुनझुन मन ललचाया बज उठी पयलिया पांवों की। विहंस उठा हर तार हृदय का, बजी रागिनी अरमानों की। सहसा आये इक पवन झोंके ने बिखरा दिए इन दृगों के सपने। फिर बनी यह साथी तन्हाई, फिर क्रूर नियति न शरमाई। परिचय :- बरेली के साधारण परिवार मे जन्मी शरद सिंह के पिता पेशे से डाॅक्टर थे आपने व्यक्तिगत रूप से एम.ए.की डिग्री हासिल की आपकी बचपन से साहित्य मे रुचि रही व बाल्यावस्था में ही कलम चलने लगी थी। प्रतिष्ठा फिल्म्स एन्ड मीडिया ने "मेरी स्मृतियां" नामक आपकी एक पुस्तक प्रकाशित की है। आप वर्तमान में लखनऊ में निवास करती है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां,...
मां
कविता

मां

परमानंद निषाद छत्तीसगढ, जिला बलौदा बाज़ार ******************** ममता की मूरत है मां। भगवान की सूरत है मां। तेरी आंचल में सारा जहां है। मेरी प्यारी और न्यारी मां। खुशियों का भंडार है मां। तेरे बिना जीवन बेकार है मां। मां की ममता है महान। कैसे करूं तेरा गुणगान मां। तुम ही दुर्गा,तुम ही काली। तु चमकती आसमां की लाली। दया,त्याग की मूरत है मां। प्रेम की तु पूरक है मां। भगवान का दिया हुआ। अनमोल उपहार है मां। मां के कदमों में स्वर्ग बसा। मां से मिलता जीवन हमको। इस जग में मां का स्थान। सबसे प्यारी व ऊँचा होती है। घर में मां भी बहु कहलाती है। सौंदर्य से सारे जहां को जीत लाती है। मां को नाराज करना हमारी भूल है। मां के कदमों की मिट्टी जन्नत की धूल है। परिचय :-परमानंद निषाद निवासी - छत्तीसगढ, जिला - बलौदा बाज़ार आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो...
वीर सपूतों
कविता

वीर सपूतों

सुरेखा सुनील दत्त शर्मा बेगम बाग (मेरठ) ********************** भारत मां के वीर सपूतों करो स्वीकार मेरा नमन देश की रक्षा के खातिर सीने पर खाते हो गोली तिरंगे का रखते हो मान सरहद पर देते हो जान हर बाधा को कर के पार देश का करते हो ना म भारत मां के वीर सपूत करो स्वीकार मेरा नमन बांधकर सर पर कफ़न सरहद पर खड़े होते हो भगत आजाद सुभाष जैसे वीर बन जाते हो मातृभूमि की रक्षा खातिर शहादत हासिल करते हो भारत मां के वीर सपूतों करो स्वीकार मेरा नमन देश की रक्षा के खातिर खाई है सीने पर गोली सीमा पर मौजूद तुम्हीं से बनती देश में होली दिवाली भारत मां के वीर सपूतों करो स्वीकार मेरा नमन।। परिचय :-  सुरेखा "सुनील "दत्त शर्मा उपनाम : साहित्यिक उपनाम नेहा पंडित जन्मतिथि : ३१ अगस्त जन्म स्थान : मथुरा निवासी : बेगम बाग मेरठ साहित्य लेखन विधाएं : स्वतंत्र लेखन, कहानी, कविता, शायरी, उपन्यास प्रकाशित साहित्य :...
माँ
कविता

माँ

विमल राव भोपाल म.प्र ******************** सीने का खून पिलाती माँ रूठो कों रोज़ मनाती माँ कितने भी गम में होगी माँ पर देख मुझे मुस्काती माँ माँ कों देख मेरा दुःख भागे मैं सोउ मेरी माँ जागे मुझको नेक बनाने में मेरी माँ हैं सबसे आगे खुद भूखी सो जाती हैं पर मुझको दूध पिलाती हैं मैं पढ़-लिख कर बड़ा बनूँ वो मझदूरी पर जाती हैं उस माँ पर में मरता हूँ बिन माँ के मैं डरता हूँ मेरी माँ केसी भी हो मैं माँ से मोहोब्बत करता हूँ। किस्मत उसकी बड़ी नेक हैं जिसके हिस्से माँ आई हैं धन्य हुआ हैं (विमल) जो उसनें माँ (मेहताब) सी पाई हैं परिचय :- विमल राव "भोपाल" पिता - श्री प्रेमनारायण राव लेखक, एवं संगीतकार हैं इन्ही से प्रेरणा लेकर लिखना प्रारम्भ किया। निवास - भोजपाल की नगरी (भोपाल म.प्र) कवि, लेखक, सामाजिक कार्यकर्ता एवं प्रदेश सचिव - अ.भा.वंशावली संरक्षण एवं संवर्द्धन संस्थान म.प्र, रचनाएँ : हम हिन्दुस्ता...
किरणों का स्पर्श
कविता

किरणों का स्पर्श

अर्पणा तिवारी इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** रवि किरणों का स्पर्श मिला, नवजीवन धरा के अंतर में अकुलाया है। वसुधा के उर में निश्चिंत पड़ा, दिनकर ने फिर स्नेहभाव से सहलाया है। नभ में विचरण करती बदली ने, ममत्व भाव से उस पर स्नेह नीर बरसाया है। स्नेह सिक्त कोमल भाव है आधार, धरणी के आंचल में जीवन पुलका इठलाया है। कोंपल फूटी प्रस्फुटित हुआ वह मानव का मित्र बना वृक्ष वही कहलाया है। . परिचय :- अर्पणा तिवारी निवासी : इंदौर मध्यप्रदेश शपथ : मेरी कविताएँ और गजल पूर्णतः मौलिक, स्वरचित और अप्रकाशित हैं आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.com पर अणु डाक (मेल) कीजि...
पर्यावरण
कविता

पर्यावरण

अन्नपूर्णा जवाहर देवांगन महासमुंद ******************** धवल शुभ्र तुंग से निखर, रवि किरणें पड़ती जब धरा। खिल उठे वन उपवन सारे, जीव जगत में तब हो उजियारा।। खेतों में लहलहायें जब फसलें, ओढ़े वसुधा तब धानी चुनरिया। कल कल कर जब सरिता बहती। छलकाए प्रकृति तब प्रेम गगरिया।। कानों मे रस घोले कोयल प्यारी, करे, मदमाये आम्र कुंजो में विचरण। कानन,कानन तब बाजे झांझ मृदंगा, सुरभित मुखरित हो हमारा पर्यावरण।। सौंदर्य प्रकृति की और निखर जाती, करते जब हम सब इसका संरक्षण। विकसित पथ चल करता मानव प्रहार, कराहती विचलित सृष्टि का होता क्षरण।। करे मानुष जब नियति से छेड़छाड़, और धरती पर बढ़े जब अत्याचार। अकुलाती धरा तब न धरती धीर जरा, आते हैं तब ही वसुधा पर प्रलय भयंकरा।। रोपित करें चलो आज बीज एक, आयेंगे तब कल उनमें पक्षी अपार। खिल उठेगा अपना भी मन उपवन, स्वच्छ सुरभित जब चलेगी बयार।। . परिचय :- अन्नपूर्णा...
पर्यावरण
कविता

पर्यावरण

संजय जैन मुंबई ******************** मेरे भी दिल मे अभी, उम्मीदे बहुत बाकी है। बस सभी का साथ चाहिए। पर्यावरण को बचाने के लिए। इंसानों का साथ चाहिए। जो हर मोड़ पर साथ दे, इसे बचने के लिए।। तप्ती हुई इस धूप में, शीतल सी छाया चाहिए। जो हाल गर्मी से हो रहा है । उसे शीतल करने एक, ठंडी सी लहर चाहिए।। बिना वृक्षो के कारण ही, यह हाल है गर्मी का। उससे बचने के लिए, वृक्षारोपन करना चाहिए। तभी इन गर्म हवाओं को, शीतल हम कर पाएंगे। और अपने देश का, पर्यवरण को बचा पाएंगे।। इस लक्ष्य को पाने के लिए। पर्यवरणको बचाने के लिए। एक जूनून हर देशवासियो के, दिलमें बस भरपूर चाहिए। और सभी का साथ चाहिए।। . परिचय :- बीना (मध्यप्रदेश) के निवासी संजय जैन वर्तमान में मुम्बई में कार्यरत हैं। करीब २५ वर्ष से बम्बई में पब्लिक लिमिटेड कंपनी में मैनेजर के पद पर कार्यरत श्री जैन शौक से लेखन में सक्रिय है...
प्रकृति का कहर
गीत

प्रकृति का कहर

संजय कुमार साहू जिला बालोद (छत्तीसगढ़) ******************** देख प्रकृति का कहर.. देख प्रकृति का कहर .. फल दिया और फूल दिया, १० पीढ़ी तक कुल दिया, इस अराजकता के दौर में, तुझको प्रभुत्व सम्पूर्ण दिया।। पर तेरा जी न भरा मानव, करता खिलवाड़ प्रकृति के साथ।। तूने क्या सोच के किया था, प्रकृति का नीरव दोहन, देख तेरे इस भूल का फल भोग रहा जग आज है, प्रकृति का बदला लेने आया आज यमराज है।। जीवों की हत्या कर तूने प्रकृति को किया कुरूप, देख आज कोरोना आया प्रकृति प्रतिघात स्वरूप, आज पर्यावरण दिवस पर मान ले अब तू मेरी बात, कर प्रकृति का सम्मान, जंगल को न कर वीरान, जीवों की रक्षा तू कर, पेड़ लगा बढ़ा प्रकृति का मान, वरना कोई नहीं बचा पाएगा तुझे, प्रकृति का कहर है आज। देख प्रकृति का कहर ... देख प्रकृति का कहर..।। आज गर्मी के दिनों में सुबह चलती भाप है, शाम को पानी गिराकर देती प्रकृति श्राप है, बरसात मे...
प्रीत की पाती
कविता

प्रीत की पाती

दिलीप कुमार पोरवाल “दीप” जावरा मध्य प्रदेश ******************** (हिन्दी रक्षक मंच द्वारा आयोजित अखिल भारतीय कविता लेखन प्रतियोगिता में प्रेषित कविता) मीत हो तुम मन के मेरे ना कोई और दिल में सिवा तेरे कुछ बोल सुनना चाहें दीप तुम्हारे माझी बन कर चलू संग तिहारे री सजनी ले चल नदियां किनारे पोर पोर में  रहो बसी हमारे रच बस जाऊ संग तिहारे वादी हो हरी भरी या कांटो भरी लड़खड़ा कर भी चलू संग   तिहारे री सजनी लिख दी प्रीत की पाती नाम तुम्हारे परिचय :- दिलीप कुमार पोरवाल “दीप” पिता :- श्री रामचन्द्र पोरवाल माता :- श्रीमती कमला पोरवाल निवासी :- जावरा म.प्र. जन्म एवं जन्म स्थान :- ०१.०३.१९६२ जावरा शिक्षा :- एम कॉम व्यवसाय :- भारत संचार निगम लिमिटेड आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताए...
विमान का सफर
कविता

विमान का सफर

वचन मेघ चरली, जालोर (राजस्थान) ******************** कोरोना जैसे संकट में। जब गरीब था विकट में। पड़ा था खाने पीने के झंझट में। तब उड़ रहा था नीलाबंर में, आ रहें थें अर्थशास्त्री भारत में, शायद अर्थव्यवस्था संभालने, मजदूर गरीब की मदद को। जब वे चल रहें थें, भूखे नंगे पैर। उन्होंने देखी हवाई जहाज, खुश होकर, एक आशा के साथ। उनके बच्चें ताली पिटने लगें थे। उन्हें साफ दिखाई दे रहे थे, कई हाथ हवा में टाटा करते हुए, अंगुलियों से V दिखाते हुए। अब विश्वास हो गया उन्हें, शायद सुचारू होगा यातायात। सरकार हमारी भी सुनेगी बात। इसी आशा से चलतें रहे, धूप घाम में जलते रहे। ऊपर से विमान गुजरते रहें। बिचारे मर गए ट्रेनों के चक्कर में। मरते भी जो चलने लगे थे, विमान के टक्कर में। होठ सूख गयें थें प्यास से। चल रहे थें जिंदा लाश-से। फिर भी बता रहे थें अपने बेटे को, आरामदायक यात्रा है विमान की, होता सफर मिनटों...
वंशीधर
कविता

वंशीधर

मिथिलेश कुमार मिश्र 'दर्द' मुज्जफरपुर ******************** माना मान लिया कि आज वंशीधर का पैदा होना मुश्किल है पर असंभव तो नहीं कठिनाइयाँ हो सकती हैं हो सकती हैं क्या हैं पर इससे वंशीधर का पैदा होना तो नहीं रुक सकता सारा संसार पंडित अलोपीदीन के चरणों में तो नहीं झुक सकता कहीं-न-कहीं पंडित को हारना ही है अंत में उसे स्नेह से वंशीधर को गले लगाना ही है और 'नमक का दारोगा' के पिता के मन से ग्लानि का भाव भगाना ही है 'सच का सूरज' उगता है पर उसके उगने के पहले वंशीधरों की इतनी परीक्षा हो जाती है कि कई वंशीधर वंशीधर रह ही नहीं पाते हैं झूठ के अंधेरे में वे इस तरह खो जाते हैं कि कभी वे वंशीधर थे कहना वंशीधर का अपमान है उस वंशीधर का जिसका अपना स्वाभिमान है और जिसके सामने दुनिया की सारी दौलत व्यर्थ है क्योंकि वंशीधर अपने स्वाभिमान की कीमत चाहे वह कितनी ही क्यों न हो चुकाने में समर्थ है समर्थ है। . ...
संयममय जीवन
कविता

संयममय जीवन

माधवी तारे इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** संयममय जीवन सुरक्षित वतन करोना तो हैं, बिन बुलाया मेहमान। बड़ा जिद्दी और जानलेवा इसका तूफान।। यमराज का कार्य हैं इसने बढ़ाया। बिन यात्रा दसवे-तेरहवे पहुंच जाता इंसान, सीधे वैकुण्ठधाम।। सम्पूर्ण जगत को चूभ रहा इसका आंतरिक शूल। अच्छे-अच्छे को चटा दी इसने प्राणांतिक धूल।। बिना ढोलबाजे डीजे और बिना पंगत। आ रही लाड़ी घर में लेकर नई रंगत।। जीवन जीने का इसने, बदल दिया दृष्टिकोण। मास्क ग्लव्ज़ सह दूर से ही करो सबका नमन।। जून का खुशनुमा पवन लॉकडाउन का थोड़ा परिवर्तन नित सेनिटाइजेशन, हस्तप्रक्षालन संयमित जीवन सुरक्षित वतन।। .परिचय :- माधवी तारे निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश) आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहान...
आत्महत्या
कविता

आत्महत्या

धैर्यशील येवले इंदौर (म.प्र.) ******************** घने जंगलों कलकल कर बहते झरनों पक्षियों का कलरव शेर की दहाड़ इनके बारे में मैंने सोचा न था। मैं सोचता था अपने खेतों के लिए खलियानों के लिए अपने मकानों के लिए मुझे गर्व था अपनी शक्ति पर बुद्धि पर अपने सामर्थ्य पर। धराशाई किये गगनचुंबी वृक्ष अगणित घोंसले टूटे होंगे , मेरा मकान बनाने के लिए, इसके बारे में मैंने कभी सोचा न था। सुनहरी गेंहू की बालियों के लिए मोती से मक्के के लिए लहकती सरसो के लिए कितने पीपल, पलाश कितने बरगद, अमलताश खो दिए इनके बारे में मैंने सोचा न था। मैं इठलाया हाथी दांत का कंगन पहन मैं इठलाया कस्तूरी की सुगंध से मैं इठलाया बघनखा देख मेरे इठलाने की क़ीमत कितने प्राणों ने चुकाई इसके बारे में मैंने सोचा न था। सूखती नदिया जंगलों के नाम पर कुछ कटीली झाड़ियां चूहे ,मच्छर, विषाणुओं की फौज और धूल भरी आँधिया इनके बारे में मैंने स...
पर्यावरण सुरक्षा
कविता

पर्यावरण सुरक्षा

रशीद अहमद शेख 'रशीद' इंदौर म.प्र. ******************** असमय मरण नहीं हो,अ समय क्षरण नहीं हो! अब विश्व में प्रदूषित पर्यावरण नहीं हो! पर्वत हो अथवा समतल सब जल ज़मीन जंगल रखने हैं नित्य निर्मल करने हैं यत्न अविरल भू पर कहीं भी बोझिल वातावरण नहीं हो! अब विश्व में प्रदूषित पर्यावरण नहीं हो! विषहीन हों हवाएं नकली न हों दवाएं जन चेतना अधिक हो आए न आपदाएं हो जो भी जन विरोधी उसका वरण नही हो!! अब विश्व में प्रदूषित पर्यावरण नहीं हो! शोभित सभी हों उपवन उजड़े न कोई कानन पथ-पथ हो वृक्षारोपण वंचित रहें नआँगन सौन्दर्य पर धरा के कोई ग्रहण नही हो! अब विश्व में प्रदूषित पर्यावरण नहीं हो! सर सरित् अथवा सागर पावन रहें निरन्तर मानक हो इनके स्तर पीड़ित नहीं हों जलचर जल में अशुद्धियों को कोई शरण नहीं हो! अब विश्व में प्रदूषित पर्यावरण नहीं हो! हो शोर पर नियंत्रण सीमित हों सभी भाषण हो क्षीण नाद विसरण ...
जीवन अनमोल
कविता

जीवन अनमोल

डॉ. रश्मि शुक्ला प्रयागराज उत्तर प्रदेश ******************** सर्वभवन्तु सुखिन:सर्व सन्तु निरामया: काम काज को अब शुरू करना है, हम सबको घर से निकालना है। सबको ये वादा निभाना है, कोरोना को दूर भागना है। ये आपदा को मिलकर हारना है, पूरे भारत को निरोग रखना है। जन जन को राष्ट्रीय धर्म निभाना है, देश के विकास में आगे आना है। घर-घर ये अलख जगाना है, पूरे भारत को विश्व गुरु बनाना है। वायरस ये बड़ा दुशमन है हमारा, गोली बारूद से नही मरने वाला। समाजिक दुरी से इसको भगाना है, संक्रमण की चेन बनने नही देना है। अफवाहो को नहीं फेलाना है, पूरे भारत को स्वस्थ रखना है। जीवन बड़ा अनमोल हमारा है, जान बूझ कर ना सबको गवाना है। अंध विश्वासों से सबको बचना है, महामारी से देश को उबरना है। मास्क पहनकर बाहर निकलना है, गाईड लाईन का पालन करना है। सबको विजय को प्राप्त करना है, मानवता को अब साथ लेना है। . परि...
डमरू के स्वर
कविता

डमरू के स्वर

ओमप्रकाश सिंह चंपारण (बिहार) ******************** डमरू के स्वर बूंदो में भर उतरो नभ से हे प्रलयंकर। कर फिर से तू नव नर्तन संघार करो तू दानवता की। फिर से तू रच नव सृस्टि को। मानवता की धर्म ध्वज को अडिग करो हे नागेश्वर। डमरू के स्वर बूंदो में भर पावस फुहार बन फिर बरसो। मुरझाई इस बसुधा में फिर से हरियाली आयी। सुखी नदिया ताल तलैया नव उमंग की लहर हिलोरे। ले रही सब अंगराई रूखी बसुधा फिर नवसिंगार कर नव दुल्हन बन कर मुस्काई । डमरू के स्वर बूंदो में भर उतरो नभ से हे प्रलयंकर। आज अडिग यह भारत भू हो फिर सरहद पर है संकट आई । खोलो त्रिनेत्र है प्रलयंकर भस्म करो तुम सत्रु दल को। डमरू के स्वर बूंदो में भर उतरो नभ से हे प्रलयंकर। . परिचय :- ओमप्रकाश सिंह (शिक्षक मध्य विद्यालय रूपहारा) ग्राम - गंगापीपर जिला - पूर्वी चंपारण (बिहार) सम्मान - हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा हिन्दी रक्षक...
पर्यावरण रक्षक कोरोना
कविता

पर्यावरण रक्षक कोरोना

प्रीति शर्मा "असीम" सोलन हिमाचल प्रदेश ******************** मानव पर्यावरण संरक्षण के नारे लगाता था । हर साल ५ जून को पर्यावरण दिवस मनाता था। जल प्रदूषण, गाड़ियों का, फैक्ट्रियों का धुआं कम करें। घटते वन्य जीवन और जैवीय दुष्प्रभावों का कुछ मनन करें। जनसंख्या विश्व की अगर इसी तरह बढ़ेगी । विश्व वृद्धि से पर्यावरण की गति घटेगी। मानव बस नाटकीय सोपान पर चिल्लाता रहा । पर्यावरण का गला घोट जीव-जंतुओं को खाता रहा। अधिनियम बनाता रहा। प्रदूषण के नाम पर पर्यावरण सरंक्षण को भक्षक बन खााता रहा। कोरोना रक्षक बनकर आया।पर्यावरण को दूषित मुक्त बनाया। सारे प्रदूषण साफ कर दिए।मानव को घर में कैद कराया। कोरोना तो सचमुच पर्यावरण का रक्षक बनकर आया। . परिचय :- प्रीति शर्मा "असीम" निवासी - सोलन हिमाचल प्रदेश आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रक...
सुबह के उजले प्यार से
कविता

सुबह के उजले प्यार से

विवेक रंजन 'विवेक' रीवा (म.प्र.) ******************** सुबह के इन्तज़ार में तारे भी गिनना सीख गया और रात के अंधियारे में गुनता रहा आवाज़, जो पुकारती सी आयी थी नदिया के उस पार से। हर कदम, हर राह पर कर्तव्य का निर्वाह कर, बस मौन से दो बात कर मैं इन्तज़ार करता रहा मेरी भी आँखें खुल जायें सुबह के उजले प्यार से। चटखी थी जूही की कली वही नरगिसी ख्वाब बनी, आस लिये, नयी चाह लिये फिर पुरवाई की राह तकी मन उपवन अब महक उठे शेफाली से,चंदन बयार से। सुबह के उजले प्यार से ........ . परिचय :- विवेक रंजन "विवेक" जन्म -१६ मई १९६३ जबलपुर शिक्षा- एम.एस-सी.रसायन शास्त्र लेखन - १९७९ से अनवरत.... दैनिक समय तथा दैनिक जागरण में रचनायें प्रकाशित होती रही हैं। अभी हाल ही में इनका पहला उपन्यास "गुलमोहर की छाँव" प्रकाशित हुआ है। सम्प्रति - सीमेंट क्वालिटी कंट्रोल कनसलटेंट के रूप में विभिन्न सीमेंट संस्थानों से समब...