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पद्य

शिवायन
भजन

शिवायन

विजय गुप्ता "मुन्ना" दुर्ग (छत्तीसगढ़) ******************** शिव का नाम जगत में सबसे छोटा पर, देवों के देव महादेव ही शिव अखंड श्रद्धा पूर्ण नमन। ब्रम्हांड में शून्य स्थान नहीं कभी रहता, दिव्य चेतना से परिपूर्ण हर कोना ज्ञान भंडार चमन। ज्यतिर्लिंगों से शंख आकृति रचेता बम बम लहरी। अनंत चेतना है शाश्वत शिव प्रथम गुरु, स्वयं-भू शिव के दो नेत्र सूर्य चंद्र तीसरा विवेक नयन। भूत वर्तमान भविष्य स्वर्ग मृत्यु पाताल, त्रिलोक स्वामी भोले भक्ति में दास भक्त करते जतन। शिव का नाम जगत में सबसे छोटा पर, देवों के देव महादेव ही शिव अखंड श्रद्धा पूर्ण नमन। ज्यतिर्लिंगों से शंख आकृति रचेता बम बम लहरी। देवी सती स्मृति वश देह पर भस्म रमाते, शिव आभूषण भस्म के भस्मी तिलक में भक्त भजन। नागराज वासुकी बने सागर मंथन रस्सी, नागसर्प माला भी गहना शिव शंकर को भाए गहन। शिव का नाम जगत में सबसे छोटा पर,...
याचक
कविता

याचक

श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी लखनऊ (उत्तर प्रदेश) ******************** यह हार नहीं क्षणिक विराम है क्योंकि जीवन कुरुक्षेत्र का महासंग्राम है बुरे कर्म बुरे शब्द अब नहीं ग्रहण करूंगा बहुत हुआ खुद से विमुख होना दया की भीख अब नहीं मांगूंगा वरदान लूँगा, चाहे वो तमस हो, चाहे हो ताप , जान चुका हूँ सम्मान के बिना कोई अस्तित्व ही नहीं मनुष्य बन धर्म की संपूर्ण कला से विकसित करूंगा स्वयं को मुक्त आए थे जीवों का जीवन बदलने का संकल्प लिए, है सृष्टि का कर्ज इस जन्म मे मेरे लिए बार-बार आना पडे इस कर्तव्य पथ पर फिर भी, भागुंगा नहीं विक्षिप्त होकर बार-बार ही सही मुक्त आया हूँ मुक्त ही जाऊँगा, अनवरत अनन्त काल तक!! परिचय :- श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी पति : श्री राकेश कुमार चतुर्वेदी जन्म : २७ जुलाई १९६५ वाराणसी शिक्षा : एम. ए., एम.फिल – समाजशास्त्र,...
आज महानिशि पुण्य प्रदायक
स्तुति

आज महानिशि पुण्य प्रदायक

अंजनी कुमार चतुर्वेदी "श्रीकांत" निवाड़ी (मध्य प्रदेश) ******************** हे देवों के देव, सदाशिव तुम हो सृष्टि का आधार। हे त्रिनेत्र, हे महाकाल प्रभु, कृपा करो हे जगदाधार। भूत नाथ, भोले भंडारी, कोर कृपा की तुम कर दो। पार्वती पति, महाकाल तुम, खुशियाँ जीवन में भर दो। है शिव रात्रि परम सुखदायी, चहुँ दिशि मंगल छाया है। पाणिग्रहण माँ पार्वती सँग, शिव शक्ति की माया है। पाश विमोचन, हे शशि शेखर, दया दृष्टि हम पर कर दो। सूख गई निष्प्राण देह में, प्राण पिनाकी तुम भर दो। सात्विक, अष्टमूर्ति, गिरिधन्वा, मन उमंग खुशियाँ भर दो। अंधकार हट जाए उर से, कोर कृपा की तुम कर दो। आज 'महा निशि' पुण्य प्रदायक, गौरी,शंकर व्याहेंगे। मधुर कंठ से गीत ब्याह के, सभी भक्त मिल गाएंगे। हो आधार सृष्टि के तुम ही, जग के पालनहार तुम्हीं। बीच भँवर हिचकोले खाता, कर दो बेड़ा पार तुम्ही...
मृदुल वाणी
कविता

मृदुल वाणी

डॉ. प्रताप मोहन "भारतीय" ओमेक्स पार्क- वुड-बद्दी ******************** हमारी वाणी ही हमारी पहिचान हैं। बिना वाणी के हमारा शरीर बेजान है। ****** वाणी मधुर हो तो सुनने में आनंद आता है। और कठोर हो तो मन खराब हो जाता है। ******* मीठी वाणी बोलने वाला तीखे मिर्च भी बेच देता है। कठोर वाणी बोलने वाला मिठाई भी नहीं बेच पता है। ******* नफरत करते है सभी कठोर वाणी बोलने वाले से। प्यार करते है सभी मृदुल वाणी बोलने वालों से। ******* मीठी वाणी से पराये भी अपने हो जाते हैं। कड़वा बोलने से अपने भी दूर हो जाते है। ******* कोई गीत गाता है कोई भाषण देता है। जब उनकी भाषा होती है मृदुल तो सुनने में आनंद आता है। ******* मधुर वाणी हमें तरक्की के रास्ते पर ले जाती है। कठोर वाणी हमें ऊपर से नीचे गिरती है। ******* यदि आप चाहते है जिंदगी में आगे बढ़ना। तो हमेशा अपनी वाणी ...
अपना ही घर जला रहे …
गीत

अपना ही घर जला रहे …

मीना भट्ट "सिद्धार्थ" जबलपुर (मध्य प्रदेश) ******************** अपना ही घर जला रहे हैं, घर के यहाँ चिराग़। फैल रही है सारे जग में, लाक्षागृह सी आग।। शुभचिंतक बन गये शिकारी, रोज़ फेंकते जाल। ख़बर रखें चप्पे-चप्पे की, कहाँ छिपा है माल।। बड़ी कुशलता से अधिवासित, हैं बाहों में नाग। ओढ़ मुखौटे बैठे ज़ालिम, अंतस घृणा कटार। अपनों को भी नहीं छोड़ते, करते नित्य प्रहार।। बेलगाम घूमें सड़कों पर, त्रास दें बददिमाग़। सिसक रही बेचारी रमिया, दिए घाव हैं लाख। लगी होड़ है परिवर्तन की, तड़पे रोती शाख।। हरे वृक्ष सब काटें लोभी, उजड़ रहे वन बाग। परिचय :- मीना भट्ट "सिद्धार्थ" निवासी : जबलपुर (मध्य प्रदेश) पति : पुरुषोत्तम भट्ट माता : स्व. सुमित्रा पाठक पिता : स्व. हरि मोहन पाठक पुत्र : सौरभ भट्ट पुत्र वधू : डॉ. प्रीति भट्ट पौत्री : निहिरा, नैनिका सम...
काश दिख जाये
कविता

काश दिख जाये

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** मैं समझ नहीं पा रहा हूं कि अपनी मौत कैसे देखूं, हां देखना है यार मुझे बनिस्पत इसके कि कोई मेरा अपना मुझे दिखाये, मुझे व्यवहार या चाल सिखाये, वैसे थोड़ा-थोड़ा जा रहा हूं उसी अनचाहे रास्तों की ओर जहां नहीं चाहता कोई स्वेच्छा से जाना, सभी चाहते हैं फर्ज निभाना, हर कर्ज़ चुकाना, लेकिन फंस जाता है भंवर में, जज्बातों के, हालातों के, जो करने की कोशिश करता है कि इसे कब और कैसे कमजोर करूं, इनके सिर पर कब पांव धरुं, दुनिया में ऐसा कोई नहीं है जो बुरे या आफत के वक्त में आपको सम्बल दे, हर रिश्ते से लेकर हर मित्र मंडली तक तैयार बैठे हैं शायद आपके मौत के इंतजार में, चाल,चरित्र,चेहरा मेरा स्थिर था है और रहेगा, अभी तक किसी को भी अपनी मौत देखने को नहीं मिला, काश दिख जाये, जब भी आये। ...
सूरज न अभिमान दिखाता
कविता

सूरज न अभिमान दिखाता

डॉ. किरन अवस्थी मिनियापोलिसम (अमेरिका) ******************** ‌हाथी ही पहाड़ के नीचे नही आता दिनपति भी बादलों में छुप जाता है रवि को जब ढक लेते हैं मेघा तो वह भी अपनी सीमा जान जाता है तभी तो रवि गर्व नहीं करता उसे अहंकार नही ढक पाता आओ मानव मुझे मनाओ कह, वह सिर न उठाता। सूर्य ऊर्जा, प्रकाश का दाता सारे जग का जीवन दाता उस बिन अस्तित्व नही जग का फिर भी न अभिमान दिखाता। जल, वायु सबको देता सबका मान सम दृष्टि से सबका करता सम्मान नही कभी एहसान जताता हर कण पर पूरा प्यार लुटाता। इस गुण से ही दिनकर पाता सबमें सम्मान नही कोई बैरी उसका ब्रह्मंड में सर्वोच्च स्थान। बच्चों तुम सूरज बन जाओ। परिचय :- डॉ. किरन अवस्थी सम्प्रति : सेवा निवृत्त लेक्चरर निवासी : सिलिकॉन सिटी इंदौर (मध्य प्रदेश) वर्तमान निवासी : मिनियापोलिस, (अमेरिका) शिक्षा : एम.ए. अंग्रेजी, एम.ए. भाषाविज...
मातृशक्ति
कविता

मातृशक्ति

किरण पोरवाल सांवेर रोड उज्जैन (मध्य प्रदेश) ******************** "रोज ही मातृ दिवस मनाओ, झुझती वह हर रोज है, हर पल पग-पग देती परीक्षा, कभी माँ बन कभी सासु वो" कितनी भी रणचंडी बन ले, प्रेम झलकता आंखों में, कभी हाथों में तलवार है उसके, कभी हाथों में बेटा है। कभी घोड़े पर असवार है होती, कभी घोड़ा बन जाती वो, कभी रक्त से तलवार है धोती, कभी कलम चलाती वो। कभी सिंहासन राज है करती, कभी वन वन में डोले वो, कभी बेटे का बलिदान है करती, कभी पन्नाधाय बन जाती वो। एक आंख में आंसू उसके, एक में प्रेम झलकाती वो , एक पल में रोना है उसका, एक पल में हंस जाती वो। कितना त्याग बलिदान है उसका, कभी चण्डी कभी दुर्गा वो, कभी जनक दुलारी सीता बनती, कभी वन देवी बन जाती वो। कभी हल से वह पैदा होती, कभी-कभी अग्नि परीक्षा देती वो, कभी धरती फट समा वह जाती, वह भारत की बेटी जो। ...
इन्तजार कब तक
कविता

इन्तजार कब तक

मालती खलतकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** यूँ ही दिल जलाया हमने किसी को अपना बना के यूं ही इन्तजार किया हमने किसी को आज भुलाके। यू ही पथ पर बिछाई आंखें किसी से आंख मिलाके तारों के झुरमुट में खोजा खोजा चांद की चांदनी में। तुम छुपतीं रही ओ सुरमई सन्ध्या थानी चुनरिया ओढकर के फूलो में लताओं में छुपते देखा और देखा हैं, शाम तुम्हें पहाड़ों की चोटियों को सुनहरी करते। मैं इन्तजार कब तक करतीं। परिचय :- इंदौर निवासी मालती खलतकर आयु ६८ वर्ष है आपने हिंदी समाजशास्श्र में एम ए एल एलबी किया है आप हिंदी में कविता कहानी लेख गजल आदि लिखती हैं व आपकी रचनाएँ विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं मैं प्रकाशित होते हैं आप सन १९६८ से इंदौर के लेखक संघ रचना संघ से जुड़ी आप शासकीय सेवा से निमृत हैं पीछेले ३० वर्षों से धार के कवियों के साथ शिरकत करती रही आकाशवाणी इंदौर से भी रचनाएं प्रसा...
मधुमास
कविता

मधुमास

प्रतिभा दुबे ग्वालियर (मध्य प्रदेश) ******************** बसंत ऋतु के आगमन पर छाया हुआ हैं मधुमास बिहंग कलरव करते मधुर प्रिय की करते सब आस।। रूप अलौकिक राधिका का, कृष्ण करें जब श्रृंगार फागुन मैं होरी खेलन को कान्हा लियो मोहे पुकार।। नवयौवन, लावण्यता, जैसे नवीन ही आई हो बाहर खिल उठी देखो वसुंधरा, मधुमास छाया हैं अपार।। पीली पीली सरसों के फूलों से छाई बहार रही मैं माप अंबर तक दिखती रौनक, जैसे सूर्य का बड़ गया ताप।। आनंदित है यह दसों दिशाएं, देखकर मधुर ये मधुमास प्रियतम से मिलने जाए सखी, प्रिय से मिलन की आस।। फागुन को आता देख कर वसंत ऋतु में छाया मधुमास, कोयल कुके हर डाली पर, पुलकित विहंग करें प्रेम रास।। खेत खलियान सब फल फूल रहें, बोराया हुआ फिर आम, नव पल्लवित पुष्पित जीवन, यही तो हैं मधुर मधुमास।। परिचय :-  श्रीमती प...
इंतजार के पल …
कविता

इंतजार के पल …

किरण पोरवाल सांवेर रोड उज्जैन (मध्य प्रदेश) ******************** इंतजार के पल भी बहुत होते हैं कठिन, इंतजार किया माता रुक्मणी ने, प्रभु पति पाये गोपाल नारद के मुख से कहानी सुनी ! कृष्ण चंद्र महाराज, पति रूप स्वीकार किया माता देखो आज, पाती (पत्र) भेजी कृष्ण को ले जाओ दीनानाथ, नहीं तो शिशुपाल दुष्ट आपकी दासी ले जाएगा साथ (आपका हक)। पाती पढ़कर है प्रभु कुंदनपुर में आए, रूखमणि को रथ में बैठा करके, ले जाए प्रभु साथ, इंतजार के पल खत्म हुए वर पाया गोपाल, पटरानी रुक्मणी बनी राजा हे नंदलाल। परिचय : किरण पोरवाल पति : विजय पोरवाल निवासी : सांवेर रोड उज्जैन (मध्य प्रदेश) शिक्षा : बी.कॉम इन कॉमर्स व्यवसाय : बिजनेस वूमेन विशिष्ट उपलब्धियां : १. अंतर्राष्ट्रीय साहित्य मित्र मंडल जबलपुर से सम्मानित २. अंतर्राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना उज्जैन से सम्मानित ३. ...
बसंत का स्वागत
कविता

बसंत का स्वागत

मालती खलतकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** आओ-आओ, चलो-चलों रे केशर क्यारी-क्यारी बौरायी आंगन, द्वारे थ्वज केसरिया। करै बसंत की अगुवाई। आमृवृक्ष की पात-पात झूमें गावे कोयल मतवाली। कोमल, कोमल रवि रश्मि में पांखी फूल-फूल पर मंडराती। स्वागत करती कली, क्लीं केतकी की श्वेत वर्ण में सज आई रक्त, श्वेत, पीत वर्ण में चम्पा करें मनुहारी आमृवृक्ष पर अमिया झूमें दसों दिशाओं में सुगथ बिखरातीं। परिचय :- इंदौर निवासी मालती खलतकर आयु ६८ वर्ष है आपने हिंदी समाजशास्श्र में एम ए एल एलबी किया है आप हिंदी में कविता कहानी लेख गजल आदि लिखती हैं व आपकी रचनाएँ विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं मैं प्रकाशित होते हैं आप सन १९६८ से इंदौर के लेखक संघ रचना संघ से जुड़ी आप शासकीय सेवा से निमृत हैं पीछेले ३० वर्षों से धार के कवियों के साथ शिरकत करती रही आकाशवाणी इंदौर से भी रचनाएं प्रस...
चलो आओ जरा अपने मन में झाक आएं
कविता

चलो आओ जरा अपने मन में झाक आएं

प्रतिभा दुबे ग्वालियर (मध्य प्रदेश) ******************** हर दिवस ही हम नारी दिवस मनाएं चलो आओ जरा अपने मन में झाक आएं।। सुबह चुपचाप उठ जाती, हर स्त्री चाय बना, बाद मैं ही सबको जगाती।। खाना जतन से बनाती, खुद पीछे भोजन करती पहिले सबको खिलाती।। काम सभी के अपने जिम्मे, जिमेदारी से अपने हाथ से हर सामान को पकड़ाती।। कही कोई गड़बड़ न हो, इसलिए अनुशासन बनाती, वो घर को स्वर्ग बनाती।। जब कभी विपादये आए तो, वो शक्ति स्वरूप में आती, सबका मनोबल सदैव बढ़ाती।। न समझो तुम अबला सबला रूपी वे सृजन करता हैं सृष्टि की, वही जीवन भी सजाती ।। हंसकर महिला दिवस मनाओ, कभी किसी वृद्ध महिला से भी उसका हाल पूछ आओ।। परिचय :-  श्रीमती प्रतिभा दुबे (स्वतंत्र लेखिका) निवासी : ग्वालियर (मध्य प्रदेश) उद्घोषणा : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार...
जब बसंत आता है
कविता

जब बसंत आता है

प्रमेशदीप मानिकपुरी भोथीडीह, धमतरी (छतीसगढ़) ******************** जब बसंत आता है मन मे उमंग जगाता है बागो मे कोयल जब प्यार के गीत गाती है सरगम की लय पर सस्वर गीत सुनाती है इन मधुर गीतों से दिल मेरा भर जाता है जब बसंत आता है मन मे उमंग जगाता है अमुवा की मौर से फ़िज़ा भी मतवाली है बासंती बयार सबका मन मोहने वाली है सरसराती हवाएं दिल मे आग लगाता है जब बसंत आता है मन मे उमंग जगाता है पीले सरसो के फूल प्रकृति का श्रृंगार है धरा पर बसंत, रति काम का अवतार है इसकी मादकता मन को सदा हर्षता है जब बसंत आता है मन मे उमंग जगाता है रग-रग मे जीने की नवीनतम आश है प्रकृति का अप्रतिम कैसा अहसास है प्रकृति का हर शै प्रेम की बात बताता है जब बसंत आता है मन मे उमंग जगाता है प्रकृति से सीखे परिवर्तन कैसे स्वीकारना विषम परिस्थिति मे भी खुद को निखारना पतझड़ के बाद ही नई-नई कोपले आता है ज...
ये कैसी दुनिया
कविता

ये कैसी दुनिया

सुरभि शुक्ला इन्दौर (मध्य प्रदेश) ******************** ये कैसी अजब नगरी है जहाॅं कोई राजा और कोई रंक है कोई आसमान में बैठा कोई ज़मीन की धूल में लेटा है कोई ऐसी के आलिशान कमरों में सोता तो कोई सड़क के किनारे फुटपाथ पर सारी रात जागता है कोई फाईव स्टार होटल में आराम से बढ़िया व्यंजन खाता तो कोई उनकी जूठन से अपना पेट भरता है कोई धन की गड्डी ही दिनभर गिनता रहता तो कोई एक एक रुपया जोड़ने में जिंदगी गुजार देता है कोई दाग़ लगे श्वेत वस्त्रों में भी शरीफ़ होता तो कोई शरीफ़ होकर भी दाग़ दार कहलाता है परिचय :-   सुरभि शुक्ला शिक्षा : एम.ए चित्रकला बी.लाइ. (पुस्तकालय एवं सूचना विज्ञान) निवासी : इन्दौर (मध्य प्रदेश) जन्म स्थान : कानपुर (उत्तर प्रदेश) रूचि : लेखन, गायन, चित्रकला सम्प्रति : निजी विद्यालय में पुस्तकालयाध्यक्ष आप भी अपनी कविताएं,...
आया महीना फ़ागुन का
कविता

आया महीना फ़ागुन का

गोविन्द सरावत मीणा "गोविमी" बमोरी, गुना (मध्यप्रदेश) ******************** अंतर्मन में जगाए आकुलता, शीत सयानी फागुनी। अमराई में छुपकर कोयलिया, छेड़ रही मृदु रागिनी।। पवन वाबरी मदहोश हुई है, छू किसलय कपोल। उर आलिंद हर्षित अतिशय, सुनक़े मिश्री-से बोल।। मन मोहक महुआ की महक, करे मतवाला अंग-अंग। नव यौवना-सा निखरा पलाश, समेट बासंती रंग-रंग।। निपर्ण तरुवर का तन लगता, मानो हो निष्प्राण देह। कर रहे चाकरी हवाओं की, शायद सोनपरी के गेह।। ढल गया फ़िर ये दिन दीवाना, तेरा ही इंतज़ार लिए। सारी रानी बरसी ये अखियां, तेरा ही इनकार लिए।। आया महीना फ़ागुन का प्रिय! ले करक़े रंग हज़ार। आभी जा ओ हरजाई अब तो, रहता जिया बेकरार।। परिचय :- गोविन्द सरावत मीणा "गोविमी" निवासी : बमोरी जिला- गुना (मध्यप्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं म...
हे! भोलेभंडारी
गीत

हे! भोलेभंडारी

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** हे त्रिपुरारी, औघड़दानी, सदा आपकी जय हो। करो कृपा, करता हूँ वंदन, यश मेरा अक्षय हो।। देव आप, भोले भंडारी, हो सचमुच वरदानी भक्त आपके असुर और सुर, हैं सँग मातु भवानी देव करूँ मैं यही कामना ,मम् जीवन में लय हो। करो कृपा, करता हूँ वंदन, यश मेरा अक्षय हो।। लिपटे गले भुजंग अनेकों, माथ मातु गंगा है जिसने भी पूजा हे! स्वामी, उसका मन चंगा है हर्ष,खुशी से शोभित मेरी, अब तो सारी वय हो। करो कृपा, करता हूँ वंदन, यश मेरा अक्षय हो।। सारे जग के आप नियंता, नंदी नियमित ध्याता, जो भी पूजन करे आपका, वह नव जीवन पाता पार्वती के नाथ, परम शिव, मेरे आप हृदय हो। करो कृपा, करता हूँ वंदन, यश मेरा अक्षय हो।। कार्तिकेय,गणपति की रचना, दिया जगत को जीवन तीननेत्र, कैलाश निवासी, करते सबको पावन जीवन हो उपवन-सा मेरा, अंतस तो ...
कंचन मृग छलता है
गीत

कंचन मृग छलता है

मीना भट्ट "सिद्धार्थ" जबलपुर (मध्य प्रदेश) ******************** कंचन मृग छलता है अब भी, जीवन है संग्राम। उथल-पुथल आती जीवन में, डसती काली रात। जाल फेंकते नित्य शिकारी, देते अपनी घात।। चहक रहे बेताल असुर सब, संकट आठों याम। बजता डंका स्वार्थ निरंतर, महँगा है हर माल। असली बन नकली है बिकता, होता निष्ठुर काल।। पीर हृदय की बढ़ती जाती, तन होता नीलाम। आदमीयत की लाश ढो रहे, अपने काँधे लाद। झूठ बिके बाजारों में अब, छल दम्भी आबाद।। खाल ओढ़ते बेशर्मी की, विद्रोही बदनाम। परिचय :- मीना भट्ट "सिद्धार्थ" निवासी : जबलपुर (मध्य प्रदेश) पति : पुरुषोत्तम भट्ट माता : स्व. सुमित्रा पाठक पिता : स्व. हरि मोहन पाठक पुत्र : सौरभ भट्ट पुत्र वधू : डॉ. प्रीति भट्ट पौत्री : निहिरा, नैनिका सम्प्रति : सेवानिवृत्त जिला न्यायाधीश (मध्य प्रदेश), लोकायुक्त संभागीय सत...
क्या नहीं चाहिए
कविता

क्या नहीं चाहिए

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** जरा बता तो दो ऐ ताक़त क्या तुम्हें इस वतन में मजलूम नहीं चाहिए, गरीब लाचार नहीं चाहिए, यदि हां तो कुछ करते क्यों नहीं? तुम्हारे कारिंदे सुधरते क्यों नहीं? पॉवर सिर्फ पैसे, पद और कद बढ़ाने के लिए ही नहीं है, उनका जीवन स्तर सुधारने के लिए है जो इसके दायरे में रहते सही हैं, गरीबों, दलितों पर रौब जमाने के लिए नहीं है, कैलेंडर से पांच साल निकल जाते हैं, पर दिल का कालापन रह जाते हैं, बिना कुछ कहे ही बहुत कुछ कह जाते हैं, सत्ता कुछ चंद गिरोहों का धंधा नहीं, संविधान के सफल क्रियान्वयन का है एक उचित जरिया, जहां चलना चाहिए एकमात्र नजरिया, क्या देश का संपूर्ण विकास संवैधानिक तरीके से संभव नहीं? पॉवर के लिए कुछ भी असंभव नहीं। परिचय :-  राजेन्द्र लाहिरी निवासी : पामगढ़ (छत...
मर्यादा जीवन की पूँजी
कविता

मर्यादा जीवन की पूँजी

अंजनी कुमार चतुर्वेदी "श्रीकांत" निवाड़ी (मध्य प्रदेश) ******************** मर्यादा जीवन की पूँजी, संस्कार देती है। मर्यादित आचरण सदा ही, सद्गुण की खेती है। मर्यादा में रहे रामजी, पुरुषोत्तम कहलाते। मर्यादित व्यवहार राम का, बाबा तुलसी गाते। राम राज्य में सागर सबको, रत्न प्रेम से देते। मर्यादा में जल रहता है, वारिधि प्राण न लेते। कभी नहीं मर्यादा लाँघें, सीमा कभी न तोड़ें। धर्माचरण करें जीवन में, नहीं सुपथ को छोड़ें। मर्यादा का बाँध न तोड़ें, अपनी सीमा जाने। मर्यादित आचरण करें हम, अन्तस को पहचाने। बाँध टूटता मर्यादा का, सदा अमंगल होता। मर्यादा भंजक, जीवन में, नहीं चैन से सोता। मर्यादा को खंडित करके, कौरव दल मुस्काया। पाया दंड स्वयं माधव से, अपना वंश नशाया। मर्यादा में रहने वाले, जगवंदित हो जाते। मिलता है सम्मान जगत में, सुखमय जीवन पाते। जो मर्...
इश्क में वक्त बेकार न कर
कविता

इश्क में वक्त बेकार न कर

प्रीतम कुमार साहू लिमतरा, धमतरी (छत्तीसगढ़) ******************** लेकर हाथों में लाल गुलाब न चला कर ! दिल की बात दिल में रख न जला कर !! नजरें मिला के यूँ नजरें ना झुकाया कर ! इश्क है हमसे तो लफ्जों में बयां ‌‌ कर !! हम तेरे दीदार को तड़पते है रात दीन ! आसमां में चांद सा यूँ ना छिप जाया कर दिल की बात दिल में ना दबा के रख ! शिकायत है मुझसे तो सरे आम कहा कर बेवजह मेरे ख्वाबों में तू  न आया कर ! चैन से सोने दे नींद से न जगाया कर !! मुलाक़ात करना है तो मिलो हमसे आकर दरवाजा खुला है घर में आ जाया कर !! इश्क नहीं है तो इश्क का इजहार न कर वक्त कीमती है! मुहब्बत में बेकार न कर लाखों अजमा चुके है किस्मत इश्क कर ! खाकर ठोकर संभल चुके है लोग इश्क कर परिचय :- प्रीतम कुमार साहू (शिक्षक) निवासी : ग्राम-लिमतरा, जिला-धमतरी (छत्तीसगढ़)। घोषणा पत्र : मेरे द्वारा यह प्...
बदनाम गली
कविता

बदनाम गली

रवि कुमार बोकारो, (झारखण्ड) ******************** मैने अक्सर उन गलियों में जिंदगी को सिसकते देखा है. हंसते चेहरों में बेबश और परेशान इंसान भी देखा है। हम जैसे ही है सब वहां कोई फर्क नही है उनमें।। मैने उन बदनाम गलियों में भी कुछ पाक इंसान देखा है जीने की कोई वजह नहीं वहां किसी में, चंद पैसों में जिस्म नीलाम करते देखा है। तुमने सिर्फ जिस्म देखा उनका उनमें बैठा इंसान कहा देखा है मैने उन बदनाम गलियों में भी कुछ पाक इंसान देखा है जाती धर्म का जरा भी खेद नही हर मज़हब के लोग आते वहां देखा है। उनके भी है कई ख्वाब अधूरे उमंगों का शैलाब भी उनमें देखा है सबने सिर्फ बदन नोचा है उनका क्या कभी उनका दिल भी देखा है मैने उन बदनाम गलियों में भी कुछ पाक इंसान देखा है।। परिचय :- रवि कुमार निवासी - नावाड़ीह, बोकारो, (झारखण्ड) घोषणा पत्र : यह प्रमाणित किया जाता है कि रचना ...
तुम शिव बन जाओ
स्तुति

तुम शिव बन जाओ

डॉ. किरन अवस्थी मिनियापोलिसम (अमेरिका) ******************** तुम शिव बन जाओ जग के गरल को ग्रीवा में ग्रस लो नागों की फुफकार पर, नागेश्वर बन जाओ। अपनी परिधि से दूर कर दो कुत्सित समर को मन: अजिर में शीतलता दो तुम सोमनाथ बन जाओ। दैत्यराज भी आएँ लक्ष्य से भटकाने तुम्हें अडिग रहकर उसके लिए तुम महाकाल बन जाओ। जो आए विनती लेकर दर पर तुम्हारे, उसके लिए तुम भोलेनाथ बन जाओ। हर साँस में भटकते, तड़पते प्यासे की तुम आस बन जाओ उनके तुम विश्वनाथ बन जाओ तुम शिव बन जाओ। परिचय :- डॉ. किरन अवस्थी सम्प्रति : सेवा निवृत्त लेक्चरर निवासी : सिलिकॉन सिटी इंदौर (मध्य प्रदेश) वर्तमान निवासी : मिनियापोलिस, (अमेरिका) शिक्षा : एम.ए. अंग्रेजी, एम.ए. भाषाविज्ञान, पी.एच.डी. भाषाविज्ञान सर्टिफिकेट कोर्स : फ़्रेंच व गुजराती। पुनः मैं अपने देश को बहुत प्यार करती हूं तथा प्राय...
जिंदगी
कविता

जिंदगी

ललित शर्मा खलिहामारी, डिब्रूगढ़ (असम) ******************** जिंदगी तो जिंदगी व्यस्त है जिंदगी समय बेकार व्यर्थ फिजूलखर्च में बीत रई है जिंदगी जिंदगी की कहानी जिंदगी की जुबानी जिंदगी ही समझाती जिंदगीभर सिखलाती जिंदगीभर सताती जिंदगी कहर बरपाती जिंदगी सुखदुख में जिंदगी बीत जाती जिंदगी कभी आसान जिंदगी कभी परेशान जिंदगीभर झनझनाहट जिंदगीभर आहट जिंदगी का अहसास जिंदगीभर करवाती जिंदगी समझ नहीं पाती जिंदगी कभी रुलाती जिंदगी कभी हंसाती जिंदगी का वक्त अच्छा जिंदगी का वक्त बुरा जिंदगी में हंसकर जिंदगी में रो रो कर जिंदगी सांसे लेती जिंदगी सांसो में जीते जिंदगी सांसो के भरोसे जिंदगी समेटे रखती जिंदगीभर बेफजूल जिंदगी लगती धूल जिंदगीभर की जिद्द जिंदगीभर होती न सिद्ध जिंदगी में नफरत जिंदगीभर करते कसरत जिंदगी की यही झंझट जिंदगी यहीं लेती करवट जिंद...
शगुनी-सा लगे विश्वास
कविता

शगुनी-सा लगे विश्वास

गोविन्द सरावत मीणा "गोविमी" बमोरी, गुना (मध्यप्रदेश) ******************** मतलबी हुए लोग यहां, खुदगर्ज हुआ ज़माना , रह गया दुनिया मे शेष, फ़क्त नाम का याराना।। छल-कपट में सना हुआ, लगता है पावन प्यार, कहां कृष्ण-सी करुणा, कहां कर्ण-सा व्यवहार।। वादे तो करते कई, हर मुश्किल में साथ देने के, पर लेते खींच हाथ, आते लम्हे जब हाथ देने के।। टुकड़ों-टुकड़ों में वट चुका सु-भाव-ओ-सहयोग, झरते नही अश्रु नयनों से होता देख अव वियोग।। मन की सौम्य बगिया से, गायब हुई स्नेह सुवास, दुर्योधन-सी हुई दीनता, शगुनी-सा लगे विश्वास।। सिमट रहा रिश्तों-से, त्याग,समर्पण, शिष्टाचार, अधरों पर अर्धनग्न हंसी, करें उर से प्रश्न हजार।। आ गए हम कहां 'गोविमी', स्वार्थ में होकर अंधे, आओ करें अवगुणों से तौबा, छोड़ें कुटिल धंधे।। परिचय :- गोविन्द सरावत मीणा "गोविमी" निवासी : बमोर...