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पद्य

सब कुछ तुम
कविता

सब कुछ तुम

आरिफ़ असास दिल्ली ******************** दिल भी तुम दिमाग भी तुम हुई ज़ुदा तो ख़्याल भी तुम सवाल भी तुम भी जवाब भी तुम मेरे दर्द की पहचान भी तुम क़रीब भी तुम दूर भी तुम मेरे दीदो का इन्तज़ार भी तुम हज़ारों में तुम लाखो में तुम नही हो तो बस मेरी बाहों में तुम अव्वल भी तुम आख़िर भी तुम फ़ना होती जिंदगी की सांसे भी तुम उरूज़ भी तुम ज़वाल भी तुम रंगों में दौड़ता हुआ लहू भी तुम ... परिचय :- आरिफ़ असास नर्सिंग अफसर निवासी : दिल्ली घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमेंhindiraks...
मोहनि मूरति
कविता

मोहनि मूरति

तेज कुमार सिंह परिहार सरिया जिला सतना म.प्र ******************** वह नवल नारि करि श्रृंगार चितवन के बाण चला रही सेंदुर मांग माथे बिदिया नयनन मा सुरमा लगा रही चोटीके गजरा उपवन लागै ऑखियन ते तीर चलाय रही ओंठन लाली कानन बाली हार गले लटका रही चोलिया जनु चटकी अबहि जयहै मधुपन संग रास पचास रही करधनि पॉयल चूडी कंगना बजाय धीरन के धीर छोडाय रही मन भ्रमित भ्रमर सम डोलय जतिनव का अधीर बना रही मांग ओंठ पॉयन कै लाली समुहै खतरा कस दरसाय रही एक मूरति मोहनि टी के उर बस याद उनहिं की आय रही . परिचय :- तेज कुमार सिंह परिहार पिता : स्व. श्री चंद्रपाल सिंह निवासी : सरिया जिला सतना म.प्र. शिक्षा : एम ए हिंदी जन्म तिथि : ०२ जनवरी १९६९ जन्मस्थान : पटकापुर जिला उन्नाव उ.प्र. आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी र...
पन्ने जिंदगी के
कविता

पन्ने जिंदगी के

मित्रा शर्मा महू - इंदौर ******************** कुछ पन्ने थे पुराने जिंदगी के, कुछ नए कोरे, कोई थे सुनहरे पन्ने, कोई मनहूसियत से भरे। गिरेबान में झांका तो, मिले कई ऐसे पन्ने, चाहत रखते - रखते, हुए पुराने कोरे पन्ने। किसी में थे खिलते सपने, किसी में मुरझाते ख्वाब थे, खोजता रहा, ढूंढ़ता रहा, पन्नो में दबे कई राज थे। त्याग था, समर्पण था, पर खामोश थे वो पन्ने, उम्मीद कि किरण में जीते रहे, वो भरोसे के पन्ने। कई पन्नों के साथ आस, हवाओं में उड़ गई। उड़ गए अरमान, बिखर गई थी तस्वीरें कई कई पन्नों धूल में मिल गए, फट गए थे कुछ पन्ने लिखा न गया उसमे, भीग गए अश्कों से पन्ने। . परिचय :- मित्रा शर्मा - महू (मूल निवासी नेपाल) आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित कर...
बताओ मुझे गौतम
कविता

बताओ मुझे गौतम

धैर्यशील येवले इंदौर (म.प्र.) ******************** हे गौतम बताओ मुझे आत्मबोध पाना कितना सरल है। बताओ मुझे वे गूढ़ रहस्य जो तुमने जाने बोधी की शीतल छाया में अनेक दैहिक प्रयोग कर। बताओ मुझे वे उतार चढ़ाव वे अंधकूप जो मन के अतल गहराई में तुमने देखे, बताओ कैसे प्रकाश से भर दिया उन्हें। बताओ मुझे कैसे दया व क्षमा से शरणागत रिपु का किया जाता है सत्कार। बताओ मुझे कैसे आत्ममुग्धता नही होती आत्मबोध। बताओ मुझे बताओ वो पथ जो गौतम से आरंभ हो कर तथागत बुद्ध पर समाप्त होता है। परिचय :- धैर्यशील येवले जन्म : ३१ अगस्त १९६३ शिक्षा : एम कॉम सेवासदन महाविद्याल बुरहानपुर म. प्र. से सम्प्रति : १९८७ बैच के सीधी भर्ती के पुलिस उप निरीक्षक वर्तमान में पुलिस निरीक्षक के पद पर पीटीसी इंदौर में पदस्थ। सम्मान : हिंदी रक्षक मंच इंदौर hindirakshak.com द्वारा हिंदी रक्षक २०२० राष्ट्रीय सम्मान आप भी अपनी कविता...
संवाद होना चाहिए
कविता

संवाद होना चाहिए

चन्द्रेश टेलर पुर (भीलवाडा़) राजस्थान  ******************** अपनों में हो भले ही वैर भाव, अपनो में हो कितना भी टकराव, टूटते बिखरते रिश्तो के बीच में भी, अहं की बर्फ गलाने के लिए, समर्पण की चाह होनी चाहिए.... नित निरंतन संवाद होना चाहिए......।। घुट रही है संवेदनाएँ हर पल, मनुज दनुज मे नित परिवर्तित, गुम सुम होती रिश्तों की मिठास, जरा सी बातों मे खींचती तलवारें, मिटाने इन बढती दीवारों के लिए, स्व आत्म साक्षात्कार होना चाहिए... नित निरंतर संवाद होना चाहिए.......।। जम रही बर्फ नफरतों के बाजार में, जहर उगलती जनता नित प्रतिदिन, धर्म, जाति के ठेकेदार खुश होतें, जगाने आशा की किरणो के लिए, मानवता से प्यार होना चाहिए.... नित निरंतर संवाद होना चाहिए.......।। एक विषाणु से सहमी पूरी दुनिया, लॉकडाउन मे दुबका हुआ इंसान, अवसादों से घिरे संपूर्ण संसार में, जीवन और मरण के बीच अंतिम, एक अनूठा संवाद हो...
पिता
कविता

पिता

श्रीमती शोभारानी तिवारी इंदौर म.प्र. ******************** मां धरती पिता आकाश है, टिमटिमाते तारों का, अटूट विश्वास है, पिता रब की, सच्ची अरदास है, जीवन में पिता की जगह खास है। टूटे हुए मनोबल का सहारा है, मार्गदर्शक बन राह दिखाता है, मां वर्तमान तो पिता, भविष्य की चिंता करता है। पतझड़ में मधुमास है, उदास होठों की मुस्कान है, जिस घर में पिता नहीं, वह घर रेगिस्तान है। पिता है तो जीवन रंगीन है, वर्ना उदासी के साए हैं, रिश्ते नाते सब पिता से, वर्ना अपने भी पराए हैं। पिता नाव की पतवार है, पिता से ही सपने साकार है, पिता परिवार का पालनहार है पिता से ही रिश्ते में व्यवहार है। पिता से ही बच्चों की पहचान है, मंगलसूत्र की शान है, हिमालय बन परिवार की रक्षा करता है, मां प्यार पिता संस्कार है, पिता से ही है इठलाता बचपन है, रंगीन जवानी है, वर्ना नींद नही आंखों में, उदासी की कहानी है। माता पिता स्नेह का...
सपने
कविता

सपने

श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी लखनऊ (उ.प्र.) ******************** बिखरी हैं ज़मीन पर यादों की सारी कतरनें, कुछ ख्वाब रखे थे जाने कहाँ गुम हो गये। तिनका तिनका समेटते रहे इस जहाँ से हम, सपनों के वो खजाने अब कहाँ गुम हो गये। बीते कल में खुद को ढूंढता अपना वज़ूद इस अंधाधुंध भीड़ में कहीं गुम हो गया है। जब तब तनहाई के साये चीखते हैं मुझ पे एक परछाईं सिसकती है बेजुबान सी ढूंढते रह जाते हैं भीड़ में हम भी चेहरे काश कुछ चेहरे अपनापन तो जतलाते। सब सोचता समझता रहा है वज़ूद ये कल भी था और आज भी है। मगर ये हकीकत तो सबको पता है हंसी में भी छिपे रोग छल जाते हैं। यहाँ रोज ही अपने सपने बिखरते, इस जहाँ से चलो हम निकल जाते हैं। . परिचय :- श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी पति : श्री राकेश कुमार चतुर्वेदी जन्म : २७ जुलाई १९६५ वाराणसी शिक्षा : एम. ए.,एम.फिल – समाजशास्त्र,पी...
लाचारियाँ हैं बहुत
ग़ज़ल

लाचारियाँ हैं बहुत

नवीन माथुर पंचोली अमझेरा धार म.प्र. ******************** साथ उनके लाचारियाँ हैं बहुत। पास जिनके बेगारियाँ हैं बहुत। मंजिलें हैं हरेक सफ़र लेकिन, राह इनकी दुश्वारियाँ हैं बहुत। बोझ से झुक गया है तन उनका, जिनके सिर पर उधारियाँ हैं बहुत। आज जीने के इंतजाम है कम, रोज़ मरने की तैयारियाँ हैं बहुत। लोग सब बच-बचाके बैठे हैं, घर से बाहर बीमारियाँ हैं बहुत। . परिचय :- नवीन माथुर पंचोली निवास - अमझेरा धार म.प्र. सम्प्रति - शिक्षक प्रकाशन - देश की विभिन्न पत्रिकाओं में गजलों का नियमित प्रकाशन, तीन ग़ज़ल सन्ग्रह प्रकाशित। सम्मान - साहित्य गुंजन, शब्द प्रवाह। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindi...
छोड़ चले
गीत

छोड़ चले

डॉ. कामता नाथ सिंह बेवल, रायबरेली ******************** एक एक कर रिश्ते सारे तोड़ चले। आसमान को सूरज तारे छोड़ चले।। निभा सके हम जितने वे सब निभा लिए, बाकी करके वारे न्यारे छोड़ चले।। जिन जिन रिश्तों में असमंजस बना रहा, उन सबको हम एक किनारे छोड़ चले।। चांद चांद है, सूरज आख़िर सूरज है, महफ़िल को जुगनू बेचारे छोड़ चले।। डाल न पाए जहां विचारों के लंगर, ऐसे दरिया और किनारे छोड़ चले।। आदर्शों के जनमत पर बहुमत भारी, वह संसद भगवान सहारे छोड़ चले।। आंधी, तूफानों के आगे झुक जाएं, हम ऐसे कमजोर सहारे छोड़ चले।। मौत की तरफ पल पल बढ़ते जीवन को ख़ुद ही हम जैसे बनजारे छोड़ चले।। . परिचय :- डॉ. कामता नाथ सिंह पिता : स्व. दुर्गा बख़्श सिंह निवासी : बेवल, रायबरेली यह मेरी स्वरचित, मौलिक और अप्रकाशित रचना है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के स...
तेरा आंचल पाकर
कविता

तेरा आंचल पाकर

दामोदर विरमाल महू - इंदौर (मध्यप्रदेश) ******************** तेरा आंचल पाकर मेरा जन्म सफल है माँ। तेरे बिना अधुरा हूँ सब तेरे बिना विफल है माँ। देख सुबह तेरी सूरत को सगरे काम संवर जाते। तुझको करे दुखी जो जग में उसके काम बिगड़ जाते। करूँ याद ईश्वर को उसमे तेरी शकल है माँ... तेरा आंचल पाकर मेरा जन्म सफल है माँ। तेरे बिना अधुरा हूँ सब तेरे बिना विफल है माँ। कैसे भूलूँ मेरा बचपन जब तुमने संघर्ष किया। देकर जन्नत गोद मुझे फूलों का स्पर्श दिया। होता रहा सफल मैं क्योंकि तेरा दखल है माँ। तेरा आंचल पाकर मेरा जन्म सफल है माँ। तेरे बिना अधुरा हूँ सब तेरे बिना विफल है माँ। आज भी तेरे हाथों की रोटी का कोई जवाब नही। जितना तूने दिया है मुझको उसका कोई हिसाब नही। चित्र तो लगा रखा घर मे जो तेरी नकल है माँ। तेरा आंचल पाकर मेरा जन्म सफल है माँ। तेरे बिना अधुरा हूँ सब तेरे बिना विफल है माँ। रहकर मुझस...
इक जवान शिक्षा के नाम
कविता

इक जवान शिक्षा के नाम

उषा शर्मा "मन" बाड़ा पदमपुरा (जयपुर) ******************** आरएससी बीकानेर है पुलिस राजस्थान, नाम बताते है अपना ये आशु चौहान। है इसी तीसरी बटालियन का एक जवान।। कोरोना में देश कर्तव्य संग शिक्षा की प्रदान। लाखों बच्चों की शिक्षा जुड़ी संग बटालियन जवान।। निःशुल्क शिक्षा प्रदान करने की मुहिम बने देश की आन। ईमानदारी से कर्तव्य निभा शिक्षा क्षेत्र में किया अपना नाम।। समाज को शिक्षित बना सके ऐसा है उनका काम। पढ़ाने का ऑनलाइन संसाधन आशु जीके ट्रिक है उसका नाम।। दिए २१००० रू. चूरू की आपणी पाठशाला को दान। आशु चौहान संग पुलिस फोर्स में अश्वनी है उनका नाम।। देश का प्रत्येक व्यक्ति अगर ऐसी सोच अपनाये। अपनी मातृभूमि में कोई भी अशिक्षित नहीं रह पाए।। . परिचय :- उषा शर्मा "मन" शिक्षा : एम.ए. व बी.एड़. निवासी : बाड़ा पदमपुरा, तह.चाकसू (जयपुर) आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक ...
सच्ची  कहो
ग़ज़ल

सच्ची कहो

निज़ाम फतेहपुरी मदोकीपुर ज़िला-फतेहपुर (उत्तर प्रदेश) ******************** ग़ज़ल - २१२ २१२ २१२ २१२ अरकान- फ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ाइलुन बात सच्ची कहो पर अधूरी नहीं। लोग माने न माने ज़रूरी नहीं।। आज तुम हो जहाँ कल रहोगे वहाँ। जानकारी किसी को ये पूरी नहीं।। जिनको नफ़रत थी हमसे जुदा हो गए। दूर वो दूर हम फिर भी दूरी नहीं।। दोस्ती दिल से की दुश्मनी खुल के की। साफ दिल हूँ बगल में है छूरी नहीं।। मुँह पे कहता बुरे को बुरा ये निज़ाम। अपनी फितरत में है जी हज़ूरी नहीं।। . परिचय :- निज़ाम फतेहपुरी निवासी : मदोकीपुर ज़िला-फतेहपुर (उत्तर प्रदेश) शपथ : मेरी कविताएँ और गजल पूर्णतः मौलिक, स्वरचित हैं आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहान...
जब हमेशा के लिए सोता है जवान
कविता

जब हमेशा के लिए सोता है जवान

रोशन कुमार झा झोंझी, मधुबनी (बिहार) ******************** जब कोई जवान हमेशा के लिए सोता है, दिल क्या? मेरा दिमाग़ भी रोता है। क्योंकि कोई अपनी सिन्दूर तो कोई अपने लाल को खोता है, सच पूछो तो बड़ा दुख होता है, जब कोई जवान हमेशा के लिए सोता है। चाह कर भी नहीं देखते कि वह पतला है या मोटा है, बल्कि आँसू के साथ मैं एक दर्दनाक कविता बोता है।। क्योंकि मेरी कोई सीमा नहीं, दर्दनाक कविता लिखते वक़्त मेरे कलम के गति धीमा नहीं। यूं तो हर कोई आँसू पोछता है, पर हम यूं आँसू के साथ एक दर्दनाक कविता के बारे में सोचता है। जब कोई माँ अपनी पुत्र खोती, पाल-पोष कर बड़ा किये रहती, खिलाकर रोटी। जब कोई स्त्री अपनी सिन्दूर धोती, हम यूं रोशन आँसू के साथ लिख बैठते कविता उन शहीदों पर, इसे मत समझना पथरा-पोथी।। . परिचय :-  रोशन कुमार झा सुरेन्द्रनाथ इवनिंग कॉलेज, कोलकाता निवासी : झोंझी, मधुबनी, बिहार, आ...
माँ की गोद में
कविता

माँ की गोद में

रोहित कुमार विश्नोई भीलवाड़ा, राजस्थान ******************** गरम पानी से नहलाकर ठण्ड में माँ का हमें ऊपर ही धूप में बैठाना, दीवाली की छुट्टियों में सारे बिस्तर-कपड़े ऊपर सुखाना। सर्दी की छुट्टियाँ के अन्धेरे रजाईयों में और उजाले छतों पर बिताना, जाड़े में ही स्कूल में भी मेडम का छत पर ही क्लास लगाना। एसी-हीटर वाले कमरे और उनकी आलीशानता अब हमारी यादों को बाहर बुहारती हैं, घर की छत आज भी पुराने दिनों को पुकारती है।। दिल करता है ले आऊँ एक बड़ी वाली सरसों के तेल की शीशी बाजार से और बोलूं माँ से कि लो कर दो चम्पी और मालिश अपनी गोद में मेरा सर रखकर, जिन्दगी को फिर से जी लूँ मैं माँ की गोद में अपने उसी बचपने की छत पर।। परिचय :- रोहित कुमार विश्नोई स्नातकोत्तर - हिन्दी विषय (राष्ट्रीय पात्रता परीक्षा-उत्तीर्ण) स्नातक - कला संकाय (हिन्दी, इतिहास, राजनीतिक विज्ञान) स्नातक - अभियान्त्रिकि (यान्त...
धरती माँ की पुकार
कविता

धरती माँ की पुकार

डॉ. यशुकृति हजारे भंडारा (महाराष्ट्र) ******************** कल रात मेरे ख्वाबों में धरती माता आई थी कहने लगी देखो, रंगीन आसमानों के नीचे भोर की लालिमा सी लगती हूँ रंग-बिरंगे फूलों से मैं लदी हूंँ चहुँ ओर छाई है हरियाली, तुम सब सदा बनाये रखना मुझे सुंद। अब बहने लगी नदी स्वच्छ, निर्मल जल की धारा बन गई है तुम सबके लायक न करना प्रदूषित न कहना वह मैली हो गई है हे मानव ! तुम सदा रखना शुद्ध और पवित्र। धरती माता मुझसे कहती है मां बेटे का सदा बना रहे यूं ही रिश्ता अन्न, फूल, फल तुमको देती रही यूं ही सदा। बदले में मैं तुमसे कुछ ना लेती कहने लगी धरती माता। सुनो तुम सब हो मेरे बेटे बहने दो मंद-मंद पवन शीतल सुगंधित होने दो मुझकों शीतल सुगंधित अब रहने दो मुझकों। परिचय :- डॉ. यशुकृति हजारे निवासी : भंडारा (महाराष्ट्र) आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोट...
बारिश की बूंदें
कविता

बारिश की बूंदें

विनोद वर्मा 'दुर्गेश' तोशाम (हरियाणा) ******************** बारिश की बूंदें बरसी मन मेरा हर्षाए। सावन का मस्त महीना प्रियतम की याद दिलाए। तन भीगा और मन भीगा आँचल भी भीगा जाए। पहले सावन की बारिश जियरा मेरा चुराए। टप-टप गिरती बूंदे और पंछी शोर मचाएं। साजन बिन सूना सावन विरह आग लगाए। बूंदों की बौछार में मन शीतल हो जाए। गर साथ तेरा हो साजन सावन पावन हो जाए। परिचय :-विनोद वर्मा 'दुर्गेश' निवासी : तोशाम, जिला भिवानी, हरियाणा आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमेंhindirakshak17@gmail.comपर अणु डाक (मेल) कीजिये, अणु डाक करने के बाद हमे हमारे नंबर ९८२७३ ६०३६० पर सूचित अवश्य करें … और अपनी क...
रहमत
ग़ज़ल

रहमत

मधु टाक इंदौर मध्य प्रदेश ******************** दिल से तेरी निगाह जिगर तक उतर गई बन कर खुशबू परिजात सी बिखर गई तेरी उल्फतों की जो रहमत हो गई है बूझते चिराग़ों में जैसे रोशनाई भर गई मुस्कुरा कर जो पूछ लिया हाले दिल तूने खारी आँखों में मीठी मुस्कान संवर गई हिज्र में संभल ना पाया था दिल मेरा उम्र मेरी फिर अश्कों में ही गुजर गई रूह मेरी बेशकीमती दास्तान बन गई जब लफ्ज़ बन तेरी ग़ज़लों में उतर गई दीदार में तेरे इक उम्र यूँ गुज़ार दी मैने राह तकती अहिल्या पत्थर में ठहर गई अश्क़ों के समंदर में खुद ही फना हो गई जल में जैसे मछली प्यासी ही मर गई चाहत मेरी क्यूँ आज अधुरी सी रह गई बीच हमारे"मधु"एक दूरी सी पसर गई परिचय :-  मधु टाक निवासी : इंदौर मध्य प्रदेश आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी...
अश्क
कविता

अश्क

निर्मल कुमार पीरिया इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** दिल मे जो बसा है वो, आँखों मे दिखने लगा, पोरो पे आ छुप जाता, क्यू मुझमे बसने लगा..? कब तक सहेज रखूंगा? अब ज्वार सा उठने लगा, साहिल को आतुर मौजे, बन भवँर,हैं घुमड़ने लगा... समंदर दबा रखा था, बरबस छलकने लगा, ये आब था रुका-सा, तुझे देख,फ़फ़कने लगा... हैं खता क्या जो उसकी? हो खफा दुर जाने लगा, था मर्ज चंद हर्फो का, हकीम आज़माने लगा... परिचय :- निर्मल कुमार पीरिया शिक्षा : बी.एस. एम्.ए सम्प्रति : मैनेजर कमर्शियल व्हीकल लि. निवासी : इंदौर, (म.प्र.) शपथ : मेरी कविताएँ और गजल पूर्णतः मौलिक, स्वरचित और अप्रकाशित हैं आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी ...
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प्रीति शर्मा "असीम" सोलन हिमाचल प्रदेश ******************** जिंदगी अगर खुद को चुनती। फिर वो मौत का फंदा ना बुनती। जिंदगी अगर खुद को चुनती। दूसरों पर रखी , उम्मीद जब है थमती।। खुद को हार कर, जिंदगी की आस जब है जमती।। जिंदगी अगर खुद को चुनती। फिर वो मौत का फंदा ना बुनती।। जिंदगी अगर खुद को चुनती। कर खुद पर भरोसा, जब तक, सांसों की डोर है चलती।। साथ अपने हिम्मत से, हर बात है बनती। मुश्किलें दौर भी, आकर चला जाएगा। बदल अपनी सोच , सब कर है सकती।। खुद से जो फिर हार गया, अपने सामने ही, हथियार डाल गया। मौत उसे है चुगती।। जिंदगी जब खुद को चुनती। फिर वो, जिंदगी की कहानियां ही बुनती।। परिचय :- प्रीति शर्मा "असीम" निवासी - सोलन हिमाचल प्रदेश आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहान...
यादें जीवन की
कविता

यादें जीवन की

रूपेश कुमार (चैनपुर बिहार) ******************** (अभिनेता सुशांत सिंह की आत्महत्या पर) इतनी-सी क्या देर हो गई तुझे, तुम्हें आए कितना दिन हुआ, ऐसे कोई थोड़े जाता है भला क्या, ये जिंदगी कोई खेल थोड़े है, चौतीस यैवन देख चुके तुम, क्या इतना ही ज्यादा हो गई, इस छोटी-सी जिंदगी मे, जीवन क्यों मजबूर हूई, अभी सारा जीवन बाकी था, शुरुआत तो अब हुई थी, दूसरे की हौसला देने वाले, स्वयं क्यूँ तू हार गए तुम, इस नश्वर दुनिया मे तुम, मौत को क्यूँ दोस्त बना लिए तुम, अभी और अधियारा आता भी, इतनें मे क्यूँ हार गए तुम, जीने का सलीका सिखाने वाले, स्वयं सलीका भुल गए तुम, युवा जीवन के पायदान पे चढ़ते, दुनिया से क्यूँ रूठ गए तुम, सबके चेहरे पे हँसी लाने वाले, स्वयं डिप्रेशन मे चले गए तुम, इस बेखुदी दुनिया मे, जीवन से हार गए तुम ! परिचय :- रूपेश कुमार छात्र एव युवा साहित्यकार शिक्षा - स्नाकोतर भौतिकी...
मजदूर और शहर
कविता

मजदूर और शहर

दीपाली शुक्ला कसारडीह दुर्ग (छत्तीसगढ़) ******************** शहर तू क्या उसे भूला पाएगा? जो सहमा सा है शहर तू आँचल में छिप जाएगा, खून पसीना सींच भी वह ममता न पाएगा, उॅगली पकड़ चलाया जिसने तू उसे भूला जाएगा, मकान तो छोड़ ही दे वह चारदीवारी न पाएगा, वह जानता नहीं क्या मिला उसे यहाॅं, न जानता है वहाॅं क्या मिल पाएगा, जिस तरह जानता है हर डगर को वह यहाॅ, उसके इस सफर को क्या कोई समझ पाएगा, कभी खुद को न तुझसे मिला पाएगा, दिल में फिर भी न तूझसे गिला पाएगा, अपना न सका तू अलविदा भी न कह पाएगा, क्यों तेरे खातिर वह मिट्टी वतन की छोड़ आएगा, बापू ! पूछना मत अब, कब तक लौट आएगा, यह जवान बाजूओं के दम से, सैलाब न रोक पाएगा, बापू बेटा चला है तेरा भी, और मेरा भी, दुआए पहुॅची उस तक, तो एक तो लौट ही जाएगा, सपने जिससे सहेजे थे, वह ताले तोड़ लाएगा, हर चीज उस पेटी की हकीकत ही बेच खाएगा, उसकी बाती बिना तू आँगन...
रोशनी की किरन
कविता

रोशनी की किरन

शरद सिंह "शरद" लखनऊ ******************** दूर बहुत दूर एक रोशनी की किरन दृष्टि गोचर होती है, मन मयूर बिना कुछ विचार किए, थिरक उठता है पाॅव अनायास ही ता ता थैया की, ताल पर थिरक उठते हैं, मधुर शहनाई गूंज उठती है, दिल के सूने आॉगन मे, रोम-रोम पुलकित हो उठता है, अनजाने मिलन से, मन वीणा के हर तार से, स्वर लहरी फूट पड़ती है एक खूबसूरत स्वर्ग सा, अहसास होने लगता है, यूॅ अहसास होता है मानो, कदम-कदम पर खुशियों के, महकते फूलों की विशाल चादर बिछी है, मन चंचल हो दौड़ पड़ता है इधर-उधर, और अन्तस तल मे अनजानी सी मस्ती छा जाती है मानो कोई आवारा भॅवरा, गुंजार करे हर डाली पर..... परिचय :- बरेली के साधारण परिवार मे जन्मी शरद सिंह के पिता पेशे से डाॅक्टर थे आपने व्यक्तिगत रूप से एम.ए.की डिग्री हासिल की आपकी बचपन से साहित्य मे रुचि रही व बाल्यावस्था में ही कलम चलने लगी थी। प्रतिष्ठा फिल्म्स एन्ड...
मंदिर-मस्जिद और चिड़िया
कविता

मंदिर-मस्जिद और चिड़िया

रंगनाथ द्विवेदी जौनपुर (उत्तर-प्रदेश) ******************** मै देख रहा था अभी जो चिड़िया मंदिर के मुँडेर पे बैठी थी, वही कुछ देर पहले मस्जिद के मुँडेर पे भी बैठी थी. वहाँ भी ये अपने पर फड़फड़ाये उतरी थी, चंद दाने चुगे थे, यहाँ भी अपने पंख फड़फड़ाये उतरी, और चंद दाने चुग, फिर मंदिर की मुँडेर पे बैठ गई. फिर जाने क्यूँ एक शोर उठा, मंदिर और मस्जिद में अचानक से लोग जुटने लगे, और वे चिड़िया सहम गई. शायद चिड़िया को मालूम न था कि वे, जिन मंदिर-मस्जिद के मिनारो पे, अभी चंद दाने चुग, अपने पंख फड़फड़ाये बैठी थी, उसमे हिन्दू और मुसलमान नाम की कौमे आती है, जहा से हर शहर और गाँव के जलने की शुरुआत होती है, और हुआ भी वही, फिर उस चिड़िया ने अपने पर फड़फड़ाये मिनार से उड़ी, और फिर कभी मैने उस चिड़िया को, शहर के दंगो के बाद, दाना चुग पर फड़फड़ा, किसी मंदिर या मस्जिद की मिनार पे बैठे नही पाया, शायद वे चिड़...
जीवन का उद्देश्य
कविता

जीवन का उद्देश्य

सतीश गुप्ता नरसिंहपुर ******************** अब खामोशी बांटने को महक दे तो सही उठा के हाथ से अपने गुलाब दे तो सही आया है कुछ करने को जानता है सनम उठाकर नैनों से नजरिया बांट तो सही इतिहास है सिखलाता है पल-पल यहां फिर विस्फोट कर नई गंगा बहा तो सही भरोसा है भीतर का भाव महकेगा यहां खुद को खुदी से मधुबन बना तो सही उठा के दिल से कुछ शोरगुल कर यहां खामोशी जागृत कर खुशबू दे तो सही माता-पिता हैं बचपन महकता है यहां बुढ़ापा आया तब सहारा बन तो सही नजरिया पावन हो यू कौन मारे यहां आज दर्द उनका उधारी तो कर सही . परिचय :- सतीश गुप्ता जन्मतिथि : १५-०३-५२ निवासी : नरसिंहपुर कार्यक्षेत्र : रिटायर्ड टीचर लेखन के कार्य में रुचि कविता, गजल, पिरामिड हाइकु छंद आदि। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी...
मेरी आस्था
कविता

मेरी आस्था

अर्चना अनुपम जबलपुर मध्यप्रदेश ******************** मूर्ति पूजा की आलोचना के प्रतिउत्तर स्वरुप प्रथम प्रयास बिखर जाते हैं बनाने हमारा वजूद खुद चोट खाकर। रौंदे गए होकर मिट्टी अपनी रौनक गंवाकर।। जिससे बनी ये सारी कायनात है कीमती हर पत्थर निर्भर जिसपर सिर्फ इंसान नहीँ भगवान् है।। अगर गलत है इसे पूजना तो सिर्फ इतना बता मेरे दोस्त बिन मिट्टी और पत्थर के वजूद है किसका?? किसमें है दम जो मूल चुका दे ब्याज सहित इसका?? जर्रा जर्रा इसी ने बनाया है। तुझे दी ये अनमोल काया है।। गर चुका नहीँ सकते मूल ; तो नहीँ कभी भूलेंगे फक्र से ताउम्र पत्थर की मूरत पूजेंगे।। अपनी आलोचना का डर किसी और को दिखाना । आइन्दा मेरी आस्था पर अंगुली नहीँ उठाना।। तुम करोगे निंदा हमारी थोथे बन बैठे बड़े, ना वेद पढ़े ना शास्त्र पढ़े नित बने आलोचक ही मनगढे। ना नीति रची ना गीति वची वैचित्र कुंठाजित मूढ़मढें।। केवल कर्मों का ...