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पद्य

कोख की आवाज़
कविता

कोख की आवाज़

अनुराधा बंसल गुप्ता जयपुर, राजस्थान ******************** आज माँ में तेरी कोख में आयी हूँ देखा है ना तूने मुझे, देख तुझसा ही निर्मल चेहरा लिए आयी हूँ माँ आज तूने छुआ मुझे तेरे इस चूँभन में संसार की हर ख़ुशी के बड़कर सुख पाया हैं मेने.. इस संसार का दीदार तो किया नहीं फिर भी तुझमें इस संसार को पाया हैं मेने देख माँ आज हाथ बने है कल लकीरें भी जल्द बनेगी फिर मेरे हाथो में तू हमेशा हमेशा संग रहेगी .. माँ तू यू चुप क्यू है बोल ना ये खोफ़नाक आदमी कोन है ?? जो बार तुझे बेबस करके मुझसे दूर ले जाने की कोशिश करता है माँ बनाकर ख़ुद को बेबस नहीं छोड़ेगी न तू मुझे हर पल तो मेरा अटूट अहसास तूने अपनी साँसो में पाया है.... बोल ना मेरी ग़लती है क्या ? क्यू देना चाहता है ये ज़माना सज़ा? तू भी तो इक बेटी है तेरी भी तो इक माँ थी फिर क्यू ये सज़ा मुझे मिली ? क्यू मेरी चीख़ तुझे सुनायी ना दी ? क्यू तू बेबस लाच...
हिमालय से आती आवाज
कविता

हिमालय से आती आवाज

डॉ. पुष्प कुमार राय बांका बिहार ******************** उठो, वीर सैनिकों सुनो, भारत मां की पुकार आज हिमालय से आती आवाज। गौर करो, युद्ध की मानो हो आगाज रखना मां के दूध का लाज हिमालय से आती आवाज। कह दो, वीरों दुश्मनों से बात ये तुम आज इक्कीसवीं सदी का है भारत आज हिमालय से आती आवाज। याद करो, वीरों बासठ का वह चीनी खाज हर भारतीय बदला लेंगे आज हिमालय से आती आवाज। प्रण कर, वीरों तू बारंबार आज लहू से रंगीन हो ना हिम आज हिमालय से आती आवाज। बढ़े चलो मुड़कर देखो पीछे ना आज होगी तेरे सिर पर ही विजयी ताज हिमालय से आती आवाज। उठो वीरों उत्साहित है जननी लाखों आज करने भव्य श्रृंगार तेरी आज हिमालय से आती आवाज। मत भूलो, वीरों शहीदों की भूमि ये विशाल निकल पड़ो तिरंगा लेकर आज हिमालय से आती आवाज। घबराओ मत वीरों हमको है तेरी शौर्य पर नाज फूंक दो पाञ्चजन्य शंख तुम आज हिमालय से आती आवाज। हे वीरों रौंद डालो...
इंतजार
कविता

इंतजार

सुरेखा सुनील दत्त शर्मा बेगम बाग (मेरठ) ********************** मेरे इश्क के समंदर को फिर बेचैन कर गया कोई, ठहरे हुए जज्बात में फिर हलचल कर गया कोई, पत्थर मारा था उठाकर फिर किसी ने समंदर में, मेरे इश्क के शांत समंदर में फिर हिलोरे दे गया कोई। मौत को आकर देखो इस हद तक जी गया कोई, कि जीने से पहले अपने आप को हरसू कर गया कोई, उदास आंखों में फिर समंदर का सैलाब उमड़ा है , मौत से पहले ही लहरों सा आकर समंदर में पैगाम दे गया कोई। आज आंखों को बेइंतहा इंतजार दे गया कोई, आंखों से अश्कों को इस कदर बहता छोड़ गया कोई, क्या समझाऊं दिल को उसके इंतजार की वजह, दिल में उठते तूफान में फिर कसक जगा गया कोई। वक्त के पिंजरे को खोल कर सांसो का परिंदा उड़ा गया कोई, दिल में उठते तूफान को हर पल थाम गया कोई, सिमट जाती है एक-एक करके ख्वाहिशें सारी दिल में, जिंदगी की कशमकश से दूर श्मशान में इंतजार कर रहा है कोई। दर्द बढ़...
योग
कविता

योग

हंसराज गुप्ता जयपुर (राजस्थान) ******************** पतंजली का चित्तवृत्ति निरोध, योगेश्वर कृष्ण का समत्व बोध. नित्य सब लोग, करेंगे योग. होंगे बलवान सुखी नीरोग, युक्ति युक्त सोयें, खेलें खायें, ईश गुण गायें, ना कहीं विरोध... पतंजली का चित्तवृत्ति निरोध, योगेश्वर कृष्ण का समत्व बोध. सत्कर्म, ज्ञान, समर्पित भक्ति, प्राणायाम व्यायाम की शक्ति, प्राकृत न्याय, हों सभी सहाय, करें स्वाध्याय, परमात्मबोध.... पतंजली का चित्तवृत्ति निरोध, योगेश्वर कृष्ण का समत्व बोध. सभी निर्दोष, मन में संतोष, हर हाथ काम, पूरा परितोष. तितिक्षा तप दान, निधि धान विधान, रहे सबका ध्यान, वैश्विक अवबोध... पतंजली का चित्तवृत्ति निरोध, योगेश्वर कृष्ण का समत्व बोध. शुद्ध जल जीवन, पवन उपवन, साफ आकाश, आनन्द हवन. सिंचित सोंधी माटी, आँचल बाल गुलाटी, चमन भवन चौपाटी, हरी हर पौध.... पतंजली का चित्तवृ...
युद्ध थोपने वालों की हम
गीत

युद्ध थोपने वालों की हम

अख्तर अली शाह "अनन्त" नीमच ******************** मानवता के साथ यकीनन, ऐसा करना है गद्दारी। युद्ध थोपने वालों की हम, करें न लोगों पैरोकारी।। ***** युद्ध जहां पर महिलाओं को, बेवा बना दिया जाता है। युद्ध जहां पर गोदी सूनी, करके खून पिया जाता है।। अगर नहीं जीवन दे पाते, जीवन लेने का क्या हक है। हत्या करने या करवाने, वाला सचमुच नालायक है।। भले रहनुमा हो या राजा, उसकी भी है हिस्सेदारी। युद्ध थोपने वालों की हम, करें न लोगों पैरोकारी।। ***** क्या जनता पर निर्मम होना, काम नहीं बोलो शैतानी। महल बनें खुद के नित नूतन, खोली उनके लिए पुरानी।। तनपर भले न उनके कपड़े, हाथों में हथियार थमा दें। हिम्मत करें प्रश्न करने की, हंटर भी दो चार जमा दें।। भक्ति काआश्रय लेकर हम, बोझ न उनपर लादें भारी। युद्ध थोपने वालों की हम, करें न लोगों पैरोकारी।। ****** युद्ध युद्ध होता है भाई, सतपथ पर चलना आराधन। खून खराबा...
ज़िंदगी निभाने नहीं देतीं
ग़ज़ल

ज़िंदगी निभाने नहीं देतीं

अजय प्रसाद अंडाल, बर्दवान (प. बंगाल) ******************** साहित्य, शाईरी, या सुखनवरी कमाने नहीं देतीं शेर, गज़लें, कविताएं किसी को दाने नहीं देतीं। भुखमरी के शिकार हुए कई बड़े साहित्यकार तालियाँ और तारीफें चार पैसे बनाने नहीं देतीं। क्यों मैं करुँ मेहनत खामखाह इल्मे अरूज़ पे जब मेरी गजलें मुझे गृहस्थी चलाने नहीं देतीं। हाँ चंद चाटुकार अदीबों की बात मैं नहीं करता उनकीं हसरतें उन्हें हक़ीक़त बताने नहीं देतीं। फिल्मी गीतकारों की बात ही कुछ और है यारों मगर वहाँ भी इमानदारी पैर जमाने नहीं देतीं। क्या तुम अजय फ़ालतू की बातें लेकर बैठे हो कौन सी है जिम्मेदारी, ज़िंदगी निभाने नहीं देतीं। . परिचय :-  अजय प्रसाद शिक्षा : एम. ए. (इंग्लिश) बीएड पिता : स्वर्गीय बसंत जन्म : १० मार्च १९७३ निवासी : अंडाल जिला- बर्दवान प. बंगाल सम्प्रति : अंग्रेजी अध्यापक- देव पब्लिक स्कूल बिजव...
बेरोजगार नवजवान
कविता

बेरोजगार नवजवान

मनोरंजन कुमार श्रीवास्तव बिजनौर, लखनऊ ******************** आती हुई कार से एक नवजवान टकरा गया टांग टूटी, हाथ टूटा फिर भी मुस्कराते देख कार वाला चकरा गया, अस्पताल ले जाने के लिए उसे जैसे ही उठाया नवजवान धीरे से बोला- 'कृपया' मुझे अस्पताल ना ले जाईये दुर्घटना से विकलांग हो गया तो मेरी भी तकदीर खुल सकती है, सालो की बेरोजगारी से आरक्षण की बीमारी से मुझे भी आजादी मिल सकती है नौकरी नहीं अब कम-से-कम भीख तो मिल सकती है। . परिचय :-  मनोरंजन कुमार श्रीवास्तव निवासी : बिजनौर, लखनऊ, उत्तर प्रदेश प्रमाणित किया जाता है कि रचना पूर्णतः मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप...
नैनो में
कविता

नैनो में

आशीष कुमार पाण्डेय कानपुर उत्तर प्रदेश ******************** वो पलकों को छपकते ही, आँखों में बस जाती है। जब थाल में दिये लेकर, वों घर के बाहर आती है, उसके सौन्दर्य का, क्या वर्णन करू मै, वो हँसी खाव्ब सी लगती है, कभी-कभी तो वो मुझको, किसी कवि की कल्पना लगती है, वो जुल्फो का गालो पर आना, फिर हाथो से उसे हटाना, मेरा हैप्पी दीवाली, उसका सेम टू यू कह कर जाना, उसे देखने के लिए, बहार बैठे गुनगुनाना, उसका मुझको देख कार हसना, मेरा उसको बार-बार तकना, वो रोज मेरे गली से ही जाती है, वो पलकों को छपकते ही, आँखों में बस जाती है परिचय :-  आशीष कुमार पाण्डेय निवासी : कानपुर उत्तर प्रदेश प्रमाणित किया जाता है कि रचना पूर्णतः मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कव...
चांदी का गांव, सोने की सड़क
कविता

चांदी का गांव, सोने की सड़क

लाल बच्चन पासवान, करचौलिया, मुजफ्फरपुर ******************** चांदी का गांव, सोने की सड़क, चलेगा मनुज अकेला बेधड़क। नदी को नापा बना लिया पुल लकड़ी लोहा पत्थर का पुल, धूम्रगाड़ी पर चढ़ नाव गया भूल तीव्र चाल से ठहराव गया भूल, मंजिल से पूर्व खाई देख अकबक। पड़ोसी से ज्यादा परदेशी साथी जानवर होते थे जीवन का साथी, मुर्गा कुत्ता गदहा घोड़ा ऊंट हाथी हाथी मेरा साथी या साथी मेरा हाथी, सबको भगाकर घर किया चकाचक। बारूद भरी दुनिया में बारूद खायेगा जिसे जन्तु नकारे, वो खुद खायेगा, शेष जीव भगाकर चैन कहां पायेगा जैसा करेगा, वैसा ही पायेगा, स्वर्ग-सी धरती बनेगी नरक। परिचय :-  लाल बच्चन पासवान, शिक्षक सम्प्रति : शिक्षक निवासी : करचौलिया, मीनापुर, मुजफ्फरपुर प्रमाणित किया जाता है कि रचना पूर्णतः मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने प...
पकरे कान आज से
कविता

पकरे कान आज से

प्रेम प्रकाश चौबे "प्रेम" विदिशा म.प्र. ******************** भइया, पकरे कान आज से। दूरई अच्छे जा समाज से। जीबो नइं मरबोई तै है, "बिस पानी" और "जहर नाज" से। सत्तर बरस गए, पै अब भी, दूरी बई की बई, सुराज से। बड़े सेठ जे सांची मानो, पल रए "हमरे खून" ब्याज से। "प्रेम" रोज की चें चें, किल किल, भले अकेले जा लिहाज से। . परिचय :-  प्रेम प्रकाश चौबे साहित्यिक उपनाम - "प्रेम" पिता का नाम - स्व. श्री बृज भूषण चौबे जन्म -  ४ अक्टूबर १९६४ जन्म स्थान - कुरवाई जिला विदिशा म.प्र. शिक्षा - एम.ए. (संस्कृत) बी.यु., भोपाल प्रकाशित पुस्तकें - १ - "पूछा बिटिया ने" आस्था प्रकाशन, भोपाल  २ - "ढाई आखर प्रेम के" रजनी  प्रकाशन, दिल्ली से अन्य प्रकाशन - अक्षर शिल्पी, झुनझुना, समग्र दृष्टि, बुंदेली बसन्त, अभिनव प्रयास, समाज कल्याण व मकरन्द आदि अनेक  पाक्षिक, मासिक, त्रैमासिक पत्रिका...
इंकलाब जिंदाबाद…
कविता

इंकलाब जिंदाबाद…

बिपिन कुमार चौधरी कटिहार, (बिहार) ******************** संप्रभुता का आया गंभीर संकट, उचित नहीं राजनीतिक नाटक, मां भारती कर रही पुकार, विश्वासघाती चीनियों का हो संहार, नेपाल सिर्फ एक मोहरा है, षड्यंत्र बहुत ही गहरा है, बेशक सीमा पर वीर जवानों का पहरा है, देश के अंदर कुछ चेहरों पर कई चेहरा है, बासठ का ज़ख्म हमें भूलना नहीं चाहिए, वाजपेईजी के जिम्मेदार विपक्ष का अनुकरण करना चाहिए, राजनीतिक प्रतिद्वंदिता चलती रहेगी, हमारी एकता और राष्ट्र की अखंडता अक्षुण्ण रहना चाहिए, देश के कोने कोने से आ रही एक आवाज, बता दो दुश्मनों को उसकी औकाद, हर धर्म से ऊपर हमारा राष्ट्रवाद, आओ सब मिलकर बोलें, इंकलाब जिंदाबाद... . परिचय :- बिपिन कुमार चौधरी (शिक्षक) निवासी : कटिहार, बिहार आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्ष...
क्या करें हम
कविता

क्या करें हम

डॉ. कामता नाथ सिंह बेवल, रायबरेली ******************** दहकती है पीर की ज्वाला यहां हर दम, बताओ क्या करें हम।। सर्जना के पंख पर उड़ते मकानों की खिड़कियों से झांकते सपने सयाने, किन्तु कुत्सित मानसिकता के अंधेरों की स्याह परछाईं लगी उनको डराने; चीरते हैं तीर अपने तरकशों के दिल, बताओ क्या करें हम? दहकती है पीर की ज्वाला यहां हर दम बताओ क्या करें हम।। सर्व नाशी सोच की हठ जम गई जैसे- पत्थरों पर काइयों की मूक परतें, आत्महत्या के लिए तैयार बैठी हैं पीढ़ियों की ज़िद लिए दो टूक शर्तें; जब धड़कता ही नहीं सीने में इनके दिल, बताओ क्या करें हम। दहकती है पीर की ज्वाला यहां हर दम, बताओ क्या करें हम।। किस तरह जीना हमें है, कौन करता है प्यार, इतना जानवर भी जानते हैं, आस्तीनों के मगर ये सांप पी कर दूध, सिर्फ डसना और डसना जानते हैं; तोड़कर बिषदन्त इनके सिर कुचलने के अलावा फिर, बताओ क्या करें हम...
हाँ मैं भी अब लिखने लगी
कविता

हाँ मैं भी अब लिखने लगी

रश्मि श्रीवास्तव “सुकून” पदमनाभपुर दुर्ग (छत्तीसगढ़) ******************** मैं गुमसुम सी धीर गंभीर सी उन्मुक्त होकर खुलने लगी मुख्यधारा से अब जुडने लगी हाँ मैं भी अब लिखने लगी। कहीं डर और शंका मन में लिए कहीं हीन भावना से जकड़े हुए खुद को बेहतरीन कहने लगी हाँ मैं भी अब लिखने लगी। जिंदगी के कुछ पहलू थे अनछूए कुछ सवाल ऐसे थे अनसुलझे उन सवालों में ही हल ढूँढने लगी हाँ मैं भी अब लिखने लगी। दर्द ऐसा किसी से कहा ना गया कहीं चुप रह गई कहीं कराया गया अब हाल-ए-दिल अपना कहने लगी हाँ मैं भी अब लिखने लगी। जंजीरों ने पाँव जकड़ रखे थे हर कदम पर सवाल खड़े कर रखे थे अब कदम दर कदम मैं बढ़ने लगी हाँ मैं भी अब लिखने लगी। कभी दौर ऐसा भी आया था जहां खुद को मैंने अकेला पाया था अब हौसलों के कारवां बनाने लगी हाँ मैं भी अब लिखने लगी। बिना गलतियों के सज़ा पायी है जमानत मुझे रब ने दिलाई है अब इंसाफ के लिये लड़ने लगी हाँ म...
क्या ज़माना आ गया है
कविता

क्या ज़माना आ गया है

दामोदर विरमाल महू - इंदौर (मध्यप्रदेश) ******************** शकल भले ही अच्छी न हो उनकी, सेल्फी लेकर मन को खुश करते है वो। कोई देखे न देखे उन्हें प्यार की नज़रों से, एक तरफा ही अजीब प्यार करते है वो। अगर पूछ लिया उनसे की चाहते क्या हो? फिर तो इज़हार करने से भी डरते है वो। आग लगी रहती है, शोले भड़कते रहते है, अपनी होते हुए भी दूसरी पे मरते है वो। कई दिलजले है इस जमाने मे यारों, बुढ़ापे में भी जवानी का दम भरते है वो। जो बने फिरते है ज़माने में खड़कसिंह, घर मे ही अपनी बीवी से डरते है वो। क्या ज़माना आ गया है ये क्या हो रहा है? गुनाह करते है और फिर मुकरते है वो। . परिचय :- ३१ वर्षीय दामोदर विरमाल पचोर जिला राजगढ़ के निवासी होकर इंदौर में निवास करते है। मध्यप्रदेश में ख्याति प्राप्त हिंदी साहित्य के कवि स्वर्गीय डॉ. श्री बद्रीप्रसाद जी विरमाल इनके नानाजी थे। हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindiraks...
आंगन में उठता अशोक
कविता

आंगन में उठता अशोक

सतीश राठी इंदौर मध्य प्रदेश ********** आंगन में उठता अशोक नहीं कर पाता है जीवन को शोक मुक्त आते रहते हैं सुख और दुख के बादल कभी बरसने के लिए कभी  तपाने के लिए रोप देता है अपने आंगन में जाने कब उम्मीदों के बीज, पिता उगती हुई हरियाली के बीच भागता हुआ पिता लेने लगता है सेवानिवृत्त होने के बाद सुकून की सांस सोती रहती है जब सारी दुनिया जीवन जागता रहता है तब भी और धड़कता है शायद आसपास के पेड़ पौधों में या फुदकती हुई गिलहरी में कभी किसी की आंखों में भी चमकता है जीवन आंखें  मूंदने के बाद किसे याद रहती है चले जाने वाले पिता की सृजन छाया। परिचय :-  सतीश राठी जन्म : २३ फरवरी १९५६ इंदौर शिक्षा : एम काम, एल.एल.बी लेखन : लघुकथा, कविता, हाइकु, तांका, व्यंग्य, कहानी, निबंध आदि विधाओं में समान रूप से निरंतर लेखन। देशभर की विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में सतत प्रकाशन। सम्पादन : क्षितिज संस्था इंदौर के लिए...
जनक
कविता

जनक

वैष्णो खत्री 'वेदिका' अधारताल, जबलपुर (म.प्र.) ******************** जन्म लिया जब धरा पे तुमने, जननी ने जग दिखलाया। ऊँगली थाम नेह से तुमको, जनक ने चलना सिखाया। वे भूखे पेट सोए होंगे, पेट तुम्हारा भरने को। रात-रात भर जागे होंगे, सपने पूरे करने को। देव तुल्य हैं चरणों में उनके, सचमुच स्वर्ग समाया। ऊँगली थाम नेह से, तुमको जनक ने चलना सिखलाया। कड़वे शब्दों के न करना, दिल पर उनके वार कभी। और न करना जीवन में है, उन पर अत्याचार कभी। क्योंकि वे तो सदा चाहते, सुखी रहे उनका जाया। ऊँगली थाम नेह से, तुमको जनक ने चलना सिखलाया। यदि बन श्रवण उनकी की सेवा तुम कर जाओगे। ईश्वर की भी कृपा रहेगी, सुखमय जीवन पाओगे। रही सदा है मात-पिता की, शुभ आशीषों की छाया। ऊँगली थाम नेह से, तुमको जनक ने चलना सिखलाया। बड़े हुए तो शुभ विवाह के, बन्धन में बन्ध जाओगे। कुछ वर्षों में तुम भी तो है, जननी-जनक कहलाओगे। ...
सफ़र
कविता

सफ़र

अमरीश कुमार उपाध्याय रीवा म.प्र. ******************** जो मकान किराए के है, दरो दरख़्त की परवाह नही करते, समंदर से भी गहरी दीवारें है, एक जैसी नहीं रहती, नदियों सा अपना लेते है किनारों को, ऐसे मकान दिलो पर राज करते है, बना किराए का मकान, हम सफ़र साथ नहीं रखते, घरोदा भी नहीं बनते, वो जमीन पर निगाह नहीं रखते, हौसलों की उड़ान कम नहीं रखते, वे बेपरवाह पंछी है, बादलों के नीचे उड़ान नहीं करते, जो मकान किराए के है, दरो दरख़्त की परवाह नही करते......। . परिचय :- अमरीश कुमार उपाध्याय निवासी - रीवा म.प्र. पिता - श्री सुरेन्द्र प्रसाद उपाध्याय माता - श्रीमती चंद्रशीला उपाध्याय शिक्षा - एम. ए. हिंदी साहित्य, डी. सी. ए. कम्प्यूटर, पी.एच. डी. अध्ययनरत आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर...
मेरी मां
कविता

मेरी मां

मनीषा शर्मा इंदौर म.प्र. ******************** बदल देती सारे बिगड़े हालात है मेरी मां थोड़ी सीधी साधी थोड़ी चालाक है मेरी मां रखती है हिसाब किताब घर का वह सारा पर भूल जाती है गिनती जब रोटी परोसती है मेरी मां थोड़ी सीधी-साधी थोड़ी चालाक है मेरी मां डांटती है खूब झगड़ती भी है मुझसे पर रूठ जाऊं तो मनाती प्यार से है मेरी मां थोड़ी सीधी-साधी थोड़ी चालाक है मेरी मां चाहक उठता है घर का हर एक कोना जब चूड़ी पायल छनकाती है मेरी मां थोड़ी सीधी-साधी थोड़ी चालाक है मेरी मां बिन उसके बेजान है सारा घर परिवार मेरे इस छोटे से घर की जान है मेरी मां थोड़ी सीधी-साधी थोड़ी चालाक है मेरी मां अस्त व्यस्त है साड़ी और बिखरे से है बाल फिर भी दुनिया में सबसे खूबसूरत है मेरी मां थोड़ी सीधी-साधी थोड़ी चालाक है मेरी मां अन्न के दाने दाने में स्वाद भर देती कभी दुर्गा तो कभी अन्नपूर्णा बन जाती है मेरी मां थो...
तर्क वितर्क
कविता

तर्क वितर्क

विमल राव भोपाल म.प्र ******************** सूचनाओं के अभावो का प्रभाव देखिए। मूर्खता के तर्क का स्वर्णिम सुझाव देखिए॥ ना कोई प्रत्यक्ष हैं और ना कोई प्रमाण हैं। पर अड़ीग हैं आत्म मत पर, हौसले तों देखिए॥ वेद अध्यन और शिक्षा का अभाव हैं जहाँ। बांटते हैं ज्ञान सबकों, दुर्दशाएँ देखिए॥ पद प्रतिष्ठा के लिये, परिवार कों ले संग में। धेर्य खोते निर्बलों की, मंद बुद्धि देखिए॥ देखिए उनका समन्वय, तोड़ता हैं कांरवा। और अपना ध्येय खोता, लक्ष्य भी तों देखिए॥ रुष्ट होते बाल हट से, ये बड़ी विडम्बना हैं। उम्र का अनुभव नही हैं, याचनाये देखिए॥ स्वप्न हैं सम्मान का, तों योग्यता भी चाहिये। पर विषय भटका रहें हैं, संगती तों देखिए॥ . परिचय :- विमल राव "भोपाल" पिता - श्री प्रेमनारायण राव लेखक, एवं संगीतकार हैं इन्ही से प्रेरणा लेकर लिखना प्रारम्भ किया। निवास - भोजपाल की नगरी (भोपाल म.प्र) कवि, लेखक, सामाजिक ...
ग्रहण…. मानते हैं
कविता

ग्रहण…. मानते हैं

प्रीति शर्मा "असीम" सोलन हिमाचल प्रदेश ******************** प्रकृति के, प्राकृतिक चलन पर। कितने विरोधाभास उठाते हैं। ग्रह -नक्षत्रों को, पढ़ने की बात करते हैं। लेकिन ..........??? अपने से ही, अनजान रह जाते हैं। ग्रहण ....मानते हैं। कितने अनिष्ट ग्रहों की, सूची को गढ़ जाते हैं । लेकिन अपनी सोच पर, अंधविश्वास के लगे, ग्रहण का कोई हल नहीं पाते हैं। ग्रहण ......मानते हैं। भगवान..... मानते हैं। सब अच्छा ...करता है। यह .......भी मानते हैं। फिर .....बुरे पर, तिलमिलाते हैं। बुरा ..... क्या है। अपनी सहूलियत के लिए, क्यों .........हमारे, संवाद बदल जाते हैं। शायद...... हम, भगवान को भी, आधा ही मानते हैं। अजीब ढोंग ओढ लेते हैं। खुद प्रश्न देकर, खुद उत्तर गढ़ लेते हैं। जब सहूलियत का, प्रश्न आता है। हम बीच वाला, रास्ता पकड़ लेते हैं। जबकि .........हम सब, अपनी सहूलियत से ही, अपने फायदे के ल...
पिता की सख्ती
कविता

पिता की सख्ती

सुरेश मीणा बांसवाड़ा (राजस्थान) ******************** पिता की सख्ती बर्दाश करो, ताकी काबील बन सको। पिता की बातें गौर से सुनो, ताकी दुसरो की न सुननी पड़े।। पिता के सामने ऊंचा मत बोलो वरना भगवान तुमको निचा कर देगा। पिता का सम्मान करो, ताकी तुम्हारी संतान तुम्हारा सम्मान करे।। पिता की इज्जत करो, ताकी इससे फायदा उठा सको। पिता का हुक्म मानो, ताकी खुश हाल रह सको।। पिता के सामने नजरे झुका कर रखो, ताकी भगवान तुमको दुनियां मे आगे करे। पिता एक किताब है जिस पर अनुभव लिखा जाता है।। पिता के आंसु तुम्हारे सामने न गिरे, वरना भगवान तुम्हे दुनिया से गिरा देगा। पिता एक एसी हस्ती है ...।। माँ का मुकाम तो बेशक़ अपनी जगह है! पर पिता का भी कुछ कम नही, माँ के कदमों मे स्वर्ग है पर पिता स्वर्ग का दरवाजा है, अगर दरवाज़ा ना ख़ुला तो अंदर कैसे जाओगे ? जो गरमी हो या सर्दी अपने बच्चों की रोज़ी रोटी की फ़िक्र ...
हाँ वो पैसे बचाते थे
कविता

हाँ वो पैसे बचाते थे

जनार्दन शर्मा इंदौर (म.प्र.) ******************** पुरानी पेंट रफू करा कर पहनते जाते थे, ब्रांडेड नई शर्ट देने पे आँखे दिखाते थे टूटे चश्मे से हीअख़बार पढने का लुत्फ़ उठाते थे टोपाज के ब्लेड से ही वो दाढ़ी बनाते थे हा वो  पिताजी  पैसे बचाते थे …. कपड़े का पुराना थैला लिये दूर की मंडी तक जाते थे, बहुत मोल-भाव करके फल-सब्जी लाते थे आटा नही खरीदते, वह तो गेहूँ पिसवाते थे.. वो  पिताजी ही थे जो पैसे बचाते थे… वो स्टेशन से घर तक पैदल ही आते थे सदा ही रिक्शा लेने से कतराते थे। अच्छी सेहत का हवाला देते जाते थे ... बढती महंगाई पे हमेशा चिंता जताते थे वो  बाबूजी थे जो सबके लिये पैसे बचाते थे ... कितनी भी  गर्मी हो वो  पंखे में बिताते थे, सर्दियां आने पर रजाई में दुबक जाते थे एसी/हीटर को सेहत का दुश्मन बताते थे लाइट खुली छूटने पे नाराज से हो जाते थे वो पप्पा ही थे जो भविष्य के लिये पैसे बचाते थे....
पापा
कविता

पापा

रुचिता नीमा इंदौर म.प्र. ******************** हर खुशी आपके बिना अधूरी और हर गम आपसे ही दूर होता है हा पापा मेरा दिन आपसे ही शुरू होता है जब समझ न आती कोई राह तब आप ही सही राह दिखाते हो मुझ भटकी हुई को आप ही अपनी मंजिल तक पहुँचाते हो कभी गुरु बनकर कभी दोस्त बनकर तो कभी पिता बनकर आप हर क्षण मेरा मार्ग दर्शन कर जाते हो मेरे मन की बात को मुझसे पहले ही आप पढ़ जाते हो हाँ पापा हर बार आप मुझको मुझसे ज्यादा समझ जाते हो अक्स हु आपका ये कहते हुए बहुत फक्र होता है,,, इतने अच्छे पिता का मिलना बहुत कम को नसीब होता है।।। शुक्रगुजार हूं उस ईश्वर की जिसने मुझे आप जैसे पिता दिए बस विनती इतनी सी है कि हर जन्म में आप ही पिता के रूप में मिले परिचय :-  रुचिता नीमा जन्म २ जुलाई १९८२ आप एक कुशल ग्रहणी हैं, कविता लेखन व सोशल वर्क में आपकी गहरी रूचि है आपने जूलॉजी में एम.एस.सी., मइक्रोबॉयोलॉजी में बी.एस....
संवाद
कविता

संवाद

हंसराज गुप्ता जयपुर (राजस्थान) ******************** सोचिये एक माँ जिसकी असमय ही अंतिम विदाई थी शरीर शिथिल हो चला था उसने एक बार आँखें खोली पति और छोटे छोटे बच्चों की तरफ देखा उस पल संकेतों में जो संवाद हुआ प्रस्तुत है:- एक माँ की असमय विदाई नयनन पीडा, फिर भी मुस्काई गालों बालों पर पति के हाथ निःशब्द संवाद फिर छूटा साथ तब तुमसे संवाद हुआ था, इस घर को कौन चलायेगा. आगे निशा अंधकार है, ऊषा बन कौन जगायेगा. सूरज किरण, आभा से चंदा, तारा टिमटिम से भाता है. बाती से ज्योति दीपक की, तम हरता चमक जगाता है. तुमने धीरे से कहा, भ्रमर! इस भ्रम में समर न खो देना. मीठा जल है, उपजाऊ मिट्टी, श्रेष्ठ पौध हैं, बस बो देना. मैं शक्तिरूप में साथ रहूँगी, जब विषाद उन्माद करोगे. संवाद का वचन दिया प्रियतम, जब तुम मुझको याद करोगे. तुलसी कालीदास प्रसाद की, तुम ही तो कथा सुनाते थे. 'ब...
कानों की बालियां
कविता

कानों की बालियां

रंजना फतेपुरकर इंदौर (म.प्र.) ******************** जब जब तुम्हें देखा फूलों में कोई ख्वाब सा महका था बरसते सावन में आरजुओं का कारवां तुम्हारी ही यादों में जिया था नूर की बूंदें जो कानों की बालियों में पहनी मैंने एक कतरा चाँद का तुम्हारी मुस्कानों पर बिखरा था अंदाज़ तुम्हारी कशिश का यूं ही तो नहीं सबसे जुदा था तुम्हारी यादों में बसा दिल तुमसे ही ये कहता है बेहद हसीन था वो पल जो तुम्हारे खयालों से गुजरा था . परिचय :- नाम : रंजना फतेपुरकर शिक्षा : एम ए हिंदी साहित्य जन्म : २९ दिसंबर निवास : इंदौर (म.प्र.) प्रकाशित पुस्तकें ११ सम्मान : हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा हिन्दी रक्षक २०२० राष्ट्रीय सम्मान सहित ४७ सम्मान पुरस्कार ३५ दूरदर्शन, आकाशवाणी इंदौर, चायना रेडियो, बीजिंग से रचनाएं प्रसारित देश की प्रतिष्ठित पत्र पत्रिकाओं में निरंतर रचनाएं प्रकाशित अध्यक्ष रंजन कल...