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पद्य

रायता
कविता

रायता

विजय गुप्ता दुर्ग (छत्तीसगढ़) ******************** कार्यगति का नहीं ठिकाना, बातें ज्यादा कर जाते हैं रायता आजकल खाते कम, ज्यादा ही फैलाते हैं। अभिमान दिलों में ज्यादा है, विरोध भाव समाया है समूह संगठन शक्ति को ही, गर्त में पहुंचाया है अकूत धन दौलत बल से, होशियारी जताते हैं रायता आजकल खाते कम, ज्यादा ही फैलाते हैं। आत्म प्रशंसा आदत से, खुद को खुश रखवाना है थोड़ी बदनामी भी सहकर, नाम बड़ा चलवाना है नुकसानी की हो क्या चिंता, तुच्छ कर्म दिखलाते हैं रायता आजकल खाते कम, ज्यादा ही फैलाते हैं बॉलीवुड क्या राजनीति में, रिश्ते गहन ही देखे हैं राष्ट्रीय अंतराष्ट्रीय डॉन, संपर्कों से लपेटे हैं कथा मीडिया कितना गाये, रोज बदलती बातें हैं रायता आजकल खाते कम, ज्यादा ही फैलाते हैं। एक डांटे तो दूजा सुनता, नीचापन दिख जाता है भारी सभाओं के नाटक में, कॉलर ऊंची करता है साथी को कलंक परोसकर, निज शोभा पा जाते हैं...
बारिश के आंसू
कविता

बारिश के आंसू

विजय गुप्ता दुर्ग (छत्तीसगढ़) ******************** अपने दिल में जो पीड़ा सहते हैं, किसी को भनक नहीं लगने देते, वे बधाई के पात्र हैं क्योंकि बारिश में आंसू छिप जाते हैं, केवल हंसी दिखती है। मैंने इसी चिंतन को काव्य रूप दिया है। अंतर्मन की पीड़ा वालो संघर्ष बल की बधाई बारिश में आंसू छिपे, देती बस हंसी दिखाई। कष्ट छिपाकर जीनेवालों की कमी नहीं बचपन की बातें ठीक तरह से याद नहीँ चाह नहीं किसी खिलौने की जो दिखा कहीं पानी में कागज नाव चलाना भाव सही विवशता में जादू सी लिप्त धैर्य दवाई एक चॉकलेट ही माखन मिश्री और मलाई बारिश में आंसू छिपे, देती बस हंसी दिखाई अंतर्मन की पीड़ा वालो, संघर्ष बल की बधाई। बालपन की जिद तो खुद कृष्ण भी करते सुलभ सहज विचित्र कार्य शौक से करते परीक्षा में अव्वल बच्चे जब स्वयं ही बनते छात्रवृत्ति पाने की खुशियों को साझा करते उन बच्चों की कभी दिखती नहीं पढ़ाई जिद्दी स्वभाववश हो जात...
कर्म फल
कविता

कर्म फल

धैर्यशील येवले इंदौर (म.प्र.) ******************** तुम्हारे आत्मग्लानि में डूबने से, इतिहास का पहिया वापस नही घूम सकता द्रोणाचार्य। दंभ और अहंकार से भरे, अपने वचन याद करो, जो तुमने कहे मैं मात्र राजपुत्रो को विद्यादान देता हूँ। सूतपुत्र या वनवासी को नही। क्या तुम्हारा दंभ व अहंकार रोक पाया था कर्ण व एकलव्य को श्रेष्ठ धनुर्धर बनने से। तुम फिर गिरे दूसरी बार मांग कर अंगूठा एकलव्य से तुम जितना गिरे थे उतना ही ऊंचा उठा एकलव्य, तुम्हे अपना अंगूठा गुरुदक्षिणा में देकर। अगर शापित न होता सूर्यपुत्र न किया होता हस्तक्षेप केशव ने, कुछ और होता परिदृश्य महाभारत का। कर्मफल भोगना अनिवार्य है। शायद तुम्हारे ही कर्मफल आज तक भोग रहा है अश्वथामा। परिचय :- धैर्यशील येवले जन्म : ३१ अगस्त १९६३ शिक्षा : एम कॉम सेवासदन महाविद्याल बुरहानपुर म. प्र. से सम्प्रति : १९८७ बैच के सीधी भर्ती के पुलिस उप निरीक्षक व...
हर जन्म मे
कविता

हर जन्म मे

मनमोहन पालीवाल कांकरोली, (राजस्थान) ******************** हर जन्म मे इंसा अपनी कहानी खुद लिखता है न कलम से न किस्मत से खून से खुद लिखता है कौन पूछते हे परिंदो को गर खुद वो न उड़ते आसमां की ऊंचाई को होसलों से खुद लिखता है आज की राह कल की मंज़िल अपनी हे यारो फ़कत ख़्वाबो से नही समसीर से खुद लिखता है हर राह मुकव्ल-ए-मंज़िल की तरफ जाती यारो कदमों तलो कुचल अपनी कहानी खुद लिखता है हाथ करोड़ो ऊठ आते है हस्ती मेरी मिटाने को जाबाज हुनर से अपना इतिहास खुद लिखता है ज़िदगी कब-कहा बदरंग मे बदल जाती है यारो फिर भी तकदिर-ए-"मोहन" खुद लिखता है परिचय :- मनमोहन पालीवाल पिता : नारायण लालजी जन्म : २७ मई १९६५ निवासी : कांकरोली, तह.- राजसमंद राजस्थान सम्प्रति : प्राध्यापक घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं,...
कोरोना हल
हाइकू

कोरोना हल

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, जिला-गोण्डा, (उ.प्र.) ******************** कोरोना हल आपके हाथ में है, बस बचाव। भूखा मरता गरीब रोता भी है, दुआ भी देता। जीवन क्या? जीवन मूल्य बन, खुद लड़ना। आवाज मंद बुढ़ापे का संकेत, मान लीजिए। रोता रहता ठोकरें खाता जीता, सच्चा इंसान। परिचय :- सुधीर श्रीवास्तव जन्मतिथि : ०१.०७.१९६९ पिता : स्व.श्री ज्ञानप्रकाश श्रीवास्तव माता : स्व.विमला देवी धर्मपत्नी : अंजू श्रीवास्तव पुत्री : संस्कृति, गरिमा पैतृक निवास : ग्राम-बरसैनियां, मनकापुर, जिला-गोण्डा (उ.प्र.) वर्तमान निवास : शिवनगर, इमिलिया गुरूदयाल, बड़गाँव जिला-गोण्डा, उ.प्र. शिक्षा : स्नातक, आई.टी.आई.,पत्रकारिता प्रशिक्षण (पत्राचार) साहित्यिक गतिविधियाँ : विभिन्न विधाओं की कविताएं, कहानियां, लघुकथाएं, आलेख, परिचर्चा, पुस्तक समीक्षा आदि का १०० से अधिक स्थानीय से लेकर राष्ट्रीय स्तर की पत्र पत्रिकाओं में प...
अंधा बाँट रहा गर  सिन्नी
दोहा

अंधा बाँट रहा गर सिन्नी

प्रो. आर.एन. सिंह ‘साहिल’ जौनपुर (उ.प्र.) ******************** अंधा बाँट रहा गर सिन्नी घरे घराना खाएँगे जूठ काट जो बच गया उसको चिमचे पाएँगे स्वार्थ में अंधा हो जाते हैं जब भी ऐसे लोग कदम कदम पर हैंकड़ी उल्लू सदा बनाएँगे घुटने पर चलने को अक्सर करता है मजबूर दुश्मन मित्र नज़र आते हैं मित्र शत्रु बन जाएँगे बाहर से तो संत दीखता अंदर अहंकार भारी तजिए ऐसा साथ अन्यथा पिछलग्गू कहलाएँगे मतलब की बातें करता है धर के रूप प्रच्छन्न बचना है मारीचि से तो सोच के कदम बढ़ाएँगे अपना घर तो करेगा रोशन दूजे के घर अंधेरा अपनी धपली अपनी राग़ गाथा निजी सुनाएँगें थोथा थोथा जेब में अपने पइया ग़ैरों के हक़ में स्वाँग भरेंगे हर पल लेकिन साहिल सा दर्शाएँगे परिचय :- प्रोफ़ेसर आर.एन. सिंह ‘साहिल’ निवासी :जौनपुर उत्तर प्रदेश सम्प्रति : मनोविज्ञान विभाग काशी हिन्दू विश्वविद्यालय, वाराणसी, उत्तर प्रदेश रुचि...
आंखें
कविता

आंखें

डॉ. भगवान सहाय मीना बाड़ा पदम पुरा, जयपुर, (राजस्थान) ******************** इंसान का हर राज़ बता देती है आंखें। सुख और दुःख का हाल बता देती है आंखें। लाख चुप रहें हम सब, ख़ामोश रहकर भी सब कह देती है आंखें। कुछ भी छिपाओं दुनिया से, दिल की हर बात बता देती है आंखें। दिल के रन्जों-गम,दिल की इश्क बयानी, सब से जगबीती कह देती है आंखें। यह दरिया जंग से गुजर गया होता, पर हर फजा में जीना सिखाती है आंखें।। परिचय :- डॉ. भगवान सहाय मीना (वरिष्ठ अध्यापक राजस्थान सरकार) निवासी : बाड़ा पदम पुरा, जयपुर, राजस्थान घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अप...
परिणाम
कविता

परिणाम

संजय जैन मुंबई ******************** खेल खेलो ऐसा की किसी को समझ न आये। लूट जाये सब कुछ कोई समझ न पाए। कर्ताधर्ता कोई और है पर दाग और पर लग जाये। और मकरो का रास्ता आगे साफ हो जाये।। देश का परिदृश्य अब बदल रहा है। लोगो का ईमान अब बहुत गिर रहा है। इच्छा शक्ति लोगो की छिड़ हो रही है। और अच्छे लोगो की देश में कमी हो गई है।। ऐसा तभी होता है जब घोड़ा गधा साथ दौड़ता है। और बुध्दि का परिक्षण बिना संवादों से होता है। और उस के परिणाम देश में अब दिख रहा है। तभी तो देश का नागरिक ईमानदारी से लूट रहा है। बस लूट रहा है...बस...।। परिचय :- बीना (मध्यप्रदेश) के निवासी संजय जैन वर्तमान में मुम्बई में कार्यरत हैं। करीब २५ वर्ष से बम्बई में पब्लिक लिमिटेड कंपनी में मैनेजर के पद पर कार्यरत श्री जैन शौक से लेखन में सक्रिय हैं और इनकी रचनाएं राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच (hindirakshak.com) सहित बहुत सारे अखबार...
ऑपरेशन विजय
कविता

ऑपरेशन विजय

राज कुमार साव पूर्व बर्धमान (पश्चिम बंगाल) ******************** कारगिल हो या गलवान सबसे पहले सैनिकों का सम्मान कारगिल की बुलंद चोटियों पर जिन्होंने शान से सोलह हज़ार फीट की ऊंचाई पर तिरंगा लहराया जिन्होंने अपने लहू बहाकर दुश्मनों से गलवान घाटी को है बचाया जिसे सिर झुकाकर पूरा देश करता है सम्मान कारगिल हो या गलवान हर बाजी जीतेगा हिन्दुस्तान। परिचय :- राज कुमार साव निवासी : पूर्व बर्धमान पश्चिम बंगाल घोषणा पत्र : प्रमाणित किया जाता है कि रचना पूर्णतः मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.com पर अणु डाक (मेल) कीजिये, अणु डाक करने के बाद हमे हमारे नंबर...
उन्मुक्त रहे हमारी स्वतंत्रता
कविता

उन्मुक्त रहे हमारी स्वतंत्रता

बिपिन कुमार चौधरी कटिहार, (बिहार) ******************** महत्वाकांक्षा की धूमिल काली बदरी, खोज रहे लाल, नीयत जिनकी गुदड़ी, चतुराई की बिसात ओढ़े सरलता की चुनड़ी, दिखाए चंडी का रूप, जिनका अंतर्मन घमंडी, उन्मुक्तता जिनका राग, उन्मुक्त जिसकी जिंदगी, आंख बन्द करते जिनपर विश्वास साथी-संगी, शिकंजे में बांधने की कोशिश, देखना स्वप्न सतरंगी, कैसे बने काफ़िला, आदमी जब खुद हो मतलबी, त्याग की बंशी, सहयोग का सुर ताल, निज स्वार्थ की ओट में नहीं करना बबाल, चालाकियों के कोष से रहे बिल्कुल कंगाल, नतमस्तक होते वहीं, हम जैसे कई कंगाल, शान शौकत, ऐशन फ़ैशन से नहीं हमारा वास्ता, हमें भाये सर्वजन हित, चाहे दुर्गम हो रास्ता, दौलत शोहरत के बुंलदियों की ख्वाहिश नहीं, उमनुक्तता हमारी पहचान, उन्मुक्त रहे हमारी स्वतंत्रता... परिचय :- बिपिन बिपिन कुमार चौधरी (शिक्षक) निवासी : कटिहार, बिहार घोषणा पत्र : मैं यह प्र...
भारत ही हमारा धर्म
कविता

भारत ही हमारा धर्म

रवि कुमार बोकारो, (झारखण्ड) ******************** ना जात-पात मे खेद यँहा ना रंग-रुप मे भेद, ना धर्मों की कोई गिनती यँहा यहाँ धर्म मिले अनेक। कन्ही 'राम' हे कन्ही 'रहीम' कन्ही 'कृष्णा' तो कन्ही 'करीम ईस धरती पे ना जाने कितने विरो ने जन्म लिए, ईस भारत माँ के खातिर कितनों ने 'सर' कल्म किये,, जिसनें भी देखा नजर उठा के उनको भी सहनी हार पड़ीं 'भारत' ही हमारा धर्म है बस यही हमे संस्कार मिली।। परिचय :- रवि कुमार निवासी - नावाड़ीह, बोकारो, (झारखण्ड) घोषणा पत्र : यह प्रमाणित किया जाता है कि रचना पूर्णतः मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीयहिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.com पर अ...
सावन की फुहार
कविता

सावन की फुहार

तेज कुमार सिंह परिहार सरिया जिला सतना म.प्र ******************** सावन भादो केरि बहार बदरा बरसै मारि फुहार मान करै पिय से नवल नारि संग सखियन के कजरिया गावै डागरोहिंन के दिल धड़कावाई मघा बूंद मनसिज उपजावै दादूरि बोल उद्दीप्त करावै मोरिल बोलि बिरहिन सुन पावै हुकि करेजे तकि चलि जावै जे बड़भागी पिया संग, गावै मधुर मल्हार अमृत सी बरखा लगे, सावन केरि फुहार परिचय :- तेज कुमार सिंह परिहार पिता : स्व. श्री चंद्रपाल सिंह निवासी : सरिया जिला सतना म.प्र. शिक्षा : एम ए हिंदी जन्म तिथि : ०२ जनवरी १९६९ जन्मस्थान : पटकापुर जिला उन्नाव उ.प्र. घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीयहिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, ले...
अनमोल खेल
कविता

अनमोल खेल

मनोरमा जोशी इंदौर म.प्र. झूम उठे संसार ये सारा, प्रभु ऐसा खेल दिखा अनमोल। जहाँ जहाँ पर नजर घुमायें मस्ती का आलम हो, लग जायें खुशियों के मेले अपने आप बिदा गम हो। ऐसी तान छेड़ दो प्रभुजी मचल उठे पूरा भूगोल। ऐसा खेल दिखा अनमोल... मन में चंदन लगे महकने, दिल गंगा सा पावन हो, केवल घर ही नहीं हमारा, भारत भी वृन्दावन हो। जिससें गिरे धरा पर अमृत, ऐसे हमें सुनादे बोल। ऐसा खेल दिखा अनमोल... पूनम सी खिल उठे जिंन्दगी, पुलक उठे सारा माहोल, ऐसा खेल दिखा अनमोल... परिचय :-  श्रीमती मनोरमा जोशी का निवास मध्यप्रदेश के इंदौर में है। आपका साहित्यिक उपनाम ‘मनु’ है। आपकी जन्मतिथि १९ दिसम्बर १९५३ और जन्मस्थान नरसिंहगढ़ है। शिक्षा - स्नातकोत्तर और संगीत है। कार्यक्षेत्र - सामाजिक क्षेत्र-इन्दौर शहर ही है। लेखन विधा में कविता और लेख लिखती हैं। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में आपकी लेखनी का प्रकाशन होता रहा है। राष्...
माध्यम वर्ग का अजब पहाड़ा
कविता

माध्यम वर्ग का अजब पहाड़ा

राजकुमार अरोड़ा 'गाइड' बहादुरगढ़ (हरियाणा) ******************** आओ पढ़ें, मध्यम वर्ग का ये अजब पहाड़ा। सँघर्ष है जिसकी नियति, न कभी जीता, न हारा।। अमीर-गरीब के बीच पिस रहा मैं ही कर्णधार हूँ। हर टैक्स की अदायगी की मैं ही तो पतवार हूँ। मेरा जीवन नीति से नहीं, नीयत से चलता है। न जाने क्यों, हर शासक मुझे ही छलता है।। चुप रह जाना हर बार मेरी विवशता मत समझो। स्वयं ही कुछ महसूस करो, जानो और परखो। रख स्वाभिमान बरकरार कैसे हमारी जिंदगी है कटी। उजली दिखती कमीज़ के नीचे है हमारी बनियान फटी।। जुटा हिम्मत, कर व्यवस्था आराम के साधन जुटा लेते है। न बन पाये कभी बात तो अपनी जरूरत घटा लेते हैं। हर बार ही तुमने हमें थकाया है, भरमाया है । हर संकट में जबकि मध्यम वर्ग ने ही तुम्हें बचाया है।। जिन पर लुटा दिया तुमने लाखों करोड़ों का अम्बार। भाग गये विदेश वो, कर के तुम्हें पूरी तरह से लाचार।। मत भूलो हम ही हैं,...
स्वतंत्रता इस मिट्टी की
कविता

स्वतंत्रता इस मिट्टी की

उषा शर्मा "मन" बाड़ा पदमपुरा (जयपुर) ******************** १५ अगस्त को आता भारत का स्वतंत्रता दिवस। भारतवासी जिसे शान से मनाता हर वर्ष।। इसी दिन उन गोरे लोगों से भारत हुआ स्वतंत्र। ७३ वर्ष पूर्व ना था भारत में लोकतंत्र।। अतः सब भारतवासी लोकतंत्र का अर्थ समझे। पैसे, भाई भतीजावाद के लिए अपना मत ना बेचे।। इसी देश को विदेशों में कहते सोने की चिड़िया। सत्य, अहिंसा की कुंजी जहां की माया।। अनेक जाति हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई। एकता, अखंडता है जिस देश की मूल इकाई।। देश का तिरंगा ही बतलाता जिस धरती को। मोदी, अमित नेता जहाँ, छोड़ो सारी निराशा को।। एकता संबल जहां, टूटे अभिमान वहां। मातृभूमि की गंध जिस मिट्टी में, वह है यहां।। त्यागे सब धर्म, अपनाएं देश भक्ति का धर्म। जन - जन ऐसा जिसमें हो त्याग का कर्म।। ऐसी मिट्टी है हमारी मातृभूमि भारत माता की। परिचय :- उषा शर्मा "मन" शिक्षा : एम.ए. व बी...
रक्षा बंधन
कविता

रक्षा बंधन

संजय जैन मुंबई ******************** हर सावन में आती राखी। बहिना से मिलवाती राखी। बहिन-भाई का अनोखा रिश्ता। बना रहे ये बंधन हमेशा।। जो भूले से भी ना भूले। बचपन की वो सब यादे। बहिन-भाई का अटूट प्रेम। सब कुछ याद दिलाती राखी।। भाई बहिन का पवित्र रिश्ता। हर घर में खुशियां बरसाता। बहिना सब के दिलमें बसती। क्योकिं घर की वो है लक्ष्मी।। मन भावन क्षण लाती राखी। एक दूसरे की रक्षा की याद दिलाती राखी। वचन हमेशा याद दिलाती बहिन भाई को ये राखी। इसलिए हर साल ये आती स्नेह प्यार सब का बढ़ाती।। भैया भाभी वचन एक देना, कभी न छोड़ोगे मातपिता को। यही वचन है भाई मेरा राखी का उपहार भी मेरा। घर घर में लायेगा ये वचन खुशियां अपरम्पार। देखो आया बहिन भाई का, रक्षा बंधन का त्यौहार।। परिचय :- बीना (मध्यप्रदेश) के निवासी संजय जैन वर्तमान में मुम्बई में कार्यरत हैं। करीब २५ वर्ष से बम्बई में पब्लिक लिमिटेड कंपन...
प्यासा परिंदा
कविता

प्यासा परिंदा

सौरभ समर महराजगंज (उत्तर प्रदेश) ******************** यह सोच भटका हुआ मंजिल परख जायगा कही ना कहीं तो हर सड़क जायगा सबको पता है उसका ठिकाना घोसला ही होगा परिंदा आसमा छूते छूते जब थक जायगा चिंगारी दरकार नही मोहब्बत ए आतिश को महज एक दीदार से ये शोला भड़क जायगा बेअदब है ये लोग नजरे नही झुकायेंगे बदन से जो दुप्पटा सरक जायगा किसी बेघर को घर मे सुलाकर कर के देखो घर का कोना कोना महक जायगा और छज्जे पर रख देना आब का प्याला कोई प्यासा परिंदा चहक जायगा परिचय :- सौरभ समर निवासी : महराजगंज (उत्तर प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीयहिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवान...
अफवाह
कविता

अफवाह

अमोघ अग्रवाल गढ़ाकोटा, सागर (मध्य प्रदेश) ******************** कान जो सदा घिरे होते थे सुंदर-सुंदर बालियों से, झुमकों से। काली-काली, घनी-घनी, लटों से, घटाओं से, छुपे होते थे। आज वह, इस तरह घिरे हैं, अफवाहों से, कि बोल उठते हैं, चीख़ उठते है, मुझे फट जाने हो, कट कर कहीं, गिर जाने दो... परिचय :- अमोघ अग्रवाल साहित्यिक नाम : "इंतज़ार" पिता : स्व. बी. के. अग्रवाल माता : श्रीमती आशा अग्रवाल जन्म : ०५ सितंबर १९९१ निवासी : गढ़ाकोटा, सागर (मध्य प्रदेश) शिक्षा : बी.ई. कार्यरत : निजी व्यवसाय लेखन : शांत, करुण, श्रृंगार रस, कविता, कहानी, हाइकू, टांका और अन्य सम्मान : "शतकवीर" सम्मान, "काव्य कृष्ण" सम्मान, निरंतर १२ घंटे काव्य में सम्मान, राष्ट्र कवि गुरु सत्त नारायण सत्तन जी द्वारा दो बार सम्मानित। रंजनकलश इंदौर ईकाई मीडिया प्रभारी, कई पत्र पत्रिकाओं में रचना प्रकाशित।...
तुम्ही बताओ
कविता

तुम्ही बताओ

आशीष तिवारी "निर्मल" रीवा मध्यप्रदेश ******************** उसकी बंदिश में कब तक रहता तुम्ही बताओ, मैं उसके जुल्म कब तक सहता तुम्ही बताओ! जहर पीता रहा मैं अब तक खामोशी से यारों, आखिर कब तक कुछ ना कहता तुम्ही बताओ! जो छलती रही सदा अपना कह-कह के मुझको, मैं एक बार उसको क्यों ना छलता तुम्ही बताओ! मेरी उन्नति से भी वो जलती रही अंदर ही अंदर, फिर मैं ही उससे क्यों ना जलता तुम्ही बताओ! सफर में साथ छोड़ के वो बदल दी हमसफ़र, अपने वादों से मैं क्यों ना बदलता तुम्ही बताओ! गुजर गया अनमोल समय बेमतलब के रिश्ते में, बर्बाद हुआ समय क्यों ना खलता तुम्ही बताओ! परिचय :- आशीष तिवारी निर्मल का जन्म मध्य प्रदेश के रीवा जिले के लालगांव कस्बे में सितंबर १९९० में हुआ। बचपन से ही ठहाके लगवा देने की सरल शैली व हिंदी और लोकभाषा बघेली पर लेखन करने की प्रबल इच्छाशक्ति ने आपको अल्प समय में ही कवि सम्मेलन मंच, आकाशव...
बीत गये कितने दिन
कविता

बीत गये कितने दिन

डॉ. कामता नाथ सिंह बेवल, रायबरेली ******************** बीत गये जाने कितने दिन, बिन खुद से बतियाये बोले।। मन में कुछ आना, कुछ कहना, फिर अपने में दहते रहना, वृश्चिक-दंश कभी अपनों, अपने जैसों का सहते रहना, रोम-रोम रिस-रिसकर सबके जीवन में अमृतरस घोले।। बीत गये जाने कितने दिन, बिन खुद से बतियाये, बोले ।। एक पांखुरी खिलने से झरने तक कितनों को क्या देती, कितने पुण्य बांटती फिरती है संगम की पावन रेती, गुणा गणित या जोड़ घटाना फ़ुरसत कहां कि नापे तोले।। बीत गये जाने कितने दिन, बिन खुद से बतियाये, बोले।। जब-तब नेह भरी आंखों से, कितने सपने झर जाते हैं, जिम्मेदारी की लू से अंखुवाये सपने मर जाते हैं, बिना समय की मर्जी कब अपनी मर्जी से हीले डोले।। बीत गये जाने कितने दिन, बिन खुद से बतियाये, बोले।। परिचय :- डॉ. कामता नाथ सिंह पिता : स्व. दुर्गा बख़्श सिंह निवासी : बेवल, रायबरेली घोषणा पत्...
तिरस्कार से आहत मन
कविता

तिरस्कार से आहत मन

विवेक रंजन 'विवेक' रीवा (म.प्र.) ******************** तिरस्कार से आहत मन तो, कुंठा की हर चोट छिपाता। पर मैं विचारों की नदी के, पार जाकर लौट आता। तब सदा अनुभूत शांति, क्रोध की ज्वाला दबाती। पछतावे के आंसुओं का, बोझ मन पर लाद जाती। नीरवता फिर रात ढले ही, बात किया करती सांसों से। सुनती है, कुछ भी न बोलती, अंतर्मन रह रह कर टटोलती। बुद्धि का अवरोध हटाकर हौले हौले मन भीतर जाता। पर चकराता देख नज़ारा, बड़े मज़े में खुद को पाता। द्वेष दम्भ के, अहंकार के, सभी मुखौटे पड़े धरा पर। लोभ, लालच के प्रपंच भी, हैं खड़े सिर को नवा कर। निर्मल शीतल नीर झील का, मन पर ऐसा असर दिखाता। ईर्ष्या, द्वेष सभी बह जाते, छल प्रपंच भी नज़र न आता। बुद्धि का अहम ही हमें सताता, मतिभ्रम से मन को उलझाता। कलुषित कुछ ना भीतर पाकर, सब खेल समझ मन ऊपर आता। बुद्धि का कोई उपक्रम अब, जब भी मन में शोक जगाता। मैं फिर विचारों की नदी के पार ज...
यह कैसा संभाषण
कविता

यह कैसा संभाषण

रमेशचंद्र शर्मा इंदौर मध्य प्रदेश ******************** यह कैसा संभाषण है ! प्रायोजित अभिभाषण है !.. यह ज्ञान ध्यान सब भूले हैं, दंभ अज्ञान में फूले हैं, मंत्रणा दुखदायक हैं, यंत्रणा भय कारक हैं, पूर्वाग्रही दुःशासन है !... यह अपनों पर आघाती हैं, सपनों पर प्रतिघाती हैं, पीठ पर वार किए हैं, हाथों पर हार लिए हैं, भीतर घाती विभीषण हैं !... यह शतरंज बिछात बिछाते हैं, प्यादे जाल लगाते हैं, शह मात का खेला है, मंत्री संत्री का रेला है, यह कैसा शीर्षासन है !.... यह राजनीति का मेला है, छल नीति का खेला है, देश हित को दूर किया है, स्वहित का साथ दिया है, कहने का अनुशासन है !... यह लूट तंत्र हावी है, भ्रष्ट तंत्र प्रभावी है, प्रजातंत्र की खिल्ली है, खंभा नोचें बिल्ली है, यह कैसा सुशासन है !... यह परिचय : रमेशचंद्र शर्मा निवासी : इंदौर मध्य प्रदेश घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्...
जाने क्यों
कविता

जाने क्यों

रुचिता नीमा इंदौर म.प्र. ******************** जाने क्यों ऐसे हो रहे है लोग जाने क्यों ऐसे हो रहे है लोग कि समझना ही नहीं चाहते खुद को, या फिर बन्द कर लेते है आंखों को देखकर भी नादान बने रहते है आजकल लोग जाने क्यों ऐसे हो रहे....? कोई गलत कर रहा, उसे करने दो.... कभी मन्दिर के नाम पर, कभी मस्जिद के नाम पर, बेवज़ह मुद्दों को खींचकर, बस अपनी रोटी सेंक रहे है लोग न धर्म बच रहा, न ईमान बच रहा.... अब तो ऐसा लग रहा कि कहा इंसान बच रहा....? बिक रहे बाजार में जानवर भी, इंसान भी और ईमान तो बहुत सस्ता बिक रहा.... जाने क्यों ऐसे हो रहे है लोग....? यहाँ हर चीज की बोली लग रही.... शरीर का हर अंग तक अब बिक रहा.... लेकिन फिर भी जीवन का मोल खो गया, जो छोटी छोटी बातों पर जान गवाने लग गए है लोग.... जाने क्यों ऐसे हो रहे है लोग....? क्या इनकी तन्द्रा भी कभी टूटेगी, या ये जिंदगी फिर ऐसे ही छूटेगी। इनका जाग...
संकल्प
कविता

संकल्प

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ******************** अंग्रेजी के शब्दों से हो रहा हिंदी के इंद्रधनुष के साहित्य शाला का रंग फीका। मानव देख रहा धुंधलाई आँखों से और व्यथित मन सोच रहा लिखने, पढ़ने में क्यों? बढ़ने लगे हिंदी में अंग्रेजी के मिलावट के खेमे। शायद, मिलावट के प्रदूषण ने हिंदी को बंधक बना रखा हो। तभी तो हिंदी सिसक-सिसक कर हिंदी शब्दों की जगह गिराने लगी लिखने, पढ़ने ,बोलने में तेजाबी अंग्रेजी आँसू। साहित्य से उत्पन्न मानव अभिलाषा मर चुकी अंग्रेजी के वायरस से। कुछ बची वो स्वच्छ ओंस सी बैठी हिंदी विद्वानो की जुबां पर। सोच रही है आने वाले कल का हिंदी लिखने, पढ़ने, बोलने से ही तो कल है हिंदी से ही मीठी जुबां का हर एक पल है। संकल्प लेना होगा हिंदी लिखने, पढ़ने,बोलने का आज हिंदी को बचाने का होगा ये ही एक राज। परिचय :- संजय वर्मा "दॄष्टि" पिता :- श्री शांतीलालजी वर्मा जन्म तिथि :- २ मई १९...
वह तपता सूरज ही मेरी छाव
कविता

वह तपता सूरज ही मेरी छाव

दीपक अनंत राव "अंशुमान" केरला ******************** वह पसीना नमकीन बहा दिया जनम भर, मीठी बन गई हैं जिन्दगी हमारी, जिनके नाम पर है सफर और मंज़र, हे परम पिता तू ही मेरी पूजा है। युग युगों से चलती है, प्यार कोख का और सुरक्षा पितर का इस धरा में जागते-गूँजते महिमा अपार, वह ही ये स्थूल सूक्ष्म का, हे परम पिता तेरी भुजाओं का बल धरती पर आँचल की प्यार भरी एक कहानी, तपते सूरज की प्रज्वलित महिमा की एक कहानी गोदी से प्यार और कंन्धे से ताकत मज़बूत, लेकर चलती रहती यह समाज निरंतर, हे परम पिता तू ही मेरे दिखावनहार मैं एक कवि हूँ, बेटा हूँ तुम्हारी छाव में खड़ा हूँ, प्यार में पला हूँ हिमवन में बैठ दुनिया को मज़बूत मन से निहारता हूँ, सामना करता हूँ, जीत रहा हूँ, हे परम पिता मैं हूँ सदा तुम्हारा परिच्छेद परिचय :- दीपक अनंत राव अंशुमान निवासी : करेला घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि म...