मकड़ी का जाल
मीना भट्ट "सिद्धार्थ"
जबलपुर (मध्य प्रदेश)
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जाल मकड़ी का बुना है,
खो गयी संवेदनाएँ।
द्वेष के फूटे पटाखे,
जल रहीं हैं नित चिताएँ।।
कर रहे क्रंदन सितारे,
चाँद भी खामोश रहता।
हर तरफ छाया तिमिर की,
अब नहीं कुछ होश रहता।।
आपदा की बलि चढ़े सब,
चल रहीं पागल हवाएँ।
शोक घर -घर हो रहा है,
मौत की छाया पड़ी है।
आँधियाँ सुनती नहीं कुछ,
झोपड़ी सहमी खड़ी है।।
छा रही है बस निराशा,
टूटती सारी लताएँ।
भूलती चिड़िया चहकना,
साँस बिखरी कह रहीं अब,
कौन सुरक्षित इस जग में,
पीर अँखियाँ सह रहीं सब
संत्रासों की माया है ,
छा गईं काली घटाएँ।
परिचय :- मीना भट्ट "सिद्धार्थ"
निवासी : जबलपुर (मध्य प्रदेश)
पति : पुरुषोत्तम भट्ट
माता : स्व. सुमित्रा पाठक
पिता : स्व. हरि मोहन पाठक
पुत्र : सौरभ भट्ट
पुत्र वधू : डॉ. प्रीति भट्ट
पौत्री : निहिरा, नैनिका
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