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पद्य

राम जन्म भूमि
छंद, धनाक्षरी

राम जन्म भूमि

विजय गुप्ता दुर्ग (छत्तीसगढ़) ******************** ढूंढे सारे थे विकल्प, अवधि भी नहीं अल्प पांच सदी काल बीते, शुभ दिन आने को। जोर शोर थम गया, वाक्य युद्ध थक गया प्रमाण पे रुक गया, भव्यता ही पाने को। राम जन्म भूमि युद्ध, राम नहीँ जरा क्रुद्ध देर है अंधेर नहीं, सत्य समझाने को। बहुत था अवरोध, राम काज में विरोध व्यर्थ हुई अपील भी, राम राज आने को। राम का चरित्र गान, रामायण पूर्ण ज्ञान एक चौपाई बहुत, मानव सजाने को। रघु रीति प्रण राम, मर्यादित सदा काम मर्म धर्म आठों याम, कर्म अपनाने को। हनुमान गढ़ी द्वार, सुरक्षा संकल्प भार पूजन विशेष यहां, भूमि के प्रवेश को। कैसे हो खुशी बखान, साक्षी अवध महान भारत नहीं दुनिया, राम पुण्य भूमि को। है जन्म अब सफल, कार सेवा थी अटल एकत्र है माटी जल, निर्माण कराने को। राम युग शान अब, धर्मियों का दान खूब रजत ईंट आधार, भव्य दरबार को। परिचय :- विजय कुमार गुप्ता जन...
माखन के चोर
कविता

माखन के चोर

रूपेश कुमार (चैनपुर बिहार) ******************** माखन के चोर, गोपियों की नैनो के मोर, तूने कैसा खेल किया, दुनिया सारी तुम्हारे है ओर, मीरा तुम्हारी दीवानी, राधा तुम्हारी दीवानी, दुनिया तुम्हारे दीवाने, तेरे हाथों युग बना घनगोर, कहीं जन्मा तू, कहीं पला तू, कहीं खेला तू, कहीं रहा तू, तेरे रूप अनेक, तेरे रंग अनेक, किसी के दिल में तू, किसी के सांसो में तू, तू दुनिया के पालन हारी, तू दुनिया के सबके दुलारे, तू है तो दुनिया है, तू है तो हम है! परिचय :- रूपेश कुमार छात्र एव युवा साहित्यकार शिक्षा - स्नाकोतर भौतिकी, इसाई धर्म (डीपलोमा), ए.डी.सी.ए (कम्युटर), बी.एड (महात्मा ज्योतिबा फुले रोहिलखंड यूनिवर्सिटी बरेली यूपी) वर्तमान-प्रतियोगिता परीक्षा की तैयारी ! निवास - चैनपुर, सीवान बिहार सचिव - राष्ट्रीय आंचलिक साहित्य संस्थान प्रकाशित पुस्तक - मेरी कलम रो रही है सम्मान : कुछ सहित्यिक स...
कान्हा की सीख
कविता

कान्हा की सीख

डॉ. पंकजवासिनी पटना (बिहार) ******************** छूटने का दर्द जानते हो??? कितना पीड़ादायक! कितनी टीसभरी !! कितना टभकता हुआ!!! क्या जीवन में कुछ छूटने के बाद भी मुस्कुरा सकते हो??? एक बार देखो ----- कान्हा को! सबसे पहले गर्भ छूटा माँ का! (जन्म से पहले ही) फिर माँ बाप!! फिर छूटे पालक माता-पिता! बचपन का आंगन छूटा!! संगी साथी छूटे!!! छूट गए सब ग्वाल-बाल ! छूटा पास-पड़ोस सारा !! छूटी यमुना अति प्यारी !!! और छूटे सरस सघन लता-कुंज सारे ! भरी जिनमें जीवन की प्याली!! छूट गईं... गोकुल की भोरी गोपियां! गोकुल का मिश्री-माखन!! और छूटी.... आत्मा की संगी! प्रिय राधा रानी!! आह! " चिर बिछोह"!!! क्रीड़ा भूमि गोकुल छूटा! कर्म भूमि मथुरा छूटी!! सबको आह्लाद की सरिता में अंतरात्मा तक डुबोती! *जीवनदायी मुरली!! भी छूट गई हाय!!! कान्हा! जाने कितनी पीड़ा तुमने झेली!! कितना पीड़ादायक रहा होगा तुम्हारे लिए जी...
जन्माष्टमी
गीत

जन्माष्टमी

संजय जैन मुंबई ******************** कितना पावन दिन आया है। सबके मन को बहुत भाया है। कंस का अंत करने वाले ने, आज जन्म जो लिया है। जिसको कहते है जन्माष्टमी।। काली अंधेरी रात में नारायण लेते। देवकी की कोक से जन्म। जिन्हें प्यार से कहते है। कान्हा कन्हैया श्याम कृष्ण हम।। लिया जन्म काली राती में, तब बदल गई धरा। और बैठा दिया मृत्युभय, कंस के दिल दिमाग में। भागा भागा आया जेल में, पर ढूढ़ न पाया बालक को। रचा खेल नारायण ने ऐसा, जिसको भेद न पाया कंस।। फिर लीलाएं कुछ ऐसी खेली। मंथमुक्त हुए गोकुल के वासी। माता यशोदा आगे पीछे भागे। नंदजी देखे तमाशा मां बेटा का।। सारे गांव को करते परेशान, फिर भी सबके मन भाते है। गोपियाँ ग्वाले और क्या गाये, बन्सी की धुन पर थिरकते है। और मौज मस्ती करके, लीलाएं वो दिख लाते है। और कंस मामा को, सपने में बहुत सताते है।। प्रेम भाव दिल में रखते थे, तभी तो राधा से मिल पाए...
कृष्ण अष्टमी
कविता

कृष्ण अष्टमी

डॉ. भगवान सहाय मीना बाड़ा पदम पुरा, जयपुर, (राजस्थान) ******************** भाद्रपद कृष्ण अष्टमी, काली रात अंधियारी। कंस तेरी जेल में, जन्म लिएं बनवारी। वसुदेव गोकुल पहुंचे, संग ले कृष्ण मुरारी। कंस के कारागार पहुंची, यशोदा राज दुलारी। मामा तेरे अंत की, अब हो गई तैयारी। खुशियां छाई गोकुल में, मुस्काते नर नारी। देवकी के प्रसव की, खबर लें आये संचारी। क्रोधित हो नवजात को, मारने आया अत्याचारी। दुष्ट तुझे मारने, गोकुल आ गया गिरधारी। घबराया कंस, अपनी माया रची मुरलीधारी। गढ़ गोकुल की गोपियां, तुझे बोलें माधव मुरारी। ग्वाल बाल संग कान्हा, करता माखन चोरी। परिचय :- डॉ. भगवान सहाय मीना (वरिष्ठ अध्यापक राजस्थान सरकार) निवासी : बाड़ा पदम पुरा, जयपुर, राजस्थान घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आ...
बाल विवाह
कविता

बाल विवाह

प्रिया पाण्डेय हूघली (पश्चिम बंगाल) ******************** मैंने देखा है कम उम्र की, शादी-शुदा लड़कियों को, सपने सारे टूटे, झूठी मुस्कुराहट की लदी तस्वीरें, अपनों से खुद को छुपाती हुई.... ससुराल मे हर किसी की ख्वाहिश पूरी करती सबका पूरा ध्यान रखती, रिश्तो के डोर मे फंसी, जिम्मेदारीयों के बोझ तले दबी हुई.... थोपे गये समाज के गलत फैसलों से, बंधनो के बेड़ियों से बाहर निकलकर, कुछ पल अपने लिए, जीना चाहती है.... अपनी ख्वाईशो को किसी का साथ पाकर पूरा करना चाहती है, किसी अपने से लिपटकर जी भर कर रोना चाहती है, चाहती है वो अपने दबे सपनो को फिर से पूरा करना, एक सच्चा दोस्त जो प्रेमी से कम ना हो, हर तकलीफ और दर्द मे उसका साझेदार हो, मुश्किलों मे उसका सहारा बने और, अकेलेपन मे उसकी होंठो की मुस्कान, फिर.... लांछन का डर, समाज की बेड़िया, उसके बढ़ते हुए कदम, और उसके हर सपने को रोक लेती है.... जैसे पिंजरे मे तड़प...
रोम-रोम में राम
कविता

रोम-रोम में राम

राजकुमार अरोड़ा 'गाइड' बहादुरगढ़ (हरियाणा) ******************** बरसों से ही बसे हुए हैं, हम सबके रोम रोम में राम। राम का नाम लेते ही देखो, कितना आ जाता आराम।। सदियों से हम तो करते अभिवादन, कह के राम राम। राम राम ही रटते रहो, इसी से मिल जाते हैं चारों धाम।। राम के नाम पर ही लड़ते रहे, भूल गये बाकी,तुम सब काम। अपरम्पार है राम की महिमा, करते रहो, क्या लगता है दाम।। कृष्ण हो या करीम, राम हो या रहमान, क्या फर्क है। लहू एक है, रंग भी कहाँ भिन्न, फिर ये कैसा तर्क है।। राम हो या अल्लाह, एक नूर से ही तो सब उपजा है। मंदिर मस्जिद की तकरार में ये कैसी मिल रही सज़ा है।। बरसों से चुभ रही थी एक चुभन, ह्रदय में बन कर शूल। आई घड़ी सुहानी तो खिलखिला उठे खुशियों के फूल।। कण कण में ही तो हैं राम विराजत, संग रहते वीर हनुमान हैं। जो पा जाते इनकी कृपा, उनको राम मिलना हो जाता आसान है।। अब छंटे हैं बादल, अंत हु...
आराध्य राम
कविता

आराध्य राम

विमल राव भोपाल म.प्र ******************** वर्ष पाँच सो बाद सफलता मिली अयोध्या धाम कों मिले हमें आराध्य हमारें नमन प्रभु श्री राम कों आज अयोध्या नगरी सारी सजी दुल्हन सी लगती हैं वर्षो का संघर्ष झेलना प्रभु राम की भक्ति हैं धेर्य और विश्वास लिऐ हम आस लगाए बेठे थे कार सेवकों की सेवा का उपवास लिऐ हम बेठे थे आज पुनः वह अवसर आया घर घर दीप जलाएंगे राम लला की अगुवाई में फिर भगवा लहराएंगे परिचय :- विमल राव "भोपाल" पिता - श्री प्रेमनारायण राव लेखक, एवं संगीतकार हैं इन्ही से प्रेरणा लेकर लिखना प्रारम्भ किया। निवास - भोजपाल की नगरी (भोपाल म.प्र) विशेष : कवि, लेखक, सामाजिक कार्यकर्ता एवं प्रदेश सचिव - अ.भा.वंशावली संरक्षण एवं संवर्द्धन संस्थान म.प्र, रचनाएँ : हम हिन्दुस्तानी, नई दुनिया, पत्रिका, नवभारत देवभूमि, दिन प्रतिदिन, विजय दर्पण टाईम, मयूर सम्वाद, दैनिक सत्ता सुधार में आए दिन लेख एवं रचनाएँ ...
हे वर्षा के देवता
कविता

हे वर्षा के देवता

दिलीप कुमार पोरवाल “दीप” जावरा मध्य प्रदेश ******************** हे वर्षा के देवता आस लगाए बैठे हैं देख रहे हैं मेघो की और कर दो मेघ गर्जना बरसा दो पानी हे वर्षा के देवता प्यासी है धरती प्यासे हैं खेत प्यासे हैं जीव जंतु मरणासन्न है पेड़ पॊधे उड़ेल दो अपना स्नेह नीर और कर दो सबको तृप्त हे वर्षा के देवता सरसराती हवाओं के साथ उमड़ घुमड़ कर दो नाद चमका दो बिजलियों से गगन भर दो सप्तरंगी रंग और बरसा दो स्नेहनीर हे वर्षा के देवता ताक रहे हैं धरती पुत्र आस लगाए बैठे हैं अब तो बरसा दो स्नेहनीर महका दो बाग बगिया और खेत और कर दो धरा का श्रृंगार हे वर्षा के देवता कूप है खाली खाली सरोवर है सूखे सूखे नदिया है आतुर मिलन से सागर को बरसा दो अपना स्नेहनीर हे वर्षा के देवता करते है अनुनय विनय दे दो अपना स्नेहाशीष और बरसा दो स्नेहनीर। परिचय :- दिलीप कुमार पोरवाल “दीप” पिता :- श्री रामचन्द्र पोरवाल म...
सच्ची मित्रता
कविता

सच्ची मित्रता

होशियार सिंह यादव महेंद्रगढ़ हरियाणा ******************** जग में मिलने हजारों जन, पर कुछ में बड़ी पवित्रता, दर्द मिटाके, सुख का दाता, कहलाती है सच्ची मित्रता। एक है दोस्त, दूजा दुश्मन, दोनों में जरा करलो मंथन, दोस्त चाहे सदा ही भला, दुश्मन चाहे काट दूं गला। दुश्मन के दिल में नफरत, चाहे वो जन की हो दुर्गत, सदा करता रहे उल्टे काम, यूं होता है जग में बदनाम। दोस्त के दिल में बहे बयार, खुद दुख में देता सच्चा प्यार, दोस्त मिल जाएं कई हजार, सच्चे मित्र मिले बस दो चार। मित्र वहीं है मित्रता निभाए, दुख पहाड़ सम, वो हंसाए, सदा ही गले से वारे लगाये, कुर्बानी दे दे, नहीं घबराये। सच्ची मित्रता सुनने मिलती, सुन दोस्ती कलियां खिलती, ईश्वर भी देखे, जोड़ी ,प्यारी, दोस्ती नहीं है कभी दोधारी। सच्ची मित्रता कृष्ण-सुदामा, युगों युगों तक रहेगा ये नाम, जब-जब बात सुदामा चले, याद आयेंगे तब-तब श्याम। सच्ची...
क्या बताऊं
कविता

क्या बताऊं

विजय गुप्ता दुर्ग (छत्तीसगढ़) ******************** कलम करती सृजन कृपा दृष्टि मां से पाऊं दुष्कर हालातों में, क्या समझूं क्या बताऊं। मन पिंजरा विचित्र, चाहे कुछ भी भरना है जो मन के अंदर, काश बने वो झरना सोचो तुम खुद ही, क्या रखूं,क्या बहाऊं विपरीत समय में, कुछ तो दिमाग लगाऊं दुष्कर हालातों में क्या, समझूं क्या बताऊं। मोबाइल नितांत जरूरी, बन गया जो आत्मा राहों के दुरुपयोग में, बहुतों का हुआ खात्मा बिन मोबाइल के अब, देखो कितना बौराउं नए विचार की पैठ, मॉडल नया मंगाउँ दुष्कर हालातों में, क्या समझूं क्या बताऊं। नया युग चल रहा, साथ रहे सद्व्यवहार खाली रहकर व्यस्त, अब कैसे जीवन पार सुने नहीं समझे नहीं, कैसे खुद को जगाऊं आत्मनिर्भर बनने, कितना बोध कराऊँ दुष्कर हालातों में क्या, समझूं क्या बताऊं। बिना अक्ल व मेहनत, काम हो आराम का ज्ञान और मौका जहां, स्थान नहीं काम का श्रेष्ठ यदि मिलता हो, खु...
रक्षाबंधन
कविता

रक्षाबंधन

डॉ. पंकजवासिनी पटना (बिहार) ******************** रक्षाबंधन है आज! कई बार कह देते हैं लोग: "दो और लो" का पर्व इसे! लेकिन नहीं, मैं नहीं मानती यह!! आज तो "बहना" ने अपने हृदय की अनंत शुभेच्छाएं... उज्ज्वलतम स्नेहिल भावनाएँ... अनंत आशीष... दिव्य प्रार्थनाएँ... "भाई" के प्रति रेशम की पावन डोर में पिरो कर बांध डाली है उसकी कलाई पर ! अपने उत्कट स्नेह की अभिव्यक्ति की है उसने!! "परीक्षा" भी लेती है वह अपने "स्नेह" की!! जब पीहर सूना हो जाता है बाबुल की समर्थ दुलार से... और माँ की विकल प्रतीक्षा से...!! भाई का भी प्रण कुछ उपहारों के रूप में आया है बहना के समक्ष! उसकी हर परिस्थिति में रक्षा की... "बरगदी छत्रछाया" देने का आश्वासन बनकर! वह रक्षा करेगा उसकी: तमाम विपदाओं और प्रतिकूलताओं से... उबारेगा उसे तमाम दुर्बलताओं से... भरेगा अकूत, अटूट विश्वास उसके मन में: बनेगा हर सुख-दुख में उसका संबल और सह...
पत्थर और माटी
कविता

पत्थर और माटी

शिवदत्त डोंगरे पुनासा जिला खंडवा (मध्य प्रदेश) ******************** पत्थर गिरा माटी पर माटी हो गई चूर पत्थर हुआ घमंड से भरपूर बोला अकड़ कर, देखा मेरा बल तुममें-मुझमें हैं कितना अंतर। माटी बोली सच कहा तुमनें पत्थर हैं बड़ा मुझमें और तुममें अंतर, मैं माटी तुम हो पत्थर, मैं देती जीवन जड़-चेतन कों, तुमसे मिलती केवल ठोकर, मैं खेतों में फसल ऊगाती, बागों में फू़ल महकाती, हरी-भरी धरती करती। पेड़-पौधे, फल-फूल, धरती का हर प्राणी, तुमसे होता आहत, रह जाते सब मन मारकर तुम देते केवल ठोकर, तुममें-मुझमें है अंतर मैं देती जीवन, तुम देते केवल ठोकर। परिचय :- शिवदत्त डोंगरे (भूतपूर्व सैनिक) पिता : देवदत डोंगरे जन्म : २० फरवरी निवासी : पुनासा जिला खंडवा (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : प्रमाणित किया जाता है कि रचना पूर्णतः मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर अपन...
हे राम!
कविता

हे राम!

मनोरमा पंत महू जिला इंदौर म.प्र. ******************** हे राम! मर्यादा सिखाने क्यों अवतार लिया इस धरा पर? क्यों महामानव बने तुम, क्यों हर समय त्याग मूर्ति बने रहे ? क्यों विमाता की अनुचित माँग का नहीं किया प्रतिकार इक्ष्वाकु वंश की मर्यादा का, निरन्तर करते रहे निर्वाह अहिल्या मारिच, गरूड़ सबका उद्धार करते रहे, असुरो को मार मुनियों को जीवन दान देते रहे केवल लोक निंदा के कारण किया अपनी प्राण प्रिया का त्याग एक अँगुली उठने पर, सीता ने किया अग्नि दाह यह सब करते सहते तुम बन गये स्वयं पत्थर, जिसमें था एक रक्तरंजित मन तुम तो साधारण जन की तरह रो भी नहीं सकते थे, खुद की कोई इच्छा भी पूरी नहीं कर सकते थे हे राम! तभी तो बन सके तुम मर्यादा पुरूषोत्तम। परिचय :-  श्रीमती मनोरमा पंत सेवानिवृत : शिक्षिका, केन्द्रीय विद्यालय भोपाल निवासी : महू जिला इंदौर सदस्या : लेखिका संघ भोपाल जागरण, कर्मवी...
दोस्ती रिश्ता और दोस्त फरिश्ता
कविता

दोस्ती रिश्ता और दोस्त फरिश्ता

विशाल कुमार महतो राजापुर (गोपालगंज) ******************** मुशीबत की क्या औकात रहे, दोस्त खड़ा जब अपने साथ रहे, मुशीबत की क्या औकात रहे, दोस्त खड़ा जब अपने साथ रहे, बड़े नादान वो लोग जिन्हें, जिन्हें दोस्त में दुनिया दिखता नहीं, दोस्ती से बड़ी कोई रिश्ता नहीं औऱ दोस्त से बड़ा कोई फरिश्ता नहीं, जब दोस्त की दोस्ती, अपनी रंग दिखलाती हैं, हो जाये दोस्ती बेमिसाल, देख दुनिया दंग रह जाती हैं, एक सच्चे दोस्त की छाया, अपनी दोस्ती पे पड़ जाती हैं, तब ना जाने क्यों उन रिश्तों में, आत्मविश्वास बढ़ जाती है, दोस्ती हैं कलम-स्याही की, जो बिन स्याही कुछ लिखता नही दोस्ती से बड़ी कोई रिश्ता नहीं औऱ दोस्त से बड़ा कोई फरिश्ता नहीं, दोस्ती थी राम-सुग्रीव की, दोस्ती थी कृष्ण सुदामा की, युगों युगों तक बनी रही, क्या कहूं अब उस दोस्ताना की, करो दोस्ती, निभाओ दोस्ती, कभी बात न सुनो जमाना की, संग में सदा ही दोस्त रहे, कुछ खा...
ऊंची कुर्सी… नीचे काम
कविता

ऊंची कुर्सी… नीचे काम

डॉ. कामता नाथ सिंह बेवल, रायबरेली ******************** बदल गया युग, बदल गये सब जीवन के आयाम। योगेश्वर! हम कब तक ढोयें कर्मयोग निष्काम।। युद्ध अधर्म-विरुद्ध‌‌‌ गये जीते, क्या धर्म-भरोसे, अश्वत्थामा,कर्ण गये मारे क्या पुण्य-करों से; कटे अंगूठे एकलव्य के कबतक करें प्रणाम?? अगर जुए में धर्मराज हारेंगे द्रुपद-सुता को, राम परीक्षा लेकर, वन भेजेंगे जनक-सुता को; तो समाज झेलेगा इसका निश्चित दुष्परिणाम।। यहां धर्म की नहीं, सिर्फ स्वारथ की सत्ता है, महाधूर्त पाखण्डी की ही अधिक महत्ता है; जितनी ऊंची कुर्सी जिसकी, उतने नीचे काम।। परिचय :- डॉ. कामता नाथ सिंह पिता : स्व. दुर्गा बख़्श सिंह निवासी : बेवल, रायबरेली घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करव...
सूर्यकांत निराला चालीसा
दोहा

सूर्यकांत निराला चालीसा

डाॅ. दशरथ मसानिया आगर  मालवा म.प्र. ******************* शारद सुत को नमन करुं, कीना जग परकाश। सूर अनामी गीतिका, परिमल तुलसीदास। अणिमा बेला अर्चना, चमेली अरु सरोज। गीत कुंज आराधना, सूरकांत की खोज।। हिन्दी कविता छंद निराला। सूर्यकांत भाषा मतवाला।। बंग भूमि महिषादल भाई। मेंदनपुर मंडल कहलाई।। पंडित राम सहाय तिवारी। राज सिपाही अल्प पगारी। इक्किस फरवरी छन्नु आई। पंच बसंती दिवस सुहाई।। बालक सुंदर जन्मा भाई। सकल नगर में बजी बधाई।। जनम कुंडली सुर्ज कुमारा। पीछे सूर्यकांत उच्चारा।। बालपने में खेल सिखाया। कुश्ती लड़के नाम कमाया।। हाइ इस्कूल करी पढ़ाई। संस्कृत बंगला घर सिखलाई ।। धीरे-धीरे विपदा आई। संकट घर में रहा समाई।। तीन बरस में माता छोड़ा। बीस साल में पिता विछोहा।। पंद्रह बरस में ब्याह रचाया। वाम मनोहर साथ निभाया।। पत्नी प्रेरित हिंदी सीखी। सुंदर रचना रेखा खींची।। शोषित पीड़ित कृषक लड़ाई। छोड़ न...
“मैथिली” पथ प्रदर्शक
कविता

“मैथिली” पथ प्रदर्शक

विजय गुप्ता दुर्ग (छत्तीसगढ़) ******************** दशा दिशा समाज सुधार जगत की बहुधा टूटी बिखरी है हर बार भूतल को ही स्वर्ग सदृश्य बनाने 'मैथिली' स्वप्न भूल चुके हैं यार मत भूलो इस देश समाज का तब तलक ना होगा पूर्ण उद्धार जलन स्वार्थ विवादों का पूर्ण अंत जड़ सहित मिटाना अबकी बार। दायित्वों का कैसा उपभोग किया अधिकारों का मनमाना उपयोग किया सामाजिक पद और रिश्तों को कटुता कलंक के पन्नों का रोग दिया पदों की गरिमा का हासिल क्या था जो पाया वो भी डूबा मझधार जलन स्वार्थ विवादों का पूर्ण अंत जड़ सहित मिटाना अबकी बार। सप्तम स्वर में स्व महिमा गुणगान लेकिन नेतृत्व क्षमता का अधकचरा ज्ञान लकीर घटाने की ओछी फितरत ने दिखलाई समाज को झूठी शान खोए संस्कारों को अब गली-गली पुनः रोपण कर खूब बढ़ाएं पैदावार जलन स्वार्थ विवादों का पूर्ण अंत जड़ सहित मिटाना अबकी बार। रौशन चिराग सम प्रतिभाशाली बच्चा समाज आधार औ...
बहिन भाई का संबंध
कविता

बहिन भाई का संबंध

संजय जैन मुंबई ******************** छोटी बड़ी बहिनों का, हमे मिलता रहे प्यार। क्योकि मेरी बहिना ही, है मेरी मातपिता यार। जो मांगा वो लेकर दिया, अपने आपको सीमित किया। पर मांग मेरी पूरी किया, और मेरे को खुश करती रही। मेरी गलतियों को छुपाती रही, और खुद डाट खाती रही। पर मुझे हमेशा बचती रही, ऐसी होती है बहिना। उन सब का उपकार में, कभी चुका सकता नहीं। अपनी बहिनों को मैं, कभी भूला सकता नहीं। रहेंगी यादे सदा उनकी, मेरे दिल के अंदर। जो कुछ भी हूँ आज में, बना बदौलत उनकी ही। ये कर्ज हमारे ऊपर उनका जिसको उतार सकता नही। मैं अपनी बहिन को जिंदा, रहते भूल सकता नही। रक्षा बंधन पर बहिना से, मिलना तो एक बहाना है। वो तो मेरी हर धड़कन में, बसती क्योंकि बहिन हमारी है। इसलिए टूट सकता नही, भाई बहिन का ये बंधन। इसलिये भूल सकता नही, रक्षा बंधन रक्षा बंधन।। उपरोक्त मेरी कविता सभी भाइयों की ओर से बहिनों के लिए समर्पित...
राखी का त्यौहार
कविता

राखी का त्यौहार

माधुरी व्यास "नवपमा" इंदौर (म.प्र.) ******************** घिर आये बदरा है, झूम उठा ये मनवा हैं, रिमझिम बरसी फुहार है, आया राखी का त्यौहार है। बीरा ने खुशियों की बारिश की है, भावज की पायलिया छनक उठी है, उमंगों से भरा आया घर और द्वार है। आया राखी का त्यौहार है। भाई-बहनों के न्यारे रिश्ते है, माता के आँचल में आज सिमटे है, प्रेम बंधन में बंधे सब आज है। आया राखी का त्यौहार है। बहना ने भैया से अरज ये की है, प्रेम से अखियाँ की डिबिया भरी है, खूब लुटाया, बाबा ने लाड़ है। आया राखी का त्यौहार है। छोटी सी रेशम की ये डोरी है, इसमे ही रिश्तों कि आस बंधी है, अनोखा ये बंधन, न्यारा ये प्यार है। आया राखी का त्यौहार है। कोरोना ने कैसी ये पीड़ा दी है, मन में यादों की झड़ियाँ लगी हैं, यादों की लड़ियों में बीता दिन आज है। आया राखी का त्यौहार है। घिर आये बदरा है, झूम उठा ये मनवा है, रिमझिम बरसी फुहार है, आय...
मैं हूँ सुदामा तो मैं ही कृष्ण हूँ
कविता

मैं हूँ सुदामा तो मैं ही कृष्ण हूँ

अभिषेक शुक्ला सीतापुर (उत्तर प्रदेश) ******************** मैं हूँ सुदामा तो मैं ही कृष्ण हूँ मेरा मित्र सखा तो मैं ही स्वयं हूँ, मैं हूँ सुदामा तो मैं ही कृष्ण हूँ। मैं ही सुख-दुख का संयोग हूँ, मैं हूँ मिलन तो मैं ही वियोग हूँ। मैं माँ की ममता-सा शान्त हूँ, मैं ही द्रोपदी का अटूट विश्वास हूँ। मैं प्रलय का अन्तिम अहंकार हूँ, मैं ही भूत, भविष्य और वर्तमान हूँ। मैं नित्य ही प्रभु का वन्दन करता हूँ, परिश्रम से स्वेद को चंदन करता हूँ। विपरीत परिस्थितियों में हिम्मत रखता हूँ, जुनून से अपने उनका सामना करता हूँ। जब कभी कुण्ठा अत्यधिक व्याप्त होती है, अन्तर्मन में सुदामा से मुलाकात होती है। स्वयं ही स्वयं से स्वयं का आकलन करता हूँ, स्वयं सुदामा बन कृष्ण का अभिनंदन करता हूँ। अपनी परिस्थितियों का मैं ही कर्णधार हूँ, मैं हूँ पुष्प तो मैं ही तीक्ष्ण तलवार हूँ। मेरा मित्र सखा तो मै...
प्रेमचंद चालीसा
दोहा

प्रेमचंद चालीसा

डाॅ. दशरथ मसानिया आगर  मालवा म.प्र. ******************* उपन्यास व गद्य कथा, हिन्दी का उत्थान। प्रेमचंद सम्राट हैं,कहत है कवि मसान।। प्रेम रंग सेवा सदन, प्रेमाश्रम वरदान। निर्मल काया कर्म प्रति, मंगल गबन गुदान।। प्रेमचंद लेखक अभिनंदन। हिन्दी विद्जन करते वंदन।।१ डाक मुंशी अजायब नामा। जिनकी थी आनंदी वामा।।२ मास जुलाई इकतिस आई। सन अट्ठारह अस्सी भाई।।३ उत्तर लमही सुंदर ग्रामा । प्रेमचंद जन्मे सुखधामा।।४ धनपतराया नाम धराये। पीछे नवाबराय कहाये।।५ सन अंठाणु मैट्रिक पासा। बनके शिक्षक बालक आशा।।६ इंटर की जब करी पढ़ाई। दर्शन अरु भाषा निपुणाई।।७ सात बरस में माता छोड़ा। चौदह पिता गये मुख मोडा।।८ दर दर की बहु ठोकर खाईं। बाला विपदा खूब सताईं।।९ बाल ब्याह से धोखा खाया। पीछे विधवा को अपनाया।।१० शिवरानी को वाम बनाये।। श्रीपत अमरत कमला पाये।।११ सन उन्निस शुभ साल कहाया। सोजे वतन देश में छाया।।१२...
राखी
कविता

राखी

राज कुमार साव पूर्व बर्धमान (पश्चिम बंगाल) ******************** राखी का त्यौहार है आया भाई-बहन के चेहरों पर खुशियां है लाया पीतल की थाली में राखी, चंदन, दीपक, कुमकुम,हल्दी, चावल के दाने और मिठाईयां लेकर बहन ने भाई के माथे पर तिलक लगाकर कलाई में राखी है बंधवाया। बहन ने अपने भाई से रक्षा करने का वचन है दिलवाया। परिचय :- राज कुमार साव निवासी : पूर्व बर्धमान पश्चिम बंगाल घोषणा पत्र : प्रमाणित किया जाता है कि रचना पूर्णतः मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.com पर अणु डाक (मेल) कीजिये, अणु डाक करने के बाद हमे हमारे नंबर ९८२७३ ६०३६० पर ...
बरसि के मास
कविता

बरसि के मास

तेज कुमार सिंह परिहार सरिया जिला सतना म.प्र ******************** बरसि के मास सामन सामन के पूरनमासी भाई बहिन के प्यार कै आय या तिउहार राखी भाई के मान आय बहिन के अरमान आय इंद्र के जीतय के इंद्रानी तप त्याग आय भारत के नही दुनिया के त्योहार आय पामन बंधन राखी सुर सत्ता में सोधन राखी अपने मन म राखी रच्छा के प्रन राखी पै या साल राखी कोरोना म कइसन राखी घर म है कैदि राखी राखी म न आई राखी राखी के आँख पानी कइसन के कहइ जुमानी कलाई सून बिनै राखी बस रखी म नेक राखी परू साल जो भलाई राखी मिली भेटि कै मनाऊँब राखी परिचय :- तेज कुमार सिंह परिहार पिता : स्व. श्री चंद्रपाल सिंह निवासी : सरिया जिला सतना म.प्र. शिक्षा : एम ए हिंदी जन्म तिथि : ०२ जनवरी १९६९ जन्मस्थान : पटकापुर जिला उन्नाव उ.प्र. घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।. ...
स्वतंत्रता
कविता

स्वतंत्रता

डाँ. बबिता सिंह हाजीपुर वैशाली (बिहार) ******************** स्वतंत्रता प्रभात की खिलते हैं खलिहानों में वेदों से ले पुराणों में ऋषियों के आह्वान में प्रिय स्वतंत्र देश है गंगा पखारती जहाँ धरा ये विश्वेश है। क्षितिज गगन हरित है वन, सिद्धि औ यश का संचरण पवन-पवन कहे सदा स्वतंत्र मन प्यारा वतन इतिहास है यह कह रहा स्वतंत्रता जय मान की धरा ये विश्वेश है। तीर्थों का तीर्थ देश है कोटि आदर्श भेस है स्वतंत्रता के कंठ से कर रहे जय नाद हैं समता के संवाद का ना कोई व्यवधान है धरा ये विश्वेश है। परिचय :- डाँ. बबिता सिंह निवासी : हाजीपुर वैशाली (बिहार) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के ...