राधा की लालसा
शरद सिंह "शरद"
लखनऊ
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जीवन में तुम आओ न आओ,
पर इस मन में समाये रहना।
उठें घटाएं काली काली,
झूम उठे हर डाली डाली,
हर तरु की हर डाली पर,
झूमें कोयलिया हो मतबाली,
मन प्रांगण में छाओ न छाओ,
इन अंखियन में कजरा बन रहना।।
पपिहा की ध्वनि लागे सुहानी,
पुलके तन मन सुधि बिसरानी,
सखियन के संग बैठ बैठ के,
उन्हें सुनाऊं कुछ कथा पुरानी,
स्वाति बूंद बन बरसो न बरसो,
पपिहा की प्यास बने तुम रहना।।
जमें महफिलें नित ही दर पर,
बजे शहनाई तन की वीणा पर,
झूम झूम के नाचे राधा,
सुन के बोल तेरी वंशी पर,
महफ़िल में तुम आओ न आओ,
मन वीणा में समाये रहना।।
अक्षर अक्षर जोडूं पल पल,
दिल करता गाऊं मैं हर पल,
प्रीत डोर बना बना के,
कविता रूप संबारूं हर पल,
निकलें शब्द भले न मुख से,
तन वीणा में स्वर भरते रहना।।
छाई बदरिया आसमान में,
टप टप बरसे घर आंगन में,
कब बरसोगे बन के बदरा,
हर पल आस रहे यह मन में...