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पद्य

तृषित धरा मुरझाई
गीत

तृषित धरा मुरझाई

मीना भट्ट "सिद्धार्थ" जबलपुर (मध्य प्रदेश) ******************** तृषित धरा मुरझाई, चीख़-पुकार मची है। वृक्ष हरे सभी कटे, छाया नहीं बची है।। सोंधी मिट्टी भूले हैं, बेचारे नौनिहाल। हालत उनकी खस्ता, पिचक रहे लाल गाल।। महँगाई ख़ूब बढ़ी, बौरा रही शची है। रहे मौन सज्जनता, लगते दाँव पर दाँव। दुर्जन कौवा छत पे, फैलाता नित्य पाँव।। भटक रहे अर्थहीन, क़िस्मत ख़ूब रची है। दंगा हैं फ़साद भी, सस्ता ख़ून का रंग। सूनी है अँगनाई, फीके सारे प्रसंग।। तनावों में जीवनी, नटी जैसी नची है। परिचय :- मीना भट्ट "सिद्धार्थ" निवासी : जबलपुर (मध्य प्रदेश) पति : पुरुषोत्तम भट्ट माता : स्व. सुमित्रा पाठक पिता : स्व. हरि मोहन पाठक पुत्र : सौरभ भट्ट पुत्र वधू : डॉ. प्रीति भट्ट पौत्री : निहिरा, नैनिका सम्प्रति : सेवानिवृत्त जिला न्यायाधीश (मध्य प्रदेश), लोकायुक्त स...
सोचो स्वयं क्या हो
कविता

सोचो स्वयं क्या हो

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** मनुष्य में मनुष्य नहीं दिख पाता पर तुरंत ही जाति दिख जाती है, कुछ लोगों को उनके संस्कार शायद यहीं सिखाती है, जाति के नाम पर कुछ लोग बन जाते हैं हिंसक सरफिरे, स्व उच्चता की कितनों भी दुहाई दे रहते हैं गिरे के गिरे, योग्यता को आंकने का पैमाना लिए रहते हैं कुढ़ता से घिरे, कोयला ही मान बैठते हैं जो हर कर्म से रहते हैं हीरे, हर पदचाप की गूंज लिए ठोकर पर ठोकर खाये पत्थर को लगा लेते हैं सर माथे पर, सबसे प्रिय मित्र लगने लगता है अस्पृश्य जब उसे लाना पड़ जाये घर, शायद इसीलिए लोग बने रह जाते हैं कूपमंडूक, जो चाहते हैं इंसानियत से फैलते प्रकाश छोड़ अपनी जाति धर्म वाला धूप, मूर्खों कब समझोगे कि चंद्रमा, पृथ्वी और सूर्य का कोई धर्म या जाति नहीं होता, बहकाकर पेट भरने वालों द्वारा समानता के सि...
आया बसंत
कविता

आया बसंत

मालती खलतकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** धरा के द्वार बजाता आया बसंत कोयल कुकी, कुन्ज-कुन्ज में बौराए हैं आमृवक्ष रविकिरण की कुनकुनी धूप में। बसन्त बयार बह रही पसर रही, गंध। हरित पर्णों की छाया में तितली गाती, मंडराती भौंरे गुंजन करतें पुष्पों पर पर्ण उन्हें झुलाते हैं वृक्ष वल्लरी मदमाती पवन संग पुष्प वर्षा कर बसंत का स्वागत करती। स्वागत में बसंत के पथ पर पड़े पत्ते पतझड़ के पवन झोंकों संग पथ संवारते। तड़ाग की स्थिर जल राशि में रवि प्रतिबिम्ब अपना स्वर्णिम प्रकाश फैलाकर धरा को स्वर्णिम आभास देता। झरना कलकल, नंदियों का कलकल स्वर, उपवन को आन्दोलित करता उपवन, उपवन बाग बग़ीचे झूम रहें हैं फल, फूलों से आथा उनका बसंत प्यारा आज उनके आंगन में।। परिचय :- इंदौर निवासी मालती खलतकर आयु ६८ वर्ष है आपने हिंदी समाजशास्श्र में एम ए एल एलबी ...
बसन्ती महक उठी
कविता

बसन्ती महक उठी

बृजेश आनन्द राय जौनपुर (उत्तर प्रदेश) ******************** बसन्ती महक उठी ! चंचल-प्रकृति-बीच- कोयल बहक उठी ! गुलमोहर की डालों-पे गिलहरी-लहराई ! अढ़उल की शाखों पे- गौरैया-शरमाई ! सेमल-पलास बीच दिशाएँ लहक उठी ! पीपल पे हरी-हरी बदली छिटक उठी...! पाकड़ पे 'उजास' फूटा, बरगद पे ठिठका ! मौसम का ठौर-ठौर वृक्षों पे अटका ! महुआ के गुंचो में रसना समा रही ! अमरइया की मंजरी- किसको न भा रही ! मोरों को लय-ताल तीतर समझा रहा.. कपोत कुछ आगे फिर- पीछे-को जा रहा.. ! नीम के कोतड़ में तोते आनन्द-भरें... कठफोड़वा के श्रम पे ना जरा भी गौर करें..! जामुन के फूलों पे- भवरी-लहराई ! अँवरा को किसने - छींट-सारी पहनाई! शिरीष की शाखों-पे कर्णफूल लटक रहे ! अमलताश अब भी- पीताभ को तरस रहे! अर्जुन ने देखो, नव-किसलय है पाया! गूलर का फूल कहाँ सबको नजर आया! अन्दर ही अन्दर 'प्रक...
ग़म है तो पी लो
कविता

ग़म है तो पी लो

डॉ. रमेशचंद्र मालवीय इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** खुश़ रहो मित्रों जिस हाल में हो रहते चाहे जिस गली, चाल में हो। हंस हंस कर जी लो ग़म है तो पी लो यही जिंद़गानी है यही सबकी कहानी है खोए रहते किस ख़याल में हो खुश़ रहो मित्रों जिस हाल में हो। कोई मिलता है तो कोई बिछड़ जाता है फूल खिलता है फिर उज़ड़ जाता है नहीं किसी का यहां ठिकाना है आज इसका, कल उसका जाना है उलझे रहते किस सवाल में हो खुश़ रहो मित्रों जिस हाल में हो। भूला बिसरा जब कोई मिल जाएं गले मिलें, प्यार अपना जताएं सभी को प्यार की चाहत है यह मिल जाए बड़ी राहत है छोड़ो पड़े किस जंजाल में हो खुश़ रहो मित्रों जिस हाल में हो। इस ज़ग में कुछ लोग अच्छे हैं कुछ झूठे हैं, कुछ सच्चे हैं सभी से रखें प्यार का रिश्ता सब इंसान है नहीं कोई फ़रिश्ता मस्ती में रहो चाहे फ़टेहाल में हो खुश़ रहो मित्रों जिस हाल में...
अंतिम ईच्छा
कविता

अंतिम ईच्छा

श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी लखनऊ (उत्तर प्रदेश) ******************** अंतिम ईच्छा एक जीव एक जीवन की सुनो अगर कभी जो सुनना चाहो मेरे दबे छुपे शब्दों की आवाज, गहराई में डूबी सी ध्वनि का आभास! मैंने कभी कुछ नहीं चाहा तुमसे, ना कभी माँगा तुम सलामत रहना इस सृष्टि के होने तक मेरे दिल मे मेरी आत्मा मे मेरी अठखेलियों में मेरी पवित्रता भरी मुस्कराहट में मेरी आँखों की नमी में मेरी उठती गिरती सांसो में जिनमे हर पल तुम्हारा नाम लिखा होगा मेरी पीड़ा मेरी सिसकियों में जो मैं नहीं समझ सका, किसने और क्यों दिए ?? ना जाने कितने घाव छुपे हैं इनमे! मेरी अन्तरात्मा में एक द्वंद चल रहा, नहीं जानता कब से, क्यूं प्रताडित होता रहा जीवन भर?? क्यों मेरा अस्तित्व प्रश्न चिन्ह सा बना रहा सदैव?? मेरे होने मेरे ना होने पर , सब कुछ परमात्मा में विलीन हो जायेगा स...
लाक्षागृह सी आग
गीत

लाक्षागृह सी आग

मीना भट्ट "सिद्धार्थ" जबलपुर (मध्य प्रदेश) ******************** अपना ही घर जला रहे हैं, घर के यहाँ चिराग़। फैल रही है सारे जग में, लाक्षागृह सी आग।। शुभचिंतक बन गये शिकारी, रोज़ फेंकते जाल। ख़बर रखें चप्पे-चप्पे की, कहाँ छिपा है माल।। बड़ी कुशलता से अधिवासित, हैं बाहों में नाग। ओढ़ मुखौटे बैठे ज़ालिम, अंतस घृणा कटार। अपनों को भी नहीं छोड़ते, करते नित्य प्रहार।। बेलगाम घूमें सड़कों पर, त्रास दें बददिमाग़। सिसक रही बेचारी रमिया, दिए घाव हैं लाख। लगी होड़ है परिवर्तन की, तड़पे रोती शाख।। हरे वृक्ष सब काटें लोभी, उजड़ रहे वन बाग। परिचय :- मीना भट्ट "सिद्धार्थ" निवासी : जबलपुर (मध्य प्रदेश) पति : पुरुषोत्तम भट्ट माता : स्व. सुमित्रा पाठक पिता : स्व. हरि मोहन पाठक पुत्र : सौरभ भट्ट पुत्र वधू : डॉ. प्रीति भट्ट पौत्री : निहिरा, नैनिका सम...
बासंती गीत
गीत

बासंती गीत

भीमराव झरबड़े 'जीवन' बैतूल (मध्य प्रदेश) ******************** थिरक रहे अधरों पर आकर, फिर बासंती गीत। विहँस-विहँस मकरंदित श्वासें, गाएँ रसिया फाग। दृग-चकोर भी परख रहे हैं, विधुवदनी तन राग।। स्वरलहरी के हाथ लगी है, स्वर्ण पदक की जीत।। खिले-खिले महुए के जैसा, तन हो गया मलंग। टपक रहा है अंग-अंग से, जो यौवन का रंग।। प्यास पपीहे-सी भड़काये, तन में कामी शीत।। भाव हुए टेसू-से खिलकर, जलते हुए अलाव। प्रेमिल शब्द बने जख्मों का, करने लगे भराव।। मन का सारस परिरंभन के, पाले स्वप्न पुनीत।। मदिर गंध से आम्र मंजरी, भरती उर उत्साह। दिखा रही है हीर जिधर है, चल राँझा उस राह।। शब्द-शब्द से प्रेम व्यंजना, 'जीवन' कहे विनीत।। परिचय :- भीमराव झरबड़े 'जीवन' निवासी : बैतूल मध्य प्रदेश घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी...
मुंह बंद करा गया
कविता

मुंह बंद करा गया

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** वो चिल्ला-चिल्ला बताने लगा, लिखे हैं बहुत किताबें सुनाने लगा, अपने ही मुख खुद का करने लगा गुणगान, चमत्कारियों की करतूतों का हर जगह करने लगा बखान, वो कह रहा था कि उनके किताबों में भरा हुआ है विज्ञान ही विज्ञान, जिसकी व्याख्या नहीं कर पाता समय में पहले कोई स्वयंभू विद्वान, आज के युग में भी धड़ल्ले से हर जगह अंधविश्वास फैला रहा, सृष्टि की उत्पत्ति का अजीब फार्मूला कथे कहानियों में बता रहा, दिमाग से पैदल चलने वाला उनकी हां में हां मिला रहा, अपनी स्थिति से ऊपर उठ नहीं सकते सारे जग वालों को बता रहा, इन लोगों के मिल रहा देखने हर हमेशा दो-दो रूप, अंदर बाहर हर तरफ से है कुरूप, सच्चे सीधे नास्तिक से एक दिन टकरा गया, जो सिर्फ जय भीम बोल कर उनका बड़ा सा मुंह बंद करा गया। ...
माँ नर्मदा
स्तुति

माँ नर्मदा

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** रेवा मैया नर्मदा, है तेरा यशगान। तू है शुभ, मंगलमयी, रखना सबकी आन।। शैलसुता, तू शिवसुता, तू है दयानिधान। सतत् प्रवाहित हो रही, तू तो है भगवान।। जीवनरेखा नर्मदा, करती है कल्याण। रोग,शोक, संताप को, मारे तीखे बाण।। दर्शन भर से मोक्ष है, तेरा बहुत प्रताप। तू कल्याणी, वेग को, कौन सकेगा माप।। नीर सदा बहता रहे, कंकर है शिवरूप। तू पावन, उर्जामयी, देती सुख की धूप।। अमिय लगे हर बूँद माँ, तू है बहुत महान। तभी युगों से हो रहा, माँ तेरा गुणगान।। प्यास बुझाती मातु तू, देती जीवनदान। तू आई है इस धरा, बनकर के वरदान।। अमरकंट से तू निकल, गति सागर की ओर। तेरी महिमा का नहीं, मिले ओर या छोर।। संस्कारों को पोसकर, करे धर्म का मान। तेरे कारण ही मिला, जग को नया विहान।। अंधकार को मारकर, तू देती उजियार । पावन तू...
सीता शोक
कविता

सीता शोक

किरण पोरवाल सांवेर रोड उज्जैन (मध्य प्रदेश) ******************** अशोक मै भी शोक था, राम के इंतज़ार मे, सीता के हे मिलान का बस राम इन्तजार था। रावण और राम युद्ध का बस सार ही तो राम है, परीक्षा पर परीक्षा ही, सीता चरित्र महान है। विरह की आग अग्नि से प्रबल ज्वलन्त आग है, सीता हमेशा शोक में अग्नि परीक्षा साथ है। सीता को ना समझ सका? कितने ही धोबी आज है, अब सीता वो सीता ना रही, कलयुग की सीता आज है। परिचय : किरण पोरवाल पति : विजय पोरवाल निवासी : सांवेर रोड उज्जैन (मध्य प्रदेश) शिक्षा : बी.कॉम इन कॉमर्स व्यवसाय : बिजनेस वूमेन विशिष्ट उपलब्धियां : १. अंतर्राष्ट्रीय साहित्य मित्र मंडल जबलपुर से सम्मानित २. अंतर्राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना उज्जैन से सम्मानित ३. राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर द्वारा "साहित्य शिरोमणि अंतर्राष्ट्रीय समान २०२४" से सम्मानित ४. १५००+ कवि...
जीवन और प्रेम में कभी-कभी
कविता

जीवन और प्रेम में कभी-कभी

बृजेश आनन्द राय जौनपुर (उत्तर प्रदेश) ******************** जीवन और प्रेम में कभी-कभी एक तरफ की 'एक छोटी सी नासमझी की त्रुटि' जब दोनों तरफ के एक महान सुन्दर सुखमय-प्रेममय- मोहक-जीवन, उसके सपने तथा - उसकी हॅंसी-खुशी की सम्भावना का ध्वंसन कर देती है... और जब- नहीं रह जाता है कोई उपाय- उन अतीत के सपनों में- उन सम्भावित जीवनों को टटोलने की खोजने और पाने की तथा वापस लौटने की... और जब सुखमय-हर्षमय- सौन्दर्यमय-समृद्धि से भरे 'जीवन-स्वार्थ की आशा - किसी तरह से पूर्णतः निर्मूल होकर समय के बवण्डर में कण-कण से धूल-धूसरित होकर बिखर जाती है तथा जब जन्मों-जन्म के 'एकल-सपने' अलग-अलग होकर अपने-अपने ढंग से आँखों की गहराइयों में सपाट होकर किसी एक तरफ से चुभने लगते हैं... तथा जब 'दोनों तरफ से अपलक दर्शन की भूख' वर्तमान में किसी भी तरफ से ऑखों में कसैलापन...
बेईमान व्यक्तित्व
कविता

बेईमान व्यक्तित्व

डॉ. राजीव डोगरा "विमल" कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) ******************** वक्त का व्यक्तित्व है वरना कौन जानता यहां किसी को? पद की गरिमा है वरना कौन करता यहां सम्मान किसी का? दिल की हसरत है वरना कौन करता यहां इश्क़ किसी को? दुआ होती कबूल यहां वरना कौन करता यहां बंदगी खुदा की? परिचय :-  डॉ. राजीव डोगरा "विमल" निवासी - कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) सम्प्रति - भाषा अध्यापक गवर्नमेंट हाई स्कूल, ठाकुरद्वारा घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहान...
महाकुंभ प्रयागराज
कविता

महाकुंभ प्रयागराज

संजय कुमार नेमा भोपाल (मध्य प्रदेश) ******************** महाकुम्भ का यह संगम, अजब गजब अध्यात्म आस्था असीमित निर्मल, पवित्र, मोक्षदायिनी, सरिता त्रिवेणी के संगम में महाकुंभ का जयघोष है। निर्मल जल, शिव जटाओं से अवतरित। मां गंगा के दर्शन से निर्मल हो गया मन। मां पतित पावनी के जल से कंचन हो गया तन। पुण्य सरिता प्रवाहिनी जीवन की आधार हो तुम। अंत समय के बाद भी तुम मोक्षदायनी तारणहार तुम। प्रयागराज की पुण्य धरा पर अविरल जल धारा। मां गंगा का प्रवाहित जल पुण्य सरिता। प्रकृति की अनमोल धरोहर को यह मानव सभ्यता, भेंट सदा समझे हम। महाकुंभ में करोड़ों श्रद्धालुओं का स्नान, तर्पण ही जीवन की आस्था हो तुम। हमको इस महत्व को सदैव समझना होगा। कहीं इसका दुरूपयोग ना होने पाए। तब ही जल संरक्षण से निर्मल जल में, सभ्यता मोक्षदायनी की आस्था में सदा डुबकी लगायेगी। आगे ह...
मातु शारदे
छंद

मातु शारदे

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, गोण्डा, (उत्तर प्रदेश) ******************** सरसी छंद (१६, ११) मातु शारदे मैया मेरी, देती मन को जान। शीश हाथ पर उसका मेरे, बढ़ता मेरा ज्ञान।। सच्चाई के पथ चलने की, देती हमको सीख। निज के श्रम से सब मिलता है, दे ना कोई भीख। मानवता का पथ ही आगे, करता नव निर्माण। सुख सुविधाएँ बढ़ती जाती, होता सबका त्राण। माना मैं मूरख अज्ञानी, इसमें क्या है दोष। कभी कहाँ मुझको आता है, इस पर कोई रोष। दूर करेगी हर दुविधा माँ, इसका मुझको बोध। जिसको भी चिंता करना है, वो ही कर लें शोध।। ज्ञान ज्योति माँ सदा जलाती, नित नित देती ज्ञान। समझ रही है मैया मेरी, मैं मूरख अंजान। कालिदास मूरख को भी तो, बना दिया विद्वान । घटा मान विद्योतमा का, सभी रहे हैं जान।। दंभी रावण की मति फेरी, उसका हुआ विनाश। और विभीषण को मैया पर, था पूरा विश्वास। कंस और श्री कृष्ण कथा ...
मन कहे.. लो बसंत आ गया
कविता

मन कहे.. लो बसंत आ गया

छत्र छाजेड़ “फक्कड़” आनंद विहार (दिल्ली) ******************** अंगुलियाँ हिलने लगी कलम चलने लगी उतरने लगे फिर प्रणय गीत मन कहे.. लो बसंत आ गया डाल डाल पर नई कौपलें बन जायेगी कल कलियाँ मंडरायेंगे मधुप पीने पराग छल जायेंगे फिर छलिया जब बहे प्रीत का दरिया उर आनंद समा गया मन कहे.. लो बसंत आ गया चले पवन ले पतंग प्रीत डोर से बंधी हुई संग चली छाया अपनी कदम कदम सधी हुई नेह भरे नयन अंजनी अंग अंग यौवन छा गया मन कहे.. लो बसंत आ गया बदन मदनी हुआ उन्मत्त मन आनंद छाने लगा ले नव गीत जीवन संगीत मनपाखी मस्त गाने लगा सातों सुर सजे सात रंग इंद्रधनुष नभ छा गया मन कहे.. लो बसंत आ गया तारे सनद मन मदमत तन पुलकित होने लगा बाँध भुजपाश मीत के साथ अभिसार विचार होने लगा मन पढ़ भाव मीत मन के दिवा स्वप्न में समा गया मन कहे.. लो बसंत आ गया रति उतरे धरा ...
ऋतुओं का राजा आया है
कविता

ऋतुओं का राजा आया है

अंजनी कुमार चतुर्वेदी "श्रीकांत" निवाड़ी (मध्य प्रदेश) ******************** है ऋतुराज बसंत आगमन, मादकता है छाई। ओढ़ पीत परिधान अवनि भी, लगती है सुखदाई। अब ऋतुराज बसंत आ गए, सारे उपवन फूले। रंग बिरंगे पुष्पों पर हैं, आज भ्रमर दल झूले। ऋतुओं का राजा आया है, मौसम है अलबेला। कोयल भ्रमर और तितली का, है फूलों पर मेला। पवन बसंती सबके मन को, मोहित कर मदमाती। बैठ-बैठ फूलों के ऊपर, तितली राग सुनाती। बौर आ गया है आमों पर, भौंरे भी मँडराते। कोयल कूक रही डालों पर, खिले फूल मुस्काते। नई कोंपलें हैं वृक्षों पर, इतराती इठलातीं। पवन झकोरों संग तितलियाँ, उड़ अंबर तक जातीं। पीली चूनर ओढ़ धरा अब, दुल्हन-सी शरमाती। पकी फसल लहरा-लहरा कर, राग बसंती गाती। आने लगे फूल टेसू में, जंगल लाल हुए हैं। लगता है साजन ने आकर, गोरे गाल छुए हैं। फसलों पर यौवन आया है, पवन बसंती ...
कुंभ पर्व
कविता

कुंभ पर्व

विवेक नीमा देवास (मध्य प्रदेश) ******************** सत्य सनातन धर्म का कुंभ अनोखा पर्व है नदियों के तट पर लगता भारत भूमि का गर्व है। गोदावरी शिप्रा का तट तीन नदियों का है संगम सुरसरि की है पावन धारा लगता कुंभ यहां विहंगम। अवंतिका और प्रयागराज नाशिक संग हरि का द्वार अमृत छलका जहाँ आदि में यहाँ जुटते है संत अपार। जूना, अग्नि और आवाह्न निरंजनी, आनंद, अटल महानिर्वाणी सात अखाड़े दशनामियों का कुंभ पटल। नया और बड़ा उदासीन निर्मल संतों का भी वास निर्मोही, निर्वाणी, दिगम्बर राम दल का होता प्रवास। महंताई और पट्टाभिषेक संत समष्टि दीक्षा संन्यास धूनी पूजा और यज्ञ हवन पेशवाई का उत्तम विन्यास। कुंभ परंपरा अद्भुत सारी शाही स्नान की बात निराली साधु, संतों, महंतों की होती तब है चाल मतवाली । रमता पंचों का नगर प्रवेश विजया हवन संस्कार ध्वजारोहण और ईशवंदन संतों ...
ऋतुराज वसंत
कविता

ऋतुराज वसंत

डॉ. किरन अवस्थी मिनियापोलिसम (अमेरिका) ******************** कामदेव ने अखियां खोली निद्रा को दी तुरंत विदाई कुछ कुछ मुकुलित कलियां देखी फूल हंसे, लतिका मुस्काईं। दसों दिशाएं जाग गई हिम की प्रहरी भाग रही कोमल कोमल कोमल काश झुरमुट से अब झांक रही। रवि की किरणों ने ली अंगड़ाई दूर हुई बर्फीली रजाई अरुण के रथ पर आ विराजीं सारे जग को दी जगताई। प्रकृति की अनुपम लीला रंगबिरंगे वसनों से सज्जित पुष्पों की हुई मुंह दिखाई हरी घास, हरियाली आई। तितली भौरे गुंजन करते मधुर तान, संगीत सुनाते बोले मोर,पपीहा बोले हिरनों संग हिरनी डोले। रंगीन दुशाला ऋतुरानी ओढ़े ऋतुराज के स्वागत में पट खोले। मुस्काती इठलाती पुरवइयाआई वासंती पवन बही सुखदाई।। जगताई के २ अर्थ हैं १. चंचलता २. जगत् का स्वामित्व परिचय :- डॉ. किरन अवस्थी सम्प्रति : सेवा निवृत्त लेक्चरर निवासी ...
विद्या की देवी सरस्वती
स्तुति

विद्या की देवी सरस्वती

ललित शर्मा खलिहामारी, डिब्रूगढ़ (असम) ******************** माघ मास में शुभ पंचमी का दिन यहहै,मंगल, पुण्य पावन पवित्र दिन श्री कृष्ण के कंठ से उत्पन्न देवी विद्या की, तू कहलाई सरस्वतीदेवी सरस्वती का आविर्भाव इस दिन कहलाता, बसंतीपंचमी का दिन ।।१।। अज्ञानता से ज्ञान का, दीपक जलाता कलम, कमल, पुस्तक,चरणों में चढाता ज्ञान, बल,बुद्धि की रखता भावना तनमनसे करता, सरस्वतीकी ध्यावना ज्ञानप्रकाश कीभरो रोशनी,यही भावना करता साधक, पूजन आराधना ।।२।। देवी सरस्वती का है तेज अत्यंत दिव्य ज्ञानमय अपरिमेय महिमा है अवर्णीय देवी सरस्वती की महिमा है अतुलनीय वाग्देवी, शारदा, बागेश्वरी, बाग्गदेवता सरस्वतीदेवी के है प्रचलितविशेष नाम देवी सरस्वतीका है सब करते गुणगान।।३।। श्रेष्ठता, दक्षता, असामान्य उपलब्धियां परिपूर्ण करो मां सरस्वती, ये विनती शारीरिक मानसिक आत्मिक शक्ति मेधावी विद्व...
चाहना
कविता

चाहना

शिवदत्त डोंगरे पुनासा जिला खंडवा (मध्य प्रदेश) ******************* चाहना एक अभिव्यक्ति है और चाहत एक अनुभूति. चाहने में भौतिकता है और चाहत में स्वतंत्र, अद्वैत होने के बोथ. चाहना एक फूल से हो सकता है और चाहत संपूर्ण उपवन की. चाहने में लालसा और पाने की कामना उद्बबोधित है चाहत सृष्टि के स्वरुप की स्तुति हैं. इसलिए जब मैंने कहा कि तुम मेरी चाहत हो तो केवल तुम नहीं तुम से जुड़ी, बंधी वो सारी नैसर्गिकता भी है. निश्छल, पावन अक्षत एवं साश्वत काव्य संस्कृति में सौंदर्य बोध परालौकिक है. मेरा मौन रहना जिस दिन लोग समझेंगे मै उन्हें महाकाव्य लगूंगा। परिचय :- शिवदत्त डोंगरे (भूतपूर्व सैनिक) पिता : देवदत डोंगरे जन्म : २० फरवरी निवासी : पुनासा जिला खंडवा (मध्य प्रदेश) सम्मान : राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर द्वारा "समाजसेवी अंतर्राष्ट्...
चलो कुंभ चले
कविता

चलो कुंभ चले

डॉ. प्रताप मोहन "भारतीय" ओमेक्स पार्क- वुड-बद्दी ******************** प्रयागराज आपके स्वागत के लिये सजा है। १४४ साल बाद कुंभ का अलग मजा है। ******* त्रिवेणी संगम में डुबकी लगाएं अपना जीवन सफल बनाऐ। ******* देश विदेश से लोग कुंभ आ रहे है। सनातन धर्म के प्रति अपनी आस्था जता रहे है। ******* यह अवसर हमारी जिंदगी में दोबारा कभी नहीं आयेगा। अगर नहीं जा पाये कुंभ तो मन में अफसोस रह जायेगा। ******** महा स्नान के अवसर पर करोड़ों लोग आ रहे है। आस्था की डुबकी लगाकर पापों से मुक्ति पा रहे है। ******* कुंभ में चारों तरफ़ आध्यात्मिक माहौल छाया है। हर संन्यासी अखाड़े ने अपना स्थान बनाया है। ******* कुंभ जरूर जाये परन्तु सावधानी अपनाये। भीड़ बहुत है दुर्घटना से खुद को बचाएं। ********* परिचय : डॉ. प्रताप मोहन "भारतीय" निवासी : चिनार-२ ओमेक्स पार्क- वुड-बद्दी घो...
सरस्वती वंदना
स्तुति

सरस्वती वंदना

सुनील कुमार "खुराना" नकुड़ सहारनपुर (उत्तर प्रदेश) ******************** हे मां शारदे हमको दे दो स्वर का वरदान स्वर का वरदान मिलकर मिल जाएगा सम्मान हे सुरों की देवी विनती है तुमसे हमारी इच्छा कर दो हमारी पूरी सुरों का देकर हमको ज्ञान हे शारदे मां विनती है तुमसे बारम्बार लगा दो मैया खेवा हमारा पार बढ़ा दो तुम जग में हमारा मान हे मां हंस वाहिनी मझधार में है हमारी नैया पार कर दो हमारा खवैया सुर देकर कर दो एहसान परिचय :-  सुनील कुमार "खुराना" निवासी : नकुड़ सहारनपुर (उत्तर प्रदेश) भारत घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि ...
आस्था का गीत
गीत

आस्था का गीत

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** सँग विवेक पूजन-वंदन हो, इसी समझ में रहना। आस्था रखो अवश्य बंधुवर, अंधराह मत गहना। ईश्वर को देखो श्रद्धा-भक्ति, नहीं रूढ़ियाँ मानो। विश्वासों में ताप असीमित, पर धोखा पहचानो।। ढोंगों-पाखंडों से बचना, समझ-बूझ में बहना। आस्था रखो अवश्य बंधुवर, अंधराह मत गहना। जीवन को रक्षित तुम करना, नित ही जान बचाना। नहीं प्राण संकट में डालो, यद्यपि धर्म निभाना।। सदराहों पर चलना हरदम, यही धर्म का कहना। आस्था रखो अवश्य बंधुवर, अंधराह मत गहना। मन को पावन रखकर जीना, यही आस्था कहती। तजो पाप, सच्चाई वर लो, दुनिया जगमग रहती।। ईश्वर माने करुणा-परहित, कर्मकांड सब ढहना। आस्था रखो अवश्य बंधुवर, अंधराह मत गहना।। परिचय :- प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे जन्म : २५-०९-१९६१ निवासी : मंडला, (मध्य प्रदेश) शिक्षा : एम.ए (इ...
उद्धारकर्ता आ रहे हैं
कविता

उद्धारकर्ता आ रहे हैं

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** आ रहे हैं आ रहे हैं उद्धारकर्ता आ रहे हैं, जिसने देखा नहीं संघर्ष उनके दिलों में छा रहे हैं, भावनाएं अच्छी भड़काता है वो, नवयुवा को भटकाता है वो, कई प्रकरणों में फंसाता है वो, खुद बच के निकल जाता है वो, अचानक हुआ था अवतरण, भौंकने वालों ने दिया शरण, मूछों को ताव देता है, दुश्मन को भाव देता है, बना मान्यवर से भी बड़ा मान्यवर, हवाई राहों से घूमता शहर शहर, आलीशान कोठी बनाता है, अपनों को ही गरियाता है, गृहस्थ जीवन जीने वाला कंवारा खुद को बताता है, सपनों में बसके किसी के आंसू बहुत दे जाता है, पहुंच उनका काफी अंदर है, गुरू पीर सामने बंदर है, देते धमकियों पे धमकियां, बनते अपने मुंह मिट्ठू मियां, सगे भाई को गाली दे दे कई नये भाई बना रहे हैं, आ रहे हैं आ रहे हैं उद्धारकर्ता आ रहे हैं, वंचित ...