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पद्य

जब कुछ लिख कहेंगी
कविता

जब कुछ लिख कहेंगी

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** कहां गया नारी सम्मान के लिए कुछ दिन पहले तुम्हारा किया गया संकल्प, या निकाल चुके हो अपने दिल से इस बात का विकल्प, वैसे भी इतिहास गवाह है कि तुमने अपने स्वार्थ के बारे में ही सोचा है, जब,जहां,जैसे पाये नारियों के हक़ अधिकार को जब तब नोचा है, आज फिर अपनी मनमानी दोहराओगे, धूमधाम से नारी को जलाओगे, दिन भर हुड़दंग करोगे रंग गुलाल उड़ाओगे, मुझे यकीन नहीं है तुम्हारी लिखी कहानी कथाओं पर, आधी आबादी को हासिये पर धकेल कुछ नहीं दिये हो प्रथाओं पर, हां जितना जलाना है जला लो आज जमाना तुम्हारा है, मुझे इंतजार उस दिन का रहेगा जब नारियां तुम्हें जलायेगी कुछ लिख और कहेंगी अब सारा जमाना हमारा है। परिचय :-  राजेन्द्र लाहिरी निवासी : पामगढ़ (छत्तीसगढ़) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ ...
दरमियां हम दोनों के दीवार
कविता

दरमियां हम दोनों के दीवार

डॉ. प्रताप मोहन "भारतीय" ओमेक्स पार्क- वुड-बद्दी ******************** दीवार बंटवारा करती है। दो लोगों को अलग-अलग करती है। ******* काम ऐसे करें कि आपस में दीवार न पड़ जाय। अच्छा भला रिश्ता खाक में न मिल जाय। ******* टूटे धागे को जोड़ने पर उसमें गठन पड़ती है। दो दिलों के बीच की दीवार बड़ी मुश्किल से हटती हैं। ******* प्यार में विश्वास जरूरी है। उसके बिना दिल की दास्तान अधूरी है। ******* दो दिलों को अलग होकर बंटना नहीं है। दिलों के दरमियां दीवार अच्छी नहीं है। ******* तोड़ दो उस हर दीवार को जो तुम्हारे रास्ते में आती है। और तुम्हारी हसीन जिंदगी को बर्बाद कर जाती है। ******* परिचय : डॉ. प्रताप मोहन "भारतीय" निवासी : चिनार-२ ओमेक्स पार्क- वुड-बद्दी घोषणा : मैं यह शपथ पूर्वक घोषणा करता हूँ कि उपरोक्त रचना पूर्णतः मौलिक है। आप भी अ...
ये असमंजस क्यों ….?
कविता

ये असमंजस क्यों ….?

छत्र छाजेड़ “फक्कड़” आनंद विहार (दिल्ली) ******************** ये भी चुप वो भी चुप ना विवाद ना संवाद समझें कैसे मन की बात रूठा कौन किसे मनायें समझाये कौन प्रिये फिर मौन ये फैला क्यों...? अनहद नाद मन उन्माद रूठे संवेदन मूक स्पन्दन सपन गढ़े धड़कन बढ़े हूक उठे क़दम रुके झुकी पलक प्रिये फिर सन्नाटा ये पसरा क्यों....? यौवन श्रृंग मन उमंग बिजुरी चमके तन तरंग बिना भंग मन मलंग कैसी जंग रंग में भंग मन मदमाये प्रिये मगर धूप ये चुप क्यों....? कैसी उलफ़त नहीं शरारत ना ही नफ़रत कैसी हिमाक़त ना ही शिकवा कहाँ शिकायत गुज़र गई रात बनी नहीं बात भोर सुहानी हाय प्रिये फिर फ़िज़ा ये ख़ामोश क्यों...? परिचय :- छत्र छाजेड़ “फक्कड़” निवासी : आनंद विहार, दिल्ली विशेष रूचि : व्यंग्य लेखन, हिन्दी व राजस्थानी में पद्य व गद्य दोनों विधा में लेखन,...
विनय
भजन

विनय

प्रो. डॉ. विनीता सिंह न्यू हैदराबाद लखनऊ (उत्तरप्रदेश) ******************** सत्ता तुम्हारी भगवन जग में समा रही है तेरी दया सुदृष्टि सृष्टि सजा रही है रवि चंद्र और तारे तूने सभी बनाए विस्तृत वसुंधरा पर सागर भी हैं बहाए जिनकी सतह हैं सुंदर मोतियों से सजाये (२) इन सब में ज्योति तेरी इक जग मगा रही है सुंदर सुगन्ध वाले फूलों में रंग तेरा पशु पक्षी चर अचर में कण कण में रूप तेरा हे ब्रह्म विश्व कर्ता वर्णन हो तेरा कैसे (२) हर कृति झलक तेरी तेरा करतब दिखा रही है भक्ति तुम्हारी भगवन क्यों कर हमें मिलेगी तेरी रची जो माया पल पल हमें ठगेगी तेरी चरण शरण हैं तुमसे यही विनय है (२) हो दूर यह अविद्या जग भ्रम बढ़ा रही है परिचय :- प्रो. डॉ. विनीता सिंह निवासी : न्यू हैदराबाद लखनऊ (उत्तरप्रदेश) व्यवसाय : नेत्र विशेषज्ञ सेवा निवृत, भूतपूर्व विभागाध्यक्ष नेत्र विभाग, के....
होली के रंग
कविता

होली के रंग

ललित शर्मा खलिहामारी, डिब्रूगढ़ (असम) ******************** अजूबे होते है ये होली के रंग लाल पीले नीले प्यारे-न्यारे, ये होते प्रेम बरसाने के सुनहरे रंग। रंग में होते अपने अपने मन पसंदीदा रंग नीले पीले गुलाबी मन को लुभाते रहते होली के सुनहरे प्यारे न्यारे रंग।। हरे-भरे उड़ाकर यत्र-तत्र रंग सुनहरे सजाते माहौल होली के रंग। मस्तमग्न सबको करते केशरिया, लाल, पीले, हरे, नीले रंग मौसमी गुलाबी बनकर होली के रंग।। रंग की बरसात की बौछार में प्यारे न्यारे दिखते ये रंग गुलाबी आसमान बादल में । सुनहरा सुहावना चढ़ाते मिश्रित होकर आनंदित करते ये होली के रंग ।। सुगंध में भरे होते होली के ये रंग सुनहरा रूपरंग में अलबेले बसन्त ऋतु पर खींचते ये रंग कवि के मन में शब्द के रंग राग भरते बेसुमार खुशियों में होली की मस्तीभरे ये रंग रंग में घुलने मिलने के फाल्गुन मौसम करते है जब ...
थोड़ी उससे प्रीत बढ़ा लूं
भजन

थोड़ी उससे प्रीत बढ़ा लूं

प्रेम नारायण मेहरोत्रा जानकीपुरम (लखनऊ) ******************** ईश्वर ने एकांत दिया है, कुछ उसकी महिमा को गा लूं। उसके सुमिरन में रम के मै, थोड़ी उससे प्रीत बढ़ा लूं। ईश्वर ने ......... ईश्वर है करुणा का सागर, भक्ति के मोती लुटा रहा है। उसकी भक्ति पाने के मित, मैं भी तो झोली फैला लूं। ईश्वर ने....... वो तेरे अंतर में रहकर, प्रतिपल तेरा ध्यान धर रहा। उसके प्रति कृतज्ञता ज्ञापन, मित मैं थोड़े अश्रु बहा लूं। ईश्वर ने ......... वो तो सदा पिता बनके ही, सबको निज संतान मानता। मैं भी बनके बालक उसका, चरणों में निज शीश नवा लूं। ईश्वर ने.......... परिचय :- प्रेम नारायण मेहरोत्रा निवास : जानकीपुरम (लखनऊ) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने प...
बुरा न मानो होली है
हास्य

बुरा न मानो होली है

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** जीजा ने साली पर मोहित होकर गालों पर गुलाल मला। साली के दिल में भी जीजा के लिए प्रेम का भाव पला।। दोनों चुपके-चुपके खा रहे आँखमिचोली की गोली है। बुरा न मानो होली है।। नेता ने जनता को आश्वासन की जमकर भंग पिलाई है। झक सफेद वस्त्रों पर लगी गहरी कालिख नज़र आई है।। नेता ने सदा ही तो अपनी कुर्सी पर बैठ फैलाई झोली है। बुरा न मानो होली है।। देशभक्ति, जनसेवा के नाम पर, चमक रही आज खाकी है। क्रिकेट की महिमा-गायन के आगे, बिलख रही हाकी है।। पीकर मदमाते मस्तानों की बदली हुई आज बोली है। बुरा न मानो होली है।। रँग खेलते में शर्मा जी ने अपनी पड़ोसन पर लाइन मारी। उधर मिसेज शर्मा भी अपने एक सहकर्मी को दिल हारी।। हो रही देखो जमकर आज मस्तानों में तो प्रेम ठिठोली है। बुरा न मानो होली है।। नई मॉडल अपने सारे वस...
निराकार ही साकार
कविता

निराकार ही साकार

डॉ. किरन अवस्थी मिनियापोलिसम (अमेरिका) ******************** निराकार है साकार वही ब्रह्मांड को जिस परमशक्ति ने मनमोहक इक रुप दिया प्रकृति रूप में प्रस्फुटित किया रचे जीव लाख चौरासी हर कण को एक स्वरूप दिया वसुधा हित मनुज रूप में स्वयं को स्वयंभू ने साकार किया उसी परमशक्ति ने प्रकृति को आकार दिया वह स्वयं आकार ले सकता है मूर्त रूप में आ सकता‌ है समस्त विश्व को साकार बनाया साकार हो स्वयं भी आया निराकार ‌साकार रूप लेसकता है निर्जीव को जीवन दे सकता है निराकार ही साकार वही दोनों में न भेद कोई चाहे वह अदृश्य हो जाए चाहे दृश्य रूप में आए निराकार का साकार है भेद रचता है वह रूप अनेक भाव है केवल एक यही 'कण-कण में तू ही भगवान समाया है'। परिचय :- डॉ. किरन अवस्थी सम्प्रति : सेवा निवृत्त लेक्चरर निवासी : सिलिकॉन सिटी इंदौर (मध्य प्रदेश) वर्तमान निवासी : मिनियाप...
मौन
कविता

मौन

मालती खलतकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ********************  मौन वाचाल, मौन चपल मौन मे बोलो मौन मे चलो शून्य हो चलो, मौन मे गा ओ मौन मे है मन का मन्थन मौन मे अविरल, मौन मे स्वच्छद मौन मे उठती मौन मे गिरती जैसे सरिता च्न्चल। मौन मे उढान भरो शक्ती से अपने मौन विचारो के पंख फैलाकर जैसे उडान भरने को उत्सुक पक्षी बार, बार पंख फैलाकर मौन मे उछलता अपने लक्ष्प की ओर। नौन आकाश मौन धरती सारी प्रकृति मौन फिर भी फिर भी देती है, देती रहेगी मानव को अवलम्बन। परिचय :- इंदौर निवासी मालती खलतकर आयु ६८ वर्ष है आपने हिंदी समाजशास्श्र में एम ए एल एलबी किया है आप हिंदी में कविता कहानी लेख गजल आदि लिखती हैं व आपकी रचनाएँ विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं मैं प्रकाशित होते हैं आप सन १९६८ से इंदौर के लेखक संघ रचना संघ से जुड़ी आप शासकीय सेवा से निमृत हैं पीछेले ३० वर्षों से धार के कवियों के साथ शिरक...
होली-हुडदंग
कविता

होली-हुडदंग

बृजेश आनन्द राय जौनपुर (उत्तर प्रदेश) ******************** रंग से भरी नादें होंगी, अबीरा रहेगा झोली में। अबकी तुम जो आए साजन, रंग डालूंँगी होली में।। बाला थी, अब नारि भई मैं, बीस-बसन्तन पार गयी मैं। वय से अपने हारी प्रियतम, यौवन का शृंगार भई मैं। इक दिन तूने रँग डाला था, जब थी बहुत ही भोली मैं। उसका बदला आज मैं लूंँगी, याद रखूँगी इस होली में। अबकी तुम जो आए साजन, रंग डालूंँगी होली में।। अनंग, अंग में तपन बढ़ाए, तुम्हें मिलन को जी ललचाए। अबकी 'फगुन' बही है ऐसी, 'हिय-जलना, अब सही न जाए'। वर्षों याद करीं हूँ तुमको, ग्रीष्म-शीत की हमजोली 'मैं'। सिहरन की बारात चली है, देखो, बसन्त की डोली में। अबकी तुम जो आए साजन, रंग डालूंँगी होली में।। होली की अब धूम उठेगी, रंगों की बौछार सजेगी। आना बरसाने में साजन, मुझ सी मोहक कौन मिलेगी? अबकी बार करुँगी प्रियतम, ...
होली है खुशियों का त्योहार
कविता

होली है खुशियों का त्योहार

किरण पोरवाल सांवेर रोड उज्जैन (मध्य प्रदेश) ******************** सुख समृद्धि का हैं त्यौहार, आनंद उल्लास का पर्व महान, देखो खेतों में गेहूं उम्बी आई, खेतों में हरियाली छाई, कृषक खेतीहर है खुशहाल, होली है खुशियों का त्योहार। पेड़ों पर नई कोपले आई, आमों पर देखो मोढ़ है छाए, पशु पक्षी देखो चहकाये, टेसू पर भी आए फूल। प्रकृति देखो है खुशहाल, राधा कृष्ण की होली आज, बच्चे बूढ़े सभी खेलते, मन में आनंद देखो अपार। कोई रंग कोई अबीर गुलाल, खेले देखो मिलकर आज, कोई नाचे कोई झाझ बजावे, कोई भला कोई बुरा बताए, सबके मुंह पर एक ही बात, बुरा ना मानो होली आज। परिचय : किरण पोरवाल पति : विजय पोरवाल निवासी : सांवेर रोड उज्जैन (मध्य प्रदेश) शिक्षा : बी.कॉम इन कॉमर्स व्यवसाय : बिजनेस वूमेन विशिष्ट उपलब्धियां : १. अंतर्राष्ट्रीय साहित्य मित्र मंडल जबलपुर से सम्मानित २. अंत...
होली फागुन का त्योहार
गीत, छंद

होली फागुन का त्योहार

राधेश्याम गोयल "श्याम" कोदरिया महू (म.प्र.) ******************** होली- छंद होली फागुन का त्योहार, फागुन आवे रंग जमावे चलत बसंती बयार........ होली फागुन का..... पतझरे पेड़ पल्लवित हो रहे, बागों में फूल प्रफुल्लित हो रहे। महुए मद में रहे गदराए, आई अमराई में बहार........ होली फागुन का...... सरसों पीली फूल रही है, गेहूं की बाली झूल रही है। लाली पलास की मन को मोहे, किया सृष्टि ने श्रंगार........ होली फागुन का....... नव यौवन मन में हरशावे, होली को आनंद मनावे। एक दूजे पर रंग डाल, करे खुशियों का इजहार........ होली फागुन का....... पेड़ों को कटने से बचाए, पर्यावरण को स्वच्छ बनाए। डाल बुराई सब होली में, जलाएं होली अबकी बार......... होली फागुन का त्योहार फागुन आवे रंग जमावे चलत बसंती बयार। होली फागुन का त्योहार। परिचय :- राधेश्याम गोयल "श्याम" निवासी - कोदरिया म...
होरी के सुरता
आंचलिक बोली, कविता

होरी के सुरता

प्रीतम कुमार साहू लिमतरा, धमतरी (छत्तीसगढ़) ******************** (छत्तीसगढ़ी कविता) आगे फागुन महीना संगी होरी के सुरता आवत हे गुदुम गुदुम ऩंगारा बाजय मन ह मोर गाँवत हे।। रंग गुलाल हाथ म धर के किसन खेलत हे होरी नाँचत गावँत अउ झुँमत हवय संग म राधा गोरी।। ललहु, हरियर अउ पिवरा स़ंग हाथ धरे पिचकारी मया पिरीत के रंग म रंगे जम्मों संगी संगवारी।। लइका, सियान, बुढ़वा जवान जम्मो डंडा नाँचत हे टोपी, चश्मा, मुखौटा पहिरे नंगत बाजा बजावत हे।। भाँग पिये मतवना खाय फागुन के गीत गाँवत हे करिया, बिलवा, ललहु दिखय, पहिचान नइ आवत हे।। परिचय :- प्रीतम कुमार साहू (शिक्षक) निवासी : ग्राम-लिमतरा, जिला-धमतरी (छत्तीसगढ़)। घोषणा पत्र : मेरे द्वारा यह प्रमाणित किया जाता है कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष...
जोगीरा सारा रा रा रा….
हास्य

जोगीरा सारा रा रा रा….

आशीष तिवारी "निर्मल" रीवा मध्यप्रदेश ******************** योगी जी को मिली सराहना गजब था उनका ढंग... महाकुंभ का मेला देख दुनिया थी दंग...। जोगीरा सारा रा रा रा.... फाग उत्सव में चढ़ रहा देखो चैत का रंग... होली के संग पढ़ लो मेरे राजनीतिक व्यंग...। जोगीरा सारा रा रा रा.... आप पार्टी ने दिल्ली में चली अनेकों चाल... बिजली पानी मुफ़्त बांटकर जीत न पाए खुजलीवाल...। जोगीरा सारा रा रा रा.... आप पार्टी हुई है दिल्ली में देखो अब सत्ता से दूर...। दिल्ली में कमल खिला सबने कोशिश की भरपूर...। जोगीरा सारा रा रा रा.... बैठे-बैठे जेल में सिसोदिया करते रोज विचार ...। जेल से बाहर आखिर किस दिन निकलूंगा यार ....। जोगीरा सारा रा रा रा.... भरी जवानी बीत गयी अब किसे लगायें रंग...। बहू मिल रही न बहुमत पप्पू भैया पीट रहे मृदंग...। जोगीरा सारा रा रा रा.... श्रीमती मेरी भी माय...
सरहद पर होली
दोहा

सरहद पर होली

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** सरहद पर होली हुई, रक्षा की हुंकार। बहे ख़ून पर देश की, करते हैं जयकार।। खेलें सारे देश के, लोग आज तो रंग। सरहद पर है शौर्य बस, घुसपैठी से जंग।। सरहद पर सैनिक डटे, लेकर शौर्य अबीर। रँग-गुलाल बलिदान का, खेलें सारे वीर।। वतनपरस्ती हँस रही, सम्मानित है तेज। सरहद पर हर वीर है, क़ुर्बानी लबरेज।। याद आ रहे दोस्त सब, यादों में है गाँव। होली पर सरहद डटे, बंकर की है छाँव।। भेजो मंगलकामना, हर सैनिक की ओर। दूरी है परिवार से, होली है बिन शोर।। बंदूकों की है गरज, शौर्य गा रहा फाग। बम्म-धमाके, टेंक ही, होली का अनुराग।। इक-दूजे के माथे पर, मल दी नेह-गुलाल। सरहद पर सैनिक सदा, करते शौर।यह कमाल।। परिचय :- प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे जन्म : २५-०९-१९६१ निवासी : मंडला, (मध्य प्रदेश) शिक्षा : एम.ए (इतिहास) (मेरिट ...
प्रेम रसिया
भजन

प्रेम रसिया

कमल किशोर नीमा उज्जैन (मध्य प्रदेश) ******************** प्रेम रसिया राधा मन बसिया बसों मन मोरे श्याम। जनम जनम का सानिध्य पाऊँ बिसरे न तेरो नाम। प्रेम रसिया…… प्रेम पुलकित छवि तुम्हारी लोचन नयनाभिराम। प्रेम ज्योति प्रज्वलित हो वे प्रलाप रहे निष्काम। प्रेम रसिया…. प्रेम बन्धन बंधे बिहारी रसिक रहु हरि का नाम। प्रेम मगन और मुखर हो वाणी जपे निरन्तर नाम। प्रेम रसिया….. प्रेम समर्पण अर्पण तन मन चाहे ना कोई दाम। प्रेम समर में समर्थ रहु और मिलें गऊ लोक धाम। प्रेम रसिया…… प्रेम सरोवर समाएँ न गागर अनुपम कृष्ण का नाम। प्रेम जगत् में माया झूठीं पाए न कोई मुक़ाम। प्रेम रसिया…… प्रेम रतन सा कोई न सानी आये न दूजा काम। प्रेम ही ईश्वर की अनुभूति प्रेम ही ईश्वर का नाम। प्रेम रसिया…… परिचय :- कमल किशोर नीमा पिता : मोतीलाल जी नीमा जन्म दिनांक :१४ नवम्बर १९४६ श...
नारी शक्ति का दिवस
कविता

नारी शक्ति का दिवस

प्रेम नारायण मेहरोत्रा जानकीपुरम (लखनऊ) ******************** नारी शक्ति का दिवस आज है, थोड़ा इनका वंदन कर लो। मान सभी को प्रिय लगता है, इनका सब अभिनन्दन कर लो। नारी शक्ति......... फूलों सा कोमल मन इनका, मोम सरिस ये पिघल है जाता। निर्मल मन जब इनको दिखता, वो ही इन्हें बहुत है भाता। पुष्प गुच्छ कर भेंट इन्हें, इनमें जसुदा मईया को जगा लो। नारी शक्ति........ दुर्गा, चंडी को मत देखो, वो इनका विकराल रूप है। ये है मंद पवन का झोंका, हम सब तो बस कड़ी धूप है। इनके मातृ रूप के संग तुम, अपना रिश्ता कायम कर लो। नारी शक्ति......... अन्नपूर्णा और सरस्वती , इनके रूप मधुर लगते हैं। पर कुदृष्टि डाले यदि कोई, दुर्गा, काली बन जगते हैं। अन्नपूर्णा रूप जगाकर, जो खिलाएं उसको सिर धर लो। नारी शक्ति......... परिचय :- प्रेम नारायण मेहरोत्रा निवास : जानकीपुरम (लखनऊ) घोषणा पत्र ...
होली के रंग
कविता

होली के रंग

डॉ. भगवान सहाय मीना जयपुर, (राजस्थान) ******************** याद आते है, मुझे होली के रंग। मतलबी दुनिया में, इंसान हुए बेरंग। स्वार्थवश गूंगी हुई, भाई चारे की चंग। रंग बदलते लोगों से, अचरज में सब रंग। देख नशा इंसान का, ठगी गई है भंग। उतरे रंग को देखकर, गुलाल रह गई दंग। कंठ कंठ में बजते, कड़वे भावों के मृदंग। ऊसर सब की वाणी, प्रेम वात्सल्य में जंग। भौतिक सुखी अंतर्मन, ठूंठ सरीखे नंग। गांव मौहल्ले भी, लगते शहर से बदरंग। परिचय :- डॉ. भगवान सहाय मीना (वरिष्ठ अध्यापक राजस्थान सरकार) निवासी : बाड़ा पदम पुरा, जयपुर, राजस्थान घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, ...
आई है होली
गीत

आई है होली

मीना भट्ट "सिद्धार्थ" जबलपुर (मध्य प्रदेश) ******************** मुख पे लाल गुलाल लगाने, आई है होली। तन की सारी पीर मिटाने आई है होली।। हाथ गुलाल अबीर रखी है, पुलकित गोपाला। राधे पर है जादू डाला, कान्हा काला।। गंधिल होता गात गोपियाँ, भरतीं किलकारी। सपने लाख सँजोती मन में, आँखें कजरारी।। वादे सारे आज निभाने, आई है होली। रंग बिरंगे सुमन खिले हैं, नवरंगी छाया। मारे कलियों को पिचकारी, भौंरा बौराया।। हर्ष उल्लास की होली है, फागुन है भाता। यौवन और बुढ़ापा दोनों, गीत मिलन गाता।। हमजोली पर प्रेम लुटाने, आई है होली। है त्योहार अनूठा साजन, प्रेमिल अभिलाषा। कंचन जैसा रूप चमकता, कहता मन भाषा।। धरती पर यौवन छाया है, रसिया नभ छैला। प्रमुदित किंशुक है उपवन में, मिलती है लैला अंतर्मन कचनार खिलाने, आई है होली। बरजोरी करते हुरियारे, प्रणय-मुरारी हैं। ग्रामों की चौपालो ...
गड़बड़ हे भई
आंचलिक बोली, कविता

गड़बड़ हे भई

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** (छत्तीसगढ़ी कविता) छाता ओढ़ के सुरुज ल ढांकय देखव ए अत्याचारी मन, जोर जुलुम के बेवस्था ल पकड़े हावय देखव समाजिक बीमारी मन, हजारों साल के धत धतंगा करके नई अघाए हें, संकट खतरा कहि कहि के गरीब गुरबा ल सताये हें, नाक कटाय के डर नई हे कोनो नाक इंखर तो पइसा हावय, अकेल्ला रहिथंव मोर कोनो नई हे सुखाय नहीं जऊन भंइसा हावय, कुकुर बिलाई छेरी बछरू कतको के नजर म देवता आये, शरम बेच लोटा धर मांगय बइठे ठाले तीन तेलइ के खाये, हांसी आथे पढ़े लिखे मन उपर तर्क वितर्क ले दुच्छा हावय, गहना धर के मुड़ी ल अपन अनपढ़ जोगी जगा हाथ देखावय, मया पिरित नही हे देस से जेला ओहर का सियानी करही, ए डारा ले ओ डारा तक बेंदरा कस धतंग धियानी धरही, कांदी खाये पेट के भरभर पगुरा के वोला पचाही जी, चिंता फिकर का करना हे चारा दूसर लाही जी। ...
बंद कर लिया दरवाजा दिल का
कविता

बंद कर लिया दरवाजा दिल का

प्रतिभा दुबे "आशी" ग्वालियर (मध्य प्रदेश) ******************** मिलते है सूरत चाहने वाले सीरत कहां कोई जान पाया दिखावा तो बड़ा सरल रहा मन का किया कहां पहचान पाया।। उम्र गुजरती गई तमाम यूँ ही, नहीं किरदार मिला समझने वाला मैं दूर होता गया सबसे धीरे-धीरे यहां कौन था कभी समझने वाला।। लोग मिलते है तमाशबीन बनकर एक मैं था मोहब्बत लुटाने वाला नहीं सीखा था खफा रहना किसी से, लोगों ने मेरा अस्तित्व ही मिटा डाला।। अब जो संभला हूं ..... बड़ी मुश्किल हुई मुझे चोटिल करने को कोशिशें तमाम रही लोग घाव देते हैं यहां अपना बनाकर ही मैं अपनों की झूठी दुनियां से निकल आया।। मैंने भी दरवाजा बंद कर लिया इस दिल का लोग ढूंढ ही लेंगे कोई सूरत को चाहने वाला मुझे फूल से ज्यादा कांटे पसंद रहे सदा से ही कोई तो हो साथ, झूठे लोगों से बचाने वाला।। ...
श्याम करी बरजोरी
छंद

श्याम करी बरजोरी

राधेश्याम गोयल "श्याम" कोदरिया महू (म.प्र.) ******************** होली- छंद होरी पे श्याम करी बरजोरी, बहियां मोरी झटकी चुनर रंग बोरी। मैं बोली की श्याम करो न ठिठोली, अंगिया संग भीग गई मेरी चोली। वो बोले प्रिये अब होली सो होली, मन काहे मलाल करो हमजोली। गर बीत गए दिन यूं ही रंगीले तो, अगले बरस फिर आएगी होली। रंग डार के आज भिगोए गयो, अंग मसक गयो सखी मोर अनारी। मुख लाल गुलाल लगाय गयो, मोरी फारी गयो सखी पचरंग सारी। फाग में आग लगाय गयो, ऐसी नैनन मार गयो वो कटारी। मो संग नेह बढ़ाई गयो सखी, मारी के श्याम प्रित पिचकारी। परिचय :- राधेश्याम गोयल "श्याम" निवासी - कोदरिया महू (म.प्र.) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अ...
सशक्त
कविता

सशक्त

किरण पोरवाल सांवेर रोड उज्जैन (मध्य प्रदेश) ******************** भारत की बेटी है न्यारी, हर क्षेत्र में परचम भारी, निडर साहसी शक्तिशाली, दुश्मन पर पड़ती वो भारी, अबला नहीं सबला है सारी, अब नहीं मोहताज किसी की, गोला बारूद हाथ में उसके, बड़े विमान हाथ में उसके, हर-पद पर वह राज है करती, लक्ष्मी ,इन्दरा, सुनीता द्रुपति, नारी! सशक्तिकरण की मिसाल है सारी, नारी को हथियार शक्ति दे, अस्त्र प्रशिक्षण घर घर कर दे, आत्मनिर्भर नारी को कर दे, सीता सी अबला नहीं रहे वह, रण चण्डी काली सी कर दे, कोई आँख दिखाना पाये, कोई छेड उसे ना पाये, तत्क्षण दण्डित हे वो कर दे, न्याय का चाबुक दे हाथो मे, निडर! बनकर रहे जगत मै, कोई पापी, अत्याचारी! ना हो, काँपे उसके बल पौरुष से, सर्वागीण विकास हो उसका, हर क्षेत्र मै परचम उसका, हर पुरुष साहस शक्ति दे, फिर कोई रावण पैदा ना हो, फिर कोई ...
नारी
कविता

नारी

बृजेश आनन्द राय जौनपुर (उत्तर प्रदेश) ******************** उम्र बढ़ती है तो क्या, बढ़ जाने दो! आयु घटती है तो क्या, घट जाने दो! 'काया', कुछ ढलती है तो क्या, ढल जाने दो! पर तुम न अपनी 'मन की मुग्धा' को मारो, न माया, ममता, मोह को बिसारो; न डकने दो कैशोर्या की ड्योढ़ी कभी भी 'उसे', फूल की डाली बीच से सदा निहारो! तन-मन का करो नित-श्रृंगार अपने... अपने 'प्रिय' को कभी दूर से... कभी-कभी पास से अक्सर पुकारो! महकती रहो बहारों सी सदा... इक फूल की मुस्कान सदा होठों पे धारो! न सोचो मान करने को आजीवन, सदा बोल में संयम-सम्हालो! न सूखें 'आँख के आँसू' कभी उसके लिए ... ये मोती हैं तेरे अनमोल सदा उसके लिए... करो स्वागत सदा पलकों से- वन्दनवार सजाओ!! परिचय :-  बृजेश आनन्द राय निवासी : जौनपुर (उत्तर प्रदेश) सम्मान : राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर म.प्र.द्वारा ...
होली की हुडदंग
कविता

होली की हुडदंग

मालती खलतकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** होली हुडदंग, प्रकृति का मान्दल बाजे, मन्जिरे बाजे बाजे ढोल और ताशे होली आई रंग लाई गांऐ हुलियारे। देखो गगन ने केशरिया रंग बिखेरा हरित पर्ण लाये हरित वर्ण मोगरा, चम्पा, चमेली लाई श्वेत रंग देखो गुलमोहर ने लाल रंग छिडका पथ, पग, पगडंडी पर पीलापन फूलों ने धुम मचाई। पुष्पों के राजा गुलाब ने गुलाबी पंखुरी बिखराई। श्याम वर्ण मेध लाये श्याम रंग का उपहार फूलों संग गुनगुन गाते श्याम रंग के भँवरे गाते होली गीत। हर सिंगार सजाये केसरिया गजरा मोगरा, तुलसी गुलाब जल से जल हो गया सुगन्धित जो गजमुख से निकलकर प्रकृति को करता रोमान्चित ऐसी होली खेली कान्हा ने प्रकृति संग राधा भीगी परिचय :- इंदौर निवासी मालती खलतकर आयु ६८ वर्ष है आपने हिंदी समाजशास्श्र में एम ए एल एलबी किया है आप हिंदी में कविता कहानी लेख गजल आदि लिखती...