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पद्य

आपका उड़ेला जहर
कविता

आपका उड़ेला जहर

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** हां भरा है जहर मेरे मन मस्तिष्क में, पर इसे उड़ेलने वाला, भरने वाला कौन है? वो आप हैं, आपकी मत्वाकांक्षाएँ है, आपके सत्ता प्राप्ति की ललक है, खुद आप दिखला चुके झलक हैं, आपकी बातों में आकर मेरा हितैषी पड़ोसी मुझे खटकता है, मेरा जमीर, मेरी इंसानियत पता नहीं कहां कहां भटकता है, कल तक थे हम भाई-भाई, तूने ही हमारी खुशियों में आग लगायी, आपके भड़काने से आपको लाभ हुआ जबरदस्त, पर मैं बुरी तरह हारा हुआ महसूस कर हो गया हूं पस्त, आज जान पाया कि एकमात्र सत्ता की है आपको भूख, मगर समता,बंधुत्व और मानवता वाली आपकी सारी तंत्रिकाएं गयी है सूख, प्रकृति आपको हुनर बांटे, कहीं आपका उड़ेला जहर आप ही को न काटे। परिचय :-  राजेन्द्र लाहिरी निवासी : पामगढ़ (छत्तीसगढ़) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणि...
बिखरे ना परिवार हमारा
कविता

बिखरे ना परिवार हमारा

अंकुर सिंह चंदवक, जौनपुर, (उत्तर प्रदेश) ******************** भैया न्याय की बातें कर लो, सार्थक पहल इक रख लो। एक मां की हम दो औलादें, निज अनुज पे रहम कर दो।। हो रहा परिवार की किरकिरी, गली, नुक्कड़ और बाजारों में। न्यायपूर्ण आपसी संवाद छोड़, अर्जी दिए कोर्ट कचरी थानों में।। लिप्सा रहित हो सभा हमारी, निष्पक्ष पूर्ण हो संवाद हमारा। मैं कहूं तुम सुनों तुम कहो मैं, ताकि खत्म हो विवाद हमारा ।। कर किनारा धन दौलत को, भाई बन कुछ पल बात करों। मां जैसे देती रोटी दो भागों में, मिलकर उस पल को याद करों।। बिन मां बाप का अनुज तुम्हारा, मां बाप बनके आज न्याय करों।। हर लबों पे अपनी खानाफूसी, बैरी कर रहे अपनी जासूसी। भैया, गर्भ एक लहू एक हमारा, कंधों पे झूलने वाला मैं दुलारा। आओ मिलकर रोक दे दूरियां, ताकि बिखरे ना परिवार हमारा।। ताकि बिखरे ना.......... ।। परिचय : अंकुर...
होली के संतरंगी रंग
कविता

होली के संतरंगी रंग

किरण पोरवाल सांवेर रोड उज्जैन (मध्य प्रदेश) ******************** होली में हो ली, कौन किसके साथ हो ली, सास ससुर के साथ हो ली, जेठानी जेठ के साथ हो ली, नंदन नंदोई के साथ हो ली, भाभी-भैया के साथ हो ली देवर देवरानी के साथ हो ली, और बाकी जिसका मन पड़ा वह उसके साथ हो ली, बचे हम दोनों हम महाकाल की गैर देखने इनके साथ हो ली मिल गए सब महाकाल की गैर में, खुली पोल सबकी, कौन किसके साथ होली में हो ली, कोई ठंडाई कोई भांग कोई रगड़ा कोई गोली , होली में गोली और गोली में हो ली, आया नशा होली के रंगों में महाकाल की टोली। परिचय : किरण पोरवाल पति : विजय पोरवाल निवासी : सांवेर रोड उज्जैन (मध्य प्रदेश) शिक्षा : बी.कॉम इन कॉमर्स व्यवसाय : बिजनेस वूमेन विशिष्ट उपलब्धियां : १. अंतर्राष्ट्रीय साहित्य मित्र मंडल जबलपुर से सम्मानित २. अंतर्राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना उज्...
प्रकृति ने खेली होली
कविता

प्रकृति ने खेली होली

मालती खलतकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** मां धरा से होली खेलने की प्रकृति ने ठानी मौन-मौन में सब पुष्पों ने दी अपनी हामी भुवन भास्कर ने चिश्रित रंगीन पुष्पों को रचा थरा पर इन पुष्पों ने मां धरा से होली खेलने की ठानी। फूलों का राजा गुलाब कहे मैं पिचकारी बन जाऊं केली, कामिनी, केतकी तुम रचो शुभ्र रंग। चम्पा तुम अपने चारों रंगों से बनों गहरे पीला केवड़ा, शेवन्ती, गेन्दा की सुगन्ध प्यारी-प्यारी पुष्प चांदनी, चांदनी बिखेरें, हो पूर्णिमा न्यारी। बोले बीच में अमलतास, टेसू पुष्प बिछाकर, मां थरा का आंगन सजाऊं पीली-पीली सरसों बोली में क्यों पीछे रह जाऊं पांखी बोली पुष्प रस से मैं मां को नहलाऊं रानी मक्षिका कहे मैं शहद से माँ का अभिषेक करु। मोगरा, चमेली, जुही बोली, हार बन माँ का स्वागत करु गेहूं की बाली बोलीं सुनहरा रंग में लाई आमृ मोहर की उठ...
हे राम मेरे
स्तुति

हे राम मेरे

प्रतिभा दुबे "आशी" ग्वालियर (मध्य प्रदेश) ******************** हे राम मेरे तुम्हें धन्य कहूं, या तेरी भक्ति की प्रशंसा कहूं।। मैं नर हूं तुम नारायण हो, में दास हूं तुम हो प्रभु मेरे हे नाथ सकल संपदा सभी, हे भगवान तुम्हारे चरणों में।। जब जब नाम लेती हूं मैं प्रभु स्मरण तब करती हूं भक्ति में तेरे हैं सच्चा धन राम नाम का मनका जपती हूं।। है कठिन समय यदि जीवन में, तो सरल राम का नाम भी है क्यों तड़प उठाइए मानव मन हां जब जाना राम के धाम ही है।। परिचय :-  श्रीमती प्रतिभा दुबे "आशी" (स्वतंत्र लेखिका) निवासी : ग्वालियर (मध्य प्रदेश) उद्घोषणा : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छा...
नीम की महक
कविता

नीम की महक

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ******************** फूलों से लदे हरे-भरे नीम की महक दे जाती है मन को सुकून भले ही नीम कड़वा हो। पेड़ पर आई जवानी चिलचिलाती धूप से कभी ढलती नहीं बल्कि खिल जाती है लगता, जेसे नीम ने बांध रखा हो सेहरा। पक्षी कलरव करते पेड़ पर ठंडी छाँव तले राहगीर लेते एक पल के लिए ठहराव लगता जेसे प्रतीक्षालय हो नीम। निरोगी काया के लिए इन्सान क्यों नहीं जाता नीम की शरण बेखबर नीम तो प्रतीक्षा कर रहा निबोलियों के आने की उसे तो देना है पक्षियों को कच्ची-कडवी, पक्की मीठी निबोलियों का उपहार। परिचय : संजय वर्मा "दॄष्टि" पिता : श्री शांतीलालजी वर्मा जन्म तिथि : २ मई १९६२ (उज्जैन) शिक्षा : आय टी आय निवासी : मनावर, धार (मध्य प्रदेश) व्यवसाय : ड़ी एम (जल संसाधन विभाग) प्रकाशन : देश-विदेश की विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएँ व समाचार पत्रों...
तेरा अहसास …
कविता

तेरा अहसास …

डॉ. प्रताप मोहन "भारतीय" ओमेक्स पार्क- वुड-बद्दी ******************** दूर होकर भी जो तुम्हारे पास होने का कराता है आभास वही कहलाता हैं अहसास। ******* जब भी मुझे तुम्हारे पास होने का एहसास होता है वह पल मेरे लिए बहुत खास होता है। ******* अहसास से हमें मानसिक बल मिलता है। उसी के आशा से सुनहरा कल मिलता है । ******* अहसास खत्म होने से रिश्ता खत्म हो जाता है क्योंकि बंधन रिश्तों का नहीं बल्कि अहसास का होता है। ******* दूर रहकर भी तेरा अहसास होता है। तू सामने नही पर हर ख्वाब में साथ होता है। ******* अहसास आशा उम्मीद जगाये रखता है। दूर होकर भी प्रियतम को पास बनाए रखता है। ******* जीने के लिये जैसे जरूरी है सांस। वैसे ही जरूरी है हर वक्त तेरा अहसास। परिचय : डॉ. प्रताप मोहन "भारतीय" निवासी : चिनार-२ ओमेक्स पार्क- वुड-बद्दी घोषणा : मैं यह शपथ पूर्वक घोषणा क...
दादा-दादी की गौरैया
कविता

दादा-दादी की गौरैया

मनस्वी कमलेशभाई पटेल श्यामनगर, अरवल्ली (गुजरात) ******************** सूबह को पूरी चाँच से पकड़ी चिड़िया चीं चीं गाएँ, पेड़-पेड़ पर सूरज बैठे चम्-चम् चम्-चम् होय, चिड़िया चीं चीं चीं चीं गाएँ चिड़िया चक्-चक् करती जाएँ। सूबह को पूरी … फर्-फर् करती आकर बैठी दादाजी के झूले पर, प्यारी बनकर पापा को पूछे यहाँ बनाऊँ अपना घर? हसती-खेलती जाएँ, चिड़िया चीं चीं करती जाएँ। सूबह को पूरी … फर्-फर् करती आकर बैठी दादी माँ के आँगन में, नाचती-झूमती कहेगी चको चढ़ा है घोड़े पर, कूदती-कूदकती जाएँ चिड़िया चीं चीं करती जाएँ। सूबह को पूरी … परिचय :- मनस्वी कमलेशभाई पटेल निवासी : श्यामनगर, तहसील- धनसुरा, जिला- अरवल्ली (गुजरात) छात्रा : श्री एस.के. शाह एवं श्री कृष्ण ओ.एम. आर्ट्स कॉलेज घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। ...
होली … होली … होली …
छंद

होली … होली … होली …

लक्ष्मीकांत "कमलनयन" सुल्तानपुर (उत्तर प्रदेश) ******************** होली होली होली आज हो ली प्रसन्न मन, अगले बरस फिर प्यार बरसायेगी। जीवन में रंग भर मन में उमंग नव, नित ही तरंग ले बहार बन जायेगी।। गायेगी मल्हार फिर जन गण मन हित, रंग भंग संग बंधु गुझिया खिलायेगी। "कमलनयन" आश,छाये नित मधुमास, छंद बंद कवियों से गीत लिखवायेगी।। परिचय :-  लक्ष्मीकांत "कमलनयन" निवासी : सुल्तानपुर (उत्तर प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, ले...
ख़ामोशियां
कविता

ख़ामोशियां

आनन्द कुमार "आनन्दम्" कुशहर, शिवहर, (बिहार) ******************** ख़ामोशियां बहुत कुछ कहती हैं धीरे-से, हौले-से, चुपके-से ख़ामोशियां बहुत कुछ कहती हैं। मन की बाट जोहती हैं बेसुध-बेज़ान-बेबसी की साये में ख़ामोशियां बहुत कुछ कहती हैं। बेमन-बेमेल-बेवजह रिश्तों को बुनती हैं टूटी हुईं धागों से मन को सिलती हैं ख़ामोशियां बहुत कुछ कहती हैं। बिन कहे सब कुछ समझती हैं बेशुमार दर्द के आलम में जीती हैं ख़ामोशियां बहुत कुछ कहती हैं। परिचय :- आनन्द कुमार "आनन्दम्" निवासी : कुशहर, शिवहर, (बिहार) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन...
अबके वर्ष होली में
गीत

अबके वर्ष होली में

गोविन्द सरावत मीणा "गोविमी" बमोरी, गुना (मध्यप्रदेश) ******************** गायें गीत मधुर मिलन के अबके वर्ष हम होली में। मलदें विश्वासी प्रेम रंग देश-धर्म की चोली में।। बांटलें खुशियां मिलके सारी हस -हस बांटलें सारे गम। बिसराऐं मन से सारे विकार मिटाएं मन से मन के भृम। क्रोध-क्रूरता त्याग,पुनीत भाव भरें निज बोली में।। गायें गीत..... रहें न नफ़रत के निशां शेष हर डगर खिले सोहार्द-चमन। हर ह्रदय बहे रसधार प्रेम की रुके भेदभाव का कुटिल सृजन। एकता-और-अमन मुस्काये अखंडता की अनुपम रोली में।। गायें गीत... जात-पात आतंक-अधर्म से काम नही अब चलने बाला। हत्या-औ -हिंसा से मनुजों मैल नही अब धुलने बाला। आओ सींचे बंधुता की बगिया भरकर अश्रुजल झोली में।। गायें गीत मधुर मिलन के अबके वर्ष हम होली में।। मलदें विश्वासी प्रेम रंग देश-धर्म की चोली में।। परिचय :- गोविन्द...
वसंत की छटा होली संग
कविता

वसंत की छटा होली संग

डॉ. किरन अवस्थी मिनियापोलिसम (अमेरिका) ******************** जब भी माधव मन में आएं ॠतु बहार,बसंत की छाए राधावल्लभ के दर्शन हों मन की कलियां खिल जाएं। पीताम्बर छवि मन में समाई फूल खिले, सरसों बिखराई हर ओर है छाई ॠतरानी पुष्पांजलि अर्पित धानी धानी। बसंत में डूबी होली आई दौड़े-दौड़े आए कन्हाई हर‌ओर समा वृंदावन का रंग राधा का, बरसाने का। प्रकृति डुबी रास रंग में आस जगी सबके मन में दिनकर की किरणों संग ईश्वर का वरदान बसंत। परिचय :- डॉ. किरन अवस्थी सम्प्रति : सेवा निवृत्त लेक्चरर निवासी : सिलिकॉन सिटी इंदौर (मध्य प्रदेश) वर्तमान निवासी : मिनियापोलिस, (अमेरिका) शिक्षा : एम.ए. अंग्रेजी, एम.ए. भाषाविज्ञान, पी.एच.डी. भाषाविज्ञान सर्टिफिकेट कोर्स : फ़्रेंच व गुजराती। पुनः मैं अपने देश को बहुत प्यार करती हूं तथा प्रायः देश भक्ति की कविताएं लिखती हूं जो कि समय...
रंगों की होली
कविता

रंगों की होली

अशोक कुमार यादव मुंगेली (छत्तीसगढ़) ******************** (छत्तीसगढ़ी रचना) रंग धरके आहूँ ओ, मैंय ह तोर दुवारी। कपाट खोले रहिबे न, मारहूँ पिचकारी।। तोला बलाए बर, मैंय फाग गीत गाहूँ। झूम-झूम के नाचबो, नगाड़ा बजाहूँ।। तैंय पहिन के आबे ओ, लाली के साड़ी। रंग धरके आहूँ ओ, मैंय ह तोर दुवारी।। लगाहूँ तोर गाल म, मयारू खूब गुलाल। हिल-मिल के मनाबो, फागुन के तिहार।। मन ल मोर भा गे हच, बन जा सुवारी। रंग धरके आहूँ ओ, मैंय ह तोर दुवारी।। मोर मया के रंग, कभू छुटय नहीं गोरी। कतको धोले पानी म, खेल के होली।। गुलाबी देंह दिखे, परसा फूल चिन्हारी। रंग धरके आहूँ ओ, मैंय ह तोर दुवारी।। परिचय : अशोक कुमार यादव निवासी : मुंगेली, (छत्तीसगढ़) संप्राप्ति : शिक्षक एल. बी., जिलाध्यक्ष राष्ट्रीय कवि संगम इकाई। प्रकाशित पुस्तक : युगानुयुग सम्मान : मुख्यमंत्री शिक्षा गौरव अलंकरण 'शिक्षादूत' पुरस्...
अबीर, गुलाल, रंग
कविता

अबीर, गुलाल, रंग

सोनल मंजू श्री ओमर राजकोट (गुजरात) ******************** अबीर, गुलाल, रंग है, होली का हुड़दंग है। रंगों के नशे में, सबके मन मलंग हैं।। अबीर, गुलाल, रंग है... सबके मन को हर्षायी, फागुन की बहार आई। जन-जन गाएं फगुआ, दिलों में उमंग है।। अबीर, गुलाल, रंग है... खेतों में सरसों खिले, पीले-पीले फूल हिलें। हरी-भरी धरा पर, उड़ते विहंग हैं।। अबीर, गुलाल, रंग है... भर-भर लाए पिचकारी, रंग दी चुनर सारी। साजन रंगे सजनी को, अजब ये तरंग है।। अबीर, गुलाल, रंग है... नीला, पीला, लाल, गुलाबी, बचे न कोई जरा भी। प्रेम के रंग में भिगोकर, रंगों अंग-अंग हैं।। अबीर, गुलाल, रंग है... चिप्स खाओ, पापड़ खाओ, मीठी-मीठी गुझिया खाओ। तरह-तरह के मिष्ठानों से, मुँह में घुला रसरंग है।। अबीर, गुलाल, रंग है... होली का त्योहार है, रंगों की बौछार है। झूम-झूम के नाचों गाओ, घुटी आज भंग है।। अबीर, गुलाल...
कुआँ हुआ करता था
कविता

कुआँ हुआ करता था

शुभांगी चौहान लातूर (महाराष्ट्र) ******************** कुआँ हुआ करता था बाड़े में दादी भरा करतीं थी रोज उसका मीठा पानी कभी भोर में सुबह में तो कभी दुपहरी देता हर समय ठंडक उस कुएँ का पानी कभी राहगीर बटोही की प्यास बुझाता तो कभी प्यार से दो बूंद पँछी को पिलाता याद आता हैं बहुत कुआँ वह मीठे पानी का शाम होते ही आती गांव की औरतें सभी भरने के लिए उसी कुएं का पानी चहेरे के संग-संग चमक जाते भरे-भरे पानी से भरे घड़े तांबे और पीतल के खुश हो होकर भरती वह घड़ों में पानी पानी जैसे हो अमृत जीवनदान काम बनता नही था एक भी बगैर कुएं के पानी के भूसे की रोटी बनाती दादी उसी कुएं के पानी से कपड़े और बरतन धोती और आँगन को गोबर से चमकाती दादी उसी कुएं के पानी से स्वर्ग बन जाता घर-द्वार आँगन गाँव उसी पानी से अब न जाने कहाँ खो गये वह बाऊडी कुएं नजर में नही आते हैं आज...
ब्रज की होली
कविता

ब्रज की होली

मीना भट्ट "सिद्धार्थ" जबलपुर (मध्य प्रदेश) ******************** गली-गली में ब्रज की देखो, उड़ता रंग गुलाल सँवरिया। बाहों का आलिंगन दे दो, अंग-अंग कर लाल सँवरिया। चंचल-मन यौवन है मेरा, फगुनाई में बौराई हूँ। अलकों के प्याले में भरकर, मैं मदिरा लेकर आई हूँ।। प्रेमिल फागुन में मन भीगा, करता बहुत धमाल सँवरिया। गली गली में ब्रज की देखो, उड़ता रंग गुलाल सँवरिया।। मन मतंग फगुनाया सजना, छलक रही है प्रेम गगरिया। मर्यादा के बंधन तोड़ो, मौसम मादक है साँवरिया। मधु गुंजित अधरों को पीकर, चूमो मेरा भाल सँवरिया। गली गली में ब्रज की देखो, उड़ता रंग गुलाल सँवरिया।। ढलके आँचल कंचुक ढ़ीली, रोम-रोम में फागुन छाया। रँग से भीगा देख बदन ये, मन अनंग भी है हुलसाया।। पुष्पित कर अभिसार बल्लरी , रति को करो निहाल सँवरिया। गली गली में ब्रज की देखो, उड़ता रंग गुलाल सँवरिया।। ...
होली का चटकीला रंग
कविता

होली का चटकीला रंग

ललित शर्मा खलिहामारी, डिब्रूगढ़ (असम) ******************** महीना फाल्गुन मस्ती का आया, कि रंगों की खुशियां खूब है लाया सारा जहांन रंगों से खूब महकाया सुहावना खुशबूदार मौसम बनाया रंगों की कालीन यह पर्व बिछाया प्रेम प्यार का माहौल खूब बनाया घर आंगन में रंगों की ऋतु लाया पिचकारी रंग की सबपर बहाया प्यारी न्यारी मनभावन फुहार लाया फाल्गुन की रंग बिरंगी बहार लाया मस्ती भरी धुनों की तान में नचाया महफ़िल हंसी ठहाके की सजाया। सबको हंसा हंसाकर हंसी में डुबाया बिरंगीरँगीन कालीन बिछाते आया फाल्गुन फिर मधुर मुस्कान लाया हंसी मुस्कान से रौनक चेहरे में लाया। निमंत्रण फागुन का महीना भिजवाया सबको करीब यह महीना बुलाया जमकर रंग की पावन होली खिलाया मस्ती का माहौल होली पर्व बनाया खूब चटकीला रंग चेहरे पर लगवाया महकता मुस्कुराता रंग खूब उड़ाया चारोदिशाओ को सुहावना बनाया रंगो...
मोर मुकुट सँग होली
कविता

मोर मुकुट सँग होली

अंजनी कुमार चतुर्वेदी "श्रीकांत" निवाड़ी (मध्य प्रदेश) ******************** फागुन की मदमाती ऋतु में, जंगल लाल हुए हैं। लगता यौवन प्राप्त प्रकृति के, रक्तिम गाल हुए हैं। दावानल सा दीख रहा है, फिर भी धुआँ नहीं है। रक्तिम टेसू के फूलों को, अलि ने छुआ नहीं है। रक्तिम पुष्प, गुच्छ आच्छादित, सभी जगह लाली है। लाल चुनरिया ओढ़ यौवना, ज्यों आने वाली है। हैं पलाश के फूल अनोखे, अद्भुत इनकी रचना। रत्नारे अधरों जैसे हैं, मुश्किल इनसे बचना। पत्तों का अवसान हुआ है, पुष्प लालिमा दिखती। लाल लेखनी लेकर प्रकृति, टेसू महिमा लिखती। सब वृक्षों की हर डाली पर, पुष्प गुच्छ हैं छाए। बासंती मौसम में सजकर, राधा -मोहन आए। तन पीतांबर ओढ़ सजी है, ज्यों जंगल की रानी। श्रृंगारित रक्तिम पुष्पों से, शोभित ज्यों महारानी। ओढ़ चुनरिया धानी, पृथ्वी, सबका मन हरसाती। फूलों पर भौंरों का...
आगे फागुन तिहार
आंचलिक बोली, कविता

आगे फागुन तिहार

डोमेन्द्र नेताम (डोमू) डौण्डीलोहारा बालोद (छत्तीसगढ़) ******************** (छत्तीसगढ़ी कविता) अमरय्या मा आमा मयुरे कारी, कोयली कुहुकत हे, लाली-पियुरी परसा फूले, सबों के मन ह पुलकत हे। सरर-सरर चले पिचकारी, उढ़े सुग्घर रंग-गुलाल, पातर -कवर मोर गांव, के गोरी दिखे लाले-लाल। फागुन के फाग संग, सुग्घर डोल नगारा बाजे, जय-जय हो तोर फागुन महाराज, मन-मयारु नाचे। मया-पिरीत के संग खेलबोन, पिरीत के सुग्घर होरी, दया-मया ल बांधे रहिबों संग, म पिरीत के सुग्घर डोरी। बड़ सुग्घर हे पावन लागे, हे फागुन के सुग्घर महीना हा, सबों ल सुहावन लागे, सुग्घर रंग-गुलाल के महीना हा। परिचय :-  डोमेन्द्र नेताम (डोमू) निवासी : मुण्डाटोला डौण्डीलोहारा जिला-बालोद (छत्तीसगढ़) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, ले...
कुछ लिखूं
कविता

कुछ लिखूं

श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी लखनऊ (उत्तर प्रदेश) ******************** मन की लिखूं तो शब्द रूठ से जाते हैं और सच लिखूं तो अपने, जिंदगी को समझना चाहूँ तो सपने टूट जाते है और हर घड़ी अपने लिखू तो क्या लिखूं अब ना अपने हैं ना सपने कुछ अजीब सा चल रहा है ये अंतर्द्वंद गहरी खामोशी है खुद के अंदर एक ऐसी जगह चाहिये जहां खुद को भी ना ढूँढ पाऊँ कभी उड़ जाऊँ स्वच्छंद सी किसी रोज़ इस जहां से गुम ही जाऊँ एक तिनका बन के लहरों की गहराई में छोड़ जाऊँ ना मिटने वाले निशान सबके हृदय में चढ़ जाऊँ किसी फूल की पंखुडी बन श्री चरणों में कभी ना मुरझाने का आशीर्वाद लिए!! परिचय :- श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी पति : श्री राकेश कुमार चतुर्वेदी जन्म : २७ जुलाई १९६५ वाराणसी शिक्षा : एम. ए., एम.फिल – समाजशास्त्र, पी.जी.डिप्लोमा (मानवाधिकार) निवासी : लखनऊ (उत्तर प्रदेश) विशे...
मुस्कुराना आपका
कविता

मुस्कुराना आपका

आशीष तिवारी "निर्मल" रीवा मध्यप्रदेश ******************** यूं नजर मिलाकर फिर वो शर्माना आपका मुझे देख धीरे - धीरे से मुस्कुराना आपका। रौशनी बनकर आयी हो मेरे जीवन में विभा काम है जीवन से मेरे अंधेरे को भगाना आपका। मेरे पास आते ही आप यूं सकुचा सी जाती हो मुझे भा गया इस तरह से सकुचाना आपका। आ जाओ अब तो आप यूं न लजाओ यारा हाय ! मुझको मार डालेगा यूं लजाना आपका। मेरा लिखना हो रहा है अब तो सार्थक निर्मल गूगल करके मेरी नज्मों को यूं गुनगुनाना आपका। परिचय :- आशीष तिवारी निर्मल का जन्म मध्य प्रदेश के रीवा जिले के लालगांव कस्बे में सितंबर १९९० में हुआ। बचपन से ही ठहाके लगवा देने की सरल शैली व हिंदी और लोकभाषा बघेली पर लेखन करने की प्रबल इच्छाशक्ति ने आपको अल्प समय में ही कवि सम्मेलन मंच, आकाशवाणी, पत्र-पत्रिका व दूरदर्शन तक पहुँचा दीया। कई साहित्यिक संस्थाओं से सम्म...
मंजिल तो…
कविता

मंजिल तो…

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** सब एक ही मंजिल के मुसाफिर हैं, इसे यहां जाना है, उसे वहां जाना है, दरअसल ये सब भ्रम है सबका अंतिम मंजिल एक ही ठिकाना है, हमने बुद्ध का देह खोया, कबीर का, रैदास का, ज्योति बा का, बाबा साहेब भीमराव का, मान्यवर कांशीराम जी का, देह किसी का नहीं बचा, पर इन सभी महापुरुषों के विचार,जी हां विचार जिंदा है, अमानवीय व पाखंडी व्यवस्थाएं इनके विचारों के आगे बुरी तरह शर्मिंदा है, कौन सोच सकता था कि भारत जैसे देश में एक रुग्ण विचार हावी हो सकता था, जो आपसी सौहाद्र को डुबो सकता था, जातिय उच्चलशृंखला इतना प्रभावी हो सकता था, जो मानवीय संवेदनाओं को तार तार कर डुबो सकता था, पर ऐसा हुआ, मानव ने मानवता को नहीं छुआ, परिणामतः जातिय घमंड नित परवान चढ़ता रहा, सहयोग की भावना उधड़ता रहा, हमने इन बात...
मैं आदमी हूँ
कविता

मैं आदमी हूँ

शिवदत्त डोंगरे पुनासा जिला खंडवा (मध्य प्रदेश) ******************* मैं आदमी हूँ मुझे परेशानी भी आदमी से ही है मैं परेशान भी आदमी के लिए ही हूँ क्योंकि मैं आदमी होने से पहले किसी जाति का हूँ किसी धर्म का हूँ किसी संप्रदाय और विचारधारा का हूँ जिससे कारण मुझे आदमी आदमी नहीं बल्कि दिखाई देता है तो कोई विरोधी कोई दुश्मन, कोई ऊँचा, कोई नीचा कोई काला तो कोई गोरा हाँ मैं आदमी हूँ। मुझे आदमी होने का मूल्य पता नहीं इसलिए मेरा दुःख कभी जाता नहीं. मेरे विचार ही मेरे दुःख है इस बात को मैं समझता नहीं. खुद से ही अनजाना हूँ. इसलिए आदमी होकर भी आदमी से ही बेगाना हूँ. सुखी मैं, जानवरों जितना भी नहीं पर सृष्टि का सर्वश्रेष्ठ प्राणी हूँ हाँ मैं आदमी हूँ। आदमी होने की कीमत कुछ इस तरह मैंने अदा की है आदमी होकर आदमी को ही आदमी से जुदा की है क्योंकि मेरी खुशी ...
मेरी कलम
कविता

मेरी कलम

सुमन मीना "अदिति" दिल्ली ******************** मेरी कलम मन के भावों का इंद्रधनुष बनाती है, दिल की आवाज़ को ये दुनिया तक पहुँचाती है। मेरी कलम हर अहसास को स्याही में उतारती है, इस जिंदगी की कहानी को पन्नों पर संवारती है। मेरी कलम खुशी के रंगों से ज़िंदगी को सजाती है, तो कभी गम के आँसुओं से भीग जाया करती है। मेरी कलम देशभक्ति की भावना का गीत गाती है, कभी दर्द कहती, कभी सच्चाई उजागर करती है। मेरी कलम भावों की गहराई शब्दों में पिरोती है, लवजों में अपने यह इश्क के फंसाने लिखती है। मेरी कलम समाज सेवा में अपना सार लगाती है, सत्य की मशाल बन अन्याय का विरोध करती है। मेरी कलम ज़ुबान बनके दिल का हाल सुनाती है, अपनी लेखनी शक्ति से कालजयी गाथा रचती है। मेरी कलम एक साथी है जो हमेशा साथ रहती है, मन के मेरे उतार-चढ़ाव को ये बखूबी समझती है। परिचय - सुमन मीना "अदिति" निवास...
डूबी बस्तियां सैलाब में
ग़ज़ल

डूबी बस्तियां सैलाब में

शाहरुख मोईन अररिया बिहार ******************** बड़ी उम्मीदों से जिंदगी का सफर कटता है, डूबी बस्तियां सैलाब में मेरा घर कटता है। बद जुबानों पे अब लगाम लगाया जाए, खबर है तुम्हें? ज़हर से ज़हर कटता है। कैसे कटती है मुफलिसी में जिंदगी देखो, इस दौर में शरीफ लोगों का ही सर कटता है। किताबें हैं नहीं मय्यसर गरीबों को, इसी कशमकश में कितना हुनर कटता है। कितने दर्द मिलते है जाफरानी बस्ती में, किसी का रेत में भी सफर कटता है। हो इनायत जहनी खुदादाद अब शाहरूख पे, इंकलाबी लहजों से जालिम का पर कटता है। वेवहर लड़खड़ाती, है अब ग़ज़ल मेरी, इसी पेशोपेश में जैरो-जबर कटता है। परिचय :- शाहरुख मोईन निवासी : अररिया बिहार घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि रा...