दर्द की चीखें
किरण पोरवाल
सांवेर रोड उज्जैन (मध्य प्रदेश)
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क्या भ्रूण में मर जाऊं?
क्या जन्म ना ले पाऊं?
कैसी घड़ी कैसा समय,
क्या बंद कमरे में रह जाऊं।
क्या दोष किया मैंने विधाता?
इस धरती पर बोझ में बन बैठी,
रावण दुशासन एक ही थे
अब हजार दुशासन बन बैठे।
धरती से जन्मी सीता को
धरती में समाना पड़ता है,
अत्याचारों का जीवन देखो
द्रोपती को सहना पड़ता है।
त्रेता में एक कृष्ण जन्मे
अब कलयुग में हजार
कृष्ण को जन्म ना होगा।
अपनी सुरक्षा अपना बचाव
क्या जन्म से बेटी कर लेगी?
अबोध नादान नासमझा जो बेटी है,
कैसे कंस के हाथों बचनी होगी।
संस्कार सभ्यता शिक्षा में
बदलाव जरूरी है भारत में,
गीता पुराण भागवत की
शिक्षा गुरुकुल जरूरी है भारत में।
विचार क्रांति ही है सुरक्षा,
विचारों की प्रधानता हो प्रबल,
तभी सुरक्षित रह पाएगी
भारत माता और भारत की बेटी।
पूजनीय वंदनीय हम सम...