अस्तित्व की स्मृतियाँ
श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी
लखनऊ (उत्तर प्रदेश)
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अस्तित्व की स्मृतियाँ
कभी व्यथित मन को
सूकून दे ने वाली
थपकियाँ भी बन जाती हैं
कभी किसी कोने मे
खुद की पहचान बनाने
के लिए संघर्षरत रहतीं हैं!!
वक़्त के बेरहम घाव पर
मरहम बन जाती हैं
समय मिले तो कभी सुनना
मेरे अस्तित्व की स्मृतियाँ !
अगर कभी गुम हो जाए
अचानक ये स्मृतियाँ
तो ढूंढ लेना फ़ूलों की
मीठी खुशबू में
ओस की चमकती
किरनों में
नीले अम्बर में सूकून
से उड़ते परिंदों में
किसी जीव की
करुणामयी पुकार में,
किसी जीव की
मुस्कराती आँखों में!!
फिर भी ना ढूँढ पाओ तो
ढूँढ़ना चिता की
अग्नि में समाई हुई,
यहीं मिलूंगी, यही से
समझना है जीवन
जीने की परिभाषा,
थाम सको तो
थाम लेना मेरी
थोड़ी सी स्मृतियाँ!!
परिचय :- श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी
पति : श्री राकेश कुमार चतुर्वेदी
जन्म :...