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ग़ज़ल

चुप-चुप सी शहनाई क्यों है?
ग़ज़ल

चुप-चुप सी शहनाई क्यों है?

नवीन माथुर पंचोली अमझेरा धार म.प्र. ******************** चुप-चुप सी शहनाई क्यों है? महफ़िल में तन्हाई क्यों है? रात से पहले ही जिस्मों में, नींद चढ़ी अँगड़ाई क्यों है ? सोच हमारी एक सही पर, बात कहीं टकराई क्यों है? झूठों को आसानी सारी, मुश्किल में सच्चाई क्यों है? जो है अपने मन के मौजी, फ़िर उनकी रुसवाई क्यों है? अच्छे दिन वालों पर भारी, आख़िर ये महँगाई क्यों है? दावे दारी है असली की, नकली से भरपाई क्यों है? कुछ तो हो नम रहने वाली, सब आँखें पथराई क्यों है। परिचय :- नवीन माथुर पंचोली निवास - अमझेरा धार म.प्र. सम्प्रति - शिक्षक प्रकाशन - देश की विभिन्न पत्रिकाओं में गजलों का नियमित प्रकाशन, तीन ग़ज़ल सन्ग्रह प्रकाशित। सम्मान - साहित्य गुंजन, शब्द प्रवाह, राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा हिन्दी रक्षक २०२० राष्ट्रीय सम्मान घोषणा पत्र : ...
दरिया से गहराई पूछी
ग़ज़ल

दरिया से गहराई पूछी

नवीन माथुर पंचोली अमझेरा धार म.प्र. ******************** दरिया से गहराई पूछी। कश्ती से उतराई पूछी। मन में दर्द जगाने वाले, गीतों से तन्हाई पूछी। बूंदे जब बरसी आहिस्ता, बादल से ऊँचाई पूछी। दूर जो चहरा पढ़ न पाई, आँखों से बीनाई पूछी। जाल बिछाती मकड़ी से फ़न, क़ुदरत से दानाई पूछी। हीर से सब उसकी रानाई, राँझे से शैदाई पूछी। अक़बर ने हर बूझे हल पर, बीरबल से चतुराई पूछी। परिचय :- नवीन माथुर पंचोली निवास - अमझेरा धार म.प्र. सम्प्रति - शिक्षक प्रकाशन - देश की विभिन्न पत्रिकाओं में गजलों का नियमित प्रकाशन, तीन ग़ज़ल सन्ग्रह प्रकाशित। सम्मान - साहित्य गुंजन, शब्द प्रवाह, राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा हिन्दी रक्षक २०२० राष्ट्रीय सम्मान घोषणा पत्र : प्रमाणित किया जाता है कि रचना पूर्णतः मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट...
निज उदर की सुवास खोजने
ग़ज़ल

निज उदर की सुवास खोजने

डॉ. सुलोचना शर्मा बूंदी (राजस्थान) ******************** निज उदर की सुवास खोजने जाने कितने मृग तड़पे होंगे सुरीली सी ग़ज़ल कहने वाले दर्द से कितनी बार मरे होंगे जो चिराग हवाओं से ना डरे हैं निस्सन्देह उन्ही से दूर अंधेरे होंगे वो जो तूफानों में कश्ती डाले हैं या हैं मजबूर या सिरफिरे होंगे टिके हैं अंधेरों के सामने दीपक सूरज तलक उन्हीं के चर्चे होंगे तमस ने बेशक खुदकुशी की होगी जहां जुगनू चमकते दिखे होंगे!! परिचय :- डॉ. सुलोचना शर्मा निवासी : बूंदी (राजस्थान) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां...
बन्द आँखों में ख़्वाब जैसा है
ग़ज़ल

बन्द आँखों में ख़्वाब जैसा है

नवीन माथुर पंचोली अमझेरा धार म.प्र. ******************** बन्द आँखों में ख़्वाब जैसा है। जो नज़ारा सराब जैसा है। भाव चेहरे के बूझने वालों, क़ायदा ये क़िताब जैसा है। नाम उसका बड़ा नहीं लेक़िन, काम उसका नवाब जैसा है। शर्म से हाथ मुँह पे रख लेना, ये तरीक़ा नक़ाब जैसा है । दूर होकर भी हमको भाता है, शख़्श वो माहताब जैसा है। परिचय :- नवीन माथुर पंचोली निवास - अमझेरा धार म.प्र. सम्प्रति - शिक्षक प्रकाशन - देश की विभिन्न पत्रिकाओं में गजलों का नियमित प्रकाशन, तीन ग़ज़ल सन्ग्रह प्रकाशित। सम्मान - साहित्य गुंजन, शब्द प्रवाह, राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा हिन्दी रक्षक २०२० राष्ट्रीय सम्मान घोषणा पत्र : प्रमाणित किया जाता है कि रचना पूर्णतः मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्र...
सबसे अपनापन तो होली
ग़ज़ल

सबसे अपनापन तो होली

नवीन माथुर पंचोली अमझेरा धार म.प्र. ******************** सबसे अपनापन तो होली। तन से अच्छा मन तो होली। आज हमारे पास सभी वो, सम्बन्धों का धन तो होली। सबके चहरे छाएं खुशियाँ, जीने का हो फ़न तो होली। खेलें रंग, चले पिचकारी, भीगे सबके तन तो होली। नाम, बड़प्पन, भेद भुलाकर, मिल जाए जन-जन तो होली। परिचय :- नवीन माथुर पंचोली निवास - अमझेरा धार म.प्र. सम्प्रति - शिक्षक प्रकाशन - देश की विभिन्न पत्रिकाओं में गजलों का नियमित प्रकाशन, तीन ग़ज़ल सन्ग्रह प्रकाशित। सम्मान - साहित्य गुंजन, शब्द प्रवाह, राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा हिन्दी रक्षक २०२० राष्ट्रीय सम्मान घोषणा पत्र : प्रमाणित किया जाता है कि रचना पूर्णतः मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, र...
उनकी तो कहने भर की
ग़ज़ल

उनकी तो कहने भर की

नवीन माथुर पंचोली अमझेरा धार म.प्र. ******************** उनकी तो कहने भर की। है रखवाली ऊपर की। बाहर का सब दिखलावा, है सच्चाई भीतर की। अगला, अगले पर भारी, जीत यहाँ है अवसर की। आँखों से समझी हमनें, सब गहराई सागर की। ग़म में भी वो न पिघली, आँखें जो है पत्थर की। आपस के रगड़े - झगड़े, राम-कहानी घर-घर की। परिचय :- नवीन माथुर पंचोली निवास - अमझेरा धार म.प्र. सम्प्रति - शिक्षक प्रकाशन - देश की विभिन्न पत्रिकाओं में गजलों का नियमित प्रकाशन, तीन ग़ज़ल सन्ग्रह प्रकाशित। सम्मान - साहित्य गुंजन, शब्द प्रवाह, राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा हिन्दी रक्षक २०२० राष्ट्रीय सम्मान घोषणा पत्र : प्रमाणित किया जाता है कि रचना पूर्णतः मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करव...
वफ़ा को आजमाना चाहिए था।
ग़ज़ल

वफ़ा को आजमाना चाहिए था।

नवीन माथुर पंचोली अमझेरा धार म.प्र. ******************** अग़र रिश्ता निभाना चाहिए था। वफ़ा को आजमाना चाहिए था। हमेशा जो तुम्हारे दरमियाँ था, उसे अपना बनाना चाहिए था। चहकते पंछियों से सुर मिलाने, हवा को गुनगुनाना चाहिए था। छुपाने हाल फ़िर अपने सभी से, तुम्हें कोई बहाना चाहिए था। नई बातों को लिख पाने से पहले, गई बातें मिटाना चाहिए था। परिचय :- नवीन माथुर पंचोली निवास - अमझेरा धार म.प्र. सम्प्रति - शिक्षक प्रकाशन - देश की विभिन्न पत्रिकाओं में गजलों का नियमित प्रकाशन, तीन ग़ज़ल सन्ग्रह प्रकाशित। सम्मान - साहित्य गुंजन, शब्द प्रवाह, राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा हिन्दी रक्षक २०२० राष्ट्रीय सम्मान घोषणा पत्र : प्रमाणित किया जाता है कि रचना पूर्णतः मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं...
तबाही का मंजर
ग़ज़ल

तबाही का मंजर

लाल चन्द जैदिया "जैदि" बीकानेर (राजस्थान) ******************** तबाही का सारा मंजर, देख रहे हो ना, तुम बिखरते हुऐ ये घर, देख रहे हो ना। कितने अरमां देखे होंगें यहां की जहाँ ने बारुद का ऐसा होता डर, देख रहे हो ना। जिन्हें शौख नही है, चैन-ओ-अमन का, उन्हे कहो युद्ध का असर, देख रहे हो ना। कैसे जिंदगी की भीख मांग रहे है लोग, क्या हो रहा है ये खबर, देख रहे हो ना। यही होता है गुमां बढ़ती हुई ताकत का, गुमां मे दहर रही है मर, देख रहे हो ना। इंसानियत बची है कहीं तो कहो "जैदि" मत करो जंग गिरे ये सर, देख रहे हो ना। शब्दार्थ :- दहर :- दुनिया परिचय -  लाल चन्द जैदिया "जैदि" उपनाम : "जैदि" मूल निवासी : बीकानेर (राजस्थान) जन्म तिथि : २०-११-१९६९ जन्म स्थान : नागौर (राजस्थान) शिक्षा : एम.ए. (राजनीतिक विज्ञान) कार्य : राजकीय सेवा, पद : वरिष्ठ तकनीक सहायक, सरदार पटेल मेडिकल...
हम हाल हमारे हैं।
ग़ज़ल

हम हाल हमारे हैं।

नवीन माथुर पंचोली अमझेरा धार म.प्र. ******************** सब लोग समझते हैं हम हाल हमारे हैं। हालात मग़र सबके कुदरत के सहारे हैं। मिलते हैं अपनों में कुछ गैर यहाँ लेक़िन, गैरों में वहाँ उतने कुछ लोग हमारे हैं । कश्ती की हिदायत है मझधार से डर रखना, दरिया से गुजरने को काफ़ी ये किनारे हैं । लगते हैं सुहाने सब दिखते हैं जो दूरी से, आँखों के लिए कितने धोखें वो नज़ारे हैं । है राह अग़र मुश्किल चलकर तो ज़रा देखो, हर राह पे मंज़िल को पाने के इशारे हैं । परिचय :- नवीन माथुर पंचोली निवास - अमझेरा धार म.प्र. सम्प्रति - शिक्षक प्रकाशन - देश की विभिन्न पत्रिकाओं में गजलों का नियमित प्रकाशन, तीन ग़ज़ल सन्ग्रह प्रकाशित। सम्मान - साहित्य गुंजन, शब्द प्रवाह, राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा हिन्दी रक्षक २०२० राष्ट्रीय सम्मान घोषणा पत्र : प्रमाणित किया जाता है कि रच...
चुनावी दीवाने
ग़ज़ल, गीतिका

चुनावी दीवाने

प्रमोद गुप्त जहांगीराबाद (उत्तर प्रदेश) ******************** देखा जिसको, वो चुनावी दीवाने लगे, वे छोड़ धन्धा, गालों को बजाने लगे। देश-दुनिया का जिनको पता ही नहीं परिणाम, हार-जीत का, सुनाने लगे। घोषणाएं क्या रिश्वत का ऑफर नहीं एक हम हैं, लार अपनी टपकाने लगे। व्यवस्था में ये दल भी विवश हैं सभी झुन-झुने, अपने-अपने, दिखाने लगे। हम देश-राष्ट्र का, अन्तर भूले सभी दादा के संग संस्कृति भी जलाने लगे। सत्य को पुस्तकों में किया है दफन झूँठ को ही, कुतर्कों से सजाने लगे। जैसे पशु, मैं धरा पर, विचरता रहा, छोड़ डंडा, मुझको ग्वाले मनाने लगे। परिचय :- प्रमोद गुप्त निवासी : जहांगीराबाद, बुलन्दशहर (उत्तर प्रदेश) प्रकाशन : नवम्बर १९८७ में प्रथम बार हिन्दी साहित्य की सर्वश्रेठ मासिक पत्रिका-"कादम्बिनी" में चार कविताएं- संक्षिप्त परिचय सहित प्रकाशित हुईं, उसके बाद -व...
डर हमारा ठहर नहीं जाता
ग़ज़ल

डर हमारा ठहर नहीं जाता

नवीन माथुर पंचोली अमझेरा धार म.प्र. ******************** डर हमारा ठहर नहीं जाता। रास्ता जब गुज़र नहीं जाता। राह के बीच में रखा पत्थर, कतरा-कतरा बिखर नहीं जाता। भूख से कुछ निज़ात पा जाएं, जब निवाला उतर नहीं जाता। हम पे अपना असर जताने को, कोई चेहरा सँवर नहीं जाता। मंजिलों का पता लगा लें पर, राह कोई उधर नहीं जाता। परिचय :- नवीन माथुर पंचोली निवास - अमझेरा धार म.प्र. सम्प्रति - शिक्षक प्रकाशन - देश की विभिन्न पत्रिकाओं में गजलों का नियमित प्रकाशन, तीन ग़ज़ल सन्ग्रह प्रकाशित। सम्मान - साहित्य गुंजन, शब्द प्रवाह, राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा हिन्दी रक्षक २०२० राष्ट्रीय सम्मान घोषणा पत्र : प्रमाणित किया जाता है कि रचना पूर्णतः मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्र...
दिखलाऊँ हर बार तुम्हें
ग़ज़ल

दिखलाऊँ हर बार तुम्हें

नवीन माथुर पंचोली अमझेरा धार म.प्र. ******************** दिखलाऊँ हर बार तुम्हें। सपनों का संसार तुम्हें। दिल की दौलत वाला हूँ, न्यौछावर सब प्यार तुम्हें। जीत भले ही हो मेरी, हासिल हो उपहार तुम्हें। मुश्किल दरिया, धारों का, आसाँ हो मझधार तुम्हें। खुशियाँ हक में हो उतनी, जितनी हो दरकार तुम्हें। परिचय :- नवीन माथुर पंचोली निवास - अमझेरा धार म.प्र. सम्प्रति - शिक्षक प्रकाशन - देश की विभिन्न पत्रिकाओं में गजलों का नियमित प्रकाशन, तीन ग़ज़ल सन्ग्रह प्रकाशित। सम्मान - साहित्य गुंजन, शब्द प्रवाह, राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा हिन्दी रक्षक २०२० राष्ट्रीय सम्मान घोषणा पत्र : प्रमाणित किया जाता है कि रचना पूर्णतः मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते ह...
वतन बदनाम करने पर हैं
ग़ज़ल

वतन बदनाम करने पर हैं

जुम्मन खान शेख़ बेजार अहमदाबादी अहमदाबाद (गुजरात) ******************** वतन बदनाम करने पर हैं आमादा वतन वाले। बहुत देखा मगर मिलते नहीं हैं अब जतन वाले। बहुत बेबाक अल्फ़ाजो से अब हमको नवाजा है, यही उनका बचा है फ़न जो आजमाते हैं फ़न वाले। जमाना क्या कहेगा हमको, इसकी फ़िक्र है किसको, ये वतन सोने की चिड़िया थी, कभी सोचा पतन वाले। मिटा दो आशियां अपना, जला दो हर शहर अपना, कफ़न बिक जायेंगे उनके, जो बैठे हैं कफ़न वाले। बेजार, अब देखा नहीं जाता है, बर्बादी का ये मंज़र, तुम क्यों वीरान करते हो चमन अपना चमन वाले। परिचय :- जुम्मन खान शेख़ बेजार अहमदाबादी निवासी : अहमदाबाद (गुजरात) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपन...
आदमी को आदमी की अब जरुरत नही है
ग़ज़ल

आदमी को आदमी की अब जरुरत नही है

लाल चन्द जैदिया "जैदि" बीकानेर (राजस्थान) ******************** आदमी को आदमी की, अब जरुरत नही है, मिलने की जरा सी किसी को फुरसत नही है। कितनी सीमित सी हो गई है, दुनिया हमारी, सोचे हम जितना उतनी तो खूबसूरत नही है। काम से काम,दिखावा, बस यही सब शेष है, बेजान रिश्तो मे चाह की अब हसरत नही है। पास से गुजर के भी लोग नज़र नही मिलाते, मौकापरस्त लोगो की अच्छी शरारत नही है। बदलना तो हमको ही होगा मुहब्बत के लिऐ, बदलना चाहे अगर तो बड़ी ये कसरत नही है। कोई लाख हम से अदावत रखे "जैदि" मगर, हम चोट पंहुचाऐ ऐसी हमारी फितरत नही है। शब्दार्थ :- हसरत :- इच्छा मौकापरस्त :- मतलबी शरारत :- धृष्टता, पाजीपन अदावत :- दुश्मनी फितरत :- स्वभाव परिचय -  लाल चन्द जैदिया "जैदि" उपनाम : "जैदि" मूल निवासी : बीकानेर (राजस्थान) जन्म तिथि : २०-११-१९६९ जन्म स्थान : नागौर (राजस्थान) शिक्षा : ए...
आन ऊँची
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आन ऊँची

नवीन माथुर पंचोली अमझेरा धार म.प्र. ******************** सदा उसकी रही है आन ऊँची। सुनाती है जो बुलबुल तान ऊँची। ज़माना मानता है फ़न उसी का, बना रख्खी है जिसने शान ऊँची। वो पंछी आसमाँ को छू लेगा, रखेगा जो वहाँ उड़ान ऊँची। खरीदी में लगी है भीड़ भारी, खुली है जिस तरफ़ दुकान ऊँची। लगे मुश्किल उसे आसानियों सी, जो रखता है सफ़र में जान ऊँची। परिचय :- नवीन माथुर पंचोली निवास - अमझेरा धार म.प्र. सम्प्रति - शिक्षक प्रकाशन - देश की विभिन्न पत्रिकाओं में गजलों का नियमित प्रकाशन, तीन ग़ज़ल सन्ग्रह प्रकाशित। सम्मान - साहित्य गुंजन, शब्द प्रवाह, राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा हिन्दी रक्षक २०२० राष्ट्रीय सम्मान घोषणा पत्र : प्रमाणित किया जाता है कि रचना पूर्णतः मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं ...
मुझको आदत नही ठगने की जमाने को
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मुझको आदत नही ठगने की जमाने को

लाल चन्द जैदिया "जैदि" बीकानेर (राजस्थान) ******************** मुझको आदत नही ठगने की जमाने को, हर रोज निकलता कमर कस कमाने को। साफगोई ने दुश्मन बना लिऐ, चारो ओर, जुबां जब बोले बचता न कुछ छुपाने को। तुम भी कभी कर के देखो मेरी तरहा से, तुमको भी मजा आऐगा सच दिखाने को। माना कि मुश्किल है मगर पिछे न हठना, बढ़ाऐं कदम जब कहे कोई आजमाने को। करते रहे यूं ही गर हम हर बार नादानियां, रहेगा न इक पल पास हमारे पछताने को। दौर-ऐ-गर्दिश आते जरुर सभी के "जैदि" थोड़ा कहीं ज्यादा,छोड़ो न इस पैमाने को। अर्थ :- साफगोई :- स्पष्ट वादिता दौर-ऐ-गर्दिश :- बुरा समय परिचय -  लाल चन्द जैदिया "जैदि" उपनाम : "जैदि" मूल निवासी : बीकानेर (राजस्थान) जन्म तिथि : २०-११-१९६९ जन्म स्थान : नागौर (राजस्थान) शिक्षा : एम.ए. (राजनीतिक विज्ञान) कार्य : राजकीय सेवा, पद : वरिष्ठ तकनीक सहायक, सरदार पटेल...
स्वयं चले आये
ग़ज़ल

स्वयं चले आये

प्रमोद गुप्त जहांगीराबाद (उत्तर प्रदेश) ******************** हम सीते जा रहे, उधड़ता जाता है- ये भाग्य क्या-क्या गुल खिलाता है। कर्म की सुई को, जो न देता विराम निश्चित ही एक दिन मंजिल पाता है। स्वयं चले आये, बहुत दूर उजालों से- अंधेरों में हमको अब हौवा डराता है। चढ़कर उतरना है, उतरकर चढ़ना है। प्रतिदिन ही सूरज, यही तो बताता है। अर्जुन बनकर कुरुक्षेत्र में उतरना तुम- अभिमन्यु हर-बार युद्ध हार जाता है। एक हाथ मे शस्त्र, दूसरे से कृपा बरसे ऐसा प्रतापी ही श्रेष्ठ शासन चलाता है। वीर नहीं, वह तो केवल बिजुका ही है- जो आवश्यक होने पे शस्त्र न उठाता है। परिचय :- प्रमोद गुप्त निवासी : जहांगीराबाद, बुलन्दशहर (उत्तर प्रदेश) प्रकाशन : नवम्बर १९८७ में प्रथम बार हिन्दी साहित्य की सर्वश्रेठ मासिक पत्रिका-"कादम्बिनी" में चार कविताएं- संक्षिप्त परिचय सहित प्रकाशित ...
जिंदगी मिल गई
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जिंदगी मिल गई

रामसाय श्रीवास "राम" किरारी बाराद्वार (छत्तीसगढ़) ******************** तू मिली तो हमे जिंदगी मिल गई । जिंदगी में हमें हर खुशी मिल गई ।। इस जहाँ में अकेले थे हम अब तलक । साथ तेरा मिला तो जहाँ मिल गई ।। हमने सोचा नहीं था ये दिन आयेगा । इस जहाँ में हमे कोई मिल पायेगा ।। रब ने चाहा तो ऐसा समय आ गया । राह में इस कदर हमसे टकरा गई ।। हम थे किस्मत के मारे भटकते रहे । मुश्किलें जो भी आया वो सहते रहे ।। चैन था दिन में ना रात में थी सूकून । वक्त मुठ्ठी से मानो फिसलती गई ।। दर्द किससे कहें अपना किसको कहें । कब तलक हम अकेले सिसकते रहें ।। दिल था रहता सदा गम में खोया हुआ । आँख से मानो आंसू भी सूख सी गई ।। उस विधाता का दिल से दुवा मांगता । जब भी मांगा तो उससे यही मांगता ।। हम सफर मेरा कोई नही है यहाँ । कब मिलायेगा मुझको उमर बीत गई ।। तू मिली तो हमे जिंदगी मिल गई परिचय :...
कितना सहूं झूठ कि
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कितना सहूं झूठ कि

जुम्मन खान शेख़ बेजार अहमदाबादी अहमदाबाद (गुजरात) ******************** कितना सहूं झूठ कि मर क्यों नहीं जाते। सच है जिधर लोग उधर क्यों ‌नहीं जाते। हर मील ‌के‌ पत्थर पे यहां झूठ लिखा है, मंजिल से पहले ‌ही ठहर‌ क्यों नहीं जाते। दर दर भटक रहा हूं मैं सच की तलाश में, कहते हैं मुझे लोग कि ‌घर क्यों नहीं जाते। अब उधर भी कौन सा सच होगा नसीब में, मझधार में कश्ती से उतर क्यों नहीं जाते। बेबस की बद्दुवा का असर "बेजार" देखना, रब के अज़ाब से तुम डर क्यों नहीं जाते। परिचय :- जुम्मन खान शेख़ बेजार अहमदाबादी निवासी : अहमदाबाद (गुजरात) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते है...
कहाँ गंगाजल है
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कहाँ गंगाजल है

प्रमोद गुप्त जहांगीराबाद (उत्तर प्रदेश) ******************** निकलता नहीं, क्यों सवालों का हल है, हैं गलत फॉर्मूले और कुतर्कों में बल है । लूटे जाएं हमसे और निठल्लों में बांटे- राजधानी, या फिर, घाटी-ए-चम्बल है । सब अपेक्षाओं से नाता, जो हैं तोड़ देते- उन्हीं बावलों का, बस जीवन सफल है । अपनी व्यवस्था की डोर, है चार हाथों- व निर्णय सभी का, अलग आजकल है । जब आजाद हैं हम, तो कुछ भी करेंगे- और कुर्सी पर बैठे, गांधी जी अटल हैं । गिरी मक्खी नहीं, दूध में छिपकली है- इसे पूरा ना बदलना, मेरे साथ छल है । तूने ही तो किया, सारे तत्वों को दूषित- अब ढूंढ़ता फिर रहा, कहाँ गंगाजल है । परिचय :- प्रमोद गुप्त निवासी : जहांगीराबाद, बुलन्दशहर (उत्तर प्रदेश) प्रकाशन : नवम्बर १९८७ में प्रथम बार हिन्दी साहित्य की सर्वश्रेठ मासिक पत्रिका-"कादम्बिनी" में चार कविताएं- संक्षि...
तेरे पहलू में मुझे आने की तेरी इजाज़त न सही …
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तेरे पहलू में मुझे आने की तेरी इजाज़त न सही …

सुधाकर मिश्र "सरस" किशनगंज महू जिला इंदौर (म.प्र.) ******************** तेरे पहलू में मुझे आने की तेरी इजाज़त न सही। अपने दिल से कर दो रुखसत ये हो नहीं सकता।। लाख फेरो यूँ नज़र मुझको जलाने की खातिर। पलट - पलट के न देख तू ये हो नहीं सकता।। मैं वाकिफ हूं तेरी हर एक उन कमजोरियों से। तुम उनसे तोड़ चुकी हो रिश्ता ये हो नहीं सकता।। मुझको मालूम है तेरे दिल को बिछड़ने का है डर। जिस्म से जान हो जाए अलग ये हो नहीं सकता।। हम तुम एक हैं जनम से, है ज़माने को खबर। तेरी इजाज़त न हो ज़माने को ये हो नहीं सकता।। परिचय :-  सुधाकर मिश्र "सरस" निवासी : किशनगंज महू जिला इंदौर (म.प्र.) शिक्षा : स्नातक व्यवसाय : नौकरी पीथमपुर जन्मतिथि : ०२.१०.१९६९ मूल निवासी : रीवा (म.प्र.) रुचि : साहित्य पठन व सृजन, संगीत श्रवण उपलब्धि : आकाशवाणी रीवा से कहानियां प्रसारित, दैनिक जागरण री...
दौर-ऐ-गर्दिश आते जरुर है
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दौर-ऐ-गर्दिश आते जरुर है

लाल चन्द जैदिया "जैदि" बीकानेर (राजस्थान) ******************** मुझको आदत नही ठगने की जमाने को, हर रोज निकलता कमर कस कमाने को। साफगोई ने दुश्मन बना लिऐ, चारो ओर, जुबां जब बोले बचता न कुछ छुपाने को। तुम भी कभी कर के देखो मेरी तरहा से, तुमको भी मजा आऐगा सच दिखाने को। माना कि मुश्किल है मगर पिछे न हठना, बढ़ाऐं कदम जब कहे कोई आजमाने को। करते रहे यूं ही गर हम हर बार नादानियां, रहेगा न इक पल पास हमारे पछताने को। दौर-ऐ-गर्दिश आते जरुर सभी के "जैदि" थोड़ा कहीं ज्यादा, छोड़ो न इस पैमाने को। अर्थ :- साफगोई :- स्पष्ट वादिता दौर-ऐ-गर्दिश :- बुरा समय परिचय -  लाल चन्द जैदिया "जैदि" उपनाम : "जैदि" मूल निवासी : बीकानेर (राजस्थान) जन्म तिथि : २०-११-१९६९ जन्म स्थान : नागौर (राजस्थान) शिक्षा : एम.ए. (राजनीतिक विज्ञान) कार्य : राजकीय सेवा, पद : वरिष्ठ तकनीक सहायक, सरदार पटे...
वही अनबुझे से सवाल हैं वो ही टीस वो ही मलाल है
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वही अनबुझे से सवाल हैं वो ही टीस वो ही मलाल है

मुकेश सिंघानिया चाम्पा (छत्तीसगढ़) ********************          ११२१२ ११२१२ ११२१२ ११२१२ वही अनबुझे से सवाल हैं वो ही टीस वो ही मलाल है नया कुछ कहाँ नये साल में वही सब पुराना सा हाल है लुटी सी थकी सी हैं ख्वाहिशें दबी हैं जरूरतों के तले सरेआम होती नीलाम रोज तमन्नाएं बेमिसाल है नही बदला ढंग कहीं कोई वही आदतें है पुरानी सब है अभी भी बेपरवाहियाँ नही समझा कोई कमाल है यूँ डरे डरे तो हैं सब मगर है दिलों में सबके ही खौफ़ सा तो भी जश्न कैसे छूटे कोई ये तो रूतबे का सवाल है न की खैर की कभी मिन्नतें किसी हाल चाहे ही हम रहे जो मैं पी गया हूँ उदासियाँ मेरे दर्द को भी मलाल है न ही दिन ही बदला न रात ही न नया कोई भी कमाल है कहो किस तरह से कहें इसे भला हम की ये नया साल है मत पूछ मुझसे तू रास्ता मैं भटक रहा हूँ यहाँ वहाँ मुझे खुद की कुछ भी खबर नही मेरा जीना जैसे बवाल है ...
वो बचा रहा है गिरा के …
ग़ज़ल

वो बचा रहा है गिरा के …

निज़ाम फतेहपुरी मदोकीपुर ज़िला-फतेहपुर (उत्तर प्रदेश) ******************** वज़्न- ११२१२ ११२१२ ११२१२ ११२१२ वो बचा रहा है गिरा के जो, वो अज़ीज़ है या रक़ीब है। न समझ सका उसे आज तक, कि वो कौन है जो अजीब है।। मेरी ज़िंदगी का जो हाल है, वो कमाल मेरा अमाल है। जो किया उसी का सिला है सब, मैंने ख़ुद लिखा ये नसीब है।। जिसे ढूँढता रहा उम्र भर, रहा साथ-साथ दिखा न पर। मेरा साथ उसका अजीब है, न वो दूर है न क़रीब है।। जहाँ दिल में प्यार बसा हुआ, वहीं जन्म शायरी का हुआ। जो क़लम से आग उगल रहा, वो नजीब है न अदीब है।। भरी नफ़रतें जहाँ दिल में हों, वहाँ दिल सुकूँ कहाँ पाएगा। जो फ़िज़ा में ज़हर मिला रहा, वो मुहिब नही है मुहीब है।। वो डरे ज़माने के ख़ौफ़ से, जिसे मौत पर है यक़ीं नहीं। मैं डरूँ किसी से जहाँ में क्यूँ, मेरे साथ मेरा हबीब है।। यहाँ आया जो उसे जाना है, यही ला-फ़ना वो निज़ाम है। है...
उसी के पास जाना चाहती है …
ग़ज़ल

उसी के पास जाना चाहती है …

नवीन माथुर पंचोली अमझेरा धार म.प्र. ******************** उसी के पास जाना चाहती है। जिसे रस्ता दिखाना चाहती है। गुजरती है कभी खामोश रहकर, कभी ये गुनगुनाना चाहती है। मिले कोई कहीं अपने सफ़र में, उसे अपना बनाना चाहती है । बवण्डर सी कभी आकार लेकर, समुन्दर को उड़ाना चाहती है। बहा करती है धरती-आसमाँ पर, मग़र इक ठौर पाना चाहती है। बदलतें हैं उसी के रुख़ से मौसम, हवा सबको जताना चाहती है । परिचय :- नवीन माथुर पंचोली निवास - अमझेरा धार म.प्र. सम्प्रति - शिक्षक प्रकाशन - देश की विभिन्न पत्रिकाओं में गजलों का नियमित प्रकाशन, तीन ग़ज़ल सन्ग्रह प्रकाशित। सम्मान - साहित्य गुंजन, शब्द प्रवाह, राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा हिन्दी रक्षक २०२० राष्ट्रीय सम्मान घोषणा पत्र : प्रमाणित किया जाता है कि रचना पूर्णतः मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, ल...