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ग़ज़ल

कुछ शराफ़त बची हैं दरमियां अपने
ग़ज़ल

कुछ शराफ़त बची हैं दरमियां अपने

मनमोहन पालीवाल कांकरोली, (राजस्थान) ******************** कुछ शराफ़त बची हैं दरमियां अपने या मुहब्बत बची हैं दरमियां अपने हर इक चेहरा नया, अभी प्यार हुआ कुछ नजाकत बची हैं दरमियां अपने वो मुहब्बत नहीं शायद नादानिया थी अपनी शरारत बची हैं दरमियां अपने चाँद तोड़ लाते थे मुहब्बत में लोग इक नदामत बची हैं दरमियां अपने कह न पाए आपस मे बारहा हम तुम यही शिकायत बची हैं दरमियां अपने जीना किसको हे ताअबद यहाँ पर एक कयामत बची हैं दरमियां अपने हम छुपा भी गए ख़ामोशियों को यही हकीकत बची हैं दरमियां अपने बारहा नज़र उठतो तेरी सूरत पर मेरो कोई चाहत बची हैं दरमियां अपने तेरा अतीत मेरी ज़िंदगी बन गई यारो यही इमारत बची हैं दरमियां अपने मेरे अलफ़्फ़ाज सुनाइ नहो देते मोहन यही मुसीबत बची हैं दरमियां अपने नजाकत-कोमलता नदामत-पश्चाताप ताअबद-अनंत काल तक पर...
अपनापन तो होली
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अपनापन तो होली

नवीन माथुर पंचोली अमझेरा धार म.प्र. ******************** समझें अपनापन तो होली। रक्खें अच्छा मन तो होली। साथ हमारे आज अगर हो, सम्बन्धों का धन तो होली। आपस में रहने ,जीने का, सीखें सच्चा फ़न तो होली। साथ-साथ जो मन को भाये, भीगे ऐसा तन तो होली। खुल जाएँ गाँठे रिश्तों की, मिट जाएँ अनबन तो होली। ऊँच -नीच का भेद भुला कर, मिल जाये जन-जन तो होली। रंगों में हैं सच जीवन का, कर लें सब मंथन तो होली, परिचय :- नवीन माथुर पंचोली निवास : अमझेरा धार म.प्र. सम्प्रति : शिक्षक प्रकाशन : देश की विभिन्न पत्रिकाओं में गजलों का नियमित प्रकाशन, तीन ग़ज़ल सन्ग्रह प्रकाशित। सम्मान : साहित्य गुंजन, शब्द प्रवाह, राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा हिन्दी रक्षक २०२० राष्ट्रीय सम्मान घोषणा पत्र : प्रमाणित किया जाता है कि रचना पूर्णतः मौलिक है। आप भी अपनी कविताए...
पी गया वह पीर
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पी गया वह पीर

गिरेन्द्रसिंह भदौरिया "प्राण" इन्दौर (मध्य प्रदेश)  ******************** पी गया वह पीर ताड़ी की तरह । सकपकाया फिर अनाड़ी की तरह ।। लोग उसकी बात कैसे मानते, जीभ चलती थी कुल्हाड़ी की तरह ।। जिन्दगी पर अब मुसीबत नित नई, टूट पड़ती है पहाड़ी की तरह ।। सिन्धियों सी कर ख़रीदी माल की, बेच दे फिर मारवाड़ी की तरह ।। एक बदली एक पागल के लिये, सज रही थी एक लाड़ी की तरह ।। जा रहा था दूर कछुए सा चला, लौट आया रेलगाड़ी की तरह ।। "प्राण" पंछी तो उड़ेगा डाल से, लोग ढूँढेगे कवाड़ी की तरह ।। परिचय :- गिरेन्द्रसिंह भदौरिया "प्राण" निवासी : इन्दौर (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्र...
बहुत याद आया भुलाने से पहले
ग़ज़ल

बहुत याद आया भुलाने से पहले

नवीन माथुर पंचोली अमझेरा धार म.प्र. ******************** बहुत याद आया भुलाने से पहले। कि जी भर रुलाया हँसाने से पहले। शिकायत,हिदायत,अदावत,बग़ावत, इन्हें आज़माया निभाने से पहले। रखूँगा सजाकर जिसे अपने दिल में, वही सब जताया छुपाने से पहले। यही आसमाँ की रिवायत रही है, सभी को उठाया गिराने से पहले। मिला यार मुझसे कभी जब कहीं तो, वो रूठा-रुठाया मनाने से पहले। भरोसा नहीं था जिसे गा सकूँगा, उसे गुनगुनाया सुनाने से पहले। परिचय :- नवीन माथुर पंचोली निवास : अमझेरा धार म.प्र. सम्प्रति : शिक्षक प्रकाशन : देश की विभिन्न पत्रिकाओं में गजलों का नियमित प्रकाशन, तीन ग़ज़ल सन्ग्रह प्रकाशित। सम्मान : साहित्य गुंजन, शब्द प्रवाह, राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा हिन्दी रक्षक २०२० राष्ट्रीय सम्मान घोषणा पत्र : प्रमाणित किया जाता है कि रचना पूर्णतः मौलिक है। ...
मुकतदी बनते हैं हालात
ग़ज़ल

मुकतदी बनते हैं हालात

शाहरुख मोईन अररिया बिहार ******************** मुकतदी बनते हैं हालात ग़म इमामत करते हैं, हर रोज फरिश्ते टूटी झोपड़ी की जियारत करते हैं। पहन के कीमती लिवास कुछ लोग दिखाबत करते हैं, जर्रे-जर्रे में है खुदा तभी तो हम कहीं भी इबादत करते हैं। अमीरे शहर खुश हैं अब बादशाहत पे अपनी, हमको नाज़ है घर में हमारे बच्चे शरारत करते हैं। जो बदल सकते नहीं हालात तो जुल्म करना छोड़ दो, फिर ये न कहना इंकलाबी लोग बगावत करते हैं। तेरी मनमानी से गिरा सकते नहीं हम अपने हद को, पारखी लोग पारखी नजर कब कोयले की तिजारत करते हैं। मुफलिसी में नहीं जलते कितने घरों के चूल्हे, शाहरुख मेरी कौम में ऐसे लोग भी सदारत करते हैं। परिचय :- शाहरुख मोईन निवासी : अररिया बिहार घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। ...
बेड़ियाँ लाचारियों की
ग़ज़ल

बेड़ियाँ लाचारियों की

नवीन माथुर पंचोली अमझेरा धार म.प्र. ******************** लगी है बेड़ियाँ लाचारियों की। कठिन है राह जिम्मेंदारियों की। करेंगे हम हमेशा बात उनकी, रिवायत सीख ली ख़ुद्दारियों की। अग़र हो वक़्त पर, वो काम पूरा, ज़रूरत है बड़ी तैयारियों की। जहाँ राजा दिखाये रोब अपना, वहाँ चलती नहीं दरबारियों की। रखेंगे किस तरह वो भाईचारा, रही आदत जिन्हें ग़द्दारीयों की। उन्हें वो देखता है, सीखता है, जिसे दरकार है फ़नकारियों की। परिचय :- नवीन माथुर पंचोली निवास : अमझेरा धार म.प्र. सम्प्रति : शिक्षक प्रकाशन : देश की विभिन्न पत्रिकाओं में गजलों का नियमित प्रकाशन, तीन ग़ज़ल सन्ग्रह प्रकाशित। सम्मान : साहित्य गुंजन, शब्द प्रवाह, राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा हिन्दी रक्षक २०२० राष्ट्रीय सम्मान घोषणा पत्र : प्रमाणित किया जाता है कि रचना पूर्णतः मौलिक है। आप भी अपनी...
मुँह मीठा मन खारा
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मुँह मीठा मन खारा

नवीन माथुर पंचोली अमझेरा धार म.प्र. ******************** मुँह मीठा मन खारा मत कर। जीती बाजी हारा मत कर। धूप, हवा से डर कर अपने, आँगन को चौबारा मत कर। रुक जाए पैमाना लब पर, इतना मन को मारा मत कर। न कहने की कहकर बातें, दिल का बोझ उतारा मत कर। अपनी है उस हद से ज़्यादा, अपने पैर पसारा मत कर। साथ रहें हैं जो रस्ते भर , उनके साथ किनारा मत कर। मिलना है मिल जाएगा वो, इतना, उतना, सारा मत कर। परिचय :- नवीन माथुर पंचोली निवास : अमझेरा धार म.प्र. सम्प्रति : शिक्षक प्रकाशन : देश की विभिन्न पत्रिकाओं में गजलों का नियमित प्रकाशन, तीन ग़ज़ल सन्ग्रह प्रकाशित। सम्मान : साहित्य गुंजन, शब्द प्रवाह, राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा हिन्दी रक्षक २०२० राष्ट्रीय सम्मान घोषणा पत्र : प्रमाणित किया जाता है कि रचना पूर्णतः मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कह...
परिंदे उड़ चले दिनमान छूने
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परिंदे उड़ चले दिनमान छूने

नवीन माथुर पंचोली अमझेरा धार म.प्र. ******************** परों पर होंसले परवान छूने। परिंदे उड़ चले दिनमान छूने। चले अपने इरादे साथ लेकर, नई मंज़िल ,सफ़र अन्ज़ान छूने। कभी आँखों में जो सपनें पले थे, वही निकले सही पहचान छूने। किसी को आसमाँ का डर नहीं है, उठें हैं दिल सभी अरमान छूने। हवाओं से रुकेंगे वो भला क्या, चलें हैं जो वहाँ तूफ़ान छूने। परिचय :- नवीन माथुर पंचोली निवास : अमझेरा धार म.प्र. सम्प्रति : शिक्षक प्रकाशन : देश की विभिन्न पत्रिकाओं में गजलों का नियमित प्रकाशन, तीन ग़ज़ल सन्ग्रह प्रकाशित। सम्मान : साहित्य गुंजन, शब्द प्रवाह, राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा हिन्दी रक्षक २०२० राष्ट्रीय सम्मान घोषणा पत्र : प्रमाणित किया जाता है कि रचना पूर्णतः मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिच...
साथ अपने जहाँ मिल गए
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साथ अपने जहाँ मिल गए

नवीन माथुर पंचोली अमझेरा धार म.प्र. ******************** साथ अपने जहाँ मिल गए। हाथ उनसे वहाँ मिल गए। फ़ासलों का पता न चला, रास्ते कब कहाँ मिल गए। कट गया मुश्किलों का सफ़र, लोग सब मेहरबाँ मिल गए। जो तलाशे वहाँ दूर तक, वो सभी अब यहाँ मिल गए। था मिलेंगे किसी दौर में, वो इसी दरमियाँ मिल गए। ख़ुश-नसीबी रही वास्ते, फिर से हमकों जवाँ मिल गए। साथ रहकर गए जो निकल, फ़िर वही कारवाँ मिल गए। हाल ऐसा हमारा रहा, सख़्त कुछ इम्तिहाँ मिल गए। परिचय :- नवीन माथुर पंचोली निवास - अमझेरा धार म.प्र. सम्प्रति - शिक्षक प्रकाशन - देश की विभिन्न पत्रिकाओं में गजलों का नियमित प्रकाशन, तीन ग़ज़ल सन्ग्रह प्रकाशित। सम्मान - साहित्य गुंजन, शब्द प्रवाह, राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा हिन्दी रक्षक २०२० राष्ट्रीय सम्मान घोषणा पत्र : प्रमाणित किया जाता है कि रचना पूर...
हर्फ़-हर्फ़ जानने से
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हर्फ़-हर्फ़ जानने से

ज्ञानेन्द्र पाण्डेय "अवधी-मधुरस" अमेठी (उत्तर प्रदेश) ******************** हर्फ़-हर्फ़ जानने से ही कहाँ बना करती है ग़ज़ल । है इसके लिए तो पर्त-दर-पर्त रूह में उतरना होता ।। मिलतीं रहीं निग़ाहें सजती रही ग़ज़ल । रुख़सार झलक जाए बनती रही ग़ज़ल ।। साँसों में भरके निक़हत उतरे सुरूर दिल में । ज़ज़्बात मचल जाए उड़ती रही ग़ज़ल ।। बर्दाश्त करे कब तक कोई लू के थपेड़े । कुरब़त में उलझ जाए छलती रही ग़ज़ल ।। शिकवे-गिले वफ़ा के दोनों के दरमियाँ बस । अरमाँ बिखर जाए पिसती रही ग़ज़ल ।। नजरें बचा-बचा के अदा गुफ़्तगू करे है । महफ़िल में गज़ब ढ़ाये जमती रही ग़ज़ल ।। छोटी सी ज़िन्दगी के किस्से हैं अनगढ़े से । बिन बात बहक़ जाए चलती रही ग़ज़ल ।। बे-क़ैफ़ी कैसी भी हो हाँ तंज़ नहीं करना । अश्आर सँवर जाए कहती रही ग़ज़ल ।। मिलतीं रहीं निग़ाहें सजती रही ग़ज़ल । रुख़सार झलक ...
कहानी में हक़ीकत तो रही
ग़ज़ल

कहानी में हक़ीकत तो रही

नवीन माथुर पंचोली अमझेरा धार म.प्र. ******************** भले थोड़ी मुसीबत तो रही। कहानी में हक़ीकत तो रही। मिला उतना, लगाया जितना, चलो इतनी ग़नीमत तो रही। रहा कोई कहीं हो दूर पर, उसे हमसे अक़ीदत तो रही। बुलाये वो हमें या हम उसे, सफ़र में ये ज़रूरत तो रही । कभी मानी नहीं जिसकी कही, हमें उसकी नसीयत तो रही। बिताई जिंदगी हमनें जैसी, अभी तक वो तबी'अत तो रही। परिचय :- नवीन माथुर पंचोली निवास - अमझेरा धार म.प्र. सम्प्रति - शिक्षक प्रकाशन - देश की विभिन्न पत्रिकाओं में गजलों का नियमित प्रकाशन, तीन ग़ज़ल सन्ग्रह प्रकाशित। सम्मान - साहित्य गुंजन, शब्द प्रवाह, राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा हिन्दी रक्षक २०२० राष्ट्रीय सम्मान घोषणा पत्र : प्रमाणित किया जाता है कि रचना पूर्णतः मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक...
हम रहे देखते कुछ दूर तक
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हम रहे देखते कुछ दूर तक

नवीन माथुर पंचोली अमझेरा धार म.प्र. ******************** हम रहे देखते कुछ दूर तक जाते लेकिन। रह गया फ़ासिला ज़द उनकी जताते लेक़िन। नाम पूछा नहीं इस देखने की हसरत में, बढ़ गया काफ़िला हाथों को हिलाते लेक़िन। पेंच उनसे कभी बातों का लड़ाया होगा, ज़िंदगी कट गयी रिश्तों को निभाते लेक़िन। दूरियाँ सोचती है हमसे तो ये राह भली, राह चलती रही बोझों को उठाते लेक़िन। रात ढ़लती गई फिर चाँद ने छुपना चाहा, आसमाँ रह गया तारों को जगाते लेकिन। परिचय :- नवीन माथुर पंचोली निवास - अमझेरा धार म.प्र. सम्प्रति - शिक्षक प्रकाशन - देश की विभिन्न पत्रिकाओं में गजलों का नियमित प्रकाशन, तीन ग़ज़ल सन्ग्रह प्रकाशित। सम्मान - साहित्य गुंजन, शब्द प्रवाह, राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा हिन्दी रक्षक २०२० राष्ट्रीय सम्मान घोषणा पत्र : प्रमाणित किया जाता है कि रचना पूर्णतः मौलिक है। ...
सितारे चमकते रहें
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सितारे चमकते रहें

सरला मेहता इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** ये दिये यूँ सदा रोज़ जलते रहें सब घरों में सितारे चमकते रहें आज आया बड़ा दिन नजारे नए रोज सब चेहरे यूँ चहकते रहें सब घरों में रहें शांति सुख चैन हो रोज़ परिवार सारे विहसते रहें आज आया बड़ा दिन नजारे नए रोज सब चेहरे यूँ चहकते रहें सब घरों में रहें शांति सुख चैन हो रोज़ परिवार सारे विहसते रहें बेटियाँ और बेटे बराबर यहाँ वे सदा मुस्कुराते व हँसते रहें झूठ बोलो नहीं सत्य की जीत है सत्य को लोग तानें ही देते रहें परिचय : सरला मेहता निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक...
दिल में ग़म की किताब रखता है
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दिल में ग़म की किताब रखता है

गोपाल मोहन मिश्र लहेरियासराय, दरभंगा (बिहार) ******************** लिख के सबका हिसाब रखता है दिल में ग़म की किताब रखता है। कोई उसका बिगाड़ लेगा क्या खुद को खानाखराब रखता है। आग आँखों में और मुट्ठी में वो सदा इन्किलाब रखता है। जिसने है देखें जमाने की सूरत खुद को वो कामयाब रखता है। उसकी नाजुक अदा के क्या कहने मुट्ठी में वो माहताब रखता है। बाट खुशियों की जोहता है तू दिल में क्यों फिर अदाब रखता है। आइने से न कर लड़ाई, कि वो कब किसी का हिजाब रखता है। समय से गुफ़्तगू करोगे क्या वो सभी का जवाब रखता है। समय चितचोर, नचनिया है कैसे-कैसे खिताब रखता है। परिचय :-  गोपाल मोहन मिश्र निवासी : लहेरियासराय, दरभंगा (बिहार) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि र...
जले हैं दीप खूब झिलमिलाने दो
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जले हैं दीप खूब झिलमिलाने दो

आलोक रंजन त्रिपाठी "इंदौरवी" इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** जले हैं दीप इन्हें खूब झिलमिलाने दो ख़ुशी को पास में आकरके गीत गाने दो चमन को आज विरासत में जो मिली खुश्बू उसे दिलों में हर मकाम पे लुटाने दो ग़रीब और अमीरी में फ़र्क छोड़ो जी सभी से हाथ मुस्कुराके अब मिलाने दो ये जिंदगी तो तीन दिन का बुलबुला ही है इसे बेख़ौफ़ होके और खिलखिलाने दो न रोककर उसे मायूस करो अब रंजन उसे भी अपना क़दम एक तो बढ़ाने दो परिचय :- आलोक रंजन त्रिपाठी "इंदौरवी" निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश) शिक्षा : एमए (हिंदी साहित्य) लेखन : गीत, गजल, मुक्तक, कहानी, तुम मेरे गीतों में आते प्रकाशन के अधीन, तीन साझा संग्रह में रचनाएं प्रकाशित, १० से ज्यादा कहानियां पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित, ५० से ज्यादा गीत के चल पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित, २०१६ से लेखन में अभिरुचि विशेष : आध्...
हवा महसूस होती है हवा देखी नहीं जाती।
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हवा महसूस होती है हवा देखी नहीं जाती।

नवीन माथुर पंचोली अमझेरा धार म.प्र. ******************** सदा जिसकी हक़ीक़त में सुनी, समझी नहीं जाती। हवा महसूस होती है हवा देखी नहीं जाती। घटा से दोस्ती रखकर, हवा में उड़ चलें लेक़िन, ज़मीं से दुश्मनी हमसे बड़ी रख्खी नहीं जाती। उठाई है ख़ता हमनें वफ़ा देकर सभी उनको, करें हम लाख कोशिशें लगी अपनी नहीं जाती। बड़ा ही ख़ौफ़जादा है जहाँ का क़ायदा लेक़िन, हँसी को देखकर हमसे हँसी रोकी नही जाती। उड़ें चाहे कहीं ऊपर, उठे हम आसमानों तक, ज़मीं पाँवों तले जो थी कभी छोड़ी नहीं जाती। परिचय :- नवीन माथुर पंचोली निवास - अमझेरा धार म.प्र. सम्प्रति - शिक्षक प्रकाशन - देश की विभिन्न पत्रिकाओं में गजलों का नियमित प्रकाशन, तीन ग़ज़ल सन्ग्रह प्रकाशित। सम्मान - साहित्य गुंजन, शब्द प्रवाह, राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा हिन्दी रक्षक २०२० राष्ट्रीय सम्मान घोषणा पत्र : प्रमाणित क...
हमारा हौसला इश्क़ था
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हमारा हौसला इश्क़ था

डॉ. वासिफ़ काज़ी इंदौर (मध्य प्रदेश) ********************** याद ने उनकी जहां-जहां क़दम बढ़ाये हैं । अश्कों ने मेरे वहां वहां ग़लीचे बिछाये हैं ।। क्या करें.. हम अपनी आँखों का हमदम । ख़्वाब इसने हमें बेहद हसीन दिखाये हैं ।। डर लगने लगा है अब तो वस्ल से हमको । हम बदनसीब....... तो हिज्र के सताये हैं ।। हमारा हौसला इश्क़ था... सफ़र में यारों । रास्ते के पत्थर....... ख़ुद हमने हटाये हैं ।। लेते हैं इम्तिहान मेरी दोस्ती का "काज़ी" । दुश्मनों से भी रिश्ते शिद्दत से निभाये हैं ।। परिचय :- डॉ. वासिफ़ काज़ी "शायर" निवासी : इंदौर (मध्यप्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते ह...
चाँद को देखा मन बहला
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चाँद को देखा मन बहला

दीपक अनंत राव "अंशुमान" केरला ******************** चाँद को देखा मन बहला चाँदनी में तेरा चहरा खिला कितनी अकेली रातों में खोयें न मेरी मंजिल तेरे बिना, चाँद को देखा... न कोई राहें भाती नहीं है न कोई मौसम कटती नहीं है साथ हमेशा छाया हो तेरी तुझ से बनी है तकदीर मेरी, चाँद को देखा... ग़म से भरी है राहें हमारी बिखरी हुई है ख्वाबें हमारी छावों में तेरी सजाते रहूँ मैं जन्नत्‍त मेरी तब होगी पूरी, चाँद को देखा... बगियन के फूल शरमा रहे हैं जब तुम को देखें शरमा रही हैं नूर तुम्हारी नज़रों में बोये रंगें हज़ारे दुनिया में मेरी, चाँद को देखा... परिचय :- दीपक अनंत राव अंशुमान निवासी : करेला घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्...
यूँ ही मुझसे बात करती हो
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यूँ ही मुझसे बात करती हो

सरला मेहता इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** यूँ ही मुझसे बात करती हो भोर की रोशनी निराली है सुबह की ये हसीन लाली है जब गए छोड़कर अकेली तो ज़िन्दगी राम ने संभाली है साज सजने लगे जमी महफिल ये मेरा दिल तो आज खाली है सायबा आपने जुदा होकर क्यूँ बनाया मुझे रुदाली है घोर फांके पड़े गरीबों में ये महल में सजी दिवाली है कह न पाई तुझे कहानी मैं शर्म की आँख पे ये जाली है मान मुझको नहीं पराया सा देख दिल में जगह बना ली है भूलकर भी कभी नहीं आया याद कर मैं वही घरवाली है खाइए जी ज़रा नफ़ासत से रोटियाँ ये सभी रुमाली हैं कम न समझो हमें जगतवालों हम हैं दुर्गा हमीं तो काली हैं राजरानी लगूँ सभी को मैं लग रहा तू बड़ा मवाली है फूल कलियों सजा ये कुनबा है बाग का तो पिता ही माली है क्यूँ ये दुल्हे दिखा रहे नखरे दुलहिने तो देखी भाली है दाल बाटी व चूरमा ल...
बस हॅंसी हैं वो तो होने दो
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बस हॅंसी हैं वो तो होने दो

निज़ाम फतेहपुरी मदोकीपुर ज़िला-फतेहपुर (उत्तर प्रदेश) ******************** वज़्न- २१२२ २१२२ २१२२ १२ बस हॅंसी हैं वो तो होने दो नज़र में मेरे नइं। यूॅं किसी से झूठ कह दूॅं ये हुनर में मेरे नइं।। तुम कहीं अपना चलाओ जाके जादू हुस्न का। औरों को होगी ज़रूरत तेरी घर में मेरे नइं।। ज़िंदगी तो एक धोका है फ़ना होंगे सभी। हैं मुसाफ़िर सब कोई साथी सफ़र में मेरे नइं।। सच हमेशा कहता हूॅं मैं लड़ता हूॅं सच के लिए। बस ख़ुदा का डर है डर दुनिया का डर में मेरे नइं।। जो अगर कुछ सीखना है तुमको मुझसे ऐ 'निज़ाम'। तो अदब से पास बैठो मेरे सिर में मेरे नइं।। परिचय :- निज़ाम फतेहपुरी निवासी : मदोकीपुर ज़िला-फतेहपुर (उत्तर प्रदेश) शपथ : मेरी कविताएँ और गजल पूर्णतः मौलिक, स्वरचित हैं आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के ...
ख़ता से दूर बन्दगी रखना
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ख़ता से दूर बन्दगी रखना

नवीन माथुर पंचोली अमझेरा धार म.प्र. ******************** ख़ता से दूर बन्दगी रखना। निभा सको तो दोस्ती रखना। बना रहे हो जब मकाँ अपना, यहाँ, वहाँ से इक गली रखना। जहाँ मुश्किल कभी सुनो,समझो, वहाँ सभी से कुछ बनी रखना। हवा अक्सर जिधर से आती है, उधर की खिड़कियाँ खुली रखना। जुबाँ कहने में चूक जाएगी, बुरी-भली में कुछ कमी रखना। कभी मिले, कभी नहीं भी मिले, ज़रा सम्भाल कर ख़ुशी रखना। परिचय :- नवीन माथुर पंचोली निवास - अमझेरा धार म.प्र. सम्प्रति - शिक्षक प्रकाशन - देश की विभिन्न पत्रिकाओं में गजलों का नियमित प्रकाशन, तीन ग़ज़ल सन्ग्रह प्रकाशित। सम्मान - साहित्य गुंजन, शब्द प्रवाह, राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा हिन्दी रक्षक २०२० राष्ट्रीय सम्मान घोषणा पत्र : प्रमाणित किया जाता है कि रचना पूर्णतः मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि र...
संसार हमारा है हिंदी
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संसार हमारा है हिंदी

नवीन माथुर पंचोली अमझेरा धार म.प्र. ******************** व्यवहार हमारा है हिंदी। आचार हमारा है हिंदी । लिखने, पढ़ने की बातों का, आधार हमारा है हिंदी। बदले बोली, पग-पग दूरी, विस्तार हमारा है हिंदी। पद, गीत, कविता, छंदों में, सब सार हमारा है हिंदी। रिश्ते अपने, सच्चे इससे, संसार हमारा है हिंदी । जन-जन के सच्चे भावों में, सब प्यार हमारा है हिंदी। इस दौरे जहाँ की शिक्षा में, हथियार हमारा है हिंदी। अपनायी भाषाएँ सबकी, इक हार हमारा है हिंदी। परिचय :- नवीन माथुर पंचोली निवास - अमझेरा धार म.प्र. सम्प्रति - शिक्षक प्रकाशन - देश की विभिन्न पत्रिकाओं में गजलों का नियमित प्रकाशन, तीन ग़ज़ल सन्ग्रह प्रकाशित। सम्मान - साहित्य गुंजन, शब्द प्रवाह, राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा हिन्दी रक्षक २०२० राष्ट्रीय सम्मान घोषणा पत्र : प्रमाणित किया जात...
ग़मों का काफ़िला
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ग़मों का काफ़िला

नवीन माथुर पंचोली अमझेरा धार म.प्र. ******************** ग़मों का काफ़िला जाता नहीं है। ख़ुशी का सिलसिला आता नहीं है। हमेशा मैं कहूँ क्यों बात अपनी, मुझे ये क़ायदा भाता नहीं है । भरोसा ही उसे मुझ पर नहीं जब, मुझे उस पर यकीं आता नहीं है। जताता है वो मेरी गलतियों को, कभी जो राह दिखलाता नहीं है। लबों पर भी हँसी आती नहीं है, कभी दिल भी सुकूँ पाता नहीं है। परिचय :- नवीन माथुर पंचोली निवास - अमझेरा धार म.प्र. सम्प्रति - शिक्षक प्रकाशन - देश की विभिन्न पत्रिकाओं में गजलों का नियमित प्रकाशन, तीन ग़ज़ल सन्ग्रह प्रकाशित। सम्मान - साहित्य गुंजन, शब्द प्रवाह, राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा हिन्दी रक्षक २०२० राष्ट्रीय सम्मान घोषणा पत्र : प्रमाणित किया जाता है कि रचना पूर्णतः मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच...
कंटकों का ताज़ ही है ज़िंदगी
ग़ज़ल

कंटकों का ताज़ ही है ज़िंदगी

रजनी गुप्ता 'पूनम चंद्रिका' लखनऊ ******************** २१२२ २१२२ २१२ कंटकों का ताज़ ही है ज़िंदगी हँस के पहनो तो हँसी है जिंदगी तिश्नगी से ही भरी है ज़िंदगी पूछो मत कैसे कटी है ज़िंदगी मुफ़लिसी में तो खली है ज़िंदगी सबके क़दमों में गिरी है ज़िंदगी ख़ूबसूरत शेर हैं सब इसलिए मेरी ग़ज़लों में ढली है ज़िंदगी काम आए जो वतन के वास्ते सच कहूँ तो बस वही है ज़िंदगी शाम ढलती है न ढलती रात है बिन पिया के यूँ खली है ज़िंदगी प्यार से जग जीत लो "रजनी" कहे चार दिन ही तो मिली है ज़िंदगी परिचय : रजनी गुप्ता 'पूनम चंद्रिका' उपनाम :- 'चंद्रिका' पिता :- श्री रामचंद्र गुप्ता माता - श्रीमती रामदुलारी गुप्ता पति :- श्री संजय गुप्ता जन्मतिथि व निवास स्थान :- १६ जुलाई १९६७, तहज़ीब व नवाबों का शहर लखनऊ की सरज़मीं शिक्षा :- एम.ए.- (राजनीति शास्त्र) बीएड व्यवसाय :- गृहणी प्रकाशन...
इतने हो बेगाने क्या
ग़ज़ल

इतने हो बेगाने क्या

नवीन माथुर पंचोली अमझेरा धार म.प्र. ******************** इतने हो बेगाने क्या। हमसे हो अंजाने क्या। आँख झुकाये बैठे हो, रूठे हो दीवाने क्या। रुख़ पर थोड़ा गुस्सा है, आये हो समझाने क्या। खट्टे- मीठे जीवन की, बातें हो पहचाने क्या। होश लिए हो रात ढले, टूट गए पैमाने क्या। परिचय :- नवीन माथुर पंचोली निवास - अमझेरा धार म.प्र. सम्प्रति - शिक्षक प्रकाशन - देश की विभिन्न पत्रिकाओं में गजलों का नियमित प्रकाशन, तीन ग़ज़ल सन्ग्रह प्रकाशित। सम्मान - साहित्य गुंजन, शब्द प्रवाह, राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा हिन्दी रक्षक २०२० राष्ट्रीय सम्मान घोषणा पत्र : प्रमाणित किया जाता है कि रचना पूर्णतः मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक म...