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ना वेद जानती हूं, ना कुरान जानती
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ना वेद जानती हूं, ना कुरान जानती

दीपक्रांति पांडेय (रीवा मध्य प्रदेश) ****************** १) आंधियों को चीरकर बढ़ना है तुझको। नित नया इतिहास फिर गढ़ना है तुझको।। आग के दरिया को कब किसने रोका है। पाषाण हैं रहें कठिन चढ़ना है तुझको।। २) ना वेद जानती हूं, ना कुरान जानती। ना हीं कोई में विश्व का, विधान जानती।। माता-पिता हीं ऐसे हैं, मेरे इस जहान में। जिनको हूं पूजती, और भगवान जानती।। ३) अपने आँगन का, मान होती हैं। वो पिता का, ग़ुमान होती हैं।। ये जहाँ को, ख़ुदा कि नेमत हैं। बेटी गौरव का, गान होती हैं।। ४) आज के दिन मैं उसके साथ थी।। हाथों में थामें उसका हाथ थी।। दूर जाते देख उसे मैं रोई बहुत। जाने उसमें ऐसी क्या बात थी।। ५) घर की बेटियाँ, लाख मुसीबत ढ़ोतीं हैं। चेहरा हंसता और निगाहें रोती हैं।। करें तरक्की लाख भले दुनियां में ये। घर की मुर्गी दाल बराबर होती है।। परिचय :- दीपक्रांति पांडेय निवासी : रीवा मध्य प्रदे...
पीकर आंसुओं को
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पीकर आंसुओं को

दीपक्रांति पांडेय (रीवा मध्य प्रदेश) ****************** जो पीकर आंसुओं को भी, स्वयं हीं मुस्कुराती हैं। करें बलिदान इच्छा सब, न जाने सुख, क्या पाती है।। हर एक चौखट की मर्यादा है,जिनके अपने हाथों में। वो रणचंडी, भवानी हीं, यहां नारी कहाती हैं।। अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ। २) समरसता का भाव लिए, रंगो के पावन छांव तले, होली का यह त्यौहार कहे, जीवन में प्रीत का रंग भरे।। समरसता के पावन पर्व होली की अग्रिम शुभकामनाओं के साथ। ३) इश्क़ में पागल वो आशिक फिर रहा है आज भी। शाह वो मेरा बना और मैं बनी मुमताज भी।। प्यार बेश़क मैने उससे हीं किया था सच है ये। पर ये कैसे भूल जाती, हूँ पिता की लाज भी।। माता पिता को समर्पित। ४) निद्रा का अब, ढोंग रचाकर, मौन कहां तक साधेंगे। बाधाओं को, पीठ दिखाकर, रण से कब तक, भागेंगे। लक्ष हम अपना, साधेंगे,अब तोड़ तमस की सघन घटा। बहुत हुआ अ...
संगीत व सरगम
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संगीत व सरगम

रशीद अहमद शेख 'रशीद' इंदौर म.प्र. ******************** हर दिशा मेंं राग है संगीत का। सृष्टि में अनुराग है संगीत का। हैं सभी क्रम-कार्यक्रम सरगम सहित, असंभव परित्याग है संगीत का। सुनें यदि ध्यान से हर ओर सुर की प्रीत गुंजित है! कहीं है पाठ कविता का, कहीं पर गीत गुंजित है! सकल संसार ही सरगम की सत्ता का समर्थक है अवनि से गगन तक संगीत ही संगीत गुंजित है! अज़ां हो, शंख हो, कोई इबादत या भजन-पूजन! निनादित घंटियाँ हों धर्मस्थल की कोई पावन! मुझे हर शब्द से संगीत की सौग़ात मिलती है, ॠचाओं का पठन हो या कहीं क़ुरआन का वाचन! जब सजनी को याद सताती है प्रिय की! उर पर वह तस्वीर सजाती है प्रिय की।! सरगम के हर स्वर में होता है 'प्रिय-प्रिय', बुलबुल भी गीतिका सुनाती हैं प्रिय की! वर पाया जब मनमोहन यदुवंशी से। हुए प्रसारित स्वर सुन्दर तब वंशी से। खड़ा रह गया साश्चर्य कानन में बांस, प्रकट हुई जब सरगम उसके...
माँ की महिमा
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माँ की महिमा

रशीद अहमद शेख 'रशीद' इंदौर म.प्र. ******************** जगतजननि कहलाती माता! सबसे बढ़कर उसका नाता! कौन नहीं उसका ॠणदाता, कौन नहीं उसके गुण गाता! बन गया है माँ का आँचल सर पे साया धूप में! सुरक्षित शरणार्थी है सुत की काया धूप में! शीश लज्जावश झुकाया भास्कर ने शून्य में , देखता वह रह गया ममता की माया धूप में! कहीं भी देखिए माँ का दुलार है अनमोल! ममत्व क़ीमती है उसका प्यार है अनमोल! दुआएं उसकी हों कोई या हो कोई आशीष, हर एक भाव है शुभ हर विचार है अनमोल! दुखों की धूप में शीतल बयार मेरी माँ! विपत्तियों की उमसती में फुहार मेरी माँ! मैं जब कभी हताश या निराश होता हूँ, प्रदान करती है आशा अपार मेरी माँ! सुत न ममता से दूर होता है! माँ के नयनों का नूर होता है! सांवरा पुत्र भी जननी के लिए , क़ीमती कोहेनूर होता है! . परिचय -  रशीद अहमद शेख 'रशीद' साहित्यिक उपनाम ~ ‘रशीद’ ...
सूर्य
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सूर्य

रशीद अहमद शेख 'रशीद' इंदौर म.प्र. ******************** हुई प्रकृति में उद्घोषित भोर! धीरे-धीरे बढ़ा धरा पर शोर! हुआ तिरोहित तम आया आलोक, सूरज की किरणें छाईं चहुँ ओर! धीरे-धीरे बीती रात! आख़िर तम ने खाई मात! फैली लाली चारों ओर, दिनकर लाया सुखद प्रभात! पूर्व में हो रहा है रवि उन्नत ! रश्मियों से हुआ तिमिर आहत! जागृत-प्रकाशित हैं जड़-चेतन, कर रहे हैं प्रभात का स्वागत! किरणों से संसार सजाया सूरज ने। अंधियारों को दूर भगाया सूरज ने। जीव धराशाई थे और अचेतन भी, महा जागरण गीत सुनाया सूरज ने। हो गई है यामिनी की हार तय! तिमिर का होने लगा है सतत् क्षय! प्राणियों में चेतना का शोर है, हो रहा है पूर्व में दिनकर उदय! कोई दीपक अगर चाहे तो दिनकर हो नहीं सकता! बड़ा हो ताल कितना भी समन्दर हो नहीं सकता! कुटी हो या गगनचुम्बी निकेतन या हवेली हो, बिना परिवार के कोई भवन घर हो नहीं सकता! नियमित भू पर आलोकित...
हर्ष, आनन्द और खुशी
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हर्ष, आनन्द और खुशी

रशीद अहमद शेख 'रशीद' इंदौर म.प्र. ******************** विश्व के हर देश में उत्कर्ष होना चाहिए। हर कुटी हर इमारत में हर्ष होना चाहिए। दूर हो दुनिया से सब दुख,दुराशय एवं दुराव, समापित भू से समर-संघर्ष होना चाहिए। ज़िन्दगी में हर्ष हो, आमोद हो, आनन्द हो। अब कहीं संसार में संग्राम हो ना द्वन्द हो। हों विवादित विषैले वचनों के सब व्यापार बन्द, मनुज के हर शब्द में हो अमिय या मकरंद हो! कच्चे घर में चूल्हे होते थे माटी के! आदी थे सब परंपरागत परिपाटी के! कितनी मीठी लगती थी मक्का की रोटी, कितने थे आनन्द मालवा की बाटी में! एक ओर दीपों की जगमग, दूजी ओर अंधेरा भी है! कहीं जश्न है ख़ुशहाली का, कहीं दुखों का डेरा भी है! कहीं स्नेह का रत्नाकर है,कहीं स्नेह का गहन अभाव, कहीं कमी है कुछ तेरी भी, कहीं दोष कुछ मेरा भी है! . परिचय -  रशीद अहमद शेख 'रशीद' साहित्यिक उपनाम ~ ‘रशीद’ जन्मतिथि~ ०१/०४/१९५१ जन्म ...
सूरज की किरणें
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सूरज की किरणें

रशीद अहमद शेख 'रशीद' इंदौर म.प्र. ******************** हुई प्रकृति में उद्घोषित भोर! धीरे-धीरे बढ़ा धरा पर शोर! हुआ तिरोहित तम आया आलोक, सूरज की किरणें छाईं चहुँ ओर! धीरे-धीरे बीती रात! आख़िर तम ने खाई मात! फैली लाली चारों ओर, दिनकर लाया सुखद प्रभात! पूर्व में हो रहा है रवि उन्नत ! रश्मियों से हुआ तिमिर आहत! जागृत-प्रकाशित हैं जड़-चेतन, कर रहे हैं प्रभात का स्वागत! किरणों से संसार सजाया सूरज ने। अंधियारों को दूर भगाया सूरज ने। जीव धराशाई थे और अचेतन भी, महा जागरण गीत सुनाया सूरज ने। हो गई है यामिनी की हार तय! तिमिर का होने लगा है सतत् क्षय! प्राणियों में चेतना का शोर है, हो रहा है पूर्व में दिनकर उदय! . परिचय -  रशीद अहमद शेख 'रशीद' साहित्यिक उपनाम ~ ‘रशीद’ जन्मतिथि~ ०१/०४/१९५१ जन्म स्थान ~ महू ज़िला इन्दौर (म•प्र•) भाषा ज्ञान ~ हिन्दी, अंग्रेज़ी, उर्दू, संस्कृत शिक्षा ~ एम• ए• (हिन...
हर्ष, आनन्द
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हर्ष, आनन्द

रशीद अहमद शेख 'रशीद' इंदौर म.प्र. ******************** विश्व के हर देश में उत्कर्ष होना चाहिए। हर कुटी हर इमारत में हर्ष होना चाहिए। दूर हो दुनिया से सब दुख,दुराशय एवं दुराव, समापित भू से समर-संघर्ष होना चाहिए। ज़िन्दगी में हर्ष हो, आमोद हो, आनन्द हो। अब कहीं संसार में संग्राम हो ना द्वन्द हो। हों विवादित विषैले वचनों के सब व्यापार बन्द, मनुज के हर शब्द में हो अमिय या मकरंद हो! कच्चे घर में चूल्हे होते थे माटी के! आदी थे सब परंपरागत परिपाटी के! कितनी मीठी लगती थी मक्का की रोटी, कितने थे आनन्द मालवा की बाटी में! एक ओर दीपों की जगमग, दूजी ओर अंधेरा भी है! कहीं जश्न है ख़ुशहाली का, कहीं दुखों का डेरा भी है! कहीं स्नेह का रत्नाकर है,कहीं स्नेह का गहन अभाव, कहीं कमी है कुछ तेरी भी, कहीं दोष कुछ मेरा भी है! . परिचय - साहित्यिक उपनाम ~ ‘रशीद’ जन्मतिथि~ ०१/०४/१९५१ जन्म स्थान ~ महू ज़िला इन्...
चन्द्रमा पर चार मुक्तक
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चन्द्रमा पर चार मुक्तक

रशीद अहमद शेख 'रशीद' इंदौर म.प्र. ******************** पलायन सांझ को कर मुख छिपाया जब दिवाकर ने! निशा को कर दिया चिन्तित अंधेरे के बड़े डर ने। सभी जड़ और चेतन प्रतीक्षारत थे उजाले के, प्रकाशित कर दिया धरती को तब आकर निशाकर ने। ढला दिन सांझ सरकी तो कहीं से यामिनी आई। कहा कवि उर ने "भू पर सांवरी सी कामिनी आई।" धरा चिंतित थी उसके सांवरे तन को संवारे कौन, अचानक चन्द्रमा से चांदनी सुखदायिनी आई। ख़ूब सोलह सिंगार करती है। चौथ व्रत निराहार करती है। उसका चेहरा है चाँद-सा फिर भी, चाँद का इन्तज़ार करती है। चाँद-सूरज की चमकती रोशनी सबके लिए है! धूप सबके वास्ते है, चाँदनी सबके लिए है। चन्द्रमा का साथ देते हैं सितारे अनगिनत पर, भानु नभ में नित्य एकल यात्री सबके लिए है! . परिचय - साहित्यिक उपनाम ~ ‘रशीद’ जन्मतिथि~ ०१/०४/१९५१ जन्म स्थान ~ महू ज़िला इन्दौर (म•प्र•) भाषा ज्ञान ~ हिन्दी, अंग्रेज़ी, उर्द...
प्रेम के जादू ने
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प्रेम के जादू ने

रशीद अहमद शेख 'रशीद' इंदौर म.प्र. ******************** प्रेम के जादू ने निष्ठुर काल के क्रम को छला है। प्रकृति विस्मित हुई है आज गत कल में ढला है। कल्पना के कक्ष में संभव हुआ है प्रिय मिलन, दृश्य आलोकित हुए हैं स्मृति-दीपक जला है। बांटते सद्भावना भी, प्यार भी। बदलते संसार का व्यवहार भी। बनाते पुल,ध्वंस्त करते भित्तियाँ, साधुओं से कम नहीं त्यौहार भी। जो जीत सके न उर अरि का वह जीत नहीं। जो मोह न ले मन मानव का वह गीत नहीं। है प्रीत वही जिसमें दो मन हों एक मगर, जिसका आकर्षण हो शरीर वह प्रीत नहीं। दिशा-दिशा में बढ़ रहा अब अपार अलगाव। घृणा-बाढ़ में घिर रही सद्भावों की नाव। प्रेम-कूल से आ रहा सतत् यही संदेश- "विश्व-शांति सूत्र है सर्व धर्म समभाव।" स्थगित संघर्ष कर सद्भावना स्वीकार कर। सृजन स्वप्नों को सतत् संसार में साकार कर। घृणा के आधार पर संभव नहीं हल ऐ मनुज, है धरा परिवारवत तू प्रेम का वि...
पथ और पथिक
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पथ और पथिक

रशीद अहमद शेख 'रशीद' इंदौर म.प्र. ******************** जीवन पथ पर दिशा-दिशा पग-पग उलझन है। कैसे कोई चयन करे मग-मग उलझन है। ढल जाता है हलाभिलाषा में ही जीवन, संतों ने उपदेश दिया है, "जग उलझन है।" जो शक्ति ईश ने दी है उसे निवेश करें। परोपकार की जग में मिसाल पेश करें। न इन्तज़ार करें अब नहीं निहारें राह, बढा़एं अपने क़दम आप श्रीगणेश करें। कोई पैदल है, सवार कोई वाहन में! कोई आबादी में तो कोई कानन में! जन्म-मरण के मध्य यात्रा है अनिवार्य, हर मानव ही यायावर है इस जीवन में! वही बढ़ते हैं जो गंतव्य को पहचानते हैं। पूर्ण संकल्प वही करते हैं जो ठानते हैं। यूं तो आती हैं डगर में अनेक बाधाएँ, जिनमें साहस है, कभी हार नहीं मानते हैं। . परिचय - साहित्यिक उपनाम ~ ‘रशीद’ जन्मतिथि~ ०१/०४/१९५१ जन्म स्थान ~ महू ज़िला इन्दौर (म•प्र•) भाषा ज्ञान ~ हिन्दी, अंग्रेज़ी, उर्दू, संस्कृत शिक्षा ~ एम• ए• (हिन्दी और...
हिन्दी की कविता का अवतार
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हिन्दी की कविता का अवतार

शिवम यादव ''आशा'' (कानपुर) ******************** ये तो हिन्दी की कविता का अवतार है दिल के दर्दों का ये तो उपचार है लिखते-लिखते तो हम बन गए हैं कवि प्यार से लोग पढ़ते ये उपकार है ढलते ही शाम के रात आ जाएगी तुम आ जाओगे प्यास बुझ जाएगी ये तो सफ़र हैं कहाँ तक ले जाएंगे जिन्दगी क्या है तब समझ आयेगी ऐसे ताँका झाँका नहीं कीजिए जिन्दगी को खुशी से जी लीजिए आज हैं हम यहाँ कल कहाँ जाएंगे आप खुद से जरा ये सवाल कीजिए . लेखक परिचय :-  आपका नाम शिवम यादव रामप्रसाद सिहं ''आशा'' है इनका जन्म ७ जुलाई सन् १९९८ को उत्तर प्रदेश के कानपुर देहात ग्राम अन्तापुर में हुआ था पढ़ाई के शुरूआत से ही लेखन प्रिय है, आप कवि, लेखक, ग़ज़लकार व गीतकार हैं, अपनी लेखनी में दमखम रखता हूँ !! अपनी व माँ सरस्वती को नमन करता हूँ !! काव्य संग्रह :- ''राहों हवाओं में मन" आप भ...
शिक्षक पर मुक्तक
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शिक्षक पर मुक्तक

******************************* रचयिता : रशीद अहमद शेख 'रशीद' सृष्टि के सारे उत्सव शिक्षक होते हैं! प्रकृति के विस्तृत वैभव शिक्षक होते हैं! जीवन शाला में अनंत शिक्षक हैं किन्तु, कभी-कभी अपने अनुभव शिक्षक होते हैं! युगों-युगों से करता है वह ज्ञान-दान जग में अविराम! चरण कोई छूता है उसके कोई करता उसे सलाम! धर्म-जाति, भूगोल से परे उसका शुभ इतिहास, गुरूदेव,शिक्षक,अध्यापक,व्याख्याता उसके उपनाम। हितकारी अपरिमित गुणों का सुखदाई भंडार है शिक्षक! ज्ञान दीप है, सकारात्मक अनुभव का संसार है शिक्षक! प्रमुख परामर्श दाता, पंडित, पारंगत, निज विषय प्रवीण, राष्ट्ररूपी उच्चतम दुर्ग का अविचल दृढ़ आधार है शिक्षक! लेखक परिचय :-  नाम ~ रशीद अहमद शेख साहित्यिक उपनाम ~ ‘रशीद’ जन्मतिथि~ ०१/०४/१९५१ जन्म स्थान ~ महू ज़िला इन्दौर (म•प्र•) भाषा ज्ञान ~ हिन्दी, अंग्रेज़ी, उर्दू, संस्कृत शिक्षा ~ एम• ए• (हिन्दी और अ...
तुम पर मरा हूं
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तुम पर मरा हूं

=========================== रचयिता : प्रेम प्रकाश चौबे "प्रेम" डराया किसी को न खुद मैं डरा हूं । मौसम गरम है, मैं फिर भी हरा हूं । मुझ को समझते रहे लोग जिंदा, तुम्हें तो पता है कि तुम पर मरा हूं । लेखक परिचय :  नाम - प्रेम प्रकाश चौबे साहित्यिक उपनाम - "प्रेम" पिता का नाम - स्व. श्री बृज भूषण चौबे जन्म -  ४ अक्टूबर १९६४ जन्म स्थान - कुरवाई जिला विदिशा म.प्र. शिक्षा - एम.ए. (संस्कृत) बी.यु., भोपाल प्रकाशित पुस्तकें - १ -"पूछा बिटिया ने" आस्था प्रकाशन, भोपाल  २ - "ढाई आखर प्रेम के" रजनी  प्रकाशन, दिल्ली से अन्य प्रकाशन - अक्षर शिल्पी, झुनझुना, समग्र दृष्टि, बुंदेली बसन्त, अभिनव प्रयास, समाज कल्याण व मकरन्द आदि अनेक  पाक्षिक, मासिक, त्रैमासिक पत्रिकाओं में कविता, कहानी, व्यंग्य व बुंदेली ग़ज़लों का प्रकाशन। प्रसारण - आकाशवाणी व दूरदर्शन भोपाल से कविताओं व बुंदेली ग़ज़लों का प्रसारण। ...
मुरलीधर पर मुक्तक
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मुरलीधर पर मुक्तक

=========================== रचयिता : रशीद अहमद शेख 'रशीद' ब्रज, बाबा, बलराम, यशोदा मैया की। राधा, गोपी, ग्वाल, बाँसुरी, गैया की। याद आती है वृन्दावन की, यमुना की, चर्चा जब चलती है कृष्ण-कन्हैया की। कन्हैया मीरा के प्रियतम हो गए। मोह सारे जगत के कम हो गए। पराजित कठिनाइयाँ सब हो गईं, विषम पथ संसार के सम हो गए। वर पाया जब मनमोहन यदुवंशी से। हुए प्रसारित स्वर सुन्दर तब वंशी से। खड़ा रह गया साश्चर्य कानन में बांस, प्रकट हुई जब सरगम उसके अंशी से। ग्राम, क़स्बा, नगर, पुर अथवा पुरी। सर्वकालिक सतत् वह स्वर माधुरी। क्यों न हो संसार में उसका महत्व, मुरलीधर की मुँह लगी है बांसुरी।   लेखक परिचय :-  नाम ~ रशीद अहमद शेख साहित्यिक उपनाम ~ ‘रशीद’ जन्मतिथि~ ०१/०४/१९५१ जन्म स्थान ~ महू ज़िला इन्दौर (म•प्र•) भाषा ज्ञान ~ हिन्दी, अंग्रेज़ी, उर्दू, संस्कृत शिक्षा ~ एम• ए• (हिन्दी और अंग्रेज़ी साहित्...
आज़ादी पर मुक्तक
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आज़ादी पर मुक्तक

=========================== रचयिता : रशीद अहमद शेख युगों-युगों तक ज़ुल्म किया बर्बादी ने। सहा बहुत कुछ भारत की आबादी ने। आ पंहुचा पन्द्रह अगस्त सन् सैंतालीस, तब अपना आशीष दिया आज़ादी ने। ये ज़मीं आज़ाद है अब ये गगन आज़ाद है। हम सभी आज़ाद हैं, अपना चमन आज़ाद है। गुल भी अब आज़ाद है, बुलबुल भी अब आज़ाद है, बाग़बां आज़ाद है, अपना चमन आज़ाद है। धरा अधिक स्वतंत्र अब, गगन अधिक स्वतंत्र है। स्वतंत्र पथ हुए सभी, पथिक-पथिक स्वतंत्र है। स्वतंत्र हैं रहन-सहन, कथन,चलन, निजीकरण, स्वतंत्र राष्ट्र में प्रत्येक नागरिक स्वतंत्र है। लेखक परिचय :-  नाम ~ रशीद अहमद शेख साहित्यिक उपनाम ~ ‘रशीद’ जन्मतिथि~ ०१/०४/१९५१ जन्म स्थान ~ महू ज़िला इन्दौर (म•प्र•) भाषा ज्ञान ~ हिन्दी, अंग्रेज़ी, उर्दू, संस्कृत शिक्षा ~ एम• ए• (हिन्दी और अंग्रेज़ी साहित्य), बी• एससी•, बी• एड•, एलएल•बी•, साहित्य रत्न, कोविद कार्यक्षेत्...
ग्रीष्म के मुक्तक
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ग्रीष्म के मुक्तक

ग्रीष्म के मुक्तक =============================================== रचयिता : रशीद अहमद शेख धूप लगे अब तो अंगार! पथ खोजें सब छायादार! तापमान बढ़ता जाए, पारा चढ़ता है प्रतिवार! त्रस्त चेतन हैं तप रहे हैं जड़! अनेक बाग़ भी गए हैं उजड़! बस्तियां गर्म हो रहीं कितनी, धूप में सिंक रहे हैं अब पापड़! है शेष जून अभी तो हुआ है ग्रीष्म-प्रवेश! प्रत्येक सूर्य-किरण में है तापमान-निवेश! कहीं है लू की लपट तो कहीं अनल- वर्षा, झुलस रहें हैं ज़िले सब झुलस रहा है प्रदेश!   लेखक परिचय :-  नाम ~ रशीद अहमद शेख साहित्यिक उपनाम ~ ‘रशीद’ जन्मतिथि~ ०१/०४/१९५१ जन्म स्थान ~ महू ज़िला इन्दौर (म•प्र•) भाषा ज्ञान ~ हिन्दी, अंग्रेज़ी, उर्दू, संस्कृत शिक्षा ~ एम• ए• (हिन्दी और अंग्रेज़ी साहित्य), बी• एससी•, बी• एड•, एलएल•बी•, साहित्य रत्न, कोविद कार्यक्षेत्र ~ सेवानिवृत प्राचार्य सामाजिक गतिविध...