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मुक्तक

देवी-वंदना
मुक्तक

देवी-वंदना

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** अम्बे मैया करूँ वंदना, शांति-सुखों का वर दे। भटक रहा मैं जाने कब से, मुझको अब तू दर दे। जीवन में अब खुशहाली हो, हरियाली हो, मंगल हो, मैं बन जाऊँ सच्चा मानव, मेरे सिर कर धर दे।। सद् विवेक अब रहे नित्य ही, जीवन सुमन खिलें। कभी न विपदा आये मुझ पर, कंटक नहीं मिलें। मैं तो तेरा लाल लाडला, अम्बे करो दया तुम, पर्वत जो भी हैं राहों में, वे सब आज हिलें।। सुखद चेतना के पल पाऊँ, कभी नहीं क्षय हो। हे अम्बे माँ ! सच तू देना, करुणा की लय हो। कभी कपट मैं ना लिपटूँ मैं, लोभ से दूरी पाऊँ, सदा मनुजता के पथ जाऊँ, माँ तेरी जय हो।। करूँ कामना शुभ की नित ही, मंगल को सहलाऊँ। गरिमा से माता में रह लूँ, सब पर प्यार लुटाऊँ। इस जग में अब तो हे माता!, तेरा ही शासन है, मन की पावनता से महकूँ, गंगा रोज़ नहाऊँ।। मानव दीन हो गया म...
पुरुष
मुक्तक

पुरुष

सरला मेहता इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** विधा - मुक्तक मात्रा भार - ३० घर के हर सदस्य के प्रति, कर्तव्य सारे निभाता है पसीना दिन-रात बहाता व अधिकार भूल जाता है जो आधार स्थम्भ है परिवाररूपी इक इमारत का सबकी खुशी में ही खुश रहता वह पुरुष कहलाता है घिसी स्लीपरें पहनकर, सबको ब्रांडेड शूज़ दिलाएँ तन ढाँके उतरन-पुतरन से, बच्चों को नये सिलाए तन-मन-धन सब परिवार पर अर्पण कर देता है पुरुष करके रात पाली थककर, सबकी दिवाली मनवाए परिचय : सरला मेहता निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताए...
अवध में राम आए हैं
मुक्तक

अवध में राम आए हैं

विजय गुप्ता "मुन्ना" दुर्ग (छत्तीसगढ़) ******************** अदभुत दिवाली रंग जो हम त्रेता युग पाए हैं। लाखों दीप ज्योति गगमग, अवध में राम आए हैं। ढोल नगाड़े नारों से, राम लोक शोभा जुलूस, सनातन संस्कृति साक्षी, जन मानस ही लाए हैं। पूज्य राम सबूत मांग, अनर्गल संवाद ढाया। तथ्य विहीन संवाद को, यथा समय जवाब लाया। ब्रम्हांड में बुराई का, परिणाम मिलता जरूर, सनातन को झूठ कहकर, पश्चाताप तक ना भाया। हिंदू तीज त्योहार जो, सदा फिजूल बताए हैं। सिद्ध हुआ वे रावण मन, कलयुग में भी छाए हैं। अदालत फैसले तक जो, पांच सदी भी गुजर गई, अतः सत्यापित खुद होता, तम को सदा हराए हैं। नकारने वाले कहते, राम पर हक सभी का है। प्रभु श्री राम दयालु भी, किस्सा मानस ग्रंथ का है। शरणागत पर करें कृपा, सीख यदि वांछित लेंगे, छल कपट विरोध में शक्ति, सत्ता रण प्रपंच का है। राम नाम की गूंज सुनी, दिव्य भव्य ...
मुक्तक
मुक्तक

मुक्तक

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** देशभक्ति के मुक्तक ================ (१) भारत माँ का लाल हूँ, दे सकता मैं जान। गाता हूँ मन-प्राण से, मैं इसका यशगान। आर्यभूमि जगमग धरा, बाँट रही उजियार, इसकी गरिमा, शान पर, मैं हर पल क़ुर्बान।। (२) भगतसिंह, आज़ाद का, अमर सदा बलिदान। ऐसे पूतों ने रखी, भारत माँ की आन। जो भारत का कर गए, सचमुच चोखा भाग्य, ऐसे वीरों ने दिया, हमको नवल विहान।। (३) जय-जय भारत देश हो, बढ़े तुम्हारा मान। सारे जग में श्रेष्ठ है, कदम-कदम उत्थान। धर्म, नीति, शिक्षा प्रखर, बाँटा सबको ज्ञान, भारत की अभिवंदना, दमके सूर्य समान।। (४) तीन रंग की चूनरी, जननी की पहचान। हिमगिरि कहता है खड़ा, मैं हूँ तेरी शान। केसरिया बाना पहन, खड़े हज़ारों वीर, अधरों पर जयहिंद है, जन-गण-मन का गान।। (५) अमर जवाँ इस देश के, भरते हैं हुंकार। आया जो इस ओर य...
बेड़ियां
मुक्तक

बेड़ियां

जय चौहान देपालपुर, इंदौर (मध्य प्रदेश) ********************   चित्र देखो कविता लिखो प्रतियोगिता हेतु प्राप्त रचना तय समय के बाद प्राप्त होने से प्रतियोगिता में सम्मिलित नहीं हो सकी ...अतः क्षमा ....🙏🏻 उत्कृष्ट रचना हेतु रचनाकार को शुभकामनाएं ...🙏🏻💐💐💐 परम्परा की बेड़ियों में जकड़ी हुई बेटियाँ सदियों से ज़ुल्म सहती रही है बेटियांँ यह कैसा कुकर्म फैला समाज में युगों युगों से अर्थी पर सजती रही बेटियांँ। बंधन बांधकर पहले अधिकार बनाया, जीवन भर फिर गुलाम बेटियों को बनाया परम्परा रिवाज के नाम पर चुप रखा घर को कोने में सिसकती रही बेटियांँ। ऐसे रिवाज परम्परा बनाई, आँखो में आँसू फिर भी मुस्कुराई मायके और ससुराल में अपना घर ढुंढती पर दो दो घर फिर भी बेटियांँ पराई। कभी दहेज के नाम पर जलाई बेटियांँ कभी इज्जत के नाम पर भेंट चढ़ी बेटियांँ तोड़ दो यह गुलामी की बेड़...
राम नवमी
भजन, मुक्तक

राम नवमी

प्रेम नारायण मेहरोत्रा जानकीपुरम (लखनऊ) ******************** प्रभू राम के अवतरण का दिवस है, था उद्देश्य क्या ये जगत को बताओ। प्रभू नाम पावन है गंगा के जल सा, जपो इसको और जग से मुक्ति को पाओ। प्रभु राम के... प्रभू ने मनु को वचन ये दिया था, मैं बन पुत्र आऊंगा घर मे तुम्हारे। धरा को प्रभू ने वचन ये दिया था, हारूँगा तेरा भार राक्षस संघारे। वचन को निभाकर दिया ये संदेसा, वचन जो दिया है उसे तुम निभाओ। प्रभू राम के ... ऋषि श्राप को मान देने के हेतु, रची लीला, सीता हरण थे कराये। विरह में बिलखते फिरे वो बनो में, तो हनुमंत ले जाके स्वामी मिलाये। दिया वचन उसको तेरा दुःख हारूँगा, और तुम खोज सीता को मैत्री निभाओ। प्रभू राम के... प्रभुनाम उच्चार हनुमत गए तो, हरी माँ की पीड़ा, और लंका जलाये। चले रामजी साथ बनार और भालू, थे नल नील लिख "राम" सेतु बनाये। दिए कई अवसर पर दंभी ...
समय बहुत ही मूल्यवान है
मुक्तक

समय बहुत ही मूल्यवान है

प्रेम नारायण मेहरोत्रा जानकीपुरम (लखनऊ) ******************** समय बहुत ही मूल्यवान है, इसे पकड़ प्रभु सुमिरन करले। "मानस" है जीवन का दर्शन, नित्य प्रातः कुछ इसको पढ़ले। समय बहुत ही........ राम चरित लिखने के मित ही, तुलसीदास का जन्म हुआ था। पर सुन्दर पत्नी पा करके, उन्हें कार्य ये भूल गया था। पर रत्ना ने याद दिलाया, प्रभु चरणों मे प्रीत बढ़ा ले। समय बहुत ही ......... कामुक मन को ठेस लगी तो, प्रभू कृपा से भक्त जग गया। नहीं पलट देखा रत्ना को, प्रभु चरणों की ओर बढ़ गया। हनुमत ने तब याद दिलाया, बाल्मीकि का वचन निभाले। समय बहुत ही ......... मुक्ति हेतु मनाव तन पाया, ये ईश्वर की करुण कृपा है। तरे अजामिल, गणिका से भी, जब उनने प्रभु नाम जपा है। जितनी साँसे शेष बची हैं, उनको प्रभु सुमिरन में लगाले। समय बहुत ही .......... परिचय :- प्रेम नारायण मेहरोत्रा निवास : जानक...
कहो कैसे हुआ
मुक्तक

कहो कैसे हुआ

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** कहो कैसे हुआ यह सब, मनुज का दिल ज़हर देखो। हुए हैं क्रूर वे कितने, ज़रा तो आचरण लेखो। बचाना अब तो हमको बेटियाँ, यह ही शपथ लें हम, करें सब काम अब चोखा व्यर्थ नारे नहीं फे़को।। गर्भ में मारते क्योंकर, जन्म लेने तो उनको। वे हैं जननी, बहन-पत्नी, शिकंजे में कसा जिनको। नहीं पर ज़ुल्म का यह दौर, आगे चल सकेगा अब, ज़रा समझाओ, अब बदलो, अपावनता भरे मन को।। सुनो हर हाल में, अब तो बचाना बेटियां हमको। पुत्र ही होता है बेहतर, बदलना आज मौसम को। उठो नामर्द सारे चेतना कुछ तो जगा लो अब, बदलना ही बदलना है, मलिनता, दर्द और ग़म को।। न मारो गर्भ में कोमल कली को, फूल बनने दो। महकने दो, चहकने दो, सुवासित होके खिलने दो। न शोषण बेटियों का हो, यही बस आज हो जाए, जहाँ की हर खुशी, आनंद, बेटी को तो मिलने दो।। परि...
मिलने के बाद
मुक्तक

मिलने के बाद

मालती खलतकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** मिलने के बाद सब बेगाने हो जाते हैं आने के बाद सावन के, सब झूलों में खो जाते हैं सुनहरी धूप का आंचल हर कोई ओढ़ लेता है कठिन कंटक में कोई चलना नहीं चाहता हर कोई फूलों की महक के दीवाने हो जाते हैं। हालत की उलझनों में उलझे हुए कौन तसल्ली देता है किसे सब अपनों में अपने है बेगानो का सिर्फ खुला आसमा होता है परिचय :- इंदौर निवासी मालती खलतकर आयु ६८ वर्ष है आपने हिंदी समाजशास्श्र में एम ए एल एलबी किया है आप हिंदी में कविता कहानी लेख गजल आदि लिखती हैं व आपकी रचनाएँ विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं मैं प्रकाशित होते हैं आप सन १९६८ से इंदौर के लेखक संघ रचना संघ से जुड़ी आप शासकीय सेवा से निमृत हैं पीछेले ३० वर्षों से धार के कवियों के साथ शिरकत करती रही आकाशवाणी इंदौर से भी रचनाएं प्रसारित होती रहती हैं व वर्तमान में इंदौर लेखि...
संबोधन बदले
मुक्तक

संबोधन बदले

मालती खलतकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** ना कोई संबोधन बदले ना बदली मेरी भाषा। बदल गई चेंजिंग कर तेरे मन में मेरी परिभाषा। बदल गए संदर्भ जगत के बादली बरखा की बहली बही बयार बन झंझावात पर मेरे मन की झंकार ना बदली। पीर जगत की ओढली मैंने किसी शुन्य तरुवर के नीचे भावों के उद्योग वही है सोपानोपरचढ़ते चढ़ते। परिचय :- इंदौर निवासी मालती खलतकर आयु ६८ वर्ष है आपने हिंदी समाजशास्श्र में एम ए एल एलबी किया है आप हिंदी में कविता कहानी लेख गजल आदि लिखती हैं व आपकी रचनाएँ विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं मैं प्रकाशित होते हैं आप सन १९६८ से इंदौर के लेखक संघ रचना संघ से जुड़ी आप शासकीय सेवा से निमृत हैं पीछेले ३० वर्षों से धार के कवियों के साथ शिरकत करती रही आकाशवाणी इंदौर से भी रचनाएं प्रसारित होती रहती हैं व वर्तमान में इंदौर लेखिका संघ से जुड़ी हैं। घोषणा पत्र : मैं यह प्...
खुला आसमां
मुक्तक

खुला आसमां

मालती खलतकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** मिलने के बाद सब बेगाने हो जाते हैं आने के बाद सावन के, सब झूलों में खो जाते हैं सुनहरी धूप का आंचल हर कोई ओढ़ लेता है कठिन कंटक में कोई चलना नहीं चाहता हर कोई फूलों की महक के दीवाने हो जाते हैं। हालत की उलझनों में उलझे हुए कौन तसल्ली देता है किसे सब अपनों में अपने है बेगानो का सिर्फ खुला आसमां होता है परिचय :- इंदौर निवासी मालती खलतकर आयु ६८ वर्ष है आपने हिंदी समाजशास्श्र में एम ए एल एलबी किया है आप हिंदी में कविता कहानी लेख गजल आदि लिखती हैं व आपकी रचनाएँ विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं मैं प्रकाशित होते हैं आप सन १९६८ से इंदौर के लेखक संघ रचना संघ से जुड़ी आप शासकीय सेवा से निमृत हैं पीछेले ३० वर्षों से धार के कवियों के साथ शिरकत करती रही आकाशवाणी इंदौर से भी रचनाएं प्रसारित होती रहती हैं व वर्तमान में इंदौर लेखिका...
राष्ट्रीयता के मुक्तक
मुक्तक

राष्ट्रीयता के मुक्तक

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** हिन्दू, मुस्लिम एक हैं, सभी एक इंसान। सिक्ख और ईसाईयत, सब में इक भगवान। जब सारे मिलकर रहें, तो गुलशन आबाद, देश प्रगति के पूर्ण तब, होंगे सब अरमान।। खेतों में जब श्रम करें, हलधर प्रखर किसान। सीमाओं पर हों डँटे, सारे वीर जवान। तभी देश आगे बढ़े, जीते हर इक जंग, तभी बनेगा वास्तव, भारत देश महान।। भारत माँ का लाल हूँ, दे सकता मैं जान। गाता हूँ मन-प्राण से, मैं इसका यशगान। आर्यभूमि जगमग धरा, बाँट रही उजियार, इसकी गरिमा, शान पर, मैं हर पल क़ुर्बान।। भगतसिंह, आज़ाद का, अमर सदा बलिदान। ऐसे पूतों ने रखी, भारत माँ की आन। जो भारत का कर गए, सचमुच चोखा भाग्य, ऐसे वीरों ने दिया, हमको नवल विहान।। जय-जय भारत देश हो, बढ़े तुम्हारा मान। सारे जग में श्रेष्ठ है, कदम-कदम उत्थान। धर्म, नीति, शिक्षा प्रखर, बाँटा सबको ...
बुजुर्गो की दशा
मुक्तक

बुजुर्गो की दशा

रामसाय श्रीवास "राम" किरारी बाराद्वार (छत्तीसगढ़) ******************** मुक्तक बुजुर्गो की दशा देखो, हुई कैसी लाचारी है। जीवन के इस अवस्था में, परेशानी भी भारी है ।। बड़े मजबूर रहते हैं, ये कितने कष्ट सहते हैं। स्वंय का बोझ ढोते हैं, मगर हिम्मत न हारी है।। सताता है अकेला पन, मगर रहते अकेले हैं। जीवन में जो भी गम आया, सभी हंस कर ये झेले हैं।। बड़े खुद्दार होते हैं, भले छिपकर ये रोते हैं। नहीं कोई काम है आता, यही दुनिया के मेले हैं।। खपाई उम्र ये पूरी, सदा जिन पर हैं ये अपने। सदा करते रहे पूरे, उन्ही लोगों के ये सपने।। नहीं अब पास वो इनके, रहम पर जो रहे इनके। चलन कैसा है अब आया, पराए हो गए अपने।। परिचय :- रामसाय श्रीवास "राम" निवासी : किरारी बाराद्वार, त.- सक्ती, जिला- जांजगीर चाम्पा (छत्तीसगढ़) रूचि : गीत, कविता इत्यादि लेखन घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित क...
विधाता छंद
छंद, मुक्तक

विधाता छंद

रामसाय श्रीवास "राम" किरारी बाराद्वार (छत्तीसगढ़) ******************** मुक्तक विधाता छंद गजानन बुद्धि के दाता, उमा शिव के बड़े प्यारे। प्रथम हो पूज्य इस जग में, तुम्हे पूजे जगत सारे।। दरश को मैं चला आया, सुमन भर भाव का लाया। चरण में है नमन अर्पण, इसे अब आप स्वीकारें।। चतुर्थी है बड़ा पावन, तिथि भादों की शुभकारी। लिए अवतार हैं इस दिन, छवि सुंदर है मनुहारी।। बजे कैलाश में बाजे, मनोहर रूप सब साजे। खुशी की आज वेला है, मनाते लोग हैं भारी।। गगन से देवगण सारे, देखकर खूब हर्षाऍ। दरश की लालसा मन में, लिए कैलाश में आऍ।। गणों के हो तुम्हीं स्वामी, प्रभु तुम हो अंतर्यामी। विनय सुन लो हमारी भी, तुम्हारे द्वार पर आऍ।। परिचय :- रामसाय श्रीवास "राम" निवासी : किरारी बाराद्वार, त.- सक्ती, जिला- जांजगीर चाम्पा (छत्तीसगढ़) रूचि : गीत, कविता इत्यादि लेखन घोषणा पत्र : मैं य...
युद्ध
मुक्तक

युद्ध

रामसाय श्रीवास "राम" किरारी बाराद्वार (छत्तीसगढ़) ********************  ( १ ) किसी का हो नहीं सकता, भलाई युद्ध में प्यारे। कोई है हारता इसमें, तो कोई जीत कर हारे।। कहीं इंसानियत रोती, बड़ी नुकसान भी होती। सभी कुछ जानकार के भी, बने अन्जान हैं सारे।। ( २ ) तबाही संग लाती है, विभिषिका यह डराती है। जो देखा यह नजारा है, उसे कब नींद आती है।। कोई ऑसू बहाता है, तो कोई मुस्कराता है। इन्हें कब अक्ल आएगी, यही चिंता सताती है।। ( ३ ) बड़े हैं देश दुनिया में, भरा अभिमान है उनमें। वही विस्तार वादी हैं, नहीं संतोष है उनमें।। उन्हीं के पास है साधन, यही सबसे बड़ा कारण। किसी का हो भला ऐसा, समझदारी नहीं उनमें।। ( ४ ) समझ कमजोर औरों को, करो ना युद्ध मनमानी। निजी स्वारथ में आकर तुम, करो ना काम बेमानी।। कहे कवि राम बस इतना, सभी को मानलो अपना। मिला अनमोल है जीवन, करो ना ब्यर्थ नादानी।। परि...
याद मेरी उसने जब
मुक्तक

याद मेरी उसने जब

सुखप्रीत सिंह "सुखी" शाहजहांपुर (उत्तर प्रदेश) ******************** १) याद मेरी उसने जब भी दिल में पिरोई होगी दिन की तो बात ही नहीं रातों में न सोई होगी वो लिहाफ भी गवाह होगा उसकी बेबसी का जब दबा कर चेहरा अपना तकिये से रोई होगी २) जितना खूबसूरत तेरा इंतज़ार है उतना ही खूबसूरत मेरा प्यार है बहारें तो है हर तरफ फिज़ाओं में बहारों से भी खूबसूरत मेरा यार है ३) मेरे दिल में प्यार का पैगाम रहने दो उसके ख्यालों की हंसी शाम रहने दो दवा जिंदगी की मुझे और मत दो यारों मेरे हाथों में छलकता जा़म रहने दो ४) जिंदगी फिर क्यों अजीब सी लगती है किसी अजनबी के करीब सी लगती है अमीर तो बहुत हूं दिल-ऐ-दरबार से मैं फिर क्यों तेरे बिना गरीब सी लगती है परिचय :-  सुखप्रीत सिंह "सुखी" निवासी : शाहजहांपुर (उत्तर प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, ...
जब तुम आये थे
मुक्तक

जब तुम आये थे

सुखप्रीत सिंह "सुखी" शाहजहांपुर (उत्तर प्रदेश) ******************** तूफ़ान थमने लगे थे, जब तुम आये थे अरमान जगने लगे थे, जब तुम आये थे रुह भी जिस्म से निकलने को बेचैन थी हाथ सज़दे में उठने लगे थे, जब तुम आये थे परिचय :-  सुखप्रीत सिंह "सुखी" निवासी : शाहजहांपुर (उत्तर प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.com पर अणु डाक (मेल) कीजिये, अणु डाक करने के बाद हमे हमारे नंबर ९८२७३ ६०३६० पर सूचित अवश्य करें …🙏🏻 आपको ...
“सुन्दरकाण्ड के सार” के सृजन की पृष्ठ भूमि
मुक्तक

“सुन्दरकाण्ड के सार” के सृजन की पृष्ठ भूमि

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सकारात्मक
मुक्तक

सकारात्मक

सुभाष बालकृष्ण सप्रे भोपाल (मध्य प्रदेश) ******************** "सकारात्मक खबरों की तू बात कर, हौसलों को, बढाने की, तू बात कर, बांट सके दर्द को, कुछ काम, कर ऐसा, आसूंओं को पोछने की ही तू बात कर." "लोग करते न कभी हमसे आंखे चार, पंछी भी नहीं करते अब हमसे दुलार, खुरदरी काया बन गई पहचान हमारी, मीठे फलों की सौगात, हम देते हजार." परिचय :- सुभाष बालकृष्ण सप्रे शिक्षा :- एम॰कॉम, सी.ए.आई.आई.बी, पार्ट वन प्रकाशित कृतियां :- लघु कथायें, कहानियां, मुक्तक, कविता, व्यंग लेख, आदि हिन्दी एवं, मराठी दोनों भाषा की पत्रीकाओं में, तथा, फेस बूक के अन्य हिन्दी ग्रूप्स में प्रकाशित, दोहे, मुक्तक लोक की, तन दोहा, मन मुक्तिका (दोहा-मुक्तक संकलन) में प्रकाशित, ३ गीत॰ मुक्तक लोक व्दारा, प्रकाशित पुस्तक गीत सिंदुरी हुये (गीत सँकलन) मेँ प्रकाशित हुये हैँ. संप्रति :- भारतीय स्टेट बैंक, से सेवा निवृत्त अधिकारी निवासी...
निराला के प्रति चार मुक्तक
मुक्तक

निराला के प्रति चार मुक्तक

अख्तर अली शाह "अनन्त" नीमच ******************** एक नई पहचान बनाई, नई कविता दे कर के। नश्वर जग में अमर हो गए, सदा निराला यूं मरके।। कविता उनकी सीधे-सीधे, दर्दों से संवाद रही। उनकी आंखों में आंसू थे, जिनके दिल थे पत्थर के।। इंसानों की खिदमत में वे, रहे सर्वदा कब हारे। झुके गर्विले पर्वत उनके, आगे देखें हैं सारे।। वही किया जो सोचा मन में, कथनी करनी एक रही। नहीं निराला बने भूलकर, मानवता के हत्यारे।। दान नहीं स्वीकार किया है, लड़कर के अधिकार लिया। वही किया है इस दुनिया में, जब-जब जो-जो धार लिया।। सत्य धर्म के रहे निकट वे, महाप्राण मानवतावादी। इसीलिए जनता का दिल से, प्यार "अनंत" अपार लिया।। सूर्यकांत निराला के जो, व्यवहारों का दर्शन भी। सफल हुए करने में लोगों, लाए है परिवर्तन भी।। भरते थे वे खाली झोली, "अनंत," करते हमदर्दी। उनकी देखा देखी करलो, सदा करें मन नर्तन भी।। परिचय :- अख्त...
पैसे मांगलो तो…
कविता, मुक्तक

पैसे मांगलो तो…

दामोदर विरमाल महू - इंदौर (मध्यप्रदेश) ******************** विषय: वर्तमान परिदृश्य (कोरोना) विधा: कविता/मुक्तक हर किसी को रोटी की अहमियत सिखाने लगे है लोग। अबतो चलते रस्ते औकात दिखाने लगे है लोग। जिसने कभी पैसों के अलावा किसी को नही पूजा, अबतो नास्तिक होकर भी मंदिर जाने लगे है लोग। जो जाया करते थे टाई लगाकर रोज़ दफ़्तर को, अब वही सब्जी का ठेला लगाने लगे है लोग। आया अब कोरोना ऐसा सबक सिखाने कि, अब घर मे ही बनी चीज़े खाने लगे है लोग। कोरोना में कमाई की हदें भी पार की जिसनें, अब वही एक एक करके ऊपर जाने लगे है लोग। पहले जो कहते थे कि मरने की फुर्सत भी नही है, अब वही फुर्सत में ज़हर खाने लगे है लोग। जो उड़ाया करते थे कभी लाखों किसी महफ़िल में, अब वही पैसा पाई पाई करके बचाने लगे है लोग। जो छाया है आजकल हमारे बीच तंगी का दौर, पैसे मांगलो तो हालत खराब बताने लगे है लोग। परिचय :- ३१ वर्षीय दा...
अधिकार, मुक्ति, सुरक्षा
मुक्तक

अधिकार, मुक्ति, सुरक्षा

प्रवीण त्रिपाठी नोएडा ******************** अधिकार बनाम कर्तव्य.. माँगते अधिकार निज कर्तव्य भूले हम सभी। एक कर से क्या बजी संसार में ताली कभी? देश में उन्नति तभी जब काम सब मिल कर करें। जब समाज न जागता हर दृष्टि से पिछड़े तभी।।1 मुक्ति... मुक्ति शब्द विचित्र है पर अर्थ इसके हैं कई। भाव के अनुरूप इसकी नित्य व्याख्या हो नई। मुक्ति तन को, मुक्ति मन को, सँग विचारों को मिले। सत्य जब जाना उसी पल नींद जैसे खुल गई।।2 सुरक्षा... नित सुरक्षा चक्र का पालन सभी मिल के करें। दूरियाँ हों देह में विस्मृत नहीं मन से करें। सावधानी रख हमेशा युद्ध हम यह जीत लें। *संगठित हो कर कॅरोना दूर इस ग्रह से करें।। . परिचय :- प्रवीण त्रिपाठी नोएडा आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रका...
मुक्ति शब्द
मुक्तक

मुक्ति शब्द

प्रवीण त्रिपाठी नोएडा ******************** अधिकार बनाम कर्तव्य.. माँगते अधिकार निज कर्तव्य भूले हम सभी। एक कर से क्या बजी संसार में ताली कभी? देश में उन्नति तभी जब काम सब मिल कर करें। जब समाज न जागता हर दृष्टि से पिछड़े तभी।।1 मुक्ति... मुक्ति शब्द विचित्र है पर अर्थ इसके हैं कई। भाव के अनुरूप इसकी नित्य व्याख्या हो नई। मुक्ति तन को, मुक्ति मन को, सँग विचारों को मिले। सत्य जब जाना उसी पल नींद जैसे खुल गई।।2 सुरक्षा... नित सुरक्षा चक्र का पालन सभी मिल के करें। दूरियाँ हों देह में विस्मृत नहीं मन से करें। सावधानी रख हमेशा युद्ध हम यह जीत लें। *संगठित हो कर कॅरोना दूर इस ग्रह से करें।। . परिचय :- प्रवीण त्रिपाठी नोएडा आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रका...
विषधर विषहीन श्रेष्ठ नहीं होता
मुक्तक

विषधर विषहीन श्रेष्ठ नहीं होता

भारत भूषण पाठक देवांश धौनी (झारखंड) ******************** मुक्तक लेखन का प्रयत्न वीर रस में कुल मात्रा भार १६ रखने का प्रयत्न विधान:-१,२ व ४थी पंक्ति समतुकान्त,३री अतुकान्त:- मुक्तक १:- विषधर विषहीन श्रेष्ठ नहीं होता। नखहीन भला क्या सिंह भी होता। रहे गरल जबतक शेष विषधर में। फुँफकार तभी तो वो डरा पाता। मुक्तक २ः- हे मेरी सुताओं विषधर बनो। नखयुक्त सिंह अब भयंकर बनो। सरलता अब यहाँ आवश्यक नहीं। महाभयंकर तुम प्रलयंकर बनो। मुक्तक४:- स्मरण रहे अब कृष्ण नहीं आते। पापियों से आज सभी भय खाते। आज पूजे जाएं शैतान यहाँ। देख व्यभिचार प्रभु आज शर्माते। मुक्तक५:- उठो चूड़ी छोड़ तुम कतार धरो। स्वयं का कष्ट आज तुम स्वयं हरो। हे वीर सुताओं तोड़ दो चुप्पी। वार सहो नहीं तुम अब वार करो। . परिचय :- भारत भूषण पाठक 'देवांश' लेखनी नाम - तुच्छ कवि 'भारत ' निवासी - ग्राम पो०-धौनी (शुम्भेश्वर नाथ) जिला द...
नवरात्र पर नौ मुक्तकों की माला
मुक्तक

नवरात्र पर नौ मुक्तकों की माला

प्रवीण त्रिपाठी नोएडा ******************** शैल पुत्री की कृपा संसार को अब चाहिये। मातु ममता से भरा सर हाथ अपने चाहिये। हम करें आराधना पूजा चरण में मन लगा। अब दया वरदान अंबे मातु से बस चाहिये।1 ब्रह्मचारिणि तव कृपा का दान सबको दीजिये। सर्वजन के सर्वदुख भवताप भी हर लीजिये। आप सम अतुलित तपस्या कामना पूरी करे। मानवी संताप का अब नाश जग से कीजिये।2 चंद्रघंटा विश्व की विपदा सकल हरदम हरें। तव अलौकिक रूप लख कर भाव नव दिल में भरें। दिव्यता अनुपम तुम्हारी इक नयी अनुभूति दे। दानवी हर कृत्य का माता शमन प्रतिपल करें।।3 मातु कूष्मांडा हमेशा झोलियाँ भरती रहें। भक्त संकट में पड़े उद्धार टाब करती रहें। सूर्य सम है कांति जिससे जगत में आलोक हो। नौ दिनों माता तुम्हारी चौकियाँ सजती रहें।।4 पूजते स्कंद माता को सदा कर जोड़ कर। जाप नौ दिन भक्त करते कार्य पीछे छोड़ कर। पूर्ण करती कामना जो भक्त निज मन में रखें। हर...