सुन कान्हा फागुन आयो
संगीता सूर्यप्रकाश मुरसेनिया
भोपाल (मध्यप्रदेश)
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सुन कान्हा फागुन आयो।
संग होरी त्यौहार लायो।
तू होरी पै मोय लाल, पीलो,
हरो, नीलो रंग पिचकारी।
भर-भर डारैगो।
हां! राधा फागुन आयो।
संग होरी त्यौहार लायो।
तू भी होरी पै मो पै लाल,
पीलो, हरो, नीलो रंग पिचकारी।
भर-भर डारैगी।
मैं और तू होरी रंगन।
तै संग खेलेंगे, एक-दूजे के।
नयन देखेंगे मैं तोरे नैनन में।
तू मोरे नैनन में प्रेम रंग देखेगो।
होरी ऐसी खेलेंगे ज्यो जल।
मध्य उछरे त्यों हमारो।
हिय प्रेम रंग होरी से गदगद।
होय जात उमंग संग हर्षित हो।
उर मयूर सौ नाचत अरू हम।
द्वौ ऐसी प्रेम रंग होरी खेले।
परिचय :- श्रीमती संगीता सूर्यप्रकाश मुरसेनिया
निवासी : भोपाल (मध्यप्रदेश)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।
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