हे! औघड़दानी
प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे
मंडला, (मध्य प्रदेश)
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औघड़दानी, हे त्रिपुरारी,
तुम भगवन् स्वमेव।
पशुपति हो तुम,
करुणा मूरत, हे देवों के देव।।
तुम फलदायी, सबके स्वामी,
तुम हो दयानिधान।
जीवन महके हर पल मेरा,
दो ऐसा वरदान।।
आदिपुरुष तुम, पूरणकर्ता,
शिव, शंकर महादेव।
नंदीश्वर तुम, एकलिंग तुम,
हो देवों के देव।।
तुम हो स्वामी,अंतर्यामी,
केशों में है गंगा।
ध्यान धरा जिसने भी स्वामी,
उसका मन हो चंगा।।
तुम अविनाशी, काम के हंता,
हर संकट हर लेव।
भोलेबाबा, करूं वंदना,
हे देवों के देव।।
उमासंग तुम हर पल शोभित,
अर्ध्दनारीश कहाते।
हो फक्खड़ तुम, भूत-प्रेत सँग,
नित शुभकर्म रचाते।।
परम संत तुम, ज्ञानी, तपसी,
नाव पार कर देव।
महाप्रलय ना लाना स्वामी,
हे देवों के देव।।
परिचय :- प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे
जन्म : २५-०९-१९६१
निवासी : मंडला, (मध्य प्रदेश)
शिक्ष...