Thursday, November 21राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर आपका स्वागत है... अभी सम्पर्क करें ९८२७३६०३६०

छंद

विध्वंकमाला छंद
छंद

विध्वंकमाला छंद

आचार्य नित्यानन्द वाजपेयी “उपमन्यु” फर्रूखाबाद (उत्तर प्रदेश) ******************** पानी बचाओ न फेंको बहाओ। मानो कहा आप हे! मित्र आओ।। पृथ्वी हमारी तभी ही बचेगी।। सातों अकूपाद धारे रहेगी।। रोपो नए वृक्ष प्यारे सखाओं। वर्षा करें मेघ न्यारे सखाओं।। पर्याप्त वर्षा से भूमि प्यारी। फूले फले हो नई पुष्प क्यारी।। मित्रों यही धर्म भी है हमारा। सच्चा सही कर्म भी है हमारा।। आओ उठो बाल वृद्धों युवाओं। व्याही कुवाँरी धरित्री सुताओं।। मैं आपको धर्म सच्चा बताऊँ। दो हाथ से वृक्ष बीसों लगाऊँ।। लो आपभी धर्म का मर्म पाओ। दो-चार-छः वृक्ष नए उगाओ।। नीरांजली तृप्त पृथ्वी बनेगी। वृक्षाम्बरी नृत्य न्यारा करेगी।। ऊर्जा धरा में है नीर लाता।। माँ मेदिनी को सुधा है पिलाता।। सौभाग्य से मानवी देह पाई। निष्णात है कर्म की कौशलाई।। क्या द्वंद क्यों आप नहीं बताते। आनंद क्यों 'नित्य' तु...
नैन बिंबित हैं
गीत, छंद

नैन बिंबित हैं

आचार्य डाॅ. वीरेन्द्र प्रताप सिंह 'भ्रमर' चित्रकूट धाम कर्वी, (उत्तर प्रदेश) ******************** छंद : मधुरागिनी छंद (वर्णिक) गीत विधान : वर्णवृत :- तगण, भगण, रगण, तगण, भगण, गा। शिल्प : १६ वर्ण, १०/६ वर्ण पर यति, समपाद वर्णिक छंद, दो-दो चरण समतुकांत। संकल्प से मन की मयूरी, नाचती वन में। सामर्थ से सपने सजाती, स्वयं के तन में।। आराधिके बन दामिनी की, नृत्य है करती। निर्विघ्न चंचल चंचला-सी, चूमती धरती।। आकाश से चुनती अपेक्षा, साधना घन में। सामर्थ से सपने सजाती, स्वयं के तन में।‌। अम्भोज-सा बिखरा पड़ा है, दिव्यता छहरे। दे ताल अंबर को पुकारे, धारणा लहरे।। झूमें लता तरु पुष्प डाली, प्रेम अर्चन में। सामर्थ्य से सपने सजाती, स्वयं के तन में।। प्रत्यूष की अभिलाष में द्वै, नैन बिंबित हैं। कौमार्य की वन वीथिका में, बिंब चिह्नित हैं।। वातास गंधिल शोभती है, प्...
पुतले का दहन
कुण्डलियाँ, छंद

पुतले का दहन

रामसाय श्रीवास "राम" किरारी बाराद्वार (छत्तीसगढ़) ******************** कुंडलियां - छंद करके पुतले का दहन, हर्षित है इंसान। रावण अब मारा गया, कहता है नादान।। कहता है नादान, इसी भ्रम में वह जीता। पुतले को निज हाथ, जलाते सदियों बीता।। कहे राम कवि राय, जोश हिय में वह भरके। मना रहा है पर्व, दहन पुतले का करके।। मरना रावण का नहीं, है इतना आसान। जब तक के अपने हृदय, भरा हुआ अभिमान।। भरा हुआ ‌अभिमान, यही रावण कहलाता। फिर पुतले पर क्रोध, व्यर्थ में क्यों दिखलाता।। कहे राम अभिमान, हमें है निज का हरना। तब होगा आसान, दुष्ट रावण का मरना।। परिचय :- रामसाय श्रीवास "राम" निवासी : किरारी बाराद्वार, त.- सक्ती, जिला- जांजगीर चाम्पा (छत्तीसगढ़) रूचि : गीत, कविता इत्यादि लेखन घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कव...
अमृत कलश/पुष्पमाला छंद
छंद

अमृत कलश/पुष्पमाला छंद

मीना भट्ट "सिद्धार्थ" जबलपुर (मध्य प्रदेश) ******************** अमृत कलश/पुष्पमाला छंद विधान : वार्णिक छंद १३ वर्ण गण संयोजन : नगण नगण रगण रगण गुरु मापनी : १११ १११ २१२ २१२ २ चार चरण : दो-दो चरण समतुकांत ९,४ पर यति अतुलित सुख दें कृपा, श्याम पाउँ। गिरधर उर में बसे, नित्य ध्याऊँ।। सहज सरल श्रेष्ठ हो, नाथ आओ। अमिय कलश मोहना, आज लाओ।। विकल हृदय हैं मिलें, भी किनारे। नटवर प्रभु थाम लो, हो सहारे।। उलझन सब दूर हों, है अँधेरा। सुमन सरिस दो खिला, हो सबेरा।। परिचय :- मीना भट्ट "सिद्धार्थ" निवासी : जबलपुर (मध्य प्रदेश) पति : पुरुषोत्तम भट्ट माता : स्व. सुमित्रा पाठक पिता : स्व. हरि मोहन पाठक पुत्र : सौरभ भट्ट पुत्र वधू : डॉ. प्रीति भट्ट पौत्री : निहिरा, नैनिका सम्प्रति : सेवानिवृत्त जिला न्यायाधीश (मध्य प्रदेश), लोकायुक्त संभागीय सतर्कता समिति जबलपुर की भूत...
आसमान में बादल छाए
गीत, छंद

आसमान में बादल छाए

रामसाय श्रीवास "राम" किरारी बाराद्वार (छत्तीसगढ़) ******************** विधा- गीत सार- छंद आसमान में बादल छाए, श्वेत श्याम हैं प्यारे। घूम रहे हैं दशों दिशा में, लगते सबको न्यारे।। मौसम है बारिश का देखो, बादल लगे गरजने। रिमझिम-रिमझिम बूंद सुहानी, लगती मन को हरने।। देख इन्हें है हर्षित होता, तन मन सभी हमारे आसमान में बादल छाए, श्वेत श्याम हैं प्यारे डोल रहे हैं साथ हवा के, इधर-उधर मतवाले। कभी अकेले कभी साथ में, रहते बाॅंहे डाले।। देख-देख इनकी सुंदरता, ऑंखें कभी न हारे आसमान में बादल छाए, श्वेत श्याम हैं प्यारे है कपास सा कोमल कितना, लगे बर्फ का गोला। धरती में जलधार बहे जब, इसने है मुह खोला।। होते हैं मुश्किल में जग के, रहने वाले सारे आसमान में बादल छाए, श्वेत श्याम हैं प्यारे लगता उड़कर आसमान में, इन बादल को छू लूॅं। उड़ता है मन पंख पसारे, कैसे ...
मधुवल्लरी छंद
छंद

मधुवल्लरी छंद

मीना भट्ट "सिद्धार्थ" जबलपुर (मध्य प्रदेश) ******************** विधान : मात्रिक छंद (मापनी युक्त) २१ मात्राएँ चार चरण : दो-दो चरण समतुकांत। मापनी : २२१२ २२१२ २२१२ आभास हो संसार हो मनमोहना। मस्तक मुकुट है रूप है प्रभु सोहना।। वंदन करूँ मैं साँवरे सुखधाम हो। कर जोड़ विनती मैं करूँ निष्काम हो।। सुमिरन रहे प्रभु प्रीति भी कल्याण हो। आशीष तेरी मिलती रहे उर प्राण हो। कान्हा हरो सब पीर सुख अविराम हो। आलोक फैले जग सुखद परिणाम हो।। लो थाम अब नैया भँवर है जान लो। पतवार हो कान्हा हमें पहचान लो।। आत्मा करो पावन किशन परमात्म हो। मीरा बनूँ जिह्वा सदा प्रभु नाम हो।। परिचय :- मीना भट्ट "सिद्धार्थ" निवासी : जबलपुर (मध्य प्रदेश) पति : पुरुषोत्तम भट्ट माता : स्व. सुमित्रा पाठक पिता : स्व. हरि मोहन पाठक पुत्र : सौरभ भट्ट पुत्र वधू : डॉ. प्रीति भट्ट पौत्री : निहिरा,...
आधार छंद
छंद, दोहा

आधार छंद

भीमराव झरबड़े 'जीवन' बैतूल (मध्य प्रदेश) ******************** आधार छंद - दोहा सपनों के आकाश में, पंछी बन संसार। दिखा रहा जादूगरी, रिश्तों को संहार।।१ दृष्टि प्रवंचक घूरती, तन का स्वेद निचोड़, तृषित नैन से भूख के, बहे अश्रु की धार।।२ व्यथित हुई हैं चींटियाँ, भूल गयी प्रतिरोध। यह मौसम जो दे रहा, कोड़े की फटकार।।३ संस्कारों का आवरण, तार-तार कर शर्म। बना रहा मन क्रूरतम, धर्म मनुजता मार।।४ सड़कों पर ज्वालामुखी, घर-घर में आक्रोश। समरसता को दे दिया, उन्मादक आहार।।५ तख्ती बैनर झंडियाँ, जलसों के परवाज। मार रहे सौहार्द को, बन घातक हथियार।।६ सत्ता के घर कैद में, सुख की धवल प्रभात। चढ़ सीने पर दीन के, करे बदन विस्तार।।७ परिचय :- भीमराव झरबड़े 'जीवन' निवासी : बैतूल मध्य प्रदेश घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी ...
सार्धमनोरम छंद
छंद

सार्धमनोरम छंद

मीना भट्ट "सिद्धार्थ" जबलपुर (मध्य प्रदेश) ******************** सार्धमनोरम छंद विधान मात्रिक छंद, २१ मात्राएँ चार चरण, दो-दो चरण समतुकांत मापनी : २१२२ २१२२ २१२२ श्याम प्यारे हम पुकारें नाथ दाता। है विपद भारी विधाता आप त्राता।। नित गिरें चरणों मुरारी बात मानो। दास चाकर है तिहारा श्याम जानो।। साधना करते सदा ही द्वार आते। ठौर कान्हा आपके ही पास पाते।। गोप गोपी साँवरे को नित्य ध्याते। पावनी इस प्रीति के गुण नित्य गाते।। परिचय :- मीना भट्ट "सिद्धार्थ" निवासी : जबलपुर (मध्य प्रदेश) पति : पुरुषोत्तम भट्ट माता : स्व. सुमित्रा पाठक पिता : स्व. हरि मोहन पाठक पुत्र : सौरभ भट्ट पुत्र वधू : डॉ. प्रीति भट्ट पौत्री : निहिरा, नैनिका सम्प्रति : सेवानिवृत्त जिला न्यायाधीश (मध्य प्रदेश), लोकायुक्त संभागीय सतर्कता समिति जबलपुर की भूतपूर्व चेयरपर्सन। प्रकाशित पुस्तक :...
विधाता छंद
छंद, मुक्तक

विधाता छंद

रामसाय श्रीवास "राम" किरारी बाराद्वार (छत्तीसगढ़) ******************** मुक्तक विधाता छंद गजानन बुद्धि के दाता, उमा शिव के बड़े प्यारे। प्रथम हो पूज्य इस जग में, तुम्हे पूजे जगत सारे।। दरश को मैं चला आया, सुमन भर भाव का लाया। चरण में है नमन अर्पण, इसे अब आप स्वीकारें।। चतुर्थी है बड़ा पावन, तिथि भादों की शुभकारी। लिए अवतार हैं इस दिन, छवि सुंदर है मनुहारी।। बजे कैलाश में बाजे, मनोहर रूप सब साजे। खुशी की आज वेला है, मनाते लोग हैं भारी।। गगन से देवगण सारे, देखकर खूब हर्षाऍ। दरश की लालसा मन में, लिए कैलाश में आऍ।। गणों के हो तुम्हीं स्वामी, प्रभु तुम हो अंतर्यामी। विनय सुन लो हमारी भी, तुम्हारे द्वार पर आऍ।। परिचय :- रामसाय श्रीवास "राम" निवासी : किरारी बाराद्वार, त.- सक्ती, जिला- जांजगीर चाम्पा (छत्तीसगढ़) रूचि : गीत, कविता इत्यादि लेखन घोषणा पत्र : मैं य...
प्रतिमा – वार्णिक
छंद

प्रतिमा – वार्णिक

मीना भट्ट "सिद्धार्थ" जबलपुर (मध्य प्रदेश) ******************** प्रतिमा - (वार्णिक) १४ वर्ण : चतुर्दशाक्षरावृत्ति यति - ८, ६ गण संयोजन - सभतनगग सगण भगण तगण नगण गुरु गुरु (११२-२११-२२, १-१११-२२) चार चरण, दो -दो चरण समतुकांत। ममता मूरत न्यारी, सुमिरत माता। करुणा सागर अम्बे, गुण जग गाता ।। भव तारे अवतारी, नित शुभकारी। जगदम्बे जननी हो, अतिशय प्यारी।। चरणों शीश झुकाते, मनहर रूपा। प्रिय हो वैभव शाली, नमन अनूपा।। जयकारा करते हैं, हम दिन राता। अब आशीष हमें दो, निरख सुजाता।। पथ के कंटक सारे, विपद हटादो। वसुधा आकुल माता, तिमिर मिटादो।। बलिहारी हम जाते, सुन वरदानी। महिमा भी नित गाते, जगत भवानी।। तुम अम्बे तुम काली, कर रखवाली। नवदुर्गा घर आओ, परम निराली।। सजती थाल सुहानी, कुमकुम रोली। अब तारो तुम दासी, मनहर भोली।। परिचय :- मीना भट्ट "सिद्धार्थ" निवासी : ...
प्रेम है अनमोल
छंद

प्रेम है अनमोल

डॉ. भावना सावलिया हरमडिया, राजकोट (गुजरात) ******************** छंद मनोरम २१२२ २१२२ प्रेम है अनमोल न्यारा, ईश का उपहार प्यारा ।। प्रीत बिन जीवन अधूरा, विश्व हो रस सिक्त पूरा । प्रेम रस जिसने पिया है । धन्य जीवन को किया है । नित्य बरसे स्नेह धारा । प्रेम है अनमोल न्यारा ।। पियु सुहाना प्यार ऐसा । रस अमिय का सार जैसा । चार नैना बात करते । प्रीत हिय की दाह हरते । साँस में अनुराग सारा । प्रेम है अनमोल न्यारा।। हो हृदय में भाव निर्मल । तब पनपता प्रेम हरपल । बाग खुशियों का महकता । मोर मन का है गहकता । प्रीत बिन संसार खारा। प्रेम है अनमोल न्यारा ।। प्रिय बहुत मुझको सुहाता । प्यार उनका है लुभाता । मीत जब-जब बात करता । दिव्य झर-झर प्रेम झरता । नैन का है मीत तारा । प्रेम है अनमोल न्यारा ।। परिचय :- डॉ. भावना नानजीभाई सावलिया माता : वनिता बहन नानजीभाई...
सनयास छंद
छंद

सनयास छंद

मीना भट्ट "सिद्धार्थ" जबलपुर (मध्य प्रदेश) ******************** सनयास छंद विधान : वार्णिक छंद १२ वर्ण गण संयोजन : सगण नगण यगण सगण ११२ १११ १२२ ११२ चार चरण, दो-दो चरण समतुकांत। जगपालक प्रभु स्वामी कहते। उर में रघुवर मेरे रहते।। मन मूरत बसती नाथ सुनो। नित राघव जप लो राम गुनो।। सुमिरो निशिदन तो मोक्ष मिले। मन के उपवन में पुष्प खिले।। रघुनाथ चरण में आज पड़ी। अब दो दरशन मैं द्वार खड़ी।। मनमोहक छवि प्यारी लगती। विनती सुन प्रभु रातों जगती।। तजदी अब सब माया सुन लो। हितकारक प्रभु दासी चुन लो।। परिचय :- मीना भट्ट "सिद्धार्थ" निवासी : जबलपुर (मध्य प्रदेश) पति : पुरुषोत्तम भट्ट माता : स्व. सुमित्रा पाठक पिता : स्व. हरि मोहन पाठक पुत्र : सौरभ भट्ट पुत्र वधू : डॉ. प्रीति भट्ट पौत्री : निहिरा, नैनिका सम्प्रति : सेवानिवृत्त जिला न्यायाधीश (मध्य प्रदेश), लोकायु...
विजयी विश्व तिरंगा
छंद

विजयी विश्व तिरंगा

रेखा कापसे "होशंगाबादी" होशंगाबाद (मध्य प्रदेश) ******************** मरहठा छंद जग विश्व विजय का, राष्ट्र प्रणय का, अमर तिरंगा शान। परचम लहराये, गौरव गाये, वीरों का बलिदान।। घर-घर हो उत्सव, अमृत महोत्सव, जन-जन उर में गर्व। पचहत्तर वार्षिक, अद्भुत कालिक, आजादी का पर्व।। है अंतस गंगा, सजे तिरंगा, घर -घर ध्वज प्रतिमान। सैनिक बलिदानी,अमर कहानी,जन गण मन शुभ गान ।। शुभ तीन रंग से, नव उमंग से, गौरव गाथा भान। है श्वेत शांति का, हरित क्रांति का, केसरिया बलिदान।। जो नील चक्र है, मध्य वक्र है, नित विकास संचेत। चतुर्विश तीलियाँ, धार्मिक गलियाँ, मनुज गुणी संकेत।। शत गौरव गाथा, टेके माथा, मातृभूमि के अंक। नित रक्त बहाते, प्राण चढ़ाते, राजन् हो या रंक।। मस्जिद गुरुद्वारे, मंदिर सारे, गिरिजाघर के संग। घर-घर लहराये, नभ छू जाये, देशभक्ति के रंग।। जन-जन का सपना, भारत अपना, बने ...
श्वेता छंद
छंद

श्वेता छंद

मीना भट्ट "सिद्धार्थ" जबलपुर (मध्य प्रदेश) ******************** विधानः वार्णिक छंद दस वर्ण गण संयोजन : मगण रगण मगण गुरु २२२ २१२ २२२ २ चार चरण, दो-दो चरण समतुकांत अंबा दुर्गा भवानी कामाक्षी। कुष्मांडा शारदा माता साक्षी।। जो जन्मान्तरों को है जोड़े। पाखंडी दंड दे माया तोड़े।। माता पूजा करें आ स्वीकारो। द्वारे तेरे खड़े हैं माँ तारो।। श्रद्धा से माँ बुलाते आ रानी। पूरी हो प्रार्थना मेरी दानी।। त्राता सौगात दें हैं कल्याणी। देती हैं शक्ति दें मीठी वाणी।। पीड़ा सारी हरें माता जानो। अन्तर्यामी भरें झोली मानो।। परिचय :- मीना भट्ट "सिद्धार्थ" निवासी : जबलपुर (मध्य प्रदेश) पति : पुरुषोत्तम भट्ट माता : स्व. सुमित्रा पाठक पिता : स्व. हरि मोहन पाठक पुत्र : सौरभ भट्ट पुत्र वधू : डॉ. प्रीति भट्ट पौत्री : निहिरा, नैनिका सम्प्रति : सेवानिवृत्त जिला न्यायाधीश ...
कान्हा स्वामी
छंद

कान्हा स्वामी

मीना भट्ट "सिद्धार्थ" जबलपुर (मध्य प्रदेश) ******************** मन्दाक्रान्ता विधान : वार्णिक छंद गण संयोजन मगण भगण नगण तगण तगण गुरु गुरु २२२ २११ १११ २२१ २२१ २२ १७ वर्ण प्रति चरण ४, ६, ७ वर्णों पर यति ४ चरण, दो दो चरण समतुकांत कान्हा स्वामी, नमन करिए, भावना नित्य बोले। वंशी देखो, बजत प्रभु की, राधिका मुग्ध डोले।। संगी ग्वाला, सुमिरत सुनो, श्याम प्यारे उबारो। राधा ध्यावे, नटवर सदा, नाम कान्हा पुकारो। राधे रानी, नित किशन का, नाम जापें विधाता। झूमें गोपी, नटवर कहें, आप हो श्याम दाता।। मीरा प्यारे, मनहर प्रभो, नाथ प्यारे नमामी। साँसो में भी, गिरधर रहो, आज आभार स्वामी।। नैया मेरी, भँवर फँसती, पार हो हे खिवैया। आई हूँ मैं, चरनन पड़ी, द्वार तेरे कन्हैया।। तारो कान्हा, प्रतिपल कहें, हो कृपा भी सहारे। कृष्णा कृष्णा, निशदिन रटूँ, हो दया क्यों बिसारे।। नैनो में हो...
नित्य योग अपनाए
छंद

नित्य योग अपनाए

रेखा कापसे "होशंगाबादी" होशंगाबाद (मध्य प्रदेश) ******************** रोला छंद नित्य करो तुम योग, निरोगी नियमित काया। तन-मन दोनों स्वस्थ, श्वास की निर्मल छाया।। प्रात: प्राणायाम, भ्रामरी शीतल बोधक। नित अनुलोम विलोम, कहाए नाड़ी शोधक।। योगासन शुभ लाभ, विश्व में ख्याति जमाए। भोर काल में योग, रक्त संचरण बढ़ाए।। नियमित कपालभाति, शांति तन-मन में भरता। मुख आभामय ओज, पाच्य उत्तेजन करता।। आसन योग अनेंक, भिन्न मुद्रा से निर्मित। न्यून करे तन भार, वसा को करे नियंत्रित।। चिंता तनाव नष्ट, क्रोध छू-मंतर करता। काया ऊर्जावान, बढ़े प्रतिरोधक क्षमता।। योग लाभ अतिरेक, रखे मानव अनुशासन। प्रात: संध्याकाल, नियम से हो सब आसन।। योगासन पश्चात, स्नान मत तुरंत करना। सर्दी खाँसी शीत, जकड़ लेती है वरना।। परिचय :- रेखा कापसे "होशंगाबादी" निवासी - होशंगाबाद (मध्य प्रदेश) घो...
अंतर्राष्ट्रीय नर्सेस दिवस
गीतिका, छंद

अंतर्राष्ट्रीय नर्सेस दिवस

रेखा कापसे "होशंगाबादी" होशंगाबाद (मध्य प्रदेश) ******************** आधार- हरिगीतिका छंद दीदी कहो सिस्टर कहो, या नाम दो परिचारिका। है नेक मन की भावना, जीवन समर्पित राधिका।। कहते इसी को नर्स भी, अब नाम आफीसर मिला। सम्मान से आह्लाद में, मुख दिव्य सा उपवन खिला।। सेवा बसी मन साधना, नित याचिका स्वीकारती। अपनी क्षुधा को मार के, वो मर्ज सबका तारती।। गोली दवाई बाँट के, नाड़ी सुगति लय साधती। मेधा चिकित्सक स्वास्थ्य के, ये रीढ़ के सुत बाँधती।। परिचारिका मन भाव से, सेवा सुधा मय घूँट दे । निज स्वार्थ को वह त्याग कर, परमार्थ का ही खूट दे।। ये दौर कितना है कठिन, नित काम ही है साधना। दिन रात का मत बोध है, बस मुस्कराहट कामना।। आओ करे शत् - शत् नमन, सेवा समर्पित भाव को। सम्मान से बोले वचन, नि:स्वार्थ कर्मठ नाव को।। पर रोग के उपचार में यह नींद अपनी त्याग दे। समत...
छप्पय छंद
छंद

छप्पय छंद

रजनी गुप्ता 'पूनम चंद्रिका' लखनऊ ******************** छप्पय छंद विधान - एक रोला छंद + एक उल्लाला छंद रोला छंद - ११, १३ की यति से चार पंक्तियाँ, दो-दो पंक्ति तुकांत, विषम चरणान्त गुरु लघु से, सम चरण आरंभ त्रिकल (लघु गुरु हो तो अति उत्तम) से तथा अंत चौकल से उल्लाला छंद - १३-१३ की यति से दो पंक्तियाँ, दोनों तुकांत, चार चरण प्रति चरण १३ मात्रा (दोहा का विषम चरण), ११ वीं मात्रा लघु अनिवार्य १ चलूँ पकड़ कर बाँह, चपल हैं बेटे प्यारे। ममता की है छाँव, नयन के मेरे तारे।। बेटी पर अभिमान, जलातीं दो कुल बाती। करूँ हृदय भर प्रेम, सहेजें मेरी थाती।। माँ दुर्गा रक्षा करें, पूरा यह वरदान हो। चाह रही रजनी यही, खिली सदा मुस्कान हो।। २ प्रतिपल देना साथ, सदा तुम दुर्गा माता। गणपति भी हों संग, रहें अनुकूल विधाता।। व्यक्त करे आभार, कहाँ तक रजनी कितना। सागर में है नीर, समझ लें सादर इतना।। ...
मनहर के आने का संदेश पाने पर मनहरी की मनोदशा
आंचलिक बोली, छंद, सवैया

मनहर के आने का संदेश पाने पर मनहरी की मनोदशा

ज्ञानेन्द्र पाण्डेय "अवधी-मधुरस" अमेठी (उत्तर प्रदेश) ******************** सुंदरी सवैया छंद (अवधि भाषा) मुसकातु अहै उ कपाटु धरे मनवा हुलरै पियवा अजु आवै । भिनही कगवा मुँडरा चढ़िके कहवाँ-कहवाँ भलुके दुलरावै । ननदा बिहँसै जरि जायि हिया सनकी-मनकी करि खूबि खिझावै । ढुरकैं जबहीं सुरजू तबहीं फँसि जायि परानु कछू नहिं भावै ।।१।। परछायि दिखै दुअरा दुलरा दुलही जियरा खुलिके हरसावै । कबहूँ अँगना महिं नाचि करै कबहूँ ननदा बहियाँ लिपिटावै । चुपके-चुपके नियरानि जबै अँखियाँ लड़ितै घुँघटा लटकावै । कहिजा मँखना अँगना तड़पै कबुलौं दहकै कसिके समुझावै ।।२।। तुहिंसे लड़ना सजना जमुके बतिया दुइठूं करना तुम नाहीं । इसकी उसकी परके घरकी नथिया-नकिया धरना तुम नाहीं । फिरकी फिरकी अपनी-अपनी भलुके भरिके फँसना तुम नाहीं । रचिके बचिके चँदना बहकौ कपरा सबुके सजना तुम नाहीं ।।३।। पतझारि दिखै जिनिगी...
घायल
कुण्डलियाँ, छंद

घायल

रामसाय श्रीवास "राम" किरारी बाराद्वार (छत्तीसगढ़) ******************** कुंडलियां छंद घायल की गति जानकर, करें त्वरित उपचार। मानवता का धर्म है, यह है शुभ ब्यवहार।। यह है शुभ ब्यवहार, इसे है सदा निभाना। खुद सहकर के कष्ट, उसे है तुम्हें बचाना।। कहे *राम* कवि राय, जमाना होगा कायल। मिटे सकल संताप, स्वस्थ होगा जब घायल।। परिचय :- रामसाय श्रीवास "राम" निवासी : किरारी बाराद्वार, त.- सक्ती, जिला- जांजगीर चाम्पा (छत्तीसगढ़) रूचि : गीत, कविता इत्यादि लेखन घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानिया...
युद्ध विभीषिका
छंद

युद्ध विभीषिका

रेखा कापसे "होशंगाबादी" होशंगाबाद (मध्य प्रदेश) ******************** मनोरम छंद युद्ध भीषणता कहूँ क्या। मौत का तांडव सहूँ क्या।। निज कलम आक्रोश करती। नित मनुज हिय जोश भरती।। हाल सब के अस्त से है। आम जन सब त्रस्त से है।। पीर वो किसको बताए। बन सहारा कौन आए।। रक्त की नदियाँ बहाती। फिर कथा सदिया सुनाती।। रोक लो गर हो सके तो। शांति माला पो तके तो।। विश्व सारे मौन क्यों है। सोच सबकी पौन क्यों है।। क्या समझ अब मर गई है। या किसी से डर गई है।। विश्व संकट तीव्र शंका। भीषिका का वज्र डंका।। एशिया पर डौलता है। वक्त भी अब बोलता है।। शांति की दरकार कर लो। राष्ट्र मिल करतार धर लो।। दूर सारी भ्रांति हो जब। एशिया में शांति हो अब।। परिचय :- रेखा कापसे "होशंगाबादी" निवासी - होशंगाबाद (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित म...
हौसला पंछी का पिंजरा
कविता, छंद

हौसला पंछी का पिंजरा

विजय गुप्ता दुर्ग (छत्तीसगढ़) ******************** छंद काव्य उमर नही होती है जिनकी, फिर भी शैल उठाया है रखते पास हौसला पंछी, पिंजरा भी उड़ाया हैं। जब होनहार बिरवान सुना, हर पीढ़ी सुनते आए किसी का दायित्व भी बनता, खुद से वो कितना गाए तकदीर लिखाकर जो आता, खून पसीने की खाए बेगानों की बात नहीं थी, अपनों से धोखे पाए नौ मन तेल बिना ही कैसे, तिगनी नाच कराया है। दिल में नफरत दीवारें थीं, फिर भी साथ बिठाया है। उमर नहीं होती है जिनकी, फिर भी शैल उठाया है। रखते पास हौसला पंछी, पिंजरा भी उड़ाया है। धोखा विश्वास नदी पाट से, दोनों अलग किनारे हैं दोनों मिल जाए मनुष्य को, तकदीरों के मारे हैं बनती वजह लिहाज चाशनी, सदा समंदर खारे हैं स्थिर जीवन कबूल नहीं फिर, मानो बहते धारे है तिनका मोरपंख बन जाए, सिया कटार बनाया है। अग्रिम पंक्ति में खड़े दिखे, अल्प धन ही कमाया है। उमर नहीं होती ...
सब गुलजार हुआ होगा
कविता, छंद

सब गुलजार हुआ होगा

विजय गुप्ता दुर्ग (छत्तीसगढ़) ******************** ताटंक छंद त्योहार मनाने का उत्साह, इंतजार में पलता है राग द्वेष को तजते इसमें, अपनेपन से चलता है। होली होली कहते सुनते, जीवन पार हुआ होगा रंग गुलाल अबीर चकाचक, सब गुलजार हुआ होगा। दुनिया रंगबिरंगी होती, चालों में रंग सिमटता रंगों पर हक नहीं किसी का, घटना घेरों में पलता आशा विश्वास सहयोग दया, रंगो का पहरा रहता रहमत रंग की पात्रता से, अमन चैन खजाना होगा सच्चे पक्के जब रंग समाए, दांवपेंच गुजरा होगा होली होली कहते सुनते, जीवन पार हुआ होगा रंग गुलाल अबीर चकाचक, सब गुलजार हुआ होगा। बिना कर्म और समर्पण से, अंक गणित का शून्य है रंग तुम्हारे कितने चोखे, साहस मार्ग अनन्य है अमल खलल रूप सच्चाई से, रंग गाथा भी धन्य है जहमत रंग प्रतिपालन में, काया कल्प हुआ होगा रंग लगाकर रंग बदलना, आपा भी खोया होगा होली होली क...
विस्मृत चित्र श्रम का
गीत, छंद

विस्मृत चित्र श्रम का

भीमराव झरबड़े 'जीवन' बैतूल (मध्य प्रदेश) ******************** गीत, आधार छंद - लावणी भाग्य मिटाया मजदूरों का, धन के मदिर बयारों ने। श्रम का विस्मृत चित्र किया है, सत्ता के फनकारों ने।। गमक स्वेद की समा न पायी, कभी कागजी फूलों में। अमिट वेदना श्रम सीकर की, फँसती गई उसूलों में।। वार सहे पागल लहरों के, युग-युग विवश किनारों ने। श्रम का विस्मृत चित्र किया है, सत्ता के फनकारों ने।।१ कौर रहे हाथों से रूठे, वस्त्र बदन की व्यथा कहे। बिन बारिश ही पर्णकुटी के, विकल नैन से अश्रु बहे।। लूटी है सपनों की डोली, खादिम बने कहारों ने। श्रम का विस्मृत चित्र किया है, सत्ता के फनकारों ने।।२ दूध पिलाया पुचकारा है, आस्तीनों के व्यालों को। भूख छेड़ देती है पल-पल, घायल पग के छालों को।। देह निचोड़ी श्रमजीवी की, लालच के बाजारों ने। श्रम का विस्मृत चित्र किया है, सत्ता के फनकारों ने...
वसन्त ऋतु
छंद

वसन्त ऋतु

ललिता शर्मा ‘नयास्था’ भीलवाड़ा (राजस्थान) ******************** सरसी छंद गीत मात्राभारः १६,११ झूम रही है उपवन शाखी, मधुकर करता शोर। ऋतु वसन्त है सबसे प्यारा, देखो चारों ओर॥ प्रमुदित होते किसलय कानन, खिली-खिली-सी धूप। पर्ण पाँखुरी की जम्हाई, यौवन छलके कूप। वासंती हो बैठे पंछी, नर्तक झूमें पोर॥ ऋतु वसन्त है सबसे प्यारा, देखो चारों ओर॥ उजला-उजला नभ का साया, बादल-बदली नील। दिनकर आता तम को हरने, झेन-फेन-सी झील। पवन-वेग से गूँज रही है, राग वसन्ती भोर॥ ऋतु वसन्त है सबसे प्यारा, देखो चारों ओर॥ शुचि-सोम-सरी कल-कल बहती, निर्मल जल की धार। उच्च शिखर की आभा जैसे, धरणी का श्रृंगार॥ पीत मञ्जरी महक उठी हैं, माघ बना चितचोर॥ ऋतु वसन्त है सबसे प्यारा, देखो चारो ओर॥ ऋतु वसन्त है सबसे प्यारा, देखो चारों ओर॥ परिचय :-  ललिता शर्मा ‘नयास्था’ निवासी : भीलवाड़ा (राजस्थान...