सुखागमन गीत
रशीद अहमद शेख 'रशीद'
इंदौर (मध्य प्रदेश)
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तन-मन पीड़ित प्रहर-प्रहर था,
नित कठिनाई ढोने से।
दुर्गम पथ भी सुगम हुआ है,
साथ तुम्हारा होने से।
चैन हृदय से चला गया था,
कष्ट असीमित थे भारी।
नाग विषैले बने सभी दुख,
थे डसते बारी-बारी।
अवसर सुख के चले गए थे,
बीज अश्रु के बोने से।
दुर्गम पथ भी सुगम हुआ है,
साथ तुम्हारा होने से।
दूर हुए थे सभी सहायक,
पास बचीं थीं दुविधाएँ।
पग-पग बाधा खड़ी हुई थी,
रूठ गईं थीं सुविधाएँ।
मिलने आता रहा निरन्तर,
दुख महि के हर कोने से।
दुर्गम पथ भी सुगम हुआ है,
साथ तुम्हारा होने से।
तुम आए तो मिले सभी सुख,
भाग्य जगा जो सोया था।
प्राप्त हुआ है पुनः सभी वह,
जो भी मैंने ने खोया था।
संध्याएँ अब लगें रजत-सी,
भोर लगें सब सोने-से।
दुर्गम पथ भी सुगम हुआ है,
साथ तुम्हारा होने से।
परिचय - रशीद अहमद शेख 'रशीद'
साहित्य...