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गीत

हम तेरे मधु-गीत बनेंगे
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हम तेरे मधु-गीत बनेंगे

बृजेश आनन्द राय जौनपुर (उत्तर प्रदेश) ******************** हे प्रिय! हम-तुम दोनों मिलकर, जीवन का संगीत रचेंगे। तुम मेरी कविते बन जाना, हम तेरे मधु-गीत बनेंगे ।। दर्द-दर्द जब उभरे होंगे, भाव-भाव जब निखरे होंगे, अक्षर-अक्षर आँसू बनके- शब्द-शब्द में बिखरे होंगे! तब हम ‌ छन्दों की माला में, बिरहा के सब रीत लिखेंगे! तुम मेरी कविते बन ‌ जाना, हम तेरे मधु-गीत बनेंगे।। जब लहर उठेगी यादों की, जब आह! उठेगी वादों की, 'कितना सुन्दर साथ हमारा, ज्यों मिलन दोपहर-रातों की!' सुखदा-संध्या के मौसम में- बारहमासा - प्रीत लिखेंगे। तुम मेरी कविते बन जाना, हम तेरे मधु-गीत बनेंगे।। कभी-कहीं सुर-साज मिलेंगे, तालों पे जब ताल चलेंगे, कैसे रोक - सकेंगे मन को, नर्तन को जब पॉव उठेंगे! तेरी लय पाने की खातिर- सरगम के कुछ नीत रखेंगे! तुम मेरी कविते बन जाना, हम तेरे मधु-गीत बनें...
आहट
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आहट

मीना भट्ट "सिद्धार्थ" जबलपुर (मध्य प्रदेश) ******************** आहट सुनकर बौराती हूँ, तकती निशिदिन द्वार। तुझ बिन सूना घर आँगन है, लगता जीवन भार।। स्वप्न सजाए लाखों मैने, पुष्प बिछाये पाथ। प्यास बुझाने मेह बुलाए, लगा न कुछ भी हाथ।। बंधन सारे तोड़ चला तू, मानी मैंने हार।। कंचन थाली काम न आई, भूखा सोया लाल। यम ने बाहुपाश में बाँधा, बलशाली है काल।। नयनों से बस नीर बहे है, उर जलते अंगार।। तंत्र- मंत्र सब खाली जाते, आया है अवसाद। मुरझाई प्रेमिल बगिया है, शेष रही है याद।। फेंक मौत का जाल मौन अब, बैठ गया करतार। पीड़ा माँ की कौन जानता, जाने बस सिद्धार्थ। ममता ने दी बस आशीषें, भूलो मत तुम पार्थ।। मानव केवल दास नियति का, बात करो स्वीकार। परिचय :- मीना भट्ट "सिद्धार्थ" निवासी : जबलपुर (मध्य प्रदेश) पति : पुरुषोत्तम भट्ट माता : स्व. सुमित्रा पा...
गुरुवर वंदना
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गुरुवर वंदना

मीना भट्ट "सिद्धार्थ" जबलपुर (मध्य प्रदेश) ******************** अंतस में विश्वास भरो प्रभु, तामस को चीर। प्रेम भाव से जीवन बीते, दूर हो सब पीर।। मान प्रतिष्ठा मिले जगत में, उर यही है आस। शीतल पावन निर्मल तन हो, सुखद हो आभास।। कोई मैं विधा नहीं जानूँ, गुरु सुनो भगवान। भरदो शिक्षा से तुम झोली, दो ज्ञान वरदान।। शिष्य बना लो अर्जुन जैसा, धनुषधारी वीर। बैर द्वेष तज दूँ मैं सारी, खोलो प्रभो द्वार। न्याय धर्म पर चलूँ सदा मैं, टूटे नहीं तार।। आप कृपा के हो सागर, प्रभो जीवन सार। रज चरणों की अपने देदो, गुरु सुनो आधार।। सेवा में दिनरात करूँ प्रभु, रहूँ नहीं अधीर। एकलव्य सा शिष्य बनूँ मैं, रचूँ फिर इतिहास। सत्य मार्ग पर चलता जाऊँ, हो जग उजास।। ब्रह्मा हो गुरु आप विष्णु हो, कहें तीरथ धाम। रसधार बहादो अमरित की, जपूँ आठों याम।। दीपक ज्ञान का अब जला दो, ...
धागों का त्योहार
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धागों का त्योहार

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** थिरक रहा है आज तो, नैतिकता का सार। है अति पावन, निष्कलुष, धागों का त्योहार।। बहना ने मंगल रचा, भाई के उर हर्ष। कर सजता,टीका लगे, देखो तो हर वर्ष।। उत्साहित अब तो हुआ, सारा ही संसार। है अति पावन, निष्कलुष, धागों का त्योहार।। आशीषों का पर्व है, चहक रहा उल्लास। सावन के इस माह में, आया है विश्वास।। गहन तिमिर हारा हुआ, बिखरा है उजियार। है अति पावन, निष्कलुष, धागों का त्योहार।। बचपन का जो साथ है, देता नित्य उमंग। रहे नेह बन हर समय, वह दोनों के संग।। राखी बनकर आ गई, एक नवल उपहार। है अति पावन, निष्कलुष, धागों का त्योहार।। इतिहासों में लेख है, महिमा सदा अनंत। गाथा वेद-पुराण में, वंदन करते संत।। नीति-प्रीति से रोशनी, गूँज रही जयकार। है अति पावन, निष्कलुष, धागों का त्योहार।। परिचय :- प्रो. डॉ. शरद नारायण ख...
दीवारें पत्थर की
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दीवारें पत्थर की

भीमराव झरबड़े 'जीवन' बैतूल (मध्य प्रदेश) ******************** हाथ हथौड़ी ले शिक्षा की, छेनी साथ हुनर की। तोड़ रही सच आज नारियाँ, दीवारें पत्थर की।। जकड़े थे कोमल भावों पर, रूढ़िवाद के बंधन। हाथ-पाँव चक्की-चूल्हे में, झुलसे बनकर ईंधन। परंपराओं की कैंची ने, बचपन से पर काटे, पाषाणी सदियों ने इनके, सुनें न अब तक क्रंदन।। प्रीति युक्त जिनके चरित्र को, पुड़िया कहा जहर की। तोड़ रही सच आज नारियाँ, दीवारें पत्थर की।।१ कसी कसौटी पर छलना के, आदिम युग से नारी। वत्सल पर धधकाई जग ने, लांछन की चिनगारी। धरा तुल्य उपकारी जिसके, भाव रहे हो उर्वर, हुए नहीं संतुष्ट भोग कर, रागी स्वेच्छाचारी।। हर पड़ाव पर बनी निशाना, व्यंग्य युक्त नश्तर की। तोड़ रही सच आज नारियाँ, दीवारें पत्थर की।।२ उठ पौरुष के अहंकार ने, पग-पग डाले रोड़े। गाँठ प्रीति की जिनसे बाँधी, ताने सबने कोड़े...
प्रीति गगरिया
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प्रीति गगरिया

मीना भट्ट "सिद्धार्थ" जबलपुर (मध्य प्रदेश) ******************** प्रीति गगरिया छलक रही है, भटक रहा हिय बंजारा। चातक मन निष्प्राण हुआ है, मरुथल है जीवन सारा।। प्रीत घरौंदा टूट गया है, करें चूड़ियाँ हैं क्रंदन। मौन पायलों की रुनझुन है, भूल गया है उर स्पंदन ।। कैद पड़ी पिंजरे में मैना, दूर करो अब अँधियारा। अवसादों में प्रीत घिरी अब, सहमी तो शहनाई है। कुंठित हुई रागिनी सरगम, प्रेम -वलय मुरझाई है।। अवगुंठन में छिपा चाँद है, पट खोलो हो उजियारा। जर्जर ये जीवन की नैया, हिचकोले पल -पल खाती। बहती हैं विपरीत हवाएं, भूले प्रिय लिखना पाती।। गूँगी बहरी दसों दिशाएँ, बहे आँसुओं की धारा। परिचय :- मीना भट्ट "सिद्धार्थ" निवासी : जबलपुर (मध्य प्रदेश) पति : पुरुषोत्तम भट्ट माता : स्व. सुमित्रा पाठक पिता : स्व. हरि मोहन पाठक पुत्र : सौरभ भट्ट पुत्र वधू : डॉ. प्रीत...
माथे का सिंदूर
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माथे का सिंदूर

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** रहे अमर श्रंगार नित्य ही, माथे का सिंदूर। जिसमें रौनक बसी हुई है, जीवन का है नूर।। जोड़ा लाल सुहाता कितना, बेंदी, टिकुली ख़ूब। शोभा बढ़ जाती नारी की, हर इक कहता ख़ूब।। गौरव-गरिमा है माथे की, आकर्षण भरपूर। नग़मे गाता है सुहाग के, माथे का सिंदूर।। अभिसारों का जो है सूचक, तन-मन का है अर्पण। लाल रंग माथे का लगता, अंतर्मन का दर्पण।। सात जन्म का बंधन जिसमें, लगे सुहागन हूर। नग़मे गाता है सुहाग के, माथे का सिंदूर।। दो देहें जब एक रंग हों, मुस्काता है संगम। मिलन आत्मा का होने से, बनती जीवन-सरगम।। जज़्बातों की बगिया महके, कर दे हर ग़म दूर। नग़मे गाता है सुहाग के, माथे का सिंदूर।। चुटकी भर वह मात्र नहीं है, प्रबल बंध का वाहक। अनुबंधों में दृढ़ता बसती, युग-युग को फलदायक।। निकट रहें हरदम ही ...
सवेरा
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सवेरा

मीना भट्ट "सिद्धार्थ" जबलपुर (मध्य प्रदेश) ******************** जाग सखी री!उतर क्षितिज से आया सुखकर भोर। उदयाचल से झाँक रहा है, देखो शुभदे दिनकर। बादल अभिनंदन करते हैं, सूर्यदेव का हँसकर।। तुहिन कणों के अगणित मोती, बिखरे चारों ओर । जाग सखी री! उतर क्षितिज से, आया सुखकर भोर ।। देखो महकी सुभग वाटिका, लदी सुमन से डाली। पंचम स्वर में कूक रही है, कोयलिया मतवाली।। मन को आनंदित करता सखि! मधुप वृंद का शोर । जाग सखी री! उतर क्षितिज से, आया सुखकर भोर।। सरिता के तट चकवा चकवी, गीत प्रणय के गाते। बड़े सवेरे उठे बटोही, अपने पथ पर जाते।। नभ में ओझल हुआ सुधाकर, दिखता व्यथित चकोर। जाग सखी री! उतर क्षितिज से, आया सुखकर भोर।। परिचय :- मीना भट्ट "सिद्धार्थ" निवासी : जबलपुर (मध्य प्रदेश) पति : पुरुषोत्तम भट्ट माता : स्व. सुमित्रा पाठक पिता : स्व. हरि मो...
बेड़ियां
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बेड़ियां

अंजली शर्मा दमोह, जबलपुर, (मध्य प्रदेश) ******************** चित्र देखो कविता लिखो प्रतियोगिता हेतु प्राप्त रचना तय समय के बाद प्राप्त होने से प्रतियोगिता में सम्मिलित नहीं हो सकी ...अतः क्षमा ....🙏🏻 उत्कृष्ट रचना हेतु रचनाकार को शुभकामनाएं ...🙏🏻💐💐💐 सच की राह चल सको तो अब मुकरना मत जो आए तुम्हे रोकने तुम रुकना मत कुछ कहेंगे अपशब्द, कुछ कहेंगे बुरा भी तुम्हे सादर शीष झुकाना, बाते उनकी सुनना मत जो आए तुम्हे रोकने तुम रुकना मत और पैरो में पड़ी बेड़ियां, जो तुमने अब तोड़ी है खुद को संवार कर झूठी राह छोड़ी है ना दबना गलत बात पर, गलत पैरो में गिरना मत जो आए तुम्हे रोकने तुम रुकना मत और जो आए तुम्हे खींचने, बांह तुम्हारी मरोड़ने हिंसा, जख्म और जख्मी दिल को कचोड़ने रोक देना हाथ वही, दिल अपना पसीजना मत जो आए तुम्हे रोकने तुम रुकना मत टूटी आशा आंखे सू...
क्षण- बोध
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क्षण- बोध

डॉ. छगन लाल गर्ग "विज्ञ" आकरा भट्टा, सिरोही (राजस्थान) ******************** आह उर संवेदना को पालता हूँ ! दर्द की हर आग जलना चाहता हूँ !! खो गयी घनघोर रातें वासना में ! स्वप्न टूटे मोम से लो कामना में ! राग की मृदु वर्तिका- सी याचना में ! भ्रांत मारुत घोलता विष साधना में ! दीप भीतर का जलाना चाहता हूँ ! दर्द की हर आग जलना चाहता हूँ !! रिश्तों की अब बात बस अंगार जैसे! स्वार्थ में सब भूलते अपनत्व कैसे ! लोग बन बेशर्म हो उन्मत्त ऐसे ! फैंकते हर बोल बन प्रस्तर जैसे ! कोख की हर छाँव पलना चाहता हूँ ! दर्द की हर आग जलना चाहता हूँ !! कोन है जो थपकियाँ दे वेदना में ! बोल दे दो बोल मीठे चेतना में ! व्यर्थ रिश्ते- वासना संवेदना में ! अर्थ गहरे कह सके नवचेतना मेें ! हूँ अकेला ही सदा यह जानता हूँ ! दर्द की हर आग जलना चाहता हूँ !! कब कहूँगा प्यार से संतुष्ट हूँ मैं ! जागता ...
आती है जब याद तुम्हारी
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आती है जब याद तुम्हारी

रमाकान्त चौधरी लखीमपुर खीरी (उत्तर प्रदेश) ******************** आती है जब याद तुम्हारी, नयन सजल हो जाते हैं। धीरे धीरे बारिश वाले, फिर बादल हो जाते है। प्रेम प्रदर्शित हो न जाये, पूरी कोशिश करता हूँ, इसीलिए तो दिल पर अपने, पूरी बंदिश करता हूँ। नयन समझ लेते जब दिल को तब मरुथल हो जाते हैं। आती है जब याद तुम्हारी, नयन सजल हो जाते हैं। अपनी उँगली की पोरों से, जब भी तुम छू लेते हो मुझे लगा कर सीने से और बस मेरे हो लेते हो। मेरी आँखों के आँसू, तब गंगाजल हो जाते हैं। आती है जब याद तुम्हारी, नयन सजल हो जाते हैं। हँसी तुम्हारी अपनी कविता और गीतों में लिखता हूँ। तुम संग हमने जितने बिताए वे सारे पल लिखता हूँ। सिर्फ तुम्हारे पढ़ लेने से सब शब्द गजल हो जाते हैं। आती है जब याद तुम्हारी, नयन सजल हो जाते हैं। प्यार निभाने का मसअला है थोड़ी बात कठिन तो है। दिल...
सुशोभित नभ
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सुशोभित नभ

मीना भट्ट "सिद्धार्थ" जबलपुर (मध्य प्रदेश) ******************** दिनकर सुशोभित नभ, धरा मोहित बड़ी हर्षित। ऊर्जा नई आई, हुए जलजात-सी सुरभित।। सुषमा निराली है छुअन अधरों रसीली भी। परिणय पलों की ये, तरणि -रति है छबीली भी।। अभिसार दृग करते, युगों से देख अनुबंधित। शृंगार लिखता कवि, सुमन कचनार-सा न्यारा। ये शिल्प लतिकाएँ, प्रणय विस्तार मधुधारा।। पिक गीत अनुगुंजित, हुए हिय भाव अनुरंजित। मन-मेघ कहते हैं, प्रगल्भित प्रीति पावन है। अबुंज नयन मंजुल, लगे प्रतिबिंब सावन है।। कलियाँ महकती-सी, खिला यौवन हुआ पुलकित। परिचय :- मीना भट्ट "सिद्धार्थ" निवासी : जबलपुर (मध्य प्रदेश) पति : पुरुषोत्तम भट्ट माता : स्व. सुमित्रा पाठक पिता : स्व. हरि मोहन पाठक पुत्र : सौरभ भट्ट पुत्र वधू : डॉ. प्रीति भट्ट पौत्री : निहिरा, नैनिका सम्प्रति : सेवानिवृत्त जिला न्यायाधीश ...
क्यों उजड़ा प्यारा कुंज
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क्यों उजड़ा प्यारा कुंज

मीना भट्ट "सिद्धार्थ" जबलपुर (मध्य प्रदेश) ******************** क्यों उजड़ा प्यारा कुंज यह, रोती बैठी हीर अब। नैनों के निर्झर छलकते, कैसे रखते धीर अब।। चुभती गुंजारें भ्रमर की, बौरानी यह प्रीत भी। बागों की बुलबुल विकल अब, रूठे पावस गीत भी।। मायावी चलते चाल हैं, विश्वासों को चीर अब। मंजरियाँ सब मुरझा गयीं, काँपे कोमल गात भी। गिरगिट सा रंग बदल रही चादर ताने रात भी।। रूप बदल छलता चाँद यह, आँखों देखो नीर अब। ढाई आखर इस प्रेम से, चोटिल हर पल साँस है। करता क्रंदन मन मोर ये, टूटी जीवन आस है।। पगली हुई बंजारन भी, बिलखे अंतस पीर अब। परिचय :- मीना भट्ट "सिद्धार्थ" निवासी : जबलपुर (मध्य प्रदेश) पति : पुरुषोत्तम भट्ट माता : स्व. सुमित्रा पाठक पिता : स्व. हरि मोहन पाठक पुत्र : सौरभ भट्ट पुत्र वधू : डॉ. प्रीति भट्ट पौत्री : निहिरा, नैनिका सम्प्रति : से...
बनी पाँव में बेड़ी पायल
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बनी पाँव में बेड़ी पायल

मीना भट्ट "सिद्धार्थ" जबलपुर (मध्य प्रदेश) ******************** बनी पाँव में बेड़ी पायल, अब सिंदूर उदास। सभा मध्य रो रही द्रोपदी बस कान्हा ही आस।। पाँचों पति हो मौन देखते, चीर हरण का घात। दुष्ट दुशासन भूल चुका है, परिणामों की बात।। सभा मौन बैठी है सारी, टूटा है विश्वास। नारी को संपत्ति समझ कर, खेला चौसर दाँव। धर्मराज भी सबकुछ हारे, बचा नहीं हैं ठाँव।। बलि चढ़ती सब अधिकारों की, बस आँसू हैं पास। लक्ष्मण रेखा लाँघी सीता, हरण हुआ तत्काल। सदियों से है पीड़ा सहती, लिखा यही बस भाल।। देवी चंडी दुर्गा मानें, फिर क्यों देते त्रास। संस्कारों को भूल गये सब, खोयी है पहचान। लूट रहे हैं सतत उसे ही, करते नित अपमान।। सभी युगों की यही कहानी, बीते दिन अरु मास। परिचय :- मीना भट्ट "सिद्धार्थ" निवासी : जबलपुर (मध्य प्रदेश) पति : पुरुषोत्तम भट्ट माता : स्व. सु...
धवल चाँदनी
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धवल चाँदनी

मीना भट्ट "सिद्धार्थ" जबलपुर (मध्य प्रदेश) ******************** धवल चाँदनी भी मुस्काती, रजनी भी इतराती है। मस्त मिलन की बेला आई, गोरी भी बलखाती है।। छेड़े जुगनूँ प्रीति रागिनी, दीपक आस जलाते भी। संदल खुशबू तन से आती, प्रियवर तुम्हें बुलाते भी।। अर्पित है ये जीवन सारा, साँस-साँस इठलाती है। कोण-कोण फैला उजियारा, झूम रही डाली-डाली। नभ में तारों की मालाएँ रात दिव्य प्रिय मतवाली।। तन-मन आकुल आलिंगन को, गोरी बात बनाती है। मधु-उत्सव की मदिर उमंगें, नेह नयन प्रिय बरसाते। प्रेम पालने उन्नत होते, रति जैसे हम मुस्काते।। चंदा भी अठखेली करता, निशा प्रेम की पाती है। परिचय :- मीना भट्ट "सिद्धार्थ" निवासी : जबलपुर (मध्य प्रदेश) पति : पुरुषोत्तम भट्ट माता : स्व. सुमित्रा पाठक पिता : स्व. हरि मोहन पाठक पुत्र : सौरभ भट्ट पुत्र वधू : डॉ. प्रीति भट्ट पौत्री :...
चाल यम भी चल गया है
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चाल यम भी चल गया है

मीना भट्ट "सिद्धार्थ" जबलपुर (मध्य प्रदेश) ******************** चाल यम भी चल गया है, वेदना की यह घड़ी, मोलतीं जो चूडियाँ हैं, आँसुओं की हैं झड़ी। प्रेम-पंछी उड़ गया है, रो रही है यामिनी, जाल मकड़ी ने बुना है, आह भरती मानिनी, नीम आहें भर रहा है, रो रहा बरगद छड़ा, ताल छाती पीटता है, हादसा है यह बड़ा, शब्द कुंठित हो गए हैं, लाश है घर पर पड़ी। चीखती हर साँस चिंतित, प्राण वह अनमोल था। माँग का सिंदूर चुप है, आस का भूगोल था।। चार कंधों का सहारा, और तन पर खोल था। मौत होनी है सचाई, जीवनी का मोल था।। क्यों गड़ी? कैसे गड़ी जो, कील आँखों में गड़ी। फिर विसर्जित पुष्प भी अब, देख गंगा धार में। बह गया है संग सब कुछ, हम खड़े मझधार में।। शेष कुछ यादें बचीं हैं, भीगते रूमाल में। चेतना सब खो गयी है, अंजुली के थाल में।। बोझ ये जीवन बना अब, है कठिन जुड़नी कड़ी। प...
साहस भर लो अंतर्मन में
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साहस भर लो अंतर्मन में

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** साहस भर लो अंतर्मन में, श्रम के पथ जाओ। करना है जो, कर ही डालो, मंज़िल को पाओ।। साहस लेकर, संग आत्मबल बढ़ना ही होगा। जो भी बाधाएँ राहों में, लड़ना ही होगा। काँटे ही तो फूलों का नित मोल बताते हैं। जो योद्धा हैं वे तूफ़ाँ से नित भिड़ जाते हैं।। मन का आशाओं से प्रियवर अब श्रंगार करो। ज़िद पर आकर, हाथ बढ़ाओ, बढ़ते ही जाओ। करना है जो, कर ही डालो, मंज़िल को पाओ।। असफलता से मार्ग सफलता का मिल जाता है। सब कुछ होना, इक दिन हमको ख़ुद छल जाता है।। असफलता से एक नया, सूरज हरसाता है। रेगिस्तानों में मानव तो नीर बहाता है।। चीर आज कोहरे को मानव, तुम उजियारा लाओ। करना है जो, कर ही डालो, मंज़िल को पाओ।। भारी बोझ लिए देखो तुम, चींटी बढ़ती जाती है। एक गिलहरी हो छोटी पर, ज़िद पर अड़ती जाती है।। हार मिलेगी, तभी जीत की...
तुम होली पर आ जाओ
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तुम होली पर आ जाओ

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** हे! गिरिधारी नंदलाल, तुम होली पर आ जाओ।। राधारानी को सँग लेकर, फिर से रँग बरसाओ।। प्रेम आजअभिशाप हो रहा, बढ़ता नित संताप है। भटकावों का राज हो गया, विहँस रहा अब पाप है।। प्रेम,प्रीति की गरिमा लौटे, अंतस में बस जाओ।। राधारानी को सँग लेकर, फिर से रँग बरसाओ।। मक्कारों की बन आई है, फूहड़ता की महफिल। फेंक रहे सब नकली पाँसे, व्याकुल हैं सच्चे दिल।। द्रोपदियाँ तो डरी हुई हैं, बंशी मधुर बजाओ। राधारानी को सँग लेकर, फिर से रँग बरसाओ।। आशाएँ तो रोज़ सिसकतीं, मातम का है मेला। कहने को है प्यार यहाँ पर, हर दिल आज अकेला।। हे नटनागर ! रासरचैया, मंगलगान सुनाओ। राधारानी को सँग लेकर, फिर से रँग बरसाओ।। परिचय :- प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे जन्म : २५-०९-१९६१ निवासी : मंडला, (मध्य प्रदेश) शिक्षा : एम.ए (इति...
अल्हड़ गोरी है शरमाई
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अल्हड़ गोरी है शरमाई

मीना भट्ट "सिद्धार्थ" जबलपुर (मध्य प्रदेश) ******************** काम-वाण मारे अनंग ने, अल्हड़ गोरी है शरमाई। गदराया यौवन कहता है, धरती पर पसरी फगुनाई।। मधुकर कर में रंग छुपाए, सुमन गाल पे छाई लाली। चंचल तितली झूम रही है, हँसती है गेहूँ की बाली।। प्रीति पलाशी ओढ़ चुनरिया, आई छत प्रणयी इठलाती। कजरारी आँखें फगुनारी, चले षोडशी भी बलखाती।। ढोल-मृदंग चंग बजते हैं,सुन कर बौराई अमराई। ठुमुक रही बागों में कोयल, हिरणी मस्त कुलाँचे भरती। प्रेम-गीत गुलमोहर गाता, तन-मन सरसों मोहित करती।। यौवन है छाया धरती पर, मधुमय चुम्बन देता महुआ। श्वासों में घुलता फागुन है, बहकी-बहकी सी है पछुआ।। अंतस् में खिलता सेमल है, हुई तरंगित है अँगनाई। फागुन की मस्ती में डूबे, जन-जन मार रहे पिचकारी। भीगी गोरी की चोली है, खिली प्रीति की अब फुलवारी।। ललचाता है काम देव भी, देख मदिर सतरंगी होली। भंग-व...
नटखट कान्हा बीच डगर
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नटखट कान्हा बीच डगर

मीना भट्ट "सिद्धार्थ" जबलपुर (मध्य प्रदेश) ******************** नटखट कान्हा बीच डगर, करता बरजोरी। डूब रही है श्याम रंग, ब्रज की भी छोरी।। शोर मचाती निकली है, मस्तों की टोली। कान्हा मारे पिचकारी, भीग गयी चोली। रंग की फुहारें चलतीं, जैसे हो गोली।। तन मन भी भीगा राधे, कैसी ये होरी। प्रेम रंग डालें कान्हा, छाईं है लाली। राधे मदहोश रंग में, मीरा मतवाली।। चुपके से आती ललिता, है भोली भाली। हँसी ठिठोली करतीं सब ब्रज की तो गोरी।। मनहर मूरत मोहन की, जादू है डाला। चंचल चितवन कान्हा के गले मणिक माला।। छैल छबीला रसिया है, गोकुल का ग्वाला। मोहित ब्रज की हैं बाला, पकड़ गई चोरी। परिचय :- मीना भट्ट "सिद्धार्थ" निवासी : जबलपुर (मध्य प्रदेश) पति : पुरुषोत्तम भट्ट माता : स्व. सुमित्रा पाठक पिता : स्व. हरि मोहन पाठक पुत्र : सौरभ भट्ट पुत्र वधू : डॉ. प्रीत...
आज़ादी के मतवाले
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आज़ादी के मतवाले

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** भारत माँ की आज़ादी को, बहुत यहाँ क़ुर्बान हुए। गोरों से लड़कर के सारे, देशभक्त संतान हुए।। हमने रच डाली नव गाथा, लेकर खडग हाथ अपने नहीं हटाये बढ़े हुये पग, पूर्ण किए सारे सपने माटी को निज माथ लगाकर, सारे मंगलगान हुए। गोरों से लड़कर के सारे, देशभक्त संतान हुए।। शत्रु नहीं बच पाया हमसे, पूतों ने हुंकार भरी भगतसिंह जैसे मतवाले, विजयघोष-जयकार भरी आज़ादी ने माँगी क़ीमत, वीर सभी बलिदान हुए। गोरों से लड़कर के सारे, देशभक्त संतान हुए।। इंकलाब की लाज निभाने, तीन रंग का मान बने जन गण मन का नग़मा गाया, तीन रंग की शान बने भारत छोड़ो के नारे के, मतवाले सहगान हुए। गोरों से लड़कर के सारे, देशभक्त संतान हुए।। बिस्मिल, आज़ादों के कारण, हमने आज़ादी पाई नेहरू-गांधी के नारों ने, तन पर तो खादी पाई ब्रिटिश हु...
जीवन मेरा सरगम जैसा
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जीवन मेरा सरगम जैसा

चेतना प्रकाश "चितेरी" प्रयागराज (उत्तर प्रदेश) ******************** तेरे प्यार में सजना, तेरी सजनी संँवर रही..२ सात स्वरों से सजा है संगीत , सात फेरों से सजा है जीवन, सात जन्मों तक मिलें सजना तेरा प्यार तेरे प्यार में सजना, तेरी सजनी सज रही, तेरे प्यार में सजना तेरी सजनी संँवर रही..२ तेरे प्रेम के धुन में, घर आंगन चहके, खिल रही मेरी फुलवारी, तेरे रंग में रंग कर, सजना झूम-झूम कर मेरा मनवा नाचे, तेरे प्यार में सजना, तेरी सजनी संँवर रही...२ मिला जो तेरा साथ साजन, जीवन हुआ मेरा सरगम जैसा, ना ग़म की परछाई, चारों और ख़ुशियांँ ही छाई, चंदन जैसा, सुगंधित पवित्र हुआ हमारा बंधन, सजना तेरे प्यार में, तेरी सजनी निखर रही, सजना तेरे प्यार में तेरी सजनी संँवर रही..२ परिचय :- चेतना प्रकाश "चितेरी" निवासी : प्रयागराज (उत्तर प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित ...
वाचिक गंगोदक सवैया
गीत

वाचिक गंगोदक सवैया

आचार्य नित्यानन्द वाजपेयी “उपमन्यु” फर्रूखाबाद (उत्तर प्रदेश) ******************** वाचिक गंगोदक सवैया भारती मातु की आरती के दिये टिमटिमाते रहें झिलमिलाते रहें। वर्तिका हम बनें और घृत हो लहू, प्राण का अर्घ्य यूँ ही चढ़ाते रहें।। छोड़ निज स्वार्थ को छोड़ परमार्थ को, छोड़ माँ-बाप परिजन सखा आइए। प्रीति के जोड़ अनुबंध निज देश से, राष्ट्र सिद्धांत प्रांजल निभा जाइए।। कर्म ही धर्म यह मर्म जानें सभी, स्वप्न साकार माँ के बनाते रहें। वर्तिका हम बनें और घृत हो लहू, प्राण का अर्घ्य यूँ ही चढ़ाते रहें।। विश्व में राष्ट्र का मान सम्मान हो, मूल्य नैतिक कभी भी भुलाएँ नहीं। लोक कल्याणकारी रहे भावना, वासना को हृदय में बसाएँ नहीं।। इस प्रजातंत्र के उन्नयन मंत्र को, श्लोक जैसा समझ गुनगुनाते रहें। वर्तिका हम बनें और घृत हो लहू, प्राण का अर्घ्य यूँ ही चढ़ाते रहें।। शाँति सुख और संवृद्...
भारत देश महान
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भारत देश महान

आशा जाकड़ इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** भारत देश महान वंदे मातरम् करते इसे प्रणाम वंदे मातरम् छब्बीस जनवरी का यह दिन हम सबको याद दिलाता है बलिवेदी पर चढ़-चढ़ कर इस आजादी को पाया है झंडे को झुकाए शीश वंदे मातरम् भारत देश महान वन्दे मातरम्।। राम कृष्ण की जन्मभूमि है गौतम की यह तपोभूमि है कबीरा की ये समर भूमि है गांधी की यह कर्मभूमि है थे तेरे पूत महान वंदे मातरम भारत देश महान वंदे मातरम।। गंगा की यहां पावन धारा नदियों का यहां संगम प्यारा कश्मीर महके केसर प्यारा महके दक्षिण चंदन सारा प्रकृति का है वरदान वंदे मातरम। भारत देश महान वंदे मातरम।। सत्य अहिंसा यहां की शान शिवाजी पर हमें अभिमान पद्मिनी सी करती हैं जौहर आन पे मर मिटने को तत्पर झांस रानी हमारी शान वन्दे मातरम भारत देश महान वंदे मातरम।। विज्ञान ने भी धूम मचाई अंतरिक्ष तक दौड़ लगाई नार...
संविधान गीत
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संविधान गीत

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** संविधान की शान निराली, हम निज गौरव पाये हैं। सम्प्रभु हम, है राज हमारा, अंतर्मन मुस्काये हैं।। क़ुर्बानी ने नग़मे गाये, आज़ादी का वंदन है। ज़ज़्बातों की बगिया महकी, राष्ट्रधर्म-अभिनंदन है।। संविधान की छटा निराली, आकर्षण घिर आये हैं। सम्प्रभु हम, है राज हमारा, अंतर्मन मुस्काये हैं।। संविधान में अधिकारों की, बातों ने हर दिल जीता। सप्त दशक का सफ़र सुहाना, हर दिन है सुख में बीता।। संविधान की गति-मति के तो, पैमाने नित भाये हैं। सम्प्रभु हम, है राज हमारा, अंतर्मन मुस्काये हैं।। शिक्षा और व्यापार मुदित हैं, उद्योगों की जय-जय है। अर्थ व्यवस्था,रक्षा,सेना, मधुर-सुहानी इक लय है।। संविधान की स्वर्णिमआभा, विश्व गुरू पद पाये हैं। सम्प्रभु हम, है राज हमारा, अंतर्मन मुस्काये हैं।। जीवन हुआ सुवासित ...