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गीत

नवनिर्माण
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नवनिर्माण

मीना भट्ट "सिद्धार्थ" जबलपुर (मध्य प्रदेश) ******************** बीती बातें भूले हम सब, आओ नवनिर्माण करें। नवल रचें इतिहास पुनः अब , जन-जन का कल्याण करें।। रहे मीत सच्चाई के हम , झूठों से मुख मोड़ चलें। निश्छलता हो प्रेम सुधा रस , भेद-भाव को छोड़ चलें।। सबक सिखा कर जयचंदो को, हर दुख का परित्राण करें। बने तिरंगे के हम रक्षक, शत्रु भाव का अंत रहे। शीश झुका दे हर रिपु का हम, हर ऋतु देख वसंत रहे।। देश भक्ति की रहे भावना, न्योछावर हम प्राण करें। नैतिकता की राह चलें हम, भौतिकता का त्याग रहे। मानवता की कर लें सेवा, दुखियों से अनुराग रहे।। अंतस बीज प्रेम के बोएँ, पाठन वेद -पुराण करें। राम -राज्य धरती पर लाएँ, अपनों का विश्वास बनें। तोड़ बेड़ियाँ अब सारी हम, भारत माँ की आस बनें ।। रूढिवाद को दूर भगाकर, हम कुरीति निर्वाण करें। परिचय :- मीना भट्ट "स...
सतरंगी सपने
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सतरंगी सपने

मीना भट्ट "सिद्धार्थ" जबलपुर (मध्य प्रदेश) ******************** सतरंगी सपने बुनकर के, तुम बढ़ते रहना। चाहे कितना दुष्कर पथ हो, तुम चलते रहना।। उच्च शिखर चढ़ना है तुमको, तन-मन शुद्ध करो। नित्य मिले आशीष बड़ों का, उत्तम भाव भरो।। थाम डोर विश्वास नदी -सम, तुम बहते रहना। सत्कर्मों के पथ चलकर तुम, चंदा -सम दमको। ऊंँची भरो उड़ानें नभ में, तारों-सम चमको।। संबल हिय पाएगा साहस, बस भरते रहना। सपन सलौने पाओगे तुम, धीरज बस रखना। करो साधना राम नाम की, फल मधुरिम चखना।। तमस् दूर करने को दीपक, सम जलते रहना। अथक प्रयासों से ही जग में, लक्ष्य सदा मिलता। सुरभित जीवन बगिया होती, पुष्ष हृदय खिलता।। सारी दुविधाओं को तज कर, श्रम करते रहना। परिचय :- मीना भट्ट "सिद्धार्थ" निवासी : जबलपुर (मध्य प्रदेश) पति : पुरुषोत्तम भट्ट माता : स्व. सुमित्रा पाठक पिता : ...
मानवता
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मानवता

मीना भट्ट "सिद्धार्थ" जबलपुर (मध्य प्रदेश) ******************** मानवता हृदय में भरी हो, सुख की भावना। गंगा जैसा पावन मन हो , उर प्रभु साधना।। चले धर्म की राह नित्य ही, विचार कीजिए। राग-द्वेष से दूर रहें हम , सुवास दीजिए।। दीन दुखी का बने सहारा, हो शुभ कामना। शूल पथ में लाख आएँ पर, तुम मत डोलना। दोष सारे दूर कर बढ़ना, कुछ मत बोलना।। लक्ष्य फिर तुमको मिलेगा प्रभु, बाँहें थामना।। राम हिय बसते सदा तेरे, अमरित पीजिए। नैनों में मनहर छवि बसती, दरशन लीजिए।। जाप लो नित नाम प्रभु होगा, निश्चय सामना।। परिचय :- मीना भट्ट "सिद्धार्थ" निवासी : जबलपुर (मध्य प्रदेश) पति : पुरुषोत्तम भट्ट माता : स्व. सुमित्रा पाठक पिता : स्व. हरि मोहन पाठक पुत्र : सौरभ भट्ट पुत्र वधू : डॉ. प्रीति भट्ट पौत्री : निहिरा, नैनिका सम्प्रति : सेवानिवृत्त जिला न्यायाधीश (मध्य...
श्याम पधारो
गीत, स्तुति

श्याम पधारो

मीना भट्ट "सिद्धार्थ" जबलपुर (मध्य प्रदेश) ******************** रक्षक बनकर श्याम पधारो, ले लो फिर अवतार। पावन भारत की धरती पर, अब जन्मो करतार।। घोर निराशा मन में छाई, मानव है कमजोर। काम क्रोध मद मोह हृदय में, थामो जीवन डोर।। शरण तुम्हारी कान्हा आए, तिमिर बढ़ा घनघोर। अब भी चीर दुशासन हरते, दुष्टों का है जोर।। सतपथ में बाधक बनते हैं, बढ़ते अत्याचार। गीता का भी पाठ पढ़ा दो, व्याकुल होते लाल। नैतिकता की दे दो शिक्षा, बन कर सबकी ढाल।। आनंदित इस जग को कर दो, चमकें सबके भाल। धर्म सनातन हो आभूषण, बदले टेढ़ी चाल।। राग छोड़कर पश्चिम का हम, रखें पूर्व संस्कार। त्याग समर्पण पाथ चलें नित, हमको दो वरदान। शील सादगी को अपनाकर, नित्य करें उत्थान। सत्य निष्ठ गंम्भीर बनें हम, दे दो जीवन दान। जीवन सार्थक कर लें अपना, कृपा करो भगवान।। मर्यादा के रक्षक प्रभु तुम, ज...
अमृत की धारा
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अमृत की धारा

खुमान सिंह भाट रमतरा, बालोद, (छत्तीसगढ़) ******************** ओ ओ ओ ओ .. राम भगति ध्यान में ध्यान जो लगाएं ... भवसागर से मुक्ति वह पाए, तुम्हारे भगति में तुम्हारी भगति में...२ हो ओ हो ओ हो.. पत्थर स्पर्श किया जो तुमने श्रापमुक्त हुए अहिल्या माई तुम्हारी भगति से, मां सबरी के जुठे बेर तुमने जो खाए ममता की भाग जो बढ़ाए तुम्हारी भगति ने ....२ हो ओ हो ओ.. गणिका को ज्ञान से अवगत करवाएं कुरूक्षेत्र में अर्जुन को गीता सार है सुनाई तुम्हारी भगति ने....२ हो ओ हो ओ.. मीरा ने पी लिया था विष का जो प्याला, वह बन गई अमृत की धारा तुम्हारी भगति में...२ हो ओ हो ओ... परिचय :- खुमान सिंह भाट पिता : श्री पुनित राम भाट निवासी : ग्राम- रमतरा, जिला- बालोद, (छत्तीसगढ़) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। ...
पीडाएँ
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पीडाएँ

मीना भट्ट "सिद्धार्थ" जबलपुर (मध्य प्रदेश) ******************** अंधकार छाया है जग में, संत्रासित हैं दसों दिशाएँ। घर-घर में दुर्योधन जन्मे, रोती रहती हैं माताएँ।। पीडाएँ ही पीडाएँ हैं, रक्षक ही अब भक्षक बनते। दीप वर्तिका काँपे थर-थर, वाणी से विष नित्य उगलते।। छाए बादल जात-पाँत के, लाल रक्त ही हैं बरसाएँ। चिंताओं में जकड़ा मानव, बढ़ती जाती है मृगतृष्णा। गठबंधन है सरकारों का, चीर-हरण से व्याकुल कृष्णा।। आतंकी रावण ने घेरा, मूर्छित लक्ष्मण हैं घबराएँ। विपदाएँ ही विपदाएँ हैं, झंझावातों ने भटकाया। दुष्ट सुनामी की लहरों से, तांडव जीवन में है आया। साहस संयम सब खो बैठे सपनों की अब लाश सजाएँ। धर्म सनातन ध्वस्त हुआ है, वेद -पुराणों को भूले हैं। टूटे घर के साँझे चूल्हे, संस्कार लँगड़े लूले हैं।। नए अग्निबाणों से बादल, महायुद्ध के हैं अब छाएँ। परिच...
आ न सकूँगी इस राखी में भैया कुछ मजबूरी है
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आ न सकूँगी इस राखी में भैया कुछ मजबूरी है

भीमराव झरबड़े 'जीवन' बैतूल (मध्य प्रदेश) ******************** आस मिलन की माँ बापू से, फिर इस साल अधूरी है। आ न सकूँगी इस राखी में, भैया कुछ मजबूरी है।। पैरोकार नहीं है कोई, निष्ठुर यहाँ जमाने में।। सदय ससुर पर मिर्ची ननदी, शातिर है भड़काने में। कटुक करेले-सी सासू के, मुख में बस अंगारे है, माहिर हैं सब पास पड़ोसी, घर में आग लगाने में।। गऊ सरीखे जीजा तेरे, देवर मीठी छूरी है। आ न सकूँगी इस राखी में, भैया कुछ मजबूरी है।।१ बीज खाद की चढ़ी उधारी, गेह गिरस्थी है घायल। खेतों में हो सकी बुआई, जब गिरवी रख दी पायल। भैंस बियानी घर की जब से, बंद दूध की चंदी पर, मुझे दिहाड़ी मिल जाती है, पंचायत जो है कायल।। पेट पालने को सच भैया, कुछ श्रमदान जरूरी है। आ न सकूँगी इस राखी में, भैया कुछ मजबूरी है।।२ नाम लिखाया है काॅलिज में, बिटिया का रजधानी में। फेल हो गया गुड्डू ...
हम तेरे मधु-गीत बनेंगे
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हम तेरे मधु-गीत बनेंगे

बृजेश आनन्द राय जौनपुर (उत्तर प्रदेश) ******************** हे प्रिय! हम-तुम दोनों मिलकर, जीवन का संगीत रचेंगे। तुम मेरी कविते बन जाना, हम तेरे मधु-गीत बनेंगे ।। दर्द-दर्द जब उभरे होंगे, भाव-भाव जब निखरे होंगे, अक्षर-अक्षर आँसू बनके- शब्द-शब्द में बिखरे होंगे! तब हम ‌ छन्दों की माला में, बिरहा के सब रीत लिखेंगे! तुम मेरी कविते बन ‌ जाना, हम तेरे मधु-गीत बनेंगे।। जब लहर उठेगी यादों की, जब आह! उठेगी वादों की, 'कितना सुन्दर साथ हमारा, ज्यों मिलन दोपहर-रातों की!' सुखदा-संध्या के मौसम में- बारहमासा - प्रीत लिखेंगे। तुम मेरी कविते बन जाना, हम तेरे मधु-गीत बनेंगे।। कभी-कहीं सुर-साज मिलेंगे, तालों पे जब ताल चलेंगे, कैसे रोक - सकेंगे मन को, नर्तन को जब पॉव उठेंगे! तेरी लय पाने की खातिर- सरगम के कुछ नीत रखेंगे! तुम मेरी कविते बन जाना, हम तेरे मधु-गीत बनें...
आहट
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आहट

मीना भट्ट "सिद्धार्थ" जबलपुर (मध्य प्रदेश) ******************** आहट सुनकर बौराती हूँ, तकती निशिदिन द्वार। तुझ बिन सूना घर आँगन है, लगता जीवन भार।। स्वप्न सजाए लाखों मैने, पुष्प बिछाये पाथ। प्यास बुझाने मेह बुलाए, लगा न कुछ भी हाथ।। बंधन सारे तोड़ चला तू, मानी मैंने हार।। कंचन थाली काम न आई, भूखा सोया लाल। यम ने बाहुपाश में बाँधा, बलशाली है काल।। नयनों से बस नीर बहे है, उर जलते अंगार।। तंत्र- मंत्र सब खाली जाते, आया है अवसाद। मुरझाई प्रेमिल बगिया है, शेष रही है याद।। फेंक मौत का जाल मौन अब, बैठ गया करतार। पीड़ा माँ की कौन जानता, जाने बस सिद्धार्थ। ममता ने दी बस आशीषें, भूलो मत तुम पार्थ।। मानव केवल दास नियति का, बात करो स्वीकार। परिचय :- मीना भट्ट "सिद्धार्थ" निवासी : जबलपुर (मध्य प्रदेश) पति : पुरुषोत्तम भट्ट माता : स्व. सुमित्रा पा...
गुरुवर वंदना
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गुरुवर वंदना

मीना भट्ट "सिद्धार्थ" जबलपुर (मध्य प्रदेश) ******************** अंतस में विश्वास भरो प्रभु, तामस को चीर। प्रेम भाव से जीवन बीते, दूर हो सब पीर।। मान प्रतिष्ठा मिले जगत में, उर यही है आस। शीतल पावन निर्मल तन हो, सुखद हो आभास।। कोई मैं विधा नहीं जानूँ, गुरु सुनो भगवान। भरदो शिक्षा से तुम झोली, दो ज्ञान वरदान।। शिष्य बना लो अर्जुन जैसा, धनुषधारी वीर। बैर द्वेष तज दूँ मैं सारी, खोलो प्रभो द्वार। न्याय धर्म पर चलूँ सदा मैं, टूटे नहीं तार।। आप कृपा के हो सागर, प्रभो जीवन सार। रज चरणों की अपने देदो, गुरु सुनो आधार।। सेवा में दिनरात करूँ प्रभु, रहूँ नहीं अधीर। एकलव्य सा शिष्य बनूँ मैं, रचूँ फिर इतिहास। सत्य मार्ग पर चलता जाऊँ, हो जग उजास।। ब्रह्मा हो गुरु आप विष्णु हो, कहें तीरथ धाम। रसधार बहादो अमरित की, जपूँ आठों याम।। दीपक ज्ञान का अब जला दो, ...
धागों का त्योहार
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धागों का त्योहार

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** थिरक रहा है आज तो, नैतिकता का सार। है अति पावन, निष्कलुष, धागों का त्योहार।। बहना ने मंगल रचा, भाई के उर हर्ष। कर सजता,टीका लगे, देखो तो हर वर्ष।। उत्साहित अब तो हुआ, सारा ही संसार। है अति पावन, निष्कलुष, धागों का त्योहार।। आशीषों का पर्व है, चहक रहा उल्लास। सावन के इस माह में, आया है विश्वास।। गहन तिमिर हारा हुआ, बिखरा है उजियार। है अति पावन, निष्कलुष, धागों का त्योहार।। बचपन का जो साथ है, देता नित्य उमंग। रहे नेह बन हर समय, वह दोनों के संग।। राखी बनकर आ गई, एक नवल उपहार। है अति पावन, निष्कलुष, धागों का त्योहार।। इतिहासों में लेख है, महिमा सदा अनंत। गाथा वेद-पुराण में, वंदन करते संत।। नीति-प्रीति से रोशनी, गूँज रही जयकार। है अति पावन, निष्कलुष, धागों का त्योहार।। परिचय :- प्रो. डॉ. शरद नारायण ख...
दीवारें पत्थर की
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दीवारें पत्थर की

भीमराव झरबड़े 'जीवन' बैतूल (मध्य प्रदेश) ******************** हाथ हथौड़ी ले शिक्षा की, छेनी साथ हुनर की। तोड़ रही सच आज नारियाँ, दीवारें पत्थर की।। जकड़े थे कोमल भावों पर, रूढ़िवाद के बंधन। हाथ-पाँव चक्की-चूल्हे में, झुलसे बनकर ईंधन। परंपराओं की कैंची ने, बचपन से पर काटे, पाषाणी सदियों ने इनके, सुनें न अब तक क्रंदन।। प्रीति युक्त जिनके चरित्र को, पुड़िया कहा जहर की। तोड़ रही सच आज नारियाँ, दीवारें पत्थर की।।१ कसी कसौटी पर छलना के, आदिम युग से नारी। वत्सल पर धधकाई जग ने, लांछन की चिनगारी। धरा तुल्य उपकारी जिसके, भाव रहे हो उर्वर, हुए नहीं संतुष्ट भोग कर, रागी स्वेच्छाचारी।। हर पड़ाव पर बनी निशाना, व्यंग्य युक्त नश्तर की। तोड़ रही सच आज नारियाँ, दीवारें पत्थर की।।२ उठ पौरुष के अहंकार ने, पग-पग डाले रोड़े। गाँठ प्रीति की जिनसे बाँधी, ताने सबने कोड़े...
प्रीति गगरिया
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प्रीति गगरिया

मीना भट्ट "सिद्धार्थ" जबलपुर (मध्य प्रदेश) ******************** प्रीति गगरिया छलक रही है, भटक रहा हिय बंजारा। चातक मन निष्प्राण हुआ है, मरुथल है जीवन सारा।। प्रीत घरौंदा टूट गया है, करें चूड़ियाँ हैं क्रंदन। मौन पायलों की रुनझुन है, भूल गया है उर स्पंदन ।। कैद पड़ी पिंजरे में मैना, दूर करो अब अँधियारा। अवसादों में प्रीत घिरी अब, सहमी तो शहनाई है। कुंठित हुई रागिनी सरगम, प्रेम -वलय मुरझाई है।। अवगुंठन में छिपा चाँद है, पट खोलो हो उजियारा। जर्जर ये जीवन की नैया, हिचकोले पल -पल खाती। बहती हैं विपरीत हवाएं, भूले प्रिय लिखना पाती।। गूँगी बहरी दसों दिशाएँ, बहे आँसुओं की धारा। परिचय :- मीना भट्ट "सिद्धार्थ" निवासी : जबलपुर (मध्य प्रदेश) पति : पुरुषोत्तम भट्ट माता : स्व. सुमित्रा पाठक पिता : स्व. हरि मोहन पाठक पुत्र : सौरभ भट्ट पुत्र वधू : डॉ. प्रीत...
माथे का सिंदूर
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माथे का सिंदूर

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** रहे अमर श्रंगार नित्य ही, माथे का सिंदूर। जिसमें रौनक बसी हुई है, जीवन का है नूर।। जोड़ा लाल सुहाता कितना, बेंदी, टिकुली ख़ूब। शोभा बढ़ जाती नारी की, हर इक कहता ख़ूब।। गौरव-गरिमा है माथे की, आकर्षण भरपूर। नग़मे गाता है सुहाग के, माथे का सिंदूर।। अभिसारों का जो है सूचक, तन-मन का है अर्पण। लाल रंग माथे का लगता, अंतर्मन का दर्पण।। सात जन्म का बंधन जिसमें, लगे सुहागन हूर। नग़मे गाता है सुहाग के, माथे का सिंदूर।। दो देहें जब एक रंग हों, मुस्काता है संगम। मिलन आत्मा का होने से, बनती जीवन-सरगम।। जज़्बातों की बगिया महके, कर दे हर ग़म दूर। नग़मे गाता है सुहाग के, माथे का सिंदूर।। चुटकी भर वह मात्र नहीं है, प्रबल बंध का वाहक। अनुबंधों में दृढ़ता बसती, युग-युग को फलदायक।। निकट रहें हरदम ही ...
सवेरा
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सवेरा

मीना भट्ट "सिद्धार्थ" जबलपुर (मध्य प्रदेश) ******************** जाग सखी री!उतर क्षितिज से आया सुखकर भोर। उदयाचल से झाँक रहा है, देखो शुभदे दिनकर। बादल अभिनंदन करते हैं, सूर्यदेव का हँसकर।। तुहिन कणों के अगणित मोती, बिखरे चारों ओर । जाग सखी री! उतर क्षितिज से, आया सुखकर भोर ।। देखो महकी सुभग वाटिका, लदी सुमन से डाली। पंचम स्वर में कूक रही है, कोयलिया मतवाली।। मन को आनंदित करता सखि! मधुप वृंद का शोर । जाग सखी री! उतर क्षितिज से, आया सुखकर भोर।। सरिता के तट चकवा चकवी, गीत प्रणय के गाते। बड़े सवेरे उठे बटोही, अपने पथ पर जाते।। नभ में ओझल हुआ सुधाकर, दिखता व्यथित चकोर। जाग सखी री! उतर क्षितिज से, आया सुखकर भोर।। परिचय :- मीना भट्ट "सिद्धार्थ" निवासी : जबलपुर (मध्य प्रदेश) पति : पुरुषोत्तम भट्ट माता : स्व. सुमित्रा पाठक पिता : स्व. हरि मो...
बेड़ियां
गीत

बेड़ियां

अंजली शर्मा दमोह, जबलपुर, (मध्य प्रदेश) ******************** चित्र देखो कविता लिखो प्रतियोगिता हेतु प्राप्त रचना तय समय के बाद प्राप्त होने से प्रतियोगिता में सम्मिलित नहीं हो सकी ...अतः क्षमा ....🙏🏻 उत्कृष्ट रचना हेतु रचनाकार को शुभकामनाएं ...🙏🏻💐💐💐 सच की राह चल सको तो अब मुकरना मत जो आए तुम्हे रोकने तुम रुकना मत कुछ कहेंगे अपशब्द, कुछ कहेंगे बुरा भी तुम्हे सादर शीष झुकाना, बाते उनकी सुनना मत जो आए तुम्हे रोकने तुम रुकना मत और पैरो में पड़ी बेड़ियां, जो तुमने अब तोड़ी है खुद को संवार कर झूठी राह छोड़ी है ना दबना गलत बात पर, गलत पैरो में गिरना मत जो आए तुम्हे रोकने तुम रुकना मत और जो आए तुम्हे खींचने, बांह तुम्हारी मरोड़ने हिंसा, जख्म और जख्मी दिल को कचोड़ने रोक देना हाथ वही, दिल अपना पसीजना मत जो आए तुम्हे रोकने तुम रुकना मत टूटी आशा आंखे सू...
क्षण- बोध
गीत

क्षण- बोध

डॉ. छगन लाल गर्ग "विज्ञ" आकरा भट्टा, सिरोही (राजस्थान) ******************** आह उर संवेदना को पालता हूँ ! दर्द की हर आग जलना चाहता हूँ !! खो गयी घनघोर रातें वासना में ! स्वप्न टूटे मोम से लो कामना में ! राग की मृदु वर्तिका- सी याचना में ! भ्रांत मारुत घोलता विष साधना में ! दीप भीतर का जलाना चाहता हूँ ! दर्द की हर आग जलना चाहता हूँ !! रिश्तों की अब बात बस अंगार जैसे! स्वार्थ में सब भूलते अपनत्व कैसे ! लोग बन बेशर्म हो उन्मत्त ऐसे ! फैंकते हर बोल बन प्रस्तर जैसे ! कोख की हर छाँव पलना चाहता हूँ ! दर्द की हर आग जलना चाहता हूँ !! कोन है जो थपकियाँ दे वेदना में ! बोल दे दो बोल मीठे चेतना में ! व्यर्थ रिश्ते- वासना संवेदना में ! अर्थ गहरे कह सके नवचेतना मेें ! हूँ अकेला ही सदा यह जानता हूँ ! दर्द की हर आग जलना चाहता हूँ !! कब कहूँगा प्यार से संतुष्ट हूँ मैं ! जागता ...
आती है जब याद तुम्हारी
गीत

आती है जब याद तुम्हारी

रमाकान्त चौधरी लखीमपुर खीरी (उत्तर प्रदेश) ******************** आती है जब याद तुम्हारी, नयन सजल हो जाते हैं। धीरे धीरे बारिश वाले, फिर बादल हो जाते है। प्रेम प्रदर्शित हो न जाये, पूरी कोशिश करता हूँ, इसीलिए तो दिल पर अपने, पूरी बंदिश करता हूँ। नयन समझ लेते जब दिल को तब मरुथल हो जाते हैं। आती है जब याद तुम्हारी, नयन सजल हो जाते हैं। अपनी उँगली की पोरों से, जब भी तुम छू लेते हो मुझे लगा कर सीने से और बस मेरे हो लेते हो। मेरी आँखों के आँसू, तब गंगाजल हो जाते हैं। आती है जब याद तुम्हारी, नयन सजल हो जाते हैं। हँसी तुम्हारी अपनी कविता और गीतों में लिखता हूँ। तुम संग हमने जितने बिताए वे सारे पल लिखता हूँ। सिर्फ तुम्हारे पढ़ लेने से सब शब्द गजल हो जाते हैं। आती है जब याद तुम्हारी, नयन सजल हो जाते हैं। प्यार निभाने का मसअला है थोड़ी बात कठिन तो है। दिल...
सुशोभित नभ
गीत

सुशोभित नभ

मीना भट्ट "सिद्धार्थ" जबलपुर (मध्य प्रदेश) ******************** दिनकर सुशोभित नभ, धरा मोहित बड़ी हर्षित। ऊर्जा नई आई, हुए जलजात-सी सुरभित।। सुषमा निराली है छुअन अधरों रसीली भी। परिणय पलों की ये, तरणि -रति है छबीली भी।। अभिसार दृग करते, युगों से देख अनुबंधित। शृंगार लिखता कवि, सुमन कचनार-सा न्यारा। ये शिल्प लतिकाएँ, प्रणय विस्तार मधुधारा।। पिक गीत अनुगुंजित, हुए हिय भाव अनुरंजित। मन-मेघ कहते हैं, प्रगल्भित प्रीति पावन है। अबुंज नयन मंजुल, लगे प्रतिबिंब सावन है।। कलियाँ महकती-सी, खिला यौवन हुआ पुलकित। परिचय :- मीना भट्ट "सिद्धार्थ" निवासी : जबलपुर (मध्य प्रदेश) पति : पुरुषोत्तम भट्ट माता : स्व. सुमित्रा पाठक पिता : स्व. हरि मोहन पाठक पुत्र : सौरभ भट्ट पुत्र वधू : डॉ. प्रीति भट्ट पौत्री : निहिरा, नैनिका सम्प्रति : सेवानिवृत्त जिला न्यायाधीश ...
क्यों उजड़ा प्यारा कुंज
गीत

क्यों उजड़ा प्यारा कुंज

मीना भट्ट "सिद्धार्थ" जबलपुर (मध्य प्रदेश) ******************** क्यों उजड़ा प्यारा कुंज यह, रोती बैठी हीर अब। नैनों के निर्झर छलकते, कैसे रखते धीर अब।। चुभती गुंजारें भ्रमर की, बौरानी यह प्रीत भी। बागों की बुलबुल विकल अब, रूठे पावस गीत भी।। मायावी चलते चाल हैं, विश्वासों को चीर अब। मंजरियाँ सब मुरझा गयीं, काँपे कोमल गात भी। गिरगिट सा रंग बदल रही चादर ताने रात भी।। रूप बदल छलता चाँद यह, आँखों देखो नीर अब। ढाई आखर इस प्रेम से, चोटिल हर पल साँस है। करता क्रंदन मन मोर ये, टूटी जीवन आस है।। पगली हुई बंजारन भी, बिलखे अंतस पीर अब। परिचय :- मीना भट्ट "सिद्धार्थ" निवासी : जबलपुर (मध्य प्रदेश) पति : पुरुषोत्तम भट्ट माता : स्व. सुमित्रा पाठक पिता : स्व. हरि मोहन पाठक पुत्र : सौरभ भट्ट पुत्र वधू : डॉ. प्रीति भट्ट पौत्री : निहिरा, नैनिका सम्प्रति : से...
बनी पाँव में बेड़ी पायल
गीत

बनी पाँव में बेड़ी पायल

मीना भट्ट "सिद्धार्थ" जबलपुर (मध्य प्रदेश) ******************** बनी पाँव में बेड़ी पायल, अब सिंदूर उदास। सभा मध्य रो रही द्रोपदी बस कान्हा ही आस।। पाँचों पति हो मौन देखते, चीर हरण का घात। दुष्ट दुशासन भूल चुका है, परिणामों की बात।। सभा मौन बैठी है सारी, टूटा है विश्वास। नारी को संपत्ति समझ कर, खेला चौसर दाँव। धर्मराज भी सबकुछ हारे, बचा नहीं हैं ठाँव।। बलि चढ़ती सब अधिकारों की, बस आँसू हैं पास। लक्ष्मण रेखा लाँघी सीता, हरण हुआ तत्काल। सदियों से है पीड़ा सहती, लिखा यही बस भाल।। देवी चंडी दुर्गा मानें, फिर क्यों देते त्रास। संस्कारों को भूल गये सब, खोयी है पहचान। लूट रहे हैं सतत उसे ही, करते नित अपमान।। सभी युगों की यही कहानी, बीते दिन अरु मास। परिचय :- मीना भट्ट "सिद्धार्थ" निवासी : जबलपुर (मध्य प्रदेश) पति : पुरुषोत्तम भट्ट माता : स्व. सु...
धवल चाँदनी
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धवल चाँदनी

मीना भट्ट "सिद्धार्थ" जबलपुर (मध्य प्रदेश) ******************** धवल चाँदनी भी मुस्काती, रजनी भी इतराती है। मस्त मिलन की बेला आई, गोरी भी बलखाती है।। छेड़े जुगनूँ प्रीति रागिनी, दीपक आस जलाते भी। संदल खुशबू तन से आती, प्रियवर तुम्हें बुलाते भी।। अर्पित है ये जीवन सारा, साँस-साँस इठलाती है। कोण-कोण फैला उजियारा, झूम रही डाली-डाली। नभ में तारों की मालाएँ रात दिव्य प्रिय मतवाली।। तन-मन आकुल आलिंगन को, गोरी बात बनाती है। मधु-उत्सव की मदिर उमंगें, नेह नयन प्रिय बरसाते। प्रेम पालने उन्नत होते, रति जैसे हम मुस्काते।। चंदा भी अठखेली करता, निशा प्रेम की पाती है। परिचय :- मीना भट्ट "सिद्धार्थ" निवासी : जबलपुर (मध्य प्रदेश) पति : पुरुषोत्तम भट्ट माता : स्व. सुमित्रा पाठक पिता : स्व. हरि मोहन पाठक पुत्र : सौरभ भट्ट पुत्र वधू : डॉ. प्रीति भट्ट पौत्री :...
चाल यम भी चल गया है
गीत

चाल यम भी चल गया है

मीना भट्ट "सिद्धार्थ" जबलपुर (मध्य प्रदेश) ******************** चाल यम भी चल गया है, वेदना की यह घड़ी, मोलतीं जो चूडियाँ हैं, आँसुओं की हैं झड़ी। प्रेम-पंछी उड़ गया है, रो रही है यामिनी, जाल मकड़ी ने बुना है, आह भरती मानिनी, नीम आहें भर रहा है, रो रहा बरगद छड़ा, ताल छाती पीटता है, हादसा है यह बड़ा, शब्द कुंठित हो गए हैं, लाश है घर पर पड़ी। चीखती हर साँस चिंतित, प्राण वह अनमोल था। माँग का सिंदूर चुप है, आस का भूगोल था।। चार कंधों का सहारा, और तन पर खोल था। मौत होनी है सचाई, जीवनी का मोल था।। क्यों गड़ी? कैसे गड़ी जो, कील आँखों में गड़ी। फिर विसर्जित पुष्प भी अब, देख गंगा धार में। बह गया है संग सब कुछ, हम खड़े मझधार में।। शेष कुछ यादें बचीं हैं, भीगते रूमाल में। चेतना सब खो गयी है, अंजुली के थाल में।। बोझ ये जीवन बना अब, है कठिन जुड़नी कड़ी। प...
साहस भर लो अंतर्मन में
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साहस भर लो अंतर्मन में

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** साहस भर लो अंतर्मन में, श्रम के पथ जाओ। करना है जो, कर ही डालो, मंज़िल को पाओ।। साहस लेकर, संग आत्मबल बढ़ना ही होगा। जो भी बाधाएँ राहों में, लड़ना ही होगा। काँटे ही तो फूलों का नित मोल बताते हैं। जो योद्धा हैं वे तूफ़ाँ से नित भिड़ जाते हैं।। मन का आशाओं से प्रियवर अब श्रंगार करो। ज़िद पर आकर, हाथ बढ़ाओ, बढ़ते ही जाओ। करना है जो, कर ही डालो, मंज़िल को पाओ।। असफलता से मार्ग सफलता का मिल जाता है। सब कुछ होना, इक दिन हमको ख़ुद छल जाता है।। असफलता से एक नया, सूरज हरसाता है। रेगिस्तानों में मानव तो नीर बहाता है।। चीर आज कोहरे को मानव, तुम उजियारा लाओ। करना है जो, कर ही डालो, मंज़िल को पाओ।। भारी बोझ लिए देखो तुम, चींटी बढ़ती जाती है। एक गिलहरी हो छोटी पर, ज़िद पर अड़ती जाती है।। हार मिलेगी, तभी जीत की...
तुम होली पर आ जाओ
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तुम होली पर आ जाओ

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** हे! गिरिधारी नंदलाल, तुम होली पर आ जाओ।। राधारानी को सँग लेकर, फिर से रँग बरसाओ।। प्रेम आजअभिशाप हो रहा, बढ़ता नित संताप है। भटकावों का राज हो गया, विहँस रहा अब पाप है।। प्रेम,प्रीति की गरिमा लौटे, अंतस में बस जाओ।। राधारानी को सँग लेकर, फिर से रँग बरसाओ।। मक्कारों की बन आई है, फूहड़ता की महफिल। फेंक रहे सब नकली पाँसे, व्याकुल हैं सच्चे दिल।। द्रोपदियाँ तो डरी हुई हैं, बंशी मधुर बजाओ। राधारानी को सँग लेकर, फिर से रँग बरसाओ।। आशाएँ तो रोज़ सिसकतीं, मातम का है मेला। कहने को है प्यार यहाँ पर, हर दिल आज अकेला।। हे नटनागर ! रासरचैया, मंगलगान सुनाओ। राधारानी को सँग लेकर, फिर से रँग बरसाओ।। परिचय :- प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे जन्म : २५-०९-१९६१ निवासी : मंडला, (मध्य प्रदेश) शिक्षा : एम.ए (इति...