रंग भरी पिचकारी लेकर
रीतु देवी "प्रज्ञा"
(दरभंगा बिहार)
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फूल सजाकर इन अंगों में,
सजनी लगे सजीली हो।
रंग भरी पिचकारी लेकर,
लगती बड़ी रसीली हो।।
मीठी लगती तेरी बोली,
तू है सबकी हमजोली।
रसिक भाव की बनी स्वामिनी,
मन मति की निश्छल भोली।।
संग सहेली झूमझूम कर,
लगती छैल ,छबीली हो।
रंग भरी पिचकारी लेकर,
लगती बड़ी रसीली हो।।
आयी है तू लेकर टोली,
मस्ती की होगी होली।
हर मनसूबे अब हों पूरे,
खा लें हम भांग नशीली।।
इठलाती सदा हंँसी देकर,
लगती बड़ी हठीली हो।
रंग भरी पिचकारी लेकर,
लगती बड़ी रसीली हो।।
खुशियों से भर दो तुम झोली,
आँखों से मारो गोली।
तुम हो जाओ मेरे प्रियतम,
आज सजे सपने डोली।।
हाथ अपने सारंगी लेकर,
गाती बड़ी सुरीली हो।
रंग भरी पिचकारी लेकर,
लगती बड़ी रसीली हो।।
परिचय :- रीतु देवी (शिक्षिका) मध्य विद्यालय करजापट्टी, केवटी दरभंगा, बिहार
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