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गीत

जाने है ये सफ़र कैसा
ग़ज़ल, गीत

जाने है ये सफ़र कैसा

विवेक रंजन 'विवेक' रीवा (म.प्र.) ******************** सूनी माँग सी राहों जैसा जाने है ये सफ़र कैसा, हर बस्ती वीरान मिली, नहीं खुशी का शहर देखा। नींद कुचलकर सुबह हुई और शाम ने भी पहलू बदले, कितनों की ही मौत हुई शमशान मगर बेखबर देखा। जहाँ पर खींचते हैं लोग जब तब लक्ष्मण रेखा, उसी दुनिया में हमने ज़िन्दगी को दर बदर देखा। रहते थे जो शीशमहल में घर उन्होंने बदल लिया, जब जब झाँका सीने में वहाँ फ़क़त पत्थर देखा। 'विवेक' झील के दरपन में लिखी प्रेम की इबारतें, मन कस्तूरी महक उठा जब उनको भर नज़र देखा। . परिचय :- विवेक रंजन "विवेक" जन्म -१६ मई १९६३ जबलपुर शिक्षा- एम.एस-सी.रसायन शास्त्र लेखन - १९७९ से अनवरत.... दैनिक समय तथा दैनिक जागरण में रचनायें प्रकाशित होती रही हैं। अभी हाल ही में इनका पहला उपन्यास "गुलमोहर की छाँव" प्रकाशित हुआ है। सम्प्रति - सीमेंट क्वालिटी कंट्रोल कनसलटेंट के रूप में ...
है कण्टक से पूर्ण प्रेम पथ
गीत

है कण्टक से पूर्ण प्रेम पथ

रशीद अहमद शेख 'रशीद' इंदौर म.प्र. ******************** सावधान रहना है प्रेमी प्रेम-यात्रा नियम कड़े। है कंटक से पूर्ण प्रेम पथ ज़रा संभल कर पाँव पड़े पथ पर पाहन पड़े नुकीले धधक रहे अंगारे हैं। तिमिर अमा का दिशा-दिशा में, ओझल चाँद-सितारे हैं। गहरी दुविधा की सरिता है, कठिनाई के अचल खड़े। है कण्टक से पूर्ण प्रेम पथ, ज़रा संभल कर पाँव पड़े। मन विचलित तन में पीड़ा है, ज्वर से तापित अंग सभी। अंधकार आँखों के सम्मुख, धुंधले-धुंधले रंग सभी। पग घायल, छाले फूटे हैं, अवरोधक हैं बड़े-बड़े। है कण्टक से पूर्ण प्रेम पथ, ज़रा संभल कर पाँव पड़े। नयनों में है फिर भी आशा, अद्भुत है विश्वास बसा। संकल्पित हैं तन-मन दोनों, व्रत है कोई पर्वत-सा। जगत साक्षी है चरणों ने, कितने ही इतिहास घड़े। है कण्टक से पूर्ण प्रेम पथ, ज़रा संभल कर पाँव पड़े . परिचय -  रशीद अहमद शेख 'रशीद' साहित्यिक उपनाम ~ ‘रशीद’ जन्मति...
फुटपाथों को कहाँ झोंपड़ी
गीत

फुटपाथों को कहाँ झोंपड़ी

अख्तर अली शाह "अनन्त" नीमच ******************** बड़ी बड़ी बातें करलें पर, यह कड़वी सच्चाई है। फुटपाथों को कहाँ झोंपड़ी, एक यहाँ मिल पाई है।। जन कल्याण के खातिर हमने, बनती सरकारें देखी। वोट के खातिर नेताओं की, चलती मनुहारें देखी।। वादों से फिरते नेताओं, को देखा उसके पश्चात। और कभी देखा है उनको, करते जनता पर ही घात।। प्रश्न यही क्या आज करें हम, सम्मुख गहरी खाई है। फुटपाथों को कहाँ झोंपडी, एक यहाँ मिल पाई है।। माना हमने, देश बड़ा है, और हजारों मसले हैं। हर मसले का हल हो ऐसी, उगा रहे वो फसले हैं । लेकिन लोगों की सब माया, खाली पेट रहें कैसे। हमीं न होंगे तो क्या होगा, बोलो दर्द सहें कैसे।। इतसी जो बात न समझे, समझो वो हरजाई है। फुटपाथों को कहाँ झोंपड़ी, एक यहाँ मिल पाई है।। "अनन्त" तन भी नंगा है और, गरमी सरदी सहता है। गांधी का है देश देर तक, सदमें सहता रहता है।। आसमान को छत कहकर वो, ...
सुनो प्राणप्रिय
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सुनो प्राणप्रिय

अर्पणा तिवारी इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** सावन का मोर संग लहरों का शोर संग पतंग का डोर संग चांद का चकोर संग रातों का जो भोर संग नाता ज्यों सुहाना है सुनो प्राणप्रिय तुम्हे मुझे संग संग ऐसे ही निभाना है। नदी का किनारों संग फूलों का बहारों संग डोली का कहारो संग नैनों का इशारों संग मौसम का नजारों संग नाता ज्यों सुहाना है सुनो प्राणप्रिय तुम्हे मुझे संग संग ऐसे ही निभाना है। मन का जो मीत संग जग का जो रीत संग पाती का जो प्रीत संग बाती का जो दीप संग स्वाति का जो सीप संग नाता ज्यों सुहाना है सुनो प्राणप्रिय तुम्हे मुझे संग संग ऐसे ही निभाना है। गीत का संगीत संग प्यासे का जो नीर संग पंछियों का जो नीड़ संग काजल का जो दीठ संग आंसू का जो पीर संग नाता ज्यों सुहाना है सुनो प्राणप्रिय तुम्हे मुझे संग संग ऐसे ही निभाना है। जग बैरी रूठे चाहे सांसों की ये माला टूटे शूल मिले चाहे मुझे ...
तोड़ दे रंजिशें
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तोड़ दे रंजिशें

जितेन्द्र रावत मलिहाबाद लखनऊ (उत्तर प्रदेश) ******************** तोड़ दे रंजिशें मैं मुक्कदर तेरा। तू है नींद मेरी मैं हूँ ख़्वाब तेरा। तू है बेचैन क्यों मेरी दिलरुबा। आँखों को अश्क़ों में मत डूबा। तू है सवाल मेरा मैं हूँ जवाब तेरा। तू है नींद मेरी मैं हूँ ख़्वाब तेरा। बेहिसाब रब से इबादत की। उन दुवाओ में तेरी चाहत थी। तू है दौलत मेरी, मैं हिसाब तेरा। तू है नींद मेरी, मैं हूँ ख़्वाब तेरा तू सियासत के जैसे बदलना नही। मेरे प्यार को दीवार में चुनना नही। तू है अनारकली मेरी, मैं हूँ नवाब तेरा। तू है नींद मेरी, मैं हूँ ख़्वाब तेरा। बेचैनी क्यों तू दिल में सजी। सूरत तेरी, आँखों में बसी। तू है मन्नत मेरी, मैं सवाब तेरा। तोड़ दे रंजिशें मैं मुक्कदर तेरा। तू है नींद मेरी, मैं हूँ ख़्वाब। . परिचय :- जितेन्द्र रावत साहित्यिक नाम - हमदर्द पिता - राधेलाल रावत निवासी - ग्राम कसमण्डी कला, ...
पृथ्वी है वरदान
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पृथ्वी है वरदान

अख्तर अली शाह "अनन्त" नीमच ******************** पृथ्वी है वरदान प्रभु का, इसको गले लगाएं हम। इसे सजाएं इसे संवारें, जीवन सफल बनाएं हम।। रहने की है जगह यही तो, पालन पोषण करती है। बाद मृत्यु के आश्रय देने, वाली भी ये धरती है।। जीवन की क्या कोई कल्पना, बिन इसके हो सकती है। इसीलिए तो धरती हमको, लोगों माँ सी लगती है।। माँ माने हम माँ सा ही दें, मान इसे सुख पाएं हम। इसे सजाएं इसे संवारें, जीवन सफल बनाएं हम।। धरती को धनवान रखें हम, कभी न निर्धन होने दें। जितना हो आवश्यक हम लें, नाहक इसे न रोने दें।। बंजर गर कर देंगे धरती, कैसे जान बचाएंगे। भूखे प्यासे रहना होगा, जीवन कैसे लाएंगे।। ऐसा ना हो छाती छलनी, करें और पछताएं हम। इसे सजाएं इसे संवारें, जीवन सफल बनाएं हम।। जैव विविधता हो तो धरती, कितनी सुंदर मन भाती। हरी हरी जब चादर ओढ़े, नई वधू सी इठलाती।। पेड़ अगर कट जायेंगे तो, क्या बरसात रिझा...
एक आग
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एक आग

जितेन्द्र रावत मलिहाबाद लखनऊ (उत्तर प्रदेश) ******************** एक आग नही अब बुझती है। तुम्हें देखे बिना आँखे चुभती है। ख़्वाब नही हकीक़त थे मेरे। मैं ही नही सब साथ है तेरे। दर्द में शराब ना घुलती है। एक आग नही अब बुझती है। तुम्हें देखे बिना आँखे चुभती है। क्या जुर्म किया ये कहती तो। मेरा हाल-ए-दिल तुम सुनती तो। तेरी याद मुझे अब दुखती है। एक आग नही अब बुझती है। तुम्हें देखे बिना आँखे चुभती है। तुम्हें दिल की किताब में लिखा है। नफ़रत लिखूँगा अब जो मुझे दिखा है। बिन प्यास के चाहत सूखती है। एक आग नही अब बुझती है। तुम्हें देखे बिना आँखे चुभती है। . परिचय :- जितेन्द्र रावत साहित्यिक नाम - हमदर्द पिता - राधेलाल रावत निवासी - ग्राम कसमण्डी कला, मलिहाबाद लखनऊ (उत्तर प्रदेश) शिक्षा - बी.ए (बी.टी.सी) राष्ट्रीयता - भारतीय भाषा - हिन्दी जाति - हिन्दू साहित्य में उपलब्धियां - अनेको...
भावों का रसमयी प्रदर्शन
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भावों का रसमयी प्रदर्शन

अख्तर अली शाह "अनन्त" नीमच ******************** भावों का रसमयी प्रदर्शन, करना है तो नाचें गाएं। रीति यही सदियों से कायम, है आओ इसको अपनाएं।। मोम बनाता है पत्थर को, नृत्य बड़ा जादूगर भाई। तन भी होता निरोग इससे, सभी जानते ये सच्चाई।। परमानंद नृत्य से मिलता, लोगों आओ नाचें गाएं । रीति यही सदियों से कायम, है आओ इसको अपनाएं।। जब बच्चों को भूख लगे तो, पैर पटकता देखा बचपन। तृप्त हुए जब खा पी करके, खुश होने का किया प्रदर्शन।। नृत्य कला है अभिव्यक्ति की, कैसे इसको कभी भुलाएं। रीति यही सदियों से कायम, है आओ इसको अपनाएं।। दुष्टों का कर दमन सर्वदा, नृत्य रहा पथ प्रभु पाने का। आराधन का साधन भी ये, नहीं तथ्य यह बहलाने का।। नृतक बनाएं खुद अपने को, भव सागर से पार लगाएं। रीति यही सदियों से कायम, है आओ इसको अपनाएं।। नटवर नागर कृष्ण कन्हैया, हैं "अनन्त" जो नश्वर लोगों। धर्म और संस्कृति से जुड...
प्रेम इबादत है पूजा है
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प्रेम इबादत है पूजा है

अख्तर अली शाह "अनन्त" नीमच ******************** प्रेम लोक परलोक सुधारे, मेरा तो अनुमान यही है। प्रेम इबादत है पूजा है, भक्ति यही भगवान यही है।। प्रेम को जिसने भी पहिचाना, उसने सबको अपना माना। रब का रूप देखकर सबमें, सबको सेवा लायक जाना।। तम में कर देता उजियारा, लासानी दिनमान यही है। प्रेम इबादत है पूजा है, भक्ति यही भगवान यही है।। प्रेम नाव, पतवार बना है , प्रेम स्वर्ग का द्वार बना है । सुख सम्पत्ति की रक्षा के हित, ये ही पहरेदार बना है।। नग्न बदन को ढकने वाला, सदियों से परिधान यही है। प्रेम इबादत है पूजा है, भक्त यही भगवान यही है ।। प्रेम बगावत करने वाला, प्रेम का विष भी अमृत प्याला। सोच समझ का काम नहीं ये, करताहै इसको दिलवाला।। विश्वासो का निर्झर है ये, कहते सब धनवान यही है। प्रेम इबादत है, पूजा है, भक्ति यही भगवान यही है।। प्रेम राह है प्रेम आस है, प्रेम तबाही में उजास है। प...
गली गली डर कोरोना का
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गली गली डर कोरोना का

अख्तर अली शाह "अनन्त" नीमच ******************** गली गली डर कोरोना का, इस डर का उपचार करें। स्वीकारें एकांत वास हम, इस विपदा पर वार करें।। संक्रामक है मर्ज कोरोना, दूरी का हम ध्यान रखें। कुल्हाड़ी ना पैरों पर हम, अपने मारे भान रखें।। नजरों से ना गिरें किसी की, बन समाज के दुश्मन हम। अपने ही भाई को क्या हम, दे पाएंगे कभी सितम।। भले लाॅकडाउन हो या हो, कर्फ्यू उसको स्वीकारें। पड़े अगर कठिनाई भी कुछ, अपनी हिम्मत ना हारें।। हम समाज से समाज हमसे, नाहक ना तकरार करें। स्वीकारें एकांतवास हम, इस विपदा पर वार करें।। कुत्ते की ना मौत मरेंगे, इटली में जो हुआ अभी। अपनी इस विपदा को हमने, कम आंका क्या कहो कभी।। साथ खड़े हम सरकारों के, नहीं आग में घी डाला। उल्टे पांव चला जाएगा, कर कोरोना मुंह काला।। खून नहीं पीने देंगे हम, खून के प्यासे दुश्मन को। करवा देंगे संकल्पित पग, जल्द बंद इस नर्तन को।। शर्...
हनुमानजी की वंदना
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हनुमानजी की वंदना

प्रिन्शु लोकेश तिवारी रीवा (म.प्र.) ******************** लोग कहते तेरी पूजा होवे २ केवल मंगलवार। हमारे लिये हर दिन मंगलवार। लोग कहते तोही शेदुर चढ़ता २ केवल मंगलवार। हमारे लिये हर दिन मंगलवार।१। तू ही मेरा करता धरता। तेरी पूजा आरति करता। बस यही मेरा कारोबार। हमारे लिये हर दिन मंगलवार।२। पवन पुत्र अंजनि के नंदन। तेरा प्रभु करता हूँ वंदन। तु ही मेरी सरकार । हमारे लिये हर दिन मंगलवार।३। हनुमानजी की महिमा रामचंन्द्र जब जनम लियो है। मिलने की इच्छा प्रगट कियो है। आप पहुँचे दशरथ द्वार। हमारे लिये हर दिन मंगलवार।४। असुर कहे तम्हें छोटा बंदर। मारा उनको घुस के अंदर। धरे देह विकराल। हमारे लिये हर दिन मंगलवार।५। महाबली हो महा हो ज्ञानी। हारे सभी असुर अभिमानी। कलि का तुम ही हो आधार। हमारे लिये हर दिन मंगलवार।६। लंका मे जब आग लगाई। डर गए है राक्षस समुदाई। सब करे तेरी जय जयकार। ह...
रंग भरी पिचकारी लेकर
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रंग भरी पिचकारी लेकर

रीतु देवी "प्रज्ञा" (दरभंगा बिहार) ******************** फूल सजाकर इन अंगों में, सजनी लगे सजीली हो। रंग भरी पिचकारी लेकर, लगती बड़ी रसीली हो।। मीठी लगती तेरी बोली, तू है सबकी हमजोली। रसिक भाव की बनी स्वामिनी, मन मति की निश्छल भोली।। संग सहेली झूमझूम कर, लगती छैल ,छबीली हो। रंग भरी पिचकारी लेकर, लगती बड़ी रसीली हो।। आयी है तू लेकर टोली, मस्ती की होगी होली। हर मनसूबे अब हों पूरे, खा लें हम भांग नशीली।। इठलाती सदा हंँसी देकर, लगती बड़ी हठीली हो। रंग भरी पिचकारी लेकर, लगती बड़ी रसीली हो।। खुशियों से भर दो तुम झोली, आँखों से मारो गोली। तुम हो जाओ मेरे प्रियतम, आज सजे सपने डोली।। हाथ अपने सारंगी लेकर, गाती बड़ी सुरीली हो। रंग भरी पिचकारी लेकर, लगती बड़ी रसीली हो।।   परिचय :-  रीतु देवी (शिक्षिका) मध्य विद्यालय करजापट्टी, केवटी दरभंगा, बिहार आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी ...
फागुन बसंती
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फागुन बसंती

रागिनी सिंह परिहार रीवा म.प्र. ******************** बसंती बहारो में, फागुन के महीन, अब लौट भी आओ तुम, होली के फुहरो में.... इतने सारे रंग पहले नहीं देखे, जब होली आयी तोरंगो के रंग देखे अब लौट भी आओ तुम, होली के फुहरो में.... ब्रज की गलियो मे, गोकुल नगारियो में, निधिवन में खेलेगे,मोहन संग होली अब लौट भी आओ तुम होली के फुहारो में.... राधा संग खेलेगे, ललिता संग खेलेगे, गोपियां संग खेले, वृंदावन में होली अब लौट भी आओ तुम होली के फुहारो में.... मीरा की निराशा मैं, पपिहे की तरह टेरु, बन-बन डोलूं मैं, हर सास तुझे टेरु अब आ जाओ मोहन फागुन के महीन में। बसंती बहारो में, फागुन के महीन में, अब लौटे भी आओ तुम होली के फुहारो में.... . परिचय :- रागिनी सिंह परिहार जन्मतिथि : १ जुलाई १९९१ पिता : रमाकंत सिंह माता : ऊषा सिंह पति : सचिन देव सिंह शिक्षा : एम.ए हिन्दी साहित्य, डीएड शिक्षाशात्र, प...
आओ खेलें होली
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आओ खेलें होली

दामोदर विरमाल महू - इंदौर (मध्यप्रदेश) ******************** भर पिचकारी रंग ना डालो, सुन साथी हमजोली। एक दूजे को गले लगाकर, आओ खेले होली। मिटादो सारे बैर जो दिल मे कबसे तुमने पाल रखे। उसको भी एक मौका दो जो दिल मे बुरे खयाल रखें। फाल्गुन की लहर में तुम भी, बनालो अपनी टोली। एक दूजे को गले लगाकर, आओ खेलें होली.... रंग मित्रता का है पीला, प्रेम का रंग है गुलाबी। पियो भांग और खाओ मिठाई, मत बनो यार शराबी। किसी के दिल को ठेस ना पहुंचे, बोलो ऐसी बोली। एक दुजे को गले लगाकर, आओ खेलें होली.... मौसम बदला शीत ऋतु की होने को है बिदाई। ग्रीष्म ऋतु की आहट हुई ये कैसी है रुत आई। बच्चों ने पिचकारी मंगाई बनाके सूरत भोली। एक दुजे को गले लगाकर, आओ खेलें होली.... इस होली तुम कबसे बिछड़े अपनो को मिलादो। गलत आदतें बुरे कर्म तुम होली के संग जलादों। आओ थोड़ा नाचलें गालें थोड़ी करलें ठिठोली। एक दूजे को गल...
लगाई तुमसे प्रीत तो
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लगाई तुमसे प्रीत तो

दामोदर विरमाल महू - इंदौर (मध्यप्रदेश) ******************** लगाई तुमसे प्रीत तो बदनाम हो गया। माना जो तुमको राधा तो मैं श्याम हो गया। हुई सुबह शुरू तो आफताब हो गया। जैसे ही दिखे तुम ये दिल गुलाब हो गया। २ करने लगा हूँ अबतो मैं बातें अजीब सी, लगता मेरा ये दिल तेरा गुलाम हो गया। लगाई तुमसे प्रीत तो... सुबह से शाम तेरा इंतज़ार हो गया। तुझको ही चाहूँ तेरा तलबगार हो गया। मेरा महक गया चमन आ जाने से तेरे, फूलों की तरह खिलके मैं गुलफाम हो गया। लगाई तुमसे प्रीत तो... आने लगा हूँ आजकल लोगो की नज़र में। मैं आधा हुआ जा रहा हूँ तेरी फिकर में। तूने तो कैद कर लिया मुझको तेरे दिल में, मेरे दिल मे यार तेरा भी मकाम हो गया। लगाई तुमसे प्रीत तो... चारो तरफ है चर्चा तेरे मेरे नाम का। था पहले अब नही रहा मैं कोई काम का। पहले जो मिला करते थे चुपके तो ठीक था, मगर ये किस्सा अबतो सरेआम हो गया। लगाई तुमस...
गुरु और शिष्य
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गुरु और शिष्य

संजय जैन मुंबई ******************** गुरु शिष्य का हो, मिलन यहां पर, फिर से दोवारा। यही प्रार्थना है हमारा। यही प्रार्थना है हमारा।। गुरु चाहते है, कि शिष्य को, मिले वो सब कुछ। जो में हासिल, कर न सका, अपने जीवन में। वो शिष्य हमारा, हासिल करे, अपने जीवन में। मैं देता आशीष शिष्य को, चले तुम सत्य के पथ पर, मिलेगा ज्ञान यही पर।। गुरु शिष्य का मिलन...। शिष्य भी पूजा करता, अपने गुरु की हर दम। उन्होंने मार्ग प्रशस्त किया, मोक्ष् जाने का शिष्य का। इसी तरह अपनी कृपा, मुझ पर बनाये रखना। ऐसी है प्रार्थना गुरुवर, में सेवक हूँ गुरुवर का। में सेवक हूँ गुरुवर का ।। गुरु शिष्य का ......।। नगर नगर में श्रावक जन, पूजा गुरु शिष्य की करते। उनके बताये हुए मार्ग पर, सदा ही हम सब चलते। मिल जायेगा हमे भी, शायद पापो से छुटकारा। यही समझता मानवधर्म हमारा। यही बतलाता मानवधर्...
आज फिर याद आये
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आज फिर याद आये

संजय जैन मुंबई ******************** मेरे दिल मे बसे हो तुम, तो में कैसे तुम्हे भूले। उदासी के दिनों की तुम, मेरी हम दर्द थी तुम। इसलिए तो तुम मुझे, बहुत याद आते हो। मगर अब तुम मुझे, शायद भूल गए थे।। आज फिर से तुम्ही ने, निभा दी अपनी दोस्ती। इतने वर्षों के बाद, किया फिरसे तुम्ही याद। में शुक्रगुजार हूँ प्रभु का, जिन्होंने याद दिला दि तुमको। की तुम्हारा कोई दोस्त, आज फिर तकलीफ में है।। में कैसे भूल जाऊं, उन दिनों को में। नया-नया आया था, तुम्हारे इस शहर में। न कोई जान न पहचान, थी तुम्हारे इस शहर में। फिर भी तुमने मुझे, अपना बना लिया था।। मुझे समझाया था कि, दोस्ती कैसी होती है। एक इंसान दूसरे का, जब थाम लेता है हाथ। और उसके दुखो को, निस्वार्थ भावों से सदा। करता है उन्हें जो दूर, वही सच्चा दोस्त होता है।। . परिचय :- बीना (मध्यप्रदेश) के निवासी संजय जैन वर्तमान में मुम्बई में कार्...
कलम का कमाल
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कलम का कमाल

संजय जैन मुंबई ******************** लिखता में आ रहा, गीत मिलन के में। कलम मेरी रुकती नही, लिखने को नए गीत। क्या क्या में लिख चुका, मुझको ही नही पता। और कब तक लिखना है, ये भी नही पता। लिखता में आ रहा.....।। कभी लिखा श्रृंगार पर। कभी लिखा इतिहास पर। और कभी लिख दिया, आधुनिक समाज पर। फिर भी आया नही, सुधार लोगो की सोच में।। लिखता में आ रहा...।। लिखते लिखते थक गये, सोच बदलने वाली बाते। फिर नही बदले लोगो के विचार। इसे ज्यादा क्या कर सकता, एक रचनाकार।। लिखता हूँ सही बात, अपने गीतों में... अपने गीतों में......।। . परिचय :- बीना (मध्यप्रदेश) के निवासी संजय जैन वर्तमान में मुम्बई में कार्यरत हैं। करीब २५ वर्ष से बम्बई में पब्लिक लिमिटेड कंपनी में मैनेजर के पद पर कार्यरत श्री जैन शौक से लेखन में सक्रिय हैं और इनकी रचनाएं हिंदी रक्षक मंच (hindirakshak.com) सहित बहुत सारे अखबारों-पत्रिकाओं...
तुमसे अलग हो कर
गीत

तुमसे अलग हो कर

आस्था दीक्षित  कानपुर ******************** तुमसे अलग हो कर ये मन न रह पाता है माँ कामो मे उलझा रह कर भी याद करता माँ आँखों मे सपने भरे पर सपने तुमसे है तुम मुझमे कुछ यूँ बसी सब अपने तुमसे है सपना पूरा करने मे तुम साथ देना माँ . तुमसे अलग ….. रात को सर पे तेरी थापे याद आती है आँगन की वो किलकारी भी याद आती है जब भी भूखा सोया हूँ तुम याद आती माँ तुमसे अलग…. अँधियारा होने पर माँ तुम लोरी गाती थी राजा बेटा कह के मेरा सर सहलाती थी उन लम्हो मे मै फिर से जीना चाहता हूँ माँ तुमसे अलग.... शाम को घर वापस आता न कोई मिलता है पूरा दिन सब क्या किया न कोई कहता है तेरा चेहरा सोच ते सब सह लेता हूँ माँ तुमसे अलग…. . परिचय -  आस्था दीक्षित पिता - संजीव कुमार दीक्षित निवासी - कानपुर आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक...
कर्तव्य
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कर्तव्य

संजय जैन मुंबई ******************** दीये का काम है जलना। हवा का काम है चलना। जो दोनों रुठ जाएंगे। तो मिट जाएगी ये दुनिंया।। गुरु का काम है शिक्षा देना। शिष्य का काम शिक्षा लेना। जो दोनों भटक जाएंगे। तो दुनियाँ निरक्षक हो जायेगी।। पुत्र का काम है सेवा करना। मातपिता का काम है पालन पोषण करना। जो दोनों एक दूसरे से मुंह मोड़ लेंगे। तो सारी दुनिंया बदल जाएगी।। इसलिए संजय कहता है, करो अपने कर्तव्यों का पालन। तभी सुंदर बन सकता, अपना ये वतन। इसलिए हमारा देश विश्व मे सबसे न्यारा है। जहाँ हर महजब के लोग हिल मिलकर रहते है।। जहाँ हर........।। . परिचय :- बीना (मध्यप्रदेश) के निवासी संजय जैन वर्तमान में मुम्बई में कार्यरत हैं। करीब २५ वर्ष से बम्बई में पब्लिक लिमिटेड कंपनी में मैनेजर के पद पर कार्यरत श्री जैन शौक से लेखन में सक्रिय हैं और इनकी रचनाएं हिंदी रक्षक मंच (hindirakshak.com) सहि...
साथ मिले तो
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साथ मिले तो

संजय जैन मुंबई ******************** तेरे प्यार का मुझको, यदि मिले जाए आसरा। तो जिंदगी हंसकर के, गुजर जाएगी यू ही। दिल के अंधेरे में एक, प्रकाश की किरण जलेगी। और मेरा अकेलापन, शायद दूर हो जाएगा।। तुझे देखकर दिल, मेरा धड़कने लगा है। बुझे हुए दीये, फिर से जलने लगे है। कुछ तो बात है तुममें जो दिल की धड़कन हो मेरी। तभी तो उजड़े हुए बाग को, फिरसे खिला दिया तुमने ।। दिलों का मिलना भी, एक इत्तफाक ही तो है। तुमसे प्यार होना भी, एक इत्तफाक ही तो है। तभी तुम बार बार मेरे, सपनो में आते जाते हो। ये कोई इत्तफाक नही, तेरे दिल में भी कुछ तो है।। . परिचय :- बीना (मध्यप्रदेश) के निवासी संजय जैन वर्तमान में मुम्बई में कार्यरत हैं। करीब २५ वर्ष से बम्बई में पब्लिक लिमिटेड कंपनी में मैनेजर के पद पर कार्यरत श्री जैन शौक से लेखन में सक्रिय हैं और इनकी रचनाएं हिंदी रक्षक मंच (hindirakshak.com) सहित बहु...
परोपकार
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परोपकार

संजय जैन मुंबई ******************** दीपक खुद जलकर के, अंधेरा दूर करता है। गुरु शिष्यों को शिक्षा देकर, उन्हें लायक बनाता है। तभी तो दुनियाँ में, इंसानियत जिंदा है। और ये दुनियाँ इसी तरह, से निरंतर चलती रहेगी।। तपस्या करने वाला, सच्चा साधक होता है। वो अपने तप और ज्ञान से, दुनियाँ को महकता है। परन्तु कुछ अपवाद, इसमें भी देखे जा रहे। अपने अहंकार के कारण खुदी वो मिटा रहे।। जो करते है निस्स्वार्थ भाव से, सेवा और भक्ति को। उन्हें ही मनबांछित फल, निश्चित ही मिलता है। तभी तो आज भी गुरु और भगवान में । लोगो की आस्था, आज तक जिंदा है।। . परिचय :- बीना (मध्यप्रदेश) के निवासी संजय जैन वर्तमान में मुम्बई में कार्यरत हैं। करीब २५ वर्ष से बम्बई में पब्लिक लिमिटेड कंपनी में मैनेजर के पद पर कार्यरत श्री जैन शौक से लेखन में सक्रिय हैं और इनकी रचनाएं हिंदी रक्षक मंच (hindirakshak.com) सहित बहुत स...
यादों के सहारे
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यादों के सहारे

संजय जैन मुंबई ******************** पुरानी यादों के सहारे, जीये जा रहा हूँ मैं। तुझे याद है कि नहीं, मुझे कुछ पता नही। तेरी बेरुखी अब मुझसे, नहीं देखी जा रही। तुझे कुछ पता है कि में कैसे जी रहा तेरे बिना।। मुझे मालूम होता कि, मोहब्बत में ये सब होगा। तो में निश्चित ही ये दिल, किसी से भी न लगता। मगर मोहब्बत कोई करता, नही सोच समझकर। ये दिल तो अपने आप, किसी से लग जाता है।। मोहब्बत का दस्तूर ही, कुछ ऐसा होता है। किसको खुशीयाँ देता है, तो किसको गम भी देता है। यही तो जिंदगी का सही, चक्र जीवन में चलता है। किसको प्यार मिलता है, किसको नफरते मिलती।। मोहब्बत करने वालो का, अलग ही अंदाज होता है। पुरानी यादों के सहारे, जीये जा रहा हूँ मैं। और जामने के दर्द को पिये जा रहा हूँ अब तक।। . परिचय :- बीना (मध्यप्रदेश) के निवासी संजय जैन वर्तमान में मुम्बई में कार्यरत हैं। करीब २५ वर्ष से बम्बई मे...
बना के ग़ज़ल तुझको
गीत

बना के ग़ज़ल तुझको

दीपक्रांति पांडेय (रीवा मध्य प्रदेश) ****************** इक बना के ग़ज़ल तुझको हम गाएंगे। छोंड़ करके शहर तेरा हम जाएंगे।। कर ले दो चार प्यारी मधुर कोई बात। फिर ना आऐगी ऐसी सुहानी सी रात।। दूर रह के भी नज़दीक हम पाएंगे। छोड़ कर के शहर तेरा हम जाएंगे।। प्यार मे यूँ बिछड़ना ज़रूरी भी है। दूर रह के महकना ज़रूरी भी है।। लाख कर ले तू कोशिश हम याद आएंगे। छोड़ कर के शहर तेरा हम जाएंगे।। यह परीक्षा तुम्हारी हमारी भी है। कितनी मीठी मधुर अपनी यारी भी है।। वादा है तेरी महफ़िल मे हम छाएंगे। छोड़ कर के शहर तेरा हम जाएंगे।। कुछ यूं हीं दूर रहकर भी जीते हैं हम। यह जहर भी जुदाई का पीते हैं हम।। सब्र कर मिलने के दिन, भी हम लाएंगे। छोड़ कर के शहर तेरा हम जाएंगे।। . परिचय :- दीपक्रांति पांडेय निवासी : रीवा मध्य प्रदेश आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोट...
हमनें तेरे लिए
गीत

हमनें तेरे लिए

ओम प्रकाश त्रिपाठी गोरखपुर ********************** हमनें तेरे लिए हर कसम तोड़ दी दुनिया तेरे लिए हमनें यू छोड़ दी बस तमन्ना यही दिल मे है बस मेरे आप भी अब इन्हें छोड़ दें आओ संग कहीं मिलकर चलें।। हाथ मे हाथ बस यूं तुम्हारा रहे एक दूजे का हम यूं सहारा रहें गिर पड़े हम अगर यूं कहीं राह मे एक दूजे को बढ थाम लें आओ संग कहीं मिल कर चलें।। चलें ऐसी जगह ढूंढ कर हम कहीं चिडियाँ चहके जहाँ फूले कलियाँ कहीं प्यार ही प्यार हो जिस चमन मे सनम उस चमन की तरफ हम चलें आओ संग कहीं मिलकर चलें।। . परिचय :-  ओम प्रकाश त्रिपाठी आल इंडिया रेडियो गोरखपुर आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.com...