बारा मासी गीत
राधेश्याम गोयल "श्याम"
कोदरिया महू (म.प्र.)
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तुम्हारे बिन मै न जियुंगी दिलों जानी,
जैसे मछली बिन पानी।
हो पिया जैसे मछली बिन पानी.......तुम्हारे बिन.......
चैत्र, बैसाख ऐसे बीते आई याद सुहानी,
कोयल, पपिहा की वाणी सुनकर हो गई पानी पानी...
तुम्हारे बिन......
जेठ असाड़ बड़ पीपल पूजे, कई मानता मानी,
धूं-धूं करके महीने बीते, जैसे काला पानी..........
तुम्हारे बिन.......
सावन भादों में बरखा आई, लाई याद पुरानी,
झूले पड़ गए नीम पुराने,चहुं और पानी ही पानी.......
तुम्हारे बिन........
कुंवार कार्तिक शरद ऋतु आई, ठंडी हुई मनमानी,
मेला देखन सब सखी जावे, मै बैठी अनमानी........
तुम्हारे बिन........
अगहन पोष मास जब आए, बड़ गई मन हैरानी,
छोटे दिवस रैन भई लंबी, कठिन हुई जिंदगानी........
तुम्हारे बिन........
माघ फागुन बसंत ऋतु आई, रंगो ने चादर तानी,
"श्याम" हो...