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गीत

परम पिता ने कुंभा बनाया
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परम पिता ने कुंभा बनाया

अख्तर अली शाह "अनन्त" नीमच (मध्य प्रदेश) ******************** परम पिता ने कुंभा बनाया, जो चाहें जो इस में भर लें। परम पिता की करें वंदना, भवसागर के पार उतर लें।। हम कतरे हैं धर्म हमारा, सागर में मिलना ही तो है। इससे पहले तन मन माँजें, पिया मिलन को बनें संवर लें।। कितना सुखद बनाया है तन, खुशियों की खुशबू डाली है। जान लुटा दें कुंभकार पर, शिल्पकार पे दिल से मर लें।। मनका अश्व नियंत्रित करने, बुद्धि की चाबुक भी दी है। मंजिल तक की बाधाओं को, अपने बुद्धि बल से हर लें।। परमपिता का घर अपना दिल, झांको अंदर मिल जाएगा। नहीं जरूरत उसे तलाशे, घर बैठें, सच जान अगर लें।। करना उसको हम कठपुतली, मगर प्राण वाले हैं भाई। प्राण उसी के उसको सौपें, हर-हर है तो क्यों डर वरलें।। ब्राह्मण क्षत्रिय वैश्य शूद्रहम, कैसे हैं लासानी बंदे। इसे समझ लें, इसे जान लें, फिर "अनंत" जो चाहें करलें।। परिचय :- ...
आदिकाल से इस धरती पर
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आदिकाल से इस धरती पर

रशीद अहमद शेख 'रशीद' इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** आदिकाल से इस धरती पर, जो भी आया यायावर है। मानव तन क्षणभंगुर नश्वर, किन्तु आत्मा अजर-अमर है। पाकर ईशादेश आत्मा, देह-वसन धारण करती है। पंचतत्व की देह अंत में, मिले इन्हीं में जब मरती है। चले छोड़ कर देह आत्मा, कहें लोग जाए ऊपर है। मानव तन क्षणभंगुर नश्वर, किन्तु आत्मा अजर-अमर है। मानव काया मंदिर सम है, करे आत्मा वहाँ वास है। रुक जाती है जब धड़कन तो, उड़े आत्मा अनायास है। सांसें थम जाएँगी किस क्षण, किसे ज्ञात है किसे ख़बर है। मानव तन क्षणभंगुर नश्वर, किन्तु आत्मा अजर-अमर है। नीड़ शरीर आत्मा पक्षी, वह उड़ जाएगा जाने कब। जगत वृक्ष रूपी शाखा पर, सन्नाटा हो जाएगा तब। जन्म हुआ है जिसका जग में, मिटता उसका तन मरकर है। मानव तन क्षणभंगुर नश्वर, किन्तु आत्मा अजर-अमर है। नहीं आत्मा जलती-कटती, क्षरण-मरण से नहीं प्रभावित। प्राणशक्ति है ...
संस्कृति अपने भारत की
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संस्कृति अपने भारत की

अख्तर अली शाह "अनन्त" नीमच (मध्य प्रदेश) ******************** संस्कृति अपने भारत की, हमें जान से प्यारी है। सत्य अहिंसा न्याय दया की, जो जग में महतारी है।। सच्चाई के पथ पर चलकर, हम विपदाएं सहते हैं। झूठों की दुनिया में दो गज, दूर सदा ही रहते हैं।। धर्म युक्त जीवन जीने में, झूठ नहीं चल पाता है। यूँ ही सत्यनारायण लोगों, जगत पिता कहलाता है।। कोई भी युग हो असत्य की, खिली नहीं फुलवारी है । संस्कृति अपने भारत की, हमें जान से प्यारी है ।। हम हैं पथिक अहिंसक पथ के, सब जीवों से प्यार करें। एक घाट पर शेर बकरियां , पानी पीएं नहीं ड़रें।। बिना वजह जीवों की हत्या, घोर पाप कहलाता है। हमको तो मन दुखे किसीका, ये तक नहीं सुहाता है।। उसे नरक में फेंका जाता, जो नर अत्याचारी है। संस्कृति अपने भारत की, हमें जान से प्यारी है।। न्याय सुलभ हो सस्ता हो इस, नीति नियम पे चलते हैं। सबको न्याय समान मिले ...
नेहिया के डोर
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नेहिया के डोर

संजय सिंह मुरलीछपरा, बलिया (उत्तर प्रदेश) ******************** https://youtu.be/NeoGdglV-wY जोरीदना नेहिया के डोर मोर सजनवा, जोरीदना नेहिया के डोर २ जन्म जन्म के प्यासल मनवा २ भटकत जाला जाने कवना ओर २ जोरीदना नेहिया के डोर ! आस के दियवा कईसे जराई २ सगरो अंधार भइल घनघोर २ जोरीदना नेहिया के डोर ! संजय जियरा तोहसे लागल २ चंदा के जाइसे निहारे चकोर २ जोरीदना नेहिया के डोर ! जोरीदना नेहिया के डोर मोर सजनवा, जोरीदना नेहिया के डोर २ परिचय :- संजय सिंह पिता : स्व. लाल साहब सिंह निवासी : ग्राम माधो सिंह नगर मुरलीछपरा जिला बलिया उत्तर प्रदेश सम्प्रति : प्रधानाध्यापक कम्पोजिट विद्यालय रामनगर घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। https://youtu.be/4NSBGzwFVpg आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिच...
अंतर्मन
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अंतर्मन

रशीद अहमद शेख 'रशीद' इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** क्या कहूँ बात उलझन की। मत पूछो अंतर्मन की। छा गया बहुत कोरोना। पीड़ित जग का हर कोना। दृग झड़ी लगी सावन की। मत पूछो अंतर्मन की। लगता कर्फ्यू कोरोना। दुर्भर है जगना-सोना। सीमा है घर-आँगन की। मत पूछो अंतर्मन की। सूने बाज़ार सभी हैं। धीमे व्यापार अभी है। दुर्दशा हुई जन-जन की। मत पूछो अंतर्मन की। नव विवाहिता थी सोना। ले गया कंत कोरोना। है दशा बुरी विरहन की। मत पूछो अंतर्मन की। परिचय -  रशीद अहमद शेख 'रशीद' साहित्यिक उपनाम ~ ‘रशीद’ जन्मतिथि~ ०१/०४/१९५१ जन्म स्थान ~ महू ज़िला इन्दौर (म•प्र•) भाषा ज्ञान ~ हिन्दी, अंग्रेज़ी, उर्दू, संस्कृत शिक्षा ~ एम• ए• (हिन्दी और अंग्रेज़ी साहित्य), बी• एससी•, बी• एड•, एलएल•बी•, साहित्य रत्न, कोविद कार्यक्षेत्र ~ सेवानिवृत प्राचार्य सामाजिक गतिविधि ~ मार्गदर्शन और प्रेरणा लेखन विधा ~ कविता,गीत...
बारा मासी गीत
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बारा मासी गीत

राधेश्याम गोयल "श्याम" कोदरिया महू (म.प्र.) ******************** तुम्हारे बिन मै न जियुंगी दिलों जानी, जैसे मछली बिन पानी। हो पिया जैसे मछली बिन पानी.......तुम्हारे बिन....... चैत्र, बैसाख ऐसे बीते आई याद सुहानी, कोयल, पपिहा की वाणी सुनकर हो गई पानी पानी... तुम्हारे बिन...... जेठ असाड़ बड़ पीपल पूजे, कई मानता मानी, धूं-धूं करके महीने बीते, जैसे काला पानी.......... तुम्हारे बिन....... सावन भादों में बरखा आई, लाई याद पुरानी, झूले पड़ गए नीम पुराने,चहुं और पानी ही पानी....... तुम्हारे बिन........ कुंवार कार्तिक शरद ऋतु आई, ठंडी हुई मनमानी, मेला देखन सब सखी जावे, मै बैठी अनमानी........ तुम्हारे बिन........ अगहन पोष मास जब आए, बड़ गई मन हैरानी, छोटे दिवस रैन भई लंबी, कठिन हुई जिंदगानी........ तुम्हारे बिन........ माघ फागुन बसंत ऋतु आई, रंगो ने चादर तानी, "श्याम" होली...
पायल की झंकार
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पायल की झंकार

अख्तर अली शाह "अनन्त" नीमच (मध्य प्रदेश) ******************** बार-बार करती रहती क्यों, मेरे जहन पर वार। पायल की झंकार तेरी ये, पायल की झंकार।। रिश्ता तेरा मेरा है क्या, तू गुल अलग चमन का। तुझे सींचता माली दूजा, तेरे ही गुलशन का।। तेरे पैर की ये पैजनिया, क्यों पर मुझे बुलाए। मेरे हृदय को भेद रही क्यों, सोचूँ बारंबार।। पायल की झंकार तेरी ये..... पायल क्या कहती ना समझा, इतना पर जाना है। दुखी तेरी पायल है बस ये, मैंने पहचाना है।। मुझे करें आकर्षित इसके, घुंघरू बजकर सारे। मेरी आरजू इसको, चाहे, मेरा ये दीदार।। पायल की झंकार तेरी..,,... क्या "अनंत" अब होगा केवल, ऊपरवाला जानें। ज्ञात मुझे ये खुशियों के हैं, उसके पास खजानें।। मिलन लिखा यदि होना ही है, कौन उसे रोकेगा। आज अगर पतझड़, लाएगी, कल ये नई बहार।। पायल की झंकार तेरी ये..... परिचय :- अख्तर अली शाह "अनन्त" पिता : कासमशाह जन्म : १...
नजर से नजर मिली तो
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नजर से नजर मिली तो

अख्तर अली शाह "अनन्त" नीमच (मध्य प्रदेश) ******************** तू मिली तो जीने का बहाना मिल गया। नजर से नजर मिली तो खजाना मिल गया।। वो सुहाना वक्त था जब मिले नयन-नयन। जब मिले अधर अधर जब मिले बदन-बदन।। पंख लगे आरजूओं को हंसी गगन मिला। पंछियों को पर यूँ फड़फड़ाना मिल गया।। तू मिली तो जीने का बहाना मिल गया। नजर से नजर मिलीतो खजाना मिल गया।। हुस्न और इश्क का मिलन बड़ा अजीब है। मरना जिंदगी के लिए हो गया करीब है।। तीर तेज करके रखे थे वो अनायास ही। मुस्कुराए छूने को निशाना मिल गया।। तू मिली तो जीने का बहाना मिल गया। नजर से नजर मिलीतो खजाना मिल गया।। रूप का महल कहूँ या कहूँ कि ताज है। मरमरी बदन तेरा, जो हंसता आज है।। हट सकी नजर नहीं जम गई तो जम गई। लड़खड़ाते कदमों को ठिकाना मिल गया।। तू मिली तो जीने का बहाना मिल गया। नजर से नजर मिलीतो खजाना मिल गया।। ज...
फागुन आया
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फागुन आया

मालती खलतकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** फागुन आया होली आई ढोल बजाओ मांडल रे आंगन-आंगन बजी बधाई देहरी पहने पायल रे, पायल रे फागुन आया होली आई ढोल बजाओ मांदल रे यौवन सजे सजे हर द्वारें पायल नूपुर बाजे रे गेहू वाली लेकर आती खनखन करती करती चूड़ियां रे फागुन आया होली आई ढोल बजाओ मांदल रे रंगा गुलाल संघ मचल रही है हरि पीली आंचल चांदनी ताल-ताल पर नाच रही है मेरे मन की रागिनी रवि किरणे भी घोल रही है सतरंगी केसरिया रंग रे फागुन आया होली आई ढोल बजाओ मांडल रे टेसु-टेसु रंग केसरिया पाखी-पाखी झूम मेरे घर आंगन में सजी सावरी ढाणी चुनरिया ओढेरे पीली-पीली सरसों पर मान मतवाला डोले रे फागुन आया होली आई बोल बजाओ मांडल रे प्रातः संध्या अवनी अंबर अभी राकेश एरिया खेले रे आज नहीं है देव्श कहीं भी अनुराग मानव भरे रे फागुन फाग सजे मतवाले मत वालों की टोली रे फागुन आया होली आई ढोल बजाओ मादल रे ...
होली गीत
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होली गीत

रशीद अहमद शेख 'रशीद' इंदौर म.प्र. ******************** नित नूतन परिधान पहनकर, सृजित करे रंगोली है। प्रकृति सतत अनुपम विधियों से, खेल रही शुभ होली है। सूरज की सोने-सी किरणें, चारु चाँदनी रजत लगे। विस्मित विस्फारित नयनों को, नैसर्गिक सौंदर्य ठगे। कभी तिमिर तो कभी उजाला, अद्भुत आँख मिचोली है। प्रकृति सतत अनुपम विधियों से, खेल रही शुभ होली है। इन्द्रधनुष सातों रंगों से, अपनी शोभा बिखराए। रंग नहीं कम अंबर में भी, धरती को यह दिखलाए। बादल गरजें, बिजली चमकें, वर्षा करे ठिठोली है। प्रकृति सतत अनुपम विधियों से, खेल रही नित होली है। कानन में फूले पलाश हैं, उपवन-उपवन सुमन खिले। खेतों में सरसों है पीली, नए-नए पत्ते निकले। मनमोही व्यापक होली से, सबकी काया डोली है। प्रकृति सतत अनुपम विधियों से, खेल रही शुभ होली है। परिचय -  रशीद अहमद शेख 'रशीद' साहित्यिक उपनाम ~ ‘रशीद’ जन्मतिथि~ ०१/०४/१९५१ जन्म स्...
हो बंद शहादत सीमा की
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हो बंद शहादत सीमा की

अख्तर अली शाह "अनन्त" नीमच (मध्य प्रदेश) ******************** सीमाएं आग उगलती जब, सैनिक जब मारे जाते हैं। व्यवहार बिगडते मुल्कों के, आंसू जनता के आते हैं।। भूमि के टुकड़ों के खातिर, क्या लड़ना बुद्धिमानी है। सरकारों का यूँ बैर भाव, रखना लोगों नादानी है।। सीमाएं जब तय हो जाती, क्या रोज बदलती रहती हैं। दीवारें क्या मानव हैं जो, उठ-उठकर चलती रहती हैं।। फिर क्या होता है सीमा पर, क्यों शांत पड़ोसी लड़ते हैं। हथियारों को हाथों में ले, इक दूजे पे क्यों चढ़ते हैं।। हो राजाओं का राज अगर, सीमाओं का विस्तार करें। निर्दोष जहां कुचले जाएं, बेरहम सिपाही वार करें।। अब राजाओं का राज नहीं, सब की ही इज्जत होती है। हो छोटा बड़ा भले कोई, वोटर है ताकत होती है।। जब बने पड़ोसी दुःख क्यों दें, मानवता का विस्तार करें। सुख-दुख बांटें मिल बैठ सभी, मिल-जुल के सब त्योहार करें।। इन्सानी गरिमा को समझें , ह...
विश्व जल दिवस
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विश्व जल दिवस

संजय जैन मुंबई (महाराष्ट्र) ******************** नदिया न पिये, कभी अपना जल। वृक्ष न खाए, कभी अपना फल। सभी को देते रहते, सदा ही फल जल। नदिया न पिये कभी...।। न वो देखे जात पात, और न देखे छोटा बड़ा। न करते वो भेद भाव, और न देखे अमीरी गरीबी। सदा ही रखते समान भाव, और करते सब पर उपकार। नदिया पिये कभी.....।। निरंतर बहती रहती, चारो दिशाओं में नदियां। हर मौसम के फल देते, वृक्ष हमें सदा यहां। तभी तो प्रकृति की देन कहते, हम सब लोग उन्हें सदा। नदिया न पिये कभी...।। जय जिनेन्द्र देव संजय जैनविश्व जल दिवस* विधा : गीत नदिया न पिये, कभी अपना जल। वृक्ष न खाए, कभी अपना फल। सभी को देते रहते, सदा ही फल जल। नदिया न पिये कभी...।। न वो देखे जात पात, और न देखे छोटा बड़ा। न करते वो भेद भाव, और न देखे अमीरी गरीबी। सदा ही रखते समान भाव, और करते सब पर उपकार। नदिया पिये कभी.....।। निरंतर बहती रहती, चारो दिशाओं मे...
विरह गीत
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विरह गीत

रशीद अहमद शेख 'रशीद' इंदौर म.प्र. ******************** बन गया बैरी सुखद अनुराग है! जल रही अविरल विरह की आग है! सजन-पथ सूना पड़ा है। क्लेश माथे पर चड़ा है। नयन भी पथरा गए हैं, लग रहा हर क्षण बड़ा है। देह को डसता प्रतीक्षा-नाग है! जल रही अविरल विरह की आग है! कहीं आहट है न दस्तक। पत्र भी आया न अब तक। मानता है मन नहीं कुछ, राह देखें नयन कब तक। भ्रमित क्यों करता निरन्तर काग है! जल रही अविरल विरह की आग है! निकेतन,छत,डगर,परिसर। जी नहीं लगता कहीं पर। पर्व या त्यौहार कोई, रुलाते हैं दुखद बनकर। उदासी है सतत फीका फाग है! जल रही अविरल विरह की आग है! तन नहीं श्रृंगार करता। मन हमेशा आह भरता। ढंग कोई भी जगत का, वेदना को नहीं हरता। कर चुका मनवा सभी सुख त्याग है! जल रही अविरल विरह की आग है! परिचय -  रशीद अहमद शेख 'रशीद' साहित्यिक उपनाम ~ ‘रशीद’ जन्मतिथि~ ०१/०४/१९५१ जन्म स्थान ~ महू ज़िला इन्दौर (म...
होली
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होली

मनमोहन पालीवाल कांकरोली, (राजस्थान) ******************** कहा छिपे हो मोरे कान्हा, होरी खेलो रे होरी खेलो रे ....(२) कान्हा होली खेलो रे ...(२)... चार कोस मे चल कर आई कहां छिपे होरे कान्हा कहा छिपे होरे पिचकारी लाओ रंग उराओ । होरी खेलो रे होरी खेलो रे कान्हा होली खेलो रे ...(२)... लाज शरम सब छोड़, आई पीचकारी लाई रे पीचकारी लाई रे कहां छिपे हो मोरे कान्हा पीचकारी लाई रे......। तोहरे रंग मे रंगने आई कहां छिपे हो रे कहां छिपे हो रे होली खेलो रे ..... होली खेलो रे नंदलाला, होली खेलो रे (२)... सास ससुर सु बचकर आई होली खेलो रे होली खेलो रे होली खेलो रे नंदलाला होली खेलो रे चूड़ी टूटी चोली भीगी ओर भीगे सब अंग ओर भीगे सब अंग जम कर रंग उड़ाओ कान्हा बचन पाए कोई रंग बचन पाए कोई रंग इतना ड़ारो रंग की मुझ पर दिखे न कोई अंग दिखे न कोई अंग। कहां छिपे हो मोरे कान्हा खेलो मोरे संग खेलो मोरे संग र...
सोच बदलो गाँव बदलो
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सोच बदलो गाँव बदलो

संजय जैन मुंबई (महाराष्ट्र) ******************** अपने-अपने गांवों से हम बहुत प्रेम करते हैं। इसलिए पड़ लिखकर हम गाँव में रहने आये।। अपने गाँव को हम सम्पन्न बनाना चाहते हैं। जिसे कोई भी गाँव वाले रोजगार हेतु शहर न जाये।। गाँव वालो से मिलकर हम कुछ ऐसा काम करें। ताकि अपने गांव को आत्म निर्भर बना पाये।। खुद के पैरों पर गाँव अपना खड़ा हो जाये। छोड़कर शहरों की जंजीरो को युवक गांवों में वापिस आये।। आत्म निर्भर अपने गाँव को करके हम दिख लाये। जिसे देखने को शहर वाले अपने गाँव में आवे।। गाँव के घर घर में काम अब सब करते हैं। गाँव की वस्तुये खरीदने को शहर वाले गांवों में आते है।। गाँव के सभी लोगों को शिक्षित किया जा रहा। बच्चें और बूड़े आजकल सभी स्कूलों में साथ पड़ते है।। गांधीजी के स्वच्छय भारत के सपनों को हम मिलकर पूरा कर रहे हैं। और गाँवों की संस्कृति को शहरो से जोड़ रहे हैं।। गाँव को हम अ...
भक्ति गीत
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भक्ति गीत

रशीद अहमद शेख 'रशीद' इंदौर म.प्र. ******************** आदि-अंत से परे निरन्तर, गुण में अपरम्पार हो। कहलाते जगदीश तुम्हीं हो, तुम ही पालनहार हो। जड़-चेतन के हो निर्माता, ॠणी सकल संसार है। धन्य नहीं है कौन सृष्टि में, कहाँ नहीं आभार है। दीन दयाल न तुम-सा कोई, करुणा-पारावार हो। कहलाते जगदीश तुम्हीं हो, तुम ही पालन हार हो। वेद-पुराण भागवत गीता, ग्रंथ और क़ुरआन में। पावन पद या कथन व्यस्त्त हैं, तेरे ही गुणगान में। कुछ कहते हैं निराकार हो, कुछ कहते साकार हो। कहलाते जगदीश तुम्हीं हो, तुम ही पालन हार हो। तुम हो एक सभी के स्वामी, लेकिन नाम अनेक हैं। होना एक तुम्हारा फिर भी, जग में धाम अनेक हैं। कहीं भक्त हैं कहीं नास्तिक , सबके तारनहार हो। कहलाते जगदीश तुम्हीं हो, तुम ही पालन हार हो। परिचय -  रशीद अहमद शेख 'रशीद' साहित्यिक उपनाम ~ ‘रशीद’ जन्मतिथि~ ०१/०४/१९५१ जन्म स्थान ~ महू ज़िला इन्दौर (म•...
पायल छनक गई
गीत

पायल छनक गई

अख्तर अली शाह "अनन्त" नीमच ******************** बहुत संभाले रखा मगर अवसर क्या पाया, चंचल मना वो बावली पायल छनक गई।। मैं नहीं चाहती मन के, पट धड़कन खोले, मैं नहीं चाहती पायल, की रुनझुन बोले। मैं नहीं चाहती सोचो, में हो खलल कोई, मैं नहीं चाहती प्रीतम, का तन मन डोले।। पर क्या करती पग फिसला, बेबस हुए कदम, सागर लहराया अखियां, मेरी छलक गई। बहुत संभाले रखा मगर अवसर क्या पाया, चंचल मना वो बावली पायल छनक गई।। वो मेरी ही यादों में शायद खोए थे, मनहर वो ख्वाब मिलन के कई संजोए थे। मैं खुशियों की सौगातें लेकर आई थी, सावन प्यासे अधरों पर साजन बोए थे।। तड़पी थी मैं आलिंगन, में उस पल उनके, दिल बहका मेरा मेरी, सांसें महक गई। बहुत संभाले रखा मगर अवसर क्या पाया, चंचल मना वो बावली पायल छनक गई।। यूं दर्ज समय के पृष्ठों पर पल हुए विकल, मन में थी मीठी दोनों तरफ बहुत हलचल। बातें होती थी आंखों की तब आं...
फैशन
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फैशन

संजय जैन मुंबई (महाराष्ट्र) ******************** फैशन का यह दौर सुहाना लगता है। अच्छा खासा मर्द जनाना लगता है। पल भर में कैसे बदलते है नक़्शे। अब तो हर लड़का शबाना लगता है। फैशन का यह दौर सुहाना लगता है। अच्छा खासा मर्द जनाना लगता है।। कैसे कैसे वो परिधान को पहनता है। और कैसा कैसा करता है अपना श्रृंगार। फर्क समझा आता नहीं है इसमें लोगो को। कौन नर और कौन मादा है सही में। अब तो फैशन से बहुत डर लगता है। अच्छा खासा मर्द जनाना लगता है।। नाक-कान छिदवाकर वो बालो को बढ़ता है। पहनकर नारी परिधान आकर्षित करता है। बहुत गजब का आजकल का ये फैशन है। तभी तो अच्छा खासा मर्द जनाना लगता है।। फैशन का यह दौर सुहाना लगता है। अच्छा खासा मर्द जनाना लगता है।। परिचय :- बीना (मध्यप्रदेश) के निवासी संजय जैन वर्तमान में मुम्बई में कार्यरत हैं। करीब २५ वर्ष से बम्बई में पब्लिक लिमिटेड कंपनी में मैनेजर के पद पर क...
महाशिवरात्रि
गीत, भजन

महाशिवरात्रि

विरेन्द्र कुमार यादव गौरा बस्ती (उत्तर-प्रदेश) ******************** चलो भक्तों शिव के शिवाले, शिवलिग पर जल चढ़ाले। शिव शंभू को मनाने शिवाले चले, चलो सभी चले जल चढ़ाने चले। चलो भोले बाबा को मनाने चले, शिवलिग पर सभी जल चढ़ाने चले। गंगधारी बम भोले को मनाने चले, चलो भोले भंडारी को मनाने चले। मस्ती में झूमते गाते नंगे पैर चले, चलो भक्तों त्रिपुरारी के धाम चले। सुबह चले, दोपहर चले और शाम चले, हम शिव-भक्त लगातार झूमते चले। आओ चले जटाधारी को मनाने चले, जब निकले, भोले का ही नाम निकले। भक्तों चले भोले-बाबा को मनाने चले, झूमते-गाते हम शिव के शिवाले चले। औघड़दानी को, भोले को मनाने चले, चलो शिव-भक्तों हम जल चढ़ाने चले। त्रिपुरारी, त्रिशूलधारी को मनाने चले, चलो भक्तों शिवाले जल चढ़ाने चले। परिचय :- विरेन्द्र कुमार यादव निवासी : गौरा बस्ती (उत्तर-प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह ...
आंख के हर आंसू की, अपनी एक अलग कहानी है
गीत

आंख के हर आंसू की, अपनी एक अलग कहानी है

हंसराज गुप्ता जयपुर (राजस्थान) ******************** गीता रामायण वेद महावीर, गुरु ग्रंथ कबीर की वाणी है, खोना पाना आना जाना, यह जीवन बहता पानी है, संग रहने, सुख दुख सहने की, कहने की रीत पुरानी है, आंख के हर आंसू की, अपनी एक अलग कहानी है !१! हार जीत खुशी आघात प्रीत, जो शब्द नहीं कह पाते हैं, भाव भरे निज आंखों से, गिरते आंसू कह जाते हैं, टप टप गिरते आंसू ही, उस पल की अमिट निशानी है, आंख के हर आंसू की, अपनी एक अलग कहानी है !२! बिना मां के बच्चों की व्यथा, कितनी मायें बन जाती हैं, सौतेली मां चाची ताई, मौके पर काम ना आती हैं, सब जानते हो तुम श्याम प्रभु, क्या छुपी है, जो समझानी है, आंख के हर आंसू की, अपनी एक अलग कहानी है !३! भूखे मां-बाप का दर्द नहीं, वे भोजन बांटने जाते हैं, माँ के दूध की शर्म नहीं, कुत्ते बिल्ली को दूध पिलाते हैं, अपमान पी आशीष दें जो, वे ...
तेरे ही सपने आते हैं
गीत

तेरे ही सपने आते हैं

अख्तर अली शाह "अनन्त" नीमच ******************** रात दिवस सोते जगते बस, तेरे ही सपने आते हैं। तू क्या रूठी रूठ गए सब, नैना सावन बरसाते हैं।। तेरी आदत पड़ी हुई है, पीछा नहीं छुड़ा पाता हूँ। पलपल-पगपग पर तेरे ही, साए से मैं बतियाता हूँ।। अधर लिए पर अमृत तेरे, मुझे दूर से तरसाते हैं। तू क्या रूठी रूठ गए सब, नैना सावन बरसाते हैं।। अभी यहां थी, अभी वहां थी, मन कैसे समझाऊं अपना। छलिया वक्त छल गया मुझको, चैन कहां से लाऊं अपना।। पीछे दौड़ न नश्वर जीवन, के नश्वर पल समझाते हैं। तू क्या रूठी रूठ गए सब, नैना सावन बरसाते हैं।। ख्वाबों में तू राह बताती, जो चाहे वो करवाती है। जिस्म भले दो होकर रह लें, जान जुदा कब हो पाती है।। यादों के बादल आ आकर, के दिश-दिश से टकराते हैं, तू क्या रूठी रूठ गए सब, नैना सावन बरसाते हैं।। कहां छुपाऊं मैं पागलपन, तुझे देखती आंखें मेरी। मेरी आंखों में तुझको पा, खोज ...
नारी का निश्चय
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नारी का निश्चय

संजय जैन मुंबई (महाराष्ट्र) ******************** गिरती रही उठती रही फिर भी चलती रही। कदम डग मगाए मगर पर धीरे धीरे चलती रही। और मंजिल पाने के लिया खुदसे ही संघर्ष करती रही। और अपने इरादो से कभी पीछे नहीं हटी।। गिरती रही उठती रही...।। ठोकरे खाकर ही मैं दुनियां को समझ पाई हूँ। हर किसी पर विश्वास का फल भी भोगी हूँ। लूट लेते हैं अपने ही अपने बनकर अपनो को। क्योंकि गैरो में कहाँ इतनी दम होती है।। गिरती रही उठती रही..।। दुनियांदारी का अर्थ तभी समझ आता है। जब कोई विश्वास अपना अपनो का तोड़ देता हैं। और अपने फायदे के लिए अपनो को ही डस लेता है। फिर इंसानियत की दुहाई देकर खुदको महान बना लेता है खुदको महान बना लेता है।। गिरती रही उठती रही फिर भी चलती रही..।। परिचय :- बीना (मध्यप्रदेश) के निवासी संजय जैन वर्तमान में मुम्बई में कार्यरत हैं। करीब २५ वर्ष से बम्बई में पब्लिक लिमिटेड कंपनी में मैन...
वासंती गीत
गीत

वासंती गीत

रशीद अहमद शेख 'रशीद' इंदौर म.प्र. ******************** वन-उपवन शोभायमान हैं, पर्ण-पर्ण आनन्दित है। वृंत-वृंत पर फूल खिले हैं, और समीर सुगंधित है। हरी-हरी पत्तियाँ झूमकर, पुष्पों से कुछ कहतीं हैं। कलियाँ सुनकर उनकी बातें, भाव सरित् में बहती हैं। डाली-डाली तरु-पादप की, हुई सुसज्जित-शोभित है। वृंत-वृंत पर फूल खिले हैं, और समीर सुगंधित है। रंग-बिरंगी विविध तितलियाँ, फूलों से मिलने आईं। उनका स्वागत हुआ सुखद तो, भावुक होकर मुस्काईं। सुन्दर सुमनों से चर्चा कर, तितली वृंद प्रफुल्लित है। वृंत-वृंत पर फूल खिले हैं, और समीर सुगंधित है। कीट-पतंगो का मेला है, विहग दूर से आए हैं। सुमन समूहों ने सह स्वर में, स्वागत गीत सुनाए हैं। कोयल छेड़ रही है सरगम, भ्रमर गान भी गुंजित है। वृंत-वृंत पर फूल खिले हैं, और समीर सुगंधित है। परिचय -  रशीद अहमद शेख 'रशीद' साहित्यिक उपनाम ~ ‘रशीद’ जन्मतिथि~ ०१/०४/१९५१ ...
कहानी… मेरे पापा की
गीत

कहानी… मेरे पापा की

संजय जैन मुंबई ******************** पापा जी के चरणों में अपना शीश झूकता हूँ। उनके त्याग बलिदान को अपने बच्चो को सुनता हूँ। ऐसे पापाजी के चरणों में अपना शीश झूकता हूँ...।। जन्म लिया उन्होंने ने बड़े जमींदार के घर में। बड़े बेटे बनकर उन्होंने निभाया अपना कर्तव्य। यश आराम से जिंदगी जी रहे थे परिवार के सब। भगवान की कृपा दृष्टि से सब अच्छा चल रहा था।। और भाई बहिन माता पिता का प्रेम बरस रहा था। ऐसे पापा जी के चरणों में अपना शीश झूकता हूँ...।। भाई बहिन के प्रेम में वो ऐसे रहे थे। उन्हें उनके अलावा कुछ और नहीं दिखता था। भाई बहिन पर वो अपनी जान नीछावर करते थे। ऐसे पापाजी के चरणों में अपना शीश झूकता हूँ...।। पर समय परिवर्तन ने कुछ ऐसा कर दिखाया। भाई-बहिन और पिता ने मुँह मोड़ लिया बेटे से। कल तक जो सबको बहुत प्यारे भाई लगते थे। अब वो ही सब की आँखो में खटकने लगे। २६ सालों के साथ रहने का अब अंत हो...
संघर्षो के नाम किया है
गीत

संघर्षो के नाम किया है

अख्तर अली शाह "अनन्त" नीमच ******************** हाथ उठाने वालों की तुम, लाइन में हमको मत रखना। हमने जीवन का ये गुलशन, संघर्षों के नाम किया है।। ऊपर वाले ने जो हमको, सोच समझ की दौलत दी है। अच्छा और बुरा समझें हम, बुद्धि दी है ताकत दी है।। हमने कब अपना माना ये, उसका जीवन उसका माना। इसीलिए तो सारा जीवन, संघर्षों के नाम किया है।। हमने जीवन का ये गुलशन, संघर्षों के नाम किया है।। अपमानों के लड्डू पेड़ों, से इज्जत की रोटी प्यारी। हमने मेहनत की खुशबू से, अपनी किस्मत सदा संवारी।। हाथ पसारे नहीं रहे हम, नहीं मांगकर हमने खाया। लम्हा-लम्हा हर परिवर्तन, संघर्षों के नाम किया है।। हमने जीवन का ये गुलशन, संघर्षों के नाम किया है।। आग लगाने वालों ने तो, हरदम आग लगाई बढ़कर। झुलसाकर अपने मधुबन को, हम ने आग बुझाई बढ़कर।। नहीं देखती आग राह के, मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारों को। हमने सत्य न्याय का आंगन, स...