Friday, March 28राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर आपका स्वागत है... अभी सम्पर्क करें ९८२७३६०३६०

गीत

महाकुंभ महिमा
गीत

महाकुंभ महिमा

प्रो. डॉ. विनीता सिंह न्यू हैदराबाद लखनऊ (उत्तरप्रदेश) ******************** गंगा जमुना और सरस्वती तीनों हैं इक साथ में तीनों नदियों का संगम है तीर्थ राज प्रयाग में १. उज्जवल श्यामल पानी मिलकर बहे निर्मल जल धारा कण -कण में है इसके अमृत, कितनों को है तारा ब्रह्मा-शिव का तेज समाया इस निर्मल जल धार में २.इस तीर्थ महिमा की गाथा वेदों ने है गायी यहाँ ऋषि और मुनियों ने हैं कितनी सिद्धियाँ पायीं ज्ञान मिले अध्यात्म जगे संगम के पुण्य प्रताप में ३. भारद्वाज मुनि का आश्रम यहाँ प्रभु राम जी आए थे माता सीता और लक्ष्मण संग में आशीष पाए थे प्रभु राम ने चरण पखारे इस निर्मल जल धार में ४. दरस परस कर महाकुंभ में पुण्य प्रताप जगा लो पावन इस जल की धारा में मन का मैल मिटा लो पाप कटे संताप मिटे इस पावन जल की धार में परिचय :- प्रो. डॉ. विनीता सिंह निवासी : न्यू हैदराबाद लखनऊ (उ...
होली फागुन का त्योहार
गीत, छंद

होली फागुन का त्योहार

राधेश्याम गोयल "श्याम" कोदरिया महू (म.प्र.) ******************** होली- छंद होली फागुन का त्योहार, फागुन आवे रंग जमावे चलत बसंती बयार........ होली फागुन का..... पतझरे पेड़ पल्लवित हो रहे, बागों में फूल प्रफुल्लित हो रहे। महुए मद में रहे गदराए, आई अमराई में बहार........ होली फागुन का...... सरसों पीली फूल रही है, गेहूं की बाली झूल रही है। लाली पलास की मन को मोहे, किया सृष्टि ने श्रंगार........ होली फागुन का....... नव यौवन मन में हरशावे, होली को आनंद मनावे। एक दूजे पर रंग डाल, करे खुशियों का इजहार........ होली फागुन का....... पेड़ों को कटने से बचाए, पर्यावरण को स्वच्छ बनाए। डाल बुराई सब होली में, जलाएं होली अबकी बार......... होली फागुन का त्योहार फागुन आवे रंग जमावे चलत बसंती बयार। होली फागुन का त्योहार। परिचय :- राधेश्याम गोयल "श्याम" निवासी - कोदरिया म...
आई है होली
गीत

आई है होली

मीना भट्ट "सिद्धार्थ" जबलपुर (मध्य प्रदेश) ******************** मुख पे लाल गुलाल लगाने, आई है होली। तन की सारी पीर मिटाने आई है होली।। हाथ गुलाल अबीर रखी है, पुलकित गोपाला। राधे पर है जादू डाला, कान्हा काला।। गंधिल होता गात गोपियाँ, भरतीं किलकारी। सपने लाख सँजोती मन में, आँखें कजरारी।। वादे सारे आज निभाने, आई है होली। रंग बिरंगे सुमन खिले हैं, नवरंगी छाया। मारे कलियों को पिचकारी, भौंरा बौराया।। हर्ष उल्लास की होली है, फागुन है भाता। यौवन और बुढ़ापा दोनों, गीत मिलन गाता।। हमजोली पर प्रेम लुटाने, आई है होली। है त्योहार अनूठा साजन, प्रेमिल अभिलाषा। कंचन जैसा रूप चमकता, कहता मन भाषा।। धरती पर यौवन छाया है, रसिया नभ छैला। प्रमुदित किंशुक है उपवन में, मिलती है लैला अंतर्मन कचनार खिलाने, आई है होली। बरजोरी करते हुरियारे, प्रणय-मुरारी हैं। ग्रामों की चौपालो ...
शहीद दिवस पर नमन
गीत

शहीद दिवस पर नमन

राधेश्याम गोयल "श्याम" कोदरिया महू (म.प्र.) ******************** मुक्तक: असर खुशबू का जेहनों से उड़ाया जा नही सकता, शहीदों की शहादत को भुलाया जा नही सकता। वतन के वास्ते जो मर मिटे है, हक की राहों में, कभी उपकार को उनके भुलाया जा नही सकता। गीत: कोटि नमन माताओं को थे, जिनके तीनो लाल, कर गए कैसे-कैसे कमाल। हंसते-हंसते फांसी चढ़ गए, किया न तनिक मलाल, बन गए अंग्रेजो के काल। भगतसिंह, राजगुरु, सुखदेव, जिनके थे प्रेरक अर्जन देव। मन में था, राष्ट्र प्रेम सदैव, जिनको था, प्यारा सत्य मेव। वंदे मातरम बोल वतन पे तीनो हुए निहाल..... कर गए कैसे-कैसे कमाल जिन्हे था चढ़ा बसंती रंग, स्वराज की पी गए ऐसी भंग। नशे में हो गए मस्त मलंग, ठानली अंग्रेजो से जंग। सांडर्स को बे मौत जा मारा, बदला लिया निकाल... कर गए कैसे-कैसे कमाल हुकूमत बरतानिया घबराई, सांडर्स की मौत से थी खि...
बिकती सच्चाई
गीत

बिकती सच्चाई

मीना भट्ट "सिद्धार्थ" जबलपुर (मध्य प्रदेश) ******************** कलियुग में बिकती सच्चाई, झूठ कपट भी भारी है। तृष्णा के गहरे सागर में, जाने की तैयारी है।। खेले खेल सियासत भी अब, कालेधन की है माया। खींचें टाँग एक दूजे की, सत्ता लोलुप है काया।। बस विपक्ष की पोल खोलना, नई नीति सरकारी है। दौड़ सीट हथियाने की है, देते पद की सौगातें। भ्रष्टाचार प्रमुख मुद्दा भी, राम राज्य की हैं बातें। रंग बदलते गिरगिट जैसा, नेता खद्दरधारी है। गागर रीती है खुशियों की, भीगी अँखियाँ रमिया की। तोता मैना करते क्रंदन, रहती चिंता बगिया की।। करें देश को नित्य खोखला, जनता भी दुखियारी है। परिचय :- मीना भट्ट "सिद्धार्थ" निवासी : जबलपुर (मध्य प्रदेश) पति : पुरुषोत्तम भट्ट माता : स्व. सुमित्रा पाठक पिता : स्व. हरि मोहन पाठक पुत्र : सौरभ भट्ट पुत्र वधू : डॉ. प्रीति भट...
कौआ बदले चाल
गीत

कौआ बदले चाल

मीना भट्ट "सिद्धार्थ" जबलपुर (मध्य प्रदेश) ******************** ख़ूब जानता रमिया कैसे कौआ बदले चाल। अपने दल को छलते नेता, दल बदलू हो आज। फ़िक्र नहीं है कुछ जनता की, साधें अपना काज।। रंग बदलते हैं गिरगिट-सा, भरें तिजोरी माल। चलें थाम सत्ता का दामन, पैसों के हैं मीत। येन-केन हासिल हो ताकत, जाना है बस जीत चतुर शिकारी, उन्हें पता है, कहाँ छुपाना जाल। खोल पोल दूजों को लेते मोल दिखाकर माल।। गेंडे जैसी मोटी चिकनी, है इन सबकी खाल। बिना आग के इन्हें पता है, कैसे गलती दाल। परिचय :- मीना भट्ट "सिद्धार्थ" निवासी : जबलपुर (मध्य प्रदेश) पति : पुरुषोत्तम भट्ट माता : स्व. सुमित्रा पाठक पिता : स्व. हरि मोहन पाठक पुत्र : सौरभ भट्ट पुत्र वधू : डॉ. प्रीति भट्ट पौत्री : निहिरा, नैनिका सम्प्रति : सेवानिवृत्त जिला न्यायाधीश (मध्य प्रदेश), लोकायुक्त संभाग...
फटे-पुराने कपड़े उनके
गीत

फटे-पुराने कपड़े उनके

मीना भट्ट "सिद्धार्थ" जबलपुर (मध्य प्रदेश) ******************** फटे-पुराने कपड़े उनके, धूमिल उनकी आस। जीवन कुंठित है अभाव में, खोया है विश्वास।। अवसादों की बहुतायत है, रूठा है शृंगार। अंग-अंग में काँटे चुभते, तन-मन पर अंगार।। मन विचलित है तप्त धरा है, कौन बुझाये प्यास। चीर रही उर पिक की वाणी, काॅंपे कोमल गात। रोटी कपड़ा मिलना मुश्किल, अटल यही बस बात।। साधन बिन मौन हुआ उर, करें लोग परिहास। आग धधकती लाक्षागृह में, विस्फोटक सामान। अंतर्मन भी विचलित तपता, कोई नहीं निदान। श्रापित होता जीवन सारा, श्वासें हुई उदास। परिचय :- मीना भट्ट "सिद्धार्थ" निवासी : जबलपुर (मध्य प्रदेश) पति : पुरुषोत्तम भट्ट माता : स्व. सुमित्रा पाठक पिता : स्व. हरि मोहन पाठक पुत्र : सौरभ भट्ट पुत्र वधू : डॉ. प्रीति भट्ट पौत्री : निहिरा, नैनिका सम्प्रति : सेवानिवृत...
ओस की बूँदें
गीत

ओस की बूँदें

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** हरी घास पर ओस की बूँदें, भाती हैं। नया सबेरा, नया सँदेशा, लाती हैं।। सूरज निकले, नवल एक इतिहास रचे, ओस की बूँदें टाटा करके जाती हैं। प्रकृति लुभाती, दृश्य सजाती रोज़ नये, ओस की बूँदें नवल ज्ञान दे जाती हैं। कितनी मोहक, नेहिल लगती भोर नई, ओस की बूँदें आँगन नित्य सजाती हैं। सुबह धुँधलका फैले, जागे ओस तभी, ओस की बूँदें राग नया सहलाती हैं। जीवन के हर पन्ने पर, है कथा नई, ओस की बूँदें प्यार ख़ूब बरसाती हैं। परिचय :- प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे जन्म : २५-०९-१९६१ निवासी : मंडला, (मध्य प्रदेश) शिक्षा : एम.ए (इतिहास) (मेरिट होल्डर), एल.एल.बी, पी-एच.डी. (इतिहास) सम्प्रति : प्राध्यापक व विभागाध्यक्ष इतिहास/प्रभारी प्राचार्य शासकीय जेएमसी महिला महाविद्यालय प्रकाशित रचनाएं व गतिविधियां : पांच हज़ार से अधिक फुच...
तृषित धरा मुरझाई
गीत

तृषित धरा मुरझाई

मीना भट्ट "सिद्धार्थ" जबलपुर (मध्य प्रदेश) ******************** तृषित धरा मुरझाई, चीख़-पुकार मची है। वृक्ष हरे सभी कटे, छाया नहीं बची है।। सोंधी मिट्टी भूले हैं, बेचारे नौनिहाल। हालत उनकी खस्ता, पिचक रहे लाल गाल।। महँगाई ख़ूब बढ़ी, बौरा रही शची है। रहे मौन सज्जनता, लगते दाँव पर दाँव। दुर्जन कौवा छत पे, फैलाता नित्य पाँव।। भटक रहे अर्थहीन, क़िस्मत ख़ूब रची है। दंगा हैं फ़साद भी, सस्ता ख़ून का रंग। सूनी है अँगनाई, फीके सारे प्रसंग।। तनावों में जीवनी, नटी जैसी नची है। परिचय :- मीना भट्ट "सिद्धार्थ" निवासी : जबलपुर (मध्य प्रदेश) पति : पुरुषोत्तम भट्ट माता : स्व. सुमित्रा पाठक पिता : स्व. हरि मोहन पाठक पुत्र : सौरभ भट्ट पुत्र वधू : डॉ. प्रीति भट्ट पौत्री : निहिरा, नैनिका सम्प्रति : सेवानिवृत्त जिला न्यायाधीश (मध्य प्रदेश), लोकायुक्त स...
लाक्षागृह सी आग
गीत

लाक्षागृह सी आग

मीना भट्ट "सिद्धार्थ" जबलपुर (मध्य प्रदेश) ******************** अपना ही घर जला रहे हैं, घर के यहाँ चिराग़। फैल रही है सारे जग में, लाक्षागृह सी आग।। शुभचिंतक बन गये शिकारी, रोज़ फेंकते जाल। ख़बर रखें चप्पे-चप्पे की, कहाँ छिपा है माल।। बड़ी कुशलता से अधिवासित, हैं बाहों में नाग। ओढ़ मुखौटे बैठे ज़ालिम, अंतस घृणा कटार। अपनों को भी नहीं छोड़ते, करते नित्य प्रहार।। बेलगाम घूमें सड़कों पर, त्रास दें बददिमाग़। सिसक रही बेचारी रमिया, दिए घाव हैं लाख। लगी होड़ है परिवर्तन की, तड़पे रोती शाख।। हरे वृक्ष सब काटें लोभी, उजड़ रहे वन बाग। परिचय :- मीना भट्ट "सिद्धार्थ" निवासी : जबलपुर (मध्य प्रदेश) पति : पुरुषोत्तम भट्ट माता : स्व. सुमित्रा पाठक पिता : स्व. हरि मोहन पाठक पुत्र : सौरभ भट्ट पुत्र वधू : डॉ. प्रीति भट्ट पौत्री : निहिरा, नैनिका सम...
बासंती गीत
गीत

बासंती गीत

भीमराव झरबड़े 'जीवन' बैतूल (मध्य प्रदेश) ******************** थिरक रहे अधरों पर आकर, फिर बासंती गीत। विहँस-विहँस मकरंदित श्वासें, गाएँ रसिया फाग। दृग-चकोर भी परख रहे हैं, विधुवदनी तन राग।। स्वरलहरी के हाथ लगी है, स्वर्ण पदक की जीत।। खिले-खिले महुए के जैसा, तन हो गया मलंग। टपक रहा है अंग-अंग से, जो यौवन का रंग।। प्यास पपीहे-सी भड़काये, तन में कामी शीत।। भाव हुए टेसू-से खिलकर, जलते हुए अलाव। प्रेमिल शब्द बने जख्मों का, करने लगे भराव।। मन का सारस परिरंभन के, पाले स्वप्न पुनीत।। मदिर गंध से आम्र मंजरी, भरती उर उत्साह। दिखा रही है हीर जिधर है, चल राँझा उस राह।। शब्द-शब्द से प्रेम व्यंजना, 'जीवन' कहे विनीत।। परिचय :- भीमराव झरबड़े 'जीवन' निवासी : बैतूल मध्य प्रदेश घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी...
आस्था का गीत
गीत

आस्था का गीत

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** सँग विवेक पूजन-वंदन हो, इसी समझ में रहना। आस्था रखो अवश्य बंधुवर, अंधराह मत गहना। ईश्वर को देखो श्रद्धा-भक्ति, नहीं रूढ़ियाँ मानो। विश्वासों में ताप असीमित, पर धोखा पहचानो।। ढोंगों-पाखंडों से बचना, समझ-बूझ में बहना। आस्था रखो अवश्य बंधुवर, अंधराह मत गहना। जीवन को रक्षित तुम करना, नित ही जान बचाना। नहीं प्राण संकट में डालो, यद्यपि धर्म निभाना।। सदराहों पर चलना हरदम, यही धर्म का कहना। आस्था रखो अवश्य बंधुवर, अंधराह मत गहना। मन को पावन रखकर जीना, यही आस्था कहती। तजो पाप, सच्चाई वर लो, दुनिया जगमग रहती।। ईश्वर माने करुणा-परहित, कर्मकांड सब ढहना। आस्था रखो अवश्य बंधुवर, अंधराह मत गहना।। परिचय :- प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे जन्म : २५-०९-१९६१ निवासी : मंडला, (मध्य प्रदेश) शिक्षा : एम.ए (इ...
बिक रहा क्यों न्याय
गीत

बिक रहा क्यों न्याय

मीना भट्ट "सिद्धार्थ" जबलपुर (मध्य प्रदेश) ******************** बिक रहा क्यों न्याय सिक्कों में, झूठ सत्य को छलता। फटती जनता की छाती है, कौन देता दिलासा। लूटें नेता नित्य वतन को, देने बैठे झाँसा।। निष्ठाएँ भी धूल मिलीं सब, द्वेष हृदय में पलता। मुखड़ों पर हैं चढ़े मुखौटे, गाते राग-दरबारी। चमचों का बस जमघट होता, पैसों की मारामारी।। डसते विषधर भोली जनता, वश नहीं कुछ चलता। घात -प्रतिघात करें सभा में, तंत्र हो रहा आहत। मतलब की बस राजनीति है, हवा हो रही राहत।। काम साधने करें अपाहिज़, टूटा छप्पर जलता। परिचय :- मीना भट्ट "सिद्धार्थ" निवासी : जबलपुर (मध्य प्रदेश) पति : पुरुषोत्तम भट्ट माता : स्व. सुमित्रा पाठक पिता : स्व. हरि मोहन पाठक पुत्र : सौरभ भट्ट पुत्र वधू : डॉ. प्रीति भट्ट पौत्री : निहिरा, नैनिका सम्प्रति : सेवानिवृत्त जिला न्यायाधी...
भार हुई अम्मा
गीत

भार हुई अम्मा

भीमराव झरबड़े 'जीवन' बैतूल (मध्य प्रदेश) ******************** रुख़सत होते ही बाबा के, लाचार हुई अम्मा। ताने सुन शूलों से तीखे, बेजार हुई अम्मा।। नींव बनाने में जिस घर की, अपनी देह हवन की। रोम-रोम में गंधसार बन, जो सुहाग तक महकी।। उस घर के कोने तक अब, स्वीकार हुई अम्मा।। जठर ज्वाल में जो संतति के, चूल्हे जैसा धधकी। सुबह-शाम वे बूढ़ी आँखें, भूख-प्यास में फफकी।। जिनका बोझ उठाया उन पर, अब भार हुई अम्मा।। बन शहतीर खड़ी हो जिसने, छत का बोझ सँभाला। बैरी कहते जिन्हें खिलाया, मुख का रोज निवाला।। अब भव के नौका की टूटी, पतवार हुई अम्मा।। बेबस हर महिने पेंशन की, करती रही निकासी। छाप अँगूठे की धर देखे, तीरथ मथुरा काशी।। अधिकार पत्र पर जीवन के, दुत्कार हुई अम्मा।। परिचय :- भीमराव झरबड़े 'जीवन' निवासी : बैतूल मध्य प्रदेश घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मे...
कर्मठता का गीत
गीत

कर्मठता का गीत

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** तूफानों में हम साहस के दीप जलाते हैं। नहीं अनमनापन हम में है, नित हम गाते हैं।। चंद्रगुप्त की धरती है यह, वीर शिवा की आन है। राणाओं की शौर्य धरा यह, पोरस का सम्मान है। वतनपरस्ती तो गहना है, हृदय सजाते हैं। तूफानों में हम साहस के दीप जलाते हैं।। शीश कटा, सर्वस्व गंवाकर, जिनने वतन बनाया। अपने हाथों से अपना ही, जिनने कफ़न सजाया।। भारत माता की महिमा की, बात सुनाते हैं। तूफानों में हम साहस के दीप जलाते हैं।। नहीं अनमनापन उन में था, जिनने फर्ज़ निभाया। वतनपरस्ती का तो जज़्बा, जिनने भीतर पाया।। हँस-हँसकर जो फाँसी झूले, वे नित भाते हैं। तूफानों में हम साहस के दीप जलाते हैं।। सिसक रही थी माता जिस, तब जो आगे आए। राजगुरू, सुखदेव, भगतसिंह, बिस्मिल जो कहलाए।। ब्रिटिश हुक़ूमत से लोहा लेने, निज प्राण गँवाते हैं।...
मार पड़ी महँगाई की
गीत

मार पड़ी महँगाई की

मीना भट्ट "सिद्धार्थ" जबलपुर (मध्य प्रदेश) ******************** मार पड़ी महँगाई की है, नहीं सूझती बात। मिली आज की दौर की हमें, आँसू ही सौग़ात।। रोते बच्चे मिले बटर भी, कुछ रोटी के साथ। पल्लू से आँसू पोंछे माँ, पर मारे-दो हाथ।। छूट गया काम क्या करे अब, खाओ सूखा भात। रोज़ गालियाँ देता पति भी, आती उसे न लाज। कटे जीवनी कैसे उसकी, करे न कोई काज।। पीने दारू बेचें जेवर, रोती बस दिन-रात। घूरे के भी दिन आते हैं, उर रखती बस आस। काम मिलेगा कल फिर उसको, पूरा है विश्वास।। तगड़ा नेटवर्क उसका भी, देगी सबको मात। परिचय :- मीना भट्ट "सिद्धार्थ" निवासी : जबलपुर (मध्य प्रदेश) पति : पुरुषोत्तम भट्ट माता : स्व. सुमित्रा पाठक पिता : स्व. हरि मोहन पाठक पुत्र : सौरभ भट्ट पुत्र वधू : डॉ. प्रीति भट्ट पौत्री : निहिरा, नैनिका सम्प्रति : सेवानिवृत्त जिला न्या...
पीड़ाओं के घट
गीत

पीड़ाओं के घट

मीना भट्ट "सिद्धार्थ" जबलपुर (मध्य प्रदेश) ******************** पीड़ाओं के घट भरते सब, घोर विरोधाभास। संकट की पगडंडी चलते, वन गुलमोहर आज। बोधिवृक्ष नित काटे जाते, बस बबूल का राज।। डोर भावनाओं की काटे, गर्वित हो उपहास। आतिशबाजी है युद्धों की, होगी किसकी जीत। बारूदों के ढ़ेर लगे पर, कोयल गाती गीत।। मानवता का नाम नहीं है, गुदड़ी सोता दास। झूठों के बाज़ार लगे हैं, समय बड़ा बलवान। श्रमकण धूल मिला है अब तो, शहरी जीवन शान।। दर्पण मैला है शुचिता का, सच भेजा वनवास। परिचय :- मीना भट्ट "सिद्धार्थ" निवासी : जबलपुर (मध्य प्रदेश) पति : पुरुषोत्तम भट्ट माता : स्व. सुमित्रा पाठक पिता : स्व. हरि मोहन पाठक पुत्र : सौरभ भट्ट पुत्र वधू : डॉ. प्रीति भट्ट पौत्री : निहिरा, नैनिका सम्प्रति : सेवानिवृत्त जिला न्यायाधीश (मध्य प्रदेश), लोकायुक्त संभागीय सतर्...
साँसें साँसत में
गीत

साँसें साँसत में

भीमराव झरबड़े 'जीवन' बैतूल (मध्य प्रदेश) ******************** चलें धार पर रहीं हमेशा, साँसें साँसत में। एक कुल्हाड़ी और दराती, मिली विरासत में।। रोज उज्ज्वला सिर पर ढोती, लकड़ी का गट्ठर, पथ पर भूखे देख भेड़िये, देह स्वेद से तर, भूख-प्यास लेकर बैठी है, देह हिरासत में।। कानी-खोटी सुनकर पाया, दाम इकाई में, नमक-मिर्च भी लाना मुश्किल, इस महँगाई में, है गरीब का सस्ता सब कुछ, यहाँ रियासत में।। पाँच बरस में एक बार ही, मंडी खुलती है, जिसमें अपने जीवन भर की, किस्मत तुलती है, वोट तलक अपनापन मिलता, हमें सियासत में।। परिचय :- भीमराव झरबड़े 'जीवन' निवासी : बैतूल मध्य प्रदेश घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित कर...
नया काल है… नया साल है…
गीत

नया काल है… नया साल है…

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** नया काल है, नया साल है, गीत नया हम गाएँगे। करना है कुछ नवल-प्रबल अब, मंज़िल को हम पाएँगे।। बीत गया जो, उसे भुलाकर, हम गतिमान बनेंगे। जो भी बाधाएँ, मायूसी, उनको आज हनेंगे।। गहन तिमिर को पराभूत कर, नया दिनमान उगाएँगे। करना है कुछ नवल-प्रबल अब, मंज़िल को हम पाएँगे।। काँटों से कैसा अब डरना, फूलों की चाहत छोड़ें। लिए हौसला अंतर्मन में, हम दरिया का रुख मोड़ें।। गिरियों को हम धूल चटाकर, आगत में हरषाएँगे। करना है कुछ नवल-प्रबल अब, मंज़िल को हम पाएँगे।। जीवन बहुत सुहाना होगा, यही सुनिश्चित कर लें। बिखरी यहाँ ढेर सी खुशियाँ, उनसे दामन भर लें।। सूरज से हम नेह लगाकर, आलोकित हो जाएँगे। करना है कुछ नवल-प्रबल अब, मंज़िल को हम पाएँगे।। अंधकार को मिटना होगा, दूर भग रहा है ग़म। नहीं व्यथा-बेचैनी होगी, मंगलमय है मौसम...
फटे-पुराने कपड़े
गीत

फटे-पुराने कपड़े

मीना भट्ट "सिद्धार्थ" जबलपुर (मध्य प्रदेश) ******************** फटे-पुराने कपड़े उनके, धूमिल उनकी आस। जीवन कुंठित है अभाव में, खोया है विश्वास।। अवसादों की बहुतायत है, रूठा है शृंगार। अंग-अंग में काँटे चुभते, तन-मन पर अंगार।। मन विचलित है तप्त धरा है, कौन बुझाये प्यास। चीर रही उर पिक की वाणी, काॅंपे कोमल गात। रोटी कपड़ा मिलना मुश्किल, अटल यही बस बात।। साधन बिन मौन हुआ उर, करें लोग परिहास। आग धधकती लाक्षागृह में, विस्फोटक सामान। अंतर्मन भी विचलित तपता, कोई नहीं निदान। श्रापित होता जीवन सारा, श्वासें हुई उदास। परिचय :- मीना भट्ट "सिद्धार्थ" निवासी : जबलपुर (मध्य प्रदेश) पति : पुरुषोत्तम भट्ट माता : स्व. सुमित्रा पाठक पिता : स्व. हरि मोहन पाठक पुत्र : सौरभ भट्ट पुत्र वधू : डॉ. प्रीति भट्ट पौत्री : निहिरा, नैनिका सम्प्रति : सेवानिवृत...
दूर रहो थोड़ा
गीत

दूर रहो थोड़ा

भीमराव झरबड़े 'जीवन' बैतूल (मध्य प्रदेश) ******************** ख्याल रखो कुछ बिरादरी का, दूर रहो थोड़ा। अभी-अभी तो चोंच निकाली, बाहर अंडे से। लड़ने को तैयार खड़े हो, पोथी पंडे से।। आदमयुग की सभ्य रीति को, कहते जो फोड़ा।। अक्षर चार पढे क्या बच्चू, बनते हो खोजी। अमरित पीकर आरक्षण का, हरियाये हो जी।। मत दौड़ाओ, तेज हवा-सा, अक्षर का घोड़ा।। ढोल गँवार नारियों जैसे, तुम पर कृपा रही। ब्रह्मा जी ने आ सपने में, हम से बात कही।। बचो पाप से मानस के पथ, बनो नहीं रोड़ा।। मिथकों की सच्चाई पर जो, प्रश्न उठाओंगे। कानूनी पंजों में जबरन, जकड़े जाओंगे।। अब भी चोटी के हाथों हैं, कब्जे का कोड़ा।। परिचय :- भीमराव झरबड़े 'जीवन' निवासी : बैतूल मध्य प्रदेश घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्री...
माँग का सिंदूर
गीत

माँग का सिंदूर

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** नग़मे गाता है सुहाग के, माथे का सिंदूर। जिसमें रौनक बसी हुई है, जीवन का है नूर।। जोड़ा लाल सुहाता कितना, बेंदी, टिकुली ख़ूब शोभा बढ़ जाती नारी की, हर इक कहता ख़ूब गौरव-गरिमा है माथेकी, आकर्षण भरपूर। नग़मे गाता है सुहाग के, माथे का सिंदूर।। अभिसारों का जो है सूचक, तन-मन का है अर्पण लाल रंग माथे का लगता, अंतर्मन का दर्पण सात जन्म का बंधन जिसमें, लगे सुहागन हूर। नग़मे गाता है सुहाग के, माथे का सिंदूर।। दो देहें जब एक रंग हों, मुस्काता है संगम मिलन आत्मा का होने से, बनती जीवन-सरगम जज़्बातों की बगिया महके, कर देहर ग़म दूर। नग़मे गाता है सुहाग के, माथे का सिंदूर।। चुटकी भर वह मात्र नहीं है, प्रबल बंध का वाहक अनुबंधों में दृढ़ता बसती, युग-युग को फलदायक निकट रहें हरदम ही प्रियवर, जायें भले सुदूर।। नग़मे ...
मतलब का गीत
गीत

मतलब का गीत

गिरेन्द्रसिंह भदौरिया "प्राण" इन्दौर (मध्य प्रदेश)  ******************** बल-विद्या क्या बुद्धि ठगी का, चलन पुराना नया नहीं है। मतलब की दुनिया में मतलब, मात्र स्वार्थ है हया नहीं है।। पल-पल छलना धोखा खाना। पिंजरे में आकर फँस जाना।। फिर मुश्किल बचकर जा पाना, कहीं सुरक्षित नहीं ठिकाना।। तुम भी उड़ो पखेरू बचकर, बली बाज है बया नहीं है।। असहनीय सी पीर दिखा लो। या रोती तस्वीर दिखा लो।। कोई नहीं पसीजेगा तुम, बेशक छाती चीर दिखा लो। यह क्रूरों गाँव यहाँ पर, सिर्फ सजा है दया नहीं है।। यहाँ भूलकर भी मत आना। शेष न होगा फिर पछताना।। आने का मतलब है मतलब, मरने से पहले मर जाना ।। देख रहा हूँ यहांँ आदमी, आकर वापस गया नहीं है।। परिचय :- गिरेन्द्रसिंह भदौरिया "प्राण" निवासी : इन्दौर (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित...
धर्म ध्वजा
गीत

धर्म ध्वजा

किरण पोरवाल सांवेर रोड उज्जैन (मध्य प्रदेश) ******************** धन्य-धन्य हे तु जननी, हीरा माणक सा लाल जना, है धन्य हुई यह है वसुधा, गोदी में आया बाल जना। धर्म का प्रहरी धर्म रक्षक जग में, सनातनी धर्म की ले धर्म ध्वजा, निकल गया है कमर जो कसकर, निडर बहादुर लाल बना। अपने जीवन की रक्षा किए बिन, निकल गया धर्म डगर पर आज, माता का बलिदान बड़ा है, धन्य ऐसी जननी आज। अपने दिल के टुकड़े की, आहुति दे दी धर्म यज्ञ में है, एक माँ ही माँ को है समझे, क्या दर्द बँया कर सकती आज। दिल पर पत्थर रखकर के वो, जब विदा कर दिया लाल को है, लाखों का पुत्र बना जग में , लाखों के दिल का टुकड़ा है। अब हिंदू राष्ट्र की कल्पना को, साकार रूप ले दिल में वो, नहीं ऊंच-नीच का भेदभाव, हैं लगा लिया दिल से सबको। अब गरीब अमीर की खाई को, आज मिटा दिया हर दिल से वो। चले चलो और बड़े चलो, आज कदम से कद...
डोर
गीत

डोर

मीना भट्ट "सिद्धार्थ" जबलपुर (मध्य प्रदेश) ******************** मत जाना तुम कभी छोड़ कर, रात-दिवस मैं जगता हूँ। तुम ही तुम हो इस जीवन में, याद तुम्हें बस करता हूँ।। प्रिये सामने जब तुम रहती, मन पुलकित हो जाता है। लेता है यौवन अँगडाई, माधव फिर प्रिय आता है।। प्रेम सुमन पल-पल खिल जाते, भौरों-सा मैं ठगता हूँ। मत जाना तुम कभी छोड़ कर, रात-दिवस मैं जगता हूँ।। नेह डोर तुमसे बाँधी है, जन्म-जन्म का बंधन है । साथ कभी छूटे ना अब ये, प्रेम ईश का वंदन है ।। मेरे हिय में तुम बसती हो, नाम सदा ही जपता हूँ । मत जाना तुम कभी छोड़ कर, रात-दिवस मैं जगता हूँ।। रूप अनूप बड़ा मनमोहन, तन में आग लगाता है । आलिंगन को तरस रहा मन, हमें बहुत तडपाता है।। चंचल चितवन नैन देख कर, ठंडी आहें भरता हूँ। मत जाना तुम कभी छोड़ कर, रात-दिवस मैं जगता हूँ।। परिचय :- मीना ...