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गीत

लगे जिगर में गोली है
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लगे जिगर में गोली है

मीना भट्ट "सिद्धार्थ" जबलपुर (मध्य प्रदेश) ******************** वोट बैंक के खाते से बस, खेलें नेता होली है। अवसरवादी राजनीति में, रोज़ पदों की डोली है।। धुत्त नशे में अब नेता हैं, कालिख मुख गद्दारी की। हुड़दंगी दल बदलू नाचें, हद होती मक्कारी की।। ढोल -मजीरे स्वयं बजाती, बड़ी प्रजा यह भोली है। घर-घर राजदुलारे जाते, भूल गये सब मर्यादा। दीप-तले ख़ुद अँधियारा है, कुचल गया चलता प्यादा।। फिरती झाड़ू उम्मीदों पर, लगे जिगर में गोली है। दल्लों की भरमार हुई है, आप जान लो सच्चाई । पिचकारी ई डी की चलती, रँगें जेल की अँगनाई।। मुखिया आँख बँधीं पट्टी है, शैतानों की टोली है। परिचय :- मीना भट्ट "सिद्धार्थ" निवासी : जबलपुर (मध्य प्रदेश) पति : पुरुषोत्तम भट्ट माता : स्व. सुमित्रा पाठक पिता : स्व. हरि मोहन पाठक पुत्र : सौरभ भट्ट पुत्र वधू : डॉ. प्रीति...
कंचन मृग छलता है अब भी
गीत

कंचन मृग छलता है अब भी

मीना भट्ट "सिद्धार्थ" जबलपुर (मध्य प्रदेश) ******************** कंचन मृग छलता है अब भी, जीवन है संग्राम। उथल-पुथल आती जीवन में, डसती काली रात। जाल फेंकते नित्य शिकारी, देते अपनी घात।। चहक रहे बेताल असुर सब, संकट आठों याम। बजता डंका स्वार्थ निरंतर, महँगा है हर माल। असली बन नकली है बिकता, होता निष्ठुर काल।। पीर हृदय की बढ़ती जाती, तन होता नीलाम। आदमीयत की लाश ढो रहे, अपने काँधे लाद। झूठ बिके बाजारों में अब, छल दम्भी आबाद।। खाल ओढ़ते बेशर्मी की, विद्रोही बदनाम। परिचय :- मीना भट्ट "सिद्धार्थ" निवासी : जबलपुर (मध्य प्रदेश) पति : पुरुषोत्तम भट्ट माता : स्व. सुमित्रा पाठक पिता : स्व. हरि मोहन पाठक पुत्र : सौरभ भट्ट पुत्र वधू : डॉ. प्रीति भट्ट पौत्री : निहिरा, नैनिका सम्प्रति : सेवानिवृत्त जिला न्यायाधीश (मध्य प्रदेश), लोकायुक्त संभागीय सत...
दीप-अभिवंदना
गीत

दीप-अभिवंदना

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** लघु दीपक है दिव्य आज तो, उससे अब तम हारा है।। जगमग जीवन ज्योति सुहाती, अभिवंदित उजियारा है। माटी की नन्हीं काया ने, गीत सुपावन गाया है। उसका लड़ना तूफानों से, सबके मन को भाया है।। कुम्हारों के कुशल सृजन पर,आज जगत सब वारा है। जगमग जीवन ज्योति सुहाती, अभिवंदित उजियारा है। घर-आँगन,हर छत-मुँडेर पर, बैठा नूर सिपाही है। जो हरदम ही,निर्भय होकर, देता सत्य गवाही है।। दीपक तो हर मुश्किल में भी, रहा कर्म को प्यारा है। जगमग जीवन ज्योति सुहाती, अभिवंदित उजियारा है।। अवसादों को दूर हटाया, खुशियों का दामन थामा। आज भावना हर्षाती है, दीप बालती है वामा।। लघु दीपों ने प्रबल वेग से, अँधियारे को मारा है। जगमग जीवन ज्योति सुहाती, अभिवंदित उजियारा है।। दीर्घ निशा निज ताप दिखाती, तिमिर बहुत गहराया है। पर सूरज के लघु वंशज ...
दीप जलाओ
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दीप जलाओ

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** मन में तुम यदि दीप जलाओ, तो मिट जाये उलझन। व्यथा,वेदनाएँ सब मृत हों, भरे हर्ष से जीवन।। दीप दिखाता मानवता-पथ, रीति-नीति सिखलाता। साँच-झूठ में भेद बताता, जीवन-सुमन खिलाता।। अंतर्मन जो दीप जलाते, उनका महके आँगन। व्यथा,वेदनाएँ सब मृत हों, भरे हर्ष से जीवन।। दीपक की तो महिमा न्यारी, चमत्कार करता है। पोषित होता जहाँ उजाला, वहाँ सुयश बहता है।। शुभ-मंगल के मेले लगते, जीवन बनता मधुवन। व्यथा,वेदनाएँ सब मृत हों, भरे हर्ष से जीवन।। दीपक में तो सत् रहता है, जो दिल पावन करता। अंतर को जो आनंदित कर, खुशियों से है भरता।। दीपक तो देवत्व दिलाता, कर दे समां सुहावन। व्यथा,वेदनाएँ सब मृत हों, भरे हर्ष से जीवन।। दीपक से तो नित्य दिवाली, नगर- बस्तियाँ शोभित। उजला आँगन बने देव दर, सब कुछ होता सुरभित।। अंत...
देखिए अनंत
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देखिए अनंत

मीना भट्ट "सिद्धार्थ" जबलपुर (मध्य प्रदेश) ******************** होती कथा बुराई की तो, देखिए अनंत। क्या इसका कभी नहीं होगा, कोई भी अंत। कुछ भी कहाँ बदलाव आया, अब लो पहचान। वही राजा वही रानी हैं, चारण का गान।। चरित्र मिले हैं शकुनि जैसे, जानो श्रीमंत। कब होता यह प्रेम पुराना, मेरे मनमीत। सुर सरगम ताल वही अब और प्रेमगीत।। भूलें अपनी शकुंतला को, उसके दुष्यंत। त्रेता युग का कपटी रावण, बसता भी आज। करे हरण बस सीता का वो, नहीं और काज।। खाते मंदिर का चढ़ावा, बदले क्या संत। परिचय :- मीना भट्ट "सिद्धार्थ" निवासी : जबलपुर (मध्य प्रदेश) पति : पुरुषोत्तम भट्ट माता : स्व. सुमित्रा पाठक पिता : स्व. हरि मोहन पाठक पुत्र : सौरभ भट्ट पुत्र वधू : डॉ. प्रीति भट्ट पौत्री : निहिरा, नैनिका सम्प्रति : सेवानिवृत्त जिला न्यायाधीश (मध्य प्रदेश), लोकायुक्त संभ...
कंचन मृग छलता है अब भी
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कंचन मृग छलता है अब भी

मीना भट्ट "सिद्धार्थ" जबलपुर (मध्य प्रदेश) ******************** कंचन मृग छलता है अब भी, जीवन है संग्राम। उथल-पुथल आती जीवन में, डसती काली रात। जाल फेंकते नित्य शिकारी, देते अपनी घात।। चहक रहे बेताल असुर सब, संकट आठों याम। बजता डंका स्वार्थ निरंतर, महँगा है हर माल। असली बन नकली है बिकता, होता निष्ठुर काल।। पीर हृदय की बढ़ती जाती, तन होता नीलाम। आदमीयत की लाश ढो रहे, अपने काँधे लाद। झूठ बिके बाजारों में अब, छल दम्भी आबाद।। खाल ओढ़ते बेशर्मी की, विद्रोही बदनाम। परिचय :- मीना भट्ट "सिद्धार्थ" निवासी : जबलपुर (मध्य प्रदेश) पति : पुरुषोत्तम भट्ट माता : स्व. सुमित्रा पाठक पिता : स्व. हरि मोहन पाठक पुत्र : सौरभ भट्ट पुत्र वधू : डॉ. प्रीति भट्ट पौत्री : निहिरा, नैनिका सम्प्रति : सेवानिवृत्त जिला न्यायाधीश (मध्य प्रदेश), लोकायुक्त संभागीय सत...
करवा चौथ
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करवा चौथ

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** करवा चौथ सुहाना व्रत है, जिसमें जीवन-नूर। नग़मे गाता है सुहाग के, माथे का सिंदूर। करवा चौथ पे भाव समर्पित, व्रत सुहाग की खातिर। अंतर्मन में पावनता है, पातिव्रत जगजाहिर।। चंदा देखे से व्रत पूरा, पति-कर जल-दस्तूर। नग़मे गाता है सुहाग के, माथे का सिंदूर।। जोड़ा लाल सुहाता कितना, बेंदी, टिकुली ख़ूब। शोभा बढ़ जाती नारी की, हर इक कहता ख़ूब।। गौरव-गरिमा है माथेकी, आकर्षण भरपूर। नग़मे गाता है सुहाग के, माथे का सिंदूर।। अभिसारों का जो है सूचक, तन-मन का है अर्पण। लाल रंग माथे का लगता, अंतर्मन का दर्पण।। सात जन्म का बंधन जिसमें, लगे सुहागन हूर। नग़मे गाता है सुहाग के, माथे का सिंदूर।। दो देहें जब एक रंग हों, मुस्काता है संगम। मिलन आत्मा का होने से, बजती जीवन-सरगम।। जज़्बातों की बगिया महके, क...
सुहाग का सिंदूर
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सुहाग का सिंदूर

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** नग़मे गाता है सुहाग के, माथे का सिंदूर। जिसमें रौनक बसी हुई है, जीवन का है नूर।। जोड़ा लाल सुहाता कितना, बेंदी, टिकुली ख़ूब। शोभा बढ़ जाती नारी की, हर इक कहता ख़ूब।। गौरव-गरिमा है माथे की, आकर्षण भरपूर। नग़मे गाता है सुहाग के, माथे का सिंदूर।। अभिसारों का जो है सूचक, तन-मन का है अर्पण। लाल रंग माथे का लगता, अंतर्मन का दर्पण।। सात जन्म का बंधन जिसमें, लगे सुहागन हूर। नग़मे गाता है सुहाग के, माथे का सिंदूर।। दो देहें जब एक रंग हों, मुस्काता है संगम। मिलन आत्मा का होने से, बजती जीवन-सरगम।। जज़्बातों की बगिया महके, कर देहर ग़म दूर। नग़मे गाता है सुहाग के, माथे का सिंदूर।। चुटकी भर वह मात्र नहीं है, प्रबल बंध का वाहक। अनुबंधों में दृढ़ता बसती, युग-युग को फलदायक।। निकट रहें हरदम ही प्रिय...
श्वासें हुई उदास
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श्वासें हुई उदास

मीना भट्ट "सिद्धार्थ" जबलपुर (मध्य प्रदेश) ******************** फटे-पुराने कपड़े उनके, धूमिल उनकी आस। जीवन कुंठित है अभाव में, खोया है विश्वास।। अवसादों की बहुतायत है, रूठा है शृंगार। अंग-अंग में काँटे चुभते, तन-मन पर अंगार।। मन विचलित है तप्त धरा है, कौन बुझाये प्यास। चीर रही उर पिक की वाणी, काॅंपे कोमल गात। रोटी कपड़ा मिलना मुश्किल, अटल यही बस बात।। साधन बिन मौन हुआ उर, करें लोग परिहास। आग धधकती लाक्षागृह में, विस्फोटक सामान। अंतर्मन भी विचलित तपता, कोई नहीं निदान। श्रापित होता जीवन सारा, श्वासें हुई उदास। परिचय :- मीना भट्ट "सिद्धार्थ" निवासी : जबलपुर (मध्य प्रदेश) पति : पुरुषोत्तम भट्ट माता : स्व. सुमित्रा पाठक पिता : स्व. हरि मोहन पाठक पुत्र : सौरभ भट्ट पुत्र वधू : डॉ. प्रीति भट्ट पौत्री : निहिरा, नैनिका सम्प्रति : सेवानिवृत...
खाली आसमान
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खाली आसमान

मीना भट्ट "सिद्धार्थ" जबलपुर (मध्य प्रदेश) ******************** आसमान खाली है लेकिन, धरती फिर भी डोले। बढ़ती जाती बैचेनी भी, हौले -हौले बोले।। चले चांद की तानाशाही, चुप रहते सब तारे। रोती चाँदनी मुँह छिपाकर, पीती आँसू खारे।। डरते धरती के जुगनू भी, कौन राज़ अब खोले। जादू है जंतर -मंतर का, उड़ें हवा गुब्बारे। ताना बाना बस सपनों का, झूठे होते नारे।। जेब काटते सभी टैक्स भी, नित्य बदलते चोले। भूखे बैठे रहते घर में, बाहर जल के लाले। शिलान्यास की राजनीति में, खोटों के दिल काले।। त्रास दे रहे अपने भाई, दिखने के बस भोले। परिचय :- मीना भट्ट "सिद्धार्थ" निवासी : जबलपुर (मध्य प्रदेश) पति : पुरुषोत्तम भट्ट माता : स्व. सुमित्रा पाठक पिता : स्व. हरि मोहन पाठक पुत्र : सौरभ भट्ट पुत्र वधू : डॉ. प्रीति भट्ट पौत्री : निहिरा, नैनिका सम्प्रति : सेवान...
मत जाना तुम कभी छोड़ कर
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मत जाना तुम कभी छोड़ कर

मीना भट्ट "सिद्धार्थ" जबलपुर (मध्य प्रदेश) ******************** मत जाना तुम कभी छोड़ कर, रात दिवस मैं जगता हूँ। तुम ही तुम हो इस जीवन में,त याद तुम्हें बस करता हूँ।। प्रिये सामने जब तुम रहती, मन पुलकित हो जाता है। लेता है यौवन अँगडाई, माधव फिर प्रिय आता है।। प्रेम सुमन पल पल खिल जाते, भौरों सा मैं ठगता हूँ। मत जाना तुम कभी छोड़ कर, रात दिवस मैं जगता हूँ।। नेह डोर तुमसे बाँधी है, जन्म जन्म का बंधन है । साथ कभी छूटे ना अब ये, प्रेम ईश का वंदन है ।। मेरे हिय में तुम बसती हो, नाम सदा ही जपता हूँ । मत जाना तुम कभी छोड़ कर, रात दिवस मैं जगता हूँ।। रूप अनूप बड़ा मनमोहन, तन में आग लगाता है । आलिंगन को तरस रहा मन, हमें बहुत तडपाता है।। चंचल चितवन नैन देख कर, ठंडी आहें भरता हूँ। मत जाना तुम कभी छोड़ कर, रात दिवस मैं जगता हूँ।। परिचय :- मीना...
रामकली
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रामकली

भीमराव झरबड़े 'जीवन' बैतूल (मध्य प्रदेश) ******************** मुर्गा बोले उसके पहले, जागी रामकली। हेंपपंप से भरने गागर, उठके पहट चली।। मैके में तो खुद नल चल के, घर में आता था। ग्वाला घंटी सात बजे नित, बजा जगाता था।। बनी ब्याहता गाँव आ गई, लाड़ो प्रेम पली।। मुर्गा बोले उसके पहले, जागी रामकली।। लीप रही अब चौका चौरा, थाप रही कंडे। अधरों पर मुस्काने भीतर, दुखड़ों के हंडे।। तपी कर्म के चूल्हे पर चढ़, गुड़ की मधुर डली।। मुर्गा बोले उसके पहले, जागी रामकली।। आदर के छींके पर सारी, ख्वाहिश टाँग रखी। बैरी दिन फटकार लगाये, रातें मगर सखी।। तन से मन से औरों के हित, बस ताउम्र जली।। मुर्गा बोले उसके पहले, जागी रामकली।। परिचय :- भीमराव झरबड़े 'जीवन' निवासी : बैतूल मध्य प्रदेश घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं...
युवाओं का वंदन
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युवाओं का वंदन

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** अंधकार में युवा शौर्य के, दीप जलाते हैं। देशभक्ति के मधुर तराने, नित वे गाते हैं।। चंद्रगुप्त की धरती है यह, वीर शिवा की आन है। राणाओं की शौर्य धरा यह, पोरस का सम्मान है।। वतनपरस्ती के आभूषण को, युवा सजाते हैं। देेशभक्ति के मधुर तराने, नित वे गाते हैं।। शीश कटा,क़ुर्बानी देकर, जिनने वतन सजाया। अपने हाथों से अपना ही, जिनने कफ़न सजाया।। भारत माता की महिमा की, शपथ निभाते हैं। आज़ादी के मधुर तराने, नित वे गाते हैं।। ख़ून बहा,क़ुर्बानी देकर, जिनने फर्ज़ निभाया। राष् का तो जज़्बा, जिनने भीतर पाया।। हँस-हँसकर जो फाँसी झूले, वे नित भाते हैं। आज़ादी के मधुर तराने, नित हम गाते हैं।। सिसक रही थी माता जिस क्षण, तब जो आगे आए। राजगुरू, सुखदेव, भगतसिंह, बिस्मिल जो कहलाए।। ब्रिटिश हुक़ूमत से लोहा लेने, निज प्राण ...
मीठी वाणी
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मीठी वाणी

मीना भट्ट "सिद्धार्थ" जबलपुर (मध्य प्रदेश) ******************** मीठी वाणी बोलिए, वाणी रस की खान। शुभ वाणी से प्राप्त हो, यत्र-तत्र सम्मान।। सबको दे आनंद है, शुभ तो है अनमोल। शुभ शुभ ही तो बोलिए, मधुरस देवे घोल।। सबसे अच्छी मौन है, सुख का है संदेश। अधजल गगरी छलकती, बदलो ये परिवेश।। कटु वचन से बैर बढ़े, रख लो तुम ये ध्यान। मीठी वाणी बोलिए, वाणी रस की खान।। बार बार मिलती नहीं, देखो मानव देह। निर्मल भाव विचार रख, रखो सभी से नेह।। चलिए सच की राह पर, तज कर झूठ विकार। मानव की सेवा करो, रख मन सहज विचार।। क्षण भंगुर जीवन सुनो, ले लो ये संज्ञान। मीठी वाणी बोलिए, वाणी रस की खान।। व्यर्थ प्रलाप करो नहीं, उत्तम करिए नित्य। आडम्बर को छोड़कर, करिए पावन कृत्य।। कर लो साधक साधना, शुभ तो है बेजोड़। बातचीत-व्यवहार शुभ, मुख नहिं मनवा मोड़।। करे ...
साधना के गीत गाओ
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साधना के गीत गाओ

मीना भट्ट "सिद्धार्थ" जबलपुर (मध्य प्रदेश) ******************** नाम प्रभु का उर बसाकर, साधना के गीत गाओ। बन पुजारी सत्य के तुम, विश्व को संयम सिखाओ।। लेखनी चलती रहे यह, ज्ञान की रसधार भी हो। छंद रस बरसात निशदिन, जीत का गलहार भी हो।। हों सफल हर क्षेत्र में हम, अल्पना ऐसी बनाओ। बुद्धि निर्मल हो मिले यश, दूर हों अवसाद सारे। पुष्प आशा के खिलें फिर, स्वप्न हों साकार प्यारे।। प्रेम का विस्तार हो अब, मोहिनी पिक-ध्वनि सुनाओ छाँव देदो प्रेम की तुम, भाव कुत्सित त्याग प्यारे। दंभ छल से मोड़ दो मुख, कर्म हों निष्काम सारे।। धर्म की लहरे ध्वजा फिर, तुम अलख ऐसी जगाओ है तृषित धरती बड़ी यह, आपसी सौहार्द टूटे। लुप्त सब संवेदनाएँ, शांति के घट आज फूटे।। है व्यथित माँ भारती भी, दीप जागृति के जलाओ। परिचय :- मीना भट्ट "सिद्धार्थ" निवासी : जबलपुर (मध्य प...
मौसम के तेवर
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मौसम के तेवर

मीना भट्ट "सिद्धार्थ" जबलपुर (मध्य प्रदेश) ******************** बदले हैं मौसम के तेवर, गुम वसंत के रंग। संदेहों की कुसुमित बगिया, तंत्र पिये है भंग।। लोभ मोह की काल कोठरी, टूटी हर दीवार। बेटे रहते अब विदेश में, उर सिरजे अंगार।। रोज़ बुढ़ापा घुटने टेके, कटती आस पतंग। पॉलीथिन में लुप्त हो गई, मृत नदिया की धार। नयी सदी की बात नयी है, हुई जीवनी भार।। दहक रहे दिन रातें सूनी, बदले सारे ढंग। बहुमंजिल इन इमारतों में, टोटे पड़ते धूप। झोपड़ियों की हवा छीनकर, एसी सोते भूप।। मकड़ी के जाले सपनों पर, टूट रहा हर अंग। परिचय :- मीना भट्ट "सिद्धार्थ" निवासी : जबलपुर (मध्य प्रदेश) पति : पुरुषोत्तम भट्ट माता : स्व. सुमित्रा पाठक पिता : स्व. हरि मोहन पाठक पुत्र : सौरभ भट्ट पुत्र वधू : डॉ. प्रीति भट्ट पौत्री : निहिरा, नैनिका सम्प्रति : सेवानिवृत्त जिल...
गुरु चालीसा
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गुरु चालीसा

अभिषेक मिश्रा चकिया, बलिया (उत्तरप्रदेश) ******************** जय जय जय शिक्षा के दाता। कृपा करो आशीष प्रदाता।। तुम सागर हों गुरु ज्ञान के। सबको देते हों ज्ञान अपार।। बुद्धि विवेक जो भी चाहें। गुरु सेवा में ध्यान लगाए।। गुरु मंत्र जो कोई भी जपता। जीवन में सफल सदा रहता।। अनपढ़ को भी ज्ञान देकर। तुम बना देते हो यू विद्वान।। तुम पर हैं हम सबको गुमान। तुम ही करते हों ज्ञान प्रदान।। अनपढ़ को जो विद्वान बना दे। धर्म कर्म का पूरा पाठ पढ़ा दे।। भक्ति भाव का दीपक जलाते। नेक धर्म करने कि शिक्षा देते।। अंधकार को तुम दूर भगाते। ज्ञान कि ज्योति हों जलाते।। सही गलत का पहचान सिखाते। शिक्षा प्राप्ति का संकल्प दिलाते।। हैं धरती पे तुम्हारे कई अवतार। समय-समय पर करते हों प्रचार।। बन चाणक तुम राष्ट्र बनाते। चंद्रगुप्त को राज दिलाते।। महामूर्ख कालीदास जैसे को। ...
शब्दों के रणवीर
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शब्दों के रणवीर

भीमराव झरबड़े 'जीवन' बैतूल (मध्य प्रदेश) ******************** लगा रहे जयकारे केवल, शब्दों के रणवीर। गीत हुए हैं चारण सारे, अब क्या करे कबीर।। फुदक-फुदक ये बजा रहे हैं,वाह वाह की झाँझ। लिपटे हैं पति-सी सत्ता से, ज्यों हो सौतन बाँझ।। मगरमच्छ-से आँसू इनके, पल-पल हुए अधीर।। चुन-चुन कर ये मार रहे हैं, पत्थर वाले फूल। रीति नीति के काटें बोते, पथ पर ऊल-जलूल।। तमगों के चाहत में डोले, इनका सर्प ज़मीर।। छल-छंदों में लिप्त मिला है,लालकिले का फर्ज। चढ़ा हुआ भाटों के सिर भी, इसी दुर्ग का मर्ज।। रोज माॅबलिंचिंग कर ढोंगी, करते पेश नज़ीर।। परिचय :- भीमराव झरबड़े 'जीवन' निवासी : बैतूल मध्य प्रदेश घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प...
हे! गिरिधर गोपाल
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हे! गिरिधर गोपाल

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** हे! गिरिधारी नंदलाल, तुम कलियुग में आ जाओ।। राधारानी को सँग लेकर, अमर प्रेम दिखलाओ।। प्रेम आजअभिशाप हो रहा, बढ़ता नित संताप है। भटकावों का राज हो गया, विहँस रहा अब पाप है।। प्रेम, प्रीति की गरिमा लौटे, अंतस में बस जाओ।। राधारानी को सँग लेकर, अमर प्रेम दिखलाओ।। अंधकार की बन आई है, बेवफ़ाओं की महफिल। शकुनि फेंक रहा नित पाँसे, व्याकुल हैं सच्चे दिल।। अब राधाएँ डरी हुई हैं, बंशी मधुर बजाओ। राधारानी को सँग लेकर, अमर प्रेम दिखलाओ।। आशाएँ तो रोज़ सिसकतीं, पीड़ा का मेला है। कहने को है प्यार यहाँ पर, हर दिल आज अकेला है।। प्रीति-नेह को अर्थ दिलाने, मंगलगान सुनाओ। राधारानी को सँग लेकर, अमर प्रेम दिखलाओ।। गौमाता की हुई दुर्दशा, भटक रहीं राहों में। दूध-दही, जंगल, नदियाँ, गिरि, बिलख रहे आहों में। आकर अब तो प्रक...
भाई के अरमान हैं
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भाई के अरमान हैं

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** नेह मंगलमय हुआ है, राखियाँ शुभगान हैं। दे रहीं बहनें दुआएँ, भाई के अरमान हैं।। हो गया मौसम सुनहरा, चेतना उल्लास में। आन रिश्तों को मिली है, पर्व है विश्वास में।। आ रहा है याद बचपन, आ रहा सब ध्यान में। दे रहीं बहनें दुआएँ, भाई के अरमान हैं।। प्रीति हर्षित हो रही है, रीति है नव आस में। नीतियाँ संदेश देतीँ, धर्म है अहसास में।। भावनाएंँ हैं चरम पर, दिव्यता सम्मान में। दे रहीं बहनें दुआएँ, भाई के अरमान हैं।। पल बड़े भावुक हैं आये, प्रेम पर अति वेग में। सूत के बदले सुरक्षा, मिल रही है नेग में।। बंध ऐसा बँध गया जो, जा बँधा है आन में। दे रहीं बहनें दुआएँ, भाई के अरमान हैं।। डाक ने तो साथ देकर, मार दीं सब दूरियाँ। नेह पर हावी नहीं हैं, आज तो मजबूरियाँ।। है समर्पण और निष्ठा, आज हर अनुमान में। दे रहीं बहनें...
भूख के भजन
गीत

भूख के भजन

भीमराव झरबड़े 'जीवन' बैतूल (मध्य प्रदेश) ******************** सत्ता की सड़कों पर फिसल रहें मन। और अधिक मेघ नहीं बरसाओं धन।। लूट गये व्यापारी खेत की तिजोरी। पेट ये बखारी-सा भर न सका होरी। धनिया के माथे की, बढ़ रही थकन।। छूट गई फूलों के हाथों की डोरी। बाँध गए अंटी में नोट सब सटोरी।। महँगा है आज सखे मौत से कफ़न।। काट गई है कैंची, प्रीति की सिलाई। टीस रही पंछी को, धर्म की चिनाई।। थोप दिए हैं मन पर, भूख के भजन।। परिचय :- भीमराव झरबड़े 'जीवन' निवासी : बैतूल मध्य प्रदेश घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं...
विरह अग्नि
गीत

विरह अग्नि

मीना भट्ट "सिद्धार्थ" जबलपुर (मध्य प्रदेश) ******************** विरह अग्नि झुलसाती तन को, साजन हमें जलाती है। लौट सजन घर आ जाओ अब, ऋतु मिलन की सुहाती है।। बिलखे है शृंगार हमारा, होंठ अंगारे हो रहे। मतवाले जब बादल उमड़ें, बैठे सजन हम रो रहे।। तन पुरवाई आग लगाती, याद तुम्हारी आती है। तार-तार होता है दामन, मन वृंदावन मुरझाता। प्रेम-पिपासा बढ़ती जाती, कौन बता अब बहलाता।। करें याद क्षण अभिसारों की, सारी रात जगाती है। चालें सर्पिल-सर्पिल आहत, लाल कपोल हुए घायल। तान सुनाती जब पिक मधुरिम, मौन रहे पागल पायल।। आजा सुन अब मनुहारों को, यौवन धार बुलाती है परिचय :- मीना भट्ट "सिद्धार्थ" निवासी : जबलपुर (मध्य प्रदेश) पति : पुरुषोत्तम भट्ट माता : स्व. सुमित्रा पाठक पिता : स्व. हरि मोहन पाठक पुत्र : सौरभ भट्ट पुत्र वधू : डॉ. प्रीति भट्ट पौत्री : न...
बिलख रहे रस अलंकार हैं
गीत

बिलख रहे रस अलंकार हैं

मीना भट्ट "सिद्धार्थ" जबलपुर (मध्य प्रदेश) ******************** बिलख रहे रस अलंकार हैं, चुप है छंद तरंग। रहे उदासी गीतों पर भी, न ग़ज़लों में उमंग।। नवगीतों का दौर चला बस, उसकी है भरमार। नव बिंबों में खोया जीवन, होती है तकरार।। कौन पहेली बूझे इसकी, बदले सभी प्रसंग। रोज़ तंज़ बस रिश्तों पर, महँगाई का नाम। नव चिंतन नव संप्रेषण भी, चले मुक्ति संग्राम।। नई सदी की नई विधा यह, नवल रूप नव रंग। भावों में भी जोश अनोखा, पैनी कटार ओज। जन-जन मोहित रचनाओं पर, करें सत्य की खोज।। डाले रुढ़ियों पर नकेल भी, करता अद्भुत जंग। परिचय :- मीना भट्ट "सिद्धार्थ" निवासी : जबलपुर (मध्य प्रदेश) पति : पुरुषोत्तम भट्ट माता : स्व. सुमित्रा पाठक पिता : स्व. हरि मोहन पाठक पुत्र : सौरभ भट्ट पुत्र वधू : डॉ. प्रीति भट्ट पौत्री : निहिरा, नैनिका सम्प्रति : सेवानिवृत्...
राम ही दाता-विधाता
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राम ही दाता-विधाता

मीना भट्ट "सिद्धार्थ" जबलपुर (मध्य प्रदेश) ******************** धन्य देखो भाग्य कुटिया, हैं पधारे आज राम। भक्त है शबरी प्रभो की, नित्य जपती राम नाम।। राम ही दाता विधाता, राम हैं भगवान प्रान। हैं सखा भक्तन सदा ही, राम महिमा देख जान।। राम ही संसार मेरे, राम का कर ध्यान मान। थामते हैं हाथ सबका, राम हैं अवतार भान।। दास सारा जग गुणों की, खान स्वामी राम धाम। राम ही तो आस अब हैं, पार हमको दे उतार। धर्म ही खुद राम प्रभु हैं, कर्म हैं राघव पुकार।। बढ़ गए दुख हैं धरा पर, नाथ अब तू दे उबार। हे अवध स्वामी निराले, देख वो दशरथ कुमार।। नाम उनका जापिए नर, नार साधो.आठ याम। जब कृपा होती प्रभो की, देख खुलते बंद द्वार। राम दें वरदान सुख का, राम ही हैं गंग धार।। राम तारणहार पालें, सृष्टि जानो धर्म सार। लोक नायक हैं प्रजा को, राम देते नेह हार।। राम जीवन लक्ष्य...
मार पड़ी महँगाई की
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मार पड़ी महँगाई की

मीना भट्ट "सिद्धार्थ" जबलपुर (मध्य प्रदेश) ******************** मार पड़ी महँगाई की है, नहीं सूझती बात। मिली आज की दौर की हमें, आँसू ही सौग़ात।। रोते बच्चे मिले बटर भी, कुछ रोटी के साथ। पल्लू से आँसू पोंछे माँ, पर मारे-दो हाथ।। छूट गया काम क्या करे अब, खाओ सूखा भात। रोज़ गालियाँ देता पति भी, आती उसे न लाज। कटे जीवनी कैसे उसकी, करे न कोई काज।। पीने दारू बेचें जेवर, रोती बस दिन-रात। घूरे के भी दिन आते हैं, उर रखती बस आस। काम मिलेगा कल फिर उसको, पूरा है विश्वास।। तगड़ा नेटवर्क उसका भी, देगी सबको मात। परिचय :- मीना भट्ट "सिद्धार्थ" निवासी : जबलपुर (मध्य प्रदेश) पति : पुरुषोत्तम भट्ट माता : स्व. सुमित्रा पाठक पिता : स्व. हरि मोहन पाठक पुत्र : सौरभ भट्ट पुत्र वधू : डॉ. प्रीति भट्ट पौत्री : निहिरा, नैनिका सम्प्रति : सेवानिवृत्त जिला न्या...