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कविता

भयातुर शिक्षक
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भयातुर शिक्षक

सुरेश चन्द्र जोशी विनोद नगर (दिल्ली) ******************** भयभीत शिक्षक समाज आज, भूल मकर संक्रांति कक्षा पढ़ा रहा। राजनीतिक दबाव में शिक्षक आज, भूल पर्वों को कक्षा पढ़ा रहा।। विद्यार्थी चाहे जुड़ना चाहे नहीं चाहे, शिक्षक उपकरण माध्यम से पढ़ा रहा। विद्यार्थी अप्रत्यक्ष कुछ भी शरारत करें, शिक्षक विवस मौन उपकरण से पढ़ा रहा।। कक्षा उपकरण माध्यम से लेने का, आदेश राजनैतिक मिलता रहा। भुलाकर मकर संक्रांति स्नान शिक्षक, उपकरण माध्यम से विषय पढ़ाता रहा।। हो चाहे लोहड़ी उत्तरायणी पर्व अब, शिक्षक पर्व कोई मना नहीं सकते। सेवा शिक्षण की चाहिए सुरक्षित तो, अब शिक्षक पर्व कोई मना नहीं सकते।। अति बिचित्र यह शिक्षा व्यवस्था, हो गई है राष्ट्रीय राजधानी की। कब लौटेगी वह शिक्षण व्यवस्था, जो लुप्त हो गई है राष्ट्रीय राजधानी की।। शिक्षक भयातुर करके कैसे तुम, शिक्षा प्रारूप का स्व...
नारी को जाने और समझे
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नारी को जाने और समझे

संजय जैन मुंबई (महाराष्ट्र) ******************** दिखाये आँखें वो हमें जब मनका काम न हो उसका। तब बहाना ढूँढती रही हमें शर्मीदा करने का। यदि इस दौरान कुछ उससे पूछ लिया तुमने। तो समझ लो तुम्हारी अब खैर नहीं है।। अलग अलग तरह के रूप देखने को मिलेंगे। कभी राधा तो कभी दुर्गा और कभी-कभी शेरनी का। समझ नहीं पाता पुरुष नारी के इतने रूपों को। इसलिए शांति से वो सब कुछ सुनता रहता।। नारी की गुस्सा से पुरुष बहुत डरता है। घर की शांति के लिए वो खुद चुपचाप सा रहता। इसी बात का फायदा सदा वो उठती रहती है। और अपनी मन मानी वो घर में करती रहती है।। बहुत सहनशील धैर्यबान और कुशल प्रबंधक भी नारी होती। और अपने घर और बाहर का ख्याल भी बड़ी खूबी से रखती। तभी तो नारी को लक्ष्मी दुर्गा और अन्नपूर्णा माँ कहाँ जाता। तभी वो घर को स्वर्ग और नरक स्वयं बनाकर रखती है।। नारी के रूपों ...
मेरा हिन्दू नव वर्ष
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मेरा हिन्दू नव वर्ष

अशोक पटेल "आशु" धमतरी (छत्तीसगढ़) ******************** मैं इस धन्य-धरा का हिन्दू हूँ मेरा घर-संसार हिंदुस्तान है। मैंने इस मिट्टी में जन्म लिया इसका बहुत मुझे अभिमान है। हम भारतवासी सच्चे हिन्दू हैं हम सब विक्रम संवत मनाएंगे। चैत्र प्रतिपदा तिथि को मिलके हिन्दू जनजन नव वर्ष मनाएंगे। आओ नमन करें हम जनजन विक्रमादित्य महान सम्राट को। आओ अभिनन्दन, स्वागत करें ऐसे प्रतापी महाराजा विराट को। आइए हम सब बहिष्कार करें विदेशी सभ्यता, संस्कृति को। आइए हम और अंगीकार करें सनातन भारतीय संस्कृति को। आइए भगवा झंडा फहराएंगे भारत की जयकारा लगाएंगे। अपने धर्म का सम्मान बढाएंगे भारत माँ का सर ऊंचा उठाएंगे। तुझसे ही हम सबकी पहचान है तुझसे ही हमारा स्वाभिमान है। तू ही सर्वस्व हमारा सब कुछ है तू ही हम सब का अभिमान है। हे माता तेरी मिट्टी की सौगंध है हम तेरी लाज सदैव बचाएंग...
गुदड़ी का लाल
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गुदड़ी का लाल

डॉ. कुसुम डोगरा पठानकोट (पंजाब) ******************** तुम कह कर आना तुम कहीं ओर नहीं मेरे पास आ रहे हो सफर अपने का विराम पाने आ रहे हो कुछ पल दुनियादारी को भूल जाने मन की कैद से निकल तन्मयता से वात्सल्य का आनंद पाने आ रहे हो संवेदननाओ को महसूस करती शुन्य की अवस्था से दूर ममता की ओर एक कदम बढ़ाने आ रहे हो तुम कह कर आना तुम कहीं और नहीं मेरे पास आ रहे हो घर के झमेलों से निकल बही खातों के हिसाब से दूर अपनी गुदढी से रूबरू होने आ रहे हो खातिरदारी से दूर परिचित अंदाज में स्वयं को महसूस होने के लिए आ रहे हो तुम कह कर आना तुम कहीं ओर नहीं मेरे पास आ रहे हो...। परिचय :- डॉ. कुसुम डोगरा निवासी : पठानकोट (पंजाब) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्र...
बहुरंगी दुनिया
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बहुरंगी दुनिया

गिरेन्द्रसिंह भदौरिया "प्राण" इन्दौर (मध्य प्रदेश)  ******************** दुरंगी मत कहो इसको, बहुत रंगीन दुनिया है। कहीं गमहीन दुनिया तो, कहीं गमगीन दुनिया है।। कहीं नमकीन है कुछ कुछ, कहीं शौकीन है दुनिया, कहीं शालीन भारी तो, कहीं संगीन दुनिया है।। कहीं बस बात चलती है, कहीं पर मन्त्र चलते हैं। कहीं पर हाथ चलते तो, कहीं पर यन्त्र चलते हैं।। कहीं पर सादगी अपनी, विरासत छोड़ जाती तो, कहीं पर सादगी से भी, विकट षडयन्त्र चलते हैं।। किसी का मन बतासा है, किसी का तन तमाशा है। किसी के पास धन ही धन, मगर सुख से निराशा है।। खुलासा हो चुका है यह, उदासी दास किसकी है, करीने से जिया है जो, जिसे सुख ने तराशा है।। किसी ने गाय पाली है, किसी ने भैंस पा ली है। किसी ने झोलियाँ भर लीं, किसी की जेब खाली है।। किसी की चाह ज्यादा है, किसी को आज भी आशा, किसी की दाल में काला, किसी की दाल काल...
सक्रांति का त्यौहार
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सक्रांति का त्यौहार

डाॅ. कृष्णा जोशी इन्दौर (मध्यप्रदेश) ******************** संक्रांति का त्यौहार संक्रांति का त्यौहार आया, खुशियों की सौगात लाया। उत्तरायण में सूरज आया, तिल-तिल तपिश बढ़ाया। शीतलता हो जाती है कम, सूरज दिखाता अपना दम। गंगा नदी में करते‌ हैं स्नान, असहायों को करते हैं दान। गुण तिल का भोग लगाते, सूर्य देवता को अर्घ चढ़ाते। गुण सी मिठास घुल जाए, जीवन में बहार आ जाए। नभ में फर फर उड़े पतंग, जीवन में तेरे भरा रहे रंग। पतंग की न टूटे कभी डोर, उड़े गगन के अंतिम छोर। किसी की भी न कटे पतंग, कृष्णा रहे अपनों का संग। परिचय :- डाॅ. कृष्णा जोशी निवासी : इन्दौर (मध्यप्रदेश) रुचि : साहित्यिक, सामाजिक सांस्कृतिक, गतिविधियों में। हिन्द रक्षक एवं अन्य मंचों में सहभागिता। शिक्षा : एम एस सी, (वनस्पति शास्त्र), आई.आई.यू से मानद उपाधि प्राप्त। घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती ह...
मकर संक्रति
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मकर संक्रति

रीमा ठाकुर झाबुआ (मध्यप्रदेश) ******************** भोर सुहानी, नदियाँ निर्मल, फूलों को मकरंद छुऐ! ढूंढ रहे पराग फूलों में, कितने, सुन्दर रूप लिए!! उदय, आदित्य, नील गगन में, ललिमा नभ पर छायी! स्वर्णिम किरणें "मतवाली बन" धरा स्पर्श करने आयी !! सुन्दर पुष्प खिले बगिया मे, महकी यौवन तरुणायी! गूंजे शंख, मांदल ध्वनि, सब" ऐसी मधुरता है छायी!! पुष्प सजा चरणों में, प्रभु के, सुन्दर सा फिर रूप सजा! मानव मन, मुखरित "हो बोला" भक्ति का, संयोग जगा!! कांटे चुनकर, फूल बिछाओ, मंगल बेला फिर आयी!, मकर संक्रांति की बेला है, पिता पुत्र मिलन की तिथि आयी!! परिचय :- रीमा महेंद्र सिंह ठाकुर निवासी : झाबुआ (मध्यप्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख,...
पतंग प्रेम की
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पतंग प्रेम की

रुचिता नीमा इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** चलो स्वछंद आकाश में प्रेम के पेंच लड़ाते हैं, तुम उधर से पतंग उड़ाओ, हम इधर से उड़ाते हैं।। दुनिया की परवाह से बेखबर हम आसमान में ही मिल जाते हैं तुम उधर से उड़कर आओ, हम इधर से ढ़ील बढ़ाते हैं। चलो प्रेम के पेंच लड़ाते हैं। मधुर प्रेम की पतंगों से ही, अपनी दूरियाँ घटाते हैं, तुम मुझको छूकर निकल जाओ, हम इधर शरमाते हैं।। चलो प्रेम के पेंच लड़ाते हैं। लिख दो कुछ प्रेम के सन्देश भी, पढ़कर लिख दु जबाब सभी, तुम भी मुझे समझ सको, इस आस में तुम्हारे घर की तरफ बढ़ाते हैं, चलो प्रेम के पेंच लड़ाते हैं। काटकर तुम्हारी पतंग को, दिल में सहेज कर रख लेंगे, अगर तुम न भी मिले, तो इससे ही बातें कर लेंगे।। चलो प्रेम के पेंच लड़ाते हैं। रंग बिरंगी प्यारी पतंगों से ही सपनों का संसार बसाते हैं, इस बसन्त के मौसम में, प्रेम के फूल...
नव वर्ष की बधाई
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नव वर्ष की बधाई

विजय वर्धन भागलपुर (बिहार) ******************** नव वर्ष की बधाई, नव वर्ष की बधाई जीवन सुखद सरस हो, संदेश ले के आई नव वर्ष की खुशी में, सब लोग खो रहे हैं नव वर्ष की खुशी में, सब मुग्ध हो रहे हैं बच्चे बड़े सबों की, खुशियाँ हजार लाई हम बैर भाव भूलें, अपनो के संग झूले नव कल्पना से नूतन, भवितव्य द्वार खोलें इस जग को स्वर्ग कर दें, संकल्प ले लें भाई प्रक्रति को हम न टोकें जंगल को ना ही रोकें जो कर रहा प्रदूषण उस हाथ को मरोड़े तब ही धरा पे होगी, हर शक्श की भलाई बूढ़े बड़ों का आदर, हम सब करें बिरादर सेवा करें सदा ही, उनका न हो निरा दर इससे समाज होगा, उन्नत सदा ही भाई जल संचयन का बीडा, हम सब चलो उठाएं तालाब और नहरें, हम खोद कर बनाएं एक बुंद भी न जल, का बर्बाद होवे भाई नव वर्ष की बधाई, नव वर्ष की बधाई परिचय :-  विजय वर्धन पिता जी : स्व. हरिनंदन प्रसाद माता...
सबको लगेगा
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सबको लगेगा

डाॅ. रेश्मा पाटील निपाणी, बेलगम (कर्नाटक) ******************** सबको लगेगा टीका। कोरोना पड़ेगा फीका।। वैक्सिनेशन सेंटर जाओ। टीके से जीवन बचाओ।। अपना जीवन सबको प्यारा। टीका लगे जो जग से न्यारा।। टीकाकरण अभियान हमारा। सबको दे जीवन सहारा।। मानव-मात्र एक समान। टीकाकरण यज्ञ महान।। एक-दूजे को दे सम्मान। सबको टीका लगे समान।। हम बदलेंगे-युग बदलेगा। टीकाकरण सफल बनेगा।। टीके का सम्मान जहाँ है। कोरोना का अवसान वहाँ है।। युवा शक्ति अब आगे आओ। सबको आज टीका लगवाओ।। पहला सुख निरोगी काया। टीके का सुअवसर आया।। आपसी दूरी,मास्क लगाए। आओ सब टीका लगवाए।। जिम्मेदार नागरिक कहलाए। अपना टीका अवश्य लगवाए।। परिचय :-  डाॅ. रेश्मा पाटील निवासी : निपाणी, जिला- बेलगम (कर्नाटक) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक ह...
वह कौन थी
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वह कौन थी

सीताराम पवार धवली, बड़वानी (मध्य प्रदेश) ******************** न जाने कैसी उलझन है जिसे मैं सुलझा नहीं पाया" वह कौन थी अब तक भी मै उसे समझ नहीं पाया क्या तिलस्म था उसका रात भर मै भी सो नहीं पाया। जब उसे मैं याद करता हूं वो जादू भरा तिलस्मी चेहरा न जाने कैसी उलझन है जिसे मैं सुलझा नहीं पाया। आंखों से दिखाई नहीं देती ओर सुनाई भी नहीं देती तिलस्मी हूर है कोई जिससे मैं कुछ कह नहीं पाया। पलों में ओर लम्हों में वो आती है आकर चली जाती सोचता हूं लिखूं गजल मै उस पर मगर लिख नहीं पाया। वो उलझी अनबुझ पहेली है इसे बूझना भी मुश्किल है ये तिलस्मी पहेली को अभी तक मै बुझ नहीं पाया। मैं अनजान हूं उससे वो मुझसे अनजानी नहीं लगती दिन ढलने पर वो छिप जाती उसको मै ढूंढ नहीं पाया। मैं इस दुनिया में आया था वह भी मेरे ही साथ ही आई थी अब तो मेरे साथ ही जाएगी वो तिलस्मी म...
तेरे बुलंद में सितारे हैं
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तेरे बुलंद में सितारे हैं

अशोक पटेल "आशु" धमतरी (छत्तीसगढ़) ******************** जोश-जज्बा मत खोना तेरे बुलंद में सितारे हैं कभी आशाएँ मत खोना मंजिल राह निहारें हैं। मुकद्दर तू ही लिखेगा फैसला तेरे ही हाथों है तेरी किस्मत चमकेगी तेरा सितारा भी चमकेगा। जीवन एक लड़ाई है जहाँ संघर्षों का रेला है ये आसान नही जीवन पग-पग में झमेला है। पसीना जब तू बहायेगा तभी तू इतिहास बनाएगा हौशला जब तू दिखायेगा सितारा तभी जगमगायेगा। परिचय :- अशोक पटेल "आशु" निवासी : मेघा-धमतरी (छत्तीसगढ़) सम्प्रति : हिंदी- व्याख्याता घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां,...
हाँ में बनियाँ हूँ
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हाँ में बनियाँ हूँ

शैलेष कुमार कुचया कटनी (मध्य प्रदेश) ******************** विरोधियो को तो छोड़ो सरकारों ने भी बनियो को गलत निगाह से देखा है कहने को तो में सेठ हूँ फिर क्यों इतना लाचार हूँ आये दिन छापो से घुट घुट के बनियो को जीते देखा है चंदा के नाम पर नेताओ को पैर पकड़ते देखा है छोटा मोटा गुंडा भी धमकी दे जाता है थाने जाओ तो वहां भी लूटा जाता है आखिर कब मिलेगी बनियो को अपनो से ही आजादी व्यापार कोई खेल नही समझो हमारी परेशानी बिन खाये दुकान जाते है दिनभर दिमाग का दही करवाते है मेहनत वाली इज्जत की रोटी खाते है हमने ना गलत राह पकड़ी है बच्चो को भी यही सिखाते है फिर भी मुश्किल में हो मुल्क तो सबसे पहले हाथ बढ़ाते है हाँ में बनियाँ हूँ गर्व से कहना आता है जिसने स्कूल कॉलेज धर्मशाला बनवाई है सबसे पहले टैक्स देकर देश की अगवाई की है एकता से जीना आ गया जिस दिन हमे एक नया इतिहास लिख देंग...
जो तन मन को हर्षाता है
कविता

जो तन मन को हर्षाता है

अंजनी कुमार चतुर्वेदी निवाड़ी ******************** शरद-शीत का साथ सलोना, नव यौवन सा रूप धरे। हरसिंगार, मालती बेला, पुष्पों से श्रृंगार करे। शुभ्र धवल पोशाक पहनकर, जब जब सर्दी आती है। देह समूची कंपित होती, पीड़ा सही ना जाती है। कोहरा पाला शीत सखा हैं, सदा साथ ही रहते हैं। पशु पक्षी पादप मानव भी, भीषण ठंडक सहते हैं। वारिस के सँग ओले आते, शीत अधिक बढ़ जाती है। बीच शीत बारिश होती तब, सर्दी जीव चिढ़ाती है। बसे अगर परदेस पिया हों, सर्दी विरह बढ़ाती है। मनसिज पुष्प बाण से पीड़ा, और अधिक बढ़ जाती है। जिनके प्रियतम पास प्रिया के, उनको शीत लुभाती है। पा सानिध्य सजन का गोरी, चंपा सी खिल जाती है। कंबल गरम रजाई भी अब, गर्माहट ना दे पाते हैं। रिश्तों की गर्माहट पाकर, सबके तन मन हर्षाते हैं। नमन शीत है तुम को मन से, शीतलता सब जग पाता है। तुझसे ही वसंत की आशा...
कठपुतली
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कठपुतली

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ******************** अपने हक की परिभाषा की समझ ना होने से बन जाती दूसरे के हाथों की कठपुतली। शिक्षा का ज्ञान लिया होता ये नौबत नहीं आती कोई भी समस्या आने पर लोगों से निदान पूछना पड़ता ये ही तो अज्ञानता का नतीजा। बढ़ती उम्र में फर्क नहीं होता फिर से पढ़ाई कर रही हूँ आत्मविश्वास का हौसला मन मे भर रही हूँ ताकि अब दूसरे के हाथों की कठपुतली औरों को भी बनने से बचा सकूँ। परिचय :- संजय वर्मा "दॄष्टि" पिता :- श्री शांतीलालजी वर्मा जन्म तिथि :- २ मई १९६२ (उज्जैन) शिक्षा :- आय टी आय व्यवसाय :- ड़ी एम (जल संसाधन विभाग) प्रकाशन :- देश-विदेश की विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएँ व समाचार पत्रों में निरंतर पत्र और रचनाओं का प्रकाशन, प्रकाशित काव्य कृति "दरवाजे पर दस्तक", खट्टे मीठे रिश्ते उपन्यास कनाडा-अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर विश्व के ६५ रचन...
करोना की विभीषिका
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करोना की विभीषिका

डॉ. सुलोचना शर्मा बूंदी (राजस्थान) ******************** डाल दो कानों में शीशा कि ‌ बस चीत्कारों का शोर है ‌घर-घर रुदाली घर-घर अंधेरा ‌ यह मातमों का दौर है... ‌ ‌ काल की फैली भुजाएं ‌ कैसे हन्सा जां बचाए ‌छीनने सांसों को व्याकुल ‌ यह वहशतों का दौर है... ‌ ‌ नित नए तरकश बदलकर ‌ तीर किस किस पर चलाएं ‌ मौत पर हो रही सियासत ‌ यह नफरतों का दौर है... ‌ ‌न टूटते को कांधा ‌ न सर पर कोई हाथ है ‌ हर नजर हो रही सशंकित ‌ यह दहशतों का दौर है... ‌ ‌ सब साथ मिल ग़म बटाना ‌ स्नेह सिक्त हो थपथपाना ‌ और आंसुओं की थाह पाना ‌ वह जमाना ओर था और ‌यह जमाना ओर है!! परिचय :- डॉ. सुलोचना शर्मा निवासी : बूंदी (राजस्थान) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आ...
बेखुदी
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बेखुदी

मधु टाक इंदौर मध्य प्रदेश ******************** रात के टुकड़े पे पलना छोड़ दे वक्त के साँचे में ढलना छोड़ दे तू ख़्वाब है जागती आँखों का बंद पलकों में मचलना छोड़ दे इश्क़ में एहतियात है लाज़िम बेखुदी में अब रहना छोड़ दे चटक गया है दिल का आईना हर पल इसमें सवरना छोड़ दे है सुकु दिल को न चैन रूह को हसरतों के पीछे पड़ना छोड़ दे सच कितना भी गर कड़वा लगे साथ झूठ के तू चलना छोड़ दे एक ही लम्हे में ज़िंदगी जी लीये ताउम्र घुट घुट के मरना छोड़ दे है इल्म मुझको तुम नहीं हो मेरे ज़ख्मो से तू अब रिसना छोड़ दे महक जाती हूँ तेरे अल्फ़ाजो में किताबों मे खत रखना छोड़ दे जमी पर मुहब्बत जो सोई नहीं है साथ तारों के "मधु" जगना छोड़ दे परिचय :- मधु टाक निवासी : इंदौर मध्य प्रदेश घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आ...
संविधान से दोस्ती
कविता

संविधान से दोस्ती

प्रीति धामा दिल्ली ******************** है बात ये पते की, है भी कुछ नई, करो तुम भी कभी, संविधान से दोस्ती! नियम, कानून, और व्यवस्था को जानोगे, फिर कभी नहीं, तुम कानूनों से भागोगे! संविधान बताता, देश की बानगी, संविधान बताता, अधिकारों की रवानगी! संविधान भारतीयों की ढ़ाल बना है, संविधान देश की आन लिए खड़ा है! जो खुद को तानाशाह कहलवाता, संविधान उन्हें है धूल चटाता! लोकतंत्र का परचम, धर्मनिरपेक्षता की कहानी, संविधान बताता अपने अनुच्छेदों की जुबानी, अपने अधिकारों का मोल तुम भी जानोगे, तब सरकारों से भी अपना हक़ तुम माँगोगे! एक यही तो वो आधार है, इसके बिना क्या ही जनाधार है, इसलिए है ये बात पते की, है भी कुछ नई, करो तुम भी कभी, संविधान से दोस्ती! परिचय :-  प्रीति धामा निवासी :  दिल्ली घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्व...
कल और आज
कविता

कल और आज

विश्वनाथ शिरढोणकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ****************** तुम आज के मस्तवाल मैं भी कल का कोतवाल !! तुम्हारे ये अहंकारी बूट मैं देखता आस्था की लूट !! तुम्हारा सत्ता का तंत्र मेरा विश्वास का मंत्र !! तुम्हारा बलिष्ठ तन मेरा नाजुक सा मन !! तुम्हारे स्वछंदी वेश मेरे विश्वास का देश !! तुमसे तो डरती उपेक्षा मेरे पीछे सदैव अपेक्षा !! परिचय : विश्वनाथ शिरढोणकर मध्य प्रदेश इंदौर निवासी साहित्यकार विश्वनाथ शिरढोणकर का जन्म सन १९४७ में हुआ आपने साहित्य सेवा सन १९६३ से हिंदी में शुरू की। उन दिनों इंदौर से प्रकाशित दैनिक, 'नई दुनिया' में आपके बहुत सारे लेख, कहानियाँ और कविताऍ प्रकाशित हुई। खुद के लेखन के अतिरिक्त उन दिनों मराठी के प्रसिध्द लेखकों, यदुनाथ थत्ते, राजा-राजवाड़े, वि. आ. बुवा, इंद्रायणी सावकार, रमेश मंत्री आदि की रचनाओं का मराठी से किया हुआ हिंदी अनुवाद भी अनेक पत्...
पतंग वाले दिन
कविता

पतंग वाले दिन

आस्था दीक्षित  कानपुर (उत्तर प्रदेश) ******************** हंसता हुआ समय, खिचड़ी का दान चुरा ले गए पतंग उड़ाने वाले दिन को, पतंग उड़ा के ले गए अचार, पापड़, घी, बड़े, के कितने चटखारे होते थे संग हो चटनी पुदीने की, तो क्या नजारे होते थे तीखी तीखी चटनी संग, बाते मीठी खा गए पतंग उड़ाने वाले दिन को, पतंग उड़ा के ले गए .... जीरे का छौका लगा कर, भर-भर घी पड़ता था कभी मिलते दान, तो कभी देना भी पड़ता था सादी खिचड़ी की सादगी को, सब मिलकर खा गए पतंग उड़ाने वाले दिन को, पतंग उड़ा के ले गए .... छोटा होना लाभकारी है, तभी पता चलता था बड़े भाई दीदी से, जो मलाई मक्खन मिलता था पिज्जा विज़्ज़ा तो, मक्खन की मलाई ही खा गए पतंग उड़ाने वाले दिन को, पतंग उड़ा के ले गए .... परिचय -  आस्था दीक्षित पिता - संजीव कुमार दीक्षित निवासी - कानपुर (उत्तर प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करत...
मकर संक्रांति
कविता

मकर संक्रांति

डॉ. कोशी सिन्हा अलीगंज (लखनऊ) ******************** धूमिल कोहरे के गर्त्त से निकल कर आया देखो पूरब में लाल सूरज उग कर है आया सप्त घोड़े पर सवार होकर, यह सूर्य देवता धनु राशि से मकर राशि पर है आज आया दक्षिणायन से होकर और उत्तरायण आकर सूरज ने सबको है, आज सुख सरसाया शुभ कर्म सारे सभी के, ठहर से गये थे शुभ कर्मों हित द्वार है, आज खुलवाया काले सफेद तिल की और खिचड़ी की तरह मिले जुले से मौसम ने है, द्वार खटकाया झेल रहे थे पीड़ा, भीष्म शर-शय्या पर उनकी दुस्सह व्यथा हटने का क्षण आया कहर ढाती, सिहरती शीत-लहर के मध्य बसंत की धीम आहट लेकर है आज आया परिचय :- डॉ. कोशी सिन्हा पूरा नाम : डॉ. कौशलेश कुमारी सिन्हा निवासी : अलीगंज लखनऊ शिक्षा : एम.ए.,पी एच डी, बी.एड., स्नातक कक्षा और उच्चतर माध्यमिक कक्षाओं में अध्यापन साहित्य सेवा : दूरदर्शन एवं आकाशवाणी में काव्य पाठ, विभिन्न पत्र...
उन्नीस सौ सैतालिस की स्वतंत्रता
कविता

उन्नीस सौ सैतालिस की स्वतंत्रता

सुरेश चन्द्र जोशी विनोद नगर (दिल्ली) ******************** मिली स्वतंत्रता उन्नीस सौ सैतालिस में, अंग्रेजी दुष्ट शासन से ही तो | किया फिर शासन उनके चाटुकार ने ही, छीन कर शासन सरदार पटेल से ही तो || हुआ था अन्याय पटेल के साथ , होकर स्वतंत्र, हम स्वतंत्र हो न सके | किया स्व-कल्याण शासक ने अपना , भारतवासी पूर्णतया स्वतंत्र हो न सके || भुला दिया सुखदेव, भगत सिंह को, इतिहास सुभाष राजगुरु का छिपा रहा | किया तुष्टिकरणयुक्त प्यारे भारत को, हमारा शासक बांटकर भारत छिपा रहा || मिले वास्तविक स्वतंत्रता हे भारत, दो हजार सैतालिस में पूर्णात्मनिर्भर हो भारत | अब शासक की पारदर्शिता बनी रहे भारत, विश्व गुरु था और बने पुनः मेरा ये भारत || स्तर शिक्षा का सुधार कर, पूर्णात्मनिर्भर हो भारत हमारा | पूर्णतया देशद्रोहियों को सुधार कर, सर्वश्रेष्ठ हो देश भारत हमारा || "धरती पर सर्...
एक शाम
कविता

एक शाम

राजीव डोगरा "विमल" कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) ******************** जिंदगी की एक शाम तेरे नाम लिखूंगा। कुछ अनकहे से अल्फाज तेरे नाम लिखूंगा। कुछ बिखरे हुए जज्बात तेरे नाम लिखूंगा। कुछ टूटे हुए अरमान तेरे नाम लिखूंगा। छलकता है जो पानी आंखों में तेरी याद में तेरे नाम लिखूंगा। करती है जो हवाए देख कर तुमको गुफ्तगू उनको भी तेरे नाम लिखूंगा। परिचय :- राजीव डोगरा "विमल" निवासी - कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) सम्प्रति - भाषा अध्यापक गवर्नमेंट हाई स्कूल, ठाकुरद्वारा घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आ...
केसरिया बाना
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केसरिया बाना

मालती खलतकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** काली-काली धरती मेरी नीला आकाश। पीला साफा पहने भारत मां के लाल अंबर की छाई लाली इस धरती पर आकर बैरी कितने भाग चुके हैं हार मार खाकर।- केसरिया बाना बांध कफन सा आगे बढ़ो जवानो बैरी दल को काट काट कर भारत मां के चरणों में डालो। परिचय :- इंदौर निवासी मालती खलतकर आयु ६८ वर्ष है आपने हिंदी समाजशास्श्र में एम ए एल एलबी किया है आप हिंदी में कविता कहानी लेख गजल आदि लिखती हैं व आपकी रचनाएँ विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं मैं प्रकाशित होते हैं आप सन १९६८ से इंदौर के लेखक संघ रचना संघ से जुड़ीआप शासकीय सेवा से निमृत हैं पीछेले ३० वर्षों से धार के कवियों के साथ शिरकत करती रही आकाशवाणी इंदौर से भी रचनाएं प्रसारित होती रहती हैं व वर्तमान में इंदौर लेखिका संघ से जुड़ी हैं। घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी ...
हमकदम
कविता

हमकदम

मधु टाक इंदौर मध्य प्रदेश ******************** अंजान सफर में हमकदम ढूंढ लेती हूँ सात वचनो में सात जनम ढूंढ लेती हूँ हर शाम महक उठे तेरे ही तसव्वुर से इत्र सा ऐसा ही इक सनम ढूंढ लेती हूँ हज़ारों खंजर सीने में चुभे हुए लेकिन अपने ही ज़ख्मों में मरहम ढूंढ लेती हूँ कहींं है बंजर कहीं बने है महल शीशे के खुदा के लिखे में अपने करम ढूंढ लेती हूँ ज़िन्दगी की पगडंडी में अन्धेरे बहुत है हर एक से पार पाने का दम ढूंढ लेती हूँ न जमी पर ख़ुदा है न ही आसमान पर पत्थर में तेरे होने का भरम ढूंढ लेती हूँ तेरे दूर जाने की वजह भी मालुम मुझको तेरे इशारे पर "मधु" अपने कदम ढूंढ लेती हूँ परिचय :- मधु टाक निवासी : इंदौर मध्य प्रदेश घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच...