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कविता

वैभव तेरा चहुँ ओर रहे
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वैभव तेरा चहुँ ओर रहे

अंजनी कुमार चतुर्वेदी निवाड़ी ******************** माता लक्ष्मी दारिद्र हरो, मम जीवन में उल्लास भरो मिट जाए दुख पीड़ा सारी, वर मुद्रा में निज हाथ धरो। हे विष्णु प्रिया लक्ष्मी माता, तुमसे है दुनियाँ का नाता। जिस पर ना कृपा आपकी हो, जीवन भी उसको भरमाता। हे कमला माता कल्याणी, जीते अभाव में जो प्राणी धनवर्षा उन पर माँ कर दो, खाली झोली उनकी भर दो। तुम उनका भाग जगा दो माँ, सारा दुख दर्द मिटा दो माँ उनके जीवन में शुचिता कर, सारा संताप हटा दो माँ। हे सिंधु सुता, धन की देवी, धनधान्य युक्त जीवन कर दो निर्धन के घर धन की वर्षा, शरणागत को सुख का वर दो जीवन में कर दो खुशहाली, सज्जित हो पूजा की थाली जगमग हो सबके जीवन में, मिट जाय रात सब की काली। खुशहाली चारों ओर रहे, दारिद्र ताप ना कोई सहे हर घर में रोशन हो चिराग, वैभव तेरा चहुँ ओर रहे। परिचय :- अंजनी क...
परीक्षा
कविता, बाल कविताएं

परीक्षा

केदार प्रसाद चौहान गुरान (सांवेर) इंदौर ****************** वैसे तो हमारा जीवन भी एक परीक्षा है जो कदम कदम पर हम अनुभव करते हैं यह भी एक शिक्षा है जीवन में सफलता अर्जित करने के लिए हम रात दिन पुस्तक पढ़ते हैं उम्मीदों की सीढ़ियां चुनकर प्रतिदिन आगे बढ़ते हैं हमें जो मुकाम हासिल करना है उसके लिए करते हैं मेहनत और सपने बूनते है बच्चे अपनी पसंद का सब्जेक्ट चुनते हैं मन लगाकर पढ़ाई करने वाले बच्चे आसानी से सफल हो जाते हैं अपनी मंजिल पर पहुंच जाते हैं फिर मनचाहा फल पाते हैं पेपर हो चाहे किसी भी सब्जेक्ट का उससे नहीं घबराते हैं जो बच्चे टेंशन नहीं लेते हैं परीक्षा का वह बहुत ही आसानी से सफल हो जाते हैं मेरी सलाह है आपसे परीक्षा से कभी नहीं घबराना चाहिए बनाकर टाइम टेबल पढ़ाई में जुट जाना चाहिए समय पर खाना, समय पर पढ़ना समय पर सोना और ...
एक दिए ने धूम मचा दी
कविता

एक दिए ने धूम मचा दी

गिरेन्द्रसिंह भदौरिया "प्राण" इन्दौर (मध्य प्रदेश)  ******************** विकट अँधेरे लगे हुए थे, रातों के जयकारे में। एक दिए ने धूम मचा दी, अँधियारे गलियारे में।। तुम दिनकर के वंशज होकर, असमंजस में जीते‌ थे। देख अँधेरोँ की ताकत को, घूँट खून का पीते थे।। तुमको शक था जिस दीपक पर, क्या इकलौता कर लेगा। अँधियारों से डरकर, चुपके से समझौता कर लेगा।। उसी दीप ने दिखा दिया दम, तम बदला उजियारे में। एक दिए ने धूम मचा दी, अँधियारे गलियारे में।।१।। अपने आप नहीं मिटते तम, इन्हें मिटाना पड़ता है। खुद को दीप बनाकर खुद का, दीप जलाना पड़ता है।। तब ही कान्ति केश तक छाती, तिमिर तोम हर लेती है। दीपशिखा सूरज बन जाती, ज्ञान व्योम कर देती है।। फिर अन्तर क्या रहा दीप में, तारे और सितारे में। एक दिए ने धूम मचा दी, अँधियारे गलियारे में।।२।। आभा के कारण रवि का तम, दरश नहीं कर पाता ...
बसन्ती बहार
कविता, स्तुति

बसन्ती बहार

रुचिता नीमा इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** आ गया ऋतुराज बसन्त लेकर प्रेम की नई तरंग हर तरफ सुनहरी छटा है बिखरी प्रकृति दुल्हन जैसी है निखरी खेतों में पक गई सरसों की बाली फलों से लद गई अम्बुआ की डाली प्रेम रंग में रंगी है धरती सारी फूलों पर मंडरा रही तितलियाँ प्यारी चल रही शीतल मन्द बयार मतवाली हर तरफ फैली है खुशहाली माँ भगवती भी लेकर अवतार देने आई बुद्धि-विद्या का उपहार करें हम माँ की आराधना बार-बार सब पर हो माँ शारदा की कृपा अपार श्वेताम्बर धारिणी, वीणा वादिनी दे दो माँ मेरे भावों को शब्दों का आकार नित नव रचना का सृजन करू मैं दो मेरी लेखनी को अपना आशीर्वाद परिचय :-  रुचिता नीमा जन्म २ जुलाई १९८२ आप एक कुशल ग्रहणी हैं, कविता लेखन व सोशल वर्क में आपकी गहरी रूचि है आपने जूलॉजी में एम.एस.सी., मइक्रोबॉयोलॉजी में बी.एस.सी. व इग्नू से बी.एड. किया है आप ...
ऋतुराज बसंत 
कविता

ऋतुराज बसंत 

निरूपमा त्रिवेदी इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** उषा की लालिमा निराली कुंज-कुंज छाई हरियाली लो आ गया ऋतुराज बसंत सखी महक उठे दिग् -दिगंत ठंडी-ठंडी मदमस्त बयार आई लेकर बासंती उपहार शाख-शाख खिले प्रसून हर्षित बेलें करें आलिंगन फैली चहुं ओर मकरंद सुगंध मंडराते-गुनगुनाते भ्रमर वृंद विथियों में फैला वासंती वैभव प्रीतियों में भूला सुधि प्रणीत मन आम्र मंजरी से सजी अमराई देख-देख उनको पिक बौराई प्रकृति पीली-पीली चुनर ओढ़े मन की कोयल कुहू-कुहू बोले जिया मेरा बन बैठा अनुरागी वन-वन डोले जैसे बैरागी मन के आंगन फिर सजी खुशियों की रंगबिरंगी रंगोली ऋतुराज बसंत श्रृंगारित फूलों की डोली अलंकृत बासंती चांद बासंती चांदनी बहका अंबर महकी यामिनी परिचय :- निरूपमा त्रिवेदी निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वा...
कदम बढ़ा कर देखो
कविता

कदम बढ़ा कर देखो

विजय वर्धन भागलपुर (बिहार) ******************** होगा काम नहीं क्यों तुमसे कदम बढ़ा कर देखो साहस को अपनाओ प्यारे सोच बदल कर देखो प्रभु राम गर वन ना जाते कैसे रावण मरता कृष्ण अगर ना बल दिखलाते कंस कहो क्या डरता गांधी जी गर घर में रहते देश स्वतंत्र न होता पराधीनता की जंजीरें अब तक जकड़ा रहता दशरथ मांझी चेनी लेकर अगर न पथ को बनाते गाँव के लोग कहो कैसे सुविधा का लुत्फ़ उठाते इसीलिए कहता हूँ सबसे भाव बदल कर देखो होगा कोई काम नहीं क्यों सोच बदल कर देखो परिचय :-  विजय वर्धन पिता जी : स्व. हरिनंदन प्रसाद माता जी : स्व. सरोजिनी देवी निवासी : लहेरी टोला भागलपुर (बिहार) शिक्षा : एम.एससी.बी.एड. सम्प्रति : एस. बी. आई. से अवकाश प्राप्त प्रकाशन : मेरा भारत कहाँ खो गया (कविता संग्रह), विभिन्न पत्रिकाओं में रचनाएं प्रकाशित। घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार ...
नई सदी का बसंत
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नई सदी का बसंत

मालती खलतकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** नई सदी के प्रथम बसंत कैसे करूं स्वागत तेरा पहले जब तुम आते थे स्वागत अमीर शाखाएं झुकती वंदना सजाते आमृ पणृ पलाश अगन लगाते थे कुंद, कदंब कचनार लजाते चंपा चमेली जहु़ ओर महकते वृक्षवल्ररी यौवन पर होती थी तो पाषाणो में पुष्प थे खिलते। पर वर्तमान में आमृ कुंज में कम बौराऐ आमृ वृक्ष है। नहीं कोयल की कुक कहीं चकवा, चातक, चकोर चोंच भी नहीं मारते पत्तों पर शायद उन्हें विश्वास नहीं वृक्षवल्ल्ररी तनों पर तज, तज कर निड अपने नील गगन में उड़ते हैं सोच यही गगन तले प्राण वायु मिल जावे कहीं।। तुम आए हों हे बसंत स्वागत तुम्हारा करती हूं। पुनः परंपराएं दोहराओ यह इच्छा रखती हूं, अमराई में बौराऐ आमृ वृक्ष और कूकेँ कोयल की कूक केसरिया पीला बाना पहने अमल ताश सरसो फूल चटक, चटक चटके सब कलियां कुंद चांदनी की डाली मोगरा, गुल...
मधुमास
कविता

मधुमास

राम रतन श्रीवास बिलासपुर (छत्तीसगढ़) ******************** प्रकृति बसंत बौछार, मधुप गूंजे कलीयन कली रे अली। प्रेम डगर आसान नहीं, श्वेत दंत मुस्कान चली रे अली।। गजगामिनी पदचाप धरे, नेह भरें मादकता चली रे अली। कलीयन सब फूल खिले, गुंजन मिलिंद सब अली रे अली।। सुरभि बयार जोबन सखी, हास करत संचार चली रे अली। कुसुम तारुणाई भयी, मकरंद भरी महक चली रे अली।। यौवन मंजरी अंत चली अफवाह चली अली रे अली। काल के कपाल में, राम नाम सत्य अली रे अली। एही भांति मानव मधुमास, चार चरण जीवन चली रे अली।। प्रकृति बसंत बौछार, मधुप गूंजे कलीयन कली रे अली।। परिचय :-  राम रतन श्रीवास निवासी : बिलासपुर (छत्तीसगढ़) साहित्य क्षेत्र : कन्नौजिया श्रीवास समाज साहित्यिक मंच छत्तीसगढ़ के अध्यक्ष सम्मान : कोरबा मितान सम्मान २०२१ (समाजिक चेतना एवं सद्भाव के क्षेत्र में) शिक्षा : हिन्दी साहित्य (स्नातकोत्त...
हम अपना मुकद्दर जो आजमाने लगे
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हम अपना मुकद्दर जो आजमाने लगे

शाहरुख मोईन अररिया बिहार ******************** हम अपना मुकद्दर जो आजमाने लगे, मेरे अजीज हाथों में खंजर उठाने लगे। हवाओं में फैला है जो नफरती ज़हर, जलता देख घर मेरा वो जो मुस्कुराने लगे। खौफ के साए में हर लम्हा है कैद अब, बहसी लोग ख़ुद को जो ख़ुदा बताने लगे। मजबूर, लाचार, ग़रीबों की है किस्मत, त्योंहारों में भी वो जो आंसू बहाने लगे। कुछ बंदिशे हो हवावाजों की जुबां पे, वो पागल ख़ुद को जो ख़ुदा बताने लगे। मयस्सर हो तमाम खुशियां गमखारो को, कुछ बेईमान अब ख़ुद को जो रहनुमा बताने लगे। परिचय :- शाहरुख मोईन निवासी : अररिया बिहार घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकत...
महके बसंत
कविता

महके बसंत

ओमप्रकाश श्रीवास्तव 'ओम' तिलसहरी (कानपुर नगर) ******************** स्वागत कर लो आज बना यह सारा साज। उपवन खिले देखो महके बसंत के फूल। फैली चहुँदिश देखो हरी-हरी हरियाली। बसंत मौसम आया मिटेंगे उर के शूल। बसंत जब भी आता खुशी के पैगाम लाता। सब जन जाते तब ताड़क गरमी भूल। करलो स्वागत तुम मौसम सुहाना यह। मिलेगी अबतो मुक्ती ऋतु जो उड़ाये धूल।। परिचय :- ओमप्रकाश श्रीवास्तव 'ओम' जन्मतिथि : ०६/०२/१९८१ शिक्षा : परास्नातक पिता : श्री अश्वनी कुमार श्रीवास्तव माता : श्रीमती वेदवती श्रीवास्तव निवासी : तिलसहरी कानपुर नगर संप्रति : शिक्षक विशेष : अध्यक्ष राष्ट्रीय अंतरराष्ट्रीय बदलाव मंच उत्तरीभारत इकाई, रा.उपाध्यक्ष, क्रांतिवीर मंच, रा. उपाध्यक्ष प्रभु पग धूल पटल, रा.मीडिया प्रभारी-शारदे काव्य संगम, प्रभारी हिंददेश उत्तरप्रदेश इकाई साहित्यिक गतिविधियां : विभिन्...
अपनी-अपनी बगिया
कविता

अपनी-अपनी बगिया

अनुराधा प्रियदर्शिनी प्रयागराज (उत्तर प्रदेश) ******************** सबकी अपनी-अपनी बगिया मेरी भी बगिया है सुरभित कलियाँ चटकीं महकी बगिया रौनक से भर आई बगिया। रंग-बिरंगे पुष्प खिले हैं पुलकित मन से हिले-मिले हैं इन फूलों के रंगों से मिल चेहरे पर छाई है लाली। सूरज-चाँद-सितारे झाँकें यहाँ प्रेम की खुशबू छाई दिवस-रात तुम्हीं से होता सुबह-शाम दोनों सुखदाई। पूजा-अर्चन तुमसे होता सभी तीर्थ हैं तुमसे होते सारा उपवन तुमसे महके जीवन का हर कोना बिहँसे। मन मंदिर में पूजा तुमसे हरि पद में हिय दीपक चमके साथ तुम्हारा जबसे पाया जीवन का हर पल हर्षाया। परिचय :- अनुराधा प्रियदर्शिनी निवासी : प्रयागराज (उत्तर प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्...
ॠतुराज बसंत
कविता

ॠतुराज बसंत

दीप्ता नीमा इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** मौसम ने यूँ ली अंगड़ाई संग में इसके प्रकृति मुस्कायी खेतों पर हरियाली छाई डाल डाल पर नई कोपल आई सारी ॠतुओं को छोड़कर पीछे बारी ॠतुराज बसंत की आई। नवकुसुमों से सुसज्जित होकर नवपल्लवों से शोभित होकर कोयल की मधुर तान में खोकर सुगन्धित मस्त बयार को लेकर सारी ॠतुओं को छोड़कर पीछे बारी ॠतुराज बसंत की आई। भीनी सी आम की बौर महके सरसों के फूल और चिड़ियाँ चहके मदमस्त प्रकृति के यौवन में वसुंधरा प्रेमरस में बहके सारी ॠतुओं को छोड़कर पीछे बारी ॠतुराज बसंत की आई। परिचय :- दीप्ता नीमा निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित ...
तुम आओ चाहे चुपचाप
कविता

तुम आओ चाहे चुपचाप

डॉ. निरुपमा नागर इंदौर (मध्यप्रदेश) ******************** हे ऋतुराज तुम आओ चाहे चुपचाप मैं सुनती हूं कण कण में तुम्हारी पदचाप बीत गया पतझड़, खिलखिला रहे पलाश बीता सबका कल ,अब क्यों हो कोई उदास कल ‌का यह बीतना सुनाता तुम्हारी पदचाप हे ऋतुराज तुम आओ चाहे चुपचाप वासंती बयार फैल रही चंहु ओर मेरी धानी चुनरिया उड़ उड़ जाती पी की ओर पवन सुनाती तुम्हारी पदचाप हे ऋतुराज तुम आओ चाहे चुपचाप खेतों की पीली सरसों ज्यों खिल रही खिन्न उदासी की छाया भी दूर हो रही सरसों की खुशहाली सुना रही तुम्हारी पदचाप हे ऋतुराज तुम आओ चाहे चुपचाप आम्र तरु यूं लदा मोरों से नाच उठा मन मेरा जोरों से आम्र आने की यह सुवास महका रही मेरी हर सांस हे ऋतुराज तुम आओ चाहे चुपचाप कोयल कूक कूक कर घोल रही मिठास कोयल का यह अमृत रस छलक रहा आसपास हे ऋतुराज तुम आओ चाहे चुपचाप भंवरे की गुनगुन ज...
नई शुरूआत
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नई शुरूआत

प्रियंका पाराशर भीलवाडा (राजस्थान) ******************** नई तमन्नाओ के प्रति कशिश को पूरा करने की नई कोशिश शुरू करते है नई शुरूआत बस समय देता रहे साथ नये संकल्पो का संचार है सफलता पाने का मजबूत आधार रिश्तों के लिए करे एक नया अर्पण जो है स्नेह और आत्मीयता का दर्पण फिर से रोशन करने को हुई नई भोर जो जागे है वो रोशनी रहे बटोर परिचय :- प्रियंका पाराशर शिक्षा : एम.एस.सी (सूचना प्रौद्योगिकी) पिता : राजेन्द्र पाराशर पति : पंकज पाराशर निवासी : भीलवाडा (राजस्थान) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आ...
स्वातंत्र्य राष्ट्र
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स्वातंत्र्य राष्ट्र

रागिनी सिंह परिहार रीवा म.प्र. ******************** जाने कितने वीरों ने अपनी जान गवाई होगी, तब जाकर के भारत ने आजादी पाई होगी भारत की माटी का शत-शत वंदन करते हैं, बलिवेदी पर मिटने वालो का दिल से अभिनंदन करते, हैं, कली कली खिल रही यहां पर रहे फूल मुस्कुरा, जन गण मन से गूंज रहा है सारा हिंदुस्ता वंदेमातरम भारत माता के गीतों को हम गाते हैं, भारत भू की शुचिता का हर पल गुणगान सुनाते हैं हिंदू मुस्लिम सिख ईसाई रहते हैं यहां प्रेम से, आजाद हो या आरती गाते हैं सब प्रेम से देवभूमि यह स्वर्ग से प्यारी वीरों की परिपाटी हैं, जहां हुए बलिदान लाडले वीरों की यह माटी हैं देश के खुशियों के खातिर वीरों ने जान गवाई हैं, रह सके सब मिलजुल कर इससे प्रेरणा पाई हैं परिचय :- रागिनी सिंह परिहार जन्मतिथि : १ जुलाई १९९१ पिता : रमाकंत सिंह माता : ऊषा सिंह पति : सचिन देव सिंह ...
नव बर्षाभिनन्दन
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नव बर्षाभिनन्दन

शिवेंद्र शर्मा इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** जो फिजा है द्वेष नफरत की, वो अब होना नहीं चाहिए। पाई जो उपलब्धियां हमनें, उन्हें यूं खोना नहीं चाहिए। जुर्म और अत्याचार हुए बहुत, अमन चैन अब होना ही चाहिए। त्रस्त हैं, हैवानियत की दास्तानों से, आदमी में आदमियत होना ही चाहिए। शहरों में गंदगी और दिमाग में फितूर, जो हुआ अब तक, होना नहीं चाहिए। नहीं है हम, किसी से कम जहाँ में, देश का मान, कम होना नहीं चाहिए। स्वच्छ हो भारत, पर्यावरण सुधरे, सबको स्वस्थमय, अब होना ही चाहिए। न हो प्राकृतिक आपदाओं से तबाही, नववर्ष सबको सुखद होना ही चाहिए। परिचय :-  शिवेंद्र शर्मा पिता : स्व. श्री भगवती प्रसाद शर्मा जन्म दिनांक : २७/११/१९६३ गुना (म. प्र.) निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश) प्रकाशित पुस्तकें : दस्ताने जबरिया, बीन पानी सब सून, सब पढ़ें आगे बढ़ें, उज्जैनी महिमा एवं ...
हवाओं में तेरी खुशबू है….
कविता

हवाओं में तेरी खुशबू है….

राजेन्द्र कुमार पाण्डेय 'राज' बागबाहरा (छत्तीसगढ़) ******************** तुम मेरे ख्वाबों में ही आती हो ख्यालों में मेरे लम्हें लम्हें को सजाती हो तेरे प्यार के एहसास से महकता रहता हूँ छूकर फूलों को तेरे डिम्पल का एहसास होता है नाजुक कलियों का स्पर्श लबों का स्पर्श लगता है धड़कते दिल में मेरे जज्बातों का सैलाब है आंखों की नमी सागर उठती गिरती लहरों सी है निगाहों से निगाहें जब भी मिलती है प्यार का उफनता सागर लहराया करता है ठहर जाओ कुछ लम्हों के लिए दे एक शाम नमकीन हवाओं की सरसराहटों से आये तेरा पैगाम छूकर लबों को उतर जाओ कभी रूह में मेरे चलते चलते कुछ अपनी कहते कुछ मेरी सुनते गीले रेत पर बने तेरे पदचिन्ह तेरे प्यार का एहसास जगाते साथ साथ जिये थे जिंदगी के कुछ लम्हों को हम हमारे प्यार से बिताए हुए ये एहसास पल मेरे उदास भरे जीवन जीने का सहारा मिल जाता आस पास तेरे होने का हरप...
बेटियाँ है वरदान ईश्वर का..
कविता

बेटियाँ है वरदान ईश्वर का..

प्रीतम कुमार साहू लिमतरा, धमतरी (छत्तीसगढ़) ******************** अश्क बहाया करते थे बेटियों के जन्म लेने से.! माँ भी सहमी रहती थी बेटियों को जन्म देने से..!! बेटियों को बदनसीब, बेटों को नसीब समझते थे.! बित गया वो दौर जो बेटों की चाहत रखते थे..!! बेटियाँ अब कमजोर नहीं बेटों के संग चलते है.! बेटा बेटी दोनों समान इनका अनुसरण करते है..!! बेटियाँ है वरदान ईश्वर का, देवी से वो कम नहीं.! लाख मुसीबत सहकर भी, होती आंखे नम नहीं..!! सफलता के शिखर पर बेटियां परचम लहराते है.! ऊंचे पर्वतों को लांघकर बेटियाँ तिरंगा फहराते है..!! देश की रक्षा करने बेटियाँ, दुश्मन से टकराते है.! मातृभूमि की रक्षा करते तिरंगे पर लिपट जाते है..!! बेटियों ने बदल दिए रीति-रिवाज हिंदुस्तान की.! बाप की अर्थी को कंधा देते बेटियाँ हिंदुस्तान की..!! गर्व है इन बेटियों पर जो कंधे मिलाकर चलते है.! अ...
बापू जी धन्य हो गए
कविता

बापू जी धन्य हो गए

धर्मेन्द्र कुमार श्रवण साहू बालोद (छत्तीसगढ़) ******************** प्रकाश पुंज के पथ प्रशस्त कर बापू जी धन्य हो गए। सत्य अहिंसा का मार्ग बताकर बापू जी पुण्य हो गए ... सरल सहज सरस सौम्य स्वभाव व्यक्तित्व के धनी थे, सादा जीवन उच्च विचार सुमधुर व्यवहार के मनि थे। हे राम ! कहकर भारत में बापू जी पूजनीय हो गए.. साबरमती आश्रम का सृजनकर संत वे कहलाए, मोहनदास को उपाधि मिली तो महात्मा कहलाए। सत्कर्म सबक सिखाकर दुनिया में बापू जी अमर हो गए... सादा ऐनक खादी कपड़ा सफेद धोती पहनते थे, आंदोलन में भाग लेने लाठी पकड़ सरपट वो चलते थे। गुलामी की जंजीरों से मुक्तकर बापू जी महान हो गए... श्रवण करता श्रद्धा सुमन गांधी जी की पुण्य स्मृति में, राम राज्य का सपना संजोने सॅंवार लें हम संस्कृति में। रघुपति राघव राजा राम* बापू जी के प्रिय भजन हो गए.. परिचय :- धर्मेन्द्र कुमार...
सब कुछ फिसलता जा रहा है
कविता

सब कुछ फिसलता जा रहा है

डॉ. सुलोचना शर्मा बूंदी (राजस्थान) ******************** सब कुछ फिसलता जा रहा है बंद मुट्ठी से रेत की मानिंद.. हरा भरा जीवन हो चला है बिन मेड़ के खेत की मानिंद..!! खो गए हैं इंद्रधनुषी रंग सारे.. रह गया कैनवस श्वेत की मानिंद!! ये दिल तो धड़कता है मगर रह गया अंतस अचेत की मानिंद!! उड़ चला हंसा अकेला छोड़ काया अनिकेत की मानिंद!!! परिचय :- डॉ. सुलोचना शर्मा निवासी : बूंदी (राजस्थान) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindira...
मदद के पंख
कविता

मदद के पंख

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ******************** दुःख की परिभाषा भूखे से पूछो या जिनके पास पैसा नहीं हो उससे पूछों अस्पताल में बीमार के परिजन से पूछों बच्चों की फ़ीस भरने का इंतजाम करने वालों से पूछों लड़की की शादी के लिए इंतजाम करने वालों से पूछों जब ऐसे इंतजाम सर पर आ खड़े हो कविताएं अपनी खोल में जा दुबकती है मैदानी मुकाबले किताबी अक्षरों में हो जाती बेसुध मदद की कविता जब अपनों से गुहार करती तब मदद के पंख या तो जल जाते या फिर कट जाते क्या ता उम्र तक इंसान ऋणी के रोग से पीड़ित होता है हाँ, होता है ये सच है क्योकि सच हमेशा कड़वा और सच होता अपने भी मुँह मोड़ लेते ये भी सच है की इंसान के पास पैसा होना चाहिए पूछ परख होती है पैसा है तो इंसान की पूछ परख नहीं तो मदददगार पहले ही भिखारी का भेष पहनकर घूमते पैसा है तो आपकी वखत नहीं तो रिश्ते भी बैसाखियों ...
कैसे जगह बन गई
कविता

कैसे जगह बन गई

संजय जैन मुंबई (महाराष्ट्र) ******************** दिलमें ना जाने कैसे तेरे लिए अब इतनी जगह बन गई। तेरे मन की छोटी सी चाह मेरे जीने की वजह बन गई। लोग मिलते जुलते रहते है एक दूसरे से रिश्ते बनाने। जिससे भूल जाते है वो अपने दुख दर्द जिंदगी के।। दुनियाँ का सबसे अच्छा और खूब सूरत तोहफा वक्त है। क्योंकि जब आप किसी को अपना वक्त देते है। तो आप उसे अपनी जिंदगी का वह पल देते है। जो कभी भी जीवन में लौटकर नहीं आने वाला है।। जिंदगी जीने का मकसद खास होना चाहिए। और अपने आप पर विश्वास होना चाहिए। जीवन में खुशियों की कमी नहीं होती। बस लोगो के जीने का अंदाज अपना अपना होता है।। वो रिश्तें बड़े प्यारे होते है। जिनमें न हक हो न शक हो। न जात हो न जज्बात हो। सिर्फ अपनेपन का एहसास हो।। मौका दीजिये अपने खून को। किसी के रागो मे बहन का। ये लाजबाव तरीका है। औरो के जिस्मों ...
इम्तिहान
कविता

इम्तिहान

मधु टाक इंदौर मध्य प्रदेश ******************** वो सिरफिरी हवा थी सम्हलना पड़ा मुझे हर पल इम्तहानो से गुजरना पड़ा मुझे! मेरी यादें फिज़ा में हर तरफ महक जाये इश्क़ में तेरे इस तरह बिखरना पड़ा मुझे डाल दी है भंवर में कश्ती सम्भालो तुम इसी उम्मीद से समंदर में रहना पड़ा मुझे मेरे हौसलों में इजाफा कम न हो जाए आँधी और तूफानो में उतरना पड़ा मुझे गुजरे जिधर से हर एक राह रोशन रहे जला कर दिल उजाला करना पड़ा मुझे उसकी बेचैनियों को भी सुकून मिल जाये रात भर उसकी आँखों में ठहरना पड़ा मुझे इश्क़ में सनम मेरा कहीं रुसवा न हो जाये दरमिया इश्क़ के फासला रखना पड़ा मुझे किनारे पर बैठ कर कुछ आता नहीं नज़र डूब कर सागर के गौहर देखना पड़ा मुझे फूलों से निकलकर जो आ जाये "मधु" करिश्मा ये कुदरत का कहना पड़ा मुझे परिचय :- मधु टाक निवासी : इंदौर मध्य प्रदेश घोषणा पत्र : ...
सार-सार को जान लें
कविता

सार-सार को जान लें

डाॅ. दशरथ मसानिया आगर  मालवा म.प्र. ******************* गायन शोध नवाचार सकल नाम संज्ञा कहो, बदले सर्वनाम। करत काम किरिया लखो, कहत है कवि मसान।। व्यक्ति भाव जाति अरू, समूह द्रव्य को ज्ञान। पांच भेद संज्ञा कहो, कहत है कवि मसान।। निश्चय व अनिश्चय कहो, प्रश्न पुरुष निज जान। सर्वनाम के भेद छः, अंतिम संबंध मान।। कब कहां कैसे किसका, कौन कौनसा ज्ञान? क्या क्यों को भी जानिए, प्रश्नों की पहिचान?? कर्ता कर्म करण अरू, सम सम्बोधन जान। अपादान अधिकरण अरु, संबंध कारक मान।। परिचय :- आगर मालवा के शासकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय आगर के व्याख्याता डॉ. दशरथ मसानिया साहित्य के क्षेत्र में अनेक उपलब्धियां दर्ज हैं। २० से अधिक पुस्तके, ५० से अधिक नवाचार है। इन्हीं उपलब्धियों के आधार पर उन्हें मध्यप्रदेश शासन तथा देश के कई राज्यों ने पुरस्कृत भी किया है। डॉं. मसानिया विगत १० वर्षों से ह...
सन्नाटा
कविता

सन्नाटा

राजीव डोगरा "विमल" कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) ******************** एक सन्नाटा सा छाने लगा है अंदर ही अंदर। बहुत कुछ मेरा अंतर्मन कहना चाहता है, मगर पता नहीं क्यों? लपक कर बैठ जाता है ये सन्नाटा जुबान पर। बहुत सी बहती हुई वेदनाए ह्रदय तल से बाहर निकलना चाहती हैं, मगर पता नहीं क्यों? ये सन्नाटा इन वेदनाओं को अपनी सर्द हवाओं से अंदर ही अंदर क्यों जमा देता है? परिचय :- राजीव डोगरा "विमल" निवासी - कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) सम्प्रति - भाषा अध्यापक गवर्नमेंट हाई स्कूल, ठाकुरद्वारा घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कवि...