फुहारों के बीच
मालती खलतकर
इंदौर (मध्य प्रदेश)
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रिमझिम, रिमझिम
फुहारों के बीच
मदमाती, इठलाती
बयार बह रही
हरीतिमा धरा को
सहलाती नजर आती।
पाखी पौधों,
पौधों पर मंडराती।
उमड़ते-घुमड़ते कजरारे
बादलों के बीच
विद्युलता चमक,
चमक अंधकार मिटातीं
मानो वह चमक कर
धरा की हरीतिमा निहारतीं
पितृ, पृण पर पड़ी बूंदें
धरा का अभिषेक करती।
नदियां कलकल कर बहती
तट बन्धन तोड़ उछल जाती
आगे सागर में
संगम की आतुरता
नदी पर्वत चढ़
झरना बन बहती।
चट्टानों से आहत होकर भी
किसी रमणी के चरण धोती
कहीं धरा की क्षुधा बुझाकर
बीजाकुरण कर
फसलें लहलहाती।
परिचय :- इंदौर निवासी मालती खलतकर आयु ६८ वर्ष है आपने हिंदी समाजशास्श्र में एम ए एल एलबी किया है आप हिंदी में कविता कहानी लेख गजल आदि लिखती हैं व आपकी रचनाएँ विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं मैं प्रकाशित होते हैं आप सन १९६८ से इंदौर के लेखक सं...