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कविता

ये दुनिया सारी है जिनकी शरण में
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ये दुनिया सारी है जिनकी शरण में

विकास कुमार औरंगाबाद (बिहार) ******************** ये दुनिया सारी है आज जिनकी शरण में, हमारा नमन है अपने उन बाबा के चरण में। पूजा के योग्य है बाबा हम सबकी नजर में, सब मिलकर फूल बरसायें बाबा के चरण में। जिनके नियम पर चलता रहेगा ये भारत सादा, ऐसा ही एक संविधान बनाए अपने भीम दादा। इस हिन्दुस्तान की धरती पर हम सबको चलना आया, बाबा ने इक नया संविधान लिखकर हमे लिखना बताया। देश प्रेम में जिसने आराम को दिए ठुकराए, गिरे हुए इंसान को अपना स्वाभिमान सिखाये। जिसने हमको अपने मुश्किलों से लड़ना सिखलाया, इस जमीन पर ऐसा दीपक बाबा साहब कहलाया। शिक्षा संगठन के थे अपने बाबा बड़ा पुजारी, अधिकार हेतु किए लाखो लोगो से संघर्ष भारी। मानव मे भी है रक्त एक, एक भाँति है सब आये, अपने स्वारथ के चक्कर में लोग जाति–पाति बनायें। युगो–युगो में यह पीड़ा रमी थी तब होता था दर्द ऐसा, छुवा-छूत...
ऊफ ! ये गर्मी
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ऊफ ! ये गर्मी

डॉ. तेजसिंह किराड़ 'तेज' नागपुर (महाराष्ट्र) ******************** तेज हवा के थपेड़ों से सीहर उठा ये बदन। चारों तरफ सन्नाटा हैं खौफ हैं, कपड़े की परतों से झांकती कोमल ये आंखें, कितनी सूर्ख और लाल हैं। चलना दुस्वार हुआ पैदल बाहर पेट्रोल की मार हैं। दुबके कब तक रहेगें हम रोज रोटी कि तलाश हैं। अनगिनत पेड़ों की लाशों से सबक नहीं सीखा हमने आज चिलचिलाती धूप में ठंडे पानी कि सबको तलाश हैं। किससे गिला शिकवा करें, यहां हमाम में सब बेनकाब हैं। पेड़ लगाया एक पीढ़ी ने दूसरों ने उसे उजाड़ दिया। आंखें खुली तो याद आया धरा को किसने नरक बनाया। अबभी समय हैं संभलनें का जल जमीन को बचा लीजिए, इन तेज थपेड़ों से सबको पेड़ लगाकर राहत दीजिए। कर सको कोई पुनित काम तो पक्षियों को पानी दीजिए इस तेज गर्म धूप में कोई मिले उस भूखें नंगे को भी सहारा कीजिए। ये समय भी यूं ही गुजर जाएगा। बस! समय ब...
कायनात
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कायनात

मालती खलतकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** मन कमल के पराग, आकाश कुसुम क्या कहूं क्या कहूं, इस निर्विकार पृथ्वी को प्रकृति को जीवन महक गया जिंदगी संवर गई शरीर को नहलाया उसने आत्मा को अमृत ने। तुम मेरी दिशा दर्शक हो कैसे कहूं होंठ खुल नहीं पाते तुम से बतिया ने को इच्छाएं जागृत होकर पुनः सुप्त हो जाती हैं इस ओस भरी कायनात में दिल डूब गया जैसे चांद से मुखड़े को अमृत ने नहलाया मेरा रोम-रोम शीतल हो गया पवन के झोंकों से। आत्मा अभिमानी हो गई तुम्हारे दुलार से। क्या हुआ, कैसे हुआ क्या कहें जीवन आंगन सुना था आकर किसी ने फूल खिला दिए देखो फूल खिल गए प्रातः किरण से अपना पराग लुटाने अपना अमृत लुटाने। परिचय :- इंदौर निवासी मालती खलतकर आयु ६८ वर्ष है आपने हिंदी समाजशास्श्र में एम ए एल एलबी किया है आप हिंदी में कविता कहानी लेख गजल आदि लिखती ह...
तुम्हें ग़म देने वाला
कविता

तुम्हें ग़म देने वाला

आलोक रंजन त्रिपाठी "इंदौरवी" इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** तुम्हें ग़म देने वाला तो तुम्हारा हो नहीं सकता कलेजा जो दुखाए वो सहारा हो नहीं सकता कहां है इस ज़िंदगी में सब को अपना ख़्वाब मिलता है तुम्हारा था जो अब फिर से दोबारा हो नहीं सकता हमेशा ही तुम्हें मौका मिलेगा सच नहीं है ये तेरी तक़दीर में ऐसा सितारा हो नहीं सकता यहां तक़दीर के मारे ज़हां में और हैं देखो अकेला तू मुसीबत का भी मारा हो नहीं सकता फ़िज़ा में फूल कितने हैं इन्हें हंसते हुए देखो ख़िज़ाओं को मगर सब कुछ गंवारा हो नहीं सकता परिचय :- आलोक रंजन त्रिपाठी "इंदौरवी" निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश) शिक्षा : एमए (हिंदी साहित्य) लेखन : गीत, गजल, मुक्तक, कहानी, तुम मेरे गीतों में आते प्रकाशन के अधीन, तीन साझा संग्रह में रचनाएं प्रकाशित, १० से ज्यादा कहानियां पत्र-पत्रिकाओं में ...
सादगी
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सादगी

प्रो. डॉ. द्वारका गिते-मुंडे बीड, (महाराष्ट्र) ******************** सादगी से सुंदरता जीवन की पहचान हो। आदर्श का प्रतिक ये आचरण का परिमाण हो। खुल कर बोलो बात दिल की, डालो आदत मेहनत और निष्ठा की। स्वार्थ छल कपट से रहना दूर- बात बन जाएगी सम्मान एवं प्रतिष्ठा की। अनमोल जीवन की, अनमोल ख्याति हो, सीधा जीवन उच्च विचार की नीति हो। देश दुनिया में फैला दो विचारों की सादगी- एक दूजे के प्रति उच्चकोटि की प्रीति हो।। परिचय :-  प्रो. डॉ. द्वारका गिते-मुंडे निवासी - बीड, (महाराष्ट्र) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आद...
प्रेम की गली
कविता

प्रेम की गली

मनमोहन पालीवाल कांकरोली, (राजस्थान) ******************** प्रेम की गली हमें दिखाई तो होती इश्क़ क्या हे हमें सिखाई तो होती फिजाओं में बिखरे हे रंग तेरे जो एक बारगी हमें दिखाई तो होती ज़ज़्बातो का महल हमने बनाया खूशबू कहीं-कहीं तो उड़ाई होती तेरे दर पर सजदे करने आते रोज काश हमारी दुनिया सजाई होती वादा जो बकाया चल रहा हमारा पूरा होता तो ये, न, रूसवाई होती तन मन मे अनुराग भर गया यारो सूरत उसकी हमे भी दिखाई होती कितने लोग पूछ गए पते हमसे भी मोहन प्यार की पाती लिखाई होती परिचय :- मनमोहन पालीवाल पिता : नारायण लालजी जन्म : २७ मई १९६५ निवासी : कांकरोली, तह.- राजसमंद राजस्थान सम्प्रति : प्राध्यापक घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि रा...
वर्तमान, हनुमान और प्रतिमान
कविता

वर्तमान, हनुमान और प्रतिमान

धर्मेन्द्र कुमार श्रवण साहू बालोद (छत्तीसगढ़) ******************** वर्तमान परिवेश में बताओ अब हनुमान कहां..? मान नहीं मिल पाया तो परखो अब सम्मान कहां..? धीर वीर गंभीर होते हैं वहीं तो बाहुबली है, जो रंग व ढंग बंदल दे वही तो बजरंगबली है। अष्टसिद्धियों में कुशल अब सर्व शक्तिमान कहां..? वर्तमान परिवेश में बताओ अब हनुमान कहां..? मान नहीं मिल पाया तो परखो अब सम्मान कहां..? काम क्रोध लोभ अंहकार को सूर्य जैसे निगल दिया, पवन जैसा वेग मारूत जैसे आवेग सबको बता दिया। केसरीसुत बलशाली जैसे अब स्वाभिमान कहां...? वर्तमान परिवेश में बताओ अब हनुमान कहां..? मान नहीं मिल पाया तो परखो अब सम्मान कहां ..? भावों का अंत नहीं उनके जैसे हनुमंत कहां..? मनगढ़ंत बातें नहीं उनके जैसे पारखी संत कहां..? दार्शनिक महावीर जैसे अब वर्धमान कहां... मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम जी के सच्चे वो भ...
हमर बाबा धन्य होगे
आंचलिक बोली, कविता

हमर बाबा धन्य होगे

धर्मेन्द्र कुमार श्रवण साहू बालोद (छत्तीसगढ़) ******************** अंजोर के बगरैय्या हमर भीम बाबा धन्य होगे। लिखित संविधान के रचैय्या अम्बेडकर महान होगे।। सरल अउ सहज व्यक्तित्व के धनी हाबे जी। सादा जीवन उच्च विचार के मणि हाबे जी।। धरम करम के रद्दा बतैय्या वो तो पूजनीय होगे .. अंजोर के बगरैय्या हमर भीम बाबा धन्य होगे .... जाति–पाति भेदभाव के गड्डा ला वो पाटीस हे। छुआछूत अऊ कुरीति के जड़ ल घलो वो गाढ़िस हे।। अइसनहा मानव जन के जनैय्या महामानव होगे ... अंजोर के बगरैय्या हमर भीम बाबा धन्य होगे... संत मनीषी साधू संन्यासी मन के संग ल धरिस हे। तीन रतन अउ पञ्चशील के सन्देश ल गाढ़िस हे।। आष्टगिंक मारग म चलैय्या बौद्ध धरम के अनुयायी होगे.. अंजोर के बगरैय्या हमर भीम बाबा धन्य होगे... बाबा के मारग ल अपनाही वोकरे जिनगी सरग बनत हे। खान-पान, रहन-सहन सुधारही उंख...
अक्सर
कविता

अक्सर

राजीव डोगरा "विमल" कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) ******************** इश्क़ की रातें और इश्क़ की बातें अक्सर महँगी पड़ती है। ज्यादा समझदारी और लगी हुई इश्क़ बीमारी अक्सर महँगी पड़ती है। गैरों के साथ यारी और अपनों के साथ गद्दारी अक्सर महंगी पड़ती है। जरूरत से ज्यादा समझदारी और गैरों से वफादारी अक्सर महंगी पड़ती है। परिचय :- राजीव डोगरा "विमल" निवासी - कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) सम्प्रति - भाषा अध्यापक गवर्नमेंट हाई स्कूल, ठाकुरद्वारा घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी...
छल-कपट
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छल-कपट

डॉ. संगीता आवचार परभणी (महाराष्ट्र) ******************** छल-कपट दुनिया के देखते रहते हो! क्या आज कल तुम सोये हुए रहते हो? क्या तुम्हारी रूह जरा भी नहीं कांपती? घनघोर अन्याय के प्रत्यक्ष दर्शी होते हो! क्या कर बैठे हो दुर्योधनों से मिली भगत? या हफ्ता वसूली की आ गयी तुमपे भी नौबत? तुम्हारा अस्तित्व दिखता नहीं आज कल, भेड़ियों से बचने की चल रही है मशक्कत! द्रौपदी कितनी और जुएं मे है हारनी? कितनी गांधारी को आँखों पे है पट्टी बांधनी? गिरधारी आँख कब खुलेगी तुम्हारी? कितने महाभारत की मंशा और है बाकी? जाग जा… कर दे कुछ ऐसी अब करनी, राक्षसों की कर दे अब खत्म तू कहानी! या तो फिर कह दे तू दुनिया मे है नहीं, तेरे पास किसी समस्या का हल नहीं! परिचय :- डॉ. संगीता आवचार निवासी : परभणी (महाराष्ट्र) सम्प्रति : उप प्रधानाचार्य तथा अंग्रेजी विभागाध्यक्ष, कै सौ कमलताई जामकर महिला मह...
राम बने या रावण
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राम बने या रावण

सरला मेहता इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** हर जीवात्मा में बसता है रावण या सदाचारी राम बुराई का प्रतीक ये रावण तो अच्छाई दर्शाते हैं राम काम क्रोध लोभ मोह मद जो देते तिलांजलि इनको वो हैं राम जैसे चरित्रवान लिखाते इतिहास में नाम पाँच विकारों से वशीभूत हो जो बन जाते दुष्ट दुराचारी सिया हरण सा पाप करते जग में कहलाते हैं ये रावण मानव स्वकर्मो से ही बनता जो वो चाहे, रावण या राम क्यूँ न हरादें अपने रावण को बन जाएँ मर्यादा पुरुषोत्तम हराके दशाननी विकारों को दशरथसुत राम ही बन जाएँ करें स्थापना रामराज्य की धरा पर स्वर्ग अब उतार दें आज सबके अपने रावण हैं रिश्तों, कुर्सी की मारामारी में कुकर्म, अनाचार आतंक में महाभारत का बोलबाला है परिचय : सरला मेहता निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना...
कालचक्र
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कालचक्र

संजय जैन मुंबई (महाराष्ट्र) ******************** जीवन के है तीन आधार भूत भविष्य और वर्तमान। जीना सबको पड़ता है इन्हीं तीनो कालो में। भूत बदले भविष्य बदले या बदले वर्तमान। फिर जीना पड़ता है इन्हीं कालो के साथ।। किसके भाग्य में क्या लिखा ये तो भाग्य विधाता जाने। पर मैं जो कुछ भी करता अपनी मेहनत और लगन से। तभी तो दिख रहे परिणाम मुझे इस मानव जीवन में। इसलिए मुझे आस्था है अपने भगवान के ऊपर।। बनो आशावादी तुम अपने मनुष्य जन्म में। करो भरोसा उस पर तुम जिसे तुम अपना समझते हो। और उसके लिए लड़ने को जमाने से भी तैयार हो। वो कोई और नहीं है ये तीनो ही काल है।। परिचय :- बीना (मध्यप्रदेश) के निवासी संजय जैन वर्तमान में मुम्बई में कार्यरत हैं। करीब २५ वर्ष से बम्बई में पब्लिक लिमिटेड कंपनी में मैनेजर के पद पर कार्यरत श्री जैन शौक से लेखन में सक्रिय हैं और इनकी...
डाँ. अम्बेडकर
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डाँ. अम्बेडकर

सुरेश चन्द्र जोशी विनोद नगर (दिल्ली) ******************** प्रतिष्ठित विद्वान विधि वेत्ता, अम्बेडकर समाराधक माँ भारती के थे | न बने आराधक गांधी-नेहरू के, भीमराव जी ऐसे लाल माँ भारती के थे || कटु आलोचक गांधी नेहरू उनके, विद्वत्ता गुण से विधि न्याय मंत्री थे | संविधान समिति मसौदा उनके, अध्यक्ष डॉ अंबेडकर विधि न्याय मंत्री थे || प्रबल विरोधी तीन सौ सत्तर के, समर्थक समान नागरिक संहिता के थे | कर सिफारिश इसे अपनाने की, समाज सुधारक इप्सिता युत थे || रोका हिंदू कोड विधेयक नेहरू ने, मंत्री पद ही अंबेडकर ने त्याग दिया | थी बात विधेयक में महिला अधिकारों की, बिल हिंदू कोड क्यों नेहरू ने त्याग दिया || ना समर्थक थे भारत विभाजन के/ न विभाजकों को भीम ने भाव दिया | कहते थे विभाजित करने वाले ने, भारत के लिए अभिशाप दिया || सपना अंबेडकर का भारत की समानता, अब तक न किसी ने पू...
सपने मनु शतरूपा के
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सपने मनु शतरूपा के

सरला मेहता इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** कभी मिले थे हम तुम नादान थे अनजान थे सच में हम थे दो दीवाने खुली आँखों के वे सपने तेरे मेरे नहीं, वे थे अपने *सुदूर फैली वादियों में फूलों का शहर छोटा सा पेड़ो के झुरमुठ से घिरा प्यारा नायाब सा घरौंदा मनु और शतरूपा का हो *झरोखों रोशनदानों से रवि किरणें फैल जाएँगी हमारे घर के हर कोने में पंछियों की चहचहाट सुन चाय पीते खूब बतियाएँगे *मनु हवाई किस उड़ाते चल देंगे अपने काम पर कान्हा को पूजते झुलाते खो जाऊँगी मैं सपनों में कब गूँजेगी किलकारियां *हमारी बगिया में खिलेंगे प्रसून और पर्णा दो फ़ूल महकेगा आशियाँ न्यारा बच्चे भी मंजिलें तलाशते नए नीड़ों को उड़ जाएंगे *ऐनक चढाए हकलाते अँगीठी के पास बैठ कर गुम खयालों में ख़्वाबों के कॉफी की चुस्कियों में मनु शतरूपा खो जाएँगे परिचय : सरला मेहता निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश) ...
लाडो खुश रहना
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लाडो खुश रहना

हरिदास बड़ोदे "हरिप्रेम" गंजबासौदा, विदिशा (मध्य प्रदेश) ******************** लाडो खुश रहना, खुशहाल रखना परिवार, बाबुल मैया, ऐ चाहे हो...। बेटी खुश रहना, खुशहाल रखना परिवार, बाबुल मैया, ऐ चाहे हो...। बाबुल मैया, ऐ चाहे हो...।। सोने की थाली में, कंचन सा पानी, प्राणों से प्यारी, मेरी बिटिया रानी, लाडो कर देना..., बेटी कर देना, एक उपकार, बाबुल मैया, जो चाहे हो। बेटी कर देना, एक उपकार, बाबुल मैया, जो चाहे हो। "का चाहे, बाबुल मैया, का चाहे, बाबुल मैया, जो चाहे हो।" लाडो दे देना..., बेटी दे देना, खुशियां हजार, बाबुल मैया, ऐ चाहे हो। बेटी दे देना, खुशियां हजार, बाबुल मैया, ऐ चाहे हो। लाडो खुश रहना...। बाबुल मैया, ऐ चाहे हो...।। सोने सा अंगना में, महके बागवानी, फूलों से प्यारी, मेरी बिटिया रानी, लाडो कर देना..., बेटी कर देना, एक उपकार, बाबुल मैया, जो च...
रंग साँवला
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रंग साँवला

आशीष तिवारी "निर्मल" रीवा मध्यप्रदेश ******************** यह बात तुझसे कहा नही होता तुम्हारे इश़्क में बावला नही होता। बिना समय गंवाए तू मेरी होती रंग मेरा यदि साँवला नही होता। लोग कहते रहें भले कुछ लेकिन प्यार इतना भी बुरा नही होता। दो प्यार करने वालों के दरम्याँ यार रहे याद, कोई तीसरा नही होता ॥ रुठते मनाते रहते हैं एक दूजे को देर तक कोई ख़फा नही होता॥ किस्मत से मिलता है सच्चा प्यार हर कोई यहाँ बेवफ़ा नही होता ॥ परिचय :- आशीष तिवारी निर्मल का जन्म मध्य प्रदेश के रीवा जिले के लालगांव कस्बे में सितंबर १९९० में हुआ। बचपन से ही ठहाके लगवा देने की सरल शैली व हिंदी और लोकभाषा बघेली पर लेखन करने की प्रबल इच्छाशक्ति ने आपको अल्प समय में ही कवि सम्मेलन मंच, आकाशवाणी, पत्र-पत्रिका व दूरदर्शन तक पहुँचा दीया। कई साहित्यिक संस्थाओं से सम्मानित युवा कवि आशीष तिवारी न...
एक भारत ऐसा भी
कविता

एक भारत ऐसा भी

डॉ. जयलक्ष्मी विनायक भोपाल (मध्य प्रदेश) ******************** एक पुल के ऊपर ठाठ बाट संभ्रान्त, दूसरा पुल के नीचे अर्द्ध नग्न सहता संताप। एक लंबी छुट्टी का लेता आरामदायक मजा, दूसरा लंबी छुट्टी की लेता कष्टदायक सजा। एक सुरक्षित, आनंदमय, गुनगुनाता, खिलखिलाता परिवार, दूसरा चिलचिलाती धूप में थका-मांदा पैर रगड़ता सुबकता परिवार। एक जो रोज नए खाद्य पदार्थ की विधि से अपनी चंचल जिव्हा को तुष्ट करता, सोशल मीडिया पर इतराकर अपनी पाक कला दर्शाता। तो दूसरा एक कटोरी भात के लिए दूसरों के समक्ष हाथ पसारता। आठ बच्चों में एक रोटी के टुकड़े कर गटागट पानी पी सो जाता। एक बैंक में जमे पैसों का लेखा-जोखा देख निश्चिंत। दूसरा हाथों की उंगलियों को चटकाता बिना आजीविका चिंतित। एक बालकनी में आनंद लेता पक्षियों की चहचहाहट। दूसरे के मन में आर्तनाद और घबराहट। एक कोरोना के आंकड़े गिनता ...
पथिक
कविता

पथिक

राजीव डोगरा "विमल" कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) ******************** पथिक हो? फिर विराम क्यों ? चलना तेरा काम है फिर आराम क्यों? पथिक हो? फिर पथ पर पड़े कंकरों से तुमको भय क्यों? पथिक हो? फिर पथ पर चलने से तुम को थकावट क्यों? पथिक हो? फिर हार जाने के डर से तुम को घबराहट क्यों? परिचय :- राजीव डोगरा "विमल" निवासी - कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) सम्प्रति - भाषा अध्यापक गवर्नमेंट हाई स्कूल, ठाकुरद्वारा घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंद...
कौन हूं मैं…???
कविता

कौन हूं मैं…???

श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी लखनऊ (उत्तर प्रदेश) ******************** बरसों से एक जवाब की तलाश थी, सवाल खुद पर था, उत्तर भी खुद से देना था रात दिन हर पल, खुद से खुद में हलचल मचाता हुआ अचानक प्रश्न कौंधा "कौन हूं मैं" ???? किसी चेहरे की खुशी तो किसी की मुस्कान हूं, किसी के आंखो की नमी, किसी के जीवन में बरसात सी हूं ना जाने किसका सवेरा किसकी शाम हूं कभी किसी का सच, तो कभी पलकें झुकाए अनकही पहेली हूं कौन हूं? यदि हूं, तो अब तक चुप क्यूँ हूं?? हर पल चल रही हूँ हर पल ढल रही हूँ कभी उत्सव में लीन कहि वीरानी में सिमटी सवाल बेहिसाब हैं, सिलसिला चला जा रहा है हर पल कई रंग और बदलते हुए कई रूप हैं कही जीवन जीने में शामिल कभी मृत्यु से, थरथराती, डरी हूं क्या मौत से खत्म है जिन्दगी, क्या जान से ही जहान है ?? क्या जीवन सत्य है, या मृत्यु ही अटल सत्य है इन सवा...
स्नेह
कविता

स्नेह

विजय गुप्ता दुर्ग (छत्तीसगढ़) ******************** कमाल की तरक्की होती जा रही अब जमाने में, आज तक स्नेह परखने का यंत्र तो बन नहीं सका। सुनते रहे थे सदा हम, छिपाने से छिपता नहीं, स्नेह कोई वस्तु जैसी नहीं प्रदर्शन बन नहीं सका। दिल की तिजोरी का हर कोना स्नेह से लिप्त हो जरूरत में कैद स्नेह कभी, आजाद बन नहीं सका। सात दिन चौबीस घंटे दिल कारखाने में ये बने, स्नेह गजब का डॉन, सूरत ए हाल बन नहीं सका। चार बातें चार लोग के सामने होती महफिल में, खुद के बनाए घेरे में झांकता, शख्स बन नहीं सका। सही गलत सब गेंद खेलने, माहिर हुए अब लोग, सही जगह सच रखने, फिक्रमंद भी बन नहीं सका। स्नेह सात तालों की सुरक्षा, बहुत खास है प्रसंग बहुत स्नेह रखते मात्र कहने, साहस बन नहीं सका। दूसरों की नजर में पूछ परख सम्मान मिलता रहे, सबके सामने सच रखने का, योग भी बन नहीं सका। स्नेह के ऐसे क...
नहीं कुछ कहता मैं भी
कविता

नहीं कुछ कहता मैं भी

शत्रुहन सिंह कंवर चिसदा (जोंधरा) मस्तुरी ******************** नहीं कुछ कहता मैं भी लिए हो हाथ में जो तुम कुल्हाड़ करों जो तुम चाहो अपनी मनमानी मैंने दिया है तुझको क्या क्या लेकिन दिया है तुमने मुझे ये क्या कर दिया जो तुमने मुझे बलिदान स्वार्थ के जो तुमने बीज अपनाया प्रेमभाव जलसिंचित जो किया किया तो अपनी स्वार्थ मनोरथ के लिए निर्जीव गूंगा जो जानकर कर दिया अपनी क्रोध का भांडाभाड़ हो ना सका मातृभूमि का नव श्रृंगार कर दिया जो तुमने मुझे बलिदान। परिचय :-  शत्रुहन सिंह कंवर निवासी :  चिसदा (जोंधरा) मस्तुरी घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर...
देशवासियों को जगाऊंगा
कविता

देशवासियों को जगाऊंगा

संजय जैन मुंबई (महाराष्ट्र) ******************** प्यार की डोर लेकर मंजिल को तलाश रहा हूँ। गीत मिलन के लिखकर गाये जा रहा हूँ। पैगाम अमन चैन का गीतों में दिये जा रहा हूँ। और भारतीय होने का फर्ज निभा रहा हूँ।। दोष मुझ में लाख है पर इंसानियत को जिंदा रखता हूँ। है अगर कोई मुश्किल में तो यथा सम्भव मदद करता हूँ। मिला है मनुष्य जन्म हमें पूर्व जन्मों के कर्मो से। इसलिए इस भव में भी अच्छे कर्म कर रहा हूँ।। छोड़कर मान कषाय को शांत भाव से जीता हूँ। और मानव धर्म का निर्वाह सदा ही मैं करता हूँ। फिर भले ही चाहे मुझे मान सम्मान न मिले। पर मानवता को ऊपर रखकर देशवासियों को जागता रहता हूँ।। परिचय :- बीना (मध्यप्रदेश) के निवासी संजय जैन वर्तमान में मुम्बई में कार्यरत हैं। करीब २५ वर्ष से बम्बई में पब्लिक लिमिटेड कंपनी में मैनेजर के पद पर कार्यरत श्री जैन शौक से ...
शक्तियों की प्रतीक देवियां
कविता

शक्तियों की प्रतीक देवियां

सरला मेहता इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** नवरात्रि में ये महा देवियां निज स्वरूपों के देती संदेश इनके आचरण के पालन से सुधर जाता अपना परिवेश पार्वती कर देती है परिवर्तन विस्तार को बना देती है सार पीहर व ससुराल के रिश्तों में बहती रहती सदा नेह की धार जगदम्बा देवी सहनशील बन माँ सी करती है रक्षा अपरंपार बिना शर्त ही सबसे प्रेम करो करो सर्वदा निश्छल व्यवहार संतोषी माँ सी धैर्यशील बनके हर कण चांवल करे स्वीकार अवगुणों को समाकर दिल में सर्व गुणों का कर देती संचार गायत्री महान परख की देवी गन चक्षु की रखती तीक्ष धार हंसिनी सी बस मोती चुगती देती है न्याय का सार ही सार शारदा विद्या निर्णय की देवी हाथ में शास्त्र व वीणा झंकार जब सुर संगीत की धुन छेड़े सर्व जनों का हो जाता उद्धार मुंडो की माला पहन के काली मिटा देती है संसार के विकार विपदा की घड़ियों में...
अभिनन्दन नये वर्ष का
कविता

अभिनन्दन नये वर्ष का

डॉ. सुलोचना शर्मा बूंदी (राजस्थान) ******************** अभिनन्दन हो नये वर्ष का लेकर पूजा की थाली झूमें नाचें दीप जलायें मंगल गायें आओ आलि खलिहानों में सरसो फूले झूमें बाली गेहूंओं वाली कृषक झूमते अपने मद में और झूमे नारी नखराली वृक्ष वृक्ष पर नई कोंपलें लकदक अमुआ की डाली रंगोली भी एक बनाएं इंद्रधनुषी रंगों वाली नया गीत हो नई थाप हो नव्य नवेली हो ताली जले कपूर नेह प्रेम का हो सुवासित रातें काली माता आई नवदुर्गा बन घर घर छाए खुशहाली वंदन करें नव वर्ष का लेकर पूजा की थाली !! परिचय :- डॉ. सुलोचना शर्मा निवासी : बूंदी (राजस्थान) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित ...
जहाज का पंछी
कविता

जहाज का पंछी

सीताराम पवार धवली, बड़वानी (मध्य प्रदेश) ******************** मैं इस जहाज का पंछी हूं मेरा दूजा कोई ठौर नही धरती पर जो सुकून मिलता है वो कहीं और नहीं। भूख नामुराद जहाज पर लाई है मेरा तो ठिकाना और था जो गुजर गया वो गुजर गया फिर आएगा ऐसा दौर नहीं। परिवार कहां और मैं कहां उस परिवार के लिए तड़पता हूं सहा नहीं जाता मुझसे अब तो जालिम लहरों का शोर नहीं जो इस जहाज पर मिल जाता है उससे भूख मिटाता हूं आंखों के आगे अंधेरा है दिखाई दे ऐसी कोई भोर नहीं। उम्मीद लगाए रहता हूं मै कब धरती का साहिल मिल जाए बीत गई सो बीत गई अब करता उसपर मैं गौर नहीं। नसीब में जो लिखा है वह तो मिलना ही निश्चित है अपनी किस्मत के आगे चलता किसी का जोर नहीं। पेट की भूख ने आदमी को क्या से क्या बना डाला इस भूख का दुनिया में कहीं कोई और न छोर नहीं। परिचय :- सीताराम पवार निवासी : धवल...