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कविता

मैं भोली-भाली चिड़िया
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मैं भोली-भाली चिड़िया

अशोक पटेल "आशु" धमतरी (छत्तीसगढ़) ******************** मैं घर आँगन की पहचान हूँ मैं पेड़-पौधों की मुस्कान हूँ। मैं भोर का सन्देशा लाती हूँ मैं सारे जगत को जगाती हूँ। मैं कलरव के गीत सुनाती हूँ मैं रवि का स्वागत करती हूँ। मैं भोली-भाली चिड़िया हूँ मैं जागरण मैं ही निंदिया हूँ। मैं नील-गगन का श्रृंगार हूँ मैं बादलों का पुष्प-हार हूँ। मैं फुलवारी की सँगिनी हूँ मैं फूलों की मन मोहिनी हूँ। पर!मैं व्यथित परेशान हूँ मैं लोगों से बड़ी हैरान हूँ। मैं बहुत प्यासी और भूखी हूँ इसलिए तो मैं बहुत दुखी हूँ। मैं चिड़िया पानी का प्यासी हूँ मैं दाने के लिए बड़ी उदासी हूँ। परिचय :- अशोक पटेल "आशु" निवासी : मेघा-धमतरी (छत्तीसगढ़) सम्प्रति : हिंदी- व्याख्याता घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कवि...
ट्रैक्टर ट्रॉली का क्रिकेट
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ट्रैक्टर ट्रॉली का क्रिकेट

विजय गुप्ता दुर्ग (छत्तीसगढ़) ******************** शारदा ट्रैक्टर की ट्रॉली सड़क पर चल रही, सूर्य अस्त होने को है और फ्लाई ओवर का नजारा, गाडियां तो चींटी कछुए की चाल चल रहीं पुल पर सारी गाडियां जाम में फंस रहीं। ट्रॉली के पीछे मेरी कार भी रेंगती रही, ट्रॉली में दो मजदूरों के अलावा एक सुंदर सुडौल लगभग ११ वर्षीय बालक, ट्रॉली को ही क्रिकेट का पिच बना रहा, और अंतराष्ट्रीय खिलाड़ियों सा बल्ला घुमा रहा। जैसे हर बाल पर छक्का चौका जड़ दिया, दोनों हाथ ऊपर हवा में लहरा रहा, मस्त उत्साह में झूम रहा। एक किसान मालिक का बेटा है वो, या ट्रैक्टर मालिक का। हो सकता है मजदूर का ही बेटा हो। जो भी हो, क्रिकेट खेल के खिलाड़ी का अरमान बहुत प्रखर है। सूर्य की बिखरती सिमटती किरणों की तरह, उस बालक का भविष्य मानो गर्त में कैद है। महान बन जाने पर, दुनिया में नाम का यशोगान हो जाने पर, शास्त्री...
मासूम कली
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मासूम कली

कीर्ति मेहता "कोमल" इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** एक कली मतवाली थी सीधी भोली-भाली थी हँसती खिलखिलाती सूरज की वो लाली थी देख रूपसी मुखड़ा उसका भँवरा एक खींचा आया भोली सी उस कली को उसने, धीरे से फिर सहलाया चिंहुक उठी मासूम कलिका भँवरे ने फिर बहलाया भँवरा मदमस्त हुआ, फिर अपने पे इतराया रस पीकर अधखिली कली का भँवरा जैसे बौराया कुचल उसने किसलय कुसुमित उड़ा गगन में अलसाया धरा पड़ी अर्दित बोंडी वो बेसुध संज्ञाशून्य हुई बागबान की दृष्टि में वो, अनुपयोगी धूल हुई जैसे निर्मोही माली की बेगानी इक भूल हुई आह! मनुज बोलो ... इसमें मेरा दोष है क्या मैं तो स्वयम अशक्त रूप थी अब कैसे मैं व्यर्थ हुई??? अब कैसे मैं व्यर्थ हुई??? परिचय :- कीर्ति मेहता "कोमल" निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश) शिक्षा : बीए संस्कृत, एम ए हिंदी साहित्य लेखन विधा : गद्य और पद्य की स...
आओ हम कुछ और बात करें
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आओ हम कुछ और बात करें

डॉ. सुलोचना शर्मा बूंदी (राजस्थान) ******************** इस निराशा, उबाऊ, एकाकीपन से बाहर निकल.. ‌आओ हम कुछ और बात करें... ‌उगते सूरज को देखें और भूल जाएं निराशा की उस कालिमा को ‌जिसने लील दिया है हमारी खुशियों को... ‌और खो जाएं उन असीम ऊर्जावान रंगों में... ‌हम ओजस्वी अरुणोदय की बात करें! आओ हम कुछ और बात करें!! ‌ ‌झांकें खिड़की से बाहर.. तिनका-तिनका कर एकत्र, ‌नाजुक सी डाल पर हर बार पुनः - पुनः घरौंदा बुनती.. ‌उस छोटी नन्हीं सी चिड़िया की बात करें... ‌आओ हम कुछ और बात करें!! ‌आंगन से डाली तक फुदक.. ‌सख्त अखरोट तोड़, अनंत उत्साह से अचंभित करती.. ‌बताती अपने बुलंद इरादे.... ‌उस सजग नाजुक सी गिलहरी की बात करें... ‌आओ हम कुछ और बात करें!! ‌ले क्षमता से अधिक भार... ‌सतत चढ़ती और उतरती.. ‌फिर फिर अपनों को राह दिखाती कर्म मार्ग पर बढ़ती, अपने शत्रुओं को ढकेलती ...
मैं जीता जागता  मजदूर हूँ
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मैं जीता जागता मजदूर हूँ

धर्मेन्द्र कुमार श्रवण साहू बालोद (छत्तीसगढ़) ******************** मैं काम से चूर हूँ इसलिए मजबूर हूँ मैं बहुत दूर नहीं इसलिए मजदूर हूँ मैं आपके पास हूँ तभी तो सबके साथ हूँ मेरे द्वारा प्रयास ही सबके लिये आस हूँ मैं श्रम का नूर हूँ इसलिए मजबूर हूँ मैं बहुत दूर नहीं इसलिए मजदूर हूँ मेरे पास कान हैं रोज खोलता दुकान हूँ मेरे पास हाथ हैं मिस्त्री बनाता मकान हूँ मैं तो कोहिनूर हूँ इसलिए मजबूर हूँ मैं बहुत दूर नहीं इसलिए मजदूर हूँ मैं हर रोज करम करता तब परिवार चलता है मैं लगन से मेहनत करता हूँ पूरे संसार चलता है मैं महज दूर नहीं इसलिए मजबूर हूँ मैं बहुत दूर नहीं इसलिए मजदूर हूँ पंचतत्व ढांचा से बना ये हाड़ है इसलिए पहाड़ हूँ जंगल में मंगल मनाता है इसलिए शेर का दहाड़ हूँ मैं श्रम से चूर हूँ इसलिए मजबूर हूँ मैं बहुत दूर नहीं इसलिए मजदूर हूँ जल जंगल जमीन...
अमलतास
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अमलतास

मालती खलतकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** अमलतास की लाली छीन लिया फूलों का रस सारा विभिन्न तलुओं से लगता है यह तरु सबसे न्यारा। इतिहास की मिश्रित भाषा। गाता और सिखाता धरती के आंगन में इतराते मुस्काता। शाखा-शाखा इठ लाई है मुस्काई है कलियां रति आज जागा है वन में। पथ पगडंडियां शर्म से हो गई लाल। पथ कहता पगडंडी से आएंगी अब हम पर किरणें रवि का संदेश लेकर। तब तक ओस बिंदु को थामे रखना प्यास बुझेगी किरणों की मन में तृप्ति लेकर। परिचय :- इंदौर निवासी मालती खलतकर आयु ६८ वर्ष है आपने हिंदी समाजशास्श्र में एम ए एल एलबी किया है आप हिंदी में कविता कहानी लेख गजल आदि लिखती हैं व आपकी रचनाएँ विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं मैं प्रकाशित होते हैं आप सन १९६८ से इंदौर के लेखक संघ रचना संघ से जुड़ीआप शासकीय सेवा से निमृत हैं पीछेले ३० वर्षों से धार के कवियों के साथ शिरकत करती र...
मजदूर
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मजदूर

राम रतन श्रीवास बिलासपुर (छत्तीसगढ़) ******************** हे मजदूर मैं तुझ पर क्या क्या लिखूं? मानव विकास की हर ओ गाथा लिखूं। या मजबूरी भरी व्यथा की कथा लिखूं।। हर तड़पती पेट की ओ ज्वाला लिखूं। या जीवन संघर्ष की ओ दास्तां लिखूं।। हे मजदूर मैं तुझ पर क्या क्या लिखूं? चिलचिलाती धूप देह से गंगा जैसी धार लिखूं। या कड़कड़ाती ठंड ललाट की ओस बूंद लिखूं।। हर उम्र मजदूरी और मजबूरी के ओ साख लिखूं । या किसी मजदूर शासक तसल्ली की बात लिखूं।। हे मजदूर मैं तुझ पर क्या क्या लिखूं? मजदूर के गगनचुंबी इमारत में योगदान लिखूं। या परिवार भरण पोषण में सहयोग लिखूं।। हर गरीबी शिक्षा में मजदूर के आधार लिखूं। या नसीब में मजदूरी नियति को साफ लिखूं।। हे मजदूर मैं तुझ पर क्या क्या लिखूं? हर असहाय जनों के तुम्हारा वरदान लिखूं। या बिन योग्यता के तेरी हर पहचान लिखूं।। हर ओ शक्श के बेरो...
रखना चाहिए जीव दया
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रखना चाहिए जीव दया

प्रतिभा दुबे ग्वालियर (मध्य प्रदेश) ******************** बेजुबां है ये पशु पक्षी सभी विचारे बस प्रेम ही आपसे चाहते है सभी, जो कह नही सकते है दुख अपना! उनपर सदा रखनी चाहिए जीव दया।। एक भाग अन्न का इनके लिए भी रख दो बेजुबान है इन्हें भी कभी भोजन करा दो आ जाए द्वार पे तुम्हारे प्रेम से यदि पशु, कभी इनको भी तुम पानी पिला दो।। क्यों मारो पीटो इनको बेकार, करते सभी से पशु प्रेम प्यार ये, इनकी भी है एक प्रेम की भाषा! पहचानो तुम करके इनपर जीव दया।। आबादी बढ़ रही हमारी है जब से छीन लिया है हमने इनका जंगल, सही मायने में वही था घर इनका, प्रकृति मां भरती थी भोजन से पेट इनका।। आज घर घर आते है आस यही लेकर कोई तो होगा भोजन देने वाला इनको! आज कचरा खाने पर विवश हुए पशु, भोजन देकर कोई तो रखेगा जीव दया।। हमें समझना होगा अब इनको क्यों व्याकुल है हर पशु इतना! न...
मैं क्या पाठ पढ़ाऊँ उन बच्चों को …
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मैं क्या पाठ पढ़ाऊँ उन बच्चों को …

ललिता शर्मा ‘नयास्था’ भीलवाड़ा (राजस्थान) ******************** मैं क्या पाठ पढ़ाऊँ उन बच्चों को, जिनको आज़ादी का एहसास नहीं। मातृभूम हेतु मर मिटने वाले, अब लगते इनको ख़ास नहीं॥ कोख़ में पलते बच्चे कहते थे, माँ मुझको धरती पर क़ुर्बान करो। पुष्प सरीखा बलिवेदी पर चढ़ जाऊँ तो, गर्भ पे अपने अभिमान करो॥ अब भ्रूण को मिलता वो रसपान कहाँ, आँवल में भी वो त्रास नहीं। मातृभूम हेतु मर मिटने वाले, अब लगते इनको ख़ास नहीं॥ जो थे मात-पिता के राज दुलारे, वो घर की चौखट भूल गये। पकी हुई फसलों-से उनके बच्चे, फाँसी के फंदे झूल गये॥ नवयुग की इस पीढ़ी को देखो, रत्ती भर मन में इनके वो उल्लास नहीं॥ मातृभूम हेतु मर मिटने वाले, अब इनको लगते ख़ास नहीं॥ ये दक्खिन वाली चलते हैं चाल, परकटे-से बिखरे-बिखरे बाल। अब बिगड़ गया है माँ का लाल, और सिमट गया है इनका जीवन-काल॥ रक्त सनी उन तारीख़...
यूं ही बस
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यूं ही बस

आलोक रंजन त्रिपाठी "इंदौरवी" इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** जब भी तुम रूठ कर न बोलोगे जानता हूं कि छुपके रो लोगे इश्क का दर्द जानता हूं मैं ये भी मुमकिन नहीं कि सो लोगे ज़िंदगी का वज़न जियादा है कैसे तन्हाइयों में ढो लोगे ग़म बहुत वैसे हैं तुम्हें हासिल खुद को इस गम में भी डुबो लोगे वक्त का इंतज़ार है मुझको साथ मेरे कभी तो हो लोगे है यकीन मुझको अपने रिश्तों में ख़ूब बारीकियों से तोलोगे याद आएगी तुमको जब मेरी अपने दामन को भी भिगो लोगे परिचय :- आलोक रंजन त्रिपाठी "इंदौरवी" निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश) शिक्षा : एमए (हिंदी साहित्य) लेखन : गीत, गजल, मुक्तक, कहानी, तुम मेरे गीतों में आते प्रकाशन के अधीन, तीन साझा संग्रह में रचनाएं प्रकाशित, १० से ज्यादा कहानियां पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित, ५० से ज्यादा गीत के चल पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाश...
भारत देश की शान
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भारत देश की शान

आयुषी दाधीच भीलवाड़ा (राजस्थान) ******************** भारत का हर कोना-कोना, भारत के वीर पुरुषो की शान है, देखो ये भारत देश... हमारी पहचान है... देखो ये भारत देश हमारी पहचान है। उत्तर मे कश्मीर है जिसके, हिमालय जिसकी पहचान है, जहाँ रचे गए पंचतंत्र और नाट्यशास्त्र, ऋषियो की है वो तपस्थली, ऐसा ये सुन्दर कश्मीर, भारत देश की शान है। भारत के इस स्वर्ग मे कैसा वो अत्याचार था, कश्मीर का हिन्दू- मुस्लिम युद्ध देख, सबकी आंखे नम हुई, वो लहुलुहान दृश्य देख, सबका ह्दय रो पड़ा, चारो ओर एक ही गुंज 'आजादी, आजादी '। भारत का हर कोना -कोना, भारत के वीर पुरुषो की शान है, ये कश्मीर भारत देश की शान है, देखो ये भारत देश... हमारी पहचान है... परिचय :-  आयुषी दाधीच शिक्षा : बी.एड, एम.ए. हिन्दी निवास : भीलवाड़ा (राजस्थान) उद्घोषणा : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्...
हां मैं पुरुष हूं …
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हां मैं पुरुष हूं …

संजय कुमार नेमा भोपाल (मध्य प्रदेश) ******************** हां मैं पुरुष हूं ।। विधाता की रचना हूं। मैंब्रह्मा हूं, विष्णु हूं, महेश हूं। मै एक पुरुष हूं।।‌‌ नारी का अभिमान हूं, नारी का सौभाग्य हूं। हां में एक पुरुष हूं।।‌‌ मन की बात मन में रखकर ऊपर से हरदम, खुशमिजाज दिखने वाला परिवार की जिम्मेदारी निभाने वाला। हां मैं पुरुष हूं।।‌‌ पिता का स्वाभिमान हूं, मां के आंचल का अभिमान हूं। बचपन से घर की जिम्मेदारी लेने वाला पिता के सपनों को साकार करने वाला। हां मैं एक पुरुष हूं मैं।।‌‌ जीवन में आतेही, आपेक्षाओं से लगता है यह जीवन। बहन की शादी के सपनों का आधार हूं। हां मैं एक पुरुष हूं।।‌‌ थक कर कभी हारा नहीं, निरंतर मुझको चलना है हरदम।। आशाओं की मीनार हूं। परिवार का आधार स्तंभ हूं।। हां मैं एक पुरुष हूं।।‌ रो में सकता नहीं, डर अपना बतला सकता नहीं। ...
ऐ दुनिया वालो
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ऐ दुनिया वालो

प्रभात कुमार "प्रभात" हापुड़ (उत्तर प्रदेश) ******************** ना खुरचो परत मेरे जख्मों से ऐ दुनिया वालो। ब-मुश्किल फरेरा किया है मैंने गमों के जख्मों को, ये गहरे घाव न बन जाएंँ तुम्हारी बेरूखी से, ऐ दुनिया वालो। बार बार गिरा हूँ लड़खड़ाया हूँ, मगर चौखट पर आकर उसकी फिर संभला हूँ, ऐ दुनिया वालो। मुझे सहारा दे देना मैं रुह को अपनी रब से मिलाने आया हूँ ऐ दुनिया वालो। परिचय :-  प्रभात कुमार "प्रभात" निवासी : हापुड़, (उत्तर प्रदेश) भारत शिक्षा : एम.काम., एम.ए. राजनीति शास्त्र बी.एड. सम्प्रति : वाणिज्य प्रवक्ता टैगोर शिक्षा सदन इंटर कालेज हापुड़ विशेष रुचि : कविता, गीत व लघुकथा (सृजन) लेखन, समय-समय पर समाचारपत्र एवं पत्रिकाओं में रचनाओं का निरंतर प्रकाशन। घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कव...
इश्क बेहिसाब
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इश्क बेहिसाब

आशीष तिवारी "निर्मल" रीवा मध्यप्रदेश ******************** सारे काम वो लाजवाब कर बैठी इश्क हमसे वो बेहिसाब कर बैठी । सब देखते रहे मुुझे अखबार की तरह वो मेरे चेहरे को किताब कर बैठी। ना पीना कभी भी यह देके कसम खुद की आँखों को शराब कर बैठी। वफाओं का मिला यह सिला उसे कई रातों की नींद खराब कर बैठी। लिपट कर खूब रोए हम दोनों ही वो अपनी वफा का हिसाब कर बैठी। परिचय :- आशीष तिवारी निर्मल का जन्म मध्य प्रदेश के रीवा जिले के लालगांव कस्बे में सितंबर १९९० में हुआ। बचपन से ही ठहाके लगवा देने की सरल शैली व हिंदी और लोकभाषा बघेली पर लेखन करने की प्रबल इच्छाशक्ति ने आपको अल्प समय में ही कवि सम्मेलन मंच, आकाशवाणी, पत्र-पत्रिका व दूरदर्शन तक पहुँचा दीया। कई साहित्यिक संस्थाओं से सम्मानित युवा कवि आशीष तिवारी निर्मल वर्तमान समय में कवि सम्मेलन मंचों व लेखन में बेहद सक्रिय हैं, अप...
एक अनोखा ग्रह
कविता

एक अनोखा ग्रह

सरला मेहता इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** सौरमण्डल का अनोखा यह ग्रह जल] थल] वायु का इच्छित संगम जन जीवों का रहवासी ये स्थल पंच तत्वों में प्रमुख इसका स्थान ये गोल ग्रह परिक्रमा करे रवि की चंदा मामा थामके पल्लू धरा का अंग-संग रहता है नन्हें मुन्नू जैसा भूमध्य रेखा मध्य से है गुज़रती सूरज दद्दू की किरणें सीधी पड़ती ज्यों-ज्यों केंद्र से दूर होते जाते ठिठुरन ज़्यादा ही कपकपाती है दोनों ध्रुवों पर तो बर्फ़ जम जाती उत्तरी व दक्षिणी ये दो गोलार्ध हैं ठन्डों में भारत मनाता क्रिसमस आस्ट्रेलिया में सेंटा गर्मी में आते कहीं नदियाँ ताल, कहीं पठार हैं कहीं हरे मैदान कहीं रेगिस्तान हैं रहते हिन्दू मुस्लिम सिख ईसाई हैं प्रभु की ये रचना बड़ी करिश्माई है परिचय : सरला मेहता निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह र...
आंखे
कविता

आंखे

सुरभि शुक्ला इन्दौर (मध्य प्रदेश) ******************** कमाल होती हैं आंखे बिन बोले सब कह देती हैं दिल में छिपे सारे राज़ खोल देती हैं सच और झूठ से पर्दा उठा कर एक-एक रहस्य उजागर करती हैं आंखे क्या कहें इनके बारे में रोज‌ नई कहानी सुनाती हैं हर किरदार का नया रंग दिखाती हैं ये, अपने और परायों की असली पहचान कराती हैं आंखे जिनसे हम अन्जान होते हैं उन्ही किताबों के पन्ने खोलती हैं और एक नया सबक सिखाती हैं हर आदमी के अध्याय को बार-बार समझ कर पढ़ने को कहती हैं आंखे परिचय :-   सुरभि शुक्ला शिक्षा : एम.ए चित्रकला बी.लाइ. (पुस्तकालय एवं सूचना विज्ञान) निवासी : इन्दौर (मध्य प्रदेश) जन्म स्थान : कानपुर (उत्तर प्रदेश) रूचि : लेखन, गायन, चित्रकला सम्प्रति : निजी विद्यालय में पुस्तकालयाध्यक्ष आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्...
श्रृद्धांजलि
कविता

श्रृद्धांजलि

डॉ. जयलक्ष्मी विनायक भोपाल (मध्य प्रदेश) ******************** जब कोई सिपाही होता है शहीद मेरी आंखें होती हैं नम एक आंसू टपक कर बनता है अविरल धारा शहादत की वो अपूर्व गाथा। भले ही मेरा कुछ ना लगता हो वो अनजाना सा अपरिचित, फिर क्यों मेरे ज़हन में उठती है इक मायूसी और टीस बलिदान हमारे लिए देगया वीर। छह महीने पहले जिसकी सधवा बिलखती बन गई विधवा, नैतृत्व करते अपनी टुकड़ी तेलंगाना शूर हुआ शहीद बेहिचक नन्ही बेटी जलाती है दीप उसकी स्मृति में असमंजस। वो बीस सिपाही दस्त-बदस्त लड़े डंडे पत्थरों के ज़ख्मों से आहत, गवां गए अपने प्राण, कभी ना सोचा अपना स्वार्थ जान हथेली पर ले तत्पर। परिचय :-   भोपाल (मध्य प्रदेश) निवासी डॉ. जयलक्ष्मी विनायक एक कवयित्री, गायिका और लेखिका हैं। स्कूलों व कालेजों में प्राध्यापिका रह चुकी हैं। २००३ में अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर संगीत और साहित...
प्रदूषण का पिंजरा
कविता

प्रदूषण का पिंजरा

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ******************** झर-झर बहते झरने कल-कल बहती नदियों की आवाजें मानो गुम सी हो गई हो या हम बहरे हो गए ये समझ में नहीं आता। सोचता हूँ कैद कर लिए होंगे इन्हें प्रदूषणों के पिंजरों में किसी ने इनके मीठे शोरों को। पर्यावरण को बचाने हेतु शुष्क कंठ लिए मृगतृष्णा सा भटकता इंसान क्या इन्हे प्रदूषण मुक्त कर पाएगा। श्रमदान से नदियों को पुनर्जीवित करके इंसान माँग ले यदि वरदान भागीरथ सा तो फिर से झर-झर बहते झरने कल-कल बहती नदियों की आवाजें इस धरा पर पा सकता है। परिचय :- संजय वर्मा "दॄष्टि" पिता :- श्री शांतीलालजी वर्मा जन्म तिथि :- २ मई १९६२ (उज्जैन) शिक्षा :- आय टी आय व्यवसाय :- ड़ी एम (जल संसाधन विभाग) प्रकाशन :- देश-विदेश की विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएँ व समाचार पत्रों में निरंतर पत्र और रचनाओं का प्रकाशन, प्रकाशि...
ख़्वाहिशें जगने लगी
कविता

ख़्वाहिशें जगने लगी

ऋषभ गुप्ता तिबड़ी रोड गुरदासपुर (पंजाब) ******************** बूंदे बरसने लगी ख़्वाहिशें जगने लगी ठहरी-ठहरी सी ये जिंदगी फिर से चलने लगी, मौसम भी सुहाना हो गया आसमान का दीवाना ये राही हो गया पहाड़ों की चोटियों पर जब ठण्डी-ठण्डी हवाएं चलने लगी ठहरी-ठहरी सी ये जिंदगी फिर से गुनगुनाने लगी, ख्वाहिशों की मोमबत्तियां कैसे बुझ जाती एक हवा के झोंकें से ठहरे हुए समंदर में भी कश्ती चलने लगी, बेड़ियों में बंधा ये परिंदा आज़ाद हो गया राहों पर खड़ी ख़्वाहिशें जब ज़ोर से पुकारने लगी, नया दौर नई दास्तां आँखों में आशाएँ लिये वही पुरानी ख्वाहिशों को कलम की जुबानी ये नज़्म सुनाने लगी ठहरी-ठहरी सी ये ज़िंदगी फिर से कदम बढ़ाने लगी परिचय :- ऋषभ गुप्ता निवासी : तिबड़ी रोड गुरदासपुर (पंजाबप्रदेश) घोषणा पत्र :  मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित ...
निशा की माया
कविता

निशा की माया

दिनेश कुमार किनकर पांढुर्ना, छिंदवाड़ा (मध्य प्रदेश) ******************** फैलाई निशा ने माया, चाँद सितारों की! लौट गए रवि लेकर, अपना स्वर्णिम रथ! नर्तन कर संध्या भी, चल दी अपने पथ! निशा ने सुलाया सबको जो थे थके हुए लथपथ! विरहदग्ध रहे देखते, रातभर यात्रा तारो की!....... फैल गई चांदनी गगन, में जैसे हृदय की आस! लगे दौड़ने तारे नभ में, दग्ध मन के से संत्रास! शशि अपनी शीतलता से, उर में भर रहा विश्वास! पंहुची साधना चरम पर प्रभु पथ के प्यारो की!....... गहन तिमिर में निकल, निशाचर पा रहे आहार! मिलन की इस यामिनी में, युगल कर रहे हैं विहार! अधर्मियों के लिए निशा, सुलभ करने पीत व्यापार! निशा साक्षी हर हृदय में बनती गिरती दीवारों की! फैलाई निशि ने माया, चाँद सितारों की! परिचय -  दिनेश कुमार किनकर निवासी : पांढुर्ना, जिला-छिंदवाड़ा (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र :  मैं यह...
शतरंजी चालें
कविता

शतरंजी चालें

अंजनी कुमार चतुर्वेदी निवाड़ी (मध्य प्रदेश) ******************** जीवन की *शतरंजी* चालें, हरदम चलना पड़ती। जैसी चाल कोई पड़ जाए, वैसा जीवन गढ़ती। भारतवंशी *चौरंगी* ने, बौद्धिक खेल बनाया। स्वस्थ मनोरंजन होता था, यह *चतुरंग* कहाया। चौंसठ खाने इसमें होते, यह *चौपाट* कहाती। सोलह-सोलह मोहरे लेकर, भिड़ते हैं दो साथी। श्वेत- श्याम इसके पाँसे हैं, जो *मोहरे* कहलाते। इन्हें खेलने वाले जन भी, गोरे काले कहलाते। *प्यादे* सा जीवन बचपन का, धीरे-धीरे चलता । चाहे जितना पानी डालो, वृक्ष समय पर फलता। युवा काल में होता मानव, बिल्कुल *घोड़े* जैसा। कर दिन रात परिश्रम भारी, खूब जोड़ता पैसा। युवा काल जाते ही जीवन, होता जैसे *हाथी*। खाता, पीता, मौज मनाता, परिजन, संगी -साथी। इसी समय मानव जीवन में, बजे खुशी का बाजा। मानव तभी समझता खुद को, है शतरंजी *राजा*। रहता है ...
परमप्रीय
कविता

परमप्रीय

डाॅ. रेश्मा पाटील निपाणी, बेलगम (कर्नाटक) ******************** हर मन में तुम्ही बसे हो सब ग्रंथो का अर्थ हो तुम हर धर्म का आधार हो तुम सब पंथो ने किया तुम्हे वर्णित सब संतो ने किया तुम्हे प्रणीत सब शास्त्रों के हो तुम्ही कर्णित निराकार साकार तुम्ही हो सृष्टि का आभास तुम्ही हो जीवन का आधार तुम्ही हो जो पुकारे तुम्हे दिल से होते हो तुम उसे सहाई फिर चाहे हो वो कोई प्रणाई जो प्रेम करे तुम्हें अंतर से जो प्रेम करे तुम पे ह्रदय से सुनते हो तुम उसकी दुहाई फिर चाहे वो तुम्हे किसी रूप में फिर देखे वो तुम्हे किसी रूप में आते हो पास उसी रूप में भूला के उसके सारे अवगुण लगा लेते हो उसे ह्रदय से भाग्य उसका किया न जाये वर्णित ईश्वर पुकारो, अल्लाह कहो बुलाओ चाहे उसे जिजस राम कहो, रहीम कहो कन्हैया कान्हा मनमोहन पुकारो रसुलुल्लाह कहो चाहे महबुबे खुदा कहो चाहे...
तू… मेरी जां है…!
कविता

तू… मेरी जां है…!

हरिदास बड़ोदे "हरिप्रेम" गंजबासौदा, विदिशा (मध्य प्रदेश) ******************** तू..., मेरी जां है, जां है..., तू भूल गया..., मेरा..., तू जहां था, जहां था..., तू भूल गया...। तू भूल गया...।। तू..., मेरी जां है, जां है..., तू भूल गया..., मेरा..., तू जहां था, जहां था..., तू भूल गया...। तू भूल गया...।। तू सांचा था क्यूं, गैर हुआ, अपना रिश्ता क्यूं, गैर किया। दर्द भरी यादें, तू दे गया, सुना जहां मेरा, तू कर गया।। "दुआ मैं करूं..., तू खुश रहे सदा..., मुझे प्यार में..., धोखा मिल गया..., बेवफा तू..., क्यों हो गया.., बेवफा तू...।" तू भूल गया..., तू भूल गया...। तू..., मेरी जां है...।। खुला आसमां है, तू उड़ जा, संग मेरी यादें, सब भूल जा। सपने संवर गए, जो अब तेरे, कैसे बिखर गए, जो थे अपने।। "जिंदगी तुझपर मेरी..., कुर्बान हो जाए सदा..., मुझे प्यार में..., ...
मर्यादा
कविता

मर्यादा

अमित डोगरा कांगड़ा, (हिमाचल प्रदेश) ******************** मर्यादा एक परंपरा है मर्यादा एक आभूषण है। मर्यादा एक पहचान है मर्यादा स्वर की झंकार है। मर्यादा जीवन का संघर्ष है मर्यादा सच की कसौटी है। मर्यादा कुछ पाने की कसक है मर्यादा अस्तित्व की झलक है। मर्यादा जीवन का सारांश है मर्यादा परमसत्ता का अहसास है। परिचय :- अमित डोगरा निवासी : जनयानकड़ कांगड़ा, (हिमाचल प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.com पर अणु डाक (मेल) कीजिये, अणु डाक करने ...
शब्द नहीं उस माँ के लिए
कविता

शब्द नहीं उस माँ के लिए

सुरेश चन्द्र जोशी विनोद नगर (दिल्ली) ******************** शब्द नहीं उस माँ के लिए, जिसने है तुम्हें जन्म दिया | उपकार को उस कुल के लिए, सुधार तुमने मेरा है जन्म दिया || निर्वहन पतिव्रत धर्म के लिए, ऐसा अद्भुत कर्म किया | शब्द नहीं उस माँ के लिए, जिसने तुम्हें है जन्म दिया || निर्वहन मातृत्व धर्म के लिए, ऐसी करुणा का ज्ञान दिया | शब्द नहीं उस माँ के लिए, जिसने तुम्हें है जन्म दिया || शिव शक्ति की उपासना के लिए, इ, इ, इति में बदल दिया | शब्द नहीं उस माँ के लिए, जिसने है तुम्हें जन्म दिया || निराकरण अपनी बाधाओं का, जिस पिता मातु ने दान दिया | शब्द नहीं उस माँ के लिए, जिसने तुम्हें है जन्म दिया || सदा सिंदूर की रक्षा के लिए, जिसने चूड़ियों का नहीं ज्ञान दिया | शब्द नहीं उस माँ के लिए, जिसने तुम्हें है जन्म दिया || स्वकुल के उपकार के लिए, स्व- सुता कुल ...