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कविता

तेरे चरणों मे माँ तीरथ द्वार है
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तेरे चरणों मे माँ तीरथ द्वार है

अशोक पटेल "आशु" धमतरी (छत्तीसगढ़) ******************** माँ मैं कहाँ जाऊँ, कहाँ भटकूँ तेरे चरणों मे ही तीरथ द्वार है, सारे देवता हैं माँ तेरे चरणों मे नमन करूँ तुझको बारम्बार है। करूँ स्तुति मैं, करूँ आराधना करूँगा मैं तेरा, नित गुणगान है, जग में है माँ तेरी पावन महिमा माँ तू ही इस जगत में महान है। तुम ही हो जग की जन्मधात्री तुम ही तो हो पहिली गुरुमाता, तुम हो शक्ति माँ देवी स्वरूपा तुम ही तो हो माँ सृजन-कर्ता। तुम ही तो हो माँ वात्सल्यमयी तुम ही माँ ममता की खान हो, तुमसे बढ़कर जग में कोई नही तुम ही देती सबको वरदान हो। माँ तुम हो सबकी पालनहारी और तुम ही हो दया की मूर्ति, तेरे बिना सब यह जग है सुना तुझसे यह धरा-धाम सँवरती। परिचय :- अशोक पटेल "आशु" निवासी : मेघा-धमतरी (छत्तीसगढ़) सम्प्रति : हिंदी- व्याख्याता घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वा...
अर्थ जब अर्थात मे खोने लगे
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अर्थ जब अर्थात मे खोने लगे

कमलेश मिश्रा बांसडीह बलिया (उत्तर प्रदेश) ******************** अर्थ जब अर्थात मे खोने लगे शब्द भी कंठों से निकल रोने लगे ये आसियाँ सा दिखता जहाँ धूल सा अंधियो मे मिलने लगे अर्थ जब अर्थात मे खोने लगे। जब जागते अंगड़ाईयो मे तब खोह खड्डे खाइयो मे चिड़ियों के भी घोशले कुछ चिड़ियों सा उड़ने लगे फिर नीड़ के निर्माण मे घायल भी खग उड़ने लगे अर्थ जब अर्थात मे खोने लगे। कुछ नीति नाते मोड़कर कुछ रूढ़ियों को तोड़कर चार कंधो पर उठाकर अपने हीं समशान मे हीं छोड़कर मुह मोड़कर चलने लगे अर्थ जब अर्थात मे खोने लगे। अब शाम हो चली हैं चल लौट जाते हैं घर इस जिंदगी कि राह मे हैं जिंदगी का हीं डर इस ख्वाब कि ऊंचाइयों मे हम ख्वाब सा होने लगे अर्थ जब अर्थात मे खोने लगे। परिचय :- कमलेश मिश्रा पिता : आदित्य मिश्रा जन्म : ०२-०८-२००६ निवासी : बांसडीह बलिया (उत्तर प्र...
गौ माता
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गौ माता

संगीता सूर्यप्रकाश मुरसेनिया भोपाल (मध्यप्रदेश) ******************** गौ माता धन्य हो तुम। अन्नपूर्णा माता कहलाती हो। गृह लक्ष्मी गौ माता दुग्ध। दुह कर परिवार जन। दुग्ध पय करावे नित। पर देखो कैसी विडम्बना। गौ माता दुग्ध पान वंचित। गौ माता निज संतान। जबकि सर्वोपरी अधिकार। प्रथम दुग्धपान गौ माता। निज संतान बछड़ा हो। या बछड़ी। किंतु मानव स्व हित। गौमाता स्व संतान। मां दुग्ध ना पा सके। इक खूँटे बँधी अल्प। घास उदर पोषण हेतु मजबूर। परिचय :- श्रीमती संगीता सूर्यप्रकाश मुरसेनिया निवासी : भोपाल (मध्यप्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानिया...
विलक रही है आत्मा मेरी
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विलक रही है आत्मा मेरी

नितिन राघव बुलन्दशहर (उत्तर प्रदेश) ******************** विलक रही है आत्मा मेरी, वो खिसक रहे हैं हाथों से। दिन का चैन गया सब मेरा, और नींद गयी सब रातो से।। तडप रहे हैं वो भी कितना, है लगता उनकी आंखों से। सूख रहा प्रेम वृक्ष नित दिन, मानो पत्ते चले गए शाखो से।। अब मुड़ना भूल गयी है बाहें, मिली नहीं है सांस ही सांसों से । लाल बर्फ बना लिए हैं अश्रू, क्या डरना अर्थी के बांसो से।। शायद बढना होगा आगे अब, गुजरते हुए ही लाशों से। लड़ना होगा मिलकर हमको, राक्षसमयी सामाजिक दासों से।। परिचय :- नितिन राघव जन्म तिथि : ०१/०४/२००१ जन्म स्थान : गाँव-सलगवां, जिला- बुलन्दशहर पिता : श्री कैलाश राघव माता : श्रीमती मीना देवी शिक्षा : बी एस सी (बायो), आई०पी०पीजी० कॉलेज बुलन्दशहर, चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय मेरठ से, कम्प्यूटर ओपरेटर एंड प्रोग्रामिंग असिस्टेंट डिप्लोमा, सागर ट्रे...
जमीं पर नहीं पैर मेरे!
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जमीं पर नहीं पैर मेरे!

प्रभात कुमार "प्रभात" हापुड़ (उत्तर प्रदेश) ******************** जाने क्यों आज, जमी़ पर नहीं पैर मेरे ! मैं होंसलों के पंख लगा, एक नई उडा़न भरना चाहती हूँ नील गगन में। मैं पंछी बन स्वच्छंद, ऊँचाइयाँ चूमना चाहती हूँ नील गगन में। मीलों दूर चली जाऊंँ अनंत आकाश में, खिसक न जाए जमीं पैरों से मेरे, मैंआना चाहती हूँ पुनः घरोंदों में, पैर सदा रहें जमी पर मेरे। जाने क्यों आज जमी पर नहीं पैर मेरे! सागर में गहराई जितनी हृदय में इतनी थाह ले, जीवन का हर संघर्ष मैं जीतना चाहती हूँ जिंदगी के बाद भी अस्तित्व मेरा बना रहे, पैर सदा रहें जमीं पर मेरे। जाने क्यों आज ज़मीं पर नहीं पैर मेरे! मैं अतीत, मैं वर्तमान हूँ, मैं जननी भविष्य की हूँ, मेरी संतति, मेरी संस्कृति मेरेअस्तित्व की जड़ें सागर की गहराई सी. जमी रहें हर काल में, उपस्थिति सदा रहे मेरी, नीलाम्बर की ऊँचाइयो...
सच्चे पित्र भक्त
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सच्चे पित्र भक्त

सीताराम पवार धवली, बड़वानी (मध्य प्रदेश) ******************** भीष्म पितामह गुरु द्रोण और कर्ण को धनुर्विद्या के गुर सिखलाए हैं। अन्याय पाप कर्म जब धरती पर दुराचारी राजाओं ने बढ़ाए है। ऐसे दुराचारीयो को श्री परशुराम ने ही इस धरती से मिटाएं है। परशुराम अवतार भगवान विष्णु का छठा अवतार कहलाता है ऋषि जमदग्नि रेणुका जैसे माता-पिता की संतान का कहलाए हैं। भगवान परशुराम सच्चे पित्र भक्त तीनों लोकों में माने जाते है। पिता की आज्ञा से माता की गर्दन काट आज्ञा का पालन कर पाए है। पिताजी ही से वरदान पाकर फिर अपनी जननी के प्राण लौटाए हैं क्षत्रिय वंश का नहीं इन्होंने हैहय वंश का इक्कीस बार संघार किया। भीष्मपितामह गुरुद्रोण और कर्ण को भी धनुर्विद्या के गुर सिखलाए हैं परशुराम के पिता से जब सहसरार्जुन ने बलपूर्वक कामधेनु छीनी थी। सहस्त्रार्जुन जैसे योद्धाओं को अपने इस फर...
बेवफ़ा मैं हूं नहीं
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बेवफ़ा मैं हूं नहीं

आलोक रंजन त्रिपाठी "इंदौरवी" इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** तुम न समझो या न समझो, बेवफ़ा मैं हूं नहीं दूर हूं तुमसे मगर, तुमसे खफा मैं हूं नहीं मयकदे में मय की चर्चा खूब करता हूं मगर साथ यादें हैं तुम्हारी, ग़मजदा मैं हूं नहीं सात जन्मों की कसम है साथ तेरा है मेरा इस जहां की भीड़ में भी गुमशुदा मैं हूं नहीं मैं हवा के साथ हूं लेकर चले मुझको जहां क्या गरम ठंडी भी क्या वाद ए सबा मैं हूं नहीं गलतियां तो सब से कुछ ना कुछ हुआ करती यहां मैं भी उनमें एक हूं अब देवता मैं हूं नहीं परिचय :- आलोक रंजन त्रिपाठी "इंदौरवी" निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश) शिक्षा : एमए (हिंदी साहित्य) लेखन : गीत, गजल, मुक्तक, कहानी, तुम मेरे गीतों में आते प्रकाशन के अधीन, तीन साझा संग्रह में रचनाएं प्रकाशित, १० से ज्यादा कहानियां पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित, ५० से ...
देखा नहीं
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देखा नहीं

मालती खलतकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** करीब से देखा नहीं जिंदगी को कभी कोई पास है या दूर सोचा नहीं कभी मेरे उदास लम्हों में दरख़्त ही साथ थे खोया हुआ बचपन बुलाया नहीं कभी। रस्मों रिवाजों की जंजीरों में जकड़े रहे हरदम अलकों सा तन्हाई को बिखेरा नहीं कभी क्या खाक रहे हम जमाने के बहाव में जमाने ने हमें समझा यही समझा ही नहीं करीब से देखा नहीं जिंदगी को कभी गमे जिंदगी के यारों साथ ही जाएंगे ता जिंदगी ले पाया है कोई खुशी कभी फक्र है कि हम तनहाई में भी जी लेते हैं कौन चाहता है घुट कर मर ना कभी करीब से देखा नहीं जिंदगी को कभी। जमाने की निगाह ने हमें बेहाल कर दिया। वरना काबिल थे हम तो सहने के लिए सभी। सोचा था जिंदगी में चलेंगे बनाकर कारवां। मिले बिछड़े ले जाना नहीं हाले दिल कभी। करीब से देखा नहीं जिंदगी को कभी। न जानते थे तन्हाई ना जानते थे कारवां दरख्तों क...
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ये जनम-जनम का नाता है

आनंद कुमार पांडेय बलिया (उत्तर प्रदेश) ******************** इतना भी दूर नहीं है माँ, क्यों लाल मेरे चिल्लाता है। तेरे और मेरे बीच सुनो, ये जनम-जनम का नाता है।। तुझको हर वो कुछ देती हूँ, जो तेरे मन को भा जाये। कोई भी वस्तु नहीं जग में, जो तेरे जी को ललचाये।। तु मेरा राजा बेटा है, ये बात गवारा मत समझो। अब तुझे बताना होगा हमें, क्या तेरा नेक इरादा है।। इतना भी दूर नहीं है माँ, क्यों लाल मेरे चिल्लाता है। तेरे और मेरे बीच सुनो, ये जनम-जनम का नाता है।। है मेरे आँख का तारा तु, जीवन का एक सहारा तु। है अरमानों की बगिया का, इक अदभूत सुमन हमारा तु।। अपनी माँ की इस ममता पर, कभी प्रश्न खड़ा न कर देना। मेरे जीवन को लाल मेरे, आनंद ज्योति से भर देना।। जीवन की हर कठिनाई को, तुझे कोसो दूर भगाना है। हंसते-हंसते हीं जीना है, हंसते-हंसते मर जाना है।। इतना भी दूर ...
दुनिया है तलवार दुधारी
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दुनिया है तलवार दुधारी

आशीष तिवारी "निर्मल" रीवा मध्यप्रदेश ******************** सीख ले दुनियादारी निर्मल जंग पड़ी है सारी निर्मल। दुनिया वालों से क्या बतलाना अपनी हर लाचारी निर्मल। संभल के रहना पल-प्रतिपल दुनिया है तलवार दुधारी निर्मल। मन में है विश्वास तो इक दिन जीतेगा तू बाजी हारी निर्मल । नोच खाने को सब आतुर हैं मत रख सबसे यारी निर्मल। खा जाएगी तुझको इक दिन सच बोलने की बीमारी निर्मल। बहकावे में आ के पागल मत बन खुद में रख थोड़ी होशियारी निर्मल। परिचय :- आशीष तिवारी निर्मल का जन्म मध्य प्रदेश के रीवा जिले के लालगांव कस्बे में सितंबर १९९० में हुआ। बचपन से ही ठहाके लगवा देने की सरल शैली व हिंदी और लोकभाषा बघेली पर लेखन करने की प्रबल इच्छाशक्ति ने आपको अल्प समय में ही कवि सम्मेलन मंच, आकाशवाणी, पत्र-पत्रिका व दूरदर्शन तक पहुँचा दीया। कई साहित्यिक संस्थाओं से सम्मानित युवा कव...
हम अपने अंदर को झांकें
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हम अपने अंदर को झांकें

अशोक पटेल "आशु" धमतरी (छत्तीसगढ़) ******************** हो सके तो हम, अपने अंदर को झाँकें यहॉं-वहाँ हम, दूसरे को बाहर न ताकें। हम गौर करें अपना, करें स्वआँकलन स्वआत्मा के, आवाज का करें पालन। हम स्वयं है अपना, कुशल मार्गदर्शक यहॉं-वहाँ की बातें, करना है निरर्थक। हम स्वयं हैं स्वप्रेरक, बने अपनी प्रेरणा हम प्रकाशवान बने, न करें अवहेलना। हम अपने कर्म-फल, को बनाएँ महान इसी से मिलेगा, जगत में मान-सम्मान। बनाले ले कुछ, अलग अपनी पहचान बन जाएँ स्वच्छ छबि, का भला इंसान। अपने कर्मों का रहे, हमे हरदम ध्यान बने हम सभ्य मानव, इसका रहे ज्ञान। हमारे व्यवहारों का, सभी करे गुणगान हमसे भूल से न हो, किसी का अपमान। हम अपने को ही सुधारें, जग बने महान हम सुधरें जग सुधरेगा, यही है बड़ा ज्ञान। परिचय :- अशोक पटेल "आशु" निवासी : मेघा-धमतरी (छत्तीसगढ़) सम्प्रति : हिंदी- व्य...
ब्राह्मण
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ब्राह्मण

सुरेश चन्द्र जोशी विनोद नगर (दिल्ली) ******************** ब्राम्हण होकर ब्राम्हण का, आप सभी सम्मान करो! सभी ब्राम्हण एक हमारे, मत उसका नुकसान करो! चाहे ब्राम्हण कोई भी हो, मत उसका अपमान करो! जो ग़रीब हो, अपना ब्राम्हण धन देकर धनवान करो! हो गरीब ब्राम्हण की बेटी, मिलकर कन्या दान करो! अगर लड़े चुनाव ब्राम्हण, शत प्रतिशत मतदान करो! हो बीमार कोई भी ब्राम्हण, उसे रक्त का दान करो! बिन घर के कोई मिले ब्राम्हण, उसका खड़ा मकान करो! अगर ब्राम्हण दिखे भूखा, भोजन का इंतजाम करो! अगर ब्राम्हण की हो फाईल, शीघ्र काम श्रीमान करो! ब्राम्हण की लटकी हो राशि, शीघ्र आप भुगतान करो! ब्राम्हण को अगर कोई सताये, उसकी आप पहचान करो! अगर जरूरत हो ब्राम्हण को, घर जाकर श्रमदान करो! अगर मुसीबत में हो ब्राम्हण, फौरन मदद का काम करो! अगर ब्राम्हण दिखे वस्त्र बिन, उसे अंग वस्त्र का दान करो! ...
बिन शिक्षा बेकार
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बिन शिक्षा बेकार

डॉ. जबरा राम कंडारा रानीवाड़ा, जालोर (राजस्थान) ******************** बिन शिक्षा बेकार, होय नाकारा जैसा। नही मिले सम्मान, पास हो बहु धन पैसा।। पढ़ा-लिखा जो खूब, मान उसका बढ़ जाता। पद कद ऊंचा होय, सभा में वो चर्चाता।। है शिक्षा में सार, बाल उसके सब पढ़ते। सब करते तारीफ, पैर निज मंजिल चढ़ते।। काम बने आसान, मिटे सारी दुविधाएं। सुख भोगे संसार, पाय सारी सुविधाएं ।। पढ़ता वेद पुराण, कुरान बाइबिल गीता। पाये ज्ञान अपार, आधुनिक और अतीता।। बन महान विद्वान, नाम जग में चमकाये। ये सकल करामात, पढा है वो कर पाये।। है बाघिन का दूध, पीये वो दहाड़ेगा। वो ही भाषणवीर, बात कहे लताड़ेगा।। परिचय :- डॉ. जबरा राम कंडारा पिता : सवा राम कंडारा माता : मीरा देवी जन्मतिथि : ०७-०२-१९७० निवासी : रानीवाड़ा, जिला-जालोर, (राजस्थान) शिक्षा : एम.ए. बीएड सम्प्रति : वरिष्ठ अध्यापक कवि, लेखक, समीक्षक। ...
जीवन
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जीवन

पूजा महाजन पठानकोट (पंजाब) ******************** जीवन के इस दौराहे पर जीवन जिया नहीं जाता कि जमाने के इस सितम को अब सहा नहीं जाता अब तो हर पल दुआ करते हैं हम कि यह जीवन जल्दी खत्म हो जाए क्योंकि अब हर पल घुट-घुट के और डर डर यह जीवन जिया नहीं परिचय :- पूजा महाजन निवासी : पठानकोट (पंजाब) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.com पर अणु डाक (मेल) कीजिये, अणु डाक करने के बाद हमे हमारे नंबर ९८२७३ ...
वापस हम न आयेंगे
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वापस हम न आयेंगे

डॉ. अरुण प्रताप सिंह भदौरिया "राज" शाहजहाँपुर (उत्तर प्रदेश) ******************** हमसे मिलने वाले हमको, ख्वाबों में ही पायेंगे हम जो चले गये तो, वापस फिर न आयेंगे कर्मो के काँधे पर चढ़कर, खुद्दारी की चिता सजायेंगे मिट्टी से पैदा होकर हम, मिट्टी में मिल जायेंगे साथ न जायेगा मेरे कुछ, सबको खाली हाँथ दिखाएंगे जो कुछ संचय किया है हमने, सब छोड़ यहीं पर जायेंगे जब सब रोयेंगे जाने पर मेरे, हम धीरे से मुस्कायेंगे उस दुनियाँ में जाकर, वापस हम न आयेंगे परिचय :-  डॉ. अरुण प्रताप सिंह भदौरिया "राज" निवासी : शाहजहाँपुर (उत्तर प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं,...
आज के दिन
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आज के दिन

प्रीति शर्मा "असीम" सोलन हिमाचल प्रदेश ******************** आज ही ...के दिन अनगिनत उम्मीदों ने दम तोड़ा था। मैं किस रब से जाकर पूछता। सबसे पहले उसी ने विश्वास तोड़ा था। आज ही के दिन अनगिनत उम्मीदों ने दम तोड़ा था। सुना था उम्मीदों पर... जिंदगी कायम रहती हैं। कुछ भी ना हो लेकिन एक उम्मीद कुछ होने की हमेशा कायम रहती हैं। जिंदगी चलती ही चली जाती है इस उम्मीद..... पर । क्या पता......... अगली राह पर मंजिल नसीब होती है। आज ही के दिन.... देखा हर उम्मीद को, मंजिल........... कहाँ नसीब होती है। इंतजार इतना लंबा गया.... और देखता हूँ?????? हर उम्मीद की सिर्फ दर्दनाक मौत नसीब होती है। आज के दिन से, आज ही ........ के दिन तक। अब उम्मीदों को छोड़ चुका हूँ। कितना बिखरा उस दिन से, आज तक के दिन तक। उन टुकड़ों को चुन-चुन कर जोड़ चुका हूँ। अब उम्मीदों ...
सुनो जी मैं हूं ना
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सुनो जी मैं हूं ना

संजय कुमार नेमा भोपाल (मध्य प्रदेश) ******************** दूर जाते हुए बस, आंखों का इशारा कहता हे ना, सुनो जी मैं हूं ना। जब मैं बाहर से आता तब, एक हाथ में गिलास पानी थामे कहती कि सुनोजी मैं हूं ना। कुछ परेशान सा दिखा और कुछ कहना हो, दिल को समझाना हो तब कहती सुनो जी मैं हूं ना।। मायके की याद आये, तब मैं कहता, सुनो जी बाहों का सहारा मैं हूं ना। जब आते आंखों में आंसू, रुमाल से पोंछ ते हुए, तो कहता सुनो जी मैं हूं ना।। अब वह बोली कुछ भूली, बिसरी यादें भविष्य के गढ़े हम मीठे सपने, सुनो जी मैं हूं ना।। मैं बोला, अरे मेरी कुछ खट्टी, कुछ मीठी। अब सुनो जी अनूठा हो यह जन्मदिन।। तुम्हारी खुशी के लिए इसी में खुश हूं, कि तुम खुश हो ना। अब मनाएं आपका ये जन्मदिन। मैं हूं ना।। मेरी सुनो जी, शुभ हो शुभ ज्योतिर्मयी हो। जन्मदिवस मंगलमय हो।। जीवन दीप जले अविरत, फैले प्रका...
चलो ढूंढते हैं
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चलो ढूंढते हैं

सरला मेहता इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** जो खो गई कहीं बचपन की गलियाँ प्यारी सी सहेलियाँ वो मीठी अठखेलियाँ चलो ढूँढ़ते हैं... जो छूट गई कहीं वो पीहर की यादें माँ के दिल की मुरादें करते बाबा से फरियादें चलो ढूँढ़ते हैं... जो रह गए सपनें वो मिलना जुलना मदद को तैयार रहना सारे त्योहार संग मनाना चलो ढूँढ़ते हैं... जो अतीत बन गए वो जंगल में मंगल नदियों की कलकल वो खुशियों से भरे पल चलो ढूँढ़ते हैं... जो विलुप्त हो गए वो संस्कार संस्कृति पारिवारिक अनुभूति सभ्य संसार की अनुकृति चलो ढूँढ़ते हैं... परिचय : सरला मेहता निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्र...
बेड़ा पार लगा दो
कविता

बेड़ा पार लगा दो

अंजनी कुमार चतुर्वेदी निवाड़ी (मध्य प्रदेश) ******************** करते जो दिन-रात परिश्रम, फिर भी सुख ना पाते। जिनका रक्त, स्वेद बन बहता, वे मजदूर कहाते। मजदूरों की देख दुर्दशा, पीड़ा बढ़ती जाती। मर्मांतक पीड़ा होती है, पत्थर होती छाती। पेट पीठ में मिला हुआ है, हुआ रंग भी काला। इनकी चिंता नहीं किसी को, कोई नहीं रखवाला। पीर पर्वताकार हो चली, कोई नहीं सहारा। भूखे पेट अल्प वस्त्रों में, जीवन सदा गुजारा। घर को छोड़ पलायन करते, झर झर आँसू बहते। जाड़ा, गर्मी, ओला, पाला, बिना वस्त्र तन सहते। इनका खून पसीना बनकर, खुशहाली लाता है। इनसे खुशी मिले जन-जन को, यह इनको भाता है। सदा सृजन करता रहता है, है प्रासाद बनाता। अपनी खुशहाली के सँग-सँग, सबकी खैर मनाता। श्रम सीकर से सींच- सींच कर, ऊँचे महल बनाता। गगन चूमते इन भवनों में, स्वयं नहीं रह पाता। धन वैभव ...
मैं खुद्दार हूं
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मैं खुद्दार हूं

आशीष द्विवेदी समदरिया शहडोल (मध्यप्रदेश) ******************** जीवन है संघर्ष है ये लड़ रहा, जूझ रहा क्योंकि खुद्दार हूं मैं मैं खुद्दार हूं, मैं लड़ रहा, नहीं मैं भयभीत हूं, मैं धूप में, मैं छांव में ढल रहा पहर भी हो खोई नहीं पहचान अपनी क्योंकि खुद्दार हूं मैं मैं लड़ रहा, अपने आप से मैं जितता, अब खुद से हूं मैं खुद्दार हूं, मैं अपनों से दूर भी हूं मगर हारा नहीं हूं मैं, मैं छोड़ा नहीं हूं अपनी खुद्दारी मैं हार भी नहीं माना हूं, अंत तक लड़ूंगा मैं, छोड़ा नहीं अभी जिंदगी को, मैं खोया नहीं हूं, पहचान अपनी दिन हो, रात हो, मैं जिंदगी छोड़ नहीं, मैं खुद्दार हूं, मैं अपनी खुद्दारी छोड़ नहीं हूं, जिंदगी की कदर करना छोड़ नहीं हूं।। परिचय :-  आशीष द्विवेदी समदरिया निवासी : शहडोल (मध्यप्रदेश) व्यवसाय : बैंकर सम्प्रति : लगभग १० किताबें प्रकाशित) घोष...
पथ तुम्हारा प्रशस्त है
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पथ तुम्हारा प्रशस्त है

डॉ. निरुपमा नागर इंदौर (मध्यप्रदेश) ******************** श्रम पथ पर चलने वाले स्वेद बिंदु से धरा चमकाते हो रक्त बिंदु तुम्हारी नव निर्माण का आव्हान करे खेत, खलिहान, सड़क, कल कारखानों का संधान करे सीने में धधकती ज्वाला लिए जहां भी धरते तुम पग बन जाता है वहीं अग्निपथ अग्निपथ अग्निपथ हार न तुमने कभी मानी चले जब-जब रोज़ी रोटी की शान बनी श्रम वीर बन तुम मुसकाए निज गौरव को भी समेट लाए पथ तुम्हारा प्रशस्त है श्रम की भागीदारी का शोर है रज को जब तुम स्वर्ण बनाते हो क्यूं दामन अपना बिछाते हो श्रम पथ पर चलने वाले स्वेद बिंदु से धरा तुम चमकाते हो ।। परिचय :- डॉ. निरुपमा नागर निवास : इंदौर (मध्यप्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने प...
ज़िंदा ज़ख़्म
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ज़िंदा ज़ख़्म

डॉ. वासिफ़ काज़ी इंदौर (मध्य प्रदेश) ********************** भूलकर भी कैसे भूलाऊँ तुमको। ज़ख़्म ये... कैसे दिखाऊँ तुमको।। रूठकर बैठे हो.. मेरी जाँ मुझसे। तुम बताओ कैसे मनाऊँ तुमको।। मेरी रूह में....... घर कर गये हो । वजूद से अपने कैसे हटाऊँ तुमको।। बहुत ऐहतियात से तोड़ा दिल को मेरे। अब कौन से खिलौने से रिझाऊँ तुमको।। करके बेवफ़ाई इश्क़ में सताया "काज़ी"। अब कौन से रिश्ते से....... सताऊँ तुमको।। परिचय :- डॉ. वासिफ़ काज़ी "शायर" निवासी : इंदौर (मध्यप्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित कर...
विश्वास और आस्था
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विश्वास और आस्था

संजय जैन मुंबई (महाराष्ट्र) ******************** अब न गमों से हमें डर लगता है। न खुशी का मुझे कोई एहसास होता है। क्योंकिं मेरा दिल तो अब अब गुरुभक्ति में रहता है। इसलिए मैं इन सबसे अब दूर रहता हूँ।। जब वो ही मेरे साथ है तो डर किस बात का है। मुझे पूरा है भरोसा अपने गुरुवर पर। जो पग-पग पर साथ है मेरी रक्षा के लिए। तो क्यों रहूँ मैं उदास अपनी इस जिंदगी में।। भक्ति में बहुत शक्ति होती है जो अपना असर दिखती है। और मरने वाले इंसान की सोच को जिंदा रखती है। तभी तो मृत्य इंसान को प्रभु से जीवित करवा लेती है। और सावित्री और सत्यभान की याद दिलाती है।। रखो गुरु पर तुम विश्वास तेरा मालिक देगा साथ। बस अपनी आस्था को कम नहीं होने देना। तेरा प्रभु तुझे नहीं करेगा जीवन में कभी भी निराश। बस सच्चे मन से तुम करो सदा उन्हें याद।। परिचय :- बीना (मध्यप्रदेश)...
मेरे शहर में
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मेरे शहर में

राजीव डोगरा "विमल" कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) ******************** आओ! कभी मेरे शहर में तुम को गैरों को अपना बनाकर दिल लगाना सिखाए। आओ! कभी मेरे शहर में तुमको हर एक शख्स़ से मोहब्बत करना सिखाए। आओ! कभी मेरे शहर में तुम को नफरतों के बीच में पलता इश्क दिखाएं। आओ! कभी मेरे शहर में तुम को विषाद में भी खिलते हुए चेहरे दिखाएं। आओ! कभी मेरे शहर में तुम को महकते पहाड़ो के बीच पंछियों की मधुर वाणी सुनाएं। परिचय :- राजीव डोगरा "विमल" निवासी - कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) सम्प्रति - भाषा अध्यापक गवर्नमेंट हाई स्कूल, ठाकुरद्वारा घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा ...
कविता

सपने संगम जैसे

आनंद कुमार पांडेय बलिया (उत्तर प्रदेश) ******************** सपने संगम जैसे लगते, दूर हमारे दुखड़े भगते। छु हीं लेंगे अपनी मंजिल, विघ्नों से ना पीछे हटते।। सपने संगम जैसे लगते, दूर हमारे दुखड़े भगते।। जीवन के हर विकट समय को, हंसते-हंसते दूर भगाना। हम भी हैं इक अद्भूत मानव, सपना आया एक सुहाना।। हम हैं निडर पथिक उस पथ के, पार करेंगे हम भी डटके। सपने संगम जैसे लगते, दूर हमारे दुखड़े भगते।। कभी पंख लग जाते हमको, पक्षी बन उड़ जाते हैं। आसमान के खुले सफर में, उड़ने में सुख पाते हैं।। इन विचित्र सपनो की दुनिया, में हम कभी नहीं हैं थकते। सपने संगम जैसे लगते, दूर हमारे दुखड़े भगते।। वो बचपन के सपने भी तो, आ जाते हैं कभी-कभी। खेल-खेल में रोज झगड़ना, फिर मिल जाना अपना भी।। सपनो के इस सुंदर वन में, मन आनंद के रोज भटकते। सपने संगम जैसे लगते, दूर हमारे दुखड़े भगते।...