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कविता

जब बालक इस संसार में आया
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जब बालक इस संसार में आया

कु. रोशनी सोलंकी इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** जब बालक इस संसार में आया, उसने सारा जग पाया जब वह समाज में उतरा, उसने लोगों को पाया विद्यालय जाने पर उसने, विद्या का मंदिर पाया पढ़-लिख कर महान बनने का, उसने यह संकल्प उठाया देश के लिए कुछ कर दिखाने का, उसने यह विश्वास जगाया अपनी मेहनत और लगन से, उसने कामयाबी को पाया इस अनोखी दुनिया में, उसने बहुत कुछ अद्भुत पाया संसार में आने का उसने, अपना यह कर्तव्य निभाया।। परिचय :-  कु. रोशनी सोलंकी निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं,...
सूरज लाल, जनता बेहाल
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सूरज लाल, जनता बेहाल

शैलेष कुमार कुचया कटनी (मध्य प्रदेश) ******************** पेड़ इत्ते थे पहले की धूप का पता ही नही चलता था तालाबो में नहा लिया करते थे जब लगती थी गर्मी कूलर तो नाम बस सुना था पंखा ही गर्मी कटा दिया करता था। लेकिन आज ऐ सी भी फैल है ५० डिग्री टेम्प्रेचर में सूरज लाल है पेड़ सारे काट दिया नए नए फर्नीचर बनाने को पानी खुद बोतल वाला खरीदकर पी रहे वो पेड़ो को कहा पिलाएंगे। नई पीढ़ी को हम क्या दे जाएंगे बेल, आम, नींबू रबड़ी वाली आइस क्रीम या फिर कहानियो में ही नाम सारे सुन पाएंगे यदि प्रकृति को बचाना है पेड़ अभी से लगाना है बच्चो को भी यही सिखाना है पानी हमे बचाना है।। परिचय :-  शैलेष कुमार कुचया मूलनिवासी : कटनी (म,प्र) वर्तमान निवास : अम्बाह (मुरैना) प्रकाशन : मेरी रचनाएँ गहोई दर्पण ई पेपर ग्वालियर से प्रकाशित हो चुकी है। पद : टी, ए विधुत विभाग अम्बाह ...
एक दिन
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एक दिन

राजीव डोगरा "विमल" कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) ******************** एक दिन महोब्बत तुम को भी होगी। एक दिन चाहत तुम को भी होगी। एक दिन एहसास तुम को भी होगा। एक दिन वफ़ा तुम को भी रास आएगी। एक दिन दर्द तुम को भी होगा। एक दिन बेवफाई तुमको भी खाएगी। एक दिन दिल तुम्हारा भी तड़पेगा। एक दिन तनहाई तुम्हें भी सताएगी। परिचय :- राजीव डोगरा "विमल" निवासी - कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) सम्प्रति - भाषा अध्यापक गवर्नमेंट हाई स्कूल, ठाकुरद्वारा घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेत...
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बेकार नहीं है हम

आनंद कुमार पांडेय बलिया (उत्तर प्रदेश) ******************** हमको भी ईश्वर ने अपने हाथों से बनाया है। अपने हाथों से मेरा सुंदर रूप सजाया है।। मत कोस हमें तु बार-बार शिकार नहीं हैं हम। बेकार नहीं हैं हम, बेकार नहीं हैं हम।। मुश्किल घड़ियों में साथ तुम्हारा देंगे हम। हंस-हंस के सह लेंगे तेरे ढ़ाये वो सितम।। तु कह ले तेरे ममता के हकदार नहीं हैं हम। बेकार नहीं हैं हम, बेकार नहीं हैं हम।। किश्मत की लकीरों को हम भी खूद बदलेंगे। दे छोड़ भले तु तनहा कुछ तो कर हीं लेंगे।। जो डूबो दे मंझदार में वो पतवार नहीं हैं हम। बेकार नहीं हैं हम, बेकार नहीं हैं हम।। जो करते हैं वो करने दो मत रोको अब। मेरे भी साथ खड़ा है जो तेरा है रब।। दर पर तेरे खड़े मगर लाचार नहीं हैं हम। बेकार नहीं हैं हम, बेकार नहीं हैं हम।। आनंद की आँखों में भी देखो पानी है। दुःख सुख को हमने भी नजदीक से...
संधि और उसके भेद
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संधि और उसके भेद

डाॅ. दशरथ मसानिया आगर  मालवा म.प्र. ******************* दो या दोधिक वर्ण से, मिलके संधी आन। वर्णो का ही खेल है, कहता सकल जहान ।।१ स्वर व्यंजन अरु विसर्ग, संधि भेद है तीन। शब्दों को विच्छेद कर, संधी होती छीन।।२ स्वर से ही जब स्वर मिले, स्वर संधी का आन। अच् हल् हल् हल् जब मिलें, व्यंजन संधी मान।।३ वरण बीच विसर्ग लगे, विसर्ग संधी आन। संधी तीनों जानिये, कहते संत सुजानन।।४ दीर्घ अयादि वृद्धि अरु, गुण यण को पहिचान। स्वर संधि के पाँच रूप, कहत हैं कवि मसान।।५ स्वर - विद्या+आलय = विद्यालय व्यंजन - जगत्+नाथ = जगन्नाथ विसर्ग - रामः+अयम् = रामोऽयम् परिचय :- आगर मालवा के शासकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय आगर के व्याख्याता डॉ. दशरथ मसानिया साहित्य के क्षेत्र में अनेक उपलब्धियां दर्ज हैं। २० से अधिक पुस्तके, ५० से अधिक नवाचार है। इन्हीं उपलब्धियों के आधार पर उन्हें मध्...
सपने
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सपने

पूजा महाजन पठानकोट (पंजाब) ******************** प्यार के वह सपने जो बुने थे हमने कभी टूटे इस तरह से कि चुने भी ना गए हमसे वह कभी दुनिया ने हमारे प्यार को इस तरह से तोड़ा की नफरत भी ना कर सके हम उनसे कभी परिचय :- पूजा महाजन निवासी : पठानकोट (पंजाब) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.com पर अणु डाक (मेल) कीजिये, अणु डाक करने के बाद हमे हमारे नंबर ९८२७३ ६०३६० पर सूचित अवश्य करें …🙏🏻 ...
तुम हमारी तलब हो
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तुम हमारी तलब हो

मनमोहन पालीवाल कांकरोली, (राजस्थान) ******************** तुम हमारी तलब हो मेरे इश्क़ की नजर हो कूएयार में आग फैली तुम हमारी खबर हो क्या कहूॅ ओरों के लिये दिल को जब सबर हो तुम ही होंसला हो मेरा ओर तुम रहबर हो ये हुस्न, इश्क़ धोखा है पर तुम मेरा मुकद्दर हो सुख दूख के तुम साथी शायद मेरी तकदीर हो मेरा आशियाना ओर तुम ही मोहन ईश्वर हो परिचय :- मनमोहन पालीवाल पिता : नारायण लालजी जन्म : २७ मई १९६५ निवासी : कांकरोली, तह.- राजसमंद राजस्थान सम्प्रति : प्राध्यापक घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, ल...
कभी आँसु पोंछ करके तो देख
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कभी आँसु पोंछ करके तो देख

अशोक पटेल "आशु" धमतरी (छत्तीसगढ़) ******************** कभी किसी के आँसु पोंछ करके तो देख बेवजह तेरे आँसु कभी बहेंगे तो कहना। कभी किसी के दर्द बांट करके तो देख बेवजह तुझे कभी दर्द मिलेंगा तो कहना। कभी तू किसी के सहारा बनके तो देख बेवजह कभी बेसहारा बनेगा तो कहना। कभी किसी के भूख को मिटा के तो देख बेवजह कभी बिना खाए सोएगा तो कहना। कभी किसी के प्यास बुझा के तो देख बेवजह तू कभी प्यासा होगा तो कहना। कभी किसी की छत्र छाया बन के तो देख बेवजह तू छाया से वंचित होगा तो कहना। कभी किसी के लिए हाथ बढ़ा के तो देख बेवजह कोई अपना हाथ खींचेगा तो कहना कभी किसी के लिए इंसान बनके तो देख बेवजह कोई तेरा हैवान बनेगा तो कहना। परिचय :- अशोक पटेल "आशु" निवासी : मेघा-धमतरी (छत्तीसगढ़) सम्प्रति : हिंदी- व्याख्याता घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेर...
कश्ती कागज की
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कश्ती कागज की

संजय कुमार नेमा भोपाल (मध्य प्रदेश) ******************** कश्ती कागज की, मझधारो में मिल जाए कोई खिवईया। कोई तो पार लगाएं ‌ सागर के नीले पानी में।। संभालो मुझे तूफानों में, हिलोरों में, कश्ती न डूबे जज्बातों में। ये कश्ती कागज की बहते पानी में।। समुद्र के बीचों बीच, दिखता न कोई किनारा। अब कोई हाथ तो थामें, लगा दो अब किनारे। गहराई में लहरों से डगमग चलती ये कश्ती।। अब कश्ती है मझधारों में।। ये कश्ती कागज की बहते पानी में।। अब नहीं है कोई खिवैया, अब मैं राह भटकूं।। इन मजधारों में, आंधी में तूफानों में। हुनर है मेरे पास, मुझे तो बचना आता।।‌‌ अब इन मजधारों में। यह कश्ती कागज की बहते पानी में।। ‌ अब भी है हौंसला, हम तो बैठे कागज की नाव में। इंतजार है उन लहरों का, मजधारो में।। अब लहरें इतराती नहीं, इठलाती नहीं।। किनारा दूर नहीं। अब कोई मुझे रोक न सका, ट...
नाना की नीति
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नाना की नीति

डॉ. निरुपमा नागर इंदौर (मध्यप्रदेश) ******************** फिरंगियों का दम खम ‌करने चूर बने वे तो क्रांति दूत साधु, ज्योतिष, कबीर, मदारी दे कर रुप अनेक, बनाई सेना न्यारी तीर्थाटन के बहाने घूम-घूम कर राजे रजवाड़ों में आजादी की अलख जगाई हाथ खड्ग! निशां था कमल रोटी रक्त कमल की भाषा ने की अगुआई नाना साहब पेशवा थे वे रहस्य भेद की नीति थी अपनाई कब कैसे कहां हुई उनकी बिदाई दुनिया भेद यह जान न पाई परिचय :- डॉ. निरुपमा नागर निवास : इंदौर (मध्यप्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानि...
जीवन रंगमंच है
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जीवन रंगमंच है

विवेक नीमा देवास (मध्य प्रदेश) ******************** यह जीवन है रंगमंच, किरदार निभाते जाना तुम। अभिनय में हों लाख मुश्किलें सब को हँसाते जाना तुम। हुनर मंच का जीवन सा है प्यार लुटाते जाना तुम काँटे लाख हो राहों में गर फूल ही चुनते जाना तुम। चेहरे कई मिलेंगे हर पल झूठ व सच पहचानना तुम होंगे अश्व सवार अनेकों अपनी लगाम संभालना तुम। पट के पीछे का खेल निराला चतुर खिलाड़ी बनना तुम जीवन रथ का चक्र अनोखा उसमें घूमते जाना तुम। वायु वेग सा समय चलेगा सही समय पहचानना तुम। जब तक पर्दा न गिर जाए आगे बढ़ते ही जाना तुम। पथ के पैमाने बदलेंगे पर खुद को न बदलना तुम यह जीवन है रंगमंच किरदार निभाते जाना तुम।। परिचय : विवेक नीमा निवासी : देवास (मध्य प्रदेश) शिक्षा : बी कॉम, बी.ए, एम ए (जनसंचार), एम.ए. (हिंदी साहित्य), पी.जी.डी.एफ.एम घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ ...
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दर्द-ए-आलम

आनंद कुमार पांडेय बलिया (उत्तर प्रदेश) ******************** दर्द-ए-आलम सुनाऊं तो किससे भला, दर्द सुनने का साहस किसी में नहीं| उसकी कातिल निगाहों ने मारा मुझे, मार दे मुझको जुर्रत किसी में नहीं| जिनके कदमों में अर्पण किया जिंदगी, अपना कहने की साहस उसी में नहीं| जख्म ऐसा मिला कोई मरहम कहाँ, थोड़ी रहमत नहीं मायूसी में कहीं, कायराना हरकत किया उसने हम पर, फर्क दिखने लगा उस हंसी में सही। वक्त सबका बदलता न गुमान कर, हस्तियां हर समय सबकी रहती नहीं| मौज-ए-आनंद को ना कभी छोड़ना, मुश्किलों की डगर साहसी में नहीं| परिचय :- आनंद कुमार पांडेय पिता : स्व. वशिष्ठ मुनि पांडेय माता : श्रीमती राजकिशोरी देवी जन्मतिथि : ३०/१०/१९९४ निवासी : जनपद- बलिया (उत्तर प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपन...
महाराणा प्रताप
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महाराणा प्रताप

सरला मेहता इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** राजपूताने की धरती पर इक महाराणा जन्मा था वीर प्रताप मेवाड़ राज्य मुगलों का बल डोला था मातृभूमि मुगलों से पाने जंगल में डेरा डाला था छापामारी सिखलाते थे इक शक्तिसेना बनाई थी कंद मूल घास की रोटियाँ खाकरके जीवन बिताते थे लोहपुरुष सर्वप्रिय राजा थे शौर्य वीरता का दम वे भरते अकबर के अनुबंध नकारे राणा भिड़ गए थे मुगलों से मुट्ठी भर सैनिकों की सेना राणा का भाला था धारदार चेतक पर राणा की सवारी मुगलों की सेना भी थी हारी त्यागे प्राण घायल राणा ने अकबर को ना पीठ दिखाई जय-जय राणा, जय मेवाड़ परिचय : सरला मेहता निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्ष...
माँ की दुआ
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माँ की दुआ

महेन्द्र सिंह कटारिया 'विजेता' सीकर, (राजस्थान) ******************** उस आँगन में रहे ना कभी सुख-समृद्धि का अभाव। फलीभूत रहता है जबतक माँ की दुआओं का प्रभाव। जन्मदात्री की आज्ञा का जिस घर अँगना में हो अनुपालन। नव पीढ़ी में वहाँ होता सदा संस्कारित गुणों का परिपालन। मातृशक्ति हमारी होती सदा कुटुंब समुदाय की आन। बढ़ाती मांगलिक कार्यों में खानदानी विरासत की शान। राह भटकते बच्चों को बीच जीवन में है टोकती। जो कर्तव्य पथ हो अडिग उन्हें बढ़ने से नहीं रोकती। देवें सदैव उन्हें सम्मान जीओं चाहे अपने उसूल। हृदय विह्वल हो उनका करें न कभी ऐसी भूल। परिचय :- महेन्द्र सिंह कटारिया 'विजेता' निवासी : सीकर, (राजस्थान) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय ...
शब्द श्रद्धांजलि
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शब्द श्रद्धांजलि

डॉ. भगवान सहाय मीना जयपुर, (राजस्थान) ******************** मौत भी रोई होगी ऐसा मंज़र देखकर। उसे दरिंदे मिलें इंसानी नक़ाब पहनकर। अनजान पहुंची होगी भेड़ियों की मांद में, वो भोली निश्छल उन्हें अपना मानकर। टूटकर बिखरी थीं इक मां, बहन बेटी, सिसकी घबराई होगी वो खतरा भांपकर। दुराचारियों ने नोंचा मासूम रूह तन को, बचने की लाख कोशिश की हैवान जानकर। पशु भी नहीं करते इतने घृणित कर्म, वो किया दरिंदों ने उसे लाश समझकर। दुःख, वेदना, पीड़ा, आंसू, ख़ून, कत्ल सब, बौने नज़र आये बहन तेरा दर्द जानकर। आंखों पर पट्टी बांधकर गांधारी मत बनो, उठा लो खंजर करोगे क्या हाथ बांधकर। जी कर भी क्या करोगे ऐसी जिंदगी का, कायर डरपोक मरी मानवता साधकर। खोखले कानून और गूंगी बहरी सरकार, रोज रौंधी जाती है नारी नारायणी कहकर। अब सरेराह कत्ल करों, इन दानवों का। इन्हें फांसी पर लटकाओ रस्स...
माता तुलसी पतित पावनी
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माता तुलसी पतित पावनी

अंजनी कुमार चतुर्वेदी निवाड़ी (मध्य प्रदेश) ******************** हर घर पूजित होती तुलसी, वेद पुराणों सी पावन। यत्र, तत्र, सर्वत्र विराजित, तुलसी है प्रिय मनभावन। विष्णुप्रिया, प्रिय सालिग्राम की, ठाकुर भोग लगाते। तुलसी घर में रोपण करके, सुख सौभाग्य जगाते। जनमानस में पूजी जाती, हर गुण से संपन्न। जिस घर होती भाग्य जगाती, जो धनहीन विपन्न। पूर्व जन्म में वृंदा थी यह, जालंधर को ब्याही। परम भक्त थी हरि विष्णु की, भगवत पथ की राही। अत्याचारी जालंधर से, सभी देव जब हारे। विष्णुधाम जाकर तब सब ने, अति प्रिय बचन उचारे। छद्म रूप धारण कर प्रभु ने, वृंदा करी अपावन। जालंधर को मार दिया तब, भोले शिव मनभावन। श्राप दिया वृंदा ने हरि को, सालिग्राम बनाया। जड़बत हुई समूची सृष्टि, अंधकार सा छाया। सब देवों ने करी प्रार्थना, तब वृंदा थी मानी। काला मुख कर श्राप हटाया, ...
महात्मा गौतम बुद्ध
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महात्मा गौतम बुद्ध

धर्मेन्द्र कुमार श्रवण साहू बालोद (छत्तीसगढ़) ******************** जन्म – ५६३ ई.पू., लुम्बिनी (नेपाल) ; कपिलवस्तु के पास मृत्यु - ४८३ ई.पू., कुशीनगर (भारत) ; माता – महामाया(मायादेवी), पिता – शुद्धोधन जीवनसाथी – राजकुमारी यशोधरा, पुत्र – राहुल, विमाता – महाप्रजापती गौतमी -------------------------------------------------------------------- :::::::::::गौतम बुद्ध के जीवन दर्शन:::::::::: ######################### भारत की पवित्र भूमि पर कई देव तुल्य महापुरुषों ने जन्म लिया | अपने कृत्य व कृति के बल पर मानव समाज का कल्याण किया || ऐसे असाधारण विभूति महात्मा बुद्ध का मानव रूप में अवतरित हुए | अध्यात्म की ऊँचाइयों को छूकर विश्व - पटल पर नाम रोशन किये || ________भाग - १________ ------------------------------------------------------------------- ::::::::: शिक्षा व विवा...
पिता की वेदना
कविता

पिता की वेदना

रावल सिंह राजपुरोहित जोधपुर (राजस्थान) ******************** चला था घुटनों के बल घोड़ा बनकर, ले बेटो को उस पर बैठाकर। घिस-घिस पांवो को खूब कमाया था, तन-मन से उसे बेटे पर, खूब लुटाया था। खुद ने तो पहनी थी फ़टी अंगरखी, ब्रांडेड कपडा दिलाया था बेटे ने। खुद ने तो काम चलाया चप्पलो से, बूट दिलाया था बेटे ने। खूब लिखाया खूब पढ़ाया, समाज में बड़ा नाम कराया। फिर चढ़ाया था उसे घोड़ी पर, न जाने कितने नोट अवारे थे, बेटे बहू की नई जोड़ी पर। कुछ दिन तो अच्छे से थे बीते, बेटा बहू भी आदर से संग जीते। फिर शुरू होने लगी खटपट, सास बहू में अनबन होती झटपट। फिर भी था विश्वास पिता को, अपने खून के जाए पर। पर वह विश्वास भी जल्दी टूट गया, जब बेटा भी रण में कूद गया। छाती से जिसको रखा लगा था, वो अब छाती पर दलने मूंग लगा था। आप-आप से तू-तू पर वो आ गया, हिस्सा करने की जिद पर व...
जमाने का चलन देखा
कविता

जमाने का चलन देखा

महेश बड़सरे राजपूत इंद्र इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** कभी मायूस देखा, कभी हँसते हुए देखा। खुद के बनाये जालों में कभी, फँसते हुए देखा।। कभी ना नजरें मिलाते जो, सलाम आज करते हैं। मतलब बिना जमाने को, ना कभी,झुकते हुए देखा।। उनको मिली है जिंदगी जीने की तहज़ीब फिर भी। बर्बादी की राह पर आदमी को आगे, बढ़ते हुए देखा।। ना मिला सुकून ना चैनो-अमन खुद से जिन्हे। दूसरों की जिन्दगी में खलल, करते हुए देखा।। ढेरों लोग हैं छोड़ी नहीं जाती जिनसे आदतें बुरी। भरी महफ़िल में उनको नसीहतें, पढ़ते हुए देखा।। सिधा सा रास्ता है दिल में उतर जाने का 'इंद्र' जान ले। तुझे प्यार से गले इंसान के, ना कभी, मिलते हुए देखा।। परिचय :- महेश बड़सरे राजपूत इंद्र आयु : ४१ बसंत निवासी :  इन्दौर (मध्य प्रदेश) विधा : वीररस, देशप्रेम, आध्यात्म, प्रेरक, २५ वर्षों से लेखन घोषणा पत्र...
विश्व परिवार दिवस
कविता

विश्व परिवार दिवस

विजय गुप्ता दुर्ग (छत्तीसगढ़) ******************** नया भारत परीक्षा देता, भय साजिशें महामारी है। भारत बना विश्व प्रणेता, सर्वमान्य नेतृत्व जारी है। खूब पढ़ाया संतानों को, बढ़ता क्रम भी जारी है दादा दादी नाना नानी की बढ़ती अब लाचारी है घर परिवार दायरे में रहना सबकी जिम्मेदारी है। भारत बना विश्व प्रणेता, सर्वमान्य नेतृत्व जारी है। नया भारत परीक्षा देता, भय साजिशें महामारी है रुचि लगाव रखने में परिवारों की पूरी हिस्सेदारी है नारी सशक्तिकरण के युग में अहम भूमिका नारी है संस्कार समन्वय और मातृत्व गुण सभी पर भारी है भारत बना विश्व प्रणेता, सर्वमान्य नेतृत्व जारी है। नया भारत परीक्षा देता, भय साजिशें महामारी है। सतर्क और संस्कार नियम से यदि बढाई यारी है गुमराह वजह कुछ लोगों की बनी चिंता हमारी है कुतर्क चलन अहम तुष्टि में कुछ की मति मारी है। भारत बना विश्व प्रणेता, सर्वमान...
माटी मांगे संज्ञान
कविता

माटी मांगे संज्ञान

संदीप पाटीदार कोदरिया महू (मध्य प्रदेश) ******************** जय माँ भारती अटल, अखंण्ड, अद्वितीय, अबोध जय माँ भारती बहुत हो गया अब न सहूगी, अब संभालनी तुम्हे कमान है, हर घर मे क्यों माया रूपी दानव बैठा... फिर क्यों कहते हैं कि देश महान है... देती आई मैं धन्य धान्य सभी को... और सहा मैंने अपमान है... क्यों जाति धर्म के नाम पर मुझको... क्यों किया लहूलुहान है... क्यों हनन हो रहा अब मानवता का... क्या यही मेरी पहचान है... क्या यही सब धर्मों का ज्ञान है... क्यों नहीं लेता कोई इस पर अब संज्ञान है... अब मिटे मेरे पद निशान हे... जय मां भारती परिचय :- संदीप पाटीदार निवासी : कोदरिया महू जिला इन्दौर (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर ...
सूखा पत्ता
कविता

सूखा पत्ता

दिति सिंह कुशवाहा मैहर जिला सतना (मध्य प्रदेश) ******************** सूखा गिरता पत्ता पैरों से मसला जाता, मंद हवा के झोंकों से फिजाओं में इठलाता। मैं सूखा पत्ता फिरता दर-दर, पेड़ों की टहनियों से झरता झर-झर, प्रसन्न हूँ मैं वजूद मेरा पतझड़। उड़ता बिखरता रंगों में रंग भरता, सूखी डाली तरुओं, नीड़ों में आशियाना मेरा, आता जाता कारगर-कतवारों में, तपती भूमि निर्जन वनों गलियों चौबारों में, निकलता हूँ हर घर के द्वारों से। लेकर आता खाद रूप खेत खलिहानों में सूखा गिरता पत्ता फिर नई आशाओं से, नया रूप प्राप्त कर लेता शाखाओं में। परिचय : दिति सिंह कुशवाहा जन्मतिथि : ०१/०७/१९८७ शिक्षा : एम.ए. हिंदी साहित्य पिता : रामविशाल कुशवाहा पति : सत्य प्रकाश कुशवाहा निवासी : मैहर जिला सतना (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह र...
बिरवा हम लगाबो
आंचलिक बोली, कविता

बिरवा हम लगाबो

अशोक पटेल "आशु" धमतरी (छत्तीसगढ़) ******************** आवव संगी आवव, बिरवा हम लगाबो आवव संगी साथी, भुइया हम सजाबो गांव के गली पारा म चउक-चउक हटवारा म धरती म बिरवा जगाबो आवव संगी आवव.... खेत-खार सुन्ना होंगे, मेड़ घलो सुन्ना बनिस नावा डाहर त, कटगे पेड़ जुन्ना छइहा ह नोहर होंगे, कहां सुख पाबो आवव संगी आवव.... चिरई-मन खोजत हावे, रुखुवा के थइहा तरसत हे छइहा बर, गांव के हे गंवतरिहा झिलरी अउ झाड़ी छईहा रद्दा ल बनाबो आवव संगी आवव.. घर-अंगना खोर गली, अउ जमो मोहाटी खेत-खार, मेड़-पार अउ घलो चौपाटी गोकुल के धाम सही चला अब सुघराबो आवव संगी आवव.... नरवा के तीर घलो, पारे-पार तरिया फुलवारी लागे कलिन्दी कछार नदिया गाँव-गाँव शहर-नगर ल मधुबन बनाबो आवव संगी आवव.... धरती के तापमान तभे तो सुधरही झमाझम रुखुवा म धरती सवँरही आही बादर करिया अउ पानी बरसाबो आवव संगी आवव.... ...
कविता

कर लो इरादों को अटल

आनंद कुमार पांडेय बलिया (उत्तर प्रदेश) ******************** आत्म निर्भरता से हीं तेरा मनोरथ हो सफल। बांध लो कसके कमर करलो इरादों को अटल।। विश्व में अपना पताका तुमको लहराना हीं होगा। जिंदगी की दौड़ में अव्वल तुम्हें आना हीं होगा। एक हो निर्णय तुम्हारा देश तब होगा प्रबल। बांध लो कसके कमर करलो इरादों को अटल।। खुद बनों मालिक तु अपना कह रही माँ भारती। अपने जीवन रथ का खुद हीं बनना होगा सारथी।। सोंचने में मत बिताओ अपना सुनहरा आज-कल। बांध लो कसके कमर करलो इरादों को अटल।। बेवजह की बात में अपना समय बर्बाद मत कर। कौन क्या कहता है इन बातों में घूंट-घूंट के न तु मर।। मेरी इन बातों को तु अपने जीवन में कर अमल। बांध लो कसके कमर करलो इरादों को अटल।। कश्मकश जीवन में है इस कश्मकश से तु उबर। जिंदगी की राह में तुझको तो चलना है निडर।। कौन है अपना-पराया इस मुसीबत से निकल। बांध लो कस...
मिलने से होती है
कविता

मिलने से होती है

संजय जैन मुंबई (महाराष्ट्र) ******************** न हम उनको समझ सके न वो हमको समझ पाये। पर हम फिर भी निरंतर आपस में मिलते जुलते रहे। और एक दूसरे से अपने दुख दर्द बाटते रहे। इसलिए लोगों ने इसे अलग ही रंग दे दिया।। हमारी इस मित्रता का उन्होंने अलग ही नाम दे दिया। करे तो क्या करे हम अब इस हवा को रोकने के लिए। जो दिखता है जमाने को वो सच भी नहीं होता। और हालातों के शिकार बहुत लोग हो जाते।। माना की मोहब्बत का रंग चढ़ते देर नहीं लगती। निगाहों से निगाहों का मिलन भी जल्दी होता है। दिलो की चाहत भी जल्दी बढ़ने लगती है। और मोहब्बत का भूत दिल पर छा जाता है।। समय के साथ साथ फिर सब कुछ बदलने लगता है। समझने और जानने की समझ भी फिर आ जाती है। दिलो में फिर प्यार का रंग ही रंग दिखता है। और मिलने जुलने से ही मोहब्बत का उदय होता है।। परिचय :- बीना (मध्यप्र...